इश्क और मोहब्बत

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

Color Codes –  कुरआन मजीदहदीसे पाक, कौल (Quotes). 

मोहब्बत की तारीफ :- मोहब्बत नाम है पसंदीदा चीज़ की तरफ तबियत के झुकाव का अगर यह झुकाव शिद्दत इख़्तियार कर जाये तो उसे इश्क कहते हैं. उस में ज्यादती हौती रहती है, यहाँ तक की आशिक महबूब का बिना ख़रीदा हुआ गुलाम बन जाता है. और माल और दौलत उस पर कुर्बान कर देता है.

 

युसूफ अलैहिस्सलाम से ज़ुलैखा की मोहब्बत

ज़ुलैखा की मिसाल ले लीजिये जिस ने युसूफ अलैहिस्सलाम की मोहब्बत में अपना हुस्न,माल और दौलत कुर्बान कर दिया. ज़ुलैखा के पास सत्तर ऊँटों के बोझ के बराबर जवाहरात व मोती थे जो उसने इश्के युसूफ में निसार कर दिए. जब भी कोई यह कह देता की मैंने युसूफ अलैहिस्सलाम को देखा है तो वह उसे बेश कीमती हार दे देती यहाँ तक की कुछ भी बाकि ना रहा. उस ने हर चीज़ का नाम युसूफ रख छोड़ा था और मोहब्बत की ज्यादती में युसूफ अलैहिस्सलाम के सिवा सब कुछ भूल गई थी. जब आसमान की तरफ देखती तो उसे हर सितारे में युसूफ का नाम नज़र आता था.

कहते हैं की जब ज़ुलैखा ईमान ले आई और हज़रत युसूफ अलैहिस्सलाम की जौज़ियत (निकाह में) में आ गई तो सिवाए इबादत और अल्लाह की तरफ तवज्जोह के उसे कोई काम नहीं था. अगर युसूफ अलैहिस्सलाम उसे दिन को अपने पास बुलाते तो कहती की रात को आउंगी और रात को अपने पास बुलाते तो दिन का वादा करती. युसूफ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया ज़ुलैखा! तू तो मेरी मोहब्बत में दीवानी थी, जवाब दिया यह उस वक़्त की बात है की जब में आप की मोहब्बत की हकीकत से वाकिफ से वाकिफ न थी, अब मै आप की मोहब्बत की हकीकत पहचान चुकी हूँ इसलिए अब मेरी मोहब्बत में तुम्हारी शिरकत भी गंवारा नहीं! हज़रत युसूफ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया की मुझे अल्लाह ने इस बात का हुक्म फ़रमाया है और मुझे बताया है की तेरे बतन (पेट) से अल्लाह ता आला दो बेटे पैदा करेगा और दोनों को नुबुव्वत से सरफ़राज़ फ़रमाया जायेगा. ज़ुलैखा ने कहा अगर यह हुक्मे रब्बी है और इस में अल्लाह की हिकमत है तो में सरे तस्लीम झुकाती हूँ.

 

मजनू ने अपना नाम लैला बताया

मजनू से किसी ने पुछा तेरा नाम क्या है? बोला लैला! एक दिन उस से किसी ने कहा लैला मर गई? मजनू ने कहा लैला नहीं मरी वह तो मेरे दिल में है और मै ही लैला हूँ. एक दिन जब मजनू का लैला के घर से गुज़र हुआ तो वह सितारों को देखता हुआ गुजरने लगा. किसी ने कहा, निचे देखो शायद तुम्हारी लैला नज़र आ जाये. मजनू बोला मेरे लिए लैला के घर के ऊपर चमकने वाले सितारे की जियारत ही काफी है.

 

मोहब्बत की इब्तेदा और इन्तहा

जब मंसूर हल्लाज को कैद में अठ्ठारह दिन गुज़र गए तो जनाब शिबली रहमतुल्लाह अलैह ने उन के पास जाकर दरयाफ्त किया ए मंसूर! मोहब्बत क्या है? मंसूर ने जवाब दिया आज नहीं कल यह सवाल पूछना जब दूसरा दिन हुआ और उन को कैद से निकाल कर मक़तल की तरफ ले गए तो वहां मंसूर ने शिबली को देख कर कहा शिबली! मोहब्बत की इब्तेदा जलना और इन्तहा क़त्ल हो जाना है!”

इशारा- जब मंसूर रहमतुल्लाह अलैह की निगाहे हक देखने वाली निगाहों ने इस हकीकत को पहचान लिया की अल्लाह ता आला के ज़ात के सिवा हर चीज़ बातिल है, और ज़ाते इलाही ही हक़ है तो वह अपने नाम तक तो भूल गए,  लिहाज़ा जब उनसे सवाल किया गया की तुम्हारा नाम क्या है? तो जवाब दिया अनल हक़ मैं हक हूँ (I am the Truth)

मुन्तहा में है की मोहब्बत का सिदक तीन चीज़ों में ज़ाहिर हौता है.मोहब्बत करने वाला महबूब की बातों को सबसे अच्छा समझता है. उस की मजलिस को तमाम मजलिस से बेहतर समझता है उस की रज़ा को औरों की रज़ा पर तरजीह देता है.

कहते हैं की इश्क पर्दा दारी करने वाला और राज़ों को ज़ाहिर करने वाला है और वज्द ज़िक्र की शीरीनी के वक़्त रूह के, गलबा ए शौक का बोझ उठाने से आज़िज़ हो जाता है. यहाँ तक की अगर वज्द की हालत में इन्सान का कोई अंग भी काट लिया जाये तो उसे महसूस नहीं होगा.

हिकायत – एक आदमी फुरात नदी में नहा रहा था, उस ने सुना की कोई शख्श यह आयत पढ़ रहा है “ऐ मुजरिमों आज अलहिदा हो जाओ!” यह सुनते ही वह तड़पने लगा और डूब कर मर गया.

 

मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह बगदादी रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं, मैंने बसरा में एक बुलंद मकाम पर खड़े हुआ एक नौजवान को देखा जो लोगों से कह रहा था की जो आशिकों की मौत मरना चाहे उसे इस तरह मरना चाहिए( क्यों की इश्क में मौत के बगैर कोई लुत्फ़ नहीं है) इतना कहा और वहां से खुद को गिरा दिया. लोगो ने जब उसे उठाया तो वह दम तोड़ चूका था. जनाब जुनैद बगदादी रहमतुल्लाह अलैह का कौल है की तसव्वुफ़ अपनी पसंद को तर्क कर देने का नाम है.”

हिकायत – ज़हरुर रियाज़ में है, हजरते जुन्नुन मिस्री रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं एक दिन में खाना ए काबा में दाखिल हो गया. मैंने वहां सुतून के करीब एक बरहना नौजवान मरीज़ को पड़े देखा जिसके दिल से रोने की आवाजें निकल रही थी. मैंने करीब जाकर उसे सलाम किया और पुछा तुम कौन हो? उस ने कहा मै एक गरिबुल वतन आशिक हूँ. मै उस की बात समझ गया और मैंने कहा मै भी तेरी तरह हूँ. वह रो पड़ा, उस का रोना देख कर मुझे भी रोना आ गया. उस ने मुझे देख कर चीख मारी और उस की रूह परवाज़ कर गई. मैंने उस पर अपना कपडा डाला और कफ़न लेने चला आया. जब में कफ़न लेकर वापस पहुंचा तो वह जवान वहां नही था. मेरे मुह से अचानक सुबहानअल्लाह निकला. तब मै ने हतिफे गैबी की आवाज़ सुनी जो कह रहा था. ए जुन्नुन उस की ज़िन्दगी में शैतान उसे ढूंढता था, मगर ना पा सका,दोज़ख के मालिकों ने उसे ढूंडा मगर ना पा सका, रिजवान ए जन्नत भी उसे तलाश के बावजूद ना पा सका. मैंने पुछा फिर वह कहाँ गया? जवाब आया अपने इश्क, कसरते इबादत और तौबा में जल्दी की वजह से वह अपने क़ादिर रब्बुल इज्ज़त के हुज़ूर पहुँच गया है.

 

आशिक की पहचान

एक शख्श से आशिक के मुताल्लिक पुछा गया, उन्होंने कहा आशिक मेल मिलाप से दूर , गौर व फ़िक्र में डूबा हुआ और चुप चाप रहता है. जब उसे देखा जाये वह नज़र नहीं आता. जब बुलाया जाये तो सुनता नहीं जब बात की जाये तो समझता नहीं और जब उस पर कोई मुसीबत आ जाये तो ग़मगीन नहीं होता. वह भूक की परवाह और नंगे होने का एहसास नहीं रखता. किसी की धमकियों से नहीं डरता, वह तन्हाई में अल्लाह ता आला से इल्तिजायें करता है. उस की रहमत से उन्स और मोहब्बत रखता है. वह दुनिया के लिए दुनिया वालों से नहीं झगड़ता.

जनाब अबू तुरब बख्शी रहमतुल्लाह अलैह ने इश्क की पहचान में यह चाँद शेर कहे हैं जिनका मफहूम इस प्रकार है 

तु धोका ना दे क्यों की महबूब के पास दलीलें और आशिक के पास महबूब तोहफों के वसाइल हैं..

एक पहचान यह है की वह अपनी सख्त आज़माइश से लुत्फ़ अन्दोज़ होता है और महबूब जो करता है वह उस पर खुश होता है.

उस की तरफ से मना करना भी अतिया है और फकर उस के लिए इज्ज़त अफजाई और एक फौरी नेकी है.

एक पहचान यह है की वह महबूब की फरमाबरदारी का पक्का इरादा रखता है अगरचे उसे मलामत करने वाले मलामत करें

एक पहचान यह है की तुम उसे मुस्कुराता हुआ पाओगे अगरचे उस के दिल में महबूब की तरफ से आग सुलग रही हो

एक पहचान यह है की तुम उसे खाताकारों की गुफ्तगू समझता हुआ पाओगे.

और एक पहचान यह है की तुम उसे हर उस बात का हिफाज़त करने वाला पाओगे जिसे वह कहता है.

मोहब्बत का आधा ज़र्रा

हिकायत – हजरत ईसा अलैहिस्सलाम एक जवान के करीब से गुज़ारे जो बाग़ को पानी दे रहा था. उस ने आप से अर्ज़ किया की अल्लाह से दुआ कीजिये,अल्लाह ता आला मुझे एक ज़र्रा अपने इश्क का अता फरमा दे. आपने फ़रमाया एक ज़र्रा बहुत बड़ी चीज़ है तुम उस को उठाने की ताक़त नहीं रखते. कहने लगा अच्छा आधे ज़र्रे का सवाल कीजिये,  हजरत ईसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह से सवाल किया, ऐ अल्लाह! इसे आधा ज़र्रा अपने इश्क का अता फरमा दे! उस के हक में यह दुआ कर के आप वहां से रवाना हो गए.

काफी दिनों के बाद आप फिर उसी रास्ते से गुज़रे और उस जवान के बारे में पुछा लोगो ने कहा वह तो दीवाना हो गया है और कहीं पहाड़ों की तरफ निकल गया है. हज़रत ईसा ने अल्लाह से दुआ की ऐ अल्लाह ! मेरी उस जवान से मुलाकात करा दे. फिर तो आप ने देखा वह एक चट्टान पर खड़ा आसमान की तरफ देख रहा था. आप ने उसे सलाम कहा मगर वह खामोश रहा. आप ने कहा मुझे नहीं जानते में ईसा हूँ? अल्लाह ता आला ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की तरफ वह्यी की की “ऐ ईसा !जिस के दिल में मेरी मोहब्बत का आधा ज़र्रा मौजूद हो वह इंसानों बात कैसे सुनेगा? मुझे अपनी इज्ज़त व जलाल की कसम! अगर उसे आरी से दो टुकड़े भी कर दिया जाये तो उसे महसूस भी नहीं होगा.

जो शख्श तीन बातों का दावा करता है और खुद उन को तीन चीज़ों से पाक नहीं रखता तो उस का दावा झूठा है.

जो शख्श ज़िक्रे इलाही की मिठास को पाने का दावा करता है मगर दुनिया से भी मोहब्बत करता है.

जो अपने आमाल में इखलास का दावा करता है मगर लोगों से अपनी इज्ज़त अफजाई का ख्वाहिशमंद है.

जो अपने खालिक की मोहब्बत का दावा करता है मगर अपने नफ्स को ज़लील नहीं करता.

फरमाने रसूल स.अ.व. है की “मेरी उम्मत पर अनकरीब एसा ज़माना आने वाला है. जब वह पांच चीज़ों से मोहब्बत करेंगे और पांच चीज़ों को भूल जायेंगे.

1 दुनिया से मोहब्बत रखेंगे,आखिरत को भूल जायेंगे

2 माल से मोहब्बत रखेंगे, और हिसाब के दिन को भूल जायेंगे

3 मखलूक से मोहब्बत रखेंगे और खालिक को भूल जायेंगे.

4 गुनाहों से मोहब्बत रखेंगे मगर तौबा को भूल जायेंगे

5 मकानों से मोहब्बत रखेंगे और कब्र को भूल जायेंगे.”

 

हज़रत मंसूर इब्ने अम्मार रहमतुल्लाह अलैह ने एक जवान को नसीहत करते हुए कहा ऐ जवान! तुझे तेरी जवानी धोके में ना डाले, कितने जवान ऐसे थे जिन्होंने तौबा को मुवख्खर (टालना) और अपनी उम्मीदों को लम्बा कर दिया, मौत को भुला दिया और यह कहते रहे की कल तौबा कर लेंगे, परसों तौबा कर लेंगे यहाँ तक की उसी गफ़लत में मलकुल मौत आ गया और वह अँधेरी कब्र में जा सोये, न उन्हें माल ने ना उन्हें गुलामों ने ना औलाद ने और ना ही मन बाप ने कोई फायदा दिया, फरमाने इलाही है की

“उस दिन अमवाल व औलाद कुछ फायदा ना देंगे.”

ऐ रब्बे जुल जलाल ! हमें मौत से पहले तौबा की तौफिक दे, हमें ख्वाबे गफ़लत से होशियार फरमा दे और सय्य्दुल मुरसलीन सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की शफाअत नसीब फरमा

 

मोमिन की तारीफ

मोमिन की तारीफ यह है की वह हर घडी तौबा करता रहे और अपने पिछले गुनाहों पर शर्मिंदा रहे, थोड़ी सी मता ए दुनिया पर राज़ी रहे, दुनियावी कामों को भूल कर आखिरत की फ़िक्र करे और खुलुसे दिल से अल्लाह ता आला की इबादत करता रहे.

 

एक बखील मुनाफ़िक का बीवी को तंदूर में बंद करने का किस्सा

एक मुनाफ़िक बेहद बखील था उस ने अपनी बीवी को कसम दी की अगर तू ने किसी को कुछ दिया तो तुझ पर तलाक है. एक दिन मांगने वाला उधर आ निकला और उस ने खुदा के नाम पर सवाल किया, औरत ने उसे तीन रोटियां दे दी. वापसी में उसे वही बखील मिल गया और पुछा तुझे यह रोटियां किस ने दी है? साईल ने उस के घर के बारे में बताया की मुझे वहां से मिली हैं, बखील तेज़ कदमों से घर की तरफ चल पड़ा और घर पहुँच कर बीवी से बोला में ने तुझे कसम नहीं दी थी की किसी साईल को कुछ नहीं देना?बीवी बोली मांगने वाले ने अल्लाह के नाम पर सवाल किया था लिहाज़ा में टाल ना सकी.

कंजूस ने जल्दी से तंदूर भड़काया, जब तंदूर सुर्ख हो गया तो बीवी से उठ अल्लाह के नाम पर तंदूर में दाखिल हो जा ! औरत खड़ी हो गई और अपने जेवरात लेकर तंदूर की तरफ चल पड़ी, कंजूस चिल्लाया की जेवरों को यहीं छोड़ जा! औरत ने कहा आज मेरा महबूब से मुलाक़ात का दिन है, में उस की बारगाह में बन संवर कर जाउंगी और जल्दी से तंदूर में घुस गई. उस बदबख्त ने तंदूर को बंद कर दिया. जब तीन दिन गुज़र गए तो उस ने तंदूर का ढक्कन उठा कर अन्दर झाँका मगर यह देख कर हैरान रह गया की औरत अल्लाह की कुदरत से उस में सही सलामत बैठी हुई थी. हतिफे गैबी ने आवाज़ दी “क्या तुझे इल्म नहीं की आग हमारे दोस्तों को नहीं जलाती.”

 

फिरौन की बीवी हज़रत आसिया का ईमान

हज़रत आसिया रज़िअल्लाहो अन्हा ने अपना ईमान अपने शोहर फिरौन से छुपाया था. जब फिरौन को उस का पता चला तो उस ने हुक्म दिया की उसे तरह तरह के आजाब दिए जाएँ ताकि हज़रत आसिया र.अ.ईमान को छोड़ दें, लेकिन आसिया साबित कदम रही तब फिरौन ने कीलें मंगवाई और उन के जिस्म पर कीलें गडवा दीं और फिरौन कहने लगा अब भी वक़्त है ईमान को छोड़ तो मगर हज़रत आसिया ने जवाब दिया तू मेरे वजूद पर कादिर है. लेकिन मेरा दिल मेरे रब की बनाह में है. अगर तू मेरा हर अंग काट दे तब भी मेरा इश्क बढ़ता जायेगा.

मूसा अलैहिस्सलाम का वहां से गुज़र हुआ, आसिया ने उन से पुछा मेरा रब मुझ से राज़ी है या नहीं? हज़रत मूसा ने फ़रमाया ऐ आसिया! आसमान के फ़रिश्ते तेरे इंतेज़ार में हैं और अल्लाह ता आला तेरे कारनामों पर फख्र फरमाता है, सवाल कर तेरी हर हाजत पूरी होगी. आसिया ने दुआ मांगी ऐ मेरे रब मेरे लिए अपने जवारे रहमत में जन्नत में मकान बना दे. मुझे फिरौन उस के मज़ालिम और उन ज़ालिम लोगों से नजात अता फरमा!

हज़रत सलमान  रज़िअल्लाहो अन्हो कहते हैं आसिया को धुप में तकलीफ दी जाती थी. जब लौट जाते तो फ़रिश्ते अपने परों से आप पर साया किया करते थे और वह अपने जन्नत वाले घर देखती रहती थी.

हज़रत अबू हुरैरा रज़िअल्लाहो अन्हा कहते हैं की जब फिरौन ने हज़रत आसिया को धुप में लिटा कर चार कीलें उन के जिस्म में गडवा दीं और उन के सीने पर चक्की के पाट रख दिए तो जनाबे आसिया ने आसमान की तरफ निगाह उठा कर अर्ज़ की “ऐ मेरे रब मेरे लिए अपने जवारे रहमत में जन्नत में मकान बना दे”

जनाबे हसन रहमतुल्लाह अलैह कहतें हैं अल्लाह ता आला ने उस दुआ के तुफैल आसिया को फिरौन से बा इज्ज़त रिहाई अता फरमाई और उन को जन्नत में बुला लिया जहाँ वह जिन्दों की तरह खाती पीतीं हैं.

इस किस्से से यह बात वाजेह हो गई की मुसीबतों और तकलीफों में अल्लाह की पनाह मांगना उस से आरज़ू करना और रिहाई का सवाल करना मोमिनों और नेकों का तरीका है.

*** हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ.-किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

sachcha ishk, sachchi mohabbat, Allah ka ishk, Zulaikha aur Yusuf alehissalam ka kissa,    

   

अल्लाह से मोहब्बत

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

Color Codes –  कुरआन मजीदहदीसे पाककौल (Quotes). 

कहते हैं की एक आदमी ने एक जंगल में एक बुरी सूरत को देख कर पुछा तू कौन है? उस ने जवाब दिया मै तेरा बुरा अमल हूँ? उस ने पुछा तुझ से निजात की भी कोई सूरत है? उस ने जवाब दिया की हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम पर दुरुद पढना, जैसा की हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फरमान है

“मेरे ऊपर दरूद पुल सिरात के लिए नूर है, जो मुझ पर जुमा के दिन 80 मर्तबा दुरुद भेजता है, अल्लाह ताआला उसके 80 साल के गुनाहों को माफ़ कर देता है.”

 

दुरुद ना भेजने वाले से हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का एअराज़

 

एक आदमी  हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम पर दुरुद नहीं भेजता था, एक रात उसने ख्वाब में हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को देखा, आप ने उस की तरफ तवज्जोह नहीं फरमाई,  उस आदमी ने अर्ज़ किया क्या हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मुझ से नाराज़ हैं इसलिए तवज्जोह नहीं फरमाई?  नहीं, मै तुम्हे पहचानता ही नहीं हूँ. अर्ज़ की गई हुज़ूर मुझे कैसे नहीं पहचानते जब की उलमा कहते हैं की आप अपने उम्मतियों को उन की माँ से भी ज्यादा पहचानते हैं. आप ने फ़रमाया, उलमा ने सच कहा है, लेकिन तूने मुझे दुरुद भेज कर अपनी याद ही नहीं दिलाई. मेरा कोई उम्मती मुझ पर जितना दुरुद भेजता है, में उसे उतना ही पहचानता हूँ. उस शख्श के दिल में यह बात बैठ गई, और उसने रोजाना एक सौ बार दरूद शरीफ पढना शुरू कर दिया. कुछ मुद्दत बाद हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के दीदार से फिर ख्वाब में मुशर्रफ हुआ. आप ने फ़रमाया की मै अब तुझे पहचानता हूँ, और में तेरी शफ़ाअत करूँगा. यह इसलिए क्यों की वह रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का मुहिब बन गया था. फरमाने इलाही है

“ऐ रसूल! उन से कह दीजिये की अगर तुम अल्लाह को दोस्त रखते हो तो मेरी पेरवी करो, अल्लाह ताआला तुम को दोस्त रखेगा”.

इस आयत की शान ए नुज़ूल यह है की जब हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने कअब बिन अशरफ और उस के साथियों को इस्लाम की दावत दी तो वह कहने लगे हम तो अल्लाह ताआला के बेटों की तरह हैं और उस से बहुत मोहब्बत करते हैं, तब अल्लाह ताआला ने अपने नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से कहा उन से कह दीजिये! अगर तुम अल्लाह ताआला से मोहब्बत रखते हो तो मेरी पैरवी करों मै अल्लाह का रसूल हूँ” मैं तुम्हारी तरफ उस का पैगाम पहुँचाने वाला और तुम्हारे लिए अल्लाह की हुज्जत बन कर आया हूँ. मेरी पैरवी करोगे तो अल्लाह तुम्हे महबूब बनाएगा और तुम्हारे गुनाहों को माफ़ कर देगा. वह गफूर और रहीम है.

मोमिनो की मोहब्बत अल्लाह के साथ यह है की वह उस के हुक्मों पर अमल करें. उस की इबादत करें और उस की रज़ा के तलबगार रहें और अल्लाह ताआला की मोमिनों के साथ मोहब्बत यह है की वह उन की तरफ करे उन्हें सवाब अत फरमाए, उन के गुनाहों को माफ़ करे और उन्हें अपने रहमत से बेहतरीन तौफिक दे. इफ्फत और इस्मत अता फरमाए.

 

चार चीज़ों का झूठा दावा

जो शख्श चार चीज़ों के बगैर चार चीज़ों का दावा करता है वह झूठा है

1 जो जन्नत की मोहब्बत का दावा करता है मगर नेकी नहीं करता

2 जो शख्श नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की मोहब्बत का दावा करता है मगर आलिमों और नेक लोगों को दोस्त नहीं रखता

3 जो आग से डरने का दावा करता है मगर गुनाह नहीं छोड़ता.

4 जो शख्श अल्लाह की मोहब्बत का दावा करता है मगर तकलीफों की शिकायत करता है जैसा की हज़रत राबिया बसरी र.अ. फरमाती हैं

“तू अल्लाह ताआला की नाफ़रमानी करता है हालाँकि ज़ाहिर में तू खुदा की मोहब्बत का दावेदार है,  मुझे ज़िन्दगी की कसम! यह अनोखी बात है. अगर तेरी मोहब्बत सच्ची होती तो तू उस की पैरवी करता क्यों की मुहिब जिस से मोहब्बत करता है उस की फरमाबरदारी करता है.”

और मोहब्बत की पहचान महबूब की मुवाफकत करने और उस के खिलाफ ना करने में हैं.

 

जनाबे शिबली रहमतुल्लाह अलैह से मोहब्बत का दावा

 एक जमाअत जनाब शिबली रहमतुल्लाह अलैह के पास आई और वह लोग कहने लगे, हम तुम से मोहब्बत करते हैं, आप ने उन्हें देख कर पत्थर मारे तो वह लोग भाग खड़े हुए. आप ने पुछा अगर तुम वाकई मुझ से मोहब्बत करते थे तो मेरी तरफ से दी गई इतनी सी तकलीफ पर क्यों भाग गए हो? फिर शिबली रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया, अहले मोहब्बत ने उल्फत का प्याला पिया तो उन पर यह फैली ज़मीन और शहर तंग हो गए, उन्होंने अल्लाह ताआला को ऐसे पहचाना जेसे पहचानने का हक़ है. वह उस की अज़मत में सरगर्दां और उस की कुदरत में हैरान हैं.उन्होंने मोहब्बत का जाम पिया और उस की मोहब्बत के समुन्दर में डूब गए और उस की बारगाह में मुनाजात से शीरीनी हांसिल की..फिर आपने यह शेर पढ़ा जिसका मतलब कुछ इस तरह था

“ऐ मौला तेरी मोहब्बत की याद ने मुझे मदहोश कर दिया, क्या तूने किसी ऐसे मोहब्बत करने वाले को देखा है जो मदहोश ना हो”

 

कहते हैं की जब ऊंट मस्त हो जाता है तो चालीस दिन तक घांस वगेरह नहीं खाता और अगर उस पर पहले से दो गुना बोझ लाद दिया जाये तब भी उसे उठा लेता है. इसलिए की जब उस का दिल महबूब की यात में तड़पता है तो उसे ना चारे की ख्वाइश होती है ना ही वह भारी भोझ उठाने से घबराता है. जब ऊंट अपने महबूब की याद में अपनी ख्वाइशों को छोड़ देता है और भारी बोझ उठा लेता है तो क्या तुमने भी कभी अल्लाह ताआला की रज़ा की खातिर अपनी ना जायज़ ख्वाइशों को छोड़ा है?कभी खाना पीना बंद किया है?कभी अपने जिस्म पर भारी बोझ डाला है?अगर तुमने इन कामों में से कोई काम नहीं किया तो तुम्हारा दावा झूठा है, जो तुम्हे न दुनिया में फायदा देगा ना आखिरत में ना मखलूक के नज़दीक फायदामंद है ना खालिक के हुज़ूर में.

हजरते अली करमअल्लाहो वजहहु फरमाते हैं – “जो जन्नत का उम्मीदवार हुआ उस ने नेकियों में जल्दी की जो जहन्नम से डरा उस ने खुद को ना जायज़ ख्वाइशों से रोक दिया और जिसे मौत का यकीन आ गया उस ने दुनिया की लज्ज़तों को ख़त्म कर दिया.”

जनाब इब्राहीम खवास रहमतुल्लाह अलैह से मोहब्बत के बारे में सवाल किया गया तो आप ने फ़रमाया मोहब्बत नाम है इरादों को ख़त्म कर देने तमाम सिफ्तों और ज़रूरतों को मुर्दा कर देने और अपने वजूद को इशारों के समंदर गर्क करने का.”  

*** हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ.-किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

Allah se mohabbat, shibli rahamatullah alaih ka kissa, 

      

गुनाहों से तौबा   

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

Color Codes –  कुरआन मजीदहदीसे पाककौल (Quotes). 

गुनाहों पर तौबा हर मुसलमान मर्द और औरत पर वाजिब है. फरमाने इलाही है –

“ऐ ईमान वालों! अल्लाह से पक्की तौबा (तोबतुन्नसुह) करो.”

एक और मक़ाम पर इर्शादे इलाही है

तुम उन लोगो की तरह ना हो जाओ जिन्होंने अल्लाह को भुला दिया.उस की भेजी हुई किताबों को पीठ पीछे डाल दिया”,

गोया उन्होंने अपने हाल पर रहम नहीं किया,और अपने आप को गुनाहों से नहीं बचाया और आखिरत के लिए कोई नेकी नहीं की. फरमाने नबवी स.अ.व. है की

“जो शख्श अल्लाह ताआला से मुलाकात पसंद करता है अल्लाह ताआला उस से मुलाकात पसंद फरमाता है,और जो अल्लाह ताआला से मिलना नापसंद करता है अल्लाह ताआला उससे मिलना नापसंद फरमाता है. फरमाने इलाही है

यही लोग नाफरमान, वादा के तोड़ने वाले, रहमत व बख्शिश और राहे हिदायत से दूर हैं.

 

फ़ासिक की किस्में

फ़ासिक की दो किस्मे हैं

1 फ़ासिक काफ़िर

2 फ़ासिक फाजिर

 

फ़ासिक काफ़िर और फ़ासिक फाजिर कौन हौता है ?

फ़ासिक काफ़िर वह है जो अल्लाह ताआला और उस के रसूल पर ईमान नहीं रखता, हिदायत को छोड़कर गुमराही का तालिब होता है जैसा की फरमाने इलाही है “तो फिस्क किया उसने अपने रब के हुक्म के बारे में”

फ़ासिक फाजिर वह है जो शराब पीता है, माल ए हराम खाता है, बदकारियाँ करता है, इबादत को छोड़कर गुनाहों में ज़िन्दगी बसर करता है. मगर अल्लाह ताआला को वाहिद मानता है और उस के साथ शरीक नहीं ठहराता.

इन दोनों में फर्क यह है की फ़ासिक काफिर की बख्शिश मौत से पहले पहले कलमा ए शहादत और तौबा के बगैर ना मुमकिन है और फ़ासिक फाजिर की मगफिरत मौत से पहले तौबा और पशेमानी के ज़रिये मुमकिन है और हर वह गुनाह जिस की बुनियाद तकब्बुर और खुदबीनी है उस की मगफिरत नामुमकिन है, शैतान की नाफ़रमानी की वजह भी यही तकब्बुर और खुद बीनी थी.

पस ए इन्सान तेरे लिए ज़रूरी है की मरने से पहले अपने गुनाहों से तौबा कर ले शायद की अल्लाह ताआला गुनाहों को माफ़ फरमा दे. जैसा की फरमाने इलाही है

“अल्लाह वह है जो अपने बन्दों की तौबा कबूल करता है और उन के गुनाहों से दरगुज़र फरमाता है.

हुज़ूर स.अ.व. ने फ़रमाया है “गुनाहों से तौबा करने वाला उस शख्श की तरह है जिस से कोई गुनाह सरज़द ना हुआ हो.

 

हिकायत – नौजवान की तौबा कुबूल होने का किस्सा 

एक जवान था वह जब भी कोई गुनाह करता तो उसे अपने दफ्तर (रजिस्टर) में लिख लेता था. एक मर्तबा उस ने कोई गुनाह किया, जब लिखने के लिए दफ्तर खोला तो देखा उस में इस आयत के सिवा कुछ भी नहीं लिखा हुआ था.

“अल्लाह ताआला उन की बुराइयों को नेकियों में तब्दील करता है”

शिर्क की जगह ईमान, बदकारी की जगह बख्शिश, गुनाह की जगह इस्मत और नेकी लिख दी जाती है.

 

एक जवान की शर्मिंदगी

हज़रत उमर रज़िअल्लाहो अन्हो एक बार मदीना मुनव्वरा की एक गली से गुज़र रहे थे, आप ने एक जवान को देखा जो कपड़ों के निचे शराब की बोतल छुपाये चला आ रहा था. आप ने पुछा ए जवान, इस बोतल में क्या लिए जा रहे हो? जवान बहुत शर्मिंदा हुआ की में कैसे कहूँ इस बोतल में शराब है. उस वक़्त उस जवान ने दिल ही दिल में दुआ मांगी “ऐ अल्लाह! मुझे हज़रत उमर रज़िअल्लाहो अन्हो के सामने शर्मिंदगी और रुसवाई से बचा ले. मेरे ऐब को छुपा ले, में फिर कभी शराब नहीं पियूँगा” जवान ने हज़रत उमर को जवाब दिया अमीरुल मोमिनीन यह सिरका है. आपने फ़रमाया मुझे दिखाओ तो सही चुनाचे आप ने देखा तो वह सिरका था.

ऐ इन्सान! ज़रा गौर कर एक बंदा बन्दे के दर से ख़ुलूस दिल से तौबा करता है तो अल्लाह ने उस की शराब को सिरके में बदल दिया. उसी तरह अगर कोई गुनाहगार अपने गुनाहों पर शर्मिंदा होकर तौबा कर लेता है तो अल्लाह ताआला उस की नाफरमानियों की शराब को फरमाबरदारी के सिरके में बदल देता है. जैस की उस जवान के मामले में हुआ जो अपनी बुराइयों को अपनी डायरी में लिख लेता था.

हिकायत – हज़रत अबू हुरैरा रज़िअल्लाहो अन्हो और गुनाहगार औरत की तौबा 

हज़रत अबू हुरैरा रज़िअल्लाहो अन्हो फरमाते हैं की एक रात मै हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के साथ नमाज़े ईशा पढ़ कर बाहर निकला, रस्ते में मुझे एक औरत मिली, उस ने मुझ से पुछा , मैंने एक गुनाह कर लिया है क्या में तौबा कर सकती हूँ? मैंने पुछा तूने कौन सा गुनाह किया है? औरत बोली मैंने ज़िना किया था और जब उस से बच्चा पैदा हुआ तो मेने उसे क़त्ल कर दिया. मैंने कहा तू तबाह हो गई, तेरे लिए कोई तौबा नहीं है, वह औरत बेहोश होकर गिर पड़ी और मै अपने राह चल दिया.तब मेरे दिल में ख्याल आया मैंने रसूलल्लाह स.अ.व. से पूछे बगैर यह बात क्यों कह दी. इसलिए में आप की खिदमत में आया और सारा किस्सा अर्ज़ किया. हुज़ूर स.अ.व. ने फ़रमाया तुमने बहुत बुरा किया, क्या तुम ने यह आयत नहीं पढ़ी?

“और वह लोग जो नहीं पुकारते अल्लाह के साथ किसी और खुदा को …”

अबू हुरैरा रज़िअल्लाहो अन्हो फरमाते हैं ज्यों ही मैंने यह बात सुनी मै उस औरत की तलाश में निकला और हर किसी से पूछने लगा मुझे उस औरत का पता बताइए जिसने मुझ से मसला पुछा था, यहाँ तक की बच्चे मुझे पागल समझने लगे.आख़िरकार मेने उस औरत को तलाश कर ही लिया और उसे यह आयत सुनाई जब मैं फ उलाई क युब ददी लुल्लाहो स्य्यातिहीम हसनतिन तक सुना चूका तो वह ख़ुशी से दीवानी हो गई और कहने लगी में ने अपना बाग़ अल्लाह और रसूल के लिए बख्श दिया.

 

उतबा का अजीब वाकया – तौबा और तीन दुआएं 

उत्बतुल गुलाम रहमतुल्लाह अलैह जिनकी फितना अंगेजी और शराब पीने की दस्ताने मशहूर थी, एक दिन जनाब हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह की मजलिस में आए, उस वक़्त आप एक आयत की तफसीर बयान कर रहे थे,यानि “क्या मोमिनो के लिए वह वक़्त नहीं आया की उनके दिल अल्लाह से डरें”

आप ने इस आयत की एसी तशरीह की कि लोग रोने  लगे, एक जवान मजलिस में खड़ा हो गया और कहने लगा ए बंदा ए मोमिन ! क्या मुझ जैसा फ़ासिक और फाजिर भी अगर तौबा कर ले तो अल्लाह ताआला कबूल फरमाएगा? आपने फ़रमाया हाँ अल्लाह ताआला तेरे गुनाहों को माफ़ कर देगा. जब उत्बतुल गुलाम ने यह बात सुनी तो उस का चेहरा पीला पड़ गया और कांपते हुए चीख मारकर बेहोंश हो गया, जब उसे होंश आया तो हज़रत हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह ने उसके करीब आकर अरबी के कुछ अशआर पढ़े जिनका मफहूम यह था

ए अल्लाह के नाफरमान जवान! जनता है नाफ़रमानी की सजा क्या है?

ना फरमानों के लिए पुरशोर जहन्नुम है और हश्र के दिन अल्लाह ताआला की सख्त नाराज़गी है.

अगर तू जहन्नम की आग पर राज़ी है तो बेशक गुनाह करता रह वर्ना गुनाहों से रुक जा.

तूने अपने गुनाहों के बदले अपनी जान को गिरवी रख दिया है, उस को छुड़ाने की कोशिश कर

उतबा ने फिर चीख मारी और बेहोंश हो गए. जब होंश आया तो कहने लगे ए शैख़ क्या मुझ जैसे बदबख्त की रब्बे रहीम तौबा कुबूल कर लेगा? आप ने कहा दरगुज़र करने वाला रब, ज़ालिम बन्दे की तौबा कुबूल फरमा लेता है. उस वक़्त उतबा ने सर उठा कर रब से तीन दुआएं की.

ऐ अल्लाह! अगर तूने मेरे गुनाहों को माफ़ और मेरी तौबा को कुबूल कर लिया है तो ऐसे हफीज़े और अक्ल से मेरी इज्ज़त अफजाई फरमा की में कुरान मजीद और दीनी इल्मों में से जो कुछ भी सुनूँ उसे कभी फरामोश ना करूँ.

ऐ अल्लाह! मुझे एसी आवाज़ अता फरमा की मेरी किरअत को सुनकर सख्त से सख्त दिल मोम हो जाये.

ऐ अल्लाह मुझे हलाल रोज़ी अता फरमा, और ऐसे तरीके से दे जिसका मै ख्याल भी ना कर सकूँ.

अल्लाह ने उतबा की तीनों दुआएं कुबूल कर ली. उनका हफिज़ा और समझ व अकलमंदी बढ़ गयी और जब वह कुरआन की तिलावत करते तो हर सुनने वाला गुनाहों से तौबा कर लेता था और उनके घर में हर रोज़ एक प्याला शोरबा और दो रोटियां पहुँच जाती और किसी को मालूम नहीं था की यह कौन रख जाता है और उतबा की सारी ज़िन्दगी में ऐसा ही होता रहा. यह उस शख्श का हाल है जिसने अल्लाह ताआला से लो लगाई.

बेशक अल्लाह ताआला नेक अमल करने वालों के अजर को जाया नहीं करता

 

तौबा के क़ुबूल होने की निशानियाँ

सवाल : किसी आलिम से पुछा गया की जब बंदा तौबा करता है तो क्या उसे अपनी तौबा के मकबूल या गैर मकबूल होने का पता चल जाता है?

जवाब : आलिम ने जवाब दिया एसी मुकम्मल बात तो नहीं अलबत्ता कुछ निशानियाँ हैं, जिन से तौबा की कुबूलियत का पता चलता है,

वह अपने आप को गुनाहों से पाक रखता है, उस के दिल से ख़ुशी गायब हो जाती है, हर दम अल्लाह को मौजूद समझने लगता है, नेकों के करीब और बुरों से दूर रहने लगता है. दुनिया की थोड़ी सी नेअमत को बड़ी और आखिरत के लिए ज्यादा नेकियों को भी थोड़ी समझता है. अपने दिल को हर वक़्त फराईज़े खुदावन्दी में मसरूफ और अपनी ज़बान को बंद रखता है, हमेशा अपने पहले गुज़रे गुनाहों पर गौर व फ़िक्र करता रहता है और गम और परेशानी को अपने लिए ज़रूरी कर लेता है.  

*** हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ.-किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

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Touba, touba kubul hone ki nishaniya, touba se gunahon ka nekiyon me badalna, touba ke bare me hadees e paak, touba ke bare me quraan ki surah, 

फ़िस्क़, निफ़ाक़ और खुदा फरामोशी

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

Color Codes –  कुरआन मजीद, हदीसे पाककौल (Quotes). 

एक औरत हज़रत हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह के पास हाज़िर हुई और कहने लगी मेरी जवान बेटी इन्तेकाल कर गई है, मै चाहती हूँ की उसे ख्वाब में देख लूँ, कोई एसी दुआ बताइए जिस से मेरी मुराद पूरी हो जाये. आपने एक दुआ सिखलाई उस औरत ने रात में वह दुआ पढ़ी और अपनी बेटी को ख्वाब में देखा तो उस का हाल यह था की उस ने जहन्नुम के तारकोल का लिबास पहन रखा था, उस के हाथों में जंजीरें और पांव में बेड़ियाँ थी, औरत ने दुसरे दिन यह ख्वाब आपको सुनाया, आप बहुत मगमूम हुए, कुछ दिनों बाद हज़रत ने उस लड़की को जन्नत में देखा. उस के सर पर ताज था, वह आप से कहने लगी आप मुझे पहचानते हैं. मै उसी खातून की बेटी हूँ जो आप के पास आई थी और मेरी तबाह हालत आपको बताई थी. आप ने उस से पुछा तेरी हालत में यह इन्कलाब किस तरह आया? लड़की ने कहा कब्रिस्तान के करीब से एक नेक शख्श गुज़रा और उस ने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम पर दुरुद भेजा, उस के दुरुद पढने की बरकत से अल्लाह ताआला ने हम पांच सौ कब्र वालों से अज़ाब उठा लिया.

नुक्ता : गौर का मकाम है की हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम पर एक शख्श के दुरुद भेजने की बरकत से इतने बहुत से लोग बख्शे गए, क्या वह शख्श जो पचास साल से हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम दुरुद भेज रहा हो, क़यामत में उस की मगफिरत नहीं होगी.

फरमाने इलाही है

“गुनाह करने में तुम मुनाफिकों की तरह ना बन जाओ जिन्हों ने अल्लाह के अहकामात को छोड़ दिया और उस के खिलाफ चलने लगे, शहवाते दुनिया के लुत्फ़ अन्दोज़ होने लगे और फ़रेब कारी की तरफ मुड गए.”

 

मोमिन और मुनाफ़िक का फर्क

रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मोमिन और मुनाफ़िक के मुताल्लिक पुछा गया. आपने फ़रमाया की “मोमिन की हिम्मत नमाज़ और रोज़े की तरफ रहती है और मुनाफ़िक की हिम्मत जानवरों की तरह खाने पीने की तरफ रहती है और वह नमाज़, रोज़ा की तरफ मुतवज्जाह ही नहीं होता, मोमिन अल्लाह की राह में खर्च करने और बख्शिश तलब करने में मशगूल रहता है जब की मुनाफ़िक हिर्स व हवास में मसरूफ रहता है, मोमिन अल्लाह ताआला के सिवा किसी से उम्मीद नहीं लगाता और मुनाफ़िक अल्लाह ताआला के सिवा तमाम मखलूक की तरफ रुजू अ होता है, मोमिन दीन को माल से पहले समझता है और मुनाफ़िक माल को दीन पर तरजीह देता है,मोमिन अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरता और मुनाफ़िक अल्लाह के सिवा हर चीज़ से डरता है. मोमिन नेकी करता है और अल्लाह की बारगाह में रोता रहता है, मुनाफ़िक गुनाह करता और खुश होता है. मोमिन खल्वत और तनहाई को पसंद करता है और मुनाफ़िक भीड़ भाड़ और मेल जोल को पसंद करता है. मोमिन बोता है और फसल की बर्बादी से डरता रहता है और मुनाफ़िक फसल उजाड़ देने के बाद काटने की तमन्ना रखता है. मोमिन दीन की, तदबीर के साथ अच्छाइयों का हुक्म देता है,बुराइयों से रोकता और सुधार करता है, मुनाफ़िक़ अपने रोब के लिए फितना व फसाद पैदा करता है और नेकियों से रोकता और बुराइयों का हुक्म देता है.”

 

अल्लाह ताआला का इरशाद है

“मुनाफ़िक़ मर्द और औरतें एक दुसरे में से हैं, नेकी से रोकते और बुराइयों का हुक्म देते हैं और अपने हाथों को बंद करते हैं. उन्होंने अल्लाह को भुला दिया और अल्लाह ने उन्हें भुला दिया. बिला शुबहा मुनाफ़िक़ फ़ासिक हैं

अल्लाह ताआला ने मुनाफ़िक़ मर्द और मुनाफ़िक़ औरतों के लिए और काफिरों के लिए जहन्नम की आग का वादा किया है यह उन्हें काफी है और अल्लाह ने उन पर लानत की है और उन के लिए हमेशा का आजाब है.

एक जगह और उन के बारे में इस तरह इरशाद फ़रमाया है

“बेशक अल्लाह ताआला तमाम मुनाफिकों और काफिरों को जहन्नुम में जमा करने वाला है”

यानि अगर वह अपने कुफ्र और निफ़ाक़ पर मर जाएँ. अल्लाह ताआला ने इस इरशाद में पहले मुनाफिकों का ज़िक्र किया है. इसलिए की काफिरों से भी ज्यादा बदबख्त होते हैं और अल्लाह ने उन सब का ठिकाना जहन्नम करार दिया है. फरमाने इलाही है

“बेशक मुनाफ़िक जहन्नुम के सब से निचले तबके में होंगे और आप किसी को उन का मददगार नहीं पाएंगे.”

कहते हैं की जंगली चूहे के बिल में दो सुराख़ होते हैं एक दाखिल होने के लिए और दूसरा सुराख़ निकलने के लिए होता है एक सुराख़ से दाखिल होता है और दुसरे से भाग निकलता है. मुनाफ़िक को भी इस लिए मुनाफ़िक कहतें हैं की वह ज़ाहिर में तो मुसलमान की शक्ल में होता है मगर कुफ्र की तरफ निकल जाता है.

हदीस शरीफ में है की “मुनाफ़िक की मिसाल एसी नई आने वाली बकरी की तरह है जो दो रेव्डो के दरमियाँ हो, कभी वह उस रेवड़ की तरफ भागती है और कभी इस रेवड़ की तरफ दौड़ती है यानी किसी एक रेवड़ में नहीं ठहरती. उसी तरह मुनाफ़िक भी ना तो पूरे का पूरा मुसलमानों में शामिल होता है और ना ही काफिरों में”.

 

जहन्नम के सात दरवाज़े

अल्लाह ताआला ने जहन्नम को पैदा किया और उस के सात दरवाज़े बनाये जैसा की फरमाने इलाही है.

उस के दरवाज़े लोहे के होंगे जिन पर लानत की तहें जमी हैं, उस का ज़ाहिर ताम्बे का और बातिन सीसे का है, उस की गहराई में अज़ाब और उस की ऊंचाई में अल्लाह की नाराज़गी है, उस की ज़मीन ताम्बे, शीशे, लोहे, और सीसे की है, उस में रहने वालों के लिय ऊपर,निचे,दायें,बाएं, आग ही आग है. उस के तबकात दर्जे ऊपर से नीचे की तरफ हैं और सब से निचला तबका मुनाफिकों के लिए है.”

हदीस शरीफ में वारिद है की हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने जिबरील से जहन्नम के तारीफ (introduction) और गर्मी के बारे में दरियाफ्त फ़रमाया. जिब्रील ने जवाब दिया अल्लाह ताआला ने जहन्नम को पैदा किया और उसे हज़ार साल तक दहकाया तो वह लाल हो गया, फिर हज़ार साल दहकाया तो सफ़ेद हो गया, जब और ज्यादा एक हज़ार साल तक दहकाया तो वह बिलकुल काला और स्याह तारीक हो गया. उस रब की कसम जिसने आप को नबीए बरहक़ बना कर भेजा है अगर जहन्नामियों का एक कपडा भी दुनिया में ज़ाहिर हो जाए तो तमाम लोग फ़ना हो जाएँ. अगर जहन्नम के पानी का एक डोल दुनिया के पानियों में मिला दिया जाये तो जो भी चखे वह मर जाये, और जहन्नम की जंजीरों का एक टुकड़ा जिस का ज़िक्र अल्लाह ताआला ने यूँ फ़रमाया है “हर टुकड़े की लम्बाई पूरब से पश्चिम  की लम्बाई के बराबर है अगर उसे दुनिया के किसी बड़े से बड़े पहाड़ पर रख दिया जाये तो वह पिघल जायेगा और अगर किसी दोज़ख वाले को दोज़ख से निकाल कर दुनिया में लाया जाये तो उस की बदबू से तमाम मखलूक फ़ना हो जाये.

हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने जिब्रील से कहा यह बताओ की जहन्नम के दरवाज़े क्या हमारे दरवाज़ों जैसे हैं? जिब्रील ने अर्ज़ की नहीं हुज़ूर! वह मुख्तलिफ तबकात में बने हुए हैं . कुछ ऊपर और कुछ नीचे हैं और एक दरवाज़े का दरमियानी फासला सत्तर साल का है, हर दरवाज़ा दुसरे दरवाज़े से सत्तर गुना ज्यादा गर्म है. आपने उन दरवाज़ों में रहने वालो के बारे में पुछा तो जिब्रील ने जवाब दिया सब से निचले का नाम “हवीयह” है और उस में मुनाफिकीन हैं, जैसा की फरमाने इलाही है

“इन्नल मुनाफिकी न लाफिद  दर्किल अस्फली” (बेशक मुनाफिकीन सब से निचले दर्जे में हैं)

दुसरे तबक का नाम “ज़हीम” हैं और उस में मुशरिक हैं, तीसरे का नाम “सकर” है और उस में साबी है, चौथे का नाम “लज़ा” है और उस में इब्लीस और उस के पैरोकार मजूसी है. पांचवे का “हुत्मा” है और उस में यहूद हैं. छटे का नाम “सईर” है और उस में इसाई हैं, फिर जिबरील खामोश हो गए. आपने पुछा ए जिब्रील क्या तुम मुझे सातवें तबका में रहने वालों के बारे में नहीं बताओगे? जिब्रील ने अर्ज़ की हुज़ूर मत पूछिए आपने फ़रमाया बताओ तो सही, तब जिब्रील ने कहा उस तबके में आप के वह उम्मती हैं जो गुनाहे कबीर के मुर्तकिब हुए और बगैर तौबा किये मर गए.

रिवायत – जब यह आयत नाज़िल हुई

“व इम मिन्कुम इल्ला वारिदुहा” हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम अपनी उम्मत के बारे में इन्तेहाई खौफज़दा हुए और बहुत ज्यादा रोये लिहाज़ा जो शख्श भी अल्लाह की सख्त पकड़ को और उस के कहर को जानता है उसे चाहिए की बहुत डरता रहे और नफ्स की लगजिशों (खताओं) पर रोता रहे इस से पहले की उन मुसीबतों को झेले, उस दहशत नाक मकाम को देखे, उस की पर्दादारी की जाये, उसे अल्लाह के सामने पेश किया जाये और उसे जहन्नम में जाने का हुक्म हो.

 

मरने के बाद अफ़सोस

कितने ऐसे बूढ़े हैं जो जहन्नम में फरियादें करते हैं, कितने जवान हैं जो जवानी की बर्बादी की याद कर के रोते पीटते हैं, कितनी एसी औरते है जो गुज़री हुई ज़िन्दगी की बद आमालियों को याद कर के चिल्लाती हैं, इस हाल में की उन के बदन और चेहरे काले हो चुके हैं, उन की कमरें टूट चुकी हैं, न उन के बड़ों की इज्ज़त की जाती है और ना छोटों पर रहम किया जाता है और न उन की औरतो की पर्दा पोशी की जाती है.

ए अल्लाह! हमें आग, आग के अज़ाब और हर उस काम से बचा जो हमें आग की तरफ ले जाये और अपनी रहमत की तुफैल हमें नेकों के साथ जन्नत में दाखिल फरमा. हमें गुनाहों / लगजिशों से बचा और अपने सामने शर्मिंदगी से महफूज़ रख. या अर रहमर राहेमीन व सल्लल्लाहो आला सैयदना मोहम्मदिव व अला आलेही व असहाबेही व सल्लम.

*** हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ.-किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

munafik aur momin me fark, munafik ki pahchan, dozakh ke saat darwaze, 

        

गफ़लत- दुनिया और आखिरत की ज़िन्दगी  

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

Color Codes –  कुरआन मजीदहदीसे पाककौल (Quotes). 

गफ़लत से शर्मिंदगी बढती है और नेमत मिटती है, खिदमत का जज़्बा फीका पड़ जाता है. हसद ज्यादा हौता है और मलामत व पछतावे की हालत ज्यादा होती है.

सबसे बड़ी हसरत – एक नेक आदमी ने अपने उस्ताद को ख्वाब में देखा और पुछा आप के नज़दीक सब से बड़ी हसरत कौन सी है? उस्ताद ने जवाब दिया गफ़लत की हसरत सब से बड़ी है.

रिवायत है की किसी शख्श ने हजरते जुन्नून मिस्री रहमतुल्लाह अलैह को ख्वाब में देखा और सवाल किया की अल्लाह ताआला ने आप के साथ क्या सुलूक किया? तो उन्होंने जवाब दिया की अल्लाह ने मुझे अपनी बारगाह में खड़ा किया और फ़रमाया की ऐ झूठे दावेदार! तूने मेरी मोहब्बत का दावा किया और फिर मुझ से गाफिल रहा- शेर

“तू गफ़लत में मुब्तला है और तेरा दिल भूलने वाला है, उम्र ख़त्म हो गयी और गुनाह वेसे के वेसे ही मौजूद हैं”.

हिकायत – एक नेक आदमी ने अपने वालिद को ख्वाब में देख कर पुछा ए अब्बा जान! आप कैसे हैं और क्या हाल है? वालिद ने जवाब दिया हमने गफ़लत में ज़िन्दगी गुज़री और गफ़लत में ही मर गए.

 

मौत के पैगम्बर और याकूब अलैहिसलाम का किस्सा  

ज़हरुर रियाज़ में है की हज़रते याकूब अलैहिसलाम का मलकुल मौत से भाई चारा दोस्ती थी. एक दिन मलकुल मौत हाज़िर हुए तो हज़रत याकूब अलैहिसलाम ने पुछा तुम मुलाकात के लिए आये हो या रूह कब्ज़ करने को? इजराईल ने कहा सिर्फ मुलाक़ात के लिए आया हूँ. आपने फ़रमाया मुझे एक बात कहनी है. मल्कुल्मौत बोले कहिये कौन सी बात है? हज़रत याकूब अलैहिसलाम ने फ़रमाया जब मेरी मौत करीब आ जाये और तुम रूह कब्ज़ करने को आने वाले हो तो मुझे पहले से आगाह कर देना – मलकुल मौत ने कहा मैं अपने आने से पहले आप के पास दो तीन कासिद भेजूंगा

जब हज़रत याकूब अलैहिसलाम का आखिरी वक़्त आया और मलकुल मौत रूह कब्ज़ करने को पहुंचे तो आप ने कहा की तुम ने तो वादा किया था की अपने आने से पहले मेरी तरफ कासीद भेजोगे! इजराईल ने कहा मैंने ऐसा ही किया था, पहले तो आप के काले बाल सफ़ेद हुए, यह पहला कासिद था, फिर बदन की चुस्ती और ताक़त ख़त्म हुयी यह दूसरा कासिद था, फिर आप का बदन झुक गया यह तीसरा कासिद था. ए याकूब अलैहिसलाम, हर इन्सान के पास मेरे भी तीन कासिद आते हैं.

शेर

ज़माना गुज़र गया और गुनाहों को छोड़ गया, मौत का कासिद आ पहुंचा और दिल गाफिल ही रहा.

तेरी दुनियावी नेमते धोका और फ़रेब हैं, और तेरा दुनिया में हमेशा रहना मुहाल और धोका है.

 

शैख़ अबू अली दक्काक  रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं की में एक ऐसे बीमार नेक मर्द की अयादत को गया जिन की गिनती बड़े मशाईख में हौती थी, मैंने उन के पास उन के शागिर्दों को बैठे हुए देखा, शैख़ अबू अली रहमतुल्लाह अलैह रो रहे थे मैंने कहा ऐ शैख़ क्या आप दुनिया पर रो रहे हैं? उन्होंने फ़रमाया नहीं, मैं अपनी नमाज़ों के कज़ा होने पर रो रहा हूँ, मैंने कहा आप तो इबादत गुज़र शख्श थे फिर नमाज़ें किस तरह कज़ा हुई? उन्होंने फ़रमाया मैंने हर सजदा गफ़लत में किया और हर सजदे से गफ़लत में सर उठाया और अब गफ़लत की हालत में मर रहा हूँ, फिर एक आह भरी और यह अशआर पढ़े

मैंने अपने हश्र, कयामत के दिन और कब्र में रहने के बारे में सोचा

जो इज्ज़त और वकार वाले वजूद के साथ मिटटी का गिरवी होगा और मिटटी ही उस का तकिया होगा.

मैंने हिसाब के दिन की तवालत के बारे में सोचा और उस वक़्त की रुसवाई का ख्याल किया जब नामा ए आमाल मुझे दिया जायेगा.

मगर ऐ रब्बे ज़ुल्जलाल! मेरी उम्मीदें तेरी रहमत के साथ हैं, तू ही मेरा खालिक और मेरे गुनाहों को बख्शने वाला है.

 

महज़ दावा बेकार है

महज़ दावा बेकार हैउयुनुल अखबार में है हज़रत शकीक बल्खी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं, लोग तीन बातें महज़ जबानी करते हैं मगर अमल उस के खिलाफ करते हैं

1 यह कहते हैं की हम अल्लाह ताआला के बन्दे हैं लेकिन काम गुलामों जैसे नहीं करते बल्कि आज़ादों की तरह अपनी मर्ज़ी पर चलते हैं.

2 यह कहते हैं की अल्लाह ताआला ही हमें रिज्क रोज़ी देता है लेकिन उन के दिल दुनिया और दुनिया की दौलत जमा किये बगैर मुतमईन नहीं होते और यह उन के इकरार के सरासर खिलाफ है.

3 तीसरा यह की कहते हैं की आखिर हमें मर जाना है लेकिन काम ऐसे करते हैं जैसे उन्हें कभी मरना ही नहीं.

ऐ मुखातब! ज़रा सोच तो सही, अल्लाह के सामने तु कौनसा मुंह लेकर जाएगा और कौन सी ज़बान से जवाब देगा? जब वह तुझ से हर छोटी-बड़ी चीज़ के बारे में सवाल करेगा, उन सवालों के लिए अभी से अच्छा जवाब तलाश कर ले !

अल्लाह का फरमान है

“और अल्लाह से डरो! बेशक तुम जो कुछ करते हो, अल्लाह उससे आगाह है और खबर रखता है.”

फिर अल्लाह ने मोमिनों को समझाया की वह उस के अहकामात को ना छोड़ें और हर हालत में उस की वहदानियत (एक होने) का इकरार करते रहें.

अल्लाह की इताअत

 हदीस शरीफ में आया है की “अर्शे इलाही के पाए पर तहरीर है की जो मेरी इताअत करेगा, मैं उसकी बात मानूंगा, जो मुझसे मोहब्बत करेगा मै उसे अपना महबूब बनाऊंगा, जो मुझ से मांगेगा में उसे अता करूँगा और बख्शिश की तलब करेगा उसे बख्श दूंगा.”

इस फरमाने नबवी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की रौशनी में हर समझदार और अक्लमंद के लिए ज़रूरी है की वह खौफ और भरपूर खुलूस के साथ अल्लाह ताआला की इबादत करता रहे और राज़ी बकज़ा रहे, उस की दी हुई मुसीबतों पर सब्र करे, उस की नेमतों का शुक्र करते हुए कम व ज्यादा पर राज़ी हो जाए. अल्लाह ताआला फरमाता है जो मेरी कज़ा पर राज़ी, मसाइब पर साबिर नहीं और नेमतों का शुक्र अदा नहीं करता और कम व ज्यादा पर कनाअत नहीं करता, वह मेरे सिवा कोई और रब तलाश कर ले.

 

हज़रत हसन बसरी का एक दिलनशीं जवाब

एक शख्श ने जनाब हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह से कहा की ताज्जुब है की मै इबादत में लुत्फ़ नहीं पाता! आप ने जवाब दिया “शायद तूने किसी ऐसे शख्श को देख लिया है जो अल्लाह से नहीं डरता.”

बंदगी का हक़ यह है की अल्लाह की रज़ा के लिए तमाम चीज़ों को छोड़ दिया जाये.

किसी शख्श ने जनाब अबी यज़ीद रहमतुल्लाह अलैह से कहा की मै इबादत में कैफ और सुरूर नहीं पाता!  उन्होंने जवाब दिया की यह इसलिए है की तू इबादत की बंदगी करता है, अल्लाह ताआला की बंदगी नहीं करता! तू अल्लाह की बंदगी कर फिर देख इबादत में कैसा मज़ा आता है.

 

अल्लाह की इबादत या मखलूक की इबादत

एक शख्श ने नमाज़ शुरू की, जब “इय्याका नाअ बोदू” पढ़ा तो उसके दिल में ख्याल आया की में खालिसतन (केवल) अल्लाह की इबादत कर रहा हूँ, गैब से आवाज़ आई तूने झूठ बोला है! तू तो मखलूक की इबादत करता है, तब उसने मखलूक से नाता तोड़ लिया और नमाज़ शुरू की, जब फिर उसी आयत तक पहुंचा तो वही दिल में गुज़रा, फिर निदा आई की तू अपने माल की इबादत करता है, उसने सारा माल राहे खुदा में खर्च कर दिया, और नमाज़ की नियत की, जब उसी आयत तक पहुंचा तो फिर ख्याल आया की मै हक़ीक़त में अल्लाह की इबादत करने वाला हूँ, निदा आई की तुम झूठे हो, तुम अपने कपड़ों की इबादत करते हो! उस वक़्त उस अल्लाह के बन्दे ने बदन के कपड़ों के अलावा सब कपडे अल्लाह के रास्ते में लुटा दिए, अब जो नमाज़ में उस आयत पर पहुंचा तो आवाज़ आई की अब तुम अपने दावे में सच्चे हो.

 

नसीहत पर गुलाम को आज़ाद कर दिया

रौनक उल मजालिस में है की एक शख्श की अबायें (लिबास) गुम हो गईं, और यह नहीं पता चल रहा था की उन्हें कौन ले गया, जब उस शख्श ने नमाज़ शुरू की तो उसे याद आ गया, ज्यों ही नमाज़ से फारिग हुआ, गुलाम को आवाज़ दी की जाओ फलां आदमी से मेरी अबायें ले आओ! गुलाम ने कहा की आप को यह कब याद आया? उसने कहा मुझे नमाज़ में याद आया गुलाम ने फ़ौरन जवाब दिया तब तो आपने नमाज़ अबा के लिए पढ़ी, अल्लाह के लिए नहीं, यह बात सुनते ही उस शख्श ने उस गुलाम को आज़ाद कर दिया.

इसलिए हर समझदार के लिए ज़रूरी है की वह दुनिया को तर्क कर दे और अल्लाह की इबादत करता रहे, आइन्दा के बारे में गौर व फ़िक्र करता रहे और अपनी आखिरत संवारता रहे जैसा की फरमाने इलाही है-

“जो शख्श आखिरत की खेती की फ़िक्र करता है तो हम उसकी खेती ज्यादा करते हैं और जो शख्श दुनिया की खेती का इरादा करता है हम उसे उस में से कुछ देंगे और आखिरत में उस का कुछ हिस्सा नहीं.”

यानी उसके दिल से आखिरत की मोहब्बत निकाल दी जाती है, इसीलिए हज़रते अबू बकर सिद्दीक़ रज़िअल्लाहो अन्हो ने हुज़ूरे अकरम मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की ज़ात पर चालीस हज़ार दीनार एलानिया और चालीस हज़ार दीनार पोशीदा तौर पर खर्च कर दिए थे यहाँ तक की उनके पास कुछ भी बाकी ना रहा. हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम और आप के अलहे बैत दुनिया और उसकी ख्वाइश से मुकम्मल परहेज़ करते थे, इसीलिए हज़रते फ़ातिमा रज़िअल्लाहो अन्हा का जहेज़ सिर्फ मेंढे की एक रंगी हुई खाल और एक चमड़े का तकिया था जिस में खजूर की छाल भरी हुई थी.

*** हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ.-किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

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gaflat, aakhirat ki zindagi, malkul mout ka kissa, Allah ki itaat,

नफ्स का गलबा और शैतान की दुश्मनी

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

Color Codes –  कुरआन मजीदहदीसे पाककौल (Quotes).

 

हर अक़लमंद के लिए यह ज़रूरी है की वह भूका रहकर ख्वाइशों का खात्मा करे इसलिए की भूक उस दुश्मने खुदा “नफ्स” के लिए कहर है, शैतान की कामयाबी का वसीला यही ख्वाइशें और खाना पीना है, फरमाने नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम है की

“शैतान तुम्हारे जिस्म में खून की तरह गर्दिश करता है उस के इन रास्तों को भूक से बंद करो.”

 

बिला शुबह क़यामत के दिन वही शख्श अल्लाह ताआला से ज़्यादा करीब होगा जिसने भूक और प्यास बर्दाश्त की होगी और इब्ने आदम के लिए सबसे ज़्यादा बर्बाद करने वाली चीज़ें पेट की ख्वाइशें हैं, इस पेट की बदौलत हजरते आदम और हव्वा अलैहमुससलाम जन्नत से ज़िल्लत और फकर और फाका की ज़मीन पर उतारे गए जब की रब्बे करीम ने उन्हें शजरे मम्नूआ के खाने से मना कर दिया था तो उन्होंने पेट की ख्वाइशों की बिना पर उसे खा लिया था, यही पेट हकीकत में शहवतों का चश्मा और मरकज़ है.

हकीमाना कौल –एक दाना (ज्ञानी) का कौल है, जिस इन्सान पर उस का नफ्स ग़ालिब आ जाता है वह ख्वाइशों का कैदी हो जाता है और बेहूदगी का ताबेअ व फर्माबरदार बन जाता है, उसका दिल तमाम फायदों से महरूम हो जाता है, जिस किसी ने अपने बदन के हिस्सों की ज़मीन को ख्वाइशों से सैराब किया उसने अपने दिल में शर्मिंदगी की खेती की.

 

अल्लाह ताआला ने मखलूक को तीन किस्मों पर पैदा फ़रमाया है.

  1. फरिश्तों को पैदा फ़रमाया, उन में अक्ल रखी मगर उन्हें ख्वाइशों से पाक साफ़ रखा.
  2. जानवरों को पैदा किया उन में ख्वाइशें रखी मगर अक्ल से खाली कर दिया.
  3. इन्सान को पैदा किया, उन में अक्ल और शहवत दोनों पैदा फरमाई. अब जिस इन्सान की अक्ल पर उसकी शहवत ग़ालिब आ जाती है, वह जानवरों से बदतर है और जिस मुसलमान की शहवत पर उस की अक्ल ग़ालिब आ जाती है वह फरिश्तों से भी बेहतर है.

 

हिकायत – जनाब इब्राहीम रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं की मैं लस्काम के पहाड़ में था, वहां मेने अनार देखे और मेरे दिल में उन्हें खाने की ख्वाइश हुई चुनाचे मैंने एक अनार उठा कर उसे दो टुकड़े किया मगर वह खट्टा निकला लिहाज़ा मै ने उसे फेक दिया और चल पड़ा, चंद कदम आगे जाकर मैंने एक ऐसे शख्श को देखा जो ज़मीन पर पड़ा हुआ था और उस पर भिड़े चिमटी हुयी थी, मैंने उसे सलाम कहा और उस शख्श ने मेरा नाम लेकर सलाम का जवाब दिया मैंने हैरत से पुछा आप मुझे कैसे पहचानते हैं? उस खुदा के बन्दे ने जवाब दिया जो अपने खुदा को पहचान लेता है फिर उस से कोई चीज़ पोशीदा नहीं रहती, मेने कहा तब तो तुम्हारा बारगाहे खुदा बंदी में बहुत बड़ा मकाम है, तुम यह दुआ क्यों नहीं करते की यह जो तुम्हे चिमटी हुई हैं तुम से दूर हो जाएँ, उस ने कहा मै जनता हूँ की अल्लाह के यहाँ तुम्हारा भी बड़ा बड़ा मकाम है तुमने यह दुआ क्यों नहीं मांगी की अल्लाह ताआला तुझे अनार खाने की ख्वाइश से बचा लेता क्यों की भीड़ों की तकलीफ दुनियावी अज़ाब है मगर अनार खाने की सजा आखिरत का अज़ाब है, यह भिड़े तो इन्सान के बदन पर डसती हैं मगर ख्वाइशें इन्सान के दिल को डस लेती हैं. मैं यह नसीहत आमोज गुफ्तगू सुन कर वहां से अपनी मंजिल की तरफ रवाना हो गया.

शाहवात, बादशाहों को फ़कीर और सब्र फकीरों को बादशाह बना देता है. आपने हजरते युसूफ अलैह हिस सलाम और जुलेखा का किस्सा नहीं पढ़ा? युसूफ अलेहहिससलाम सब्र की बदौलत मिस्र के बादशाह बन गए और जुलेखा ख्वाइशों की वजह से आज़िज़ व रुसवा और बसारत से महरूम बुढिया बन गई इसलिए की ज़ुलैखा ने हजरते युसूफ अलैहहिस्सलाम की मोहब्बत में सब्र नहीं किया था.

 

हज़रते अबुल हसन राज़ी ने अपने वालिद को ख्वाब में देखा

जनाब अबुल हसन राज़ी रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं की मैंने अपने वालिद को उन के इन्तेकाल के दो साल बाद ख्वाब में इस हाल में देखा की उन के जिस्म पर जहन्नम के कीर (तारकोल) का लिबास था. मैंने पुछा अब्बा जान यह क्या हुआ ? मै आप को जहन्नामियों के लिबास में देख रहा हूँ ? मेरे वालिद ने फ़रमाया, ए फरजंद मुझे मेरा नफ्स जहन्नुम में ले गया उस के धोके में कभी ना आना – अशआर

में उन चार दुश्मनों से घिरा हुआ हूँ जो मेरी बद बख्ती और गुनाह की ज़्यादती की वजह से मुझ पर ग़ालिब आ गए हैं.

शैतान, नफ्स, दुनिया और ख्वाइशें इन से कैसे छुटकारा मिल सकता है हालाँकि यह चारो मेरे जानी दुश्मन हैं.

में देखता हूँ की खुदबीनी और शाहवात की ज़ुल्मत में मेरे दिल को ख्वाहिशात अपनी तरफ बुलाती रहती हैं.       

जनाब हातीमे असम रहमतुल्लाह अलैह का कौल है “नफ्स मेरा अस्तबल है, इल्म मेरा हथियार है, ना उम्मीदी मेरा गुनाह है, शैतान मेरा दुश्मन है, और मै नफ्स के साथ धोका करने वाला हूँ”.

आरिफाना नुक्ता :- एक अल्लाह वाले का कौल है की

जिहाद की तीन किस्मे हैं

1 कुफ्फार के साथ जिहाद और यह जिहाद ए ज़ाहिरी है.

2 झूठे लोंगों के साथ इल्म और दलीलों से जिहाद

3 बुराइयों की तरफ ले जाने वाले सरकश नफ्स से जिहाद

 

नफ्स के बारे में हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इर्शादे गिरामी 

और नबीए करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फरमान है

“नफ्स के साथ जिहाद बेहतरीन जिहाद है”.

सहबाए किराम रिज्वानुल्लाहे अलैहिम  जब जिहाद से वापस आते तो कहते हम छोटे जिहाद से बड़े जिहाद की तरफ लौट आयें हैं, और साहबा ने नफ्स शैतान और ख्वाइशों से जिहाद को कुफ्फार के साथ जिहाद करने से इसलिए अकबर और अज़ीम कहा क्यों की नफ्स से जिहाद हमेशा जारी रहता है और कुफ्फार के साथ कभी कभी होगा.

दूसरी वजह यह है की कुफ्फार के साथ जिहाद में गाज़ी अपने दुश्मन को सामने देखता रहता है, मगर शैतान नज़र नहीं आता और दिखाई देने वाले दुश्मन से लडाई बनिस्बत छुप कर वार करने वाले दुश्मन से आसान होती है.एक वजह और भी है की काफ़िर के साथ गाज़ी की हमदर्दियाँ कतई नहीं होती जब की शैतान के साथ जिहाद करने में नफ्स और ख्वाइशें शैतान की हामी ताक़तों में शुमार होते हैं, इसलिए यह मुकाबला सख्त होता है.

एक बात और भी है की अगर गाज़ी काफ़िर को क़त्ल कर दे तो माल ए गनीमत और फ़तह हांसिल करता है और अगर शहीद हो जाये तो जन्नत का मुस्ताहिक बन जाता है मगर इस जिहादे अकबर में वह शैतान के क़त्ल पर कादिर नहीं और अगर उसे शैतान क़त्ल कर दे यानि सही रास्ते से भटका दे तो बंदा अज़ाबे इलाही का मुस्तहिक बन जाता है,

 

इसलिए कहा गया है की जंग के दिन जिस का घोडा भाग पड़े वह काफिरों के हाथ आ जाता है, मगर जिस का ईमान भाग जाये वह गज़बे ईलाही में फंस जाता है और जो काफिरों के हाथ फंस जाता है उस के हाथों और पांवों में हथकडिया और बेड़ियाँ नहीं डाली जाती, उसे भूका प्यासा और नंगा नहीं किया जाता मगर जो गज़बे ईलाही का मुस्तहिक हो जाये उस का मुह काला किया जाता है, उसकी मशकें कस कर जंजीरें डाल दी जाती हैं, उस के पैरों में आग की बेड़ियाँ डाली जाती हैं, उस का खाना पीना और लिबास सब जहन्नम की आग से तैयार होता है.

*** हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ.-किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

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Nafs se jihad, Nafs ki khwaishen, nafs ko kaboo me karna,

           

रियाज़त और नफ्स की ख्वाइशें

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

Color Codes –  कुरआन मजीदहदीसे पाककौल (Quotes). 

मूसा अलैहहिसलाम  को दुरुद पढने का हुक्म

अल्लाह ताआला ने हज़रत मूसा अलैहहिसलाम  पर वह्यी नाज़िल फरमाई की ऐ मूसा अगर तुम चाहते हो की मै तुम्हारी ज़बान पर तुम्हारे कलाम से, तुम्हारे दिल में ख़यालात से, तुम्हारे बदन में तुम्हारी रूह से, तुम्हारी आँखों में नूर ए बसारत से, और तुम्हारे कानों में तुम्हारी सुनने की ताक़त से ज्यादा करीब रहूँ तो फिर मोहम्मद स.अ.व. पर कसरत से दरूद भेजो. अस्स्लातो  वास्सलामो अलैका या रसूलल्लाह!

फरमाने खुदा है –

“हर नफ्स यह देखे की क़यामत के लिए उसने क्या अमल किये हैं.”

ऐ इन्सान अच्छी तरह समझ ले की तुझे बुराई की तरफ ले जाने वाला तेरा नफ्स, तेरा शैतान से भी बड़ा दुश्मन है और शैतान को तुझ पर तेरी ख्वाइशात की बदौलत गलबा हांसिल हौता है, लिहाज़ा तुझे तेरा नफ्स झूटी उम्मीदों और धोके में डाले है, जो शख्श बे खौफ हुआ और गफ़लत में गिरिफ्तार हुआ, अपने नफ्स की पैरवी करता है उस इन्सान का हर दावा झूठा है, अगर तू  नफ्स की रज़ा में उस की ख्वाइशों  की पैरवी करेगा तो हालाक हो जायेगा और अगर उस के मुहासबा से गाफिल होगा तो गुनाहों के समंदर में डूब जायेगा.

अगर तू उसकी मुखालफत से आज़िज़ आकर उसकी ख्वाइशों की पैरवी करेगा तो यह तुझे जहन्नम की तरफ खीच ले जायेगा. नफ्स का लौटना भलाई की तरफ नहीं है बल्कि यह मुसीबतों की जड़, शर्मिंदगी की कान, इब्लीस का खजाना, और बुराई का ठिकाना और इस की फितना अन्गेज़ियों को सिवाय आलिमे खैर व शर के यानी अल्लाह ताआला के सिवा कोई नहीं जानता.

फरमाने इलाही है

“और अल्लाह से डरो, बेशक अल्लाह तुम्हारे तमाम आमाल से बाखबर है.”

तफसीर अबिल्लैस रहमतुल्लाह अलैह में है, जब कोई बंदा आखिरत की चाहत की वजह से अपनी गुजरी हुई ज़िन्दगी पर गौर और फ़िक्र करता है तो यह फ़िक्र करना उस के दिल के लिए ग़ुस्ल का काम देता है, जैसा की फरमाने नबवी है,

“एक घडी का तफ़क्कुर साल भर की इबादत से बेहतर है.”

लिहाज़ा हर अक़लमंद के लिए ज़रूरी है की अपने पिछले गुनाहों की मगफिरत तलब करे, जिन चीज़ों का इकरार करता है उन में तफ़क्कुर करे और क़यामत के दिन के लिए तोशा बनाये, उम्मीदों को कम करे, तौबा में जल्दी करे, अल्लाह ताआला का ज़िक्र करता रहे, हराम चीज़ों से बचे और नफ्स को सब्र पर आमादा करे. नफ्स की ख्वाइशों की पैरवी ना करे क्यों की नफ्स एक बुत की तरह है जो नफ्स की पैरवी करता है वह गोया बुत की इबादत करता है और जो इख्लास से अल्लाह की इबादत करता है, वह अपने नफ्स पर जब्र करता है.

हजरते मालिक बिन दीनार ने इन्जीर खाना चाहा

जनाबे मालिक इब्ने दीनार रहमतुल्लाह अलैह एक दिन बसरा के बाज़ार से गुज़र रहे थे की आप को इन्जीर नज़र आये, दिल में उन्हें खाने की ख्वाइश हुयी, दुकानदार के पास पहुंचे और कहा मेरे इन जूतों के बदले अंजीर दे दो, दुकानदार ने जूतों को पुराना देखकर कहा इन के बदले में कुछ नहीं मिल सकता, आप यह जवाब सुन  कर चल पड़े, किसी ने दुकानदार से कहा, जानते हो यह बुज़ुर्ग कौन थे? वह बोला नहीं, उस ने कहा यह मशहूर मदनी हज़रते मालिक बिन दीनार रज़िअल्लाहो अन्हो थे, दुकानदार ने जब यह सुना तो अपने गुलाम को एक टोकरी अंजीरों से भर कर दी और कहा अगर जनाब मालिक बिन दीनार रज़िअल्लाहो अन्हो तुझ से यह टोकरी कबूल कर लें तो इस खिदमत के बदले तू आज़ाद है, गुलाम भागा भागा आप की खिदमत में आया और अर्ज़ किया हुज़ूर यह कुबूल फरमाइए, आप ने कहा की में नहीं लेता, गुलाम बोला अगर आप इसे कुबूल कर लें तो में आज़ाद हो जाऊंगा, आप ने जवाब दिया इस में तेरे लिए तो आज़ादी है मगर मेरे लिए हलाक़त है, जब गुलाम ने इसरार किया तो आप ने फ़रमाया की में ने कसम खाई है की दीन के बदले में मैं अंजीर नहीं खाऊंगा और मरते दम तक कभी भी अंजीर नहीं लूँगा.

ज़िन्दगी की आखिरी घडी में सब्र

हज़रते मालिक बिन दीनार रज़िअल्लाहो अन्हो को मर्ज़े वफ़ात में इस बात की इच्छा हुई की मैं गर्म रोटी का सरीद बनाकर खाऊ जिस में दूध और शहद शामिल हो चुनाचे आपके हुक्म से खादिम यह तमाम चीज़ें लेकर हाज़िर हुआ. आप कुछ देर उन चीज़ों को देखते रहे, फिर बोले ए नफ्स! तूने तीस साल लगातार सब्र किया अब ज़िन्दगी की इस आखिरी घडी में क्या सब्र नहीं कर सकता?यह कहा और प्याला छोड़ दिया और उसी तरह सब्र करते हुए वासिले बा हक़ हो गए. हकीक़त यह है की अल्लाह के नेक बन्दों में यानि अम्बिया, औलिया, सिद्दिकीन, आशिकीन और ज़हिदीन के हालात ऐसे ही थे.

हज़रात सुलेमान अलैहिस्सलाम का कौल है की “जिस शख्श ने अपने नफ्स पर काबू पाया,वह उस शख्श से ज्यादा ताक़तवर है जो तने तनहा एक शहर को फ़तह कर लेता है.”

हजरते अली रज़िअल्लाहो अन्हो का कौल है की “मैं अपने नफ्स के साथ बकरियों के झुण्ड पर एक ऐसे जवान की तरह हूँ की जब वह एक तरफ उन्हें इकठ्ठा करता है तो वह दूसरी तरफ फ़ैल जाती हैं.”

जो शख्श अपने नफ्स को फ़ना कर देता है उसे रहमत के कफ़न में लपेट कर करामत की ज़मीन में दफ़न किया जाता है,और जो शख्श अपने ज़मीर (क़ल्ब) को ख़त्म कर देता है उसे लानत के कफ़न में लपेट कर आजाब की ज़मीन में दफ़न किया जाता है.

 

जनाब याह्या बिन मआज़ राज़ी रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं की अपने नफ्स का इताआत और बंदगी कर के मुकाबला करो. रियाज़त, शब बेदारी (रात में जागना)क़लील गुफ्तगू (कम बोलना), लोगों की तकलीफों को बर्दाशत करना और कम खाने का नाम है, कम सोने से ख़यालात पाकीज़ा होते हैं, कम बोलने से इन्सान आफतों से महफूज़ रहता है, तकलीफे बर्दाश्त करने से दर्जे बुलंद होते हैं और कम खाने से शहवत ए नफसानी ख़त्म हो जाती है, क्यों की बहुत खाना दिल की स्याही और उसे गिरफ्तारे ज़ुल्मत करना है. भूक हिकमत का नूर है, और सैर होना अल्लाह ताआला से दूर कर देता है.

फरमाने नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम है की

अपने दिलों को भूक से रोशन करो,  अपने नफ्स का भूक प्यास से मुकाबला करो, और हमेशा भूक के वसीले से जन्नत का दरवाज़ा खटखटाते रहो, भूके रहने वाले को अल्लाह के रास्ते में लड़ने वाले के सवाब के बराबर सवाब मिलता है,और अल्लाह ताआला के नज़दीक भूखे प्यासे रहने से बेहतर कोई अमल नहीं, आसमान के फ़रिश्ते उस इन्सान के पास बिलकुल नहीं आते जिसने अपना पेट भर कर इबादत का मज़ा खो दिया हो.

मिन्हाजुल आबेदीन में हजरते अबू बकर सिद्दीक रज़िअल्लाहो अन्हो  का यह कौल मजकूर है की मै जब से ईमान लाया हूँ, कभी पेट भर कर खाना नहीं खाया ताकि में अपने रब की इबादत का मज़ा हांसिल कर सकूँ, और अपने रब के शौक ए दीदार की वजह से कभी सैर हो कर पानी नहीं पिया है इसलिए की बहुत खाने से इबादत में कमी वाकेअ हो जाती है, क्यों की जब इन्सान खूब सैर हो कर खा लेता है तो उस का जिस्म भरी और आँखें नींद से बोझल हो जाती हैं, उस के बदन के आज़ा ढीले पड़ जाते हैं फिर वह कोशिश के बावजूद  सिवाए नीद के कुछ भी हांसिल नहीं कर पाता और इस तरह वह उस मुरदार की तरह बन जाता है जो रास्ते में पड़ा हो.

मुन्यतुल मुफ़्ती में है की जनाब लुकमान हकीम ने अपने बेटे से कहा खाना और सोना कम करो क्यों की जो शख्श ज्यादा खाता और ज्यादा सोता है वह क़यामत के दिन नेक कामों से खाली हाथ होगा.

नबीए करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फरमान है की “अपने दिलों को ज्यादा खाने पीने से हलाक ना करो, जिस तरह ज्यादा पानी से खेती तबाह हो जाती है उसी तरह ज़्यादा खाने पीने से दिल हलाक हो जाता है.”

नेक लोगों ने मैदा (पेट ) को एसी हांड़ी से मिसाल दी है जो उबलती रहती है और उस के बुखारात भांप बराबर दिल पर पहुँचते रहते हैं, फिर उन्ही भांपों की ज्यादती दिल को गन्दा और मैला बना देती है, ज़्यादा खाने से इल्म व फ़िक्र में कमी वाकेअ हो जाती है और शिकम पुरी (पेट भरना) अक़ल्मंदी, व ज़हानत को बर्बाद कर देती है.

हिकायत – हज़रत याह्या बिन ज़कारिया अलैहिस्सलाम ने शैतान को देखा वह बहुत से जाल उठाये हुए था, आपने पुछा यह क्या है? शैतान ने कहा यह ख्वाइशात हैं जिन से मै इब्ने आदम को कैद करता हूँ. आप ने फ़रमाया मेरे लिए भी कोई फंदा है? शैतान बोला नहीं मगर एक रात आपने पेट भर कर खाना खा लिया था जिस से आप को नमाज़ में सुस्ती पैदा हो गयी थी, तब हजरते याह्या अलैहहिससलाम बोले, आइन्दा में कभी पेट भर कर खाना नहीं खाऊंगा, शैतान बोला अगर यह बात है तो में भी आइन्दा किसी को नसीहत नहीं करूंगा.

यह उस मुक़द्दस हस्ती का हाल है जिस ने सारी उम्र में सिर्फ एक रात पेट भर कर खाना खाया था, उस शख्श का क्या हाल होगा जो उम्र भर कभी भूका नहीं रहता और पेट भर कर खाना खाता है और उस पर वह चाहता है की वह इबादत गुज़ार बन जाये.

हिकायत – हजरते याह्या अलैहहिससलाम ने एक रात  जौ की रोटी पेट भर कर खा ली और इबादत ए इलाही में हाज़िर ना हुए अल्लाह ताआला ने वह्यी की ऐ याह्या क्या तू ने इस दुनिया को आखिरत से बेहतर समझा है या मेरे जवारे रहमत से बेहतर तू ने कोई और जवार पा लिया है. मुझे इज्ज़त व जलाल की क़सम अगर तु जन्नतुल फिरदौस का नज़ारा कर ले और जहन्नम को देख ले तो आंसुओं के बदले खून रोये और इस अच्छे लिबास की जगह लोहे का लिबास पहने.

*** हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ.-किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

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सब्र- सब्र की किस्मे

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

Color Codes –  कुरआन मजीदहदीसे पाककौल (Quotes).

 

जो शख्श यह चाहता है की वह अल्लाह के अज़ाब से बच जाये, सवाब और रहमत को पा ले, और जन्नती हो जाये तो उसे चाहिए की वह अपने आपको दुनियावी ख्वाइशों से रोके और दुनिया की तकलीफों और परेशानियों पर सब्र करे. जैसा की अल्लाह का फरमान है

अल्लाह सब्र करने वालों को महबूब रखता है.

 

सब्र की किस्मे

सब्र की कई किस्मे हैं – अल्लाह की ईताअत पर सब्र करना, हराम चीज़ों से रुक जाना, तकलीफों पर सब्र करना, और सदमे पर सब्र करना वगेरह.

जो शख्स अल्लाह की इबादत पर सब्र करता है, और हर वक़्त इबादत में डूबा रहता है, उसे क़यामत के दिन अल्लाह ताआला तीन सौ ऐसे दर्जात अता करेगा जिन में हर दर्जे का फासला ज़मीन और आसमान के फासिले के बराबर होगा. जो अल्लाह ताआला की हराम की हुई चीजों से सब्र करता है उसे छः सौ दर्जात अता होंगे जिन में हर दर्जे का फासला सातवें आसमान से सातवीं ज़मीन के फासले के बराबर होगा, जो मुसीबतों पर सब्र करता है उसे सात सौ दर्जे अता होंगे, हर दर्जे का फासला तहतुस्सरा से अर्शे ऊला के बराबर होगा.

 

हज़रत ज़कारिया अलेहिस्सलाम का किस्सा 

किस्सा – हज़रत ज़कारिया अलेहिस्सलाम जब यहूदियों के हमले की वजह से जब शहर से बाहर निकले की कहीं रूपोश हो जाएँ और यहूद उन के पीछे भागे तो आपने, अपने करीब एक दरख़्त देख कर उसे कहा ए दरख़्त मुझे अपने अन्दर छुपा ले, दरख़्त चिर गया और आप उसमे छुप गए. जब यहूद वहां पहुंचे तो शैतान ने उन्हें सारी बात बता कर कहा की इस दरख़्त को आरी से दो टुकड़े कर दो! चुनाचे उन्होंने एसा ही किया और यह सिर्फ इसलिए हुआ की हजरते ज़कारिया अलेहिस्सलाम ने अल्लाह की ज़ात के बजाय अल्लाह की पैदा की हुयी चीज़ से पनाह तलब की थी, आप ने अपने वजूद को मुसीबत में डाला और आप के दो टुकड़े कर दिए गए.

 

हदीसे कुदसी में है की अल्लाह ताआला फरमाता है की 

“जब मेरा कोई बंदा मुसीबतों में मुझ से सवाल करता है, में उसे मांगने से पहले दे देता हूं, और उसकी दुआ को क़ुबूल कर लेता हूँ, और जो बंदा मुसीबतों के वक़्त मेरी मखलूक से मदद मांगता है में उस पर आसमानों के दरवाज़े बंद कर देता हूँ.”

ज़कारिया अलेहिस्सलाम को उफ़ करने की मनाही

कहते हैं की जब आरी हज़रत ज़कारिया अलेहिस्सलाम के दिमाग तक पहुंची तो आपने आह की, इर्शादे इलाही हुआ ऐ ज़कारिया, मुसीबतों पर पहले सब्र क्यों नहीं किया जो अब फरियाद करते हो. अगर दोबारा आह निकाली तो सब्र करने वालों के दफ्तर से तुम्हारा नाम ख़ारिज कर दिया जायेगा.तब हज़रत ने अपने होंठो को बंद कर लिया.चिर कर दो टुकड़े हो गए मगर उफ़ तक नहीं की.

इसलिए हर अक्लमंद के लिए ज़रूरी है की वह मुसीबतों पर सब्र करे और शिकायती हर्फ़ ज़बान पर ना लाये ताकि दुनिया और आखिरत के आजाब से नजात हांसिल कर ले क्यों की इस दुनिया में मुसीबतें अम्बिया अलेहीमुससलाम और औलिया अल्लाह पर ही ज्यादा डाली जाती हैं.

 

सूफियों की नज़र में मुसीबतों की हकीक़त

हज़रात जुनैद बगदादी रहमतुल्लाह अलैह का कौल है “मुसीबतें आरीफीन का चराग, मुरिदीन की बेदारी, मोमिन की इस्लाह और गफिलों के लिए हलाक़त है, मोमिन मुसीबतों पर सब्र किये बगैर ईमान के हलावत मिठास पा नहीं सकता.”

हदीस शरीफ में है “जो शख्श रात भर बीमार रहा और सब्र करके अल्लाह ताआला की रज़ा का चाहने वाला हुआ तो वह शख्श गुनाहों से ऐसे पाक हो जायेगा जैसे की अपनी पैदाइश के वक़्त था.”

इसीलिए जब तुम बीमार हो जाओ तो आफीयत की तमन्ना ना करो.

जनाब जह्हाक कहते हैं की “जो शख्श चालीस रातों में एक रात में भी मुसीबत और दुःख में गिरिफ्तार ना हुआ हो, अल्लाह ताआला के यहाँ उसके लिए कोई खैर और भलाई नहीं है.”

 

मरीज़ मोमिन के गुनाह नहीं लिखे जाते

हज़रात मआज़ बिन जबल राज़ाल्लाहो अन्हो से रिवायत है की जब मोमिन बंदा किसी बीमारी में मुब्तिला हो जाता है तो उसके बाएं शाने (कंधे) वाले फ़रिश्ते से कहा जाता है की उसके गुनाहों को लिखना बंद कर दो, दायें शाने वाले फ़रिश्ते से कहा जाता है की उसके नामा ए आमाल में वह बेहतरीन नेकियाँ लिखो जो उसने की हैं.

हदीस शरीफ में है “जब कोई बंदा बीमार हो जाता है तो अल्लाह ताआला उस की तरफ दो फ़रिश्ते भेजता है की जाकर देखो मेरा बंदा क्या कहता है? अगर बीमार “अलहम्दोलिल्लाह” कहता है फ़रिश्ते अल्लाह की बारगाह में जाकर उस का कौल अर्ज़ करते हैं, अल्लाह का इरशाद होता है अगर मैं ने उस बन्दे को उस बीमारी में मौत दे दी तो उसे जन्नत में दाखिल करूंगा और अगर सेहत अता की तो उसे पहले से भी बेहतर परवरिश करने वाला गोश्त और खून दूंगा और उसके गुनाहों को माफ़ कर दूंगा.”

एक इबरत अंगेज़ हिकायत -बनी इजराइल का गुनाहगार नौजवान 

बनी इजराइल में एक निहायत ही फजिर और फ़ासिक इन्सान था जो अपने बुरे कामों से कभी बाज़ ना आता था, शहर वाले जब उसकी बदकारियों से महफूज़ रहने की दुआ मांगने लगे, अल्लाह ताआला ने हजरते मूसा अलैहहिससलाम की तरफ वह्यी भेजी की बनी इस्राईल के फलां शहर में एक बदकार जवान रहता है उसे शहर से निकाल दीजिये ताकि उसकी बदकारियों की वजह से पूरे शहर पर आग ना बरसे, हजरते मूसा अलेहिस्सलाम वहां तशरीफ़ ले गए और उस को उस बस्ती से निकाल दिया, फिर अल्लाह का हुक्म हुआ की उसे उस बस्ती से भी निकल दीजिये, जब हजरते मूसा अलैहिस्सलाम ने उसको दूसरी बस्ती से भी निकाल दिया तो उस ने एक एसी ग़ार में ठिकाना बनाया जहाँ ना कोई इंसान था और ना ही कोई चरिंद परिन्द का गुज़र होता था, आस पास में ना कोई आबादी थी और ना कोई हरियाली थी.

उस ग़ार में आकर वह नौजवान बीमार हो गया उस की देख रेख तीमारदारी के लिए कोई भी उस के आस पास मोजूद नहीं था जो उस की खिदमत करता, वह कमजोरी से ज़मीन पर गिर पड़ा और कहने लगा काश इस वक़्त मेरी माँ मेरे पास मोजूद होती तो मुझ पर शफ़क़त करती और मेरी इस बेकसी और बे बसी पर रोती, अगर मेरी बीवी होती तो मेरी जुदाई पर रोती, अगर मेरे बच्चे इस वक़्त मोजूद होते तो कहते ए रब हमारे आज़िज़, गुनाहगार बदकार और मुसाफिर बाप को बख्श दे! जिसे पहले तो शहर बदर किया गया और फिर दूसरी बस्ती से भी निकाल दिया गया था और अब वह ग़ार में भी हर एक चीज़ से ना उम्मीद हो कर दुनिया से आखिरत की तरफ चला है और वह मेरे ज़नाज़े के पीछे रोते हुए चलते.

फिर वो नौजवान कहने आला ऐ अल्लाह, तू ने मुझे माँ बाप और बीवी बच्चों से तो दूर किया है मगर अपने फ़ज़ल और करम से दूर ना करना तू ने ने मेरा दिल अज़ीज़ों की जुदाई में जलाया है, अब मेरे सरापा को मेरे गुनाहों की वजह से जहन्नम की आग में ना जलाना, उसी वक़्त अल्लाह ताआला ने एक फ़रिश्ता उसके बाप के हम शक्ल बना कर, एक हूर को उस की माँ और एक हूर को उस की बीवी की हम शक्ल बना कर और गिल्माने जन्नत (जन्नत के खादिमों) को उस के बच्चों के रूप में भेज दिया, यह सब उसके करीब आकर बैठ गए और उस की बेहद तकलीफ पर अफ़सोस और आह व ज़ारी करने लगे. जवान उन्हें देख कर बहूत खुश हुआ और उसी खुशी में उसका इन्तेकाल हो गया, तब अल्लाह ताआला ने हजरते मूसा अलेह्हिस्सलाम की तरफ वह्यी भेजी की फलां ग़ार की तरफ जाओ, वहां हमारा एक दोस्त मर गया है,  तुम उसके दफ़न व कफ़न का इंतज़ाम करो.

हुक्मे इलाही के मुताबीक हज़रत मूसा अलेहिस्सलाम जब ग़ार में पहुंचे तो उन्होंने वहां उसी जवान को मरा हुआ पाया.  जिस को उन्होंने पहले शहर और फिर दूसरी बस्ती से निकला था,  उस के पास हूरें ताजियत करने वालों की तरह बैठ हुई थी, मूसा अलेहिस्सलाम ने अल्लाह से अर्ज़ की ए रब्बुल इज्ज़त!  यह तो वही जवान है  जिसे मेने तेरे हुक्म से शहर और बस्ती से निकाला था.  अल्लाह ने फ़रमाया ए मूसा मैंने उसके बहूत ज्यादा रोने और अज़ीज़ों की जुदाई में तड़पने की वजह से उस पर रहम किया है और फ़रिश्ते को उस के बाप की और हूर व गिलमान को उस की माँ, बीवी और बच्चों के हमशक्ल बना कर भेजा है, जो ग़ुरबत में उस की तकलीफों पर रोते हैं, जब ये मरा तो उस की बे चारगी पर ज़मीन और आसमान वाले रोये और में अररहमरराहेमीन  फिर क्यों ना उस के गुनाहों को माफ़ करता.      

जब मुसाफिर मुसाफरत में इन्तेकाल करता है

जब किसी मुसाफिर पर नज़ा (दम निकलना) का आलम तारी हौता है तो अल्लाह ताआला फरिश्तों से फरमाता है यह बेचारा मुसाफिर है, अपने बाल बच्चों और माँ बाप वगेरह को छोड़ चुका है, जब यह मरेगा तो इस पर कोई अफ़सोस करने वाला भी नहीं होगा तब अल्लाह ताआला फरिश्तों को उसके माँ बाप औलाद और दोस्त अहबाब की शक्ल में भेजता है, जब वह उन्हें अपने करीब देखता है तो उनको अपने दोस्त और अहबाब समझ कर हद दर्जा खुश होता है,और उसी ख़ुशी की हालत में उसकी रूह निकल जाती है, फिर वह फ़रिश्ते परेशान हाल होकर उसके जनाज़े के पीछे पीछे चलते हैं,और क़यामत तक उसकी बक्शीश की दुआ करते रहते हैं.

अल्लाह का फरमान है – “अल्लाह अपने बन्दों पर मेहरबान है”

अल्लाह से शिकायत करना कैसा है?

इब्ने अता रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं इन्सान का सच व झूठ उसकी मुसीबत और ख़ुशी के वक़्त ज़ाहिर होता है, जो शख्श ख़ुशी व खुशहाली में तो अल्लाह ताआला का शुक्र अदा करता है, मगर मुसीबतों में फरियाद और फुगाँ करता है वह झूठा है. अगर किसी को दो आलम का इल्म अता कर दिया जाये, फिर उस पर मुसीबतों की यलगार हो और वह शिकवा करने लगे तो उसे उसका यह इल्म व अमल कोई फायदा नहीं देगा.

हदीसे कुदसी है – “अल्लाह ताआला इरशाद फरमाता है जो मेरी कज़ा पर राज़ी नहीं मेरी अता पर शुक्र नहीं करता वह मेरे सिवा कोई और रब तलाश करे.”

हिकायत – वहाब बिन मम्बा कहते है अल्लाह के एक नबी ने पचास साल अल्लाह की इबादत की, तब अल्लाह ताआला ने उन नबी की तरफ वह्यी फरमाई की मैंने तुझे बख्श  दिया है, नबी ने अर्ज़ की ए अल्लाह!मैंने तो कोई गुनाह ही नहीं किया, बख्शा किस चीज़ पर गया? अल्लाह ताआला ने उनकी एक रग को बंद कर दिया जिस की वजह से वह सारी रात ना सो सके, सुबह को जब उन के पास फ़रिश्ता आया तो उन्होंने रग बंद हो जाने की शिकायत की, तब फ़रिश्ता बोला, अल्लाह ताआला फरमाता है तेरी पचास साल की इबादत से तेरी यह एक शिकायत ज्यादा है!.

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खौफ़ ए इलाही (Taqwa and Fear of Allah in Hindi-2)

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

Color Codes –  कुरआन मजीदहदीसे पाककौल (Quotes).

 

जनाब अल्लामा अबुल्लैस रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं की सातवें आसमान पर अल्लाह के ऐसे फ़रिश्ते हैं की उन्हें अल्लाह ताआला  ने जब से पैदा किया है तभी से सजदे में हैं और अल्लाह ताआला  के खौफ़ से बहुत ज्यादा खौफज़दा हैं क़यामत के दिन जब वह सजदे से सर उठाएंगे तो कहेंगे “ए अल्लाह तू पाक है, हम तेरी कमा हक्क़हू इबादत नही कर सके.”

अल्लाह ताआला  का फरमान है

“वह फ़रिश्ते अपने रब से डरते हैं और जिस चीज़ का उन्हें हुक्म दिया गया है वही कहते हैं और एक पल भी मेरी नाफ़रमानी में नहीं गुजारतें हैं.”

रसूल ए अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया

“जब कोई बंदा अल्लाह के खौफ से कांपता है तो उस के गुनाह उस के बदन से ऐसे झड जाते हैं जैसे दरख़्त को हिलाने से उस के पत्ते झड जाते हैं”

 

गुनाह से रुक जाने वाले नौजवान का किस्सा 

एक नौजवान एक औरत की मोहब्बत में गिरफ्तार हो गया, वह औरत किसी काफिले के साथ बाहर सफ़र पर निकल गयी. जवान को जब मालूम पड़ा तो वह भी उसी काफिले के साथ चल पड़ा, जब काफिला जंगल में पहुंचा तो रात हो गयी रात को उन्होंने वहीँ पड़ाव किया, जब सब सो गए तो वह नौजवान चुपके से उस औरत के पास पहुंचा और कहने लगा मैं तुझ से बहुत मोहब्बत करता हूँ और इसीलिए में इस काफिले के साथ आ रहा हूँ, औरत बोली जाकर देखो कोई जाग तो नहीं रहा है, जवान ने जाकर सारे काफिले को देखा और वापस आकर कहा की सब लोग बे खबर सो रहे हैं, औरत ने पुछा, अल्लाह ताआला  के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है? क्या वह भी सो रहा है ? जवान बोला की अल्लाह ताआला  तो न कभी सोता है ना कभी उसे ऊँघ आती है. तब वह औरत बोली लोग सो गए तो क्या हुआ , अल्लाह तो जाग रहा है, हमें देख रहा है, उस से डरना हम पर फ़र्ज़ है, जवान ने जैसे ही यह बात सुनी, खुदा के डर से कांपने लगा और बुरे इरादे से तौबा करके घर वापस चला गया, कहते हैं की जब वह जवान मरा तो किसी ने उसे ख्वाब में देखा और पुछा? सुनाओ तुम पर क्या गुज़री ? जवान ने जवाब दिया मैं ने अल्लाह ताआला  के खौफ से एक गुनाह छोड़ा था, अल्लाह ताआला  ने उसी वजह से मेरे तमाम गुनाहों को बख्श दिया.

 

बनी इस्राईल के एक ताजिर का किस्सा 

किताब मजम उल लताइफ  में है की बनी इस्राईल में एक कसीरुल औलाद वाला आबिद इन्सान था,उसे तंगदस्ती ने आ घेरा, जब बहुत परेशान हुआ तो अपनी औरत से कहा जाओ, किसी से कुछ मांग कर लाओ, औरत ने एक ताजिर (व्यापारी) के यहाँ जाकर खाने का सवाल किया, ताजिर ने कहा अगर तुम मेरी इच्छा पूरी कर दो तो जो चाहे ले सकती हो, औरत बेचारी चुपचाप खाली हाथ घर लौट आई, बच्चों ने जब माँ को खाली हाथ आते देखा तो भूक से चिल्लाने लगे और कहने लगे अम्मी हम भूक से मर रहें हैं हमें कुछ खाने को दो! औरत दोबारा उसी ताजिर के यहाँ लौट गई और खाने का सवाल किया, ताजिर ने फिर वही बात की जो पहले कह चुका था.

औरत रजामंद हो गयी मगर जब दोनों तन्हाई में पहुंचे तो औरत खौफ से कांपने लगी. ताजिर ने पुछा किस से डरती हो? उस ने कहा में उस रब्बे लम यज़ल के खौफ से कांपती हूँ जिस ने हमें पैदा किया. तब ताजिर बोला जब तुम इतनी तंगदस्ती और गरीबी में भी खुदा का खौफ रखती हो तो मुझे भी अल्लाह के आजाब से डरना चाहिए, यह कहा और औरत को बहुत सा माल और सामान देकर इज्ज़त के साथ रवाना किया.

अल्लाह ताआला  ने उस वक्त के पैगम्बर मूसा अलैहिस्सलाम पर वह्यी भेजी की उस बन्दे के पास जाओ और सलाम कह दो और कहना की मैंने उस के तमाम गुनाहों को माफ़ कर दिया है, मूसा अलैहिस्सलाम अल्लाह के हुक्म के मुताबिक उस ताजिर के पास आये और पुछा क्या तुमने कोई अज़ीम नेकी का काम किया हैं, जिस की वजह से अल्लाह ताआला  ने तुम्हारे तमाम गुनाहों को माफ़ कर दिया? जवाब ने ताजिर ने ऊपर बयां किया हुआ सारा किस्सा कह सुनाया.

हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फरमाते हैं की अल्लाह का फरमान है

“मैं अपने किसी बन्दे पर दो खौफ और दो अमन जमा नहीं करता, जो शख्श  दुनिया में मेरे अजाब से डरता है मैं उसे आखिरत में बे खौफ कर दूंगा लेकिन जो दुनिया में मेरे अजाब से बे खौफ रहता है मै उसे आखिरत में खौफ जदा करूँगा”

अल्लाह ताआला  का इरशाद है

“तुम लोगो से नहीं मुझ से डरो”

और यह भी फ़रमाया की

“अगर तुम मोमिन हो तो लोगो से नहीं, मुझ से डरो.”

 

हज़रत उमर रज़िअल्लाहो अन्हो और अल्लाह का खौफ

हज़रत उमर रज़िअल्लाहो अन्हो जब कुरआन मजीद की कोई आयत सुनते तो खौफ से बेहोश हो जाते. एक दिन एक तिनका हाथ में लेकर कहा काश में एक तिनका होता, कोई काबिले ज़िक्र चीज़ ना होता, काश मुझे मेरी माँ पैदा ना करती, और खुदा के डर से आप इतना रोया करते थे की आप के चेहरे पर आंसुओ के बहने की वजह से दो काले निशान पड़ गए थे.

हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया

“जो शख्स अल्लाह के खौफ से रोता है वह जहन्नम में हरगिज़ दाखिल नहीं होगा, उसी तरह  जैसे की दूध दुबारा अपने थनों में नहीं जाता.”

दकाइकुल अख़बार  में है की क़यामत के दिन एक ऐसे इन्सान को लाया जायेगा जब उसके आमाल तोले जायेंगे तो बुराइयों का पलड़ा भारी हो जायेगा चुनाचे उसे जहन्नम में डालने का हुक्म मिलेगा, उस वक़्त उसकी पलकों का एक बाल अल्लाह की बारगाह में अर्ज़ करेगा की ए रब्बे ज़ुल जलाल तेरे रसूल सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया था जो अल्लाह के डर से रोता है, अल्लाह ताआला  उस पर जहन्नम की आग हराम कर देता है और में तेरे खौफ से रोया था, अल्लाह ताआला  का दरियाए रहमत जोश में आएगा और उस शख्स को एक रोने वाले बाल के बदले जहन्नम से बचा लिया जायेगा, उस वक़्त जिब्रील अलेहिस्सलाम पुकारेंगे “फलां बिन फलां एक बाल के बदले नजात पा गया”

 

खौफे खुदा से रोने वाले आप के गुनाहगार उम्मतियों के आंसू

हिदायतुल हिदाया में है की क़यामत के दिन जब जहन्नम को लाया जायेगा तो उस से हैबतनाक आवाजें निकलेंगी जिस की वजह से लोग उस पर से गुजरने में घबराएंगे.

जब लोग जहन्नम के करीब आयेंगे तो उस से सख्त गर्मी और खौफनाक आवाजें सुनेगे जो पांच सो साल के सफ़र की दूरी से सुनाई देती होंगी, जब हर नबी नफ्सी नफ्सी और हुज़ूर मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम उम्मती उम्मती कह रहे होंगे उस वक़्त जहन्नुम से एक बहुत बुलंद आग निकलेगी और हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की उम्मत की तरफ बढ़ेगी, आपकी उम्मत उस से बचने के लिए कहेगी “ए आग तुझे नमाज़ियों, सदक़ा देने वालों, रोज़ादारों और खौफ ए खुदा रखने वालों का वास्ता वापस चली जा” मगर आग बराबर बढती चली जाएगी तब हज़रत जिब्रील अलेहिस्सलाम यह कहते हुए की आग आपकी उम्मत की तरफ बढ़ रही है, आपकी खिदमत में पानी का एक प्याला पेश करेंगे और अर्ज़ करेंगे, ए अल्लाह के नबी, इस से आग पर छींटे मारिये, आप आग पर पानी के छींटे मारेंगे तो आग फ़ौरन बुझ जाएगी उस वक़्त आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम जिब्रील अलेहिस्सलाम से उस पानी की बारे में पूछेंगे, जिब्रील कहेंगे हुज़ूर, यह खौफे खुदा से रोने वाले आप के गुनाहगार उम्मतियों के आंसू थे, मुझे हुक्म दिया गया की मै यह पानी आपकी खिदमत में पेश करूँ और आप उस से जहन्नम की आग को बुझा दें.

 

हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम दुआ माँगा करते थे की

“ए अल्लाह मुझे एसी आँखें अता फरमा जो तेरे खौफ से रोने वाली हों”

“ ए मेरी दोनों आँखों मेरे गुनाहों पर क्यों नहीं रोती हो? मेरी उम्र बर्बाद हो गयी और मुझे मालूम भी नहीं हुआ” (– इमाम गजाली र.अ. मुकाशफतुल कुलूब)

हदीस शरीफ में है “कोई एसा बंदा ए मोमिन नहीं जिसकी आँखों से खौफे खुदा से मक्खी के पर के बराबर आंसू बहे और उस की गर्मी उस के चेहरे पर पहुंचे और उसे कभी जहन्नुम की आग छुए”

जनाब मोहम्मद बिन अल मुन्ज़र र.अ. जब अल्लाह के खौफ से रोते तो अपनी दाढ़ी और चेहरे पर आंसू मला करते और कहते “मेने सुना है की वजूद के जिस हिस्से पर आंसू लग जायेंगे उसे जहन्नम की आग नहीं छुएगी”.

हर मोमिन के लिए ज़रूरी है की वह अल्लाह से डरता रहे और अपने आप को नफ्स की ख्वाइशों से रोकता रहे.

अल्लाह का फरमान है

“पस जिस किसी ने नाफ़रमानी की और दुनिया की ज़िन्दगी को सब कुछ जाना उस का ठिकाना जहन्नम है और जो अपने रब के सामने खड़े रहने के मकाम से डरा और अपने नफ्स को ख्वाईशात से रोक दिया तो उस की पनाहगाह जन्नत है.

 

जन्नत में मोमिनों को अल्लाह का दीदार 

जो इन्सान अल्लाह के अजाब से बचना चाहे और सवाब और रहमत का उम्मीदवार हो, उसे चाहिए की दुनिया की मुसीबतों पर सब्र करे. अल्लाह की इबादत करता रहे और गुनाहों से बचता रहे.

ज़हरुर रियाज़  में एक हदीस है की जब जन्नती जन्नत में दाखिल होंगे तो फ़रिश्ते उनके सामने तरह तरह की नेमतें पेश करेंगे उनके लिए फर्श बिछायेंगे, मिम्बर रखे जायेंगे,और उन्हें मुख्तलिफ किस्म के खाने और फल पेश किये जायेंगे, उस वक़्त जन्नती हैरान बैठे होंगे, अल्लाह ताआला  फरमाएगा ए मेरे बन्दों हैरान क्यों हो? यह जन्नत ताज्जुब की जगह नहीं है, उस वक़्त मोमिन अर्ज़ करेंगे या अल्लाह तूने एक वादा किया था जिस का वक़्त आ पहुंचा है, तब फरिश्तों को हुक्मे इलाही होगा की इनके चेहरों से पर्दा उठा लो! फ़रिश्ते अर्ज़ करेंगे की यह तेरा दीदार केसे करेंगे हालाँकि यह गुनाहगार थे? उस वक़्त फरमाने इलाही होगा की तुम हिजाब उठा दो, यह ज़िक्र करने वाले, सजदा करने वाले और मेरे खौफ से रोने वाले थे,और मेरे दीदार के उमीदवार थे. उस वक़्त परदे उठा लिए जायेंगे और जन्नती अल्लाह का दीदार होते ही सजदे में गिर जायेंगे, अल्लाह फरमाएगा सर उठा लो! यह जन्नत दारे-अमल नहीं दारे जज़ा है और वह अपने रब को बे कैफ देखेंगे,

अल्लाह ताआला  फरमाएगा “मेरे बन्दों तुम पर सलामती हो, मैं तुम से राज़ी हूँ, क्या तुम मुझ से राज़ी हो? जन्नती अर्ज़ करेंगे ए हमारे रब ! हम केसे राज़ी नहीं होंगे हालाँकि तूने हमें वह नेमते दी जिनको ना किसी आंख ने देखा, ना किसी कान ने सुना और ना ही किसी दिल में उसका तसव्वुर गुज़रा और यही उस फरमाने इलाही का मक़सूद है की अल्लाह उन से राज़ी हुआ और वह अल्लाह से राज़ी हुए.

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

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अल्लाह ताआला का खौफ और खशियत (Taqwa and Fear of Allah in Hindi)

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

Color Codes –  कुरआन मजीद, हदीसे पाक, कौल (Quotes). 

 

दुरुद शरीफ पढने से मगफिरत

आकाए नामदार सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया की

“अल्लाह ताआला ने एक फ़रिश्ता पैदा किया जिसके दोनों बाजुओं का दरमियानी फासला पूरब और पश्चिम को घेरे हुए है, सर उसका अर्श के नीचे है और दोनों पाँव तहतुस्सरा में हैं, रुए ज़मीन पर आबाद मखलूक के बराबर उसके पैर हैं. मेरी उम्मत में से जब कोई मर्द या औरत मुझ पर दरूद भेजता है तो उस फ़रिश्ते को अल्लाह ताआला का हुक्म होता है की वह अर्श के निचे नूर के समुन्दर में गोता जन हो  (डुबकी लगाये) तो वह गोता लगाता है जब बाहर निकल कर अपने पर झाड़ता है तो उसके परों से कतरे टपकते हैं अल्लाह ताआला हर कतरे से एक फ़रिश्ता पैदा करता है जो क़यामत तक उस के लिए दुआ ए मगफिरत करता है.”

 

दुरुद शरीफ पढने से ईमान की सलामती

एक दाना का कौल है की “जिस्म की सलामती कम खाने में है और रूह की बक़ा कम गुनाहों में है और ईमान की सलामती हुज़ूर नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम पर दुरुद और सलाम पढने में है.

 

ए ईमान वालों अल्लाह से डरो

अल्लाह ताआला का इरशाद है

“ए ईमान वालों अल्लाह से डरो!”

यानि दिल में खौफे खुदा पैदा करो और उस की इताअत और फरमा बरदारी करो.

“और इन्सान देखे की आइन्दा के लिए आगे क्या भेजा है”

मतलब यह है की क़यामत के दिन के लिए क्या अमल किया इस का मह्फूम यह है की सदका करो और नेक काम करो ताकि क़यामत के दिन उनका बदला पाओ और अपने रब से डरते रहो, अल्लाह ताआला तुम्हारी हर अच्छी और बुरी बात को जनता है .

 

क़यामत के दिन फ़रिश्ते ज़मीन, आसमान, दिन व् रात गवाही देंगे की आदम के बेटे/बेटी ने यह काम भलाई का किया या बुराई का, फरमाबरदारी की या ना फ़रमानी, यहाँ तक की इन्सान के अपने आज़ा (अंग) भी उसके खिलाफ गवाही देंगे, इमानदार और मुत्तक्की परहेज़गार इन्सान के हक में ज़मीन गवाही देगी चुनाचे ज़मीन यह कहेगी इस इन्सान ने मेरी पीठ पर नमाज़ पढ़ी, रोज़ा रखा, हज किया, जिहाद किया यह सुनकर ज़ाहिद व मुत्तकी इन्सान खुश होगा और काफ़िर और नाफरमान के खिलाफ ज़मीन गवाही देते हुए यह कहेगी की इसने मेरी पीठ पर शिर्क किया, ज़िना किया, शराब पी और हराम खाया,अब इसके लिए हलाक़त और बर्बादी है.

 

किसी बन्दे के दिल में अल्लाह ताआला के खौफ का पता किन बातों से चलता है?

ईमान वाला वह है जो जिस्म के तमाम आज़ा के साथ अल्लाह ताआला से डर रखता हो जैसा की फकीह अबू लैस ने फ़रमाया

“सात बातों में अल्लाह ताआला के खौफ का पता चल जाता है.

1 उस की ज़बान गलत बयानी, गीबत, चुगली, तोहमत और फुजूल बातें बोलने से बची हो और अल्लाह ताआला का ज़िक्र करने, तिलावत ए कुरान ए पाक करने, और दीनी इल्म सिखने में लगी हो.

2 उस के दिल से दुश्मनी, बुह्तान, और हसद निकल जाये, क्यों की हसद नेकियों को चाट जाता है जैसा की हुज़ूर मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फरमान है

“हसद नेकियों को खा जाता है जेसे आग लकड़ी को खा जाती है”

जानना चाहिए की हसद दिल की सब से बुरी बिमारियों में से एक बीमारी है और दिल की बिमारियों का इलाज सिर्फ इल्म और अमल से ही हो सकता है.

3 उस की नज़र हराम खाने पीने से और हराम लिबास से महफूज़ रहे और दुनिया की तरफ लालच की नज़र से ना देखे बल्कि सिर्फ इबरत के लिए उस की तरफ देखे और हराम पर तो कभी उसकी निगाह भी ना पड़े जैसा की हुज़ूर नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया है

“जिस ने अपनी आँख हराम से भरी अल्लाह ताआला क़यामत के दिन उसको आग से भर देगा.”

4 उसके पेट में हराम खाना ना जाए, यह गुनाह ए कबीर है.

हुज़ूर नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया

“बनी आदम के पेट में जब हराम का लुकमा (निवाला) पड़ा तो ज़मीन और आसमान का हर फ़रिश्ता उस पर लानत करेगा जब तक की वह लुकमा उस के पेट में रहेगा और अगर उसी हालत में मरेगा तो उस का ठिकाना जहन्नम होगा.”

5 हराम के तरफ हाथ ना बढ़ाये बल्कि उसका हाथ अल्लाह की फरमाबरदारी में बढ़े. हज़रात कअब इब्ने अह्बार रज़िअल्लहो अन्हो से रिवायत है की अल्लाह ताआला ने सब्ज़ मोती का महल पैदा फ़रमाया उस में सत्तर हज़ार घर हैं और हर घर में सत्तर हज़ार कमरे हैं उस में वही दाखिल होगा जिस के सामने हराम पेश किया जाये और वह सिर्फ अल्लाह के डर की वजह से उसे छोड़ दे.

6 उसका कदम अल्लाह ताआला की नाफ़रमानी में ना चले बल्कि सिर्फ उसकी इताअत व खूशनूदगी में रहे, आलिमों और नेकों की तरफ हरक़त करे.

7 इबादत और मुजाहिदा, इन्सान को चाहिए की केवल अल्लाह ताआला के लिए इबादत करे, दिखावा रियाकारी और मुनाफकत से बचता रहे, अगर एसा किया तो यह उन लोगो में शामिल हो गया जिन के बारे में अल्लाह ताआला ने फ़रमाया है

“और तेरे रब के नज़दीक आखिरत डरने वालों के लिए है”

दूसरी आयत में यूँ इरशाद है

“बेशक मुत्तकी अमन वाले मकाम में होंगे.”

 

मतलब अल्लाह ताआला यह फरमा रहा है लो यही लोग मुत्तकी और परहेजगार क़यामत के दिन दोज़ख से छुटकारा पाएंगे और ईमानदार आदमी को चाहिए की वह बीम और रज़ा, डर और उम्मीद के दरमियाँ रहे वही अल्लाह ताआला की रहमत का उमीदवार होगा और उस से मायूस और ना उम्मीद नहीं रहेगा. अल्लाह ताआला ने फ़रमाया

“अल्लाह ताआला की रहमत से ना उम्मीद ना हो.”

तो बस अल्लाह ताआला की इबादत करे, बुराई के कामों से मुह मोड़ ले और अल्लाह ताआला की तरफ पूरी तरह मुतवज्जह हो.

*** हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ.-किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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