गीबत और चुगली बद तरीन गुनाह हैं

गीबत पर वईद

खुदावन्दे कुद्दूस ने कुरआने मजीद में गीबत की मज़म्मत करते हुवे गीबत करने वालों को मुर्दार का गोश्त खाने वाले कहा चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है : “एक दूसरे की गीबत न करो क्या तुम में से कोई अपने मुर्दा भाई का गोश्त खाना पसन्द करता है”.

फ़रमाने नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  है कि “हर मुसलमान पर दूसरे मुसलमान का खून, माल और इज्जत हराम है”.

फ़रमाने नबवी है कि “अपने आप को गीबत से बचाओ क्यूंकि गीबत ज़िना से बदतर है, क्यूंकि ज़ानी  गुनाह के बाद तौबा करता है तो अल्लाह तआला क़बूल कर लेता है मगर गीबत का गुनाह उस वक्त तक मुआफ़ नहीं होता जब तक कि जिस की गीबत की जाए वह मुआफ़ न कर दे”।

कहते हैं : गीबत करने वाले की मिसाल उस शख्स जैसी है जिस ने एक मिन्जनीक़ (पुराने ज़माने की जंग में इस्तेमाल की जाने वाली पत्थर फेकने की मशीन) लगाई और वह उस मिन्जनीक़ के जरीए दाएं बाएं नेकियां फेंक रहा है।

रसूलल्लाह सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  का इरशाद है : “जो किसी मुसलमान भाई की बुराई चाहते हुवे गीबत करता है, अल्लाह तआला उसे यौमे कियामत जहन्नम के पुल पर उस वक्त तक खड़ा करेगा कि जो कुछ उस ने कहा था, निगल जाए”

फ़रमाने रसूले करीम सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  है : “गीबत यह है कि तू अपने भाई की उस चीज़ का ज़िक्र करे जिसे वह ना पसन्द करता है” ख्वाह उस के बदन का कोई ऐब हो, नसब का ऐब हो, उस के कौलो-फेल या दीनो-दुनिया का ऐब हो यहां तक कि उस के कपड़ों और सवारी में भी कोई ऐब निकालेगा तो यह गीबत होगी.

बा’ज़ मुतकद्दिमीन का कौल है : “यह कहना भी कि फुलां का कपड़ा लम्बा या छोटा है, गीबत है यहाँ तक की उस की जात के एब गिने जाएं। (तो उस गीबत का क्या ठिकाना)

एक छोटे कद की औरत किसी काम के लिये हुजूर सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  की खिदमत में हाज़िर हुई, जब वह वापस चली गई तो हज़रते आइशा रज़िअल्लाहो अन्हा  ने कहा : उस का क़द कितना छोटा था, आप ने फ़रमाया : आइशा ! तुम ने उस की ग़ीबत की है। हुजूर सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  इरशाद फ़रमाते हैं कि “अपने आप को गीबत से बचाओ क्यूंकि इस में तीन मुसीबतें हैं : गीबत करने वाले की दुआ कबूल नहीं होती, उस की नेकियां ना मक्बूल होती हैं और उस पर गुनाहों की यूरिश (यलगार) होती है।

 

चुगलखोर का अन्जाम

हुजूर सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  इरशाद फ़रमाते हैं कि “क़ियामत के दिन बद तरीन आदमी दो चेहरों वाला चुगुलख़ोर होगा जो आप के पास और चेहरा ले कर आता है, दूसरे के पास और चेहरा ले कर जाता है”, और फ़रमाया “जो दुनिया में चुगुल खोरी करता है क़ियामत के दिन उस के मुंह से आग की दो ज़बानें नज़र आएंगी”

हुज़ूर सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  का इरशाद है : “चुगल खोर जन्नत में नहीं जाएगा”

अल्लाह तआला ने तमाम जानवरों के मुंह में ज़बान पैदा की है मगर मछली को ज़बान नहीं दी गई, इस की वज्ह यह है कि जब हुक्मे खुदावन्दी से फरिश्तों ने आदम को सजदा किया और इब्लीस, रजीम हो कर मस्ख शुदा सूरत में ज़मीन पर फेंक दिया गया तो वह समन्दरों की तरफ़ गया तो उसे सब से पहले मछली नज़र आई जिसे उस ने आदम की तख्लीक का किस्सा सुनाया और यह भी बतलाया कि वह पानी और खुश्की के जानवरों का शिकार करेगा, तो मछली ने तमाम दरयाई जानवरों तक हज़रते आदम की कहानी कह सुनाई इसी वज्ह उसे अल्लाह तआला ने ज़बान के शरफ़ से महरूम कर दिया।

 

चुगलखोर की सजा

हज़रते अम्र बिन दीनार रहमतुल्लाह अलैह  कहते हैं कि मदीना ए तय्यिबा में एक शख्स रहता था जिस की बहन मदीने के नवाह में रहती थी, वह बीमार हो गई तो यह शख्स उस की तीमार दारी में लगा रहा लेकिन वह मर गई तो उस शख्स ने उस की तजहीज़ो तक्फ़ीन का इन्तिज़ाम किया, आख़िर जब उसे दफ्न कर के वापस आया तो उसे याद आया कि वह रकम की एक थैली कब्र में भूल आया है। उस ने अपने एक दोस्त से मदद तलब की। दोनों ने जा कर उस की कब्र खोद कर थैली निकाल ली। तो उस ने दोस्त से कहा : ज़रा हटना ! मैं देखू तो सही मेरी बहन किस हाल में है ? उस ने लहूद में झांक कर देखा तो वह आग से भड़क रही थी, वह वापस चुप चाप चला आया और मां से पूछा : मेरी बहन में क्या कोई ख़राब आदत थी ? मां ने कहा : तेरी बहन की आदत थी वह हमसायों के दरवाज़ों से कान लगा कर उन की बातें सुनती थी और चुगुल खोरी किया करती थी। पस उस शख्स को मालूम हो गया कि अज़ाब का सबब क्या है,

पस जो शख्स अज़ाबे कब्र से बचना चाहता है उसे चाहिये कि वह गीबत और चुगल खोरी से परहेज़ करे।

 

हजरते अबुल्लैस बुखारी का एक वाकिआ

हज़रते अबुल्लैस बुखारी रहमतुल्लाह अलैह  हज के लिये घर से रवाना हुवे और दो दीनार जेब में डाल लिये, रवाना होते वक्त कसम खाई कि अगर मैं ने मक्का ए  मुकर्रमा को जाते या घर वापस आते हुवे किसी की गीबत की तो यह दो दीनार अल्लाह के नाम पर सदक़ा कर दूंगा। आप मक्का शरीफ़ तक गए और घर वापस आए मगर दीनार इसी तरह उन की जेब में महफूज़ रहे, उन से गीबत के मुतअल्लिक पूछा गया तो उन्हों ने जवाब दिया :मैं एक मरतबा की गीबत को सो मरतबा के ज़िना से बद तरीन समझता हूं”

हज़रते अबू हफ्स अल कबीर रहमतुल्लाह अलैह  का कौल है कि मैं किसी इन्सान की गीबत करने को माहे रमज़ान के रोजे न रखने से बदतर समझता हूं, फिर फ़रमाया : जिस ने किसी आलिम की गीबत की तो क़ियामत के दिन उस के चेहरे पर लिखा हुवा होगा, यह अल्लाह की रहमत से ना उम्मीद है।

फ़रमाने नबवी है : “मे‘राज की रात मेरा ऐसी कौम पर गुज़र हुवा जो अपने नाखुनों से अपने चेहरों को छील रहे थे और मुर्दार खा रहे थे, मैं ने जिब्रीले अमीन से पूछा कि : ये कौन लोग हैं ? जिब्रील ने कहा : ये वो लोग हैं जो दुनिया में लोगों का गोश्त खाते रहे हैं ।  (या’नी गीबत करते रहे हैं)

हज़रते हसन रज़िअल्लाहो अन्हो  का क़ौल है : रब्बे जुल जलाल की कसम ! गीबत, लुक्मे के पेट में पहुंचने से भी जल्द तर, मोमिन के दीन में खराबी डाल देती है।

हज़रते सलमान फ़ारिसी रज़िअल्लाहो अन्हो  हज़रते अबूबक्र व उमर रज़िअल्लाहो अन्हो   के हम सफ़र थे और उन के लिये खाना तय्यार करते थे, एक मरतबा ऐसा इत्तिफ़ाक़ हुवा कि हज़रते सलमान रज़िअल्लाहो अन्हो   ने खाने की कोई चीज़ न पाई जिसे तय्यार कर के वह खा सकें, हज़रते अबू बक्र व उमर रज़िअल्लाहो अन्हो  ने इन्हें हुजूर की खिदमत में भेजा कि जा कर देखो वहां कुछ मौजूद है ? उन्हों ने वापस आ कर बतलाया कि वहां कुछ नहीं है, इस पर उन्हों ने कहा : अगर तुम फुलां कूएं की तरफ़ जाते तो उस का पानी भी खुश्क हो जाता, तब यह आयत नाज़िल हुई : या’नी एक दूसरे की ग़ीबत न करो।

हज़रते अबू हुरैरा रज़िअल्लाहो अन्हो  से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  ने फ़रमाया : “जो दुनिया में अपने भाई का गोश्त खाता है कियामत के दिन उस के सामने मुर्दा भाई का गोश्त रखा जायेगा और कहा जायेगा जिसे तु जिंदा खाता था अब इस मुर्दा को भी खा और वह उसे खाएगा, फिर आपने यह आयत पढ़ी “क्या तुम में से कोई यह पसंद करता है की अपने मुर्दा भाई का गोश्त खाए”

गीबत की बदबू अब क्यूं महसूस नहीं होती

हज़रते जाबिर बिन अब्दुल्लाह अन्सारी रज़िअल्लाहो अन्हो  से मरवी है चूंकि हुजूर सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  के अहदे मुबारक में गीबत बहुत कम की जाती थी इस लिये इस की बदबू आती थी मगर अब गीबत इतनी आम हो गई कि मश्शाम इस की बदबू के आदी हो गए हैं कि वह इसे महसूस ही नहीं कर सकते । इस की मिसाल ऐसी है जैसे कोई शख्स चमड़े रंगने वालों के घर में दाखिल हो तो वह उस की बदबू से एक लम्हा भी नहीं ठहर सकेगा मगर वह लोग वहीं खाते पीते हैं और उन्हें बू महसूस ही नहीं होती क्यूंकि उन के मश्शाम (नाक) इस किस्म की बू के आदी हो चुके हैं और यही हाल अब इस गीबत की बदबू का है।

हज़रते का’ब रज़िअल्लाहो अन्हो  का कौल है : “मैं ने किसी किताब में पढ़ा है, जो शख्स गीबत से तौबा कर के मरा वह जन्नत में सब से आखिर में दाखिल होगा और जो गीबत करते करते मर गया वह जहन्नम में सब से पहले जाएगा”, फ़रमाने इलाही है : हर पीठ पीछे बुराइयां करने वाले और तेरी मौजूदगी में बुराइयां करने वाले के लिये जहन्नम का गढ़ा है। यह आयत वलीद बिन मुगीरा के हक़ में नाज़िल हुई जो मुसलमानों के सामने हुजूर सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  और मुसलमानों की बुराइयां किया करता था, इस आयत का शाने नुजूल तो खास है मगर इस की वईद आम है।

 

गीबत जिना से भी बदतर है

रसूले मक़बूल सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  इरशाद फ़रमाते हैं कि अपने आप को गीबत से बचाओ, यह ज़िना से भी बदतर है, पूछा गया : यह ज़िना से कैसे बदतर है ? तो आप ने फ़रमाया : आदमी ज़िना कर के तौबा कर लेता है, अल्लाह तआला उस की तौबा कबूल फ़रमाता है मगर गीबत करने वाले को जब तक वह शख्स जिस की गीबत की गई हो, मुआफ़ न करे, उस की तौबा कबूल नहीं होती”।

लिहाज़ा हर गीबत करने वाले के लिये ज़रूरी है कि वह अल्लाह तआला के हुजूर शर्मिन्दा हो कर तौबा करे ताकि अल्लाह के करम से फैज़याब हो कर फिर उस शख्स से मा’ज़िरत करे जिस की उस ने गीबत की थी ताकि गीबत के अंधियारों से रिहाई हासिल हो ।

फ़रमाने नबवी है कि “जो अपने मुसलमान भाई की गीबत करता है अल्लाह तआला कियामत के दिन उस का मुंह पीछे की तरफ़ फेर देगा”।

इस लिये हर गीबत करने वाले पर लाज़िम है कि वह उस मजलिस से उठने से पहले अल्लाह तआला से मुआफ़ी मांग ले और जिस शख्स की ग़ीबत की है उस तक बात पहुंचने से कब्ल ही रुजूअ कर ले क्यूंकि गीबत के वहां तक पहुंचने से पहले जिस की ग़ीबत की गई हो, अगर तौबा कर ली जाए तो तौबा क़बूल हो जाती है मगर जब बात उस शख्स तक पहुंच जाए तो जब तक वह खुद मुआफ़ न करे तौबा से गुनाह मुआफ़ नहीं होता और इसी तरह शादीशुदा औरत पर ज़िना का मस्अला है, जब तक उस का शोहर मुआफ़ न करे, तौबा कबूल नहीं होगी, रहा नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात का मुआमला तो क़ज़ा अदा किये बिगैर इन की भी तौबा कबूल नहीं होती।

नमाज़ में खुशूअ व खुजूअ की अहमियत

दुरूद शरीफ़की फजीलत

हदीस शरीफ़ में है : एक दिन जिब्रीले अमीन, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम  की ख़िदमत में हाज़िर हुवे और कहा : मैंने आसमानों पर एक ऐसा फ़रिश्ता  देखा जो तख्त नशीन था और सत्तर हज़ार फ़रिश्ते सफ़ बस्ता उस की ख़िदमत में हाज़िर थे, उस के हर सांस से अल्लाह तआला एक फ़रिश्ता पैदा फ़रमाता है, अभी अभी मैं ने उसे शिकस्ता परों के साथ कोहे काफ़ में रोते हुवे देखा है, जब उस ने मुझे देखा तो कहा तुम अल्लाह तआला के हुजूर मेरी सिफ़ारिश करो। मैंने पूछा : तेरा जुर्म क्या है ? उस ने कहा : मे’राज की रात जब मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम  की सवारी गुज़री तो मैं तख्त पर बैठा रहा, ता’ज़ीम के लिये खड़ा नहीं हुवा, इस लिये अल्लाह तआला ने मुझे इस जगह इस अज़ाब में मुब्तला कर दिया है। जिब्रीले अमीन ने कहा : मैंने अल्लाह तआला की बारगाह में रो रो कर उस की सिफारिश की, अल्लाह तआला ने मुझ से फ़रमाया : तुम इस से कहो कि यह मोहम्मद  सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम  पर दुरूद भेजे, चुनान्चे, उस फ़रिश्ते ने आप पर दुरूद भेजा तो अल्लाह तआला ने उस की इस लगज़िश को मुआफ कर दिया और उस के नए पर भी पैदा फ़रमा दिये ।

 

कियामत के दिन सब से पहले नमाज के बारे में पूछा जाएगा।

रिवायत है कि क़ियामत के दिन सब से पहले बन्दे की नमाजें देखी जाएंगी, अगर उस की नमाजें मुकम्मल हुई तो नमाज़ों समेत उस के सारे आ’माल कबूल कर लिये जाएंगे, अगर नमाजें ना मुकम्मल हुई तो नमाज़ों समेत उस के तमाम आ’माल रद्द कर दिये जाएंगे। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम  का फरमान है :फ़र्ज़ नमाज़ तराजू की तरह है, जिस ने इन्हें पूरा किया वोह कामयाब रहा.” हज़रते यज़ीदुर्रकाशी रज़िअल्लाहो अन्हो  कहते हैं : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम  की नमाज़ इस तरह बराबर होती थी जैसे वोह तुली हुई हो.

फ़रमाने नबवी है : “मेरी उम्मत के दो आदमी नमाज़ पढ़ेंगे, उन के रुकूअ सुजूद एक जैसे होंगे मगर उन की नमाज़ों में जमीन आसमान का फ़र्क होगा, एक में खुशूअ होगा और दूसरी बिगैर खुशूअ होगी”.

फ़रमाने नबवी है : अल्लाह तआला क़यामत के दिन उस बन्दे पर नज़रे रहमत नहीं डालेगा जिस ने रुकूअ और सजदे के दरमियान अपनी पीठ को सीधा नहीं किया”

फ़रमाने नबवी है : “जिस ने वक्त पर नमाज़ पढ़ी, वुजू सहीह किया और रुकूअ व सुजूद को खुशूअ व खुजूअ से पायए तक्मील तक पहुंचाया उस की नमाज़ सफ़ेद और बर्राक सूरत में आसमानों की तरफ़ जाती है और कहती है : ऐ बन्दे ! जैसे तू ने मेरी मुहाफ़ज़त की इसी तरह अल्लाह तआला तुझे महफूज़ रखे, लेकिन जिस ने नमाज़ वक्त पर न पढ़ी, न वुजू सहीह किया और अपने रुकूअ व सुजूद को खुशूअ से आरास्ता न किया, उस की नमाज़ काली सियाह शक्ल में ऊपर जाती है और कहती है जैसे तू ने मुझे खराब किया अल्लाह तआला तुझे भी खराब करे, यहां तक कि उसे पुराने कपड़े की तरह लपेट कर उस के मुंह पर मारा जाता है”.

 

बद तरीन शख्स नमाज का चोर है

फ़रमाने नबवी सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम  : “बद तरीन आदमी नमाज़ का चोर है।”

हज़रते इब्ने मसऊद रज़िअल्लाहो अन्हो का कौल है : नमाज़ एक पैमाना है जिस ने इसे पूरा कर दिया वह कामयाब हुवा और जिस ने इस में कमी की उस के लिये अज़ाब है। बा’ज़ उलमा का कौल है नमाज़ी ताजिर की तरह है ताजिर को उसी माल से नफ्अ मिलता है जो ख़ालिस हो, इसी तरह नमाज़ी की इबादत भी फ़राइज़ को अदा किये बिगैर फायदेमंद नहीं होती।

हज़रते अबू बक्र रज़िअल्लाहो अन्हो  नमाज़ के वक्त फ़रमाते : लोगो ! अल्लाह तआला ने तुम्हारे लिये जो आग जलाई है उठो उसे नमाज़ के जरीए बुझा दो।

फ़रमाने नबवी है : “नमाज़ सुकून और तवाजोअ के साथ है, जो अपनी नमाज के बाइस फहूश और बुरे कामों से न रुका, अल्लाह तआला से उस की दूरी बढ़ती जाती है पस गाफ़िल की नमाज़ उसे बुराइयों से नहीं रोकती है”.

 

फ़रमाने नबवी है : “बहुत से नमाज़ी ऐसे हैं जिन को नमाज़ों से दुख और तक्लीफ़ के बिगैर कुछ हासिल नहीं होता”

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम  का इरशाद है : “बन्दे का नमाज़ में वही हिस्सा है जिसे वह कामिल तवज्जोह से पढ़ता है”

अहले मा’रिफ़त कहते हैं : नमाज़ चार चीजों का नाम है, इल्म से आगाज़, हया के साथ कियाम, ता’ज़ीम से अदाएगी और खौफे खुदा के साथ इस का इख़्तिताम.  बा’ज़ मशाइख का कौल है : जिस का दिल नमाज़ की हक़ीक़त को न समझता हो उस की नमाज़ फ़ासिद है।

फ़रमाने रसूले मक़बूल सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम  है : “जन्नत में ‘अफ़्यह’ नाम की एक नहर है जिस में जा’फ़रान से पैदा की हुई हूरें, मोतियों के साथ दिल बहलाती रहती हैं और सत्तर हज़ार ज़बानों में अल्लाह तआला की तस्बीह करती रहती हैं, इन की आवाजें हज़रते दाउद   अलैहिस्सलाम  की अच्छी आवाज़ से ज़ियादा मीठी हैं, वह कहती हैं हम उन के लिये हैं जो खुजूअ व खुशूअ से नमाजें पढ़ते हैं”, अल्लाह तआला फ़रमाता है : मैं ऐसे नमाज़ी को अपने जवारे रहमत में जगह दूंगा और उसे शरफे दीदार से नवाज़ुंगा जो खुजूअ व खुशूअ से नमाज़ अदा करता है।

नमाज़ किस तरह अदा की जाए।

अल्लाह तआला ने हज़रते मूसा .की तरफ़ वही की : ऐ मूसा ! जब तू दिल शिकस्ता हो कर मुझे याद करता है तो मैं तुझे याद करता हूं, कामिल इत्मीनान और खुशूअ से मेरा जिक्र किया कर, अपनी ज़बान को दिल का मुतीअ (फर्माबरदार) बना, मेरी बारगाह में अब्दे ज़लील की तरह हाज़िरी दे, खौफ़ज़दा दिल से मुझे पुकार और सच्चाई की ज़बान से मुझे बुलाता रह ।

अल्लाह तआला ने हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम  पर वह्यी नाज़िल फ़रमाई कि “अपनी उम्मत के गुनहगारों से कह दो ! मेरा ज़िक्र न करें मैं ने अपनी ज़ात की क़सम खाई है कि जो मुझे याद करेगा, मैं उसे याद करूंगा, यह जब मुझे याद करते हैं तो मैं उन पर ला’नत करता हूं”

ऐ अरबाबे होश ! यह तो उन लोगों का हाल है जो गुनहगार हैं मगर यादे खुदा से गाफ़िल नहीं, उन लोगों का क्या हाल होगा जो बदकार भी हैं और यादे खुदा से भी गाफ़िल हैं।

बा’ज़ सहाबा रज़ीअल्लाहो अन्हुम  का कौल है : इन्सान नमाज़ में जिस कदर सुकून व इतमीनान और लज्जत व सुरूर हासिल करता है, उसी कदर कियामत के दिन वह पुर सुकून होगा।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम  ने एक शख्स को देखा वोह नमाज़ में अपनी दाढ़ी से खेल रहा था, आप ने फ़रमाया : अगर इस के दिल में खुशूअ होता तो इस के आ’ज़ा में इस का जुहूर होता(दाढ़ी से इस तरह शाल करने से ज़ाहिर है कि उस के दिल में खुशूअ नहीं है) आप ने फ़रमाया : जिस के दिल में खुशूअ नहीं उस की नमाज़ राएगां (बेफायदा) है”

 

खुशूअ व खुजूअ से नमाज अदा करने वालों की सिफ़ात

अल्लाह तआला ने नमाज़ में खुशूअ व खुजूअ रखने वालों की तारीफ़ कई आयातों में की है, फ़रमाने इलाही है :

( तर्जुमा कन्ज़ुल ईमान – अपनी नमाज़ में गिडगिडाते हैं.

अपनी नमाज़ की हिफाज़त करते हैं.

अपनी नमाज़ के पाबंद हैं. )

किसी ने खूब कहा है : “नमाज़ी तो बहुत हैं मगर खुशूअ से नमाज़ अदा करने वाले कम हैं, हाजी बहुत हैं लेकिन नेक सीरत कम हैं, परन्दे बहुत हैं मगर बुलबुलें कम हैं और आलिम बहुत है मगर आमिल कम हैं।” ।

नमाजे सहीह – सही नमाज़

“सहीह नमाज़” खुशूअ व खुजूअ और इन्किसारी का नाम है और येही कबूलिय्यते नमाज़ की अलामत है क्यूंकि जैसे नमाज़ जायज़ होने की कुछ शर्ते हैं इसी तरह कबूलिय्यते नमाज़ की भी शराइत हैं, जायज़ होने की शर्त फ़राइज़ का अदा करना और कबूलिय्यते नमाज़ की शराइत में खुशूअ और  तकवा सरे फेहरिस्त हैं चुनान्चे, इरशादे रब्बानी है :

तर्जुमा कन्ज़ुल ईमान

बेशक मुराद को पहुंचे ईमान वाले जो अपनी नमाज़ में गिड़गिड़ाते हैं.

तकवा  के बारे में अल्लाह का फरमान है

तर्जुमा कन्ज़ुल ईमान

अल्लाह उसी से कुबूल करता है जिसे डर है.  

 

फ़रमाने नबवी है : “जिस ने कामिल खुशूअ से दो रक्अत नमाज़ अदा की, वह गुनाहों से ऐसा पाक हो जाता है जैसे पैदाइश के दिन पाक था”.

 

नमाज अन्धेरे में पढ़ी जाए।

हक़ीक़त यह है कि नमाज़ में दिल ख़यालाते फ़ासिदा की वज्ह से सहीह मानों में नमाज़ की तरफ़ मुतवज्जेह नहीं हो पाता लिहाज़ा इन ख़यालात से नजात हासिल करना ज़रूरी है। नजात के कई तरीके हैं एक यह भी है कि अन्धेरे में नमाज़ पढ़ी जाए या ऐसी जगह नमाज़ पढ़ी जाए जहां कामिल सुकूत हो, नीचे रंगीन फ़र्श न हो और नमाजी मुनक्कश कपड़े न पहने हो क्यूंकि इन चीज़ों पर जैसे ही नज़र पड़ती है इन्सान उधर मुतवज्जेह होता है, चुनान्चे, हदीस शरीफ़ में है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम ने हज़रते अबू जम रज़िअल्लाहो अन्हो   के भेजे हुवे मुनक्कश कुर्ते में नमाज़ पढ़ी और नमाज़ के फ़ौरन बा’द उतार कर वापस भेज दिया और फ़रमाया : इस ने अभी मुझे नमाज़ में अपनी तरफ़ मुतवज्जेह कर दिया”

एक मरतबा नए जूते पहन कर आप ने नमाज़ पढ़ी, नमाज़ के बाद आप ने उसे उतार दिया और वही पुराने जूते पहन लिये और फ़रमाया : “मैं नमाज़ में इस की तरफ़ देख कर मश्गूल हो गया”

मर्दो के लिये सोने के जेवरात की हुरमत से पहले आप एक दिन सोने की अंगूठी पहन कर मिम्बर पर तशरीफ़ फ़रमा थे, आप ने उसे उतार कर फेंक दिया और फ़रमाया : “यह मुझे अपनी तरफ़ मुतवज्जेह करती है”

 

हज़रते अबू तलहा रज़िअल्लाहो अन्हो  ने एक मरतबा अपने बाग में नमाज़ पढ़ी, अचानक एक परन्दा उड़ा और वोह दरख्तों से निकलने की राह तलाश करने लगा। हज़रते अबू तलहा रज़िअल्लाहो अन्हो   ने तअज्जुब से येह मन्ज़र देखा तो वह अदा शुदा रक्अतों की तादाद भूल गए, आप हुजूर सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम  की बारगाह में हाज़िर हुवे और इस आजमाइश का जिक्र करते हुवे कहने लगे : ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम  मैं ने बाग अल्लाह की राह में दे दिया है, अब आप जैसे चाहें इसे खर्च करें ।

एक और शख्स ने हज़रते उस्मान रज़िअल्लाहो अन्हो   के अहदे खिलाफ़त में अपने उस बाग में जो खजूरों से लदा हुवा था, नमाज़ पढ़ी तो उस की नज़र खजूरों के फल देखने में ऐसी उलझी कि उसे रक्अतों की तादाद याद न रही, नमाज़ खत्म कर के वोह हज़रते के पास आया और कहने लगा : मैं ने इस बाग को अल्लाह के नाम पर बख़्श दिया है, इसे अल्लाह के रास्ते में खर्च कर दीजिये। हज़रते उस्मान रज़िअल्लाहो अन्हो   ने वोह बाग पचास हज़ार रूपये में बेच दिया।

अस्लाफ़े किराम में से बा’ज़ हज़रात का इरशाद है कि नमाज़ में चार चीजें इन्तिहाई बुरी हैं, किसी दूसरी तरफ़ मुतवज्जेह होना, मुंह पर हाथ फेरना, कंकरियां साफ़ करना और गुज़रगाह (चालू रास्ते) पर नमाज़ शुरूअ कर देना।

अल्लाह तआला अपने बन्दे की तरफ मुतवज्जेह रहता है।

फ़रमाने नबवी है कि “अल्लाह तआला अपने बन्दे की तरफ़ मुतवज्जेह रहता है जब तक वह अपनी तवज्जोह नमाज़ से नहीं हटाता”

हज़रते अबू बक्र रज़िअल्लाहो अन्हो  जब नमाज़ में खड़े होते तो ऐसा मा’लूम होता था जैसे कोई मीख गड़ी हुई है। बा’ज़ हज़रात इतने सुकून से रुकूअ करते कि परन्दे उन्हें पत्थर  समझ कर उन की पीठ पर बैठ जाते।

ज़ौक ए सलीम भी इस बात का तकाज़ा करता है कि जब दुन्यावी शानो शौकत वाले इन्सानों के हुजूर लोग इन्तिहाई ता’ जीम से हाज़िर होते हैं तो उस बादशाहों के बादशाह के हुजूर तो ब तरीके औला ता’ज़ीम व तकरीम से हाज़िर होना चाहिये।

‘तौरात’ में मरकूम है : “ऐ इन्सान ! मेरी बारगाह में रोते हुवे हाजिरी देने से न घबरा मैं (तेरा खुदा) तेरे दिल से भी ज़ियादा करीब हूं और हर जगह मेरा नूर जल्वा फ़िगन है”

रिवायत है : हज़रते उमर रज़िअल्लाहो अन्हो   ने मिम्बर पर फ़रमाया : हालते इस्लाम में इन्सान बूढ़ा हो जाता है मगर उस की नमाज़ कामिल नहीं होती। पूछा गया : वोह कैसे ? फ़रमाया : दिल में खुशूअ न आया, इन्किसारी पैदा न हुई और नमाज़ में अल्लाह तआला की तरफ़ हमातन मुतवज्जेह न बना । (तो फिर नमाज़ कैसे कामिल हुई ?)

अबुल आलिया रहमतुल्लाह अलैह  से इस आयत “ अल्लज़ी ना हुम अन सलाती हिम साहून”  के मा’ना दरयाफ्त किये गए, उन्हों ने कहा : येह उस शख्स के बारे में है जो नमाज़ में भूल जाता है और उसे येह पता नहीं चलता कि उस ने दो रक्अत पढ़ी है या तीन ?

हज़रते हसन रहमतुल्लाह अलैह  का कौल है कि यह इरशादे इलाही उस शख्स के बारे में है जो नमाज़ को भूल जाता है यहां तक कि उस का वक़्त ख़त्म हो जाता है।

नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम  का इरशाद है :अल्लाह तआला फ़रमाता है कि मेरे बन्दे फ़राइज़ को अदा किये बिगैर मुझ से रिहाई नहीं पा सकेंगे”

फज़ीलते रहम – रहम करने पर सवाब 

रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  का इरशाद है :

“जन्नत में रहम करने वाला ही दाखिल होगा, सहाब ए किराम ने कहा : हम सब रहम  करने वाले हैं, आप ने फ़रमाया : रहीम वो नहीं जो अपने आप पर रहम  करे बल्कि रहीम वो है जो अपने आप पर और दूसरों पर रहम  करे” ।

 

रहम की हकीकत

अपने आप पर रहम  करने का मतलब यह है कि खुलूसे दिल से इबादत कर के गुनाहों से किनारा कश हो कर और तौबा कर के अपने वुजूद को अल्लाह के अज़ाब से बचाए, दूसरों पर रहम  यह है कि किसी मुसलमान को तक्लीफ़ न दे।

फ़रमाने हुजूरे अनवर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  है :

“मुसलमान वह है जिस के हाथ और जबान से लोग महफूज रहें और वह जानवरों पर रहम  करे, उन से उन की ताकत के मुताबिक काम ले”। –

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  का फ़रमान है :

“एक शख्स सफ़र में जा रहा था कि उसे रास्ते में सख्त प्यास लगी, उसे करीब ही एक कूआं नज़र आया, जब कूएं से पानी पी कर चला तो देखा एक कुत्ता प्यास के मारे ज़बान बाहर निकाले पड़ा है, उसे ख़याल आया कि इसे भी मेरी तरह प्यास लगी होगी, वह वापस गया, मुंह में पानी भर कर कुत्ते के पास आया और उसे पिला दिया, अल्लाह तआला ने महज़ इसी रहम  की बदौलत उस के गुनाहों को मुआफ़ कर दिया”।

सहाबए किराम ने सुवाल किया : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम   जानवरों पर शफ़्क़त करने से भी हमें सवाब मिलता है? आप ने फ़रमाया : हर जानदार पर रहम का अज्र मिलता है”।

हज़रते अनस बिन मालिक रज़ीअल्लाहो अन्हो  से मरवी है : एक रात हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो  गश्त लगा रहे थे कि आप का गुज़र एक काफ़िले से हुवा, आप को अन्देशा हुवा कहीं कोई उन का सामान न चुरा ले, रास्ते में इन्हें हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ीअल्लाहो अन्हो  मिले और उन्हों ने पूछा : अमीरुल मोमिनीन ! इस वक्त कहां तशरीफ़ ले जा रहे हैं ? आप ने फ़रमाया : एक काफ़िला करीब उतरा है, मुझे डर है कहीं कोई चोर उन का सामान न ले जाए, चलो उन की निगहबानी करें, येह दोनों हज़रात काफ़िले के करीब जा कर बैठ गए और सारी रात पहरा देते रहे यहां तक कि सुब्ह हो गई, हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो  ने आवाज़ दी ऐ काफ़िले वालो ! नमाज़ के लिये उठो ! जब क़ाफ़िले वाले जाग गए तो येह हज़रात वापस लौटे।

पस हमारे लिये ज़रूरी है कि हम सहाबए किराम के नक्शे कदम पर चलें, अल्लाह तआला ने उन की तारीफ़ में इरशाद फ़रमाया :

“वो मुसलमानों पर बल्कि तमाम मख्लूक पर रहम  करने वाले हैं यहां तक कि ज़िम्मी काफ़िर भी उन की निगाहे शफ़्क़त से महरूम न रहे”।

हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो  ने एक बुड्ढे ज़िम्मी को लोगों के दरवाज़ों पर भीक मांगते हुवे देखा तो फ़रमाया हम ने तेरे साथ इन्साफ़ नहीं किया, जवानी में तुझ से जिज्या लेते रहे और बुढ़ापे में तुझे दर बदर ठोकरें खाने को छोड़ दिया, आप ने उसी वक्त बैतुल माल से उस का वज़ीफ़ा मुकर्रर कर दिया”।

हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो  से मरवी है : मैंने एक सुब्ह हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो  को देखा एक वादी में ऊंट पर सुवार चले जा रहे हैं, मैं ने पूछा : अमीरुल मोमिनीन कहां जा रहे हैं ? आप ने फ़रमाया : सदके के ऊंटों में से एक ऊंट गुम हो गया है। उसे तलाश कर रहा हूं, मैं ने कहा आप ने बाद में आने वाले खुलफ़ा को मुश्किल में डाल दिया है, हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो  ने जवाब में कहा : ऐ अबुल हसन ! रज़ीअल्लाहो अन्हो  मुझे मलामत न करो, रब्बे जुल जलाल की कसम ! जिस ने मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम   को नबिय्ये बरहक़ बना कर भेजा, अगर दरयाए फुरात के किनारे एक साल का भेड़ का बच्चा भी मर जाए तो कियामत के दिन उस के बारे में मुआखज़ा होगा क्यूंकि उस अमीर की कोई इज्जत नहीं जिस ने मुसलमानों को हलाक कर दिया और न ही उस बदबख़्त का कोई मक़ाम है जिस ने मुसलमानों को ख़ौफ़ज़दा किया।

रहम के बारे में इरशादाते नबविय्या सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम   

फ़रमाने मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम   है :

“मेरी उम्मत के लोग जन्नत में नमाज़ रोज़ों की कसरत से नहीं बल्कि दिलों की सलामती, सखावत और मुसलमानों पर रहम करने की बदौलत दाखिल होंगे”

हुजूरे अनवर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  का इरशाद है :

“रहम  करने वालों पर अल्लाह तआला रहम  करता है तुम ज़मीन वालों पर रहम करो आसमान वाला तुम पर रहम  फ़रमाएगा”।

फ़रमाने नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम   है :

जो किसी पर रहम  नहीं करता, उस पर रहम  नहीं किया जाता जो किसी को नहीं बख़्शता उसे नहीं बख्शा जाता”।

हज़रते मालिक बिन अनस रज़ीअल्लाहो अन्हो  से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम   ने फ़रमाया :

 “तुम पर मुसलमानों के चार हुकूक हैं अपने मोहसिन की इमदाद करो, गुनाहगार के लिये मगफिरत तलब करो, मरीज़ की इयादत करो, और तौबा करने वाले को दोस्त रखो”।

रिवायत है कि हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम   ने अल्लाह तआला से सुवाल किया : ऐ अल्लाह ! तू ने मुझे किस वज्ह से सफ़ी बनाया है ? रब तआला ने फ़रमाया : मख्लूक पर तेरे रहम  करने की वज्ह से।

हज़रते अबू दरदा रज़ीअल्लाहो अन्हो  बच्चों से चिड़या खरीद कर उन्हें छोड़ देते और फ़रमाते जाओ आज़ादी की ज़िन्दगी बसर करो।

फरमाने नबवी स.अ.व. है कि

“रहमत, शफ्कत और महब्बत में तमाम मुसलमान एक जिस्म की तरह हैं, जब जिस्म का कोई हिस्सा तक्लीफ़ में मुब्तला हो जाता है तो सारा जिस्म उस दर्द और तक्लीफ़ में मुब्तला हो जाता है”।

हिकायत – बनी इस्राईल का रहमदिल इंसान

बनी इस्राईल पर सख्त कहूत का ज़माना था, एक आबिद का रैत के टीले से गुज़र हुवा तो उस के दिल में ख़याल आया काश येह रैत का टीला आटे का टीला होता और मैं इस से बनी इस्राईल के पेट भरवाता, अल्लाह तआला ने बनी इस्राईल के नबी की तरफ़ वह्यी  भेजी, मेरे उस बन्दे से कह दो कि तुझे इस टीले के बराबर बनी इस्राईल को आटा खिलाने से जितना सवाब मिलता हम ने तुम्हारी इस नियत की बदौलत ही उतना सवाब दे दिया है, इसीलिये फ़रमाने नबवी है, “मोमिन की नियत उस के अमल से बेहतर है”।

हिकायत – ईसा अलैहिस्सलाम  और शैतान का किस्सा

हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम  एक मरतबा कहीं जा रहे थे, आप ने शैतान को देखा, एक हाथ में शहद और दूसरे में राख लिये चला जा रहा था, आप ने पूछा : ऐ दुश्मने ख़ुदा ! येह शहद और राख तेरे किस काम आती है? शैतान ने कहा : शहद गीबत करने वालों के होटों पर लगाता हूं ताकि वो और आगे बढ़ें, राख यतीमों के चेहरों पर मलता हूं ताकि लोग इन से नफरत करें।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  ने फ़रमाया :

“जब यतीम को दुख दिया जाता है तो उस के रोने से अल्लाह तआला का अर्श कांप जाता है, और रब्बे जुल जलाल फ़रमाता है : ऐ फरिश्तो  ! इस यतीम को जिस का बाप मनो मिट्टी तले दफ्न हो चुका है, किस ने रुलाया है ?”

हुजूरे अनवर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  का इरशाद है कि  “जिस ने यतीम के लिबास व खाने की जिम्मेदारी ले ली, अल्लाह तआला ने उस के लिये जन्नत को वाजिब कर दिया”।

‘रौजतुल उलमा’ में है कि हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम  खाने से पहले मील दो मील का चक्कर लगा कर मेहमानों को तलाश किया करते थे। एक मरतबा हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो  रो पड़े, पूछा गया : आप क्यूं रोए ? आप ने फ़रमाया : एक हफ्ता हो गया, मेरे यहाँ कोई मेहमान नहीं आया, शायद अल्लाह तआला मुझ से खुश नहीं है।

फ़रमाने नबवी है :

“जो किसी भूके को फ़ी सबीलिल्लाह खाना खिलाता है उस के लिये जन्नत वाजिब हो जाती है और जिस ने किसी भूके से खाना रोक लिया अल्लाह तआला कियामत के दिन उस शख्स से अपना करम रोक लेगा और अज़ाब देगा”।

सखावत, सदका करने, गरीबों को देने, खाना खिलाने के बारे में हदीसे पाक  

सखी, अल्लाह के करीब और जहन्नम से दूर होता है।

फ़रमाने नब स.अ.व. है : “सखी अल्लाह तआला, जन्नत और लोगों के करीब होता है और जहन्नम से दूर होता है, बखील अल्लाह तआला, जन्नत और लोगों से दूर होता है और जहन्नम से करीब होता है”।

फ़रमाने नबवी है कि “जाहिल सखी, अल्लाह तआला को आबिद बख़ील से ज़ियादा पसन्द है”।

फ़रमाने नबवी है कि “क़ियामत के दिन चार शख्स बिला हिसाब जन्नत में दाखिल होंगे, आलिमे बा अमल, हाजी जिस ने हज के बाद मौत तक गुनाहों का इर्तिकाब न किया, शहीद जो अल्लाह के कलिमे को बुलन्द करने के लिये मैदाने जंग में मारा गया, सखी जिस ने माले हलाल कमाया और अल्लाह की रज़ा के लिए खर्च कर दिया, यह लोग एक दूसरे से इस बात पर झगड़ेंगे कि जन्नत में पहले कौन दाखिल होता है”।

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो  से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम   ने फ़रमाया : “अल्लाह ने अपने बा‘ज़ बन्दों को मालो दौलत से माला माल कर दिया ताकि वोह लोगों को फाइदा पहुंचाते रहें जो शख्स फ़ाइदा पहुंचाने में पसो पेश करता है, अल्लाह तआला उस की दौलत किसी और को दे देता है”।

फरमाने नबवी है : “सखावत बहिश्त का एक दरख्त है जिस की शाखें जमीन पर झुकी हुई हैं जिस ने उस की किसी शाख को थाम लिया वो उसे जन्नत में ले जाएगी”।

हज़रते जाबिर रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : “हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम   से पूछा गया कि कौन सा अमल अफ़ज़ल है ? आप ने फ़रमाया : सब्र और सखावत”।

हज़रते मिक्दाम बिन शुरीह रहमतुल्लाह अलैह  अपने वालिद और अपने जद से रिवायत करते हैं, इन के दादा ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  की खिदमत में अर्ज की, कि मुझे ऐसा अमल बतलाइये जो मुझे जन्नत का मकीन बना दे। आप ने फ़रमाया : “मगफिरत के अस्बाब में से खाना खिलाना, सलाम करना और खुश अख़्लाक़ी है”।

अमानत और तौबा

फजीलते दुरूदे पाक

हज़रते मोहम्मद बिन मुन्कदिर रहमतुल्लाह अलैह  अपने वालिद से रिवायत करते हैं कि हज़रते सुफ्यान सौरी रहमतुल्लाह अलैह  ने तवाफ़े का’बा करते हुवे एक ऐसे जवान को देखा जो कदम कदम पर दुरूद शरीफ़ पढ़ रहा था। सुफ्यान सौरी रहमतुल्लाह अलैह  कहते हैं : मैंने कहा : ऐ जवान ! तुम तस्बीह व तहलील छोड़ कर सिर्फ दुरूद शरीफ़ ही पढ़ रहे हो ? क्या इस की कोई खास वजह है ?

जवान ने पूछा : आप कौन हैं ? मैं ने जवाब दिया : सुफ़्यान सौरी ! उस ने कहा : अगर आप का शुमार अल्लाह तआला के नेक बन्दों में न होता तो मैं कभी भी आप को येह राज़ न बताता ! हुवा यूं कि मैं अपने वालिद के हमराह हज के इरादे से निकला, रास्ते में एक जगह मेरे वालिद सख़्त बीमार हो गए, मैंने बहुत कोशिश की मगर उन्हें  मौत से न बचा सका, मौत के बाद उन का चेहरा सियाह हो गया, मैंने “इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन”  पढ़ कर उन का चेहरा ढक दिया,

इसी गम की कैफ़ियत में मेरी आंखें बोझल हो गई और मुझे नींद आ गई । ख्वाब में मैंने एक ऐसे हसीन को देखा जो हुस्न में बे मिसाल था, उस का लिबास नफासत का आईनादार था और उस के वुजूदे मसऊद से खुश्बू की लपटें उठ रही थीं, वह नाजुक खिरामी के साथ आया और मेरे वालिद के चेहरे से कपड़ा हटा कर हाथ से चेहरे की तरफ इशारा किया मेरे वालिद  का चेहरा सफ़ेद हो गया जब वोह वापस तशरीफ़ ले जाने लगे तो मैंने दामन थाम कर अर्ज की : अल्लाह तआला ने आप के तुफैल इस गरीबुल वतनी में मेरे वालिद  की आबरू रख ली, आप कौन हैं ?

उन्हों ने फ़रमाया : तुम मुझे नहीं पहचानते ? मैं साहिबे कुरआन अल्लाह का नबी मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह हूं (स.अ .व.) तेरा बाप अगर्चे बहुत गुनहगार था मगर मुझ पर कसरत से दुरूद भेजता था, जब इस पर मुसीबत नाज़िल हो गई तो इस ने मुझ से मदद तलब की और मैं हर उस शख्स का जो मुझ पर कसरत से दुरूद भेजता है, फ़रयाद-रस हूं। जवान ने कहा : इस के बाद अचानक मेरी आंख खुल गई, मैं ने देखा मेरे वालिद का चेहरा सफेद हो चुका था।

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हज़रते अम्र बिन दीनार रहमतुल्लाह अलैह  अबू जा’फ़र रहमतुल्लाह अलैह  से रिवायत करते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम   ने फ़रमाया : “जो मुझ पर दुरूद भेजना भूल गया, उस ने जन्नत का रास्ता खो दिया”

अमानत का मतलब

‘अमानत’ अम्न से माखूज़ है और कोई शख्स हक़ को छोड़ कर मामून नहीं रहता, अमानत का उल्टा खियानत है जो खौन से मुश्तक है जिस का माना है कम करना, क्यूंकि जब तुम किसी चीज़ में खियानत करोगे तो उस में कमी वाकेअ हो जाएगी।

 

अमानत के बारे में इरशादाते नबवी

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  का इरशाद है कि “धोका, फ़रेब और खियानत, जहन्नमियों का शेवा है”

मजीद इरशाद फरमाया कि “जिस ने लोगों के साथ मुआमलात में ज़ुल्म नहीं किया और उन से झूटी बातें नहीं कहीं, उस की मुरादें मुकम्मल हो गई, अदालत जाहिर हो गई और उस से भाईचारा रखना ज़रूरी हो गया”.

एक आ’राबी, कौम की तारीफ़ में कहता है : वह अमीन हैं किसी के साथ धोका नहीं करते, किसी मुसलमान की हुरमत को पामाल नहीं करते और उन के जिम्मे किसी का हक़ बाकी नहीं है, वह बेहतरीन कौम हैं।

आ’राबी के ममदूहीन गुज़र चुके हैं, अब तो इन्सानी लिबास में भेड़िये फिरते हैं, जैसे किसी ने कहा है :

.उस शख्स के लिये जो इन्सान पर उस की इनाबतों (खुदा की तरफ रुजु करना) के बा वुजूद भरोसा करता है तो फिर इज्जत दार आज़ाद शख्स के लिये ठिकाना कहां रहेगा। …चन्द लोगों को छोड़ कर बाकी सब इन्सानी लिबास में भेड़िये हैं।

एक और शाइर कहता है :….वोह लोग चले गए जिन के चले जाने पर कहा जाता था, काश ! यह शहर वीरान हो जाते और कियामत आ जाती।

हज़रते हुजैफ़ा रज़ीअल्लाहो अन्हो  से मरवी है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  ने फ़रमाया कि “अन करीब अमानत उठा ली जाएगी, लोग बाहम तिजारत करेंगे मगर अमीन कोई नहीं होगा यहां तक कि कहा जाएगा : फुलां कबीले में फुलां आदमी अमीन है,” (या’नी अमीन आदमी ढूंडने से भी नहीं मिलेगा।)

तौबा का वुजूब

तौबा का वुजूब आयाते कुरआनी और अहादीस से साबित है, फ़रमाने इलाही है :

इस आयत में अल्लाह तआला ने मोमिनों को हुक्म दिया है कि वो तौबा करें ताकि उन को फलाह मयस्सर हो । दूसरी आयत में है :

लफ्जे नसूह “नस्ह” से माखूज़ है जिस के मा’ना हैं खालिसतन अल्लाह के लिये तौबा करना जो तमाम उयूब से पाक हो ।

तौबा की फ़ज़ीलत अल्लाह तआला के इस फरमान से साबित होती है :

 “बेशक अल्लाह तआला तौबा करने वालों और पाक रहने वालों को महबूब रखता हैऔर फ़रमाने नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम है,“तौबा करने वाला अल्लाह का दोस्त है, और तौबा करने वाला उस इन्सान की तरह है जिस ने कोई गुनाह न किया हो”।

तौबा के बारे में इरशादाते नबविय्या स.अ.व. (हदीस ए पाक )

फ़रमाने नबवी है कि “रहमते खुदावन्दी को उस इन्सान की तौबा से ज़ियादा मसर्रत होती है जो हलाकत खैज़ ज़मीन में अपनी सुवारी पर खाने पीने का सामान लादे सफ़र कर रहा हो और वहां आराम की गरज से रुक जाए, वोह सर रखे तो उसे नींद आ जाए, जब सो कर उठे तो उस की सुवारी मअसामान के गाइब हो और वोह उस की जुस्त्जू में निकले यहां तक कि शिद्दते गर्मी और प्यास से बदहाल हो कर उसी जगह वापस आ जाए जहां वोह पहले सोया था और मौत के इन्तिज़ार में अपने बाजू का तक्या बना कर लैट जाए, अब जो वोह जागा तो उस ने देखा कि उस की सुवारी मअ-सामान उस के करीब मौजूद है। अल्लाह तआला को बन्दे की तौबा से उस सुवारी वाले शख्स से भी जियादा खुशी होती है जिस का सामान जागने के बाद उस को मिल गया है।”

हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो  से मरवी है कि जब अल्लाह तआला ने हज़रते आदम अलैहिस्सलाम की तौबा क़बूल फ़रमाई तो फ़िरिश्तों ने उन्हें मुबारक बाद पेश की, जिब्रील व मीकाईल अलैहिस्सलाम  हाज़िर हुवे और कहा : ऐ आदम ! आप ने तौबा कर के अपनी आंखों को ठन्डा कर लिया । आदम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया : अगर इस तौबा की क़बूलिय्यत के बाद रब से फिर सुवाल करना पड़ा तो क्या होगा? अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम पर वह्यी नाज़िल फ़रमाई कि “ऐ आदम ! तू ने अपनी औलाद को मेहनत और दुख तक्लीफ़ का वारिस बनाया और हम ने उन्हें तौबा बख़्शी, जो भी मुझे पुकारेगा मैं तेरी तरह उस की पुकार को सुनूंगा, जो मुझ से मगफिरत का सवाल करेगा मैं उसे ना उम्मीद नहीं करूंगा क्यूंकि मैं करीब हूं, दुआओं को कबूल करने वाला हूं, मैं तौबा करने वालों को उन की कब्रों से इस तरह उठाऊंगा कि वोह हंसते मुस्कुराते हुवे आएंगे, उन की दुआएं मक़बूल होंगी”.

फ़रमाने नबवी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम है : “अल्लाह तआला का दस्ते रहमत रात के गुनहगारों के लिये सुब्ह तक और दिन के गुनहगारों के लिये रात तक दराज़ रहता है उस वक्त तक कि जब मग़रीब से सूरज तुलूअ होगा और तौबा का दरवाज़ा बन्द हो जाएगा। (या’नी क़ियामत तक अल्लाह तआला बन्दों की तौबा क़बूल फ़रमाएगा।)

रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशादे गिरामी है कि “अगर तुम ने आसमान के बराबर गुनाह कर लिये और फिर शर्मिन्दा हो कर तौबा कर ली तो अल्लाह तआला तुम्हारी तौबा कबूल कर लेगा”.

फ़रमाने नबवी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम है, “आदमी गुनाह करता है फिर उसी गुनाह के सबब जन्नत में दाखिल होता है पूछा गया : हुजूर वोह कैसे ? आप ने फ़रमाया : गुनाह के बाद फ़ौरन उस की आंखें बारगाहे रब्बुल इज्जत में अश्कबार हो जाती हैं”

फ़रमाने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम है कि “नदामत गुनाहों का कफ्फारा है”

नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशादे गिरामी है : गुनाहों से तौबा करने वाला ऐसा है जैसे उस ने कोई गुनाह न किया हो।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम   की ख़िदमत में एक हबशी हाज़िर हुवा और अर्ज की : या रसूलल्लाह ! मैं खताएं करता हूं, क्या मेरी तौबा क़बूल होगी ? आप ने फ़रमाया : हां ! वोह कुछ दूर जा कर वापस लौट आया और दरयाफ़्त किया कि जब मैं गुनाह करता हूं तो अल्लाह तआला देखता है ? आप ने इरशाद फ़रमाया : हां ! हबशी ने इतना सुनते ही एक चीख मारी और उस की रूह परवाज़ कर गई ।

जिन्दगी के आखिरी सांस तक तौबा कबूल होगी

रिवायत है कि जब अल्लाह तआला ने इब्लीस को मलऊन करार दिया तो उस ने कियामत तक के लिये मोहलत मांगी, अल्लाह ने उसे मोहलत दे दी तो वोह कहने लगा : मुझे तेरे इज्जतो जलाल की कसम ! जब तक इन्सान की ज़िन्दगी का रिश्ता काइम रहेगा मैं उसे गुनाहों पर उक्साता रहूंगा, रब्बुल इज्जत ने फ़रमाया : मुझे अपने इज्जतो जलाल की कसम ! मैं उन की ज़िन्दगी की आखिरी सांसों तक उन के गुनाहों पर तौबा का पर्दा डालता रहूंगा”

फ़रमाने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  है : “नेकियां गुनाहों को इस तरह दूर ले जाती हैं जैसे पानी मेल को बहा ले जाता है”(दूर कर देता है)।

हज़रते सईद बिन मुसय्यिब रज़ीअल्लाहो अन्हो  से मरवी है कि यह आयत

उस शख्स के बारे में नाज़िल हुई जो गुनाह करता फिर तौबा कर लेता फिर गुनाह करता और फिर तौबा कर लेता था।

हज़रते फुजैल रहमतुल्लाह अलैह  का क़ौल है : रब्बे जुल जलाल का इरशाद है : गुनहगारों को बशारत दे दो, अगर वोह तौबा करें तो मैं कबूल कर लूंगा, सिद्दीक़ीन को मुतनब्बेह कर दीजिये अगर मैं ने आ’माल का वज़्न किया तो उन्हें अज़ाब से कोई नहीं बचा सकता।

हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो  का इरशाद है : जो गुनाहों की याद में पशेमान हो गया और उस का दिल खौफे खुदा से कांप गया, उस के गुनाहों को मिटा दिया जाता है।

 

तौबा का दरवाज़ा कभी बन्द नहीं होता

हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो  से एक शख्स ने दरयाफ्त किया : मैं गुनाह कर के इन्तिहाई शर्मिन्दा हूं, मेरे लिये तौबा है ? आप ने मुंह फेर लिया, जब दोबारा उस शख्स की तरफ़ देखा तो आप की आंखों से आंसू रवां थे, फ़रमाया : जन्नत के आठ दरवाज़े हैं, खोले भी जाते हैं और बन्द भी किये जाते हैं सिवाए बाबे तौबा के, वोह कभी भी बन्द नहीं होता और इसी काम के लिये उस पर एक फरिश्ता मामूर है। अमल करता रह और रब की रहमत से ना उम्मीद न हो।

रिवायत है कि बनी इस्राईल में से एक जवान शख्स ने बीस साल मुतवातिर अल्लाह तआला की इबादत की, फिर बीस साल गुनाहों में बसर किये, एक मरतबा आईना देखा तो उसे दाढ़ी में बुढ़ापे के आसार नज़र आए, वोह बहुत गमगीन हुवा और बारगाहे रब्बुल इज्जत में गुज़ारिश की : ऐ रब्बे जुल जलाल ! मैं ने बीस साल तेरी इबादत की, फिर बीस साल गुनाहों में बसर किये, अब अगर मैं तेरी तरफ़ लौट आऊं तो मुझे कबूल कर लेगा? उस ने हातिफ़े गैबी की आवाज़ सुनी, वोह कह रहा था : तू ने हम से महब्बत की, हम ने तुझे महबूब बनाया, तू ने हमें छोड़ दिया हम ने तुझे छोड़ दिया, तू ने गुनाह किये हम ने मोहलत दे दी, अब अगर तू हमारी बारगाह में लौटेगा तो हम तुझे शरफे कबूलिय्यत बख्शेंगे।

तौबा के बारे में सरवरे कोनेन सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  का इरशादे गिरामी

 हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो  से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  ने फ़रमाया “जब बन्दा तौबा करता है, अल्लाह तआला उस की तौबा कबूल कर लेता है, मुहाफ़िज़ फ़िरिश्ते उस के माज़ी (past)  के गुनाहों को भूल जाते हैं, उस के आजा ए जिस्मानी (शरीर के अंग) उस की खताओं को भूल जाते हैं, जमीन का वोह टुकड़ा जिस पर उस ने गुनाह किया है और आसमान का वो हिस्सा जिस के नीचे उस ने गुनाह किया है उस के गुनाहों को भूल जाते हैं, जब वह कियामत के दिन आएगा तो उस के गुनाहों पर गवाही देने वाला कोई नहीं होगा”.

हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो  से मरवी है हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  ने फ़रमाया कि “मख्लूक की पैदाइश से चार हजार बरस क़ब्ल अर्श के चारों तरफ़ लिख दिया गया था कि “जिस ने तौबा की और ईमान लाया और नेक अमल किये मैं उसे बख्शने वाला हूं”. सगीरा और कबीरा तमाम गुनाहों से तौबा फ़र्जे ऐन है क्यूंकि सगीरा गुनाहों पर इस्रार उन्हें कबीरा गुनाह बना देता है।

तौबए नसूह यह है कि इन्सान ज़ाहिरो बातिन से तौबा करे और आगे गुनाह न करने का पक्का इरादा करे, जो शख्स ज़ाहिरी तौर पर तौबा करता है उस की मिसाल ऐसे मुर्दार की है जिस पर रेशम व कम ख्वाब की चादरें डाल दी गई हों, और लोग उसे हैरत व इस्ति’जाब से देख रहे हों, जब उस से चादरें हटा ली जाएं तो लोग मुंह फेर कर चल दें, इसी तरह लोग इबादते रियाई करने वालों को तअज्जुब की निगाह से देखते रहते हैं लेकिन कियामत का दिन होगा तो इन के फ़रेब का पर्दा चाक कर दिया जाएगा और फरिश्ते मुंह फेर कर चल देंगे चुनान्चे, रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम   ने इरशाद फ़रमाया : अल्लाह तआला तुम्हारी सूरतों को नहीं देखता बल्कि तुम्हारे दिलों को देखता है”.

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : क़ियामत के दिन बहुत से लोग ऐसे होंगे जो खुद को ताइब समझ कर आएंगे मगर उन की तौबा क़बूल नहीं हुई होगी इस लिये कि उन्हों ने तौबा के दरवाजे को शर्मिन्दगी से मुस्तहकम नहीं किया होगा, तौबा के बाद गुनाह न करने का अज्म नहीं किया होगा, गुनाहों को अपनी पूरी  ताकत से दूर नहीं किया होगा और आसान उमूर के जवाज़ के सिलसिले में जो काम उन्हों ने किये हैं और उन से तलबे मगफिरत में उन्हों ने कोई एहतिमाम नहीं किया और उन के लिये येह बात आसान है कि अल्लाह तआला उस से राजी हो जाए

गुनाहों को भूल जाना बहुत खतरनाक बात है, हर अक्लमन्द के लिये ज़रूरी है कि वह अपने नफ्स का मुहासबा करता रहे और अपने गुनाहों को न भूले।

(1)…..ऐ गुनाहों को शुमार करने वाले मुजरिम ! अपने गुनाहों को मत भूल और गुज़श्ता गलतियों को याद करता रह। (2)……मौत से पहले अल्लाह तआला की तरफ़ रुजूअ कर ले, गुनाहों से रुक जा और गलतियों का ए’तिराफ़ कर ले।

फ़क़ीह अबुल्लैस रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है : हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो एक मरतबा हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  की खिदमत में रोते हुवे हाज़िर हुवे, आप ने दरयाफ्त फ़रमाया कि ऐ उमर ! क्यूं रोते हो ? अर्ज की : हुजूर ! दरवाजे पर खड़े हुवे जवान की गिर्या व ज़ारी ने मेरा जिगर जला दिया है। आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम   ने फ़रमाया : उसे अन्दर बुलाओ ! जब जवान हाज़िरे खिदमत हुवा तो आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम   ने पूछा : ऐ जवान ! तुम किस लिये रो रहे हो ?

अर्ज की : हुजूर मैं अपने गुनाहों की कसरत और रब्बे जुल जलाल की नाराजी के ख़ौफ़ से रो रहा हूं। आप ने पूछा : क्या तू ने शिर्क किया है ? कहा : नहीं या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  ,

आप ने दोबारा पूछा : क्या तू ने किसी को ना हक़ क़त्ल किया है ? अर्ज किया : नहीं या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  ! आप ने इरशाद फ़रमाया : अगर तेरे गुनाह सातों आस्मानों, जमीनों और पहाड़ों के बराबर हों तब भी अल्लाह तआला अपनी रहमत से बख़्श देगा।

जवान बोला : या रसूलल्लाह ! मेरा गुनाह इन से भी बड़ा है, आप ने फ़रमाया : तेरा गुनाह बड़ा है या कुरसी ? अर्ज की : मेरा गुनाह, आप ने फ़रमाया : तेरा गुनाह बड़ा है या अर्शे इलाही ? अर्ज की : मेरा गुनाह, आप ने फ़रमाया तेरा गुनाह बड़ा है या रब्बे जुल जलाल ! अर्ज की रब्बे जुल जलाल बहुत अज़ीम है। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम   ने फ़रमाया : बिला शुबा जुर्मे अज़ीम को रब्बे अजीम ही मुआफ़ फ़रमाता है। फिर आप ने फ़रमाया : तुम मुझे अपना गुनाह तो बतलाओ, अर्ज की : हुजूर मुझे आप के सामने अर्ज करते हुवे शर्म आती है, आप ने फ़रमाया : कोई बात नहीं तुम बतलाओ ! अर्ज की : हुजूर मैं सात साल से कफ़न चोरी कर रहा हूं, अन्सार की एक लड़की फ़ौत हो गई तो मैं उस का कफ़न चुराने जा पहुंचा, मैं ने कब्र खोद कर कफ़न ले लिया और चल पड़ा, कुछ ही दूर गया था कि मुझ पर शैतान गालिब आ गया और मैं उलटे कदम वापस पहुंचा और लड़की से बदकारी की । मैं गुनाह कर के अभी चन्द ही कदम चला था कि लड़की खड़ी हो गई और कहने लगी : ऐ जवान, ख़ुदा तुझे गारत करे तुझे उस निगहबान का खौफ़ नहीं आया जो हर मज़लूम को ज़ालिम से उस का हक़ दिलाता है, तू ने मुझे मुर्दो की जमाअत से बरह्ना कर दिया और दरबारे खुदावन्दी में नापाक कर दिया है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम   ने जब येह सुना तो फ़रमाया : दूर हो जा ! ऐ बद बख़्त ! तू नारे जहन्नम का मुस्तहिक है।

जवान वहां से रोता हुवा और अल्लाह तआला से इस्तिगफार करता हुवा निकल गया। जब उसे इसी हालत में चालीस दिन गुज़र गए और उस ने आस्मान की तरफ़ निगाह की और कहा : ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम   व आदम अलैहिस्सलाम  व इब्राहीम अलैहिस्सलाम  के रब ! अगर तू ने मेरे गुनाह को बख्श दिया है तो हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम   और आप के सहाबा को मुत्तलअ फ़रमा वगरना आसमान से आग भेज कर मुझे जला दे और जहन्नम के अज़ाब से बचा ले । उसी वक़्त हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम  आप की खिदमत में हाज़िर हुवे और कहा : आप का रब आप को सलाम कहता है

और पूछता है कि मख्लूक को तुम ने पैदा किया है ? आप ने फ़रमाया : नहीं बल्कि मुझे और तमाम मख्लूक को अल्लाह ने पैदा किया है और उसी ने रिज्क दिया है, तब जिब्रील ने कहा : अल्लाह तआला फ़रमाता है मैं ने जवान की तौबा कबूल कर ली है । पस हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  ने जवान को बुला कर उसे तौबा की कबूलिय्यत का मुज़दा सुनाया।

एक दर्द अंगेज़ तौबा

हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने में एक शख्स ऐसा था जो अपनी तौबा पर कभी कायम नहीं रहता था, जब भी वोह तौबा करता उसे तोड़ देता यहां तक कि उसे इस हाल में बीस साल गुज़र गए। अल्लाह तआला ने हज़रते मूसा . की तरफ़ वह्यी की, मेरे उस बन्दे को कह दो मैं तुझ से सख्त नाराज़ हूं, जब हज़रते मूसा ने उस आदमी को अल्लाह का पैगाम दिया तो वोह बहुत गमगीन हुवा और बयाबानों की तरफ़ निकल गया, वहां जा कर बारगाहे रब्बुल इज्जत में अर्ज की : ऐ रब्बे जुल जलाल ! तेरी रहमत जाती रही या मेरे गुनाहों ने तुझे दुख दिया ? तेरी बख्शिश के खजाने ख़त्म हो गए या बन्दों पर तेरी निगाहे करम नहीं रही ? तेरे अफ्वो दर गुज़र से कौन सा गुनाह बड़ा है ? तू करीम है, मैं बख़ील हूं, क्या मेरा बुख़्ल तेरे करम पर गालिब आ गया है ? अगर तू ने अपने बन्दों को अपनी रहमत से महरूम कर दिया तो वोह किस के दरवाजे पर जाएंगे ? अगर तू ने उन्हें रांदए दरगाह कर दिया तो वोह कहां जाएंगे ? ऐ रब्बे कादिरो कहार ! अगर तेरी बख्शिश जाती रही और मेरे लिये अज़ाब ही रह गया है तो तमाम गुनाहगारों का अज़ाब मुझे दे दे, मैं उन पर अपनी जान कुरबान करता हूं। अल्लाह तआला ने मूसा अलैहिस्सलाम से फ़रमाया : जाओ और मेरे बन्दे से कह दो कि तू ने मेरे कमाले कुदरत और अपवो दर गुज़र की हक़ीक़त को समझ लिया है, अगर तेरे गुनाहों से ज़मीन पुर हो जाए तब भी मैं बख़्श दूंगा।

रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  का इरशाद है कि अल्लाह तआला को गुनहगार तौबा करने वाले की आवाज़ से ज़ियादा महबूब और कोई आवाज़ नहीं है, जब वोह अल्लाह कह कर बुलाता है तो रब तआला फ़रमाता है : मैं मौजूद हूं, जो चाहे मांग ! मेरी बारगाह में तेरा रुतबा मेरे बा’ज़ फरिश्तों के बराबर है, मैं तेरे दाएं, बाएं, ऊपर हूं और तेरी धड़कन से ज़ियादा करीब हूं, ऐ फरिश्तो ! तुम गवाह हो जाओ कि मैं ने उसे बख़्श दिया”.

अल्लाह तआला के बहुत से ऐसे बन्दे हैं

हज़रते जुन्नून मिस्री रहमतुल्लाह अलैह  ने कहा है : अल्लाह तआला के बहुत से ऐसे बन्दे हैं जिन्हों ने ख़ताओं के पौधे लगाए, इन्हें तौबा का पानी दिया और हसरतो नदामत का फल खाया, वह दीवानगी के बिगैर दीवाने कहलाए और बिगैर किसी मशक्कत के लज्जतें हासिल कीं, वह लोग अल्लाह और उस के रसूल सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  की मा’रिफ़त रखने वाले फ़सीहो बलीग हज़रात हैं और अदीमुन्नज़ीर हैं, उन्हों ने महब्बत के जाम पिये और मसाइब पर सब्र करने की दौलत से माला माल हुवे फिर आलमे मलकूत में उन के दिल गमज़दा हो गए और आलमे जबरूत के हिजाबात की सैर ने उन के अफ़कार को जिला बख़्शी, उन्हों ने नदामत के खैमों में बसेरा किया, अपनी खताओं के सहीफ़ों को पढ़ा और गिर्या व ज़ारी में मश्गूल हो गए, यहां तक कि वोह अपनी परहेज़गारी की बदौलत ज़ोह्द के आ’ला मरातिब पर फ़ाइज़ हुवे उन्हो ने तर्के दुन्या की तल्खी को शीरीं समझा और सख़्त बिस्तरों को इन्तिहाई नर्म जाना ताआंकि उन्हों ने राहे नजात और सलामती की बुन्यादों को पा लिया, उन की अरवाह को बिहिश्त के बागों में जगह मिली और अबदी ज़िन्दगी के मुस्तहिक करार पाए, उन्हों ने आहो बुका की खन्दकों को पाट दिया और ख्वाहिशात की पुलों को उबूर कर गए यहां तक कि वोह इल्म के हमसाए हुवे और हिक्मत व दानाई के तालाब से सैराब हुवे, वोह फ़मो फ़िरासत की किश्तियों में सवार हुवे, उन्हों ने सलामती के दरया में नजात की दौलत से कल्ए बनाए और राहत के बागात और इज्जतो करामत के ख़ज़ानों के मालिक बन गए।

अदावते शैतान – शैतान किन किन चालों से इन्सान को बर्बाद करता है

हर मोमिन के लिए ज़रूरी है की वह उलमा व सुलहा से मोहब्बत रखे उन की महफ़िलों में बैठता रहे जो कुछ न जानता हो वह उन से पूछता रहे, उन की नसीहतों से फायदा उठाता रहे, बुरे कामों से दूर रहे और शैतान को अपना दुश्मन समझे जैसा की फरमाने इलाही है

“बेशक शैतान तुम्हारा दुश्मन है, उसे दुश्मन ही बनाओ” (यानि अल्लाह की इबादत कर के)

यानी अल्लाह ताआला की इबादत कर के उस से दुश्मनी रखो और अल्लाह ताआला की नाफ़रमानी में उस की पैरवी ना करो और सच्चे दिल से हमेशा अपने अकइद व आमाल का उस से तहफ्फुज़ करो, जब तुम कोई काम करो तो अच्छी तरह समझ लो क्यों की ज़्यादातर आमाल में रिया (दिखावा) दाखिल हो जाता है और बुराइयाँ अच्छी नज़र आती हैं यह सब शैतान की वजह से हौता है लिहाज़ा उस के खिलाफ अल्लाह से मदद तलब करते रहो .

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसउद रज़िअल्लाहो अन्हो कहते हैं, हुज़ूर स.अ.व ने हमारे सामने एक लकीर खिंची और फ़रमाया यह अल्लाह का रास्ता है, फिर आपने उन उस लकीर के दायें बाएं कुछ और लकीरें खिंची और फ़रमाया यह शैतान के रस्ते हैं जिन के लिए वह लोगो को बुलाता रहता है.

हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हमारे लिए शैतान के बहुत से रास्तों को बयान फ़रमाया (ताकि हम उस के फ़रेब में ना आयें)

 

शैतान के वस्वसे का अंजाम

हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फरमाते हैं की बनी इसराइल के एक ज़ाहिद को शैतान ने सही रास्ते से हटाने के लिए यह चाल चली की एक लड़की को पेट की बीमारी में मुब्तला कर दिया और उस के घर वालों के दिलों में ख्याल डाल दिया की इस बीमारी का इलाज ज़ाहिद के सिवा कही भी मुमकिन नहीं है. चुनाचे वह लोग ज़ाहिद के पास आये मगर उस ने लड़की को अपने साथ रखने से इंकार कर दिया. लेकिन उन की बार बार की गुज़ारिश पर उस का दिल पसीज गया और उस ने लड़की को इलाज के लिए अपने पास ठहरा लिया, जब भी वह लड़की जाहिद के पास जाती शैतान उसे बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ में पेश करता, यहाँ तक की ज़ाहिद के कदम डगमगा गए, और उस ने लड़की से मुबाशरत की जिस से लड़की को हमल रह गया. अब शैतान ने उस के दिल में वस्वासा पैदा किया की यह तो बहुत बुरी बात हुई. मेरे ज़ुहद और तकवा पर हर्फ़ आ गया.

लिहाज़ा इसे क़त्ल करके दफ़न कर देना चाहिए जब उस के घर वाले पूछने आयेंगे तो कह दूंगा वह मर गई. शैतान के बहकावे में आकर ज़ाहिद ने उस लड़की का क़त्ल करके दफ़न कर दिया. इधर लड़की के घर वालों के दिलों में शैतान ने यह ख्याल डाल दिया की उसे ज़ाहिद ने क़त्ल कर के दफ़न कर दिया लिहाज़ा वह ज़ाहिद के पास आये और लड़की के बारे में पूछताछ की, ज़ाहिद ने कहा की वह मर गई है, लेकिन उन लोगों ने अपने वस्वसे के मुताबिक ज़ाहिद पर सख्ती की और उस से इकरार करा लिया की उस ने लड़की को क़त्ल किया है, उन लोगों ने उसे पकड़ लिया और मकतूल के बदले में उसे क़त्ल करने लगे,

तब शैतान ज़ाहिर हुआ और ज़ाहिद से बोला, मैंने उसे पेट की बीमारी में मुब्तला किया था और मैंने ही उस के घर वालों के दिलों में तेरे जुर्म का ख़याल डाला था, अब तु मेरा कहना मान ले, में तुझे बचा लूँगा. ज़ाहिद ने पुछा की क्या करूँ? शैतान बोला मुझे दो सजदे कर ले चुनाचे ज़ाहिद ने जान बचाने के लिए शैतान को सजदा कर लिया, अब शैतान यह कहता हुआ वहां से चल दिया की मै तेरे इस काम से बरी हूँ, जैसा की फरमाने इलाही है “शैतान की तरह जिस ने इन्सान से कहा कुफ्र कर, जब उसने कुफ्र किया तो शैतान ने कहा में तुझ से बरी हूँ”.

शैतान का गुमराह करने वाला सवाल

शैतान ने इमामे शाफई रहमतुल्लाह अलैह से पुछा तेरा उस ज़ात के मुताल्लिक क्या ख्याल है जिस ने मुझे जैसे चाह पैदा किया और जो चाहा मुझ से कराया, उस के बाद वह मुझे चाहे तो जन्नत में भेज दे और चाहे तो जहन्नम में भेज दे, क्या एसा करने वाला आदिल है या ज़ालिम. इमाम शाफई रहमतुल्लाह अलैह ने कुछ ठहर कर जवाब दिया, ए शख्श, अगर उस ने तुझे तेरी मर्ज़ी के मुताबिक पैदा किया तो फिर तू वाकई मजलूम है और अगर उस ने तुझे अपने कुदरती इरादे के तहत पैदा किया तो फिर उस की मर्ज़ी है जो करे, शैतान शर्म से पानी पानी हो गया और कहने लगा, यही सवाल करके मैंने सत्तर हज़ार आबिदों को ज़लालत और गुमराही के ग़ार में धकेल दिया है.

 

इंसानी कल्ब (मन) एक किला है

इंसानी कल्ब की मिसाल एक किला जैसी है और शैतान एक दुश्मन है जो किले पर हमला करके उस पर कब्ज़ा जमाना चाहता है, किले की हिफाज़त दरवाज़ों को बंद किये बगैर और तमाम रास्तों और सुराखों की निगरानी के बगैर ना मुमकिन है और यह फ़रीज़ा वही सर अंजाम दे सकता है जो उन रास्तों से अच्छी तरह वाकिफ हो. लिहाज़ा दिल को शैतानी वस्वसों के हमले से महफूज़ रखना हर अक्लमंद के लिए ज़रूरी ही नहीं बल्कि एक फ़र्ज़ ए एन है, चूँकि शैतान के हमले का मुकाबला उस वक़्त तक ना मुमकिन है, जब तक उस के तमाम रास्तों की जानकारी ना हो. लिहाज़ा उन रास्तों की जानकरी  सबसे पहली ज़रुरत है.

 

यह रास्ते इन्सान ही के पैदा किये हुए होते हैं. जैसे गुस्सा, शहवत, क्यों की गुस्सा अक्ल को ख़त्म कर देता है लिहाज़ा जब अक्ल कम हो जाती है तो शैतानी लश्कर इन्सान पर ज़बरदस्त हमला कर देता है, जैसे ही इन्सान गज़ब नाक हौता है, शैतान उस से ऐसे खेलता है जैसे बच्चा गेंद से खेलता है.

एक बंदा ए खुदा ने शैतान से पुछा, यह बातला तू इंसान पर कैसे काबू पा लेता है? शैतान ने कहा में उसे गुस्से और उस की शहवत के वक़्त ज़ेर करता हूँ.

शैतान के रास्तों में एक रास्ता हिर्स (लालच) और हसद का भी है क्यों की हिर्स इन्सान को अँधा और बहरा कर देता है. लिहाज़ा शैतान उस फुर्सत को गनीमत समझते हुए तमाम बुराइयों को हिर्स के सामने बेहतरीन अंदाज़ में पेश करता है और वह उसे खूबियाँ समझ कर कबूल करता चला जाता है.

 

नूह अलैहिस्सलाम की कश्ती में शैतान की सवारी

रिवायत है की जब हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने खुदा के हुक्म से पहले हर जींस का एक एक जोड़ा कश्ती में स्वर  किया और खुद भी सवार हुए तो आपने एक अजनबी बूढ़े को देख कर पुछा, तुम्हे किस ने कश्ती में सवार क्या है? उस ने कहा, में इसलिए आया हूँ की आप के साथियों के दिलों पर कब्ज़ा कर लूँ, उस वक्त उन के दिल मेरे साथ और बदन आप के साथ होंगे.

हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया ऐ अल्लाह के दुश्मन! ए मलऊन निकल जा! इब्लीस बोला, ए नूह पांच चीज़ें एसी हैं जिन से में लोगो को गुमराही में डालता हूँ, तीन तुम्हे बतलाऊंगा और दो नहीं बतलाऊंगा. अल्लाह ताआला ने हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की तरफ वह्यी की, आप कहें की मुझे तीन से आगाही की ज़रुरत नहीं तू मुझे सिर्फ वही दो बता दे! शैतान बोला, वह दो एसी हैं जो मुझे कभी झूठा नहीं करती और ना ही कभी नाकाम लौटाती हैं और उन्ही से मैं लोगो को तबाही के दहाने पर ला खड़ा करता हूँ. उन में से एक हसद (जलन) है और दूसरी हिर्स (लालच) है. इसी हसद की वजह से तो मै रंदा-ए-दरगाह और मलऊन हुआ हूँ और हिर्स के सबब आदम अलैहिस्सलाम को ममनुआ चीज़ की ख्वाइश पैदा हुई और मेरी आरज़ू पूरी हो गई.

शैतान किन किन चालों से इन्सान को बर्बाद करता है

हसद (जलन) और हिर्स

पेट भरा होना

शैतान का एक रास्ता इन्सान का पेट भरा होना है अगरचे वह हलाल रोज़ी से ही भरा गया यो क्यों की पेट का भर जाना शहवतों-ख्वाइशों को उभारा करता है और शैतान का यही हथियार है.

पेट भर कर खाना भी इन्सान को शैतान के फंदे में फंसाता है.

रिवायत है की हज़रत याह्या अलैहिस्सलाम ने एक बार शैतान को देखा वह बहुत से फंदे उठाये हुए था आप ने पुछा, यह क्या है? शैतान ने जवाब दिया यह वह फंदे हैं जिन से मै इंसान को फंसाता हूँ. आपने पुछा, कभी मुझ पर भी तूने फंदा डाला है? शैतान ने कहा आप जब भी पेट भर कर खा लेते है मैं आप को ज़िक्र व नमाज़ से सुस्त कर देता हूँ. आप ने पुछा और कुछ? कहा बस! तब आपने कसम खाई मै  आइन्दा कभी पेट भर कर नहीं खाऊंगा. शैतान ने भी जवाब में कसम खाई मै भी आइन्दा किसी मुसलमान को नसीहत नहीं करूँगा.

माल व सामान ए दुनिया पर दीवानगी

शैतान का एक रास्ता माल व सामान ए दुनिया पर दीवानगी है, क्यों की शैतान जब इन्सान का दिल इन चीज़ों की तरफ माइल देखता है तो उन्हें और ज्यादा खुबसूरत अंदाज़ में उस के सामने पेश करता है और इन्सान को हमेशा मकानों की तामीर, छत व दरवाज़ा की आराइश व जेबाइश (सजावट) में उलझाये रखता है, और उसे खूबसूरत लिबास, अच्छी अच्छी सवारियों और लम्बी उम्र की झूटी उम्मीदों में मुब्तला कर देता है और जब कोई इन्सान इस मंजिल पर पहुँच जाता है तो फिर उस की राह ए खुदा पर वापसी दुश्वार और मुश्किल हो जाती है, क्यों की वह एक उम्मीद के बाद दूसरी उम्मीद बढाता चला जाता है. यहाँ तक की उस का वक्ते मुक़र्रर आ जाता है और वह इसी शैतानी रास्ते (अल्लाह से गफ़लत) पर चलते हुए और ख्वाइशों को पूरा करते हुआ इस नापायेदार दुनिया से उठ जाता है. 

लोगो से उम्मीदें रखना

शैतान के गलबे का एक रास्ता लोगो से उम्मीदें रखना है. हज़रत सफवान बिन सुलैम फरमाते  है की शैतान जनाब अब्दुल्लाह बिन हंज़ला के सामने आया और कहने लगा, मै तुम को एक बात बताता हूँ, इसे याद रखना. उन्होंने ने कहा मुझे तेरी किसी नसीहत की ज़रुरत नहीं है. शैतान ने कहा तुम सुनो तो सही अगर अच्छी बात हो तो याद रखना वरना छोड़ देना, बात यह है की अल्लाह ताआला के सिवा किसी इन्सान से अपनी आरज़ुओ का सवाल न करना और यह देखना की गुस्से में तुम्हारी क्या हालत होती है क्यों की मै गुस्से की हालत में ही इन्सान पर काबू पता हूँ.

साबित कदमी की इन्सान में कमी और जल्दबाजी

शैतान का एक रास्ता साबित कदमी की इन्सान में कमी और जल्दबाजी की तरफ उस का झुकाव है. फरमाने नबवी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम है, जल्द बजी शैतानी काम है और सब्र व बुर्दबारी अल्लाह की देन है. जल्दबाजी में इन्सान को शैतान ऐसे तरीके से बुराई पर माइल करता है की इन्सान महसूस ही नहीं करता. रिवायत है की जब हज़रात ईसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश हुई तो शैतान के तमाम शागिर्द उस के यहाँ जमा हुए और कहने लगे, आज तमाम बुतों ने सर झुका लिए हैं, शैतान ने कहा मालूम हौता है की कोई बड़ा हादसा हो गया है. तुम यहीं ठहरों में मै मालूम करता हूँ, चुनाचे उस ने पूरब और पश्चिम का चक्कर लगाया मगर कुछ भी पता ना चला, यहाँ तक की वह हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की जाए विलादत पर पहुंचा और यह देख कर हैरान रह गया की फ़रिश्ते हजरते ईसा अलैहिस्सलाम को घेरे हुए हैं. वह वापस अपने शागिर्दों के पास पहुंचा और कहने लगा की कल की रात एक नबी की पैदाइश हुई है. मै हर बच्चे की पैदाइश के वक़्त मौजूद होता हूँ मगर मुझे इन की पैदाइश का बिलकुल इल्म नहीं हुआ. लिहाज़ा इस रात के बाद बुतों की इबादत ख़त्म हो जाएगी इसलिए अब इन्सान पर जल्दबाजी और लापरवाही के वक़्त हमला करो.

ज़र व ज़मीन

एक रास्ता ज़र व ज़मीन का है क्यों की जो चीज़ इन्सान की ज़रुरत से ज्यादा हो वह शैतान का ठिकाना बन जाती है. हज़रत साबितुलबनानी रज़िअल्लाहो अन्हो का कौल है की जब अल्लाह ताआला ने नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को मबऊस फ़रमाया तो शैतान ने अपने शागिर्दों से कहा आज कोई बड़ा वक़ेआ रुनुमा है, जाओ देखो तो क्या हाल है? वह सब तलाश में निकले मगर नाकाम लौट कर कहने लगे हमें तो कुछ भी मालूम ना हो सका. शैतान ने कहा तुम ठहरो मै अभी तुम्हे आकर बताता हूँ, शैतान ने वापस आकर बताया की अल्लाह ताआला ने हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को मबऊस फ़रमाया है. चुनाचे शैतान ने अपने तमाम चेलों को सहाबा ए किराम रिज़वानुल्लाहे अलैहिम अज्मेईन के पीछे लगाया की उन लोगों को गुमराह करे. मगर वापस जाकर कहते उस्ताद हम ने आज तक एसी नाकामी का मुहं नहीं देखा, जब यह नमाज़ शुरू करते हैं तो हमारा सब किया धरा खाक में मिल जाता है, तब शैतान ने कहा घबराओ नहीं अभी कुछ और इंतेज़ार करो, जल्द ही उन पर दुनिया अरज़ा (सस्ती) और फ़रावान (ज्यादा) हो जाएगी और उस वक़्त हमें अपनी उम्मीदें पूरी करने का ज्यादा मौका मिल जायेगा.

रिवायत है की हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम एक दिन पत्थर पर टेक लगाये हुए थे शैतान का वहां से गुज़र हुआ उसने कहा ए ईसा! तुमें दुनिया को मरगूब पसंदीदा समझा है? ईसा अलैहिस्सलाम ने उसे पकड़ लिया और उस की गुद्दी में मुक्का मार करके फ़रमाया, यह लेजा, यह तेरे लिए दुनिया है.

(गरीबी) व फाका का डर और बखीली 

एक रास्ता फक्र (गरीबी) व फाका का डर और बखीली है. क्यों की यह चीज़ें इन्सान को अल्लाह के रस्ते में खर्च करने से रोकती हैं और उसे माल व दौलत जमा करने और दर्दनाक अज़ाब की दावत देती है. बुखल का सब से बड़ा नुकसान यह हौता है की बखील माल व दौलत हांसिल करने के लिए बाजारों के चक्कर लगता रहता है जो की शैतान की ठिकाने हैं.

मज़हब से नफरत, ख्वाइशों की पैरवी

एक रास्ता मज़हब से नफरत, ख्वाइशों की पैरवी अपने मुखाल्फीन से बुग्ज़ और हसद और उन्हें हकारत से देखना है और यह चीज़ चाहे आबिद हो या फ़ासिक सब को हलाक कर देती है. हज़रात हसन रज़िअल्लाहो अन्हो का इरशाद है की शैतान ने कहा मैंने उम्मते मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को गुनाहों की भूल भुलैया में भटकाया मगर उन्होंने इस्तिग्फार से मुझे शिकस्त दे दी, तब मैं उन्हें ऐसे गुनाहों की तरफ ले गया जिन के लिए वह कभी इस्तिग्फार नहीं करते और  वह उन की नाजायज़ ख्वाइशें हैं और शैतान की यह बात हकीकत में बिलकुल सच्चाई है क्यों की आम तौर पर लोग यह नहीं समझ सकते की यह ख्वाइशें ही असल में गुनाहों के तरफ रागिब करती हैं लिहाजा वह अल्लाह से इस्तिग्फार करें.

मुसलमानों के बारे में बदगुमानी

एक रास्ता मुसलमानों के बारे में बदगुमानी का है लिहाज़ा इस से और बदबख्तों की तोहमतों से बचना चाहिए. अगर आप कभी किसी ऐसे इन्सान को देखें जो लोगों के एब ढूंढता है और बद गुमानियाँ फैलाता है तो समझ लिजीये की वह शख्श खुद ही बद बातिन है और यह अम्र उस की बदबातिनी के इज़हार का एक तरीका है लिहाज़ा हर मुसलमान के लिए ज़रूरी है की वह शैतान के दाखिल होने के इन तमाम रास्तों को बंद कर दे और अल्लाह ताआला की याद से अपने दिल को एक महफूज़ किला बना ले.

दारुननदवा में शैतान का कुरैश को मशवरा

इब्ने इसहाक रहमतुल्लाह अलैह की रिवायत है की जब कुरैश ए मक्का ने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के सहाबा ए किराम  रिजवानुल्लाहे अलैहिम अज्मेईन को हिजरत करते और कई कबीलों के लोगों को मुसलमान होते देखा तो उन्हें यह खतरा लाहिक हुआ की कहीं हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम भी हिजरत ना कर जाएँ और वहां एक ज़बरदस्त जमाअत अपनी हिमायत में तैयार कर के हमें शिकस्त न दे दें चुनाचे यह लोग दारुन-नदवा में जमा हुए, दारुन-नदवा कसई बिन किलाब का मकान था यह दारुन नदवा इसलिए कहलाता था की यहाँ कुरैश अपने तमाम अहम् कामो को पूरा करते और मंसूबे तैयार करते थे. इस दारुन नदवा में चालीस साल की उम्र के कुरैशियों के अलावा कोई और शख्श या कम उम्र कुरैशी दाखिल नहीं हो सकता था.

 यह सब लोग अबू जहल के साथ हफ्ता (शनिचर) के दिन जमा हुए इसलिए शनिचर को धोका और फ़रेब का दिन कहा गया है. उन लोगो के साथ इब्लीस भी मशवरों में शरीक होता था. उस मलऊन के शामिल होने का वक़ेआ यूँ है की जब मक्का के कुरैश दारुन नदवा के दरवाज़े पर पहुंचे तो उन्होंने देखा की एक इज्ज़तदार बुढा खुरदुरा सा कम्बल ओढे खड़ा है. एक रिवायत यह है की तल्म्सान की रेशमी चादर ओढे हुए था, उन्होंने पुछा आप कौन है. कहने लगा में शैख़ नज्दी हूँ, तुमने जो इरादा किया है मैंने वह सुन लिया है और में इसलिए आया हूँ की तुम्हारी गुफ्तगू सुनूँ और मशवरे और नसीहते करूँ.

चुनाचे यह सब लोग अन्दर दाखिल हो गए और आपस में मशवरा होने लगा. एक रिवायत है की सौ आदमी थे और दूसरी रिवायत में है की पंद्रह आदमी थे. अबुल बख्तरी ने मशवरा दिया, मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को लोहे के एक किले में बंद कर दो और उस वक़्त का इंतेज़ार करो जब उन का अंजाम भी पहले शायरों जैसा हो जाये. शैख़ नज्दी ने कहा यह बात गलत है, खुदा की कसम अगर गम उन्हें लोहे के दरवाज़ों के पीछे भी बंद कर दो तो वह वहां से निकल कर अपने सहबियों के यहाँ पहुँच जायेंगे.

अबुल अस्वाद रबीआ बिन अमरुल अमीरी ने राय दी की मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को जीला वतन (शहर बदर) कर दो. यह जहाँ भी जाये हमें कोई परवाह नहीं, बस हमारे शहरों में ना रहे. शैख़ नज्दी ने इस राय को रद करते हुए कहा क्या तुम ने मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की अच्छी बातें, उन की शीरीं बयानी और लोगो का उन पर परवानो की तरह निसार होना नहीं देखा? अगर तुम उन को जला वतन कर के मुतमई न हो गए तो यह तुम्हारी सब से बड़ी गलती होगी, वह किसी और कबीले में चले जायेंगे और अपनी जादू बयानी से लोगों को अपना दीवाना बना लेंगे और अपने मानने वालों को एक अज़ीम जमा अत  के साथ तुम पर गलबा हांसिल कर लेंगे, तुम्हारी यह शान शौकत हर्फे गलत की तरह मिट जाएगी और वह तुम्हारे साथ जो चाहेंगे करेंगे कोई और राय दो

अबू जहल ने कहा मेरे ज़हन में एक एसी राय है जो किसी ने भी नहीं दी, वह यह की हर कबीले से के साहबे हसब व नसब बहादुर लिया जाये और यह सब मिलकर एक साथ मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम पर तलवारों से भरपूर हमला करें और उन को क़त्ल कर दें. हमारी भी जान छूट जाएगी और बनू अब्दे मनाफ तमाम कबीलों का मुकाबला करने से तो रहे वह सिर्फ खून बहा (क़त्ल का जुर्माना ) ले लेंगे जिसे तमाम कबा इल मिल कर अदा कर देंगे. शैख़ नज्दी मलऊन इस राय पर फड़क उठा और कहने लगा अब हुई बात.

चुनाचे मुत्ताफेका तौर पर यह राय मान ली गई और सब लोग घरों को चल दिया. इधर हज़रात जिब्रील अलैहिस्सलाम हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में हाज़िर हुए और अर्ज़ की ए अल्लाह के नबी! आज उस बिस्तर पर आराम ना फरमाए जिस पर आप हमेशा आराम फरमाते हैं. जब रात हुई तो कुरैश के जवान नबी के घर के पास मंडराने लगे उअर उस वक़्त का इंतेज़ार करने लगे की आप बहार आयें और वह एक साथ हमला कर दे. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हज़रत अली रज़िअल्लाहो अन्हो को अपने बिस्तर पर उस रात सुलाया और उन पर हरे रंग की एक चादर दाल दी जो बाद में हज़रत अली रज़िअल्लाहो अन्हो जुमा और इदैन के मौके पर ओढा करते थे.हज़रत अली रज़िअल्लाहो अन्हो पहले शख्स थे जिन्होंने जान बेच कर हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की हिफाज़त की थी. चुनाचे हज़रत अली करम अल्लाहु वजहहु ने इन अशआर में अपने ख़यालात का इज़हार किया है

मैंने अपनी जान के बदले उस खैरे खल्क सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की हिफाज़त की जो अल्लाह की ज़मीन पर सब से बेहतर हैं और जो हर तवाफ़ करने वाले हजरे अस वद को चूमने वाले से बेहतरीन हैं.

रसुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को मक्का के कुरैश के फ़रेब का अंदेशा हुआ तो उन को रब्बे ज़ुल ज़लाल ने उन के फ़रेब से बचा लिया.

और रसूले खुदा ने ग़ार में निहायत सुकून के साथ अल्लाह की हिफाज़त में रात बसर की .

जब की मै मक्का के कुरैश के सामने सोया हुआ था और इस तरह मै खुद को अपने क़त्ल और कैद होने पर राज़ी किये हुए था.

अल्लाह ताआला ने कुरैश के उन नौजवानों को अँधा कर दिया और नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम कुरैश के जियालों पर मिट्टी डालते हुए और यह आयत तिलावत करते हुए बाहर निकल गए.

इस हाल में एक शख्श वहां आया और उस ने उन लोगो से पुछा यहाँ क्या कर रहे हो? उन्होंने कहा हम मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के मुन्तजिर हैं,उस ने कहा खुदा की क़सम वह तुम्हारे सरों पर मिटटी डालते हुए निकल गए और अल्लाह ताआला ने तुम्हे ज़लील व रुसवा किया है, अब तुम यहाँ खड़े क्या कर रहे हो? अब जो उन्होंने अपने सरों को हाथ लगाया तो सब के सरों में मिट्टी पड़ी हुई थी और वह हज़रत अली रज़िअल्लाहो अन्हो को हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की चादर ओढे सोते देख कर एक दुसरे से यही कहते रहे की खुदा की क़सम यह मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम सो रहे हैं. यहाँ तक की सुबह हो गई और हज़रत अली रज़िअल्लाहो अन्हो बिस्तर से उठे, उन को देख कर यह लोग बहुत शर्मिंदा हुए और कहने लगे उस शख्श ने वाकेई सच कहा था, इसी वाकीआ पर यह आयत नाज़िल हुई

“और जब कुफ्फारे मक्का आपके साथ फ़रेब कर रहे थे की वह आप को सख्त ज़ख़्मी या क़त्ल कर दें.”

घबराओ नहीं, हर मुश्किल के बाद आसानी होती है और हर चीज़ एक मुक़र्रर वक्त तक रहती है.

मुकद्दर हम से ज्यादा बा –खबर है और हमारी तदबीरों पर अल्लाह की तदबीर गालीब रहती है.

अल्लाह के नबी करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का हिजरत फरमाना 

हज़रत इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहो अन्हो ने फरमाने खुदा  (और यूँ अर्ज़ करो की ए मेरे रब मुझे सच्ची तरह दाखिल कर और सच्ची तरह बहार लेजा और मुझे अपनी तरफ से मददगार गलबा दे(बनी इसराइल परा 15). की तफसीर में फ़रमाया है की इस आयत में अल्लाह ताआला ने नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को हिजरत की इज़ाज़त मरहमत फरमाई और हजरते जिब्रील ने आपसे कहा की आप हज़रत अबू बकर रज़िअल्लाहो अन्हो को अपनी हिजरत का साथी मुन्तखब करें.

हाकिम में रिवायत है – हज़रत अली रज़िअल्लाहो अन्हो कहते हैं की हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हज़रत जिब्रील से पुछा मेरे साथ कौन हिजरत करे तो उन्होंने कहा हज़रत अबू बकर सिद्दीक. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हज़रत अली रज़िअल्लाहो अन्हो को हिजरत के बारे में बताया और फ़रमाया तुम मेरे बाद यहीं रहना और लोगों की अमानते वापस कर के आना.

 

सिद्दिके अकबर रज़िअल्लाहो अन्हो के घर के हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का खिलाफे मामूल तशरीफ़ लाना

हज़रत आईशा रज़िअल्लाहो अन्हा से मरवी है की हम घर में बैठे हुए थे और दोपहर का वक़्त था और तबरानी ने हज़रत अस्मा की रिवायत नक्ल की है की हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मक्का में दो मर्तबा सुबह और शाम हमारे घर तशरीफ़ लाया करते थे, मगर उस दिन जवाल के वक़्त तशरीफ़ लाये, मैने अपने वालिद अबू बकर रज़िअल्लाहो अन्हा से जाकर कहा अब्बा जान नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम आज खिलाफे मामूल चेहरे पर कपडा लपेटे तशरीफ़ लायें हैं. हज़रत अबू बकर रज़िअल्लाहो अन्हो ने कहा, खुदा की कसम हुज़ूर किसी अहम् काम के लिए इस वक्त तशरीफ़ लायें हैं, हज़रत आयशा रज़िअल्लाहो अन्हा कहती हैं की हुज़ूर इज़ाज़त लेकर अन्दर तशरीफ़ लाये. हज़रत अबू बकर रज़िअल्लाहो अन्हो ने आप के लिए चारपाई खाली कर दी. जब हुज़ूर तशरीफ़ फरमा हो गए तो आप ने फ़रमाया इन दोनों को बहार भेज दिया जाये. सिद्दिके अकबर रज़िअल्लाहो अन्हो ने अर्ज़ की हुज़ूर यह आईशा और अस्मा आप ही का घराना है.एक रिवायत है की उन्होंने कहा हुज़ूर मुतमइन रहें ये मेरी बेटियां हैं. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया मुझे रब्बे जुल जलाल ने हिजरत की इज़ाज़त दी है और तुम मेरे साथ रहोगे. आयशा सिद्दीका रज़िअल्लाहो अन्हा कहती हैं, अबू बकर रज़िअल्लाहो अन्हा यह बात सुनकर शिद्दते ज़ज्बात से रो पड़े और अर्ज़ की हुज़ूर, मेरी इन सवारियों में से एक सवारी पसंद फरमा लीजिये. आप ने फ़रमाया मै कीमत दे कर लूँगा.

एक रिवायत में है आप ने फ़रमाया चाहो तो एक मेरे हाथ बेच दो. आप ने कीमत देकर इसलिए सवारी हांसिल की ताकि आप को हिजरत की मुकम्मल फ़ज़ीलत हांसिल हो जाये और जान व माल की कुर्बानी से इस की शुरुआत हो. आयशा सिद्दीका रज़िअल्लाहो अन्हा फरमाती हैं हमने जल्दी जल्दी सफ़र का सामान दुरुस्त किया एक रिवायत है, हम ने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम और सिद्दिके अकबर रज़िअल्लाहो अन्हो के लिए बेहतरीन सामने सफ़र बांधा और उसे एक थैले में डाला.

 

सफरे हिजरत में ज़ादेराह (सफ़र खर्च)

वाकिदी से रिवायत है की रास्ते के लिए एक भुनी हुई बकरी थी, हज़रत अस्मा ने अपनी कमर का पटका फाड़ा और उस से थैले का मुह बांध दिया इसीलिए हज़रते अस्मा को को “ज़ातुन्निता कैन” कहते हैं हजरते आयशा रज़िअल्लाहो अन्हा फरमाती हैं हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम और हज़रते अबू बकर सिद्दीक रज़िअल्लाहो अन्हो ने तीन रातें गारे सौर में गुजारी. उस ग़ार चूँकि सौर बिन अब्दे मनात आकर ठहरा था, इसीलिए उसे गारे सौर कहा जाता है.

रिवायत है की हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम और सिद्दिके अकबर रज़िअल्लाहो अन्हो रात के वक़्त मकान की पिछली खिड़की से निकल कर ग़ार की तरफ रवाना हुए थे. रस्ते में अबू जहल आ रहा था मगर अल्लाह ने उसे अँधा कर दिया और आप खैरियत से गुज़र गए. अस्मा बीनते अबू बकर सिद्दीक रज़िअल्लाहो अन्हा कहती हैं – हजरते अबू बकर पांच हज़ार दिरहम साथ लेकर गए थे.

सुबह जब कुरैश ने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को न पाया तो उन्होंने मक्का के चारों तरफ तलाश किया और हर तरफ खोजी दौड़ाये, जो लोग गारे सौर की तरफ जा रहे थे, उन्होंने आपके निशाने कदम तलाश कर लिए और ग़ार ए सौर की तरफ चल पड़े. मगर जब ग़ार के करीब पहुचे तो निशान ख़त्म हो गए. कुरैश हुज़ूर की हिजरत से बहुत नाराज़ थे और उन्होंने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को तलाश करने वाले के लिए सौ ऊंट का इन आम मुकर्रर कर दिया था.

 

हज़रत काजी अयाज़ रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है की जबले सबीर ने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से अर्ज़ की आप मेरी पीठ से उतर जाएँ, मुझे डर है की कहीं लोग आपको शहीद ना कर दें और मुझे अज़ाब ना दिया जाये, गारे हिरा ने इल्तेजा की हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मेरे यहाँ तशरीफ़ लाइए.

रिवायत है की जैसे हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम हज़रत अबू बकर सिद्दीक रज़िअल्लाहो अन्हो  के साथ ग़ार ए सौर में दाखिल हुए, अल्लाह ताआला ने ग़ार के दरवाज़े पर एक झाडी पैदा कर दी जिसने इन हज़रात को काफिरों की नज़रों से ओझल कर दिया.  खुदा के हुक्म से मकड़े ने ग़ार के दहाने पर जाला बना दिया और जंगली कबूतरों ने अपना घोंसला बना दिया. यह सब कुछ मक्का के काफिरों को ग़ार की तलाशी से बाज़ रखने के लिए किया गया . उन दो जंगली कबूतरों को अल्लाह ताआला ने एसी बे मिसाल जज़ा दी की आज तक हरम शरीफ में जितने कबूतर हैं वह उन्ही दो की औलाद हैं जैसे उन्होंने अल्लाह के नबी की हिफाज़त की थी वैसे ही अल्लाह ताआला ने भी हरम शरीफ में उन के शिकार पर पाबन्दी लगा दी है.

कुरैश के नौजवान डंडे, लाठियां और तलवारे संभाले चारो तरफ फ़ैल गए जिन में से कुछ ग़ार की तरफ जा निकले उन्होंने वहां कबूतरों का घोंसला और उस में अंडे देखे तो वापस लौट गए और कहने लगे हम ने ग़ार के दहाने पर कबूतरों का घोंसला और उस में अंडे रखे देखें हैं, अगर वहां कोई दाखिल होता तो ला मुहाला कबूतर उड़ जाते. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने उन की यह बातें सुनी और समझ गए की अल्लाह ताआला ने मुशरिकों को नाकाम लौटाया है. किसी ने कहा ग़ार में जाकर देखो तो सही, जवाब में उमैया बिन खलफ ने कहा ग़ार में घुसने की कोई ज़रुरत नहीं है, तुम्हे ग़ार के मुह पर मकड़ी का जो जला नज़र आता है वह तो मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की पैदाइश से भी पहले का है. अगर वह इस में दाखिल होते तो यह जाला और अंडे टूट जाते.

यह हकीकत में कौमे कुरैश को मुकाबले में शिकस्त देने से भी बड़ा मोअज़ेज़ा था. गौर कीजिये मतलूब कैसे कामयाब और तलाश करने वाले कैसे गुमराह हुए. मकड़ी ने जुस्तजू का दरवाज़ा बंद कर दिया और ग़ार का मुंह ऐसे बन गया की पता लगाने वालों के कदम लड़खड़ा गए और नाकाम वापस लौटे और मकड़ी को लाजवाब सआदत मयस्सर आई. इब्ने नकीब ने खूब कहा है

अशआर का मह्फूम

रेशम के कीड़े ने एसा रेशम बुना जो हुस्न में यकता है

मगर मकड़ी उन से लाखों दर्जा बेहतर है इसलिय की उस ने ग़ार ए सौर में हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के ऊपर ग़ार के दहाने पर जाला बुना था.

 

बुखारी व मुस्लिम में हज़रत अनस रज़िअल्लाहो अन्हो से मरवी है, हज़रत अबू बकर राजी अल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया जब हम ग़ार में थे मैंने रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से अर्ज़ की हुज़ूर ! अगर यह अपने क़दमों की तरफ देखें तो यकीनन हमें देख लेंगे. आप ने फ़रमाया अबू बकर तुम्हारा उन दो के बारे में क्या ख़याल है जिन के साथ तीसरा खुदा है.

बाज़ सीरत निगारों ने लिखा है की जब अबू बकर सिद्दीक रज़िअल्लाहो अन्हो ने अंदेशा जाहिर किया तो आप ने फ़रमाया, अगर यह लोग इधर से दाखिल होंगे तो हम उधर से निकल जायेंगे. सिद्दिके अकबर ने ग़ार में निगाह की तो देखा दूसरी तरफ एक दरवाज़ा नज़र आया जिस के साथ एक समुन्दर, जिसके किनारे का पता ना था, बह रहा था और उस ग़ार के दरवाज़े पर एक नाव बंधी थी.

 

हुज़ूर पर कुर्बान होना सिद्दिके अकबर की दिली आरजू थी

हज़रत हसन बसरी रज़िअल्लाहो अन्हो फरमाते हैं, मुझे यह खबर पहुंची है की जब अबू बकर सिद्दीक रज़िअल्लाहो अन्हो हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के साथ ग़ार की तरफ जा रहे थे तो हज़रत अबू बकर कभी हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के आगे चलते और कभी पीछे चलते. हुज़ूर ने पुछा एसा क्यों करते हो? उन्होंने जवाब दिया, जब मुझे तलाश करने वालों का ख्याल आता है तो मै आप के पीछे हो जाता हूँ और जब घात में बैठे हुए दुश्मनों का खयाला आता है तो आगे आगे चलने लगता हूँ, खुदा ना करे आप को कोई तकलीफ पहुंचे. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया क्या तुम खतरे की सूरत में मेरे आगे मरना पसंद करते हो ? अर्ज़ की अल्लाह की कसम मेरी यही आरज़ू है.

जब ग़ार के करीब पहुंचे तो हजरते अबू बकर रज़िअल्लाहो अन्हो ने कहा, हुज़ूर ठहरिये मै ग़ार को साफ करता हूँ और अन्दर पहुच कर हाथों से टटोल टटोल कर ग़ार को साफ करना शुरू किया. जहाँ कहीं कोई सुराख़ नज़र आता वहां कपडा फाड़ कर उस को बंद कर देते यहाँ तक की सारा कपडा ख़त्म हो गया और एक सुराख़ बाकी रह गया, वहां आप ने पांव का अंगूठा रख दिया ताकि कोई चीज़ हुज़ूर स.व.व. को तकलीफ ना दे. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ग़ार में दाखिल हुए और अबू बकर रज़िअल्लाहो अन्हो की गोद में सर रख कर सो गए. हज़रत अबू बकर को उस सुराख़ से सांप ने डस लिया मगर आपने पैर को हिलाया नहीं की कहीं एसा नो हो की हुज़ूर की आँख खुल जाये और आप की नींद में खलल पड़े. ज्यादा तकलीफ की वजह से आप के आंसू हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के चेहरे पर पड़े तो हुज़ूर की आँख खुल गई. पुछा अबू बकर क्या बात है? अर्ज़ की हुज़ूर सांप ने डस लिया है. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने लुआबे दहन लगाया तो ज़हर का असर जाता रहा.

हज़रत हस्सान बिन साबित रज़िअल्लाहो अन्हो ने क्या खूब कहा है

उस बा मुकद्दर ग़ार में हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के साथ सिर्फ सिद्दिके अकबर थे जब दुश्मन पहाड़ पढ़ चढ़ रहे थे

और सहाबा ए किराम यह जानते थे की हज़रत सैय्यदना अबू बकर सिद्दीक रासुल्लाह के महबूब हैं और आप की बारगाह में किसी का रुतबा इन के बराबर नहीं.

हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने जुमेरात के दिन मक्का से हिजरत की, तीन रातें ग़ार ए सौर में गुज़ार कर पहली रबी उल अव्वल, सोमवार की रात को वहां से रवाना हुए और 12 रबीउल अव्वल को मदीना तय्येबा पहुचे.

ज़करिया नाम का एक मशहूर ज़ाहिद गुज़रा है, सख्त बीमारी के बाद जब उस की रूह कब्ज होने का वक़्त आया तो उस के दोस्त ने उसे कालिमा की तलकीन की, मगर उनसे दूसरी तरफ मुंह फेर लिया. दोस्त ने दूसरी मर्तबा तलकीन की लेकिन उस ने इधर से उधर मुंह फेर लिया. जब उसने तीसरी बार तलकीन की तो उस ज़ाहिद ने कहा, मैं नहीं कहता, दोस्त यह सुनते ही बेहोंश हो गया. कुछ देर बाद जब ज़ाहिद को कुछ इफाका हुआ, उस ने आँखे खोली और पुछा तुम ने मुझ से कुछ कहा था? उन्होंने कहाँ हाँ,  मैंने तुम्हे कलमे की तलकीन की थी मगर तुमने दो मर्तबा मुंह फेर लिया और तीसरी बार कहा “मै नहीं कहता” ज़ाहिद ने कहा बात यह है की मेरे पास शैतान पानी का प्याला लेकर आया और दायें तरफ खड़ा होकर मुझे वह पानी दिखाते हुए कहने लगा तुम्हे पानी की ज़रुरत है? मैंने कहा हैं कहने लगा कहो ईसा अल्लाह के बेटे हैं? मैंने मुंह फेर लिया तो दूसरी तरफ से आकर कहने लगा, मैंने फिर मुह फेर लिया. जब उस ने तीसरी मर्तबा “ईसा अल्लाह के बेटे हैं” कहने को कहा तो मैंने कहा, मै नहीं कहता, इस पर वह पानी का प्याला ज़मीन पर पटक कर भाग गया. मैंने तो यह लफ्ज़ शैतान से कहे थे, तुम से तो नहीं कहे थे और फिर कलमा ए शहादत का ज़िक्र करने लगा.

इन्सान के जिस्म में शैतान कहाँ रहता है.

हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ से मरवी है की किसी ने अल्लाह ताआला से सवाल किया मुझे इंसानी दिल में शैतान की जगह दिखा दे, ख्वाब में उस ने शीशे की तरह साफ सुथरा एक इंसानी जिस्म देखा जो अन्दर बहार से एक जैसा नज़र आ रहा था. शैतान को देखा वह उस इन्सान के बाये कंधे और कान के दरमियाँ बैठा हुआ था और अपनी लम्बी नाक से उस के दिल में वस्वसे डाल रहा था. जब वह इन्सान अल्लाह का ज़िक्र करता तो वह फ़ौरन ही पीछे हट जाता ए रब्बे ज़ुल ज़लाल ! ख्त्मुल मुरसलीन सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के तुफैल हमें शैताने मरदूद के तसल्लुत से बचा, हमें हासिद ज़बान से निजात बख्श और अपने ज़िक्र व शुक्र की तौफिक इनायत फरमा.

  

  

   

 

 

अम्र बिल मा अ रूफ व नही अनिल मुन्कर नेकी करने और बुराई से बचने का हुक्म

हज़रत अनस बिन मालिक राज़ी अल्लाहो अन्हो कहते हैं हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया की “जब कोई बंदा मुझ पर एक मर्तबा दुरुद भेजता है तो अल्लाह ताआला उस की सांसों से एक सफ़ेद बादल पैदा करता है, फिर उस बादल को रहमत के समुन्दर से इस्तेफ़ादा करने का हुक्म मिलता है उस के बाद उसे बरसने का हुक्म मिलता है, उस का जो कतरा ज़मीन पर पड़ता है उस से अल्लाह ताआला सोना, जो पहाड़ों पर पड़ता है, उस से चांदी पैदा करता है और जो क़तरा किसी काफ़िर पर पड़ता है तो उसे ईमान की दौलत अता होती है.

सबसे बेहतर उम्मत

 फरमाने इलाही है

“तुम बेहतर हो उन सब उम्मतों में जो लोगो में ज़ाहिर हुई. भलाई का हुक्म देते हो और बुराई से मना करते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो.

जनाबे कलबी रहमतुल्लाह अलैह का कौल है की इस आयत में उम्मते मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की तमाम दूसरी उम्मतों पर फ़ज़ीलत का बयान है और उम्मते इस्लामिया बिना किसी कैद के तमाम उम्मतों से बेहतर है और दूसरी उम्मतों के बनिस्बत इस की शुरुआत और आखिर दोनों बेहतर है. अगरचे ज़ाती  तौर पर कुछ हस्तियाँ बहुत ज्यादा फ़ज़ीलत व कमाल की मालिक थी जैसे सहाबा ए किराम रिज्वानुल्लाहे अलैहिम अजमईन के मुताल्लिक अहादीस में मौजूद है.

उख्रिजत का माना है तमाम वक्तों में लोगो के नफा और भलाई के लिए मुमताज़ हैसियत देकर उन्हें भेजा गया, फरमान ए बारी ताआला है

“ज़ाहिर हुई भलाई का हुक्म देते हो और बुराई से मना करते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो”

जुमला मुस्त्निफा है, इसमें यह बयां किया गया है की उम्मते इस्लामिया की फ़ज़ीलत इसलिए है की वह नेकी का हुक्म देते हैं और बुराई से रोकते हैं और अल्लाह पर ईमान रखते हैं, अगर वह इस रस्ते से हट जाएँ तो उन की फ़ज़ीलत बाकि नहीं रहेगी, वह काफिरों से जिहाद करते हैं ताकि वह इस्लाम ले आयें, इसलिए उन्होंने गैरों पर तरजीह दी गई नबी का फरमान है “बेहतरीन इन्सान वह है जो लोगो को नफा पहुंचाता है और बदतरीन इन्सान वह है जो लोगो को नुकसान पहुंचाता है.”

 वह अल्लाह की तौहीद एक होने की तस्दीक करते हैं और उस पर साबित कदम रहते हैं और मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की नुबुव्वत का इकरार करते हैं क्यों की जिस ने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की नुबुव्वत को ना माना उस ने अल्लाह ता आला को नहीं माना इसलिए की वह हुज़ूर को दी हुई मोअज़िज़ बयान आयत को अल्लाह की तरफ से नहीं समझता है.

फरमाने नबवी है “तुम में से जो कोई किसी बुराई को देखे उसे चाहिए की बाजू की ताक़त से मिटा दे अगर उस की ताक़त ना हो तो ज़बान से, अगर यह भी ना कर सके तो उसे दिल में बुरा समझे और यह कमज़ोर तरीन ईमान है.” यानी यह ईमान वालों का कमज़ोर तरीन काम है.

बाज़ ने यह लिखा है हाथों से बुराई का ख़त्म करना हाकिमों के लिए ज़बान से बुराई के खिलाफ जिहाद उलमा के लिए और दिल में बुरा समझना अवाम के लिए है.

बाज़ का कौल है – जो शख्श जिस कुव्वत का मालिक हो उसे वही ताकत उस के मिटाने में खर्च करनी चाहिए और बुराई को मिटाना चाहिये. फरमाने इलाही है यहाँ “तआवनु” से मुराद नेकी की तरगीब देना, नेकी के रास्तों को आसान करना और शर व फसाद को हस्बे ताक़त बंद करने की कोशिश करना है. एक हदीस शरीफ में इरशाद हुआ “जिस ने किसी खिलाफ ए सुन्नत बात करने वाले को झिड़क दिया, अल्लाह ता आला उस के दिल को ईमान व इत्मिनान से भर देगा और जो ऐसे शख्स की तौहीन करता है अल्लाह ता आला उसे क़यामत के दिन बे खौफ कर देगा और जिस ने नेकी का हुक्म दिया और बुराइयों से रोका वह ज़मीन पर अल्लाह ता आला उस की किताब और उस के रसूल सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का खलीफा है.”

हजरते हुज़िफा रज़िअल्लाहो अन्हो का कौल है जल्द ही एक एसा वक़्त आने वाला है की लोगों को नेकी का हुक्म देने वाले और बुराई से रोकने वाले मोमिन से गधे का लाशा ज्यादा पसंदीदा होगा.

हजरते मूसा अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया – ए रब उस शख्श  का बदला क्या होगा जिसने अपने भाई को बुलाया, उसे नेकी का हुक्म दिया और बुराई से रोका रब ने फ़रमाया, उस के हर कलमे के बदले साल की इबादत लिख दी जाती है और मेरी रहमत को उसे जहन्नम में जलाते हुए शर्म आती है.

हदीसे कुदसी है अल्लाह ताआला फरमाता है “ऐ इन्सान! उस जैसा ना बन जो तौबा में देर करता है, उम्मीदें लम्बी रखता है और बगैर किसी अमल के आखिरत की तरफ लौटता है, बातें नेकों की करता है, अमल मुनाफिकों जैसा करता है, अगर उसे दे दिया जाये तो कनाअत नहीं करता, अगर ना दिया जाये तो सब्र नहीं करता, वह दूसरों को बुराइयों से रोकता है मगर खुद नहीं रुकता.”

 

आखिर ज़माने के बारे में हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद

इस जगह एक हदीस बयान करना मुनासिब है, हदीस बयान करने से पहले उस के रावी हज़रत अली रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया है की कसम खुदा की आसमान पर गिरना मेरे वास्ते आसां है लेकिन हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की तरफ से कोई झूटी बात मंसूब करना बहोत मुश्किल है. फिर हदीस बयान फरमाई मैंने हुज़ूरे अनवर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को यह फरमाते हुए सुना है की आखिर ज़माने में नव उम्र और कम समझ लोगों की एक जमात निकलेगी, बातें बज़ाहिर अच्छी कहेंगे लेकिन ईमान उन के हलक से नीचे नहीं उतरेगा, वह दीन से ऐसे निकल जायेंगे जैसे तीर शिकार से निकल जाता है. पस तुम्हे उन्हें जहाँ पाना क़त्ल कर देना है की क़यामत के दिन उन के क़त्ल के लिए बड़ा अजर व सवाब है”

 

मोमिन के लिए ज़रूरी है की दूसरों को नेकी का हुक्म देते वक़्त खुद भी अमल करे

फरमाने नबवी है की मैंने मेअराज़ की रात ऐसे आदमी देखे जिन के होंट आग की केंचियों से काटे जा रहे थे मैंने जिब्रील से पुछा यह कौन लोग है? उन्हों ने कहा यह आप की उम्मत के खतीब है जो लोगो को नेकी का हुक्म करते हैं मगर अपने आप को भूल जाते हैं.

तर्जुमा – “क्या तुम नेकी का लोगों को हुक्म देते हो और अपने नफ्स को भूल जाते हो हालाँकि तुम कुरआन पढ़ते हो की तुम अक्ल नहीं रखते?”

लिहाज़ा मोमिनो के लिए ज़रूरी है की वह नेकी का हुक्म दे, बुराइयों से रोके मगर अपने आप को भी ना भूले जैसा की फरमाने इलाही है

मोमिन मर्द और मोमिन औरते एक दुसरे के साथी हैं, नेकी का हुक्म करते हैं और बुराई से रोकते हैं और नमाज़ अदा करते हैं.

इस आयत में अल्लाह ने मोमिनो की यह सिफत बयान की वह नेकी का हुक्म देते हैं अब जो नेकी का हुक्म देना बंद करे दे वह उस तारीफ की हुई जमात में नहीं है और अल्लाह ता आला ने उन कौमों की बुराई बयान की है जिन्हों ने अम्र बिल माअरूफ को छोड़ दिया था.

हज़रत अबू दरदा राज़ी अल्लाहो अन्हो से मरवी है उन्होंने कहा नेकी का हुक्म देते रहना और बुराई से रोकते रहना, नहीं तो अल्लाह ताआला तुम पर ऐसे हाकिम मुक़र्रर कर देगा जो तुम्हारे बुजुर्गों का एहतेराम नहीं करेगा, तुम्हारे बच्चों पर रहम नहीं करेगा, तुम्हारे बड़े बुलाएँगे लेकिन उन की बात नहीं मानी जाएगी, वह मददगार तलब करेंगे मगर उन की मदद नहीं की जाएगी और वह बख्शिश तलब करेंगे मगेर उन्हें नहीं बख्शा जायेगा.

उम्मुल मोमीनीन हजरते आयशा सिद्दीका राज़ी अल्लाहो अन्हा से मरवी है, हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया, अल्लाह ताआला ने गांव वालों पर अज़ाब भेजा, उन में अस्सी हज़ार ऐसे भी थे जिन्होंने अम्बिया की तरह नेक अमल किये थे, पुछा गया यह कैसे हुआ? आप ने फ़रमाया, वह अल्लाह के लिए (अल्लाह की नाफ़रमानी के सिलसिले में) किसी को बुरा नहीं समझते थे और ना ही वह नेकी का हुक्म देते और बुराइयों से रोकते थे.

ज़मीन पर शोहदा से बुलंद मर्तबा मुजाहीदीन का .     

हज़रत अबूज़र गफ्फारी रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं की हज़रत अबू बकर सिद्दीक रज़ीअल्लाहो अन्हो ने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से दरयाफ्त किया, मुशरिकों से लड़ने के अलावा कोई और भी जिहाद है? हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया “हाँ अबू बकर !अल्लाह की ज़मीन पर ऐसे मुजाहीदीन रहते हैं जो शहीदों से अफज़ल हैं, ज़मीन पर चलते फिरते हैं, रिज्क पते हैं अल्लाह ता आला फरिश्तों में उन पर फख्र करता है, उन के लिए जन्नत संवारी जाती है जैसे उम्मे सलमह  को नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के लिए संवारा गया.सिद्दिके अकबर ने पुछा वह कौन लोग हैं? आप ने फ़रमाया “वह नेकी का हुक्म करने वाले, बुराइयों से रोकने वाले, अल्लाह के लिए दुश्मनी और अल्लाह के लिए मोहब्बत करने वाले हैं.”

फिर फ़रमाया “मुझे उस ज़ात की कसम जिस के कब्ज़ा ए कुदरत में मेरी जान है एसा शख्स जन्नत में तमाम बाला खानों से ऊपर, यहाँ तक की शहीदों के बाला खानों से भी ऊपर एक बाला खाने में होगा जिस के याकूत और सब्ज़ ज़मुररद के तीन सौ दरवाज़े होंगे और हर दरवाज़ा नूर से मामूर होगा और वहां पर तीन सौ पाक दामन हूरों से उन की शादी की जाएगी, जब वह किसी एक हूर की तरफ मुतवज्जाह होगा वह कहेगी तुम्हे वह दिन याद है जब तुम ने नेकी का हुक्म दिया था और बुराई से रोका था? दूसरी कहेगी आप को वह जगह याद है जहाँ आप ने नहीं अनिल मुनकर और अमर बिल माअरूफ किया था?”

रिवायत है की अल्लाह ताआला ने मूसा अलैहिस्सलाम से फ़रमाया, तुम ने कभी मेरे लिए भी अमल किया है? मूसा अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया या अल्लाह मैंने तेरे लिए नमाज़े पढ़ी, रोज़े रखे, सदका दिया तेरे आगे सजदे किये, तेरी हमद की, तेरी किताब को पढ़ा, और तेरा ज़िक्र करता रहा. अल्लाह ता आला ने फ़रमाया ए मूसा ! नमाज़ तेरी दलील, रोज़ा तेरे लिए ढाल, सदका तेरे लिए साया, तस्बीह तेरे लिए जन्नत में दरख़्त, किताब की किरात तेरे लिए जन्नत में हूर व महल और मेरा ज़िक्र तेरा नूर है. बता तूने मेरे लिए क्या अमल किया? मूसा मूसा अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया ए रब्बे ज़ुल्ज़लाल मुझे बता वह कौन सा अमल है जो मै तेरे लिए करूँ? अल्लाह पाक ने फ़रमाया तु ने कभी मेरी वजह से किसी से मोहब्बत की? तू ने मेरी वजह से कभी किसी से दुश्मनी रखी? तब मूसा अलैहिस्सलाम समझ गए की सब से अच्छा अमल अल्लाह के लिए मोहब्बत और अल्लाह के लिए दुश्मनी रखना है.

हज़रत अबू उबैदा बिन ज़र्राह रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं मैं ने सरकारे रिसालत मआब सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से पुछा या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम अल्लाह की बारगाह में कौन से शहीद की ज्यादा इज्ज़त है? आप ने फ़रमाया “वह जवान जो ज़ालिम हाकिम के सामने गया और उसे नेकी का हुक्म दिया और बुराई से रोका और उसी के बदले में क़त्ल कर दिया गया और अगर उसे क़त्ल नहीं किया गया तो वह जब तक जिंदा रहेगा उस के गुनाह नहीं लिखे जायेंगे.”

हज़रत हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं – हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया मेरी उम्मत में सब से अफज़ल शहीद वह शख्श है जो ज़ालिम हाकिम के पास गया, उसे नेकी का हुक्म दिया और बुराई से रोका और उसी वजह से उसे क़त्ल कर दिया गया, ऐसे शहीद का ठिकाना जन्नत में हज़रत हम्ज़ा और जाफर रज़ीअल्लाह अन्हो के दरमियान होगा.

 

अल्लाह ता आला ने हज़रत यूशा बिन नून अलैहिस्सलाम की तरफ वह्यी की कि मै तुम्हारी उम्मत के चालीस हज़ार नेकों और साठ हज़ार बुरों को हालाक करने वाला हूँ.   हज़रत यूशा अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ की, नेकों का क्या कुसूर है? अल्लाह ताआला ने फ़रमाया उन्होंने मेरे दुश्मनों को दुश्मन नहीं समझा और यह आपस में मेल मिलाप से रहते रहे.

 

हज़रत अनस रज़ी अल्लाह अन्हो कहते हैं हम ने कहा या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम क्या हमें नेकी का उस वक्त हुक्म करना चाहिए जब हम मुकम्मल तौर पर बुराइयों से किनारा काश हो जाएँ? हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया तुम नेकियों का हुक्म देते रहो अगरचे तुम मुकम्मल तौर पर अमल ना कर सको तुम बुरियों से रोकते रहो अगरचे तुम तमाम व कमाल तौर पर उस से किनाराकश न हो सके हो.”

एक नेक शख्श ने अपने बेटों को नसीहत की कि जब तुम में से कोई नेकियों का हुक्म देना चाहे तो उसे चाहिए की अपने नफ्स को सब्र का आदि बनाये और अल्लाह से सवाब की उम्मीद रखे क्यों की जो शख्श अल्लाह पर एतेमाद करता है वह कभी तकलीफों में मुब्तला नहीं होता.

           

 

नमाज़ में खुज़ूअ और खुशूअ

अल्लाह ताआला  का इरशाद है

“वह मोमिन नजात पाएंगे जो अपनी नमाज़ खुशूअ और खुज़ूअ के साथ अदा करते हैं”

उलमा ने फ़रमाया है की खुशूअ दो मानो में इस्तेमाल हौता है, बाज़ उलमा ने इसे अफआल ए कल्ब (दिल के कामों) में शुमार किया है जैसे डर, खौफ, ख़ुशी वगैरह और बाज़ ने उसे आज़ाए ज़ाहीरी के अफआल में शुमार किया है जिसे इत्मिनान से खड़ा होना, बे तवज्जोही और बे परवाही से बचना वगैरह. खुशूअ के माना में एक यह भी इख्तिलाफ है की यह नमाज़ के फराइज़ में से है या फ़ज़ाइल में से, जो उसे फराइज़े नमाज़ से समझते हैं उन की दलील यह हदीस है.

“बन्दे के लिए नमाज़ में वही कुछ है जिसे वह अच्छी तरह से समझता है.”

और फरमाने इलाही है “और गफ़लत, ज़िक्र के मुखालिफ है” जैसा की फरमाने इलाही है “तुम गाफेलीन में से ना बनो.”

बैहकी ने मोहम्मद बिन सीरीन रहमतुल्लाह अलैह से यह रिवायत नकल की है की हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम जब नमाज़ अदा फरमाते तो आसमान की तरफ नज़र फरमाते, तब यह आयत नाज़िल हुई. अब्दुर रज्जाक ने इस रिवायत में इतना इजाफा किया है की आपको खुशूअ का हुक्म दिया गया चुनाचे उस के बाद से आपने अपनी मुबारक आँखों को सजदा की जगह पर मारकूज़ फरमा दिया.

हाकिम और बैहकी ने हज़रत अबूहुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है की हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम जब नमाज़ पढ़ते तो आसमान की तरफ नज़र फरमाते, जिस पर यह आयत नाज़िल हुई, तब आपने अपने सर ए अक्दस को झुका लिया.

हज़रत हसन रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं की नबी करीम सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम का फरमान है “पांच नमाज़ों की मिसाल एसी है जैसे तुम में से किसी के घर के सामने एक बड़ी नहर बहती हो और वह उस में रोजाना पांच बार ग़ुस्ल करता हो तो क्या उस के जिस्म पर मैल रहेगा?” लिहाज़ा जब हुज़ूरे क़ल्ब और खुशूअ से नमाज़ पढ़ी जाये तो इन्सान कबीरा  गुनाहों के अलावा तमाम गुनाहों से पाक हो जाता है.बगैर खुशूअ के नमाज़ रद कर दी जाती है, फरमाने नबवी है “जिसने दो रक्आत नमाज़ पढ़ी और “उस के दिल में किसी किस्म का दुनियावी ख्याल नहीं आया तो उस के पिछले तमाम गुनाह बख्श दिए जाते है.”

फरमाने नबवी है “नमाज़ की फर्ज़ियत, हज का हुक्म तवाफ़ व मनासिफे हज का हुक्म अल्लाह ताआला के ज़िक्र के लिए दिया गया है अब अगर उन की अदायगी के वक़्त दिल में ज़िक्र ए खुदा की अज़मत व हैबत ना हो तो उस इबादत की  कोई कीमत नहीं.” फरमाने नबवी है जिसे “नमाज़ ने फहश (गंदे) और बुरे कामों से नहीं रोका वह अल्लाह ताआला  से दूर ही होता जायेगा.”

हज़रत बक्र बिन अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह का कौल है, “ए इन्सान अगर तू अपने मालिक के हुज़ूर बिना इज़ाज़त के और बगैर किसी तर्जुमान के गुफ्तगू करना चाहता है तो उस के दरबार में दाखिल हो जा, पुछा गया यह कैसे होगा?उन्होंने जवाब दिया वज़ू को मुकम्मल कर ले, फिर मस्जिद में चला जा, अब तु अल्लाह के दरबार में आ गया, अब बगैर किसी तर्जुमान के गुफ्तगू कर.”

हज़रत आयशा रज़ीअल्लाहो अन्हा का इरशाद है हम और हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम आपस में बातें करते थे, जब नमाज़ का वक़्त आ जाता तो अल्लाह ताआला  की अजमत की वजह से हम ऐसे हो जाते जैसे एक दुसरे को पहचानते भी नहीं. फरमाने नबवी है “अल्लाह ताआला उस नमाज़ की तरफ नहीं देखता जिस में इन्सान का दिल उस के बदन के साथ इबादत में शामिल नहीं होता.”

हजरते इब्राहीम अलैहहीस्सलाम जब नमाज़ के लिए खड़े होते तो काफी फासिले से उन के दिल की धड़कन सुनी जाती. हज़रत सईद तनुखी रहमतुल्लाह अलैह जब नमाज़ पढ़ते तो उनके आंसू उन के चेहरे और दाढ़ी पर गिरते रहते. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने एक आदमी को देखा वह नमाज़ की हालत में अपनी दाढ़ी से खेल रहा था. आपने फ़रमाया अगर इस के दिल में खुशूअ होता तो इस के आज़ा पुर सुकून होते.”

हज़रत अली रज़ीअल्लाहो अन्हो की नमाज़

जब नमाज़ का वक़्त आता तो हज़रत अली रज़ीअल्लाहो अन्हो के चेहरे का रंग बदल जाता और आप पर कपकपी तारी हो जाती, पुछा गया ए अमीरुल मोमिनीन! आप को क्या हो गया है? आप ने फ़रमाया अल्लाह ताआला  की उस अमानत की अदाएगी का वक़्त आ गया है? जिसे अल्लाह ताआला  ने आसमान व ज़मीन और पहाड़ों पर पेश किया था  मगर उन्होंने माज़ूरी ज़ाहिर कर दी थी और मैंने उसे उठा लिया.

रिवायत है की जब अली बिन हुसैन रज़ीअल्लाहो अन्हो वज़ू करते तो उन का रंग बदल जाता, घर वाले कहते आप को वज़ू के वक्त क्या तकलीफ लाहिक हो जाती है? आप जवाब देते, जानते नहीं हो मै किस की बारगाह में हाज़िर होने की तयारी कर रहा हूँ.

हज़रत हातिम असम से उन की नमाज़ के बारे में सवाल किया गया, उन्होंने कहा जब नमाज़ का वक़्त आ जाता है, मै पूरी तरह वज़ू कर के उस जगह आ जाता हूँ जहाँ में नमाज़ पढना चाहता हूँ, जब मेरे आज़ा पुरसुकून हो जाते हैं तो मै नमाज़ के लिए खड़ा होता हूँ. उस वक़्त काअबा को अपने सामने , पुल सिरात को कदमों के नीचे, जन्नत को दायें दोज़ख को बाएं, मलकुल मौत को पीछे और इस नमाज़ को आखिरी नमाज़ समझ कर खौफ व उम्मीद के दरमियाँ खड़ा हो जाता हूँ. दिल में तस्दीक करते हुए तकबीर कहता हूँ. ठहर ठहर कर तिलावत करता हूँ. तवाज़ो के साथ रुकूअ करता हूँ, खुशूअ सजदा करता हूँ, बाएं रान पर बैठता हूँ, बाएं पैर को बिछाता और दायें को खड़ा करता हूँ और सरापा ख़ुलूस बन जाता हूँ मगर यह नहीं जनता की मेरी नमाज़ कुबूल हुई या नहीं.”

हज़रत इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है,खूशुअ और खुज़ू की दो रक्आतें सियाह दिल वाले की सारी रात की इबादत से बेहतर हैं,” नबी का फरमान है “आखिर ज़माना में मेरी उम्मत के कुछ ऐसे लोग होंगे जो मस्जिदों में हल्का बना कर बैठेंगे दुनिया और दुनिया की मोहब्बत का ज़िक्र करते रहेंगे, उन की मजलिसों में ना बैठना अल्लाह ताआला  को उन की कोई ज़रुरत नहीं है.”

नमाज़ में चोरी

हज़रत हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं, नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया- “क्या मै तुम को बदतरीन चोर बताऊँ? सहाबा ए किराम रज़ीअल्लाहो अन्हो ने अर्ज़ किया हुज़ूर वह कौन है? आप ने फ़रमाया,  नमाज़ चुराने वाले हैं. अर्ज़ किया गया हुज़ूर नमाज़ में चोरी कैसे होती है? आप ने फ़रमाया, वह रुकुअ और सजदा सही तौर पर नहीं करेंगे.”

नबी का फरमान है, “क़यामत के दिन सब से पहले नमाज़ के बारे में पुछा जायेगा अगर नमाज़े पूरी होंगी तो हिसाब आसन हो जायेगा अगर नमाज़े कुछ कम होंगी तो अल्लाह ताआला  फरिश्तों से फरमाएगा. अगर मेरे बन्दे के कुछ नवा फिल हों तो उन से उन नमाज़ों को पूरा कर दो” नबी स.अ.व. का फरमान है, “बन्दे के लिए दो रक्अत नमाज़ पढने की तौफिक से बेहतर कोई और इनाम नहीं है.”

हज़रत उमर फारुके आज़म रज़ीअल्लाहो अन्हो जब नमाज़ पढने का इरादा करते तो आप का जिस्म कांपने लगता और दांत बजने लगते. आप से आप के बारे में पुछा गया तो कहा अमानत की अदायगी और फ़र्ज़ पूरा करने का वक़्त करीब आ गया है और मैं नहीं जनता की उसे कैसे अदा करूँगा.

सूफियों की नमाज़

हिकायत – हज़रत खलफ बिन अय्यूब रहमतुल्लाह अलैह नमाज़ में थे की उन्हें किसी जानवर ने काट लिया और खून बहने लगा मगर उन्हें महसूस ना हुआ, यहाँ तक की इब्ने सईद बाहर आये और उन्होंने आप को बताया और खून आलूदा कपडा धोया पुछा गया आप को जानवर ने काट लिया और खून भी बहा मगर आप को महसूस ना हुआ? आप ने जवाब दिया, उसे कैसे महसूस होगा जो अल्लाह ताआला के सामने खड़ा हो उस के पीछे मलकुल मौत हो बाएं तरफ जहन्नम और कदमों के नीचे पुल सीरात हो.

हज़रत उमर बिन ज़ुर रहमतुल्लाह अलैह जलीलुल कद्र आबिद और जाहिद थे. उन के हाथ में एक एसा जख्म पड़ गया की हकीमों ने कहा, इस हाथ को काटना पड़ेगा, आप ने कहा काट दो,  हकीमों ने कहा आप को रस्सियों से जकड़े बगेर एसा करना ना मुमकिन है. आप ने कहा एसा ना करो बल्कि जब में नमाज़ शुरू करूँ तब काट लेना चुनाचे जब आपने नमाज़ शुरू की तो आप का हाथ काट लिया गया मगर आप को महसूस भी ना हुआ.

   

         

  

अमानत के बारे में बयान 

फरमाने इलाही है “अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन और पहाड़ों पर अमानत पेश की, वह उसे सँभालने के लिए आमादा ना हुए.”

उन्हें खौफ हुआ की वह उस अमानत का हक अदा ना कर सकेंगे और अज़ाब के मुस्ताहिक होंगे, या उन्हें खयानत का खौफ हुआ. इस आयत ए करीमा में अमानत के मानी एसी इबादत और फराइज़ हैं जिन की अदाएगी और अदम ए अदायगी से सवाब व अज़ाब वाबस्ता और मुताल्लिक है.

कुरतबी का कौल है “अमानत दीन की तमाम शराइत व इबादत का नाम है.” यह जम्हूर का कौल है और कौले सही है. इस की तफसील में कुछ इख्तिलाफात है. इब्ने मसूद का कौल है – यह माल की अमानत है जैसे अमानत रखा हुआ माल वगैरह . उन से यह भी मर्वी है की फराइज़ में सब से अहम माल की अमानत है.

अबू दरदा  का कौल है की “जनाबत का ग़ुस्ल अमानत है”. इन्ब्ने उमर रज़िअल्लाहो अन्हो का कौल है की सब से पहले अल्लाह ता आला ने इन्सान की शर्मगाह को पैदा किया और फ़रमाया – “यह अमानत है जो मै तुझे ते रहा हूँ, उसे बे राह रवी से बचाना, अगर तू ने इस की हिफाज़त की तो मै तेरी हिफाज़त करूंगा.” लिहाज़ा शर्मगाह अमानत है, कान अमानत है ज़बान अमानत है, पेट अमानत है हाथ और पैर अमानत है और जिस में अमानत नहीं उस का ईमान नहीं.

हज़रत हसन रहमतुल्लाह अलैह का कौल है “जब अमानत आसमानों, ज़मीन और पहाड़ों पर पेश की गई, जो यह तमाम मज़ा हीरे कायनात और जो कुछ इन में है, सख्त बैचैन हो गए. अल्लाह ता आला ने उन से फ़रमाया अगर तुम अच्छे अमल करोगे, तो तुम को अजर मिलेगा और अगर बुरे काम करोगे तो में अज़ाब दूंगा तो उन्होंने उस के उठाने से इंकार कर दिया.”

मुजाहिद का कौल है की जब अल्लाह ताआला ने आदम को पैदा किया और उन पर अमानत पेश की और यही कहा गया तो उन्होंने कहा मै इस बोझ को उठाता हूँ.

 

यह बात समझ लीजिये की ज़मीन व आसमान और पहाड़ों को अमानत लेने ना लेने का इख़्तियार दिया गया था, उन्हें मजबूर नहीं किया गया था. अगर उन के लिए ज़रूरी करार दिया गया होता तो मजबूरन उन्हें यह अमानत का बोझ उठाना पड़ता.

 

किफाल वगैरह का कौल है की “इस आयत में अर्ज़ से एक मिसाल दी गई है की जमीं व आसमान और पहाड़ों पर उन की बे पनाह जसामत के बावजूद शरियते मुतहहरा  के हुक्मों की ज़िम्मेदारी अगर  उन पर डाली जाती तो यह अज़ाब व सवाब की वजह से उन पर गिरां गुज़रती क्यों की यह तकलीफ ही एसी मोहत्तम बिश्शान है की ज़मीन व आसमान और पहाड़ों का आज़िज़ आ जाना एन मुमकिन है मगर उसे इन्सान ने कुबूल कर लिया.” चुनाचे फरमाने इलाही है आदम अलैहिस्सलाम पर उस वक़्त यह अमानत पेश की गई जब की मिसाक के वक्त उन की औलाद को उन की सुल्ब से निकाला गया तो आदम ने यह अमानत का बोझ कुबूल कर लिया. फरमाने इलाही है “इन्सान ने इस अमानत के बोझ को उठा कर अपने आप पर ज़ुल्म किया और वह इस भारी भोझ का अंदाज़ा ना कर सका.”

 

हज़रत इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहो अन्हो का कौल है. यह अमानत आदम अलैहिसलाम पर पेश की गई और फरमान हुआ इसे मुकम्मल तौर पर ले लो, अगर तुम ने इताअत की तुम्हे बख्स दूंगा, अगर नाफ़रमानी की तो अज़ाब दूंगा. आदम अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया ए तमाम जहाँ के माबूद, मैंने मुकम्मल तौर पर कबूल किया और उसी दिन असर से रात तक का वक़्त ही गुज़रा था की उन्होंने शजरा ए ममनुआ  (मना किये हुए दरख़्त के फल को) को खा लिया. अल्लाह ताआला ने उन्हें अपनी रहमत में ले लिया. आदम अलैहिस्सलाम ने तौबा की और सिराते मुस्तकीम पर चलने लगे.

 

अमानत का मतलब

अमानत ईमान से बना हुआ लफ्ज़ है. जो शख्श खुदा की अमानत की हिफाज़त करता है, अल्लाह ता आला उस के ईमान की हिफाज़त करने वाला हौता है. नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फरमान है

“उस का ईमान नहीं जिस में अमानत नहीं और उस का दीन नहीं जिस में अहद का लिहाज़ नहीं.”

एक शायर कहता है जिसका मफहूम यह है की

“खुदा उस को हलक करे जो खयानत को अपनी पनाहगाह बनाये और अमानत की हिफाज़त से पहलूतही (ढील) करे.

उस ने दयानत व मुरव्वत को छोड़ दिया तो उस पर ज़माने की पै दर पै मुसीबते आने लगी.

दूसरा शायर कहता है जिसका मह्फूम है की

जो खयानत को अपनी आदत बना ले वह इस लाइक है की ज़माने के थपेड़ों का शिकार हो जाये.

जो शख्श बदअहदी या अहद शिकनी करता है, उस पर मुसलसल मुसीबतें नाज़िल होती रहती हैं.

 

अमानत के बारे में हदीसे शरीफ 

रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया

“मेरी उम्मत उस वक़्त तक भलाई पर रहेगी, जब तक वह अमानत को माल ए गनीमत और सदका को तावान न समझे. आप का फरमान है “जिस ने तुझे अमीन बनाया उस को अमानत लौटा दे और जिस ने तेरे  साथ खयानत की उस के साथ खयानत न कर.

बुखारी और मुस्लिम ने इस को रिवायत किया है “मुनाफ़िक की तीन निशानियाँ हैं, जब वह बात करता है झूट बोलता है. वादा करता है तो वादा के खिलाफ करता है. अमीन बनाया जाये तो खयानत करता है”. यानी जब कोई उसे किसी बात का राजदार बनता है तो दुसरे लोंगो को बतला देता है या अमानत लौटाने से इंकार कर देता है. या अमानत की हिफाज़त नहीं कर पाता या उसे अपने इस्तेमाल में लता है वगैरह.

अमानत की हिफाज़त मुकर्रब फरिश्तों, अम्बिया ए किराम और नेक बन्दों की पहचान है फरमाने इलाही है “अल्लाह ता आला तुम्हे हुक्म देता है तुम अमानते उन के मालिकों को लौटाओ.”

मुफ्फस्सिरीने किराम कहते है इस आयत ए करीमा में बहुत से शरई हुक्म मौजूद हैं और उस का ख़िताब आमतौर पर तमाम वालियों हकीमों से है, इसलिए वालियों के लिए ज़रूरी है की मजलूम के साथ इंसाफ करे . इजहारे हक से ना रुके क्यों की यह उन के पास अमानत है. आम तौर पर तमाम मुसलमानों और खास तौर पर यतीमों के माल की हिफाज़त करें.

उलमा के लिए लाजिम है की वह लोगो को दीनी अहकामात की तालीम दें क्यों की उलमा ने इस अमानत के बोझ को उठाने का अहद किया है. बाप के लिए लाजिम है की वह अपनी ओलाद के साथ अच्छा सुलूक करे और उसे अच्छी तालीम दे क्यों की यह उस के पास अमानत है. फरमाने नबवी है – “तुम में से हर एक हाकिम है और हर एक अपनी रिआया के बारे में जवाब देने वाला है.”

अमानत अदा ना करने वाले शख्श पर जहन्नम में अजीब अज़ाब 

ज़हरुर रियाज़ में है की क़यामत के दिन एक इन्सान को अल्लाह ता आला की बारगाह में पेश किया जायेगा. अल्लाह फरमाएगा तूने फलां शख्श की अमानत वापस की थी?बंदा अर्ज़ करेगा नहीं. रब ताआला हुक्म देगा और फ़रिश्ता उसे जहन्नम की तरफ ले जायेगा, वहां वह जहन्नम की गहराई में उस अमानत को रखा हुआ देखेगा, वह उस अमानत की तरफ गिरेगा और सत्तर साल के बाद वहां पहुंचेगा. फिर वह अमानत उठा कर ऊपर आएगा. जब वह जहन्नम के किनारे पर पहुचेगा तो उस का पाँव फिसल जायेगा और वह फिर जहन्नम की गहराई में गिर जायेगा. इसी तरह वह गिरता रहेगा और चढ़ता रहेगा. यहाँ तक की नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की शफाअत से उसे रब्बे जुल जलाल की रहमत हांसिल हो जाएगी और अमानत का मालिक उस से राज़ी हो जायेगा.

 

क़र्ज़ के सिवा शहीद का हर गुनाह माफ़ हो जाता है.

हज़रत सअलमा रज़िअल्लाहो अन्हो रिवायत करते है की हम नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में हाज़िर थे की एक जनाज़ा लाया गया ताकि नमाज़ अदा की जाये हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने पुछा.  इस पर कोई क़र्ज़ है? अर्ज़ किया गया की हाँ या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम. आपने फिर पुछा इसने कुछ छोड़ा है? अर्ज़ की गई हाँ तीन दीनार!, तब आपने नमाज़ पढाई.

एक और ज़नाज़ा लाया गया आपने पुछा इस पर क़र्ज़ है? अर्ज़ किया या रसूलल्लाह नहीं, आपने नमाज़ पढाई. फिर तीसरा जनाज़ा लाया गया,

आपने पुछा क्या इस पर क़र्ज़ है? साहबा ए किराम ने अर्ज़ किया जी हाँ या रसूलल्लाह!  आपने फ़रमाया इस ने जायदाद में से कुछ माल छोड़ा है? लोगो ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह नही. उस वक़्त आपने सहाबा ए किराम से इरशाद फ़रमाया  तुम इस की नमाज़ पढ़ लो लेकिन आपने नहीं पढ़ी.

हज़रत क़तादा रज़ील्लाहो अन्हो कहते हैं एक जवान ने नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से पुछा अगर में राह ए खुदा में शाकिर व साबिर, ईमान और उम्मीद ए सवाब लेकर आगे बढ़ता हुआ शहीद हो जाऊ तो अल्लाह ता आला मेरे गुनाहों को माफ़ कर देगा? आपने फ़रमाया  हाँ. जब वह जवान खिदमत से रुखसत हो गया तो आपने उसे बुला कर फ़रमाया “अल्लाह ता आला क़र्ज़ के सिवा शहीद के हर गुनाह को माफ़ कर देता है.”

           

   

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

Color Codes –  कुरआन मजीदहदीसे पाककौल (Quotes). 

शैतान और उस का अज़ाब

फरमाने इलाही है “पस अगर तुम ने अल्लाह और उस के रसूल की इताअत से मुह फेर लिया तो अल्लाह ताआला तुम्हे नहीं बख्शेगा, ना ही तुम्हारी तौबा कुबूल करेगा”

जैसे कुफ्र और तकब्बुर की वजह से शैतान की तौबा  कुबूल ना हुई और अपनी गलती का इकरार करने, शर्मिंदा होने और अपने नफ्स को मलामत करने की वजह से आदम अलैहिस्सलाम की तौबा अल्लाह ताआला ने कुबूल फरमा ली. अगरचे कौले सही के मुताबिक आदम अलैहिस्सलाम ने हकीकत में कोई गुनाह नहीं किया था. क्यों की अम्बिया अलैहिस्सलाम नुबुवत से सरफ़राज़ होने से पहले और बाद हर हाल में गुनाहों से पाक होते हैं. लेकिन सूरत गुनाह की सी थी लिहाज़ा आदम और हव्वा अलैहिमुससलाम ने बारगाहे इलाही में अर्ज़ किया “रब्बना ज़लमना अन्फुसना व इल्ललम ताग्फिर लना ल न कुनन्ना मेनल खासेरीन”

आदम अलैहिस्सलाम अपनी गलती पर शर्मशार हुए. अल्लाह की रहमत के उमीदवार हुए और तौबा में जल्दी की जैसा की फरमाने इलाही है

“मेरी रहमत से ना उम्मीद ना हो” लेकिन शैतान ने अपनी गलती को तस्लीम ना किया, परेशान न हुआ, अपने नफ्स को मलामत न की, तौबा में जल्दी न की और तकब्बुर की वजह से रहमते खुदाबंदी से ना उम्मीद हो गया चुनाचे आज भी जिस किसी की कैफियत इब्लीस की तरह होगी उस की तौबा कुबूल न होगी मगर जो आदम अलैहिस्सलाम की तरह करेगा उस की तौबा कुबूल हो जाएगी. क्यों की हर वह गुनाह जिस का ताल्लुक ख्वाईशात ए इंसानी से है, उस की बख्शिश मुमकिन है और जिस गुनाह का ताल्लुक तकब्बुर(घमंड) व खुद बिनी से है, उस की बख्शिश ना मुमकिन है. शैतान की गलती यही थी और आदम अलैहिस्सलाम की खता ख्वाइश ए नफ्स से थी.

मूसा अलैहिस्सलाम के पास शैतान आया

हिकायत – एक मर्तबा शैतान मूसा अलैहिस्सलाम के पास आया और कहने लगा आप को अल्लाह ताआला ने रसूल बनाया है और आप से कलाम फरमाता है आप ने फ़रमाया – हाँ! मगर तुम कौन हो और क्या कहना चाहते हो? कहने लगा मै शैतान हूँ, अल्लाह ताआला से सवाल कीजिये की तेरी मखलूक तुझ से तौबा की तलबगार है. अल्लाह ताआला ने मूसा अलैहिस्सलाम  पर वह्यी की. फ़रमाया उस से कहो की हम ने तेरी दरख्वास्त को कुबूल किया मगर एक शर्त के साथ की आदम अलैहिस्सलाम की कब्र पर जाकर सजदा कर ले, जब तू सजदा कर लेगा, मै तेरी तौबा कुबूल कर लूँगा और तेरे गुनाहों को माफ़ कर दूंगा. मूसा अलैहिस्सलाम ने जब शैतान को यह बताया तो वह गुस्से से लाल हो गया और गुरूर और किब्र की वजह से कहने लगा ए मूसा ! मैंने तो आदम को जन्नत में सजदा नहीं किया तो अब उन की कब्र को कैसे सजदा कर लूँ?

 

हिकायत – शैतान को जहन्नम में आदम को सजदा करने को कहा जायेगा

शैतान को जहन्नम में सख्त अज़ाब दे कर पुछा जायेगा तु ने अज़ाब को कैसा पाया? जवाब देगा बहुत सख्त. उसे कहा जायेगा आदम जन्नत के बागों में हैं उन्हें सजदा कर लो और गुज़रे हुए आमाल की माफ़ी मांग लो ताकि तेरी बख्शिश हो जाये. मगर शैतान सज्दा करने से इंकार कर देगा, फिर उस पर आम जहन्नमियों की निस्बत सत्तर हज़ार गुना ज्यादा अज़ाब भेजा जायेगा.

एक रिवायत में है की अल्लाह ताआला हर एक लाख साल बाद शैतान को आग से निकाल कर उसे आदम को सजदे का हुक्म देगा मगर वह बराबर इंकार करता रहेगा और उसे बार बार जहन्नम में डाला जाता रहेगा

पस अगर तुम इब्लीस से नजात हांसिल करना चाहते हो तो रब्बे करीम के दमन ए रहमत से चिमट जाओ और उसी से पनाह मांगो.

 

क़यामत के दिन शैतान का क्या होगा?

जब क़यामत का दिन होगा, शैतान के लिए आग की कुर्सी राखी जाएगी, वह उस पर बैठेगा, तमाम शैतान और काफ़िर वहां जमा हो जायेंगे. शैतान गधे की तरह चीखता हुआ कहेगा ऐ जहन्नमियों! तुम ने अपने रब को वादे का कैसा पाया? सब कहेंगे की बिलकुल सच्चा पाया. फिर वह कहेगा मै आज के दिन अल्लाह की रहमत से ना उम्मीद हो गया हूँ. तब अल्लाह ताआला की तरफ से फरिश्तों को हुक्म होगा की उस पर और उस की पैरवी करने वालों पर आग के डंडे बरसाओ, पस वह कभी भी वहां से निकलने का हुक्म नहीं सुनेगे(हमेशा वहीँ रहेंगे).

एक रिवायत है, शैतान को क़यामत के दिन लाया जायेगा और उस के गले में लानत का तौक पहना कर आग की कुर्सी पर बैठाया जायेगा.अल्लाह ताआला जहन्नुम के फरिश्तों को हुक्म देगा, उस की कुर्सी को जहन्नम में धकेल दो मगर वह कोशिश के बावजूद एसा नहीं कर सकेंगे. तब जिब्रील अलैहिस्सलाम को अस्सी हज़ार फरिश्तों के साथ उसे धकेलने का हुक्म मिलेगा मगर वह भी बे बस हो जायेंगे. फिर इस्राफील अलैहिस्सलाम फिर इजराईल अलैहिस्सलाम को फरिश्तों की अस्सी हज़ार की जमाअत के साथ हुक्म मिलेगा मगर वह भी नहीं धकेल सकेंगे. इर्शादे खुदा होगा “अगर मेरे पैदा किये फरिश्तों से दुगने फ़रिश्ते भी आ जाएँ तो भी उसे नहीं हिला सकेंगे क्यों की उस के गले में लानत का तौक पड़ा हुआ है.”

 

अलग अलग आसमानों पर शैतान के नाम

शैतान का नाम पहले आसमान पर आबिद, दुसरे पर जाहिद तीसरे पर आरिफ चौथे पर वली, पांचवे पर मुत्तकी, छठे पर अज़ाजील और लौहे महफूज़ पर इब्लीस था. वह अपनी आकिबत से बे फ़िक्र था जब उसे हज़रत आदम को सजदा करने का हुक्म मिला तो कहने लगा ऐ अल्लाह! तू ने इसे मुझ पर फ़ज़ीलत दे दी हालाँकि मै इस से बेहतर हूँ, तू ने मुझे आग से और इसे मिटटी से पैदा किया है. अल्लाह ताआला ने फ़रमाया मै जो चाहता हूँ वह करता हूँ! शैतान ने अपने आप को आदम अलैहिस्सलाम से बेहतर समझा और तकब्बुर की वजह से आदम से मुह फेर कर खड़ा हो गया. जब फ़रिश्ते आदम अलैहिस्सलाम को सजदा कर के उठे तो उन्हों ने देखा की शैतान ने सजदा नहीं किया तो वह दोबार सजदा ए शुक्र में गिर गए लेकिन शैतान उन से बे ताल्लुक खड़ा रहा और उसने अपने इस काम पर कोई पशेमानी ना हुई, तब अल्लाह ताआला ने उसकी सूरत बिगाड़ दी.

खिन्ज़िर (सूअर) की तरह लटका हुआ मुहं, सर उंट के सर की तरह, सीना बड़े ऊंट के कोहान जैसा, उन के बीच चेहरा ऐसे जैसे बन्दर का चेहरा, आंखे बड़ी, नथने हज्जाम के बर्तन जैसे खुले हुए, होंट बैल के होंटों की तरह लटके हुए, दांत खिंजीर की तरह बाहर निकले हुए और दाढ़ी में सिर्फ सात बाल, इसी सूरत में उसे जन्नत से नीचे फेंक दिया गया बल्कि आसमान व ज़मीन से ज़जीरों की तरफ फेंक दिया गया. वह अब अपने कुफ्र की वजह से ज़मीन पर छुपते छुपते आता है और क़यामत तक के लिए लानत का मुस्तहिक बन गया है. शैतान कितना खूबसूरत, ज्यादा इल्म वाला, ज्यादा इबादत करने वाला, फरिश्तों का सरदार, मुकर्रबीन का सरखेल था मगर उसे कोई चीज़ अल्लाह के गज़ब से ना बचा सकी. बेशक इस में अकल्मंदो के लिए इबरत है.

एक रिवायत में है की जब अल्लाह ताआला ने शैतान की पकड़ की तो जिब्रील व मीकाईल रोने लगे. रब ने फ़रमाया क्यों रोते हो? अर्ज़ की ए अल्लाह! तेरी पकड़ के खौफ से रोते हैं! इरशाद हुआ इसी तरह मेरी पकड़ से रोते रहना!

 

औलादे आदम पर शैतान का गलबा

शैतान ने अल्लाह से कहा – ऐ अल्लाह! तू ने मुझे जन्नत से निकाला तो आदम के सबब, अब मुझे औलादे आदम पर गलबा अता फरमा,

अल्लाह ने फ़रमाया मैंने तुझे नबियों के इलावा जिन की इस्मत मुसल्लम  है, आदम की औलाद पर गलबा दिया. शैतान बोला कुछ और? अल्लाह ताआला ने फ़रमाया जितनी आदम की औलाद होगी उतनी ही तेरी औलाद होगी. शैतान बोला कुछ और? ख़ुदावंदे कौनैन ने फ़रमाया – मैंने उनके सीनों को तेरा मसकन बनाया, तु उन में खून की तरह गर्दिश करेगा, अर्ज़ की कुछ और? फरमाने इलाही हुआ? अपने सिवा और प्यादा मददगारों से मदद मांग कर उन्हें हराम माल की कमाई पर आमादा कर सकता है, उन्हें हैज़ के दिनों वगैरह में मजामअत से औलादे हराम का हकदार बना सकता है और हरामकरी की वजहें पैदा कर सकता है, उन्हें मुशरिकाना नाम सिखाना इन्हें गन्दी बातें बुरे अफआल और झूटे मजहबों के जरिया गुमराह कर सकता है, इन्हें झूठी तसल्ली दे सकता है जैसे झूठे माबूदों की शफाअत, आबा व अजदाद की करामातों पर फख्र, लम्बी उम्मीदों के ज़रिये तौबा में देर और यह सब कुछ डराने के तौर पर था जैसा की फरमाने इलाही है “तुम जो चाहो करो”.

आदम अलैहिसलाम ने अर्ज़ की ऐ अल्लाह ! तू ने मेरी औलाद पर इब्लीस को मुसल्लत कर दिया, अब उससे रिहाई तेरी रहमत के बगैर कैसे होगी? खुदा ने फ़रमाया तेरे हर एक फरजंद के साथ मै मुहाफिज़ फ़रिश्ते बनाऊंगा. अर्ज़ किया अभी और भी कुछ और! अल्लाह ने फ़रमाया एक नेकी का सवाब उन्हें दस गुना मिलेगा. अर्ज़ की अभी कुछ और? अल्लाह ने फ़रमाया उनकी आखिरी साँस तक उन की तौबा कुबूल करूँगा. अर्ज़ किया की कुछ और अता फरमा! फरमान हुआ उन के लिए बख्शिश आम कर दूंगा. मै बे नियाज़ हूँ. आदम अलैहिस्सलाम बोले ! ए मेरे रब यह काफी है.

शैतान ने कहा ए अल्लाह! तूने आदमी की औलाद में नबी बनाये, उन पर किताबें नाज़िल की, मेरे रसूल और किताबें क्या हैं? जवाब आया काहिन  तेरे रसूल और गुदी हुई खालें तेरी किताबें, झूठ तेरी हदीसें, तेरा कुरआन शेर – तेरे मुआज़्ज़िन बाजे, तेरी मस्जिद बाज़ार, तेरा घर हम्माम खाने, तेरा खाना वह जिस पर मेरा नाम ना लिया गया हो तेरा पीना शराब और औरतें तेरा जाल हैं.

 

*** हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ.-किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

इताअते इलाही,मोहब्बत ए इलाही व मोहब्बते रसूल

फरमाने इलाही है

“फरमा दीजिये ए नबी! अगर तुम अल्लाह से मोहब्बत रखते हो तो मेरी पैरवी करो अल्लाह तुम्हे महबूब रखेगा.”

अल्लाह ताआला तुम पर रहम फरमाए, अच्छी तरह समझ लो की बन्दे के लिए अल्लाह और उस के रसूल की मोहब्बत, उन की इताअत और उन के हुक्मों की पैरवी है और अल्लाह ताआला के लिए बन्दों की मोहब्बत, रहमत और बख्शिश का नाज़िल होना है.

जब बंदा यह बात समझ लेता है की हकीकी कमालात सिर्फ अल्लाह ही के लिए हैं और मखलूक के कमालात भी हकीक़त में अल्लाह के कमालात हैं और अल्लाह ही के अता किये हुए हैं तो उस की मोहब्बत अल्लाह के साथ और अल्लाह के लिए हो जाती है. यही चीज़ इस बात का तकाज़ा करती है की बंदा अल्लाह की इताअत करे और जिन बातों का इकरार करता है उन उमूर (कामों) से उस मोहब्बत में इज़ाफा हो. इसलिए मोहब्बत को इताअत के इरादों का नाम दिया गया है. और उस को इख्लासे इबादत और रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की  इत्तेबा के साथ मशरूत (शर्त लगाई गयी) किया गया है.

हज़रत हसन रहमतुल्लाह अलैह का कौल है “कुछ लोगों ने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से अर्ज़ किया की हम रब ताआला से मोहब्बत करते हैं, तब यह आयत ए करीमा नाज़ील हुई. यानि इताअत ए रसूल सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मोहब्बते इलाही का मुजीब है.

 

हज़रत बिश्र हाफी रहमतुल्लाह अलैह को बुलंद मक़ाम कैसे अता हुआ?

हज़रत बिश्र हाफी रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं की मै नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के दीदार बहजते असरार से ख्वाब में मुशरफ हुआ. आप ने मुझ से पुछा बिश्र हाफी! जानते हो अल्लाह ने तुम्हे तुम्हारे हम- ज़माना लोगों से बुलंद मक़ाम क्यों दिया है? मैने अर्ज़ की नहीं या रसूलल्लाह! आप ने फ़रमाया इसलिए की तुम नेकों की खिदमत करते हो, दोस्तों को नसीहत करते हो, मेरी सुन्नत और अहले सुन्नत से मोहब्बत रखते हो और अपने दोस्तों से हुस्ने सुलूक रखते हो.”

फरमाने नबवी स.अ.व. है

“जिस ने मेरी सुन्नत को जिंदा किया उस ने मुझे से मोहब्बत की और जिस ने मुझ से मोहब्बत की वह क़यामत के दिन मेरे साथ होगा.”

शिरअतुल इस्लाम और आसारे मशहूरा में है की जब मज़हब में फितने पैदा हो जाएँ और मखलूक में परागन्दगी रुनुमा हो जाये, उस वक़्त हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की सुन्नत पर अमल पैरा होने का सवाब सौ शहीदों के अजर के बराबर है.

हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया

“मेरी तमाम उम्मत जन्नत में जाएगी मगर जिस ने इंकार किया. अर्ज़ किया गया हुज़ूर! इंकार किस ने किया? आप ने फ़रमाया जिस ने मिरी पैरवी की वह जन्नत में जायेगा, जिस ने मेरी नाफ़रमानी की उस ने गोया इंकार किया, हर वह अमल जो मेरे तरीके के मुताबिक नहीं वह गुनाह है.”

एक आरिफे बासफा का इरशाद है “अगर तु किसी शैख़ को हवा पर उड़ता हुआ या पानी पर चलता हुआ या आग वगैरह खाता हुआ देखे लेकिन वह जान बूझ कर अल्लाह के किसी फ़र्ज़ या नबी स.अ.व. की किसी सुन्नत का छोड़ने वाला हो तो वह झूठा है. उस का मोहब्बत का दावा झूठा है और यह उस की करामात नहीं. इस्तिदराज है.”

हज़रत जुनैद रहमतुल्लाह अलैह का कौल है

 “कोई शख्श भी अल्लाह तक उस की तौफिक के बगैर नहीं पहुंचा और अल्लाह तक पहुँचने का रास्ता मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की इकतेदाअ और इत्तेबाअ है.

हज़रत अहमदुल ह्वारी रहमतुल्लाह अलैह का कौल है “इत्तेबाअ  ए सुन्नत के बगैर हर अमल बातिल है”.

शिरातुल इस्लाम फरमाने नबवी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम है की

“जिस ने सुन्नत को जाया किया उस पर मेरी शफाअत हराम है.”

 

अल्लाह का दीवाना आशिक

एक शख्श ने एक दीवाने से एक ऐसा काम होते देखा जो उम्मीद के खिलाफ था, वह जनाब मारूफ करखी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पहुंचा और वक़ेआ कह सुनाया. आप ने कहाअल्लाह के बहुत से आशिक हैं, कुछ छोटे हैं कुछ बड़े, कुछ अक्लमंद हैं कुछ दीवाने हैं, जिस शख्श को तुम ने देखा वह अल्लाह का आशिके दीवाना है.”

हिकायत – हज़रत जुनैद कहते हैं की हमारे शैख़ सिर्री सकती रहमतुल्लाह अलैह बीमार हो गए. हमें उन के बीमारी की वजहों का पता नहीं चल रहा था. किसी ने हमें एक माहीर हकीम का पता बताया हम उन का करुरह (पेशाब) उस हकीम के पास ले गए, वह हकीम कुछ देर ध्यान से उसे देखता रहा फिर बोला! यह किसी आशिक का पेशाब नज़र आता है. यह सुनते ही मै बेहोंश हो गया और बोतल मेरे हाथ से गिर गयी. जब मैंने सिर्री सकती रहमतुल्लाह अलैह को वापस आकर वकेआ बतलाया तो उन्होंने तबस्सुम फ़रमाया और फ़रमाया उसे अल्लाह समझे! उस ने यह कैसे मालूम कर लिया? मैंने पुछा क्या मोहब्बत के असरात पेशाब में भी ज़ाहिर होते हैं आप ने फ़रमाया हाँ!”

हज़रत फुजैल रहमतुल्लाह अलैह का कौल है “जब तुझ से पुछा जाये तु अल्लाह से मोहब्बत करता है, तो चुप हो जा क्यों की अगर तु नहीं में जवाब देगा तो यह कुफ्र होगा और अगर हैं कहेगा तो तेरे अन्दर आशिकों जैसी कोई सिफत ही मौजूद नहीं है तो खामोशी इख़्तियार कर के नाराज़गी से बच जा.”

जनाब सुफियान रहमतुल्लाह अलैह का कौल है “जो शख्श अल्लाह ताआला के दोस्त को दोस्त रखता है वह अल्लाह को दोस्त रखता है और जो अल्लाह ताआला के एहतेराम करने वाले का एहतेराम करता है वह अल्लाह का एहतेराम करता है”.

जनाब सहल रहमतुल्लाह अलैह का कौल है “खुदा की मोहब्बत की निशानी मोहब्बत ए कुरआन है. खुदा की मोहब्बत और कुरआन की मोहब्बत की निशानी मोहब्बत ए नबी है और नबी की मोहब्बत की निशानी नबी की सुन्नत से मोहब्बत है और सुन्नत की मोहब्बत की निशानी आखिरत की मोहब्बत है, आखिरत की मोहब्बत दुनिया से बुग्ज़ का नाम है. और दुनिया से नफरत की निशानी मामूली माल ए दुनिया पर राज़ी होना और आखिरत के लिए दुनिया को खर्च करना है.”

हज़रत अबुल हसन जनजाफी का कौल है इबादत की बुनियाद तीन चीज़ें हैं आँख, दिल और ज़बान – आँख इबरत के लिए, दिल गौर फ़िक्र के लिए और ज़बान सच्चाई का गहवारा और ज़िक्र व तस्बीह के लिए हो” चुनाचे फरमाने इलाही है “तुम अल्लाह का बहुत ज़्यादा ज़िक्र करो और सुबह व शाम उस की तस्बीह बयान करो.”

 

उम्र एक कीमती जौहर है ! अल्लाह वाले वक्त को बेफजूल कामों में नहीं लगाते 

हिकायत – हज़रत अब्दुल्लाह और अहमद बिन हरब एक जगह गए. अहमद बिन हरब ने वहां सुखी घांस का एक टुकड़ा काटा, हज़रत अब्दुल्लाह ने जनाब अहमद बिन हरब से कहा तुझे पांच चीज़ें हांसिल हो गई, तेरे इस काम से तेरा दिल अल्लाह की तस्बीह से गाफिल हुआ, तूने अपने नफ्स को अल्लाह के ज़िक्र के इलावा काम की आदत डाली, तू ने अपने नफ्स के लिए एक रास्ता बना दिया जिस में वह तेरे पीछे पड़ेगा, तूने उसे अल्लाह की तस्बीह से रोका और क़यामत के लिए अपने नफ्स को रब के सामने एक हुज्जत दे दी.

हज़रत शैख़ सिर्री सकती रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं मैंने शैख़ जुर्जानी के पास पिसे हुए सत्तू देखे. मैंने पुछा आप सत्तू के इलावा और कुछ क्यों नहीं खाते? उनोने जवाब दिया मैंने खाना चबाने और सत्तू पीने में सत्तर तस्बीहों का अंदाज़ा लगाया है. चालीस साल हुए मैंने रोटी खाई ही नहीं!ताकि उन तस्बीहों का वक़्त बर्बाद ना हो.

हज़रत सहल बिन अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह पंद्रह दिन में सिर्फ एक बार खाते और जब रमजान का महिना आता तो महीने में सिर्फ एक बार खाते. बाज़ औकात तो वह सत्तर दिनों तक भी कुछ ना खाते. जब आप खाना खाते तो कमज़ोर हो जाते और जब भूके रहते तो ताक़तवर हो जाते थे.

हज़रत अबू हम्मादुल अस्वद रहमतुल्लाह अलैह तीस साल कअबा के पडोसी रहे मगर किसी ने उन्हें खाते पीते नहीं देखा और ना ही वह एक लम्हा अल्लाह के ज़िक्र से गाफिल हुए.

हिकायत :- जनाब अमर बिन उबैद रहमतुल्लाह अलैह तीन कामों के इलावा कभी घर से बाहर ना निकलते, नमाज़ बा जमाअत के लिए, मरीजों के अयादत के लिए और ज़नाजों में शामिल होने के लिए और वह फरमाते है “मैंने लोगों को चोर और रहज़न (डाकू) पाया है. उम्र एक उम्दा जौहर है जिस की कीमत  का तसव्वुर नहीं किया जा सकता लिहाज़ा उस से आखिरत के लिए खजाना करना चाहिए और आखिरत के चाहने वाले के लिए ज़रूरी है की वह दुनिया में रियाज़त करे ताकि उस का ज़ाहिर और बातिन एक हो जाये. ज़ाहिर व बातिन पर पूरा इख़्तियार हांसिल किये बगैर हालत का संभालना मुश्किल है.”

हज़रत शिबली रहमतुल्लाह अलैह का कौल है “शुरू की रियाज़त में जब मुझे नींद आती तो मै आँखों में नमक की सलाई लगाता, जब नींद ज्यादा परेशां करती तो में गर्म सलाई आँखों में फेर लेता.

हज़रत इब्राहीम बिन हाकिम रहमतुल्लाह अलैह का कौल है “मेरे वालिद मोहतरम को जब नींद आने लगती तो वह दरिया के अन्दर तशरीफ़ ले जाते और अल्लाह की तस्बीह करने लगते जिसे सुन कर दरिया की मछलियाँ जमा हो जाती और वह भी तस्बीह करने लगती.”

हज़रत वहब इब्ने मम्बा रहमतुल्लाह अलैह ने रब से दुआ मांगी मेरी रात की नींद उदा दे अल्लाह ने उनकी दुआ कुबूल की और उन्हें चालीस बरस तक नींद ना आई.

हज़रत हसन हल्लाज रहमतुल्लाह अलैह शुरू के ज़माने में बाज़ार जाते और अपनी दुकान खोल कर उस के आगे पर्दा डाल देते और चार सौ रक्आत नफ्ल अदा कर के दुकान बंद करके घर वापस आ जाते. हज़रत हब्शी बिन दाउद रहमतुल्लाह अलैह ने चालीस साल ईशा के वुज़ू से सुबह की नमाज़ पढ़ी.

लिहाज़ा हर मोमिन के लिए ज़रूरी है की वह बा वुज़ू रहे. जब बे वुज़ू हो जाये तो फ़ौरन वुज़ू कर के दो रक्आत नफ्ल अदा करे. हर मजलिस में क़िबला की तरफ मुह कर के बैठे, हुज़ूर दिल और मुराकबा  के साथ यह तसव्वुर करे की वह हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के सामने बैठा है. तहम्मुल और नरमी को अपने अफआल में लाजिम रखे, दुःख झेले मगर बुराई का बदला बुराई से ना दे. गुनाहों से इस्तिग्फार करता रहे. खुद बीनी और रिया के करीब ना जाये क्यों की खुद बीनी शैतान की सिफत है. अपने आप को हिकारत से और नेक लोगों को एहतेराम से देखे इसलिए की जो शख्श नेकों के एहतेराम को नहीं जनता अल्लाह ताआला उसे उनकी सोहबत से महरूम कर देता है और जो शख्श इबादत की हुरमत व अज़मत को नहीं जानता अल्लाह ताआला उस के दिल से इबादत की मिठास निकाल लेता है.

 

आदमी नेक कब हौता है? हज़रत फुजैल बिन अयाज़ से के सवाल

हज़रत फुजैल बिन अयाज़ रहमतुल्लाह अलैह से पुछा गया, ए अबू अला! आदमी नेक कब हौता है? फ़रमाया उस की नीयत में नसीहत, दिल में खौफ, ज़बान पर सच्चाई और उस के आज़ा से नेक आमाल ए स्वालेहा का सुदूर होता है.

अल्लाह ताआला ने मेअराज की रात नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से फ़रमाया

ऐ अहमद! स.अ.व. अगर आप को तमाम लोगों से ज़्यादा परहेजगार बनना पसंद है तो दुनिया से बेरग्बती और आखिरत से रगबत कीजिये, आपने अर्ज़ किया इलाहुल आलमीन! दुनिया से बे रग्बती कैसे हो? फरमाने इलाही हुआ दुनिया के माल से ज़रुरत भर खाने पीने और पहनने के चीज़ें ले लीजिये और बस! कल के लिए इकठ्ठा ना कीजिये और हमेशा मेरा ज़िक्र करते रहिये.”

 हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने दरियाफ्त फ़रमाया ज़िक्र पर दवाम (हमेशगी) कैसे हो? जवाब मिला लोगों से अलहदगी इख़्तियार कीजिये. नमाज़ को और भूख को अपनी खुराक बनाइये. फरमाने नबवी है “दुनिया से किनारा कशी जिस्म व जान की ताजगी है और दुनिया की रगबत में गम व परेशानी की फरावानी है, दुनिया की मोहब्बत हर बुराई की जड़ है और किनारा कशी हर खैर व बरकत की बुनियाद है.”

 

बीमार दिल का इलाज क्या है ?

एक नेक शख्श का एक जमाअत के पास से गुज़र हुआ. वहां एक मुआलिज बिमारियों और दवाइयों का ज़िक्र कर रहा था. नेक जवान ने पुछा ऐ जिस्मों के मुआलिज़ ! क्या तेरे पास दिलों का भी इलाज है. वह बोला हाँ बताओ, दिल में क्या बीमारी है? नेक जवान ने कहा गुनाहों की ज़ुल्मत ने उसे सख्त कर दिया है. मुआलिज़ ने कहा उस का इलाज सुबह व शाम गिरया व ज़ारी, इस्तिग्फार, रब्बे गफूर की इताअत में कोशिश और अपने गुनाहों पर माफ़ी चाहना है. दवा तो यह है, शिफा रब के पास है. वह नेक जवान इतना सुनते ही बेहाल हो गया और कहने लगा तुम हकीकत में एक अच्छे तबीब हो. तुम ने लाजवाब इलाज बताया. तबीब ने कहा यह उस दिल का इलाज है जो ताईब होकर के अपने रब के हुज़ूर आ गया हो.

 

दो आकाओं की खिदमत

एक शख्श ने एक गुलाम ख़रीदा, गुलाम ने कहा ए मालिक मेरी तीन शर्ते हैं-

जब नमाज़ का वक़्त आये तो मुझे उस के अदा करने से ना रोकना!

दिन को मुझ से जो चाहो काम लो मगर रात को नहीं .

मुझे एसा कमरा दो जिस में मेरे सिवा कोई ना आये.

 

मालिक ने तीनों शर्त मंज़ूर करते हुए कहा घर में रहने के लिए कोई कमरा पसंद कर लो. गुलाम ने एक ख़राब सा कमरा पसंद कर लिया. मालिक बोला तूने ख़राब कमरा क्यों पसंद किया?गुलाम ने जवाब दिया ऐ मालिक! यह ख़राब कमरा अल्लाह के यहाँ चमन है, चुनाचे वह दिन को मालिक की खिदमत करता और रात को अल्लाह की इबादत में मशगूल रहता. एक रात उस का मालिक वहां से गुज़रा तो उस ने देखा कमरा रौशन है, गुलाम सजदे में है और उस के सर पर नूरानी किन्दील लटकी है और वह आह व ज़ारी करते हुए कह रह है, या इलाही? तू ने मुझ पर मालिक की खिदमत वाजिब कर दी है और मुझ पर यह ज़िम्मेदारी ना होती तो में सुबह व शाम तेरी इबादत में मशगूल रहता, ए अल्लाह! मेरा उज्र क़ुबूल फरमा. मालिक सारी रात उस की इबादत देखता रहा यहाँ तक की सुबह हो गई. किन्दिल बुझ गई और कमरे की छत पहले की तरह बराबर हो गई. वह वापस लौटा और अपनी बीवी को सारा माजरा कह सुनाया.

जब दूसरी रात हुई तो वह अपनी बीवी को साथ लेकर वहां पहुँच गया, वहां देखा तो गुलाम सजदे में था और रोशन किन्दील रौशन थी, वह दोनों दरवाज़े पर खड़े हो गए और सारी रात उसे देख कर रोते रहे जब सुबह हुई तो उन्होंने गुलाम को बुलाकर कहा – हम ने तुझे अल्लाह के नाम पर आज़ाद कर दिया है ताकि तु फरागत से उस की इबादत कर सके, गुलाम ने अपने हाथ आसमान की तरफ उठाये और कहा, ए साहिबे राज़ – राज़ ज़ाहिर हो गया, अब में इस राज़ के खुलने और शोहरत के बाद ज़िन्दगी नहीं चाहता. फिर कहा ए इलाही! मुझे मौत दे दे और गिर कर मर गया. हकीकत में नेक, आशिक और मौला के चाहने वाले लोगों के हालात ऐसे ही हौते है.

 

अल्लाह की पहचान जिसे हो जाती है वह ..

मूसा अलैहिसलाम से दोस्त की फरमाइश

ज़हरुर रियाज़  में है की मूसा  अलैहिसलाम का एक अज़ीज़ दोस्त था, एक दिन आप से कहने लगा ए मूसा! मेरे लिए दुआ कर दीजिये की अल्लाह ताआला मुझे अपनी मारेफ़त  अता फरमाए. आप ने दुआ की, अल्लाह ताआला ने आप की दुआ कबूल फरमाई और वह दोस्त, आबादी से किनारा कश होकर पहाड़ों में जंगलियों के साथ रहने लगा. जब मूसा अलैहिसलाम ने उसे ना पाया तो खुदा से इल्तेजा की इलाही ! मेरा वह दोस्त कहाँ गया? अल्लाह ने फ़रमाया ऐ मूसा जो मुझे सही मानों में पहचान लेता है वह मखलूक की दोस्ती कभी पसंद नहीं करता.

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