मस्जिद की बरकतें और फज़िलतें
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
फ़रमाने इलाही है : अल्लाह की मसाजिद को सिर्फ वोही लोग आबाद करते हैं जो अल्लाह और आख़िरत के
दिन पर ईमान लाते हैं। फ़रमाने नबवी है कि जिस शख्स ने अल्लाह की रज़ाजूई के लिये मस्जिद बनाई अगर वो मस्जिद भट-तीतर के बिल के बराबर ही क्यूं न हो, अल्लाह तआला उस शख्स के लिये जन्नत में महल बना देता है।
फ़रमाने नबवी है : जब तुम में से कोई मस्जिद से महब्बत रखता है अल्लाह तआला उस से महब्बत रखता है।
फ़रमाने नबवी है कि जब तुम में से कोई शख्स मस्जिद में दाखिल हो तो बैठने से पहले दो रक्अत नमाज़ अदा करे ।
फ़रमाने नबवी है कि मस्जिद के हमसाए की नमाज़ मस्जिद के सिवा जाइज़ नहीं
एक और इरशादे नबवी है कि तुम में से कोई फ़र्द जब तक जाए नमाज़ पर रहता है फ़रिश्ते उस के लिये मगफिरत व बख्शिश की दुआएं करते हैं और कहते हैं : “ऐ अल्लाह ! इस पर सलामती नाज़िल फ़रमा, ऐ अल्लाह ! इस पर रहम फ़रमा और ऐ अल्लाह ! इसे बख़्श दे।” यह दुआएं उस वक्त तक जारी रहती हैं जब तक कि वह किसी से बात न करे या मस्जिद से निकल न जाए।
फ़रमाने नबवी है कि आख़िर ज़माने में मेरी उम्मत के कुछ ऐसे लोग होंगे जो मस्जिदों में आएंगे और गिरोह बना कर दुन्यावी बातें करते रहेंगे और दुनिया की महब्बत के किस्से बयान करेंगे, उन के साथ न बैठना, अल्लाह तआला को उन की कोई ज़रूरत नहीं है।
फ़रमाने नबवी है कि अल्लाह तआला का येह इरशाद बा’ज़ इल्हामी किताबों में मौजूद है कि ज़मीन पर मस्जिदें मेरा घर हैं और इन की ता’मीर व आबादी में हिस्सा लेने वाले मेरे जाइर हैं, पस खुश खबरी है मेरे उस बन्दे के लिये जो अपने घर में तहारत हासिल कर के मेरे घर में मेरी ज़ियारत को आता है लिहाज़ा मुझ पर हक़ है कि मैं आने वाले जाइर को इज्जत व वकार अता करूं ।
सरवरे काइनात सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि जब तक तुम किसी ऐसे आदमी को देखो जो मस्जिद में आने का आदी है तो उस के ईमान की गवाही दो।
जनाबे सईद बिन मुसय्यब रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : जो शख्स मस्जिद में बैठता है, गोया वोह अल्लाह की मजलिस में बैठता है लिहाजा उसे भलाई के सिवा कोई और बात नहीं करना चाहिये।
एक हदीस में येह भी आया है कि मस्जिद में दुन्यावी बातें नेकियों को इस तरह खा जाती हैं जैसे जानवर चारा खा जाते हैं ।
इमाम नखई रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : सलफ़े सालिहीन ने फ़रमाया कि रात की तारीकी में मस्जिद में आने वाले के लिये जन्नत वाजिब होती है।
हज़रते अनस बिन मालिक रज़ीअल्लाहो अन्हो का फ़रमान है कि जो शख्स मस्जिद में चराग जलाता है, जब तक उस चराग की रोशनी से मस्जिद मुनव्वर रहती है, हामिलीने अर्श और तमाम फ़िरिश्ते उस के लिये मगफिरत की दुआ करते रहते हैं।
नमाज़ी के मरने पर ज़मीन रोती है
हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं कि जब आदमी मर जाता है तो उस की नमाज़ पढ़ने की जगह और आस्मान की जगह, जहां से उस के अमल चढ़ा करते हैं, उस पर रोते हैं फिर आप ने येह आयत पढ़ी :
“पस उन पर न ज़मीनो आस्मान रोए और न ही उन्हें ढील दी गई।”
(या’नी जब ऐसा शख्स मरता है जिस की नमाज़ पढ़ने की जगह नहीं होती तो उस पर जमीनो आस्मान नहीं रोते)
हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि नमाज़ी पर चालीस सुव्हें ज़मीन रोती है।
हज़रते अता अल खुरासानी रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि बन्दा जब ज़मीन के किसी टुकड़े पर सजदा करता है तो वोह टुकड़ा कियामत के दिन उस के अमल की गवाही देगा और उस बन्दे की मौत के दिन वोह टुकड़ा रोता है।
हज़रते अनस बिन मालिक रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि ज़मीन का हर वोह टुकड़ा जिस पर नमाज़ अदा की जाती है या ज़िक्रे खुदा किया जाता है वोह इर्द गिर्द के तमाम कतआत पर फ़खर करता है और ऊपर से नीचे सातवीं ज़मीन तक वोह मसर्रत व शादमानी महसूस करता है और जब बन्दा किसी ज़मीन पर नमाज़ पढ़ता है वोह ज़मीन उस पर फ़खर करती है।
और येह भी कहा गया है कि कोई जमाअत ऐसी नहीं है जो कहीं जा कर ठहरे मगर जमीन का वोह टुकड़ा जो उन की क़ियाम गाह है, या तो उन पर सलामती भेजता है या उन पर ला’नत करता है।
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
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