सिला रहमी का सवाब और कता रहमी का अज़ाब
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
सिला रहमी रिश्तेदारी निभाना, रिश्तेदारों पर रहम करना
कता रहमी – रिश्तेदारी ना निभाना, रिश्तों को तोड़ देना
फ़रमाने इलाही है : “अल्लाह से डरो जिस के नाम पर मांगते हो और रिश्तों का लिहाज़ रखो”। फ़रमाने इलाही है: “तो क्या तुम्हारे यह ढंग नज़र आते हैं कि अगर तुम्हें हुकूमत मिले तो तुम ज़मीन पर फ़ितना व फ़साद फैलाओ और अपने रिश्ते तोड़ दो। यह वह लोग हैं जिन पर अल्लाह तआला ने ला‘नत फ़रमाई जिन्हें हक के सुनने से बहरा और हक के देखने से अन्धा कर दिया”। फ़रमाने इलाही है: “ जो अल्लाह से किये हुवे वा‘दे को तोड़ते हैं और जिस चीज़ के मिलाने का रब ने हुक्म दिया है उस से क़तए तअल्लुक करते हैं और ज़मीन में फ़साद मचाते हैं वह नुक्सान में हैं”।
फ़रमाने इलाही है : “जो लोग अहदे खुदावन्दी को तोड़ते हैं और जिस चीज़ के मिलाने का रब तआला ने हुक्म दिया है उस से कता ए तअल्लुक करते हैं उन के लिये ला‘नते खुदावन्दी और बड़ा ठिकाना है”
सिला रहमी और कता रहमी के बारे में नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के इरशादात
सहीहैन में हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : “जब अल्लाह तआला मख्लूक की पैदाइश से फ़ारिग हो गया तो क़राबत ने खड़े हो कर अर्ज़ किया : मैं तुझ से क़तए रहमी की पनाह चाहती हूं, रब तआला ने फ़रमाया : क्या तू इस बात पर राज़ी है कि जिस ने तुझ से तअल्लुक जोड़ा, मैं उस से तअल्लुक जोडूंगा और जिस ने तुझ से कतअ कर लिया मैं उसे कतअ कर दूंगा। उस ने कहा : मैं राजी हूं। फिर हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने यह आयत पढ़ी।
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हज़रते अबी बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि “बगावत और कता ए रहमी दो ऐसे गुनाह हैं जिन पर दुन्या और आख़िरत में अज़ाब दिया जाता है”।
सहीहैन में है कि “कता ए रहमी करने वाला जन्नत में नहीं जाएगा।“
मुस्नदे अहमद में है : “इन्सानों के आ‘माल हर जुमा रात को पेश किये जाते हैं मगर क़तए रहमी करने वाले का कोई अमल मक्बूल नहीं होता”।
बैहक़ी से रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : “जिब्रील पन्दरहवीं शा‘बान की रात को मेरे पास आए और कहा : आज की रात अल्लाह तआला बनू कल्ब की बकरियों के बालों के बराबर गुनहगारों को बख्श देता है मगर मुशरिक, कीना परवर, कता ए रेहम, तकब्बुर से अपने तहबन्द को घसीट कर चलने वाला, वालिदैन का नाफरमान और शराबी को नहीं बख्शा जाता”।
इब्ने हब्बान से मरवी है : तीन आदमी जन्नत में नहीं जाएंगे : शराबी, कता ए रहमी करने वाला , जादूगर ।
मुस्नदे अहमद, इब्ने अबिदुन्या और बैहक़ी से मरवी है : इस उम्मत के कुछ लोग खाने पीने और लह्वो लइब में रातें गुजारेंगे, जब सुब्ह होगी तो इन की सूरतें मस्ख हो जाएंगी, इन्हें जमीन में धंसा दिया जाएगा, सुब्ह को लोग एक दूसरे से कहेंगे : फुलां ख़ानदान जमीन में धंस गया है, फुलां मुअज्जज़ अपने घर के साथ ज़मीन में गर्क हो गया है, इन की शराब नोशी, सूद खोरी, कृतए रहमी, नाच गाने पर फ़ोफ्तगी और रेशमी लिबास पहनने की वज्ह से इन पर कौमे लूत की तरह पथ्थरों की बारिश होगी और कौमे आद की तरह उन पर हलाकत खेज़ आंधियां भेजी जाएंगी जिन से वोह अपने कबाइल समेत हलाक हो जाएंगे।
सिला ए रहमी का सवाब बहुत जल्द मिलता है
तबरानी ने औसत में हज़रते जाबिर रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम काशानए नबुव्वत से बाहर तशरीफ़ लाए, हम लोग इकट्ठे बैठे हुवे थे, आप ने हमें देख कर फ़रमाया : ऐ मुसलमानो ! अल्लाह से डरो और सिलए रहमी करो क्यूंकि सिलए रहमी का सवाब बहुत जल्द मिलता है, जुल्म व ज़ियादती से बचो क्यूंकि उस की गिरिफ़्त बहुत जल्द होती है, वालिदैन की नाफरमानी से बचो, जन्नत की खुश्बू हज़ार साल के फ़ासिले से आएगी मगर वालिदैन का नाफरमान इस से महरूम रहेगा, क़राबत न रखने वाला, बूढा जानी और तकब्बुर से इज़ार घसीटने वाला, इस से महरूम रहेंगे”
अस्बहानी से मरवी है : हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में बैठे हुवे थे, आप ने फ़रमाया : कातेए रेहम हमारी मजलिस में न बैठे, मजलिस में से एक जवान उठ कर खाला के यहाँ चला गया, उन के दरमियान कोई तनाजुआ था जिस की उस ने मुआफ़ी मांगी। दोनों ने एक दूसरे को मुआफ़ कर दिया और वोह दोबारा हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम
की मजलिस में बैठ गया, आप ने फ़रमाया : “उस कौम पर रहमते खुदावन्दी का नुजूल नहीं होता जिस में कातेए रेहम मौजूद हो”
इस की ताईद इस रिवायत से होती है जिस में मरवी है : हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की अहादीस सुना रहे थे। आप ने कहा कि हर कातेए रेहूम हमारी महफ़िल से उठ जाए। एक जवान उठ कर अपनी ख़ाला के यहाँ गया जिस से उस का दो साल पुराना झगड़ा था, जब दोनों एक दूसरे से राजी हो गए तो उस जवान से ख़ाला ने कहा : तुम जा कर इस का सबब पूछो, आखिर ऐसा क्यूं हुवा ? हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो ने कहा कि मैं ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से सुना है, आप ने फ़रमाया : जिस कौम में कातेए रेहम हो, उस पर अल्लाह की रहमत का नुजूल नहीं होता।
रिश्तेदारी तोड़ने वाले पर रहम नहीं किया जाता
तबरानी में आ’मस की रिवायत है : हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो एक सुब्ह महफ़िल में बैठे हुवे थे, इन्हों ने कहा : मैं कातेए रेहम को अल्लाह की कसम देता हूं कि वोह यहां से उठ जाए ताकि हम अल्लाह तआला से मगफिरत की दुआ करें क्यूंकि कातेए रेहम पर आस्मान के दरवाजे बन्द रहते हैं। (अगर वोह यहां मौजूद रहेगा तो हमारी दुआ कबूल नहीं होगी)
सहीहैन में है : क़राबत और रिश्तेदारी अशें खुदा से मुअल्लक है और कहती है : जिस ने मुझे मिलाया अल्लाह उसे मिलाए और जिस ने मुझ से क़तए तअल्लुक किया अल्लाह तआला उस से क़तए तअल्लुक करे ।)
हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं : मैं ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से सुना। आप फ़रमा रहे थे : अल्लाह तआला फ़रमाता है : मैं अल्लाह हूं, मैं रहमान हूं, मैं ने रहम को पैदा किया और इसे अपने नाम से मुश्तक किया, जिस ने सिलए रहमी की मैं उसे अपनी रहमत से मिलाऊंगा और जिस ने कता ए रहमी की मैं उसे अपनी रहमत से दूर कर दूंगा।
मुस्नदे अहमद में रिवायत है कि सब से बड़ा सूद मुसलमान के माल को नाहक खाना है और क़राबत व सिलए रहमी अल्लाह तआला के नाम की एक शाख़ है, जिस ने सिलए रहमी न की अल्लाह तआला उस पर जन्नत हराम कर देता है।
सहीह इब्ने हब्बान में है : रहम रब्बे जुल जलाल की एक अता है, रहम ने अल्लाह तआला की बारगाह में अर्ज की : ऐ रब ! मुझ पर जुल्म हुवा, मुझे बुरा कहा गया, मुझे कतअ किया गया, रब तआला ने फ़रमाया : जो तुझे मिलाएगा मैं उसे अपनी रहमत से मिलाऊंगा, जो तुझे काटेगा मैं उसे अपनी रहमत से दूर कर दूंगा।
बज्जार ने रिवायत की है : रहम (क़राबत व रिश्तेदारी) अशें खुदा से चिमटी हुई अर्ज़ करती है : ऐ अल्लाह ! जिस ने मुझे मिलाया तू उसे मिला, जिस ने मुझे काटा तू उस से तअल्लुक़ मुन्कतअ फ़रमा ! रब तआला ने फ़रमाया : मैं ने तेरा नाम अपने नाम रहमान और रहीम से मुश्तक किया है जिस ने तुझे मिलाया मैं उसे अपनी रहमत से मिलाऊंगा, जिस ने तुझ से तअल्लुक मुन्कृत किया मैं उस से रहमत को मुन्कत कर लूंगा।
बज्जार की रिवायत है : तीन चीजें अशें खुदा से लटकी हुई हैं, कराबत कहती है : ऐ अल्लाह ! मैं तेरे साथ हूं, कभी तुझ से जुदा न होऊंगी, अमानत कहती है : ऐ अल्लाह ! मैं तेरे साथ हूं, मैं तेरी रहमत से कभी जुदा न होऊंगी, नेमत कहती है : ऐ अल्लाह ! मैं तेरी रहमत से जुदाई नहीं चाहती, मेरा इन्कार न किया जाए ।
बैहक़ी की रिवायत है : खसलत या सरिश्त अर्श के दरवाज़ों से मुअल्लक है जब कि रहम में तश्कीक वाकेअ हो जाए और गुनाहों पर अमल बढ़ जाए और अहकामे इलाहिय्या पर अमल न करने पर जुरअत पैदा हो जाए तो अल्लाह तआला सरिश्त को भेजता है जो उस के कल्ब पर हावी हो जाती है और इस के बाद उस को गुनाहों का शुऊर बाकी नहीं रहता।
रिज्क में बरकत और तवील उम्र के लिए सिला ए रहमी
सहीहैन में है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जो शख्स अल्लाह और क़ियामत पर ईमान रखता है वोह अपने मेहमान की इज्जत करे, सिलए रहमी करे और अच्छी बात करे या चुप रहे। एक और रिवायत है : जो शख्स तवील उम्र और फराखिये रिज्क की तमन्ना रखता है उसे चाहिये वोह सिलए रहमी करे ।
हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : मैं ने रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को फ़रमाते सुना : “जो शख़्स फ़राखिये रिज्क और उम्रे तवील को पसन्द करता है वोह सिलए रहमी करे ।
मजीद फ़रमाया : अपना नसब याद करो ताकि रिश्तेदारों को पहचान सको, इस लिये कि रिश्तेदारों से मैल मिलाप में ख़ानदान की महब्बत बढ़ती है, मालो दौलत ज़ियादा होती है और उम्र तवील हो जाती है।
बज्जार और हाकिम की रिवायत है : जो शख्स येह तमन्ना रखता हो कि उस की उम्र तवील हो, रिज्क में कुशादगी हो और बुरी मौत से बच जाए वोह अल्लाह से डरे और सिलए रहमी करे।
हाकिम और बज्जार की रिवायत है : फ़रमाने नबवी है, तौरात में मरकूम है कि जो उम्र तवील और ज़ियादतिये रिज्क का ख्वाहिश्मन्द हो वोह सिलए रहमी करे ।
अबू या’ला ने बनू खसअम के एक शख्स से रिवायत की है : उस ने कहा : मैं हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में हाज़िर हुवा, आप उस वक्त सहाबए किराम के साथ तशरीफ़ फ़रमा थे, मैं ने पूछा : आप ने रसूले ख़ुदा होने का दावा किया है ? आप ने फ़रमाया : हां ! मैं ने पूछा : ऐ नबिय्यल्लाह ! मुझे बताइये कौन सा अमल अल्लाह तआला को ज़ियादा पसन्द है? आप ने फ़रमाया : अल्लाह के साथ ईमान लाना । मैं ने पूछा : फिर ? फ़रमाया : सिलए रहमी ! मैं ने पूछा : और कौन सा अमल अल्लाह तआला को सब से ज़ियादा ना पसन्द है ? आप ने फ़रमाया : अल्लाह तआला के साथ किसी को शरीक ठहराना । मैं ने पूछा : इस के बा’द ? फ़रमाया : कता ए रहमी ! मैं ने पूछा : फिर ? आप ने फ़रमाया : बुराइयों की तरगीब देना और नेकी से रोकना ।
बुखारी व मुस्लिम की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ऊंटनी पर सुवार सहाबए किराम के साथ सफ़र में जा रहे थे कि एक बदवी ने आ कर आप की ऊंटनी की मुहार पकड़ ली और कहा : हुजूर ! मुझे ऐसा अमल बतलाइये जो जन्नत के करीब और जहन्नम से दूर कर दे। आप ठहर गए और सहाबए किराम की तरफ़ देख कर फ़रमाया : येह शख्स हिदायत याब हो गया। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने बदवी से फ़रमाया कि अपना सुवाल दोहराओ, उस के दोहराने पर आप ने इरशाद फ़रमाया : अल्लाह तआला को वहूदहू ला शरीक जान कर उस की इबादत कर, नमाज़ पढ़, जकात दे और सिलए रहमी कर और अब मेरी ऊंटनी की मुहार छोड़ दे। जब बदवी चला गया तो आप ने इरशाद फ़रमाया : अगर येह इन बातों पर अमल करता रहा तो जन्नत में जाएगा।
तबरानी की रिवायत है : आप ने फ़रमाया : एक कौम ऐसी है कि अल्लाह तआला उस के शहरों को आबाद करता है, उस के माल को बढ़ाता है और जब से उन्हें पैदा किया है कभी नाराजी की निगाह से उन्हें नहीं देखा। पूछा गया : वोह क्यूं ? आप ने फ़रमाया : उस कौम की सिलए रहमी की वज्ह से। (या’नी वोह कौम सिलए रहमी करती है)
सिलए रहमी के बारे में चन्द अहादीसे मुबारका
“मुस्नदे अहमद” की रिवायत है : जिसे नर्मी दी गई उसे दीनो दुन्या की भलाई से हिस्सा दिया गया, अच्छी हमसाएगी और हुस्ने खुल्क का नतीजा शहरों की आबादी और उम्रों की दराज़ी है ।
अबुश्शैख, इब्ने हब्बान और बैहक़ी की रिवायत है कि सहाबए किराम ने सुवाल किया : या रसूलल्लाह ! सब से बेहतर इन्सान कौन सा है? आप ने फ़रमाया : रब से ज़ियादा डरने वाला, ज़ियादा सिलए रहमी करने वाला और नेकियों का हुक्म देने वाला, बुराइयों से रोकने वाला।
तबरानी की रिवायत है : हज़रते अबू जर रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं कि मुझे मेरे हबीब सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने चन्द अच्छी चीज़ों की वसिय्यत फ़रमाई है और वोह यह हैं : मैं अपने से ऊपर वाले को नहीं बल्कि नीचे वाले को देखू, मैं यतीमों से महब्बत रखू और इन से करीब रहूं, मैं सिलए रहमी करूं अगर्चे रिश्तेदार पीठ फेर जाएं, अल्लाह तआला के मुआमले में किसी से न डरूं, सच्ची बात अगर्चे तल्ख हो मैं कहता रहूं, “ला हौला वाला कुव्वता इल्ला बिल्लाह” कसरत से पढ़ता रहूं क्यूंकि यह जन्नत का खज़ाना है।
“सहीहैन” की रिवायत है : उम्मुल मोमिनीन हज़रते मैमूना रज़ीअल्लाहो अन्हुम ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से दरयाफ़्त किये बिगैर अपनी लौंडी आज़ाद कर दी। जब हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम इन के यहां तशरीफ़ लाए तो इन्हों ने कहा : या रसूलल्लाह ! आप को मालूम है मैं ने अपनी लौंडी को आज़ाद कर दिया है ? आप ने फ़रमाया : वाकेई ? अर्ज़ की : जी हां। आप ने फ़रमाया : अगर तुम वोह लौंडी अपने ख़ालाज़ाद को दे देती तो तुम्हें बहुत ज़ियादा सवाब मिलता।.
‘इब्ने हब्बान’ और ‘हाकिम’ की रिवायत है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की बारगाह में एक शख्स हाज़िर हुवा और कहा कि मैं ने बहुत बड़ा गुनाह किया है, तौबा की कोई सूरत बतलाइये ! आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने पूछा : तेरी मां जिन्दा है ? कहा : “नहीं।” आप ने फिर पूछा : तुम्हारी खाला जिन्दा है ? अर्ज की : हां या रसूलल्लाह ! फ़रमाया : “जाओ ! और उस की खिदमत करो।” (येही सिलए रहमी है)
बुख़ारी वगैरा में है : सिलए रहमी येह नहीं कि मिलने जुलने वाले रिश्तेदारों से मेल मिलाप बर करार रखे बल्कि सिलए रहमी येह है कि जो रिश्तेदार तअल्लुकात मुन्कतअ कर चुके हों उन से भी मेल मिलाप बर करार रखे।
तिर्मिज़ी की रिवायत है : उन लोगों से न बनो जो कहते हैं अगर लोग हमारे साथ भलाई करेंगे तो हम भी भलाई करेंगे और अगर वोह हम पर ज़ियादती करेंगे तो हम भी ज़ियादती करेंगे बल्कि तुम इस बात के आदी बनो कि अगर लोग तुम्हारे साथ भलाई करें तो भलाई करो और अगर वोह ज़ियादती करें तो तुम ज़ियादती न करो।
मुस्लिम की रिवायत है एक शख्स ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में अर्ज की : मैं रिश्तेदारों से तअल्लुक जोड़ता हूं मगर वोह मुझ से तअल्लुक़ तोड़ते हैं, मैं उन से भलाई करता हूं, वोह मेरी बुराई करते हैं, मैं उन से हिल्म व बुर्दबारी का सुलूक करता हूं, वोह मुझे ख़ातिर में नहीं लाते, आप ने फ़रमाया : अगर तेरी बातें सच्ची हैं तो तू ने एक दूर दराज़ रास्ते को तै कर लिया और जब तक तू इस आदत पर काइम रहेगा अल्लाह तआला तेरा हामी व नासिर होगा।
तबरानी, इब्ने खुर्जामा और हाकिम की रिवायत है कि सब से बेहतरीन सदक़ा कीना परवर रिश्तेदार को कुछ देना है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के इस फरमान का भी येही मतलब है कि जो रिश्तेदार तुझ से तअल्लुक मुन्कतअ कर ले तू उस से तअल्लुक जोड़।
बज्जाज़, हाकिम और तबरानी की रिवायत है कि जिस में येह तीन सिफ़ात पाई जाएंगी उस का हिसाब इन्तिहाई आसान होगा, सहाबा ने अर्ज की : हुजूर वोह कौन सी हैं ? फ़रमाया : जो तुझे महरूम रखे तू उसे देता रह, जो तअल्लुक़ तोड़े उस से तअल्लुक जोड़ता रह और जो तुझ पर जुल्म करे तू उसे मुआफ करता रह, तेरा ठिकाना जन्नत में होगा।
अहमद की रिवायत है, हज़रते उक्बा बिन आमिर रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं कि मैं हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुवा और आप का दस्ते अक्दस थाम कर अर्ज़ किया : या रसूलल्लाह ! मुझे बेहतरीन आ’माल बतलाइये । आप ने फ़रमाया : “उक्बा ! कता ए तअल्लुक़ करने वाले से सिलए रहमी कर, जो तुझे महरूम करे उसे अता कर और जो तुझ पर जुल्म करे उसे मुआफ कर दे।”
हाकिम की रिवायत में है, जो दराज़िये उम्र और फराखिये रिज्क की आरजू रखता हो, वोह सिलए रहमी करे ।
तबरानी की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : लोगो ! मैं तुम को दुन्या और आखिरत की बेहतरीन आदतें बतलाता हूं, तुम तअल्लुकात मुन्कत करने वाले रिश्तेदारों से सिलए रहमी करते रहो, जो तुम को महरूम रखे, उसे देते रहो और जो ज़ियादती करे उसे मुआफ़ करते रहो।
तबरानी की रिवायत है : आप ने फ़रमाया : क़तए तअल्लुक़ करने वालों से सिलए रहमी कर, महरूम करने वाले को अता कर और जिस ने तुझे गालियां दीं उस से दरगुज़र कर।
बज्जाज़ की रिवायत है : नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : मैं तुम्हें वोह बातें न बतलाऊं जिन से दरजात बुलन्द होते हैं । तबरानी की रिवायत में है, मैं तुम्हें उस चीज़ की ख़बर न दूं जिस से अल्लाह तआला इज्जत देता है और दरजात बुलन्द करता है ? सहाबए किराम ने अर्ज किया : ज़रूर बतलाइये या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ! आप ने फ़रमाया : जो तुम से ए’राज़ करे उस से दर गुज़र करो, जिस ने तुम पर जुल्म किया उसे मुआफ़ कर दो, जिस ने तुम को महरूम किया उसे अता करो और जिस ने तअल्लुकात ख़त्म किये उस से तअल्लुकात उस्तुवार करो।
इब्ने माजा की रिवायत है कि सब आ’माल से जल्दी अज्र पाने वाली चीज़ एहसान और सिलए रहमी है या’नी एहसान और सिलए रहमी से ज़ियादा जल्द अज्र और किसी अमल का नहीं मिलता और सब आ’माल से जल्दी अज़ाब लाने वाली चीज़ जुल्म व ज़ियादती और कतए रहमी है।
तबरानी की रिवायत है : झूट, कता ए रहमी और खियानत का मुर्तकिब इस लाइक़ होता है कि अल्लाह तआला उसे दुन्या में भी अज़ाब दे और आख़िरत में भी सज़ा का मुस्तहिक गरदाने और सब आ’माल से जल्दी अज्र सिलए रहमी का मिलता है अगर्चे उस घर के लोग गुनहगार होते हैं मगर सिलए रहमी की वज्ह से उन का माल भी खूब बढ़ता है और उन की औलाद भी ब कसरत होती है।
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
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