एस्ट्रोनॉट्स के बारे में सम्पूर्ण जानकारी
जब कोई इंसान अंतरिक्ष में जाता है तो उसे अंतरिक्ष यात्री कहा जाता है अंतरिक्ष यात्री का ही नाम एस्ट्रोनॉट या कॉस्मोनॉट रखा गया है एस्ट्रोनॉट एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसे अंतरिक्ष यान चलाने अंतरिक्ष यान का कमांडर बनने और अंतरिक्ष यान में विभिन्न काम करने की पूरी ट्रेनिंग दी जाती है.
सन 2002 तक केवल देश की सरकारें ही अंतरिक्ष में अपने ट्रेंड एस्ट्रोनॉट्स को भेजती थी लेकिन अब प्राइवेट कंपनियां भी अपने अंतरिक्ष यान बना रही हैं और अंतरिक्ष में भेज रही हैं ऐसा ही एक पहला प्राइवेट अंतरिक्ष यान स्पेसशिप वन था जो कि 2004 में अंतरिक्ष में भेजा गया था.
विश्व का पहला एस्ट्रोनॉट कौन था जो अंतरिक्ष में गया था ?
विश्व का पहला एस्ट्रोनॉट सोवियत रूस यूरी गागरिन थे जो कि अप्रैल 12 1961 में वोस्तोक 1 नाम के अंतरिक्ष यान में बैठकर अंतरिक्ष में गए थे यूरी गगारिन ने कुल 108 मिनट अंतरिक्ष में गुजारे थे. यह कारनामा करने पर यूरी गागरिन पूरे विश्व में हीरो बन गए थे उन्हें कई मेडल्स और अवॉर्ड दिए गए इनमें सोवियत रूस का सबसे उच्च पुरस्कार हीरो अतः सोवियत यूनियन भी शामिल है
अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला का नाम?
अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला भी सोवियत रूस से ही थी उनका नाम वेलेंटीना टैरेशकोवा था वेलेंटीना 16 जून 1963 को वोस्तोक 6 मैं बैठकर अंतरिक्ष में गई थी और आश्चर्यजनक रूप से 3 दिन तक उन्होंने अंतरिक्ष में बिताए थे.
अंतरिक्ष में जाने वाले पहले अमेरिकी एस्ट्रोनॉट
एलेन शेफर्ड नाम के एस्ट्रोनॉट अमेरिका के पहले अंतरिक्ष यात्री थे वे 5 मई 1961 अंतरिक्ष में गए थे पहली अमेरिकन एस्ट्रोनॉट महिला सेली राइड थी जोकि जून 18 1983 को चैलेंज नाम के अंतरिक्ष यान के द्वारा अंतरिक्ष में गई थी.
कितने भारतीय एस्ट्रोनॉट्स अंतरिक्ष में गए हैं
भारत के अब तक कुल 3 एस्ट्रोनॉट अंतरिक्ष में गए हैं इनमें राकेश शर्मा, कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स शामिल है. कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स अमेरिका की तरफ से अंतरिक्ष में गए थे क्योंकि भारतीय मूल के हैं इसलिए इन्हें भारतीय एस्ट्रोनॉट में शामिल कर लिया जाता है.
भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा थे उनका जन्म 13 जनवरी 1949 को पटियाला में हुआ था सन 1970 में उन्होंने एयरफोर्स जॉइन की 1982 में उनका चयन कॉस्मोनॉट के रूप में किया. सोवियत रूस और भारत संयुक्त अभियान में राकेश शर्मा अंतरिक्ष में गए अंतरिक्ष से लौटने के बाद उन्हें हीरो ऑफ सोवियत यूनियन मेडल दिया गया भारत की सरकार ने उन्हें अशोक चक्र से नवाजा.
भारत की पहली महिला एस्ट्रोनॉट कौन थी.
कल्पना चावला भारत की पहली महिला एस्ट्रोनॉट थी उनका जन्म सन 1962 में करनाल में हुआ था, बचपन से ही उनका संकल्प एस्ट्रोनॉट बनने का था इसके लिए उन्होंने कई कोर्स की है और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की. उनका पहला मिशन सन 1997 में स्पेस शटल कोलंबिया मैं स्पेस मिशन स्पेशलिस्ट के रूप में था सन 2003 में अंतरिक्ष से वापस आते समय चैलेंजर यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, और उसमें सवार सभी अंतरिक्ष यात्री मारे गए.
कितने एस्ट्रोनॉट अंतरिक्ष यात्रा के दौरान मारे गए हैं?
दुख का विषय है कि अब तक 18 एस्ट्रोनॉट अंतरिक्ष यात्रा के दौरान मारे गए इनमें 14 पुरुष और 4 महिलाएं है इन चार महिलाओं में भारतीय मूल की एस्ट्रोनॉट कल्पना चावला भी शामिल है क्योंकि 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया नाम का अंतरिक्ष यान पुनः पृथ्वी तक आते हुए दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और इसमें सवार सभी सात अंतरिक्ष यात्री मारे गए थे.
चांद पर कितने एस्ट्रोनॉट गए हैं?
अब तक कुल 12 एस्ट्रोनॉट चांद की सतह पर उतर चुके हैं इनमें से छह अंतरिक्ष यात्रियों ने चांद पर रोवर भी चलाएं हैं चांद पर जाने के अपोलो मिशंस दिसंबर 1968 से लेकर दिसंबर 1972 तक चले इन अभियानों में कुल 12 अंतरिक्ष यात्री चांद की सतह पर उतरे.
अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट की लाइफ कैसी होती है?
अंतरिक्ष में रहना पृथ्वी पर रहने के समान नहीं है अंतरिक्ष में जाने पर बहुत सी चीजें बदल जाती है यहां तक कि हमारा शरीर भी बदल जाता है हमारे खाने पीने के और साफ रहने की तरीके भी बदल जाते हैं. पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से हमारे शरीर का भार हमारे निचले हिस्से और टांगों पर पड़ता है जिसकी वजह से हमारी हड्डियां मजबूत बनी रहती है लेकिन अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण नहीं होता इसलिए एस्ट्रोनॉट्स की हड्डियां, रीड की हड्डी कमजोर पड़ जाती है क्योंकि वह अपने पैरों की मांसपेशियों का इस्तेमाल नहीं करते हैं इसलिए यह मांसपेशीयां भी बहुत कमजोर पड़ जाती है इस समस्या से बचने के लिए एस्ट्रोनॉट को अंतरिक्ष में प्रतिदिन कुछ समय व्यायाम करना अति आवश्यक है.
अंतरिक्ष में जाने पर अंतरिक्ष यात्री के दिल और खून पर भी बहुत असर पड़ता है पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण की वजह से दिल को सारे शरीर में खून पहुंचाने के लिए अधिक काम करना पड़ता है जबकि अंतरिक्ष में खून अंतरिक्ष यात्री के चेहरे और मस्तिष्क में बहुत ज्यादा मात्रा में पहुंचता है, इसलिए मस्तिष्क यह समझता है कि शरीर में पानी और खून की अधिक मात्रा हो गई है जिसे वह कम करने का प्रयास करता है लेकिन जब अंतरिक्ष यात्री वापस जमीन पर लौटते हैं तो उन्हें खून और पानी की बहुत कमी हो जाती है और उन्हें काफी आराम करना पड़ता है, अगर वह आराम ना करें तो बेहोश होकर गिर भी सकते हैं.
अंतरिक्ष यात्री को अंतरिक्ष में दैनिक कार्यों में भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है जैसे की टूथ ब्रश करना, मल-मूत्र त्याग करना इत्यादि अंतरिक्ष यात्री अलग तरह के साबुन और शैंपू से नहाते हैं जिन्हें उपयोग करने के लिए पानी की आवश्यकता नहीं होती.
अंतरिक्ष यात्री को अंतरिक्ष में रहने के लिए बहुत छोटी जगह मिलती है क्योंकि स्पेस शटल छोटा होता है
एस्ट्रोनॉट अंतरिक्ष में क्या खाते हैं?
अंतरिक्ष यात्री को खाने के लिए स्पेशल पैकेट स्पेस फूड दिया जाता है यह स्पेस फूड छोटे छोटे पैकेट में पैक खास तरह का खाना होता है जिसमें सभी पोषक तत्व पाए जाते हैं. अंतरिक्ष स्टेशन पर कार्य करने वाले एस्ट्रोनॉट को 0.83 किलो फूड प्रतिदिन दिया जाता है. अंतरिक्ष यात्री के खाने पर एक न्यूट्रीशन द्वारा नजर रखी जाती है तथा उसमें पर्याप्त पोषक तत्व हो इस बात का ध्यान रखा जाता है.
पृथ्वी पर एक सामान्य व्यक्ति 132 लीटर पानी प्रतिदिन यूज करता है परंतु इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर एस्ट्रोनॉट को केवल 11 लीटर पानी प्रतिदिन दिया जाता है उसे इतने में ही काम चलाना पड़ता है.
अंतरिक्ष यात्रियों को आकाश का रंग काला क्यों दिखाई देता है?
एस्ट्रोनॉट्स कॉम अंतरिक्ष में आकाश का रंग नीला नहीं बल्कि काला दिखाई देता है क्योंकि वहां पर वायुमंडल नहीं है आकाश का रंग नीला वायुमंडल में पाए जाने वाले धूल के कणों और भाइयों के अणुओं की वजह से होता है यह कौन प्रकाश का प्रकीर्णन कर देते हैं यानी कि बिखेर देते हैं जिससे आकाश का रंग नीला दिखाई देने लगता है परन्तु अंतरिक्ष में वायु ना हो पाने के कारण प्रकाश बिखरता नहीं है इसलिए अंतरिक्ष में और चांद पर दिन में भी आकाश का रंग काला दिखाई देता है
चंद्रमा पर अंतरिक्ष यात्री आपस में बात क्यों नहीं कर पाते?
चंद्रमा की सतह पर जाने पर दो अंतरिक्ष यात्री एस्ट्रोनॉट आपस में बात नहीं कर पाते हैं क्योंकि एक तो इसका कारण है कि चंद्रमा पर वायुमंडल नहीं है और ध्वनि तरंगों को गमन करने के लिए वायु की आवश्यकता होती है.