देशभक्ति शायरी Deshbhakti shayari in hindi
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Desh bhakti shayari in hindi
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ख़ूँ शहीदान-ए-वतन का रंग ला कर ही रहा
आज ये जन्नत-निशाँ हिन्दोस्ताँ आज़ाद है
~अमीन सलोनी
फ़िदा-ए-मुल्क होना हासिल-ए-क़िस्मत समझते हैं
वतन पर जान देने ही को हम जन्नत समझते हैं
~आनंद नारायण मुल्ला
किन मंज़िलों लुटे हैं मोहब्बत के क़ाफ़िले
इंसाँ ज़मीं पे आज ग़रीब-उल-वतन सा है
~अदा जाफ़री
patriotic shayari
हमारे मुल्क की भाषा वो है जिसे हिंदू और मुस्लमान दोनों बोलते हैं। ये भाषा देवनागरी लिखावट में लिखी जाए तो हिन्दी है और अरबी लिखावट में लिखे जाने पर उर्दू है।
महात्मा गाँधी
याद अपने वतन की मुझे आती नहीं अब तो
अब भूल चुका होगा मुझे मेरा वतन भी
~सौरभ शेखर
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शाम-ए-वतन कुछ अपने शहीदों का ज़िक्र कर
जिन के लहू से सुब्ह का चेहरा निखर गया
बहुत अज़ीज़ है अपने वतन की ख़ाक हमें
जो ख़्वाब आँखों में आया वो मोतबर आया
~जावेद अकरम फ़ारूक़ी
देश भक्ति कोट्स Desh Bhakti Quotes
“सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसिताँ हमारा
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा”
मुल्क़ का मुस्तक़बिल सजाने को ये,
माज़ी के गढ़े मुर्दे उखाड़ लाते हैं !!
चाहें जितना भी क़ातिल दामन धो ले,
ख़ून के छींटे साफ़ नज़र आते हैं !!
“लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है
उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी”
ये फ़ासले तेरी गलियों के हमसे तय न हुए
हज़ार बार रुके हम हज़ार बार चले
न जाने कौन सी मट्टी वतन की मट्टी थी
नज़र में धूल जिगर में लिये ग़ुबार चले
देश भक्ति स्टेटस Deshbhakti Status
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा !!
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा !!
~Allama Iqbal
वफ़ा करो जफ़ा मिले, भला करो बुरा मिले
है रीत देश देश की, चलन चलन की बात है
~अख़तर मुस्लिमी
दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त
मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी
~Shaheed BhagatSingh
ना जन्नत मैंने देखी है, ना जन्नत की तवक्क़ो है
मगर मैं ख़्वाब में, इस मुल्क का नक़शा बनाता हूँ
~Munawwar Rana
ऐ वतन जब भी सर-ए-दश्त कोई फूल खिला
देख कर तेरे शहीदों की निशानी रोया
हाकिमान-ए-हिंद को अपनी ही इशरत से है काम
कौन करता है हमारी ग़म-गुसारी इन दिनों
देश भक्ति कविता DeshBhakti Kavita
मेरा क़ुसूर ये है कि हुब्ब-ए-वतन में ‘शाद’
लिखता हूँ लिख चुका हूँ जो ~लिखना न चाहिए
~शाद_आरफ़ी
वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है
तिरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में
~Iqbal
ये कैसी सियासत है मेरे मुल्क पे हावी
इंसान को इंसाँ से जुदा देख रहा हूँ
~साबिर_दत्त
दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त
मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी
~Lal Chand Falak
ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से मैं शर्मिंदा बहुत हूँ
महँगाई के मौसम में ये त्यौहार पड़ा है
~मुनव्वर_राना
शहीदों की ज़मीं है जिसको हिंदुस्तान कहते हैं
ये बंजर हो के भी बुज़दिल कभी पैदा नहीं करती
~Munawwar Rana
ये कैसी सियासत है मेरे मुल्क पे हावी
इंसान को इंसाँ से जुदा देख रहा हूँ
~साबिर_दत्त
वतन शायरी watan Shayari
कर चले हम फ़िदा जान-व-तन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
~KaifiAzmi
लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है
उछल रहा है ज़माना में नाम-ए-आज़ादी
~फ़िराक़_गोरखपुरी
मुल्क तो मुल्क घरों पर भी है क़ब्ज़ा उस का
अब तो घर भी नहीं चलते हैं सियासत के बग़ैर
~ज़िया_ज़मीर
ये सवाद-ए-शहर और ऐसा कहाँ हुस्न-ए-मलीह
शश-जिहत में मुल्क देखा ही नहीं पंजाब सा
सोचा था उन के देश में महँगी है ज़िंदगी
पर ज़िंदगी का भाव वहाँ और भी ख़राब
~दुष्यंत_कुमार
रोया था कौन कौन मुझे कुछ ख़बर नहीं
मैं उस घड़ी वतन से कई मील दूर था
~मुनीर_नियाज़ी
ज़िंदाँ में शहीदों का वो सरदार आया
शैदा-ए-वतन पैकर-ए-ईसार आया
है दार-ओ-रसन की सरफ़राज़ी का दिन
सरदार भगत-सिंह सरदार आया
~BhagatSingh
फ़िदा-ए-मुल्क होना हासिल-ए-क़िस्मत समझते हैं
वतन पर जान देने ही को हम जन्नत समझते हैं
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा
~Allama Iqbal
रौशनी बाँटता हूँ सरहदों के पार भी मैं
हम-वतन इस लिए ग़द्दार समझते हैं मुझे
~Shahid Zaki
कभी कहीं सफ़र करते अगर कोई मुसाफ़िर शेर पढ़ दे ‘मीर’ ‘ग़ालिब’ का
वो चाहे अजनबी हो, यही लगता है वो मेरे वतन का है
~Gulzar
ये कैसी सियासत है मेरे मुल्क पे हावी
इंसान को इंसाँ से जुदा देख रहा हूँ
है नक़्श तेरे अहल-ए-वतन के दिल पर
फाँसी की रसन को चूमना वो तेरा
कोई नाम-व-निशां पूछे तो उस से कह देना
वतन हिन्दोस्तां अपना है हम हिन्दुस्तानी हैं
~Lal Chand Falak
ऐ वतन इस क़दर उदास न हो
इस क़दर ग़र्क़-ए-रंज-व-यास न हो
फूट की आग हम बुझा देंगे
क़त्ल-व-ग़ारत-गरी मिटा देंगे
~KaifiAzmi
वतन परस्त शहीदों की ख़ाक लायेंगे
हम अपनी आंख का सुर्मा उसे बनायेंगे
~चकबस्त
आज़ादी-ए-वतन से हमारी हैं हुर्मतें٭
देखी नहीं हैं तुमने ग़ुलामी की ज़िल्लतें
हिंद की उल्फ़त का जज़्बा मेरे जिस्म-व-जां में है
वो मेरा मतलूब है मैं उसके तलबगारों में हूँ
~LalChandFalak
कहाँ हैं आज वो शमा-ए-वतन के परवाने
बने हैं आज हक़ीक़त उन्हीं के अफ़साने
कितनी पुर-कैफ़ इसकी अदाएँ
कितनी दिलकश इसकी फ़ज़ाएँ
मुश्क से बढ़कर इसकी हवाएँ
ख़ुल्द से बढ़कर इसका नज़ारा
प्यारा भारत देश हमारा
ये और बात कि घर बुझ गए हैं ऐ ‘शाएर’
मगर वतन में चराग़ाँ तो कर गए हैं लोग
~शायर_लखनवी
वतन के लोग सताते थे जब वतन में थे
वतन की याद सताती है जब वतन में नहीं
~अंजुम_मानपुरी
उठो हिंद के बागवानो उठो
उठो इंक़िलाबी जवानो उठो
उठो जैसे दरिया में उठती है मौज
उठो जैसे आंधी की बढ़ती है फ़ौज
~S Jafri
ग़ुर्बत की ठंडी छाँव में याद आई उस की धूप
क़द्र-ए-वतन हुई हमें तर्क-ए-वतन के बाद ~kaifi azmi
ग़ज़लें, दोहे, गीत की शोहरत मुल्क से बाहर फैली थी
हिन्दोस्ताँ से आने वाले, तोहफ़ों में ले जाते थे
~Jameeluddin Aali
आबो-हवा देश की बहुत साफ है
कायदा है, कानून है, इंसाफ है,
अल्लाह मियाँ जाने कोई जिए या मरे,
आदमी को खून-वून सब माफ है
-गुलजार
“ये वतन तेरी मेरी नस्ल की जागीर नहीं,
सैंकड़ो नस्लों की मेहनत ने संवारा है इसे..”
-साहिर
मैं किस वतन की तलाश में यूँ चला था घर से,
कि अपने घर में भी अजनबी हो गया हूँ आ कर..!
-गुलज़ार
हिंदुस्तान शायरी Hindustan Shayari
वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है
तेरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में ~allama iqbal
ये उजले दरीचों में पायल की छनछन,
थकी हारी साँसों पे तबले की धनधन,
ये बेरुंह कमरों में खांसी की ठनठन..!
जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहा है?
‘अगर राह चलते कोई,
शेर पढ़ दे म़िर-ग़ालिब का
वो चाहे अजनबी हो,
लगता है वो मेरे ‘वतन’ का है’-गुलज़ार
घर तो क्या घर का निशाँ भी नहीं बाक़ी ‘सफ़दर’
अब वतन में कभी जाएँगे तो मेहमाँ होंगे
जिला-वतन हूँ मिरा घर पुकारता है मुझे
उदास नाम खुला दर पुकारता है मुझे ~Nasim
ग़ुर्बत की सुब्ह में भी नहीं है वो रौशनी
जो रौशनी कि शाम-ए-सवाद-ए-वतन में थी ~hasrat
मिरे साग़र में मय है और तिरे हाथों में बरबत है
वतन की सरज़मीं में भूक से कोहराम है साक़ी ~sahir
यूसुफ़ अज़ीज़-ए-दिला जा मिस्र में हुआ था
पाकीज़ा गौहरों की इज़्ज़त नहीं वतन में ~meer
मआज़-अल्लाह उस की वारदात-ए-ग़म मआज़-अल्लाह
चमन जिस का वतन हो और चमन-बे-ज़ार हो जाए ~Jigar
ग़ुर्बत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा ~iqbal
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पे मर मिटनेवालों का बाकी यही निशां होगा
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं
सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं
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