Bharosa Shayari– भरोसा शायरी – Hate Shayari
Bharosa shayari :- Here you can get the best collection of Hindi Shayari on Bharosa (Trust shayari), You can use it as your hindi whatsapp status or can send this Bharosa Shayari to your facebook friends. These Hindi sher on Bharosa is excellent in expressing your emotions and anger. For other subject list of all Hindi Shayari is here Hindi Shayari .
Bharosa shayari :- दोस्तों जीवन में भरोसा यानि यकीन बहुत ज़रूरी होता है, जीवन में कई लोग आप पर भरोसा करतें हैं और आप भी अपने साथियों पर भरोसा करते हैं …परसपर यह विश्वास और भरोसा ही हर रिश्ते को बनता है ……आइये जानते हैं के प्रख्यात शायरों ने भरोसा पर शायरी में क्या कहा है …..
भरोसा पर हिंदी शायरी का सबसे अच्छा संग्रह यहाँ उपलब्ध है, आप इस भरोसा शायरी को अपने वाहट्सएप्प स्टेटस के रूप में उपयोग कर सकतें है या आप इस बेहतरीन भरोसा शायरी को अपने दोस्तों को फेसबुक पर भी भेज सकतें हैं। भरोसा पर हिंदी के यह शेर, आपकी भावनाओं को व्यक्त करने में आपकी मदद कर सकतें हैं। भरोसा पर शायरी का यहाँ सबसे अच्छा कलेक्शन है. अगर कोई आपसे भरोसा करता है तो आप मशहूर शायरों के भरोसा शायरी पर यह शेर उसे भेज सकते हैं या भरोसा शायरी अपने स्टेटस में लिख सकते हैं.
भरोसा = यकीन = ट्रस्ट
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वो मुझ को भूल चुका अब यक़ीन है वर्ना
वफ़ा नहीं तो जफ़ाओं का सिलसिला रखता
~इफ़्फ़त ज़र्रीं
वाए ख़ुश-फ़हमी कि पर्वाज़-ए-यक़ीं से भी गए
आसमाँ छूने की ख़्वाहिश में ज़मीं से भी गए
~ज़फ़र कलीम
यूँ मुलाक़ात का ये दौर बनाए रखिए
मौत कब साथ निभा जाए भरोसा क्या है
चाहिए ख़ुद पे यक़ीन-ए-कामिल
हौसला किस का बढ़ाता है कोई
~शकील बदायुनी
न कोई वादा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
मगर हमें तो तेरा इंतिज़ार करना था
~फ़िराक़ गोरखपुरी
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Bharosa Status Pictures – Bharosa dp Pictures – Bharosa Shayari Pictures
दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था
ताले की ईजाद से पहले सिर्फ़ भरोसा होता था
जब तक माथा चूम के रुख़्सत करने वाली ज़िंदा थी
दरवाज़े के बाहर तक भी मुँह में लुक़्मा होता था
~अज़हर फ़राग़
अजब ये दौर आया है कि जिस में
ग़लत कुछ भी नहीं सब कुछ सही है
मुकम्मल ख़ुद को जो भी मानता है
यक़ीं माने बहुत उस में कमी है
~नीरज गोस्वामी
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
कमाल ये है कि, फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं
~दुष्यंत कुमार
उसे गुमाँ है कि मेरी उड़ान कुछ कम है
मुझे यक़ीं है कि ये आसमान कुछ कम है
~नफ़स अम्बालवी
यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है
~मंज़ूर_हाशमी
कोई भी नहीं जिस पे भरोसा कीजे
याँ लोग बदल जाते हैं मौसम की तरह
Bharosa shayari भरोसा शायरी
उसी का शहर, वही मुद्दई, वही मुंसिफ़
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा
~अमीर क़ज़लबाश
उम्र जितनी भी कटी उस के भरोसे पे कटी
और अब सोचता हूँ उस का भरोसा क्या था
~शहज़ाद अहमद
सवाल ही नहीं दुनिया से मेरे जाने का
मुझे यक़ीन है जब तक किसी के आने का
~अनवर शऊर
आदमी बुलबुला है पानी का
क्या भरोसा है ज़िंदगानी का
मेरी ज़बाँ से मेरी दास्ताँ सुनो तो सही
यक़ीं करो न करो मेहरबाँ सुनो तो सही
~सुदर्शन फ़ाकिर ~Goodmorning
यक़ीं न आए तो इक बात पूछ कर देखो
जो हँस रहा है, वो ज़ख़्मों से चूर निकलेगा
~अमीर क़ज़लबाश
मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर
तेरा क्या भरोसा है चारागर,
ये तेरी नवाज़िश-ए-मुख़्तसर
मेरा दर्द और बढ़ा न दे,
~ShakeelBadayuni
सो देख कर तिरे रुख़्सार ओ लब यक़ीं आया
कि फूल खिलते हैं गुलज़ार के अलावा भी
~Faraz
दिल को तेरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
~अहमद फ़राज़
वो शख़्स बड़ा है तो ग़लत हो नहीं सकता
दुनिया को भरोसा ये अभी तो नहीं होगा
~आलोक_श्रीवास्तव
इरादे छूटने वाले ना अरमाँ टूटने वाले
मुझे तुझ पर यक़ीं हैं ऐ मेरा दिल लूटने वाले
तुझे मेरी मुहब्बत का न अब तक ऐतबार आया
न कोई वादा न कोई यक़ीं न कोई उम्मीद
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
~Firaq
हसीनो पर यक़ीं करना सरासर बेवकूफ़ी है,
अदा इन की है क़ाफ़िर तो फरेबी चाल है प्यारे !!
यक़ीन उसी के वादे पे लाना पड़ेगा
ये धोखा तो दानिस्ता खाना पड़ेगा
~मुनीर_भोपाली
ग़ुलामी में न काम आती हैं शमशीरें न तदबीरें,
जो हो ज़ौक़-ए-यक़ीं पैदा तो कट जाती हैं ज़ंजीरें !! -अल्लामा इक़बाल
इस हादसे को सुन के करेगा यक़ीं कोई
सूरज को एक झोंका हवा का बुझा गया
आदमी बुलबुला है पानी का
क्या भरोसा है ज़िंदगानी का
~रज़ा
Bharosa shayari भरोसा शायरी हिंदी में
जो होने वाला है अब उसकी फ़िक्र क्या कीजे
जो हो चुका है उसी पर यक़ीं नहीं आता
~ Shahryar
मैं उस के वादे का अब भी यक़ीन करता हूँ
हज़ार बार जिसे आज़मा लिया मैं ने
~मख़मूर_सईदी
उस पे आती है मोहब्बत ऐसे
झूठ पे जैसे यकीन आता है
मुश्किल का मेरी उनको मुश्किल से यक़ीन आया
समझे मेरी मुश्किल को लेकिन बड़ी मुश्किल से
नज़र जो कोई भी तुझ सा हसीं नहीं आता
किसी को क्या मुझे ख़ुद भी यक़ीं नहीं आता
सर में सौदा* भी नहीं, दिल में तमन्ना भी नहीं
लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत का भरोसा भी नहीं
यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है
अब ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं रहा
मरने लगे हैं लोग क़ज़ा के बग़ैर भी
~Munawwar Rana
मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है
वो इसी शहर की गलियों में कहीं रहता है
~अहमद_मुश्ताक़
उम्र जितनी भी कटी उस के भरोसे पे कटी
और अब सोचता हूँ उस का भरोसा क्या था
~शहज़ाद_अहमद
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा
~अमीर_क़ज़लबाश
यक़ीन किस पे करें किस को दोस्त ठहराएँ
हर आस्तीन में पोशीदा कोई ख़ंजर है
~हफ़ीज़_बनारसी
मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर तिरा क्या भरोसा है चारागर
ये तिरी नवाज़िश-ए-मुख़्तसर मेरा दर्द और बढ़ा न दे
~शकील_बदायुनी
न कर किसी पे भरोसा कि कश्तियाँ डूबें
ख़ुदा के होते हुए नाख़ुदा के होते हुए
~अहमद_फ़राज़
अच्छा यक़ीं नहीं है तो कश्ती डुबा के देख
इक तू ही नाख़ुदा नहीं ज़ालिम ख़ुदा भी है
~QatilShifai
यक़ीन चाँद पे सूरज में ए’तिबार भी रख
मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख
~NidaFazli
चाहिए ख़ुद पे यक़ीन-ए-कामिल
हौसला किसका बढ़ाता है कोई
यूँ न मुरझा कि मुझे ख़ुद पे भरोसा न रहे
पिछले मौसम में तिरे साथ खिला हूँ मैं भी
~मज़हर_इमाम
बुरी है आग पेट की,बुरे हैं दिल के दाग़ ये
न दब सकेंगे,एक दिन बनेंगे इन्क़लाब ये
तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर
~शैलेन्द्र
यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है
~ManzoorHashmi
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा
~AmeerQazalbash
क्यूँ इतना हमें अपनी मोहब्बत पे यक़ीं है
दुनिया तो मोहब्बत की परस्तार नहीं है
~आलम_ख़ुर्शीद
~BackToBachpan
मुझको यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं
यक़ीन चाँद पे, सूरज में एतिबार भी रख
मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख
~NidaFazli
उठा कर रोज़ ले जाता है मेरे ख़्वाब का मंज़र
वो मुझ से रोज़ कहता है भरोसा क्यूँ नहीं करते
~ख़ालिद_महमूद
तुम समुंदर की रिफ़ाक़त पे भरोसा न करो
तिश्नगी लब पे सजाए हुए मर जाओगे
कैफ़_अज़ीमाबादी
Bharosa shayari भरोसा शायरी
नहीं नहीं मैं बहुत ख़ुश रहा हूँ तेरे बग़ैर
यक़ीन कर कि ये हालत अभी अभी हुई है
~IrfanSattar
दिल को तेरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझसे बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
~AhmadFaraz
नक़ाब कहती है मैं पर्दा-ए-क़यामत हूँ
अगर यक़ीन न हो देख लो उठा के मुझे ~जलील_मानिकपुरी
न कोई वादा, न कोई यक़ीं. न कोई उम्मीद
मगर हमें तो तेरा इंतिज़ार करना था
~Firaq
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा ~AmeerQazalbash
मुंसिफ़ = judge
यक़ीन चाँद पे सूरज में ए’तिबार भी रख
मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख ~NidaaFazali
यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है ~manzoorhashmi
Bharosa Shayari – Trust Shayari roman
doston jevan mein bharosa yani yaken bahut zaroore hota hai, jevan mein kae log ap par bharosa karaten hain aur ap bhe apane sathiyon par bharosa karate hain …parasapar yah vishvas aur bharosa he har rishte ko banata hai ……aiye janate hain ke prakhyat shayaron ne bharosa par shayari mein kya kaha hai ..
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sabhi hindi shayari ki list yahan hain. Hindi Shayari
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vo mujh ko bhool chuka ab yaqin hai varna
vafa nahin to jafaon ka silasila rakhata
~iffat zarrin
vae khush-fahami ki parvaz-e-yaqin se bhi gae
asaman chhoone ki khvahish mein zamin se bhi gae
~zafar kalim
yoon mulaqat ka ye daur banae rakhie
maut kab sath nibha jae bharosa kya hai
chahie khud pe yaqin-e-kamil
hausala kis ka badhata hai koi
~shakil badayuni
na koi vada na koi yaqin na koi umid
magar hamen to tera intizar karana tha
~firaq gorakhapuri
divaren chhoti hoti thin lekin parda hota tha
tale ki ijad se pahale sirf bharosa hota tha
jab tak matha choom ke rukhsat karane vali zinda thi
daravaze ke bahar tak bhi munh mein luqma hota tha
~azahar farag
ajab ye daur aya hai ki jis mein
galat kuchh bhi nahin sab kuchh sahi hai
mukammal khud ko jo bhi manata hai
yaqin mane bahut us mein kami hai
~niraj gosvami
tumhare panv ke niche koi zamin nahin
kamal ye hai ki, fir bhi tumhen yaqin nahin
~dushyant kumar
use guman hai ki meri udan kuchh kam hai
mujhe yaqin hai ki ye asaman kuchh kam hai
~nafas ambalavi
yaqin ho to koi rasta nikalata hai
hava ki ot bhi le kar charag jalata hai
~manzoor_hashami
koi bhi nahin jis pe bharosa kije
yan log badal jate hain mausam ki tarah
usi ka shahar, vahi muddi, vahi munsif
hamen yaqin tha hamara qusoor nikalega
~amir qazalabash
umr jitani bhi kati us ke bharose pe kati
aur ab sochata hoon us ka bharosa kya tha
~shahazad ahamad
saval hi nahin duniya se mere jane ka
mujhe yaqin hai jab tak kisi ke ane ka
~anavar shoor
adami bulabula hai pani ka
kya bharosa hai zindagani ka
meri zaban se meri dastan suno to sahi
yaqin karo na karo meharaban suno to sahi
~sudarshan fakir ~goodmorning
yaqin na ae to ik bat poochh kar dekho
jo hans raha hai, vo zakhmon se choor nikalega
~amir qazalabash
mujhe chhod de mere hal par
tera kya bharosa hai charagar,
ye teri navazish-e-mukhtasar
mera dard aur badha na de,
~shakaiailbadayuni
so dekh kar tire rukhsar o lab yaqin aya
ki fool khilate hain gulazar ke alava bhi
~faraz
dil ko teri chahat pe bharosa bhi bahut hai
aur tujh se bichhad jane ka dar bhi nahin jata
~ahamad faraz
vo shakhs bada hai to galat ho nahin sakata
duniya ko bharosa ye abhi to nahin hoga
~alok_shrivastav
irade chhootane vale na araman tootane vale
mujhe tujh par yaqin hain ai mera dil lootane vale
tujhe meri muhabbat ka na ab tak aitabar aya
na koi vada na koi yaqin na koi ummid
magar hamen to tira intizar karana tha
~firaq
hasino par yaqin karana sarasar bevakoofi hai,
ada in ki hai qafir to farebi chal hai pyare !!
yaqin usi ke vade pe lana padega
ye dhokha to danista khana padega
~munir_bhopali
gulami mein na kam ati hain shamashiren na tadabiren,
jo ho zauq-e-yaqin paida to kat jati hain zanjiren !! -allama iqabal
is hadase ko sun ke karega yaqin koi
sooraj ko ek jhonka hava ka bujha gaya
adami bulabula hai pani ka
kya bharosa hai zindagani ka
~raza
jo hone vala hai ab usaki fikr kya kije
jo ho chuka hai usi par yaqin nahin ata
~ shahryar
main us ke vade ka ab bhi yaqin karata hoon
hazar bar jise azama liya main ne
~makhamoor_saidi
us pe ati hai mohabbat aise
jhooth pe jaise yaken ata hai
mushkil ka meri unako mushkil se yaqin aya
samajhe meri mushkil ko lekin badi mushkil se
nazar jo koi bhi tujh sa hasin nahin ata
kisi ko kya mujhe khud bhi yaqin nahin ata
sar mein sauda* bhi nahin, dil mein tamanna bhi nahin
lekin is tark-e-mohabbat ka bharosa bhi nahin
yaqin ho to koi rasta nikalata hai
hava ki ot bhi le kar charag jalata hai
ab zindagi ka koi bharosa nahin raha
marane lage hain log qaza ke bagair bhi
~munawwar ran
mil hi jaega kabhi dil ko yaqin rahata hai
vo isi shahar ki galiyon mein kahin rahata hai
~ahamad_mushtaq
umr jitani bhi kati us ke bharose pe kati
aur ab sochata hoon us ka bharosa kya tha
~shahazad_ahamad
usi ka shahar vahi muddi vahi munsif
hamen yaqin tha hamara qusoor nikalega
~amir_qazalabash
yaqin kis pe karen kis ko dost thaharaen
har astin mein poshida koi khanjar hai
~hafiz_banarasi
mujhe chhod de mere hal par tira kya bharosa hai charagar
ye tiri navazish-e-mukhtasar mera dard aur badha na de
~shakil_badayuni
na kar kisi pe bharosa ki kashtiyan dooben
khuda ke hote hue nakhuda ke hote hue
~ahamad_faraz
achchha yaqin nahin hai to kashti duba ke dekh
ik too hi nakhuda nahin zalim khuda bhi hai
~qatilshifai
yaqin chand pe sooraj mein etibar bhi rakh
magar nigah mein thoda sa intizar bhi rakh
~nidafazli
chahie khud pe yaqin-e-kamil
hausala kisaka badhata hai koi
yoon na murajha ki mujhe khud pe bharosa na rahe
pichhale mausam mein tire sath khila hoon main bhi
~mazahar_imam
buri hai ag pet ki,bure hain dil ke dag ye
na dab sakenge,ek din banenge inqalab ye
too zinda hai to zindagi ki jit mein yaken kar
~shailendr
yaqin ho to koi rasta nikalata hai
hava ki ot bhi le kar charag jalata hai
~manzoorhashmi
usi ka shahar vahi muddi vahi munsif
hamen yaqin tha hamara qusoor nikalega
~amaiairqazalbas
kyoon itana hamen apani mohabbat pe yaqin hai
duniya to mohabbat ki parastar nahin hai
~alam_khurshid
~bachktobachhpan
mujhako yaqin hai sach kahati thin jo bhi ammi kahati thin
jab mere bachapan ke din the chand mein pariyan rahati thin
yaqin chand pe, sooraj mein etibar bhi rakh
magar nigah mein thoda sa intizar bhi rakh
~nidafazli
utha kar roz le jata hai mere khvab ka manzar
vo mujh se roz kahata hai bharosa kyoon nahin karate
~khalid_mahamood
tum samundar ki rifaqat pe bharosa na karo
tishnagi lab pe sajae hue mar jaoge
kaif_azimabadi
nahin nahin main bahut khush raha hoon tere bagair
yaqin kar ki ye halat abhi abhi hui hai
~irfansattar
dil ko teri chahat pe bharosa bhi bahut hai
aur tujhase bichhad jane ka dar bhi nahin jata
~ahmadfaraz
naqab kahati hai main parda-e-qayamat hoon
agar yaqin na ho dekh lo utha ke mujhe ~jalil_manikapuri
na koi vada, na koi yaqin. na koi ummid
magar hamen to tera intizar karana tha
~firaq
usi ka shahar vahi muddi vahi munsif
hamen yaqin tha hamara qusoor nikalega ~amaiairqazalbash
munsif = judgai
yaqin chand pe sooraj mein etibar bhi rakh
magar nigah mein thoda sa intizar bhi rakh ~nidafazali
yaqin ho to koi rasta nikalata hai
hava ki ot bhi le kar charag jalata hai ~manzoorhashmi
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