फजीलते इताअत – अल्लाह के हुक्म की इताअत की फ़ज़ीलत और बरकतें
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
इताअते खुदावन्दी के मा’ना तमाम नेकियों को पा लेना है, अल्लाह तआला ने कुरआने मजीद की बहुत सी आयात में लोगों को इसी बात की तरगीब दी है और इसी लिये अम्बियाए किराम को मबऊस फ़रमाया ताकि लोगों को नफ़्स की तारीकियों से निकाल कर अल्लाह तआला की मा’रिफ़त की रोशनियों में लाएं और वो उस जन्नत से नफ्अ अन्दोज़ हों जो नेकों के लिये तय्यार की गई है कि उस जैसी जन्नत किसी आंख ने नहीं देखी, किसी कान ने नहीं सुनी और किसी दिल में उस का तसव्वुर भी नहीं गुज़रा, लोगों को फुजूल नहीं पैदा किया गया बल्कि इस लिये पैदा किया गया है कि बुरों को उन की बुराई की सज़ा मिले और नेकों को उन की नेकियों का अज्र अता हो।
अल्लाह तआला इबादत से बे नियाज़ है, लोगों की बुराइयां न उसे नुक्सान पहुंचाती हैं और न ही उस के कमाल में कोई नक्स आता है। अगर मख्लूक़ अल्लाह तआला की इबादत न करे तब भी अल्लाह तआला की बारगाह में ऐसे फ़िरिश्ते हैं जो सुब्हो शाम रब की हम्द करते रहते हैं और कभी नहीं थकते।
जिस शख्स ने नेकी की, उस ने अपने लिये की और जिस ने गुनाह किया उस का अज़ाब उसी की गर्दन पर होगा, अल्लाह तआला गनी है और तुम फ़कीर हो।।
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हैरान कुन बात तो यह है कि हम अगर कोई गुलाम ख़रीदते हैं तो इस बात को पसन्द करते हैं कि वो हर वक्त ख़िदमते मामूरा पूरी तनदेही से सर अन्जाम देता रहे, हमारा मुतीअ व फ़रमां बरदार रहे हालांकि उसे मामूली कीमत से खरीदा गया है, इस की एक गलती पर इसे दुश्मन समझ लेते हैं, बे इन्तिहा गुस्सा करते हैं, इस का खाना बन्द कर देते हैं, इसे आंखों से दूर कर देते हैं या फिर इसे बेच देते हैं, लेकिन हम उस मालिके हक़ीकी की इताअत नहीं करते जिस ने हमें बेहतरीन सूरत में पैदा किया है, हम बारिश के कतरों के बराबर गुनाह करते हैं मगर वो अपनी ने’मतें हम से नहीं रोकता, अपनी रहमत की नुसरत (मदद) नहीं रोकता जिस के बिगैर हमारे लिये एक कदम चलना भी मुश्किल हो जाए, अगर वो चाहे तो हमें एक गुनाह के बदले पकड़ने पर कादिर है मगर वो हमें मोहलत देता है ताकि हम तौबा करें और वह तौबा क़बूल फ़रमा कर हमारे गुनाहों को बख़्श दे और हमारे उयूब (एबों को) ढांप ले।
हर अक्लमन्द ब खूबी जानता है कि इताअत व फ़रमां बरदारी के लाइक कौन है ! वो उसी ज़ात की तरफ़ मुतवज्जेह होता है, उसी के दामने रहमत में पनाह ढूंडता है, जब उस से कोई गुनाह सरज़द होता है तो वो अपने ख़ालिक़ की तरफ़ रुजूअ करता है, उस की रहमत से ना उम्मीद नहीं होता और उस के इन्आमात का शुक्र अदा करता रहता है यहां तक कि वो अल्लाह तआला के दोस्तों में शुमार होने लगता है, जब उसे मौत आती है तो वो दीदारे इलाही का मुश्ताक और रब्बे बे नियाज़ उस से मुलाकात का ख्वाहिशमन्द होता है।
हज़रते अबुदरदा रज़ीअल्लाहो अन्हो ने हज़रते का’ब रज़ीअल्लाहो अन्हो से कहा : मुझे तौरात की एक ख़ास आयत सुनाओ ! उन्हों ने जवाब में यह आयत सुनाई, रब फ़रमाता है : नेकों को मेरे दीदार का शौक है और मैं उन की मुलाकात का उन से भी ज़ियादा ख्वाहिशमन्द हूं हज़रते का’ब ने कहा : इस आयत के हाशिये में लिखा हुवा था : जिस ने मुझे तलाश किया, पा लिया और जिस ने किसी और को ढूंडा वह मेरे दीदार से महरूम रहा । हज़रते अबुदरदा फ़रमाने लगे : ब खुदा मैं ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से भी ऐसे ही सुना है।
दुनिया वालों को हजरते दावूद अलैहहिस्सलाम की जबानी पैगामे इलाही
हज़रते दावूद अलैहहिस्सलाम की तरफ़ अल्लाह तआला ने वहयी फ़रमाई : ऐ दावूद ! मेरा येह पैगाम दुनिया वालों तक पहुंचा दो, मैं उस का दोस्त हूं जो मुझे दोस्त रखता है, अपनी मजलिस में आने वालों का हम मजलिस हूं, जो मेरे ज़िक्र से उल्फ़त रखता है मैं उस से उल्फ़त रखता हूं, जो मुझ से दोस्ती रखता है मैं उस से दोस्ती रखता हूं, जो मुझे पसन्द करता है मैं उसे पसन्द करता हूं, जो मेरा फ़रमां बरदार बन जाता है मैं उस का कहना कबूल करता हूं, जो शख्स भी दिल की गहराइयों से मुझे महबूब जानता है मैं उसे अपने लिये पसन्द करता हूं और उस से बे मिसाल महब्बत करता हूं, जिस ने हकीकतन मुझे तलब किया, उस ने मुझे पा लिया और जिस ने मेरे गैर को तलब किया वो मुझ से महरूम रहा, पस ऐ दुनिया वालो ! तुम कब तक दुनिया के धोके में रहोगे ? मेरी करामत, दोस्ती और मजलिस की तरफ़ आओ ! और मुझ से उन्स रखो, मैं तुझे अपनी महब्बत से माला माल कर दूंगा क्यूंकि मैं ने अपने दोस्तों का खमीर इब्राहीम खलीलुल्लाह, मूसा नजियुल्लाह और मोहम्मद सफ़ियुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के खमीर से बनाया है, उन की रूहें अपने नूर से और उन की ने’मतें अपने जमाल से पैदा की हैं।
एक सिद्दीक पर इल्हाम का नुजूल और सिद्दीक़ीन की सिफ़ात
एक मर्दे सालेह से मरवी है कि रब्बुल इज्जत ने एक सिद्दीक़ पर इल्हाम फ़रमाया कि मेरे बन्दों में कुछ ऐसे बन्दे भी हैं जो मुझे महबूब रखते हैं, मैं उन्हें महबूब रखता हूं, वो मेरे मुश्ताके दीदार हैं, मैं उन का मुश्ताके दीदार हूं, वो मुझे याद करते हैं, मैं उन्हें याद फ़रमाता हूं, वो मेरी तरफ़ देखते हैं और मैं उन पर निगाहे रहमत डालता हूं, अगर तू उन के रास्ते पर चलेगा तो मैं तुझे महबूब बनाऊंगा और अगर तू ने उन का रास्ता न अपनाया तो मैं तुझ से दुश्मनी रखूगा । उस सिद्दीक़ ने पूछा : या अल्लाह ! उन की अलामतें क्या हैं ? तो रब्बे जुल जलाल ने फ़रमाया : “वो दिन ढलने का ऐसा ख़याल रखते हैं जैसे मेहरबान चरवाहा अपनी बकरियों का ख़याल रखता है वो गुरूबे शम्स के ऐसे मुश्ताक होते हैं जैसे सूरज डूबने के बाद परिन्दा अपने आश्याने में पहुंचने का मुश्ताक होता है।”
जब रात भीग जाती है, तारीकी बढ़ जाती है, बिस्तर बिछा दिये जाते हैं, लोग उठ जाते हैं और दोस्त दोस्तों के साथ खुश गप्पियां करते हैं तो वो मेरे लिये खड़े हो जाते हैं, मेरे लिये चेहरों का फ़र्श बिछा देते हैं (सजदे करते हैं) मेरे कलाम में मुझ से हम कलाम होते हैं, मेरे इन्आमात की आरजू करते हैं, उन की सारी रात गिर्या व जारी करते, रहमत की उम्मीद रखते और खौफे अज़ाब से डरते हुवे, क़ियाम व कुऊद, रुकूअ व सुजूद में गुज़र जाती है, मुझे अपनी नज़रे रहमत की क़सम ! वो मेरी वज्ह से गुनाह का बोझ नहीं उठाते और मुझे अपनी समाअत की कसम ! वो मेरी महब्बत का शिक्वा नहीं करते, मैं पहले पहल उन्हें तीन चीजें अता करता हूं : उन के दिलों में अपना नूर डाल देता हूं जिस से वोह मेरी खबर पा लेते हैं जैसे मैं उन की खबर पाता हूं। दूसरे यह कि अगर ज़मीनो आस्मान अपनी तमाम तर अश्या के साथ उन के मीज़ाने अमल में रख दिये जाएं तब भी उन के पल्ले हल्के होंगे और मैं उन की नेकियां भारी कर दूंगा। तीसरे यह कि मैं अपनी रहमत को उस की तरफ़ मुतवज्जेह कर देता हूं और वो इस बात को जान लेता है कि वो जो कुछ मांगेगा मैं उसे दे दूंगा।
मुश्ताकाने खुदावन्दी की सिफत – अल्लाह के महबूब मुश्ताक बन्दे
अल्लाह तआला ने हज़रते दावूद अलैहहिस्सलाम की तरफ़ वहयी की, कि ऐ दावूद ! तुम जन्नत का तजकिरा करते हो मगर मुझ से मेरे मुश्ताकों में शुमूलिय्यत की दुआ क्यूं नहीं करते ? आप ने अर्ज की : या अल्लाह ! तेरे मुश्ताक कौन हैं ? रब्बे जुल जलाल ने फ़रमाया : मेरे मुश्ताक वो
हैं जिन के दिलों को मैं ने हर कदूरत से पाक कर दिया है, उन्हें मनहिय्यात से मुतनब्बेह कर दिया है, वो अपने दिल के गोशों से मुझे देखते हैं और मेरी रहमत के उम्मीद वार रहते हैं, मैं उन के दिलों को दस्ते रहमत में ले कर आस्मानों पर रखता हूं और अपने मुकर्रब फ़रिश्तों को बुलाता हूं, फ़रिश्ते इकट्ठे हो कर मुझे सजदा करते हैं और मैं फ़रमाता हूं : मैं ने सजदा करने के लिये तुम्हें नहीं बुलाया बल्कि तुम्हें अपने मुश्ताक हाए दीदार के दिल दिखाने के लिये बुलाया है, यह अहले शौक़ काबिले फ़न हैं, इन के दिल आस्मान पर ऐसे चमकते हैं जैसे ज़मीन पर सूरज चमकता है।
ऐ दावूद ! मैं ने मुश्ताकों के दिल अपनी रज़ा से, उन का ऐश अपने नूर से पैदा किया है, मैं ने उन्हें अपना हम राज़ बनाया हैं, उन के वुजूद दुनिया में मेरी निगाहे रहमत का मरजअ हैं और मैं ने उन के दिलों में एक रास्ता बनाया है जिस से वो मेरा दीदार करते हैं और उन का शौक़ फुजूं से फुजूं तर होता रहता है।
हज़रते दावूद अलैहहिस्सलाम ने अर्ज की : या अल्लाह ! मुझे अपने किसी मुश्ताक का दीदार करा दे, रब तआला ने फ़रमाया : दावूद लुबनान के पहाड़ पर जाओ, वहां मेरे चौदह मुहिब्ब रहते हैं जिन में जवान और बूढ़े सभी शामिल हैं उन्हें मेरा सलाम कहो और कहना अल्लाह तआला फ़रमाता है : तुम मेरे दोस्त और महबूब हो वो तुम्हारी खुशी में खुश होता है और तुम्हें बहुत महबूब रखता है और फ़रमाता है : तुम मुझ से कोई हाजत क्यूं नहीं बयान करते ? हज़रते दावूद अलैहहिस्सलाम उन से मुलाकात के लिये रवाना हुवे और उन्हें एक चश्मे के करीब पाया वो अल्लाह तआला की अजमतो जलाल पर गौरो फ़िक्र कर रहे थे।
जब उन्हों ने हज़रते दावूद अलैहहिस्सलाम को देखा तो वो इधर उधर छुप जाने के लिये उठ खड़े हुवे, हज़रते दावूद अलैहहिस्सलाम ने फ़रमाया : मैं अल्लाह का रसूल हूं और तुम्हारे पास अल्लाह का पैग़ाम पहुंचाने आया हूं तो वो नज़रें झुकाए सरापा इश्तियाक बने उस का फरमान सुनने के लिये वापस आ गए, हज़रते दावूद ने फ़रमाया : मैं तुम्हारी तरफ़ अल्लाह का रसूल बन कर आया हूं, अल्लाह तआला तुम्हें सलाम कहता है और फ़रमाता है : तुम मुझ से हाजत क्यूं नहीं तलब करते मुझे अपनी ज़रूरतों के लिये क्यूं नहीं पुकारते ताकि मैं तुम्हारा कलाम सुनूं तुम मेरे दोस्त और महबूब हो, मैं तुम्हारी खुशी से खुश होता हूं, तुम्हारी महब्बत को बेहतर समझता हूं और मैं हर वक्त मेहरबान, शफ़ीक़ मां की निगाह से तुम को देखता हूं।
जब उन्हों ने ये सुना तो उन के रुख्सारों पर आंसू बहने लगे, उन का शैख पुकार उठा : ऐ रब ! तू पाक है, तू पाक है, हम तेरे गुलाम और गुलामों की औलाद हैं, हमारी गुज़श्ता उम्रों के वो लम्हात जो तेरे ज़िक्र से गफलत में गुज़रे उन्हें मुआफ़ फ़रमा दे। दूसरा बोला : तू पाक है, तू पाक है, हम तेरे गुलाम और गुलामों के बेटे हैं जो मुआमलात हमारे और तेरे दरमियान हैं, हमें उन में हुस्ने नज़र अता फरमा। तीसरे ने कहा : ऐ अल्लाह ! तू पाक है ऐ अल्लाह ! तू पाक है हम तेरे गुलाम और तेरे गुलामों की औलाद हैं, ऐ रब ! तू ने हमें दुआ की तरगीब दी है और तुझे मालूम है कि हमें अपने लिये किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है, हम पर मुकम्मल एहसान फ़रमा और अपने रास्ते पर हमेशा गामजन रख।
एक और मुहिब्ब यूं कहने लगा : इलाही ! हम तेरी रजामन्दी को पूरी तरह नहीं पा सकते, हमारी इमदाद फ़रमा ताकि हम इसे पा लें। एक और मुहिब्ब ने कहा : तू ने हमें नुत्फे से पैदा किया और अपनी ज़ात में तफ़क्कुर की दौलत बख़्शी है ऐ अल्लाह ! तू ने हमें कलाम की तरगीब दी है, जो तेरी शाने अज़मत के फ़म में मश्गूल हैं और तेरे जलाल में गौरो फ़िक्र करते हैं और हम तुझ से तेरे नूर के कुर्ब की दरख्वास्त करते हैं। एक और मुहिब्ब पुकार उठा कि तेरी अज़मते शान, दोस्तों से इन्तिहाई कुर्ब और मुहिब्बीन पर बे शुमार इन्आमात की वज्ह से हमारी ज़बानें दुआ मांगने से रुक गई हैं। एक और बोला : तू ने हमारे दिलों को अपने ज़िक्र की तौफ़ीक़ बख़्शी, अपनी रहमत में मश्गूल फ़रमा कर सारी दुनिया से बे नियाज़ कर दिया, कमा हक्कुहु शुक्र अदा न कर सकने की हमारी तक्सीर को मुआफ़ फ़रमा दे।
एक और ने कहा : ऐ अल्लाह ! तू जानता है कि हमारी तमन्ना तेरे दीदार के सिवा और कुछ भी नहीं है। एक और ने कहा : मालिक गुलाम से मांगने को फ़रमाता है मगर गुलाम अपने लिये मांगने की जुरअत नहीं कर सकता, हमें नूर इनायत फ़रमा ताकि हम आस्मान की तारीकियों से निकल कर तेरी बारगाह में आएं।।
एक ने कहा : हम यह दुआ मांगते हैं कि हमारी यह इबादत कबूल फ़रमा ले और हमें हमेशा इसी पर काइम रख, एक और मुहिब्ब ने कहा : तू ने हमें जो फजीलत और इन्आमात बख़्शे हैं उन्हें मुकम्मल फ़रमा दे। दूसरे ने कहा : दुनिया में हमें किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है, हमें अपना जमाले जहां आरा दिखा दे।
एक और मुहिब्ब ने कहा : मेरी आंखें दुनिया और इस की जैबो जीनत से कोर कर दे और | मेरे दिल को आखिरत के ख़यालात से पाक फ़रमा दे।
एक और मुहिब्ब ने कहा : मैं ने तेरी रिफ्अत और पाकी को जान लिया और दोस्तों से तुझ को जो महब्बत है उस को पहचान लिया है, हम पर यह एहसान और फ़रमा कि हम को ऐसा कर दे कि हम तेरे सिवा किसी और चीज़ का दिल में ख़याल तक न लाएं।
फिर अल्लाह तआला ने हज़रते दावूद अलैहहिस्सलाम की तरफ़ वहयी फ़रमाई कि ऐ दावूद ! इन से कह दो, मैं ने तुम्हारी बातें सुन कर उन्हें कबूल कर लिया है, तुम एक दूसरे से अलग अलग हो जाओ और खुद को दीदार के लिये आमादा कर लो मैं तुम्हारे और अपने दरमियान हाइल पर्दे उठाने वाला हूं ताकि तुम मेरे नूर और जलाल को देखो।
हज़रते दावूद अलैहहिस्सलाम ने अर्ज किया : या अल्लाह ! इन्हें यह मकाम कैसे मिला है ? रब ने फ़रमाया : हुस्ने जन, दुनिया और इस के लवाजिमात से किनारा कशी, मेरे हुजूर मुनाजात और तन्हाई में हाज़िर होने की वज्ह से इन्हें यह मकाम मिला है और इस मक़ाम को वो ही पाता है जो दुनिया और माफ़ीहा को छोड़ दे, इस से बिल्कुल तअल्लुक न रखे, दिल को मेरी याद से मा’मूर कर ले, तमाम मख्लूक को छोड़ कर मुझे पसन्द कर ले तब मैं उस पर रहमत नाज़िल करता हूं उसे दुनियावी अलाइक से आज़ाद कर देता हूं, उस के और अपने दरमियान हिजाबात उठा देता हूं, वो ह मुझे ऐसे देखता है जैसे कोई इन्सान अपने सामने किसी चीज़ को देखता है, हर लम्हा उसे अपनी इज्जतो करामत का नजारा दिखाता हूं, उसे नूरे मा’रिफ़त से सरफ़राज़ करता हूं, जब वो ह बीमार हो जाता है तो मैं मेहरबान मां की तरह उस की तीमार दारी करता हूं, अगर वो ह प्यासा होता है तो मैं उसे सैराब करता हूं और उसे अपने ज़िक्र से गिज़ा फ़राहम करता हूं।
ऐ दावूद ! जब मैं उस से यह सुलूक करता हूं तो वो दुनिया और इस के अलाइक से नाबीना हो जाता है, उसे दुनिया से कोई महब्बत नहीं रहती, वो मेरे सिवा किसी की तरफ़ तवज्जोह नहीं देता, वो जल्दी मरने को पसन्द करता है मगर मैं उस की मौत ना पसन्द करता हूं क्यूंकि सारी मख्लूक में वो ही तो मेरी नज़रे रहमत का मूरीद व मरजअ होता है, वो ह मेरे सिवा किसी को नहीं देखता और मैं उस के सिवा किसी और को पसन्द नहीं करता।
ऐ दावूद ! अगर तू उसे इस हालत में देखे कि उस का जिस्म पुर ऐब हो, दुबला हो, उस के आ’जा टूट चुके हों और उस का दिल निज़ाम से बे रब्त हो चुका हो तो जब मैं फ़रिश्तों में उस पर फ़न करता हूं और आस्मान वालों में उस का तजकिरा करता हूं तो वो यह सुन कर अपनी इबादत और ख़ौफ़ को ज़ियादा कर देता है।
ऐ दावूद ! मुझे अपनी इज्जतो जलाल की क़सम ! मैं उसे जन्नतुल फ़िरदौस में जगह दूंगा और उस के दिल को अपने दीदार से मा’मूर कर दूंगा यहां तक कि वो ह राज़ी हो जाएगा।
मुश्ताकाने खुदावन्दी नुक्सान से मामून हैं।
अल्लाह तआला ने हज़रते दावूद अलैहहिस्सलाम से फ़रमाया कि मेरी महब्बत के मुश्ताक़ बन्दों से कह दीजिये : तुम्हें उस वक़्त कोई महरूमी नहीं होगी जब कि मैं मख्लूक के सामने हिजाबात डाल दूं तो तुम बे पर्दा दिल की आंखों से मेरा दीदार करते रहोगे और तुम्हें कोई ज़रर नहीं होगा जब कि मैं ने दुनिया के बदले तुम्हें दीन दे दिया और तुम्हें मेरी रिज़ा की ख्वास्तगारी के बाइस दुनिया पर मेरी नाराज़ी कोई नुक्सान नहीं देगी।
अल्लाह और दुनिया की महब्बत दिल में यक्जा नहीं हो सकतीं।
हज़रते दावूद अलैहहिस्सलाम की खबरों में यह भी मरकूम था कि अल्लाह तआला ने हज़रते दावूद अलैहहिस्सलाम की तरफ़ वहयी की, कि अगर तुम मेरी महब्बत का दावा करते हो तो दिल से दुनिया की महब्बत निकाल दो क्यूंकि मेरी और दुनिया की महब्बत एक दिल में नहीं समा सकतीं।
ऐ दावूद ! दुनिया से मेल जोल रखो मगर महब्बत ख़ालिसतन मुझ से ही रखो, तुम मेरे दीन की पैरवी करो, लोगों के अदयान की पैरवी न करो, जो चीज़ तुम को मेरी महब्बत के शायां नज़र आए उसे हासिल करो, जिस चीज़ में तुम्हें मुश्किल पेश आए तो उस में मेरी पैरवी करो, मैं तुम्हारे अहवालो हवाइज की इस्लाह कर दूंगा, तुम्हारा काइदो रहबर बनूंगा सवाल से पहले अता करूंगा, मसाइब में तुम्हारी मदद करूंगा, मैं ने अपनी ज़ात की क़सम खाई है कि मैं अपने उस बन्दे को बदला दूंगा जो तलबे सादिक़ और पुख्ता इरादों के साथ मेरे हुजूर गर्दन झुका के आता है और वोह यह समझता है कि मुझ से बे नियाज़ी व बे ए’तिनाई मुमकिन नहीं है, जब तू इस मकाम पर पहुंच जाएगा तो मैं तुम से रुस्वाई और वहशत को दूर कर दूंगा, तुम्हारे दिल में लोगों से बे नियाज़ी डाल दूंगा क्यूंकि मैं ने अपनी ज़ात की कसम खाई है कि जब कोई बन्दा दुनिया से तअल्लुक तोड़ कर मेरी ज़ात पर भरोसा करते हुवे मुतमइन हो जाता है तो मैं उसे दुनिया से माला माल कर देता हूं, आ’माल में तज़ाद पैदा न करो, लोगों से बे परवाह हो जाओ, तुम को तुम्हारा साथी कोई फ़ाइदा नहीं देगा अपना ध्यान मुझ तक महदूद रखो, मेरी मा’रिफ़त की कोई हद नहीं है इसे महदूद न समझो, मुझ से जितना ज़ियादा तलब करोगे उतना अता करूंगा, मेरे देने की कोई हद नहीं है और बनी इस्राईल को बताओ कि मेरे और मेरी किसी मख्लूक के दरमियान रिश्तेदारी नहीं है, मेरे बारे में उन के अज़ाइम को और उन की रगबत को बढ़ाओ, उन्हें उस जन्नत का मुज़दा सुनाओ जिसे किसी आंख ने नहीं देखा किसी कान ने नहीं सुना और किसी दिल पर उस का तसव्वुर नहीं गुज़रा, मुझे हर वक़्त आंखों के सामने समझो ! मुझे सर की आंख से नहीं, दिल की आंख से देखो।
मैं ने अपनी इज्जत और जलाल की कसम खाई है कि जो बन्दा जान बूझ कर ताख़ीर से मेरी इबादत करेगा, मैं उसे सवाब नहीं दूंगा, सीखने वालों से तवाज़ोअ से पेश आओ ! और मुरीदीन पर ज़ियादती न करो ! मेरे मुहिब्ब अगर उस मक़ाम को जानते जो मैं ने मुरीदीन के लिये मुकर्रर किया है तो वोह भी उसी रास्ते पर चलना पसन्द करते।
ऐ दावूद ! किसी मुरीद को उस की सरमस्ती से होशयार न करो, उसे मेरी ज़ात में मगन रहने दो मैं तुम को जहीद (बे इन्तिहा कोशिश करने वाला) लिखूगा, और जिसे मैं अपने यहां जहीद लिख देता हूं उस पर मख्लूकात से कोई खौफ़ और मोहताजी बाक़ी नहीं रहती।
ऐ दावूद ! मेरा कलाम खूब समझो और इसे मज़बूती से पकड़ लो, अपनी ज़ात के लिये अपने नफ्स से नेकियां लो, दुनिया में मश्गूल न हो ताकि मुझ से तुम्हारी महब्बत पसे पर्दा न चली जाए, मेरे बन्दों को मेरी रहमत से ना उम्मीद न करो, मेरे लिये अपनी ख्वाहिशात को ख़त्म कर दो क्यूंकि मैं ने शहवात कमजोर बन्दों के लिये बनाई हैं, कवी मर्दो को ख्वाहिशाते नफ़्सानी से क्या काम ? क्यूंकि यह मेरी बारगाह में मुनाजात की शीरीनी को ख़त्म कर देती हैं, मेरे यहां ताकतवरों का अज़ाब यह है कि जब वो मेरे दीदार की लज्जत पा लेने के करीब होते हैं, मैं उन की अक्लों पर पर्दा डाल देता हूं और वो महरूम रहते हैं, मैं अपने दोस्त के लिये दुनिया और दुनिया की वज्ह से अपनी दूरी पसन्द नहीं करता।
ऐ दावूद ! मेरे और अपने दरमियान मख्लूक को न लाओ कहीं इस की सर मस्ती तुम को मेरी महब्बत से दूर न कर दे क्यूंकि ये मखलूक मेरे इरादत मन्द बन्दों के लिये चोरों की तरह है, हमेशा रोजे रखो शहवात को तर्क कर सकोगे, खुद को बे रोज़ा होने से बचाओ क्यूंकि मुझे हमेशा रोज़े रखने वाले बहुत पसन्द हैं।
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
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