बुख़्ल कंजूसी करने की सजा और अज़ाब
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
फ़रमाने इलाही है :
जो लोग अल्लाह तआला के अता कर्दा माल में बुख़्ल करते हैं वोह इसे अपने लिये बेहतर न समझें बल्कि येह उन के लिये मुसीबत है अन करीब बुख़्ल के माल से कियामत के दिन उन को तौक पहनाए जाएंगे।
फ़रमाने इलाही है :
उन मुशरिकीन के लिये हलाकत है जो ज़कात नहीं अदा करते । इस आयते करीमा में अल्लाह तआला ने ज़कात न देने वालों को मुशरिक कहा है।
फ़रमाने नबवी है : जो शख्स अपने माल की ज़कात अदा नहीं करता, कियामत के दिन उस का माल गन्जे सांप की शक्ल में उस की गर्दन में झूल रहा होगा।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने पांच बातों से अल्लाह की पनाह मांगी
फ़रमाने नबवी है : ऐ गिरोह ए मुहाजिरीन ! पांच बलाएं ऐसी हैं जिन के मुतअल्लिक मैं अल्लाह तआला से तुम्हारे लिये पनाह मांगता हूं :
1 जब किसी क़ौम में खुल्लम खुल्ला बदकारियां होती हैं तो अल्लाह तआला उन पर ऐसे मकरूहात नाज़िल करता है जो पहले किसी पर नाज़िल नहीं होते।
2 जब कोई कौम नाप तोल में कमी करती है तो उन पर तंगदस्ती, कहत साली (सूखा) और ज़ालिम हाकिम मुसल्लत कर दिया जाता है.
3 जब कोई क़ौम अपने मालों की ज़कात नहीं देती उन्हें खुश्क साली घेर लेती है, अगर ज़मीन पर चोपाए न हों तो कभी उन पर बारिश न बरसे ।
4 जब कोई कौम अल्लाह और उस के रसूल के अहद को तोड़ देती है तो उस पर उस के दुश्मन मुसल्लत हो जाते हैं जो उन से उन का मालो दौलत छीन लेते हैं और
5 जिस कौम के फ़रमारवा किताबुल्लाह से फैसला नहीं करते, उन के दिलों में एक दूसरे से खौफ पैदा हो जाता है।
फ़रमाने नबवी है : “अल्लाह तआला बखील की ज़िन्दगी और सखी की मौत को ना पसन्द फ़रमाता है।”
फ़रमाने नबवी है : “दो आदतें मोमिन में जम्अ नहीं हो सकती, बुख़्ल और बद खुल्की।”
फ़रमाने नबवी है : “अल्लाह तआला ने कसम खाई है कि बख़ील को जन्नत में नहीं भेजेगा ।”
फ़रमाने नबवी है : “बुख़्ल से बचो ! जिस कौम में बुख़्ल आ जाता है वोह लोग ज़कात नहीं देते, सिला ए रहमी नहीं करते और नाहक खून रेजियां करते हैं।”
फ़रमाने नबवी है : “अल्लाह तआला ने रकाकत (सुस्ती काहिली) और शो‘लापन को पैदा किया और उसे माल और बुख़्ल से ठांप दिया।
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हज़रते हसन रहमतुल्लाह अलैह से बुख़्ल के मुतअल्लिक़ पूछा गया : आप ने फ़रमाया : “बुख़्ल यह है कि इन्सान राहे खुदा में खर्च करने को माल का ज़ाया हो जाना और माल जम्अ करने को खूबी समझे, बुख़्ल की बुन्याद, औलाद और माल की महब्बत, फ़क्रो फ़ाक़ा का खौफ़ और तूले अमल (लम्बी उम्मीदें) है। हदीस शरीफ़ में है : बा’ज़ आदमी ऐसे हैं जो अपने माल की ज़कात की अदाएगी और अपने अहलो अयाल पर खर्च करने को अच्छा नहीं समझते उन की महब्बत रूपिया जम्अ करने और इसे संभाल कर रखने में होती है हालांकि वह जानते हैं कि उन्हें एक दिन मर जाना है।
इन बखीलों के बारे में एक शाइर का क़ौल है
ऐ भाई ! अक्लमन्द लोगों की शक्ल में बहुत से जानवर भी होते हैं। जो अपने माल की हर ऊंच नीच को जानते हैं लेकिन अगर उन का दीन चला जाए तो उन्हें महसूस भी नहीं होता।
एक और शाइर कहता है
बुख़्ल ऐसी बीमारी है जो किसी बा मुरुव्वत, अक्लमन्द और दीनदार के लाइक नहीं। .जिस ने मालो दौलत हासिल कर के बुख़्ल किया मुझे ज़िन्दगी की कसम वोह धोके में रहा । .हाए अपसोस ! जिस ने दुन्या व आखिरत के हुकूक अदा न किये उस ने हक़ीर चीज़ के बदले अपने दीन के बाद दुनिया भी बेच डाली।
एक और शाइर कहता है :
जब माल किसी दोस्त को नफ्अ न पहुंचाए, किसी अज़ीज़ के काम न आए और किसी तंगदस्त की हाजत रवाई न करे। तो अन्जाम येह होगा कि माल तो वारिस के हथ्थे चढ़ेगा और बखील कियामत की शर्मिन्दगी अपने साथ ले जाएगा।
हज़रते बिश्र का कौल है कि बख़ील की मुलाकात मूजिबे मलाल और उसे देखना दिल की संगीनी में इज़ाफ़ा करता है, अरब एक दूसरे को बुख़्ल और बुज़दिली पर शर्म दिलाया करते थे। शाइर कहता है:
ख़र्च करता रह और कमी का ख़ौफ़ न कर, अल्लाह तआला ने बन्दों के रिज्क बांट दिये हैं। दुनिया से जाते हुवे बुख़्ल कोई फ़ाइदा न देगा और सखावत कोई नुक्सान न पहुंचाएगी।
एक और शाइर का कौल है:
मैं ने लोगों को अहले सखा का दोस्त पाया है मगर दो आलम में बखील का किसी को दोस्त नहीं देखा। ..मैं ने देखा है कि बुख़्ल बख़ीलों को ज़लीलो ख्वार करता है लिहाज़ा मैं ने बुख़्ल से किनारा कशी कर ली।
बख़ील की ज़िल्लत के लिये इतना ही काफ़ी है कि वह दूसरे के लिये माल जम्अ करता है, खर्च करने से तक्लीफ़ महसूस करता है और इस की फ़रावानी से लुत्फ़ अन्दोज़ नहीं होता ऐसे आदमियों के लिये हज़रते वकीअ का कौल है :
बख़ील हमेशा उस के वारिसों के लिये माल इकठ्ठा करता है और उस की हिफ़ाज़त करता है। ….शिकारी कुत्ते की तरह है जो भूका होने के बा वुजूद शिकार की हिफ़ाज़त करता है ताकि उसे दूसरे खाएं।
एक ज़रबुल मसल है कि बखील के माल की आने वाले वारिस को खुश खबरी दे दो । इमाम अबू हनीफ़ा रहमतुल्लाह अलैह का कौल है : मैं बख़ील का फैसला नहीं कर सकता क्यूंकि वह अपने बुख़्ल की वज्ह से अपने हक़ से ज़ियादा लेने की कोशिश करता है और ऐसा आदमी अमानतदार नहीं होता।
इब्लीसे लईन शैतान बुख़्ल को पसन्द करता है
हज़रते यहया . ने पूछा : तुझे कौन सा आदमी पसन्द, कौन सा ना पसन्द है ? इब्लीस शैतान ने कहा : मुझे मोमिन बखील पसन्द है मगर गुनहगार सखी पसन्द नहीं ? आप ने पूछा : वह क्यूं ? इब्लीस ने कहा : इस लिये कि बखील को तो उस का बुख़्ल ही ले डूबेगा मगर फ़ासिक सखी के मुतअल्लिक़ मुझे येह खतरा है कहीं अल्लाह तआला उस के गुनाहों को उस की सखावत के बाइस मुआफ़ न फ़रमा दे। फिर इब्लीस जाते हुवे कहता गया कि अगर आप यहया पैग़म्बर न होते तो मैं (राज़ की येह बातें) कभी न बतलाता।
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
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