हुजूर मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का विसाल

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हम अपनी मां आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा के घर उस वक्त हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में हाज़िर हुवे जब जुदाई की घड़ी करीब थी, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हमें देखा, आप की आंखें नमनाक हो गई, फिर फ़रमाया : तुम्हें खुश खबरी हो, तुम्हें अल्लाह तआला ने ज़िन्दगी दी, अल्लाह ने तुम्हें पनाह दी अल्लाह तआला ने तुम्हारी मदद फ़रमाई, मैं तुम्हें अल्लाह तआला से डरते रहने की वसिय्यत करता हूं और तुम्हें अल्लाह तआला से मुतअल्लक करता हूं, बेशक मैं तुम्हारे लिये अल्लाह तआला की तरफ़ से खुला हुवा नज़ीर हूं, येह कि अल्लाह तआला के शहरों और बन्दों में अल्लाह तआला की सरकशी न करो, मौत करीब आई और अल्लाह तआला, सिद्रतुल मुन्तहा, जन्नतुल मावा और लबरेज़ जामों की तरफ़ पलटना है पस तुम अपने नफ्सों पर और उस शख्स पर जो मेरे बाद तुम्हारे दीन में दाखिल हो मेरी तरफ़ से सलाम कहो ।

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हुजूर के विसाल के बाद भी अल्लाह तआला उम्मते हबीब का वाली है।

मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने विसाल के वक्त जिब्रील अलैहहिस्सलाम  से फ़रमाया कि मेरे बाद मेरी उम्मत का कौन है ? अल्लाह तआला ने हज़रते जिब्रील अलैहहिस्सलाम  की तरफ़ वहूय फ़रमाई कि मेरे हबीब सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को खुश खबरी दे दो कि मैं उन्हें उम्मत के बारे में शर्मिन्दा नहीं करूंगा और उन्हें इस बात की भी खुश खबरी दे दो कि जब लोग महशर के लिये उठाए जाएंगे तो वोह सब से जल्दी उठेंगे, जब वोह जम्अ होंगे तो मेरा हबीब उन का सरदार होगा

और बेशक जन्नत दीगर उम्मतों पर उस वक़्त तक हराम होगी जब तक कि आप की उम्मत उस में दाखिल न होगी। येह सुन कर हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि अब मेरी आंखें ठन्डी हुई हैं।

हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा  फ़रमाती हैं : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हमें हुक्म दिया कि मुझे सात कूओं के सात पानियों से गुस्ल दो चुनान्चे, हम ने ऐसा ही किया तो आप ने राहत पाई, फिर बाहर तशरीफ़ ले गए, लोगों को नमाज़ पढ़ाई, शुहदाए उहुद के लिये बख्रिशश की दुआ की, अन्सार के लिये वसिय्यत की और फ़रमाया :

अम्मा बा’द ! ऐ गुरौहे मुहाजिरीन ! तुम बढ़ते जाते हो और अन्सार उस दिन वालिये हैअत पर बाकी हैं, वोह नहीं बढ़े हैं, अन्सार मेरे राज़दार हैं, जिन की तरफ़ मैं ने पनाह ली है लिहाज़ा उन के करीम या’नी नेक की इज्जत करो, उन के बुरे से दर गुज़र करो। फिर फ़रमाया : बेशक बन्दे को दुन्या और अल्लाह तआला के कुर्ब के दरमियान इख्तियार दिया गया तो उस ने उस चीज़ को पसन्द कर लिया जो अल्लाह के यहां है।

हज़रते अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो रो दिये और समझ गए कि उस बन्दे से मुराद खुद हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम हैं। तब हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : ऐ अबू बक्र ! तसल्ली रखो, अबू बक्र के दरवाजे के सिवा मस्जिद की तरफ़ खुलने वाले तमाम घरों के दरवाजे बन्द कर दो क्यूंकि मैं ऐसा कोई आदमी नहीं जानता जो दोस्ती में मेरे नज़दीक अबू बक्र से अफ़ज़ल हो ।

हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा का फ़रमान है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने मेरे घर, मेरे दिन, मेरे दिल और मेरे हुल्कूम के दरमियान विसाल फ़रमाया और अल्लाह तआला ने मौत के वक्त मेरे और आप के लुआबे दह्न को जम्अ किया, मेरे घर मेरे भाई अब्दुर्रहमान आया इस के हाथ में मिस्वाक थी, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मिस्वाक की तरफ देखने लगे, मैं समझ गई कि आप मिस्वाक पसन्द फ़रमाते हैं लिहाज़ा मैं ने कहा : येह आप के लिये ले लूं ? आप ने सर से इशारा फ़रमाया : हां ! चुनान्चे, मैं ने अब्दुर्रहमान से मिस्वाक ले ली और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के दर्ने अक्दस में दे दी मगर वोह आप को सख्त महसूस हुवा तो मैं ने कहा कि मैं इसे आप के लिये नर्म कर दूं? आप ने सर के इशारे से हां फ़रमाया । चुनान्चे, मैं ने उसे नर्म किया और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के सामने पानी का बरतन रखा था, आप उस में हाथ दाखिल करते थे और फ़रमाते : ला इलाहा इललल लाह अलबत्ता मौत के लिये सकरात हैं, फिर आप ने अपना हाथ बुलन्द फ़रमाया और फ़रमाने लगे अर्फिकुल आला अर्फिकुल आला  तब मैं ने अर्ज की : ब खुदा ! आप ने हमें तरजीह नहीं दी है।

अन्सार का इजतिमा

हज़रते सईद बिन अब्दुल्लाह रज़ीअल्लाहो अन्हो ने अपने वालिद से रिवायत की है कि जब अन्सार ने देखा कि नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की तबअ शरीफ़ में गिरानी बढ़ती जा रही है तो वोह मस्जिद के इर्द गिर्द आए, हज़रते अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के पास हाज़िर हुवे और उन्हें अन्सार के इरादे और खौफ़ के मुतअल्लिक़ बताया फिर हज़रते फ़ज़ल रज़ीअल्लाहो अन्हो ने आप से वोही बात अर्ज की फिर हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो घर में दाखिल हुवे और आप ने भी वोही बात अर्ज की जो पहले कर चुके थे चुनान्चे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने अपना हाथ मुबारक लम्बा किया और फ़रमाया : इसे पकड़ो, पस उन्हों ने आप को थाम लिया और आप ने पूछा : तुम क्या कहते हो ? उन्हों ने अर्ज की : हमें डर है कि आप विसाल फ़रमा जाएंगे। उन की औरतें अपने जवानों को हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के पास जम्अ होने की वज्ह से एक दूसरे को बुलाने लगीं, चुनान्चे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम उठे और हज़रते अली और फ़ज़्ल रज़ीअल्लाहो अन्हो का सहारा ले कर चले, हज़रते अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो आप के आगे आगे थे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम सरे अन्वर लपेटे हुवे निकले, आप के पैर मुबारक घिसटते जाते थे यहां तक कि आप मिम्बर शरीफ़ की सब से निचली सीढ़ी पर तशरीफ़ फ़रमा हुवे, लोग आप की तरफ़ उठ आए, आप ने अल्लाह की हम्दो सना के बा’द फ़रमाया :

ऐ लोगो ! मुझे मालूम हुवा है कि तुम मेरी मौत से ख़ौफ़ज़दा हो, गोया तुम मौत को नहीं पहचानते और तुम अपने नबी की मौत को अच्छा नहीं समझते, क्या मैं ने और तुम्हारे नफ्सों ने तुम्हें मौत की खबर नहीं दी ? क्या मुझ से पहले मबऊस होने वाले अम्बियाए किराम में से कोई नबी हमेशा रहा कि मैं भी हमेशा रहूं? बा खबर हो जाओ, मैं अपने रब से मिलने वाला हूं और तुम भी उस से मिलने वाले हो, मैं तुम्हें मुहाजिरीने अव्वलीन के मुतअल्लिक नेकी की वसिय्यत करता हूं

और मैं मुहाजिरीन को एक दूसरे की वसिय्यत करता हूं क्यूंकि फ़रमाने इलाही है : कसम है ज़माने की तहक़ीक़ इन्सान नुक्सान में है मगर वोह लोग जो ईमान लाए । (अल आयत)और तमाम उमूर अल्लाह तआला की मन्शा से पायए तक्मील को पहुंचते हैं, तुम्हें किसी काम की देर, उज्लत पसन्दी पर आमादा न करे क्यूंकि अल्लाह तआला किसी की उज्लत ……तर्जमए कन्जुल ईमान : उस ज़मानए महबूब की क़सम बेशक आदमी ज़रूर नुक्सान में है मगर जो ईमान लाए ।

से उज्लत नहीं करता और जिस ने अल्लाह तआला को गालिब माना वोह खुद गालिब हुवा और जिस ने अल्लाह तआला से फ़रेब किया उस ने खुद से फ़रेब किया।

पस तुम इस बात के करीब हो कि अगर तुम्हें वाली बनाया जाए तो तुम ज़मीन में फ़साद करो और कतए रेहमी करो।

मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की वसीयत – अन्सार के बारे में वसिय्यत

रहमते दो आलम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने अन्सार के बारे में फ़रमाया  और मैं तुम्हें अन्सार से नेकी की वसिय्यत करता हूं क्यूंकि वोही हैं जिन्हों ने (मदीनए तय्यिबा में) हिजरत के घर में ठिकाना बनाया है और तुम से पहले ईमान लाए हैं, तुम उन से एहसान करो, क्या उन्हों ने तुम्हारे लिये फलों को दो हिस्से नहीं किया ? क्या उन्हों ने अपने घरों को तुम्हारे लिये वसीअ नहीं किया ? क्या उन्हों ने तुम्हें खुद पर तरजीह नहीं दी हालांकि वोह खुद तंगदस्त थे ? बा खबर रहो जो शख्स इस बात का वाली बनाया जाए कि वोह दो आदमियों में फैसला करे पस चाहिये कि वोह उन के नेक को कबूल करे और उन के बुरे से दर गुज़र करे बा ख़बर हो जाओ उन पर खुद को तरजीह न दो ! बा खबर रहो मैं तुम्हारे लिये पहले जाने वाला हूं और तुम मुझे मिलने वाले हो, बा खबर रहो, तुम्हारे उतरने की जगह मेरा हौज़ है, मेरा हौज़ शाम के शहर बसरा और सन्आए यमन के दरमियानी फ़ासिले के बराबर है, उस में कौसर के परनाले से ऐसा पानी उंडेला जाता है जो दूध से ज़ियादा सफ़ेद, मख्खन से ज़ियादा नर्म और शहद से ज़ियादा मीठा है, जिस ने उस से पी लिया वोह कभी भी प्यासा नहीं होगा, उस की कंकरियां मोतियों की और उस की ज़मीन मुश्क की है, कल खड़े होने के दिन जो उस से महरूम रहा वोह हर भलाई से महरूम रहा।

बा खबर हो जाओ ! जो येह पसन्द करता है कि कल मेरे पास आए उसे चाहिये कि वोह नाजाइज़ बातों से अपनी ज़बान और हाथ को रोके।

हज़रते अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो ने अर्ज की : या नबिय्यल्लाह ! कुरैश के लिये वसिय्यत कीजिये तो आप ने फ़रमाया : मैं इस बात के लिये कुरैश को वसिय्यत करता हूं लोग कुरैश के ताबेअ हैं, उन का भला उन के भले के लिये और उन का बुरा उन के बुरे के लिये है। ऐ आले कुरैश ! लोगों के साथ भलाई करो, ऐ लोगो ! गुनाह नेमतों को तब्दील कर देते हैं और किस्मत को बदल देते हैं लिहाज़ा जब लोग नेक होते हैं तो उन के हाकिम भी नेक होते ……तर्जमए कन्जुल ईमान : तो क्या तुम्हारे येह लच्छन (अन्दाज़) नज़र आते हैं कि अगर तुम्हें हुकूमत मिले तो ज़मीन में फ़साद फैलाओ और अपने रिश्ते काट दो । (१:

हैं और जब लोग ना फ़रमानियां करते हैं तो वोह ना फ़रमान करार पाते हैं।) या’नी उन के हाकिम ज़ालिम होते हैं,

फ़रमाने इलाही है कि “और इसी तरह हम बा’ज़ ज़ालिमों को बा’ज़ ज़ालिमों का वली बना देते हैं ब सबब उन के आ’माल के।”

मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का आखिरी वक़्त

हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्होसे मरवी है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हज़रते अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो से फ़रमाया : अबू बक्र पूछो ! हज़रते अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो ने अर्ज की : या रसूलल्लाह ! वक़्त करीब आ गया है ? आप ने फ़रमाया : हां वक्त करीब आ गया है और बहुत ही करीब आ गया है। हज़रते अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो ने अर्ज की : ऐ अल्लाह के नबी ! जो कुछ अल्लाह के यहां है आप को मुबारक हो, काश हम अपने ठिकाने को जानते, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : अल्लाह की तरफ़, सिद्रतुल मुन्तहा की तरफ़, फिर जन्नतुल मावा की तरफ़, फिर फ़िरदौसे आ’ला की तरफ़, शराबे तहूर से भरे हुवे प्याले और रफ़ीके आ’ला की जानिब, मुबारक ज़िन्दगी और हिफ़्जे इलाही की अमान हैं।

हज़रते अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो ने पूछा : ऐ अल्लाह के नबी ! आप के गुस्ल के लिये इन्तिज़ाम किस का होगा ? फ़रमाया : मेरे करीबी, फिर उन के करीबी, उन्हों ने अर्ज़ की : हम आप को किन कपड़ों का कफ़न दें ? आप ने फ़रमाया : मेरे इन कपड़ों, यमनी चादर और सफ़ेद मिस्री चादर में । फिर हज़रते अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो ने पूछा : हम आप पर नमाज़ कैसे पढ़ें ? चुनान्चे, हम रो पड़े और वोह भी रो दिये। फिर हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : छोड़ो, अल्लाह तआला तुम्हें बख़्शे और तुम्हारे नबी (की तरफ़) से तुम्हें बेहतर जज़ा दे। जब तुम मुझे गुस्ल दे लो, कफ़न पहना लो तो मुझे मेरे इसी घर में मेरी चारपाई पर मेरी क़ब्र के किनारे रख देना, फिर तुम कुछ देर के लिये मुझे तन्हा छोड़ कर बाहर निकल जाना, सब से पहले अल्लाह  मुझ पर रहमत भेजेगा, फिर फ़रिश्तों को मुझ पर दुरूद की इजाजत दी जाएगी और सब से पहले अल्लाह तआला की मख्लूक में से जिब्रीलअलैहहिस्सलाम  . मेरे पास आएंगे और वोह मुझ पर दुरूद पढ़ेंगे, फिर मीकाईल फिर इसराफ़ील और फिर एक कसीर जमाअत के साथ इज़राईल अलैहहिस्सलाम  दुरूद पढ़ेंगे, फिर तमाम फ़िरिश्ते आएंगे और इस के बाद तुम गिरोह  दर गिरोह मुझ पर दाखिल होना और गिरोह की सूरत में मुझ पर सलात पढ़ना और खूब सलाम भेजना और मुझे घर भर कर, आवाजें बुलन्द कर के, चीखो पुकार से तक्लीफ़ न देना और चाहिये कि तुम में से इमाम सब से पहले आए और मेरे करीबी घर वाले, फिर इन से करीब वाले, फिर औरतों की जमाअतें और फिर बच्चों की जमाअतें आएं।

हज़रते अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो ने अर्ज की, कि आप को कब्रे अन्वर में कौन उतारेगा ? फ़रमाया : मेरे इन्तिहाई करीबी घर वालों की जमाअत, फिर उन से करीबी, फ़िरिश्तों की कसीर ता’दाद के साथ, तुम उन्हें नहीं देखते हो मगर वोह तुम्हें देखते हैं, खड़े हो जाओ और मेरे बाद आने वालों तक पहुंचा दो।

हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा  से मरवी है कि जिस दिन हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने विसाल फ़रमाया, लोगों ने दिन के इब्तिदाई हिस्से में आप की तबीअत को हल्का पाया चुनान्चे, वोह खुशी खुशी अपने घरों और कामों के लिये लौट गए और आप को औरतों के दरमियान तन्हा छोड़ गए, हम इस तरह खुशी व मसर्रत में थे कि इतनी खुशी हमें पहले कभी नहीं मिली थी, अचानक हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : तुम सब औरतें बाहर चली जाओ क्यूंकि येह फ़रिश्ता मुझ से अन्दर दाखिल होने की इजाजत मांग रहा है, चुनान्चे, घर से मेरे सिवा सब औरतें बाहर चली गई और आप का सरे मुबारक मेरी गोद में था, आप बैठ गए और मैं घर के एक कोने में हो गई।

उस फ़िरिश्ते ने तवील सरगोशी की, फिर हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने मुझे बुलाया और इसी तरह सर मुबारक मेरी गोद में रख दिया और औरतों से फ़रमाया कि अन्दर आ जाओ, मैं ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से अर्ज की, कि मुझे येह आहट जिब्रील की नहीं लगी तो आप ने फ़रमाया : हां आइशा ! येह मलकुल मौत था जो मेरे पास आया था और उस ने कहा कि अल्लाह तआला ने मुझे भेजा है और फ़रमाया है कि मैं आप की इजाजत के बिगैर आप के पास न आऊं, अगर आप इजाज़त दें तो अन्दर आऊं और अल्लाह तआला ने मुझे येह भी हुक्म दिया है कि आप की इजाज़त के बिगैर रूहे मुक़द्दस को कब्ज़ न करूं । अब आप की क्या राए है ? चुनान्चे, मैं ने कहा : अभी ठहरो ता आंकि मेरे पास जिब्रील आ जाए, येह जिब्रील के आने का वक्त है।

 

हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा  ने फ़रमाया कि हम पर ऐसा अम्र वारिद हुवा कि जिस के बारे में हमारे पास कोई जवाब न था और न ही उस बारे में कोई राए थी, हम सब ख़ौफ़ज़दा हो कर खामोश थे, गोया अहले बैत में से कोई एक भी उस अज़ीम अम्र की वज्ह से बोल नहीं सकता था, उस की हैबत ने हमारे जिस्मों को खून से भर दिया था ।

हज़रते आइशा राज़ी अल्लाहो अन्हा फ़रमाती हैं कि उस साअत में जिब्रीले अमीन हाज़िर हुवे, मैं ने उन की आहट को पहचान लिया, घर वाले बाहर निकल गए, जिब्रील अन्दर दाखिल हुवे और अर्ज़ की : ऐ नबी ! अल्लाह आप पर सलाम फ़रमाता है और फ़रमाता है कि आप अपने आप को कैसा पाते हैं हालांकि वोह आप के मुतअल्लिक आप से ज़ियादा जानता है लेकिन अल्लाह का इरादा येह है कि आप की इज्जत व वक़ार में इज़ाफ़ा फ़रमाए और मख्लूक पर आप की इज्जत व वकार पायए तक्मील को पहुंच जाए और आप की उम्मत में मिसाल हो जाए।

आप ने फ़रमाया कि मैं रन्ज व दर्द पाता हूं, जिब्रील ने अर्ज़ की : आप को खुश खबरी हो कि अल्लाह तआला ने इरादा फ़रमाया है कि आप को उन इन्आमात में पहुंचाए जो उस ने आप के लिये तय्यार किये हैं। आप ने फ़रमाया : जिब्रील ! मलकुल मौत ने मुझ से इजाज़त चाही और मुझे बात बतला गया है। जिब्रील ने अर्ज की : ऐ मुहम्मद ! आप का रब आप के दीदार का मुश्ताक है, क्या उस ने आप को नहीं बताया कि अल्लाह तआला आप से किस चीज़ का इरादा फ़रमाता है, ब खुदा ! मलकुल मौत ने हरगिज़ किसी से कभी भी इजाज़त तलब नहीं की, और न ही वोह आयिन्दा किसी से इजाज़त तलब करेगा, बा ख़बर हो जाइये ! अल्लाह तआला आप के इज्जतो शरफ़ को पूरा फ़रमाने वाला है और वोह आप का मुश्ताक है।

आप ने फ़रमाया : तब तो मैं उस वक्त तक चैन नहीं पाऊंगा जब तक कि अल्लाह तआला के हुजूर न पहुंच जाऊं, आप ने औरतों को अन्दर आने की इजाजत दे दी और हज़रते फ़ातिमा राज़ी अल्लाहो अन्हा से फ़रमाया : मेरे करीब आओ चुनान्चे, वोह आप पर गिर गई, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने उन से सरगोशी फ़रमाई । जब उन्हों ने सर उठाया तो उन की आंखें नमनाक थीं और वोह शिद्दते गम से कलाम न कर सकती थीं, फिर फ़रमाया : अपना सर मेरे करीब करो चुनान्चे, हज़रते फ़ातिमा रज़ीअल्लाहो अन्हा  फिर आप से लिपट गई, आप ने उन से सरगोशी फ़रमाई और जब उन्हों ने सर उठाया तो हंस रही थीं और बात करने की ताब न थी।

 

हम ने जब येह अजीब बात देखी तो हम ने बाद में हज़रते फ़ातिमा रज़ीअल्लाहो अन्हा  से इस के मुतअल्लिक़ पूछा तो इन्हों ने बताया कि मुझे हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने जब येह खबर दी कि मैं आज विसाल करने वाला हूं तो मैं रो दी और फिर जब फ़रमाया : मैं ने अल्लाह तआला से दुआ की, कि वोह तुझे मेरे घर वालों में से सब से पहले मुझ से मिलाएगा और तुम्हें मेरे साथ रखेगा तो मैं हंस पड़ी।

फिर आप ने हज़रते फ़ातिमा राज़ी अल्लाहो अन्हा के दो बेटों को बुलाया और उन्हें प्यार किया, हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा  फ़रमाती हैं फिर मलकुल मौत आए, उन्हों ने इजाजत मांगी तो आप ने उसे इजाज़त दे दी। मलकुल मौत ने अर्ज की, कि मेरे लिये क्या हुक्म है ? आप ने फ़रमाया कि मुझे अब मेरे रब के पास ले चलो। मलकुल मौत ने अर्ज की, कि आज (आप की इजाज़त से) ऐसा ही होगा और आप का रब आप का मुश्ताक है और मैं ने आप के सिवा किसी और के पास बार बार आमदो रफ़्त नहीं की और न आप के सिवा मुझे किसी के पास जाने के लिये इजाजत लेने का हुक्म मिला लेकिन आप की साअत आप के सामने है और वोह निकल गए।

हज़रते आइशा राज़ी अल्लाहो अन्हो  फ़रमाती हैं कि फिर जिब्रील अलैहहिस्सलाम  आए और अर्ज की : येह आखिरी पैगामात थे जो ज़मीन पर भेजे गए, अब हमेशा के लिये सिलसिलए वहूय मुन्कतेअ कर दिया गया है और दुन्या लपेट दी जाएगी और जमीन में मेरे लिये आप के बिगैर

और कोई हाजत नहीं और जमीन में आप के पास आना ही मेरी ज़रूरत थी और अब मैं अपने मकाम पर रहूंगा और वहां से कहीं नहीं जाऊंगा, ब खुदा ! जिस ने मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को हक़ के साथ मबऊस फ़रमाया है।

हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा  फ़रमाती हैं : फिर मैं हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के पास गई और आप का सरे अन्वर अपने सीने पर रख कर उसे थाम लिया और आप पर गुनूदगी सी तारी होने लगी और आप की पेशानी मुबारक से पसीना टपकने लगा। मैं ने ऐसा पसीना किसी इन्सान की पेशानी पर नहीं देखा, फिर येह पसीना मुबारक बहने लगा और मैं ने उस से ज़ियादा उम्दा खुश्बू किसी चीज़ में नहीं पाई, पस मैं कहने लगी जूही आप को इफ़ाक़ा हुवा मेरे मां-बाप और जान व घर आप पर कुरबान हों, आप की पेशानी मुबारक से पसीना क्यूं जारी है ? आप ने फ़रमाया : आइशा ! मोमिन का नफ्स पसीने में निकलता है और काफ़िर की जान दोनों बाछों से गधे की तरह निकलती है। फिर हम लोग घबरा गए और अपने घर वालों की तरफ़ आदमी भेजे, पस सब से पहला आदमी जो हमारे पास आया और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को न पाया, मेरा भाई था जिसे मेरे बाप ने मेरी तरफ़ भेजा था, चुनान्चे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने किसी के आने से क़ब्ल विसाल फ़रमाया ।

अल्लाह तआला ने मर्दो को इस लिये रोक दिया था कि उस वक्त जिब्रील व मीकाईल हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में थे, गोया आप को इख़्तियार दिया जा रहा था, और जब आप कलाम करते तो फ़रमाते नमाज़, नमाज़, तुम हमेशा एक दूसरे के मुआविन रहोगे जब तक तुम सब पढ़ते रहोगे नमाज़, नमाज़, गोया हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम येह वसिय्यत करते हुवे जहान से तशरीफ़ ले गए कि नमाज़ नहीं छोड़ना।

हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा  का क़ौल है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने सोमवार के दिन चाश्त और ऐन दोपहर के दरमियानी वक्त में विसाल फ़रमाया।

हज़रते फ़ातिमा रज़ीअल्लाहो अन्हा का क़ौल है कि मैं ने सोमवार के दिन तन्हा मुसीबत नहीं देखी बल्कि ब खुदा ! उस दिन उम्मत को बहुत मसाइब मिले हैं।

हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा  फ़रमाती हैं कि जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने विसाल फ़रमाया तो लोग टूट पड़े और उन के रोने की आवाजें बुलन्द होने लगी और फ़रिश्तों ने दो कपड़ों में हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को लपेट दिया। लोगों ने बहुत इख़्तिलाफ़ किया, बा’ज़ ने आप की मौत को झुटलाया और बा’ज़ लोग गूंगे बन कर रह गए और तवील मुद्दत के बाद बोलने लगे और बा’ज़ की हालत खल्त मल्त हो गई और उन्हों ने बिगैर किसी बयान के बातें करना शुरू की और बा’ज़ अपनी उकूल ले कर बैठ गए और दूसरों को भी बिठा दिया, हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो उन लोगों में से थे जिन्हों ने आप की मौत का इन्कार किया और हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो बैठने वालों में से थे और हज़रते उस्मान रज़ीअल्लाहो अन्होI उन लोगों में से थे जो गूंगे हो कर रह गए।

मुसलमानों में से किसी एक का हाल हज़रते अबू बक्र और हज़रते अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो जैसा नहीं था, अल्लाह तआला ने उन्हें तौफ़ीक़ मरहमत फ़रमाई और गुफ्तार व किरदार की रास्ती बख़्शी और लोग हज़रते अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो के कौल से बहुत घबरा गए यहां तक कि हज़रते अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो आए और कहा : क़सम है उस ज़ात की जिस के सिवा कोई मा’बूद नहीं अलबत्ता हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने मौत का जाइका चख लिया है और आप ने तुम्हें अपनी मौजूदगी में कह दिया था : तहकीक तू भी फ़ौत होने वाला है और तहकीक वोह भी मरने वाले हैं फिर तहकीक तुम कियामत के दिन अपने रब के नज़दीक झगड़ोगे। और हज़रते अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो को येह खबर मिली दर आं हाल येह कि वोह बनू अल हारिस बिन खज़रज के यहां थे, वोह आए और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के पास दाखिल हुवे, आप की तरफ़ देखा फिर आप की तरफ़ देखा और आप पर झुक गए, चूमा और अर्ज की : या रसूलल्लाह ! मेरे मां-बाप आप पर कुरबान हों, अल्लाह तआला आप को दो मरतबा मौत का जाइका नहीं चखाएगा पस अलबत्ता ब खुदा, रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम रिहलत फ़रमा गए हैं फिर आप लोगों की तरफ़ आए और कहा : ऐ लोगो ! जो शख्स मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की इबादत करता है पस बेशक मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम रिहलत फ़रमा गए हैं और जो शख्स मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के रब की इबादत करता है तो उन का रब जिन्दा है, वोह कभी नहीं मरेगा, फ़रमाने इलाही है:

और नहीं मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मगर रसूल तहकीक गुज़रे हैं इस से पहले बहुत पैगम्बर पस अगर वोह फ़ौत हो जाए या कत्ल किया जाए तो

क्या तुम फिर जाओगे अपनी ऐड़ियों पर। गोया लोगों ने इस दिन से पहले येह आयत नहीं सुनी थी। (.तर्जमए कन्जुल ईमान : और मुहम्मद तो एक रसूल हैं उन से पहले और रसूल हो चुके तो क्या अगर वोह इन्तिकाल फ़रमाएं या शहीद हों तो तुम उलटे पाउं फिर जाओगे । )

एक रिवायत में है कि जब हज़रते अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो को येह खबर मिली तो वोह हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के घर दाखिल हुवे दर आं हाल येह कि वोह नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम पर दुरूद भेज रहे थे और उन की आंखों से आंसू बह रहे थे, उन की हिचकी बन्धी हुई थी जैसे पानी से भरा हुवा घड़ा उछलता है और उन्हों ने इस के बा वुजूद क़ौलो फेल में सब्र का दामन न छोड़ा, पस वोह हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम पर झुक गए और आप के चेहरए अन्वर से कपड़ा हटाया, आप की पेशानी और रुख्सारों को चूमा, आप के चेहरए अक्दस पर हाथ फेरा और रोना शुरू हो गए और कहने लगे मेरे मां-बाप, जान और घर बार आप पर कुरबान हो, आप ज़िन्दगी और मौत दोनों में ताहिर व पाकीज़ा हैं, आप के विसाल से वोह सिलसिला मुन्कतेअ हो गया है जो दीगर अम्बियाए किराम से मुन्कतेअ नहीं हुवा था, आप हर वस्फ़ से बाला तर और रोने धोने से बरतर हैं, आप तसल्ली का बाइस हो गए, आप का जूदो करम सब को आम है, अगर आप का विसाल आप के अपने ईसार से न होता तो हम मर जाते और अगर हमारे रोने से कुछ हो सकता तो हम आप पर अपनी आंखों का पानी खुश्क कर देते । बहर हाल हम जिस चीज़ को अपने से अलग नहीं कर सकते वोह गम और आप की याद है जो हमेशा बर करार रहेंगे, ऐ अल्लाह ! हमारा येह पैगाम अपने हबीब सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की बारगाह में पहुंचा दे।

ऐ मुहम्मद ! सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम आप अपने रब के पास हमारी शफाअत फ़रमाएं और अपने दिल में हमारा ख़याल रखें, आप अगर सुकून के अस्बाब मुहय्या न फ़रमाते तो वहशत की वज्ह से हम में से कोई अपनी जगह से न उठ सकता। ऐ अल्लाह ! तू अपने नबी की खिदमत में हमारे येह जज्बात पहुंचा दे और उन का फ़जलो करम हमारे शामिले हाल फ़रमा। येह है वोह जो हमारी ताकत में है और येह हैं हमारे जज़्बात व एहसासात, खुदा करे कि हम रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के उस्वए हसना पर अमल पैरा हों, हम अल्लाह से उम्मीद करते हैं कि वोह हमारी खताओं को नेकियों में तब्दील फ़रमाएगा और ईमान के साथ बारगाहे नबुव्वत में शरफे बारयाबी अता फ़रमाएगा। खालिके आलम की जाते गिरामी ही बेहतरीन मसऊल और आ’ला तरीन उम्मीदों का मलजा व मावा है ।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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मीज़ान  और पुल सिरात

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

अबू दावूद ने हज़रते हसन से उन्हों ने हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा से नक्ल किया है कि वोह रोई तो हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने पूछा : आइशा ! क्यूं रोती हो ? उन्हों ने अर्ज की, कि मैं जहन्नम को याद कर के रोई हूं, क्या आप कियामत के दिन अपने घर वालों को याद रखेंगे ? हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि तीन मकामात पर कोई किसी को याद नहीं करेगा, मीज़ाने अमल के वक्त यहां तक कि वोह येह जान ले कि उस का मीज़ान हल्का हुवा या भारी, नामए आ’माल के उड़ने के वक्त  यहां तक कि वोह येह जान ले कि उस का सहीफ़ए आ’माल दाएं हाथ में आता है या बाएं हाथ में या पीठ के पीछे, और जब पुल सिरात को जहन्नम पर रखा जाएगा यहां तक कि वोह येह न जान ले कि वोह उसे उबूर कर सकता है या नहीं।

 

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 हुजर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम दस्तगीरिये उम्मत के लिये पुल सिरात पर तशरीफ फरमा होंगे।

तिर्मिज़ी शरीफ़ में है कि हज़रते अनस रज़ीअल्लाहो अन्हो ने कहा : मैं ने नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से सवाल किया कि आप कियामत के दिन मेरी सिफ़ारिश फ़रमाएंगे ? आप ने फरमाया : मैं  ऐसा करूंगा ! मैं ने अर्ज की : मैं आप को कहां तलाश करूं ? आप ने फ़रमाया : पहले मुझे पुल सिरात पर तलाश करना, मैं ने अर्ज की, कि अगर मैं पुल सिरात पर आप को न पा सकू तो फिर कहां तलाश करूं? आप ने फ़रमाया कि फिर मुझे मीज़ान के करीब तलाश करना, मैं ने अर्ज की, कि अगर मैं आप को मीज़ान के करीब भी न पा सकू तो कहां तलाश करूं ? आप ने फ़रमाया : फिर मुझे हौज़ के करीब तलाश करना क्यूंकि मैं इन तीन मकामात के इलावा कहीं नहीं होऊंगा।

हाकिम की रिवायत है कि क़ियामत के दिन मीज़ान रखा जाएगा, अगर उस में वज़न किया जाए या जमीनो आस्मान उस में रख दिये जाएं तो वोह रखे जा सकेंगे, तब फ़िरिश्ते अर्ज करेंगे : .या’नी तक्सीम होते वक़्त ।

ऐ अल्लाह ! इस में किस के आ’माल का वज़्न किया जाएगा ? रब तआला फ़रमाएगा : अपनी मख्लूक़ में से जिस के लिये चाहूंगा। फ़िरिश्ते अर्ज करेंगे: ।

पाक है तू, हम तेरी कमा-हक्कुहू इबादत नहीं कर सके।

और पुल सिरात रखा जाएगा जो उस्तरे की धार जैसा होगा। फ़िरिश्ते अर्ज करेंगे इसे कौन उबूर करेगा ? रब तआला फ़रमाएगा कि मेरी मख्लूक में से जिस को मैं चाहूंगा, फ़िरिश्ते अर्ज़ करेंगे : पाक है तू, हम तेरी कमा-हक्कुहू इबादत नहीं कर सके।

पुल सिरात जहन्नम के ऊपर रखा जाएगा

हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि पुल सिरात को जहन्नम के ऊपर रखा जाएगा जो पतली तल्वार की धार की तरह होगी जो फ़िसलने की जगह होगी, उस पर आग के कांटे होंगे जिन से वोह लोगों को उचक लेगी, उस पर रुकने वाला उस में गिरेगा और कुछ तेज़ चलने वाले होंगे जिन में से बा’ज़ बिजली की तरह गुज़रेंगे और वोह उस से गुज़र कर ही रुकेंगे, बा’ज़ उस से हवा की तरह गुज़रेंगे यहां तक कि वोह नजात पा लेंगे, बा’ज़ घुड़ सुवार की तरह जाएंगे, फिर बा’ज़ लोग दौड़ते हुवे आदमी की तरह, फिर इस से कुछ कम रफ्तार में दौड़ते हुवे, फिर पैदल चलने वाले आदमी की तरह लोग गुज़रेंगे, फिर इन में सब के आखिर में ऐसा आदमी गुज़रेगा कि जिसे आग ने झुल्सा दिया होगा और तक्लीफ़ उठा कर आया होगा, तब अल्लाह तआला उसे अपनी रहमत और फ़ज़्लो करम के तुफैल जन्नत में दाखिल करेगा और उसे कहा जाएगा कि आरजू कर और मांग, वोह शख्स कहेगा कि तू रब्बुल इज्जत हो कर मुझ से मिज़ाह करता है ? फिर उसे कहा जाएगा कि तमन्ना कर और मांग, यहां तक कि उस की तमाम तमन्नाएं पूरी हो जाएंगी, रब तआला फ़रमाएगा : तेरे लिये वोह भी है जो तू ने मांगा और उस के बराबर और भी उस के साथ है।

मुस्लिम शरीफ़ की रिवायत है : हज़रते उम्मे मुबश्शिर अन्सारिय्या रज़ीअल्लाहो अन्हा फ़रमाती हैं कि मैं ने हज़रते हफ़्सा रज़ीअल्लाहो अन्हा के यहां हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लमसे सुना, आप फ़रमा रहे थे : उन लोगों में से, जिन्हों ने दरख्त के नीचे बैअत की थी, कोई भी जहन्नम में नहीं जाएगा, हज़रते हफ़्सा रज़ीअल्लाहो अन्हा ने अर्ज की : हां या रसूलल्लाह ! आप ने उन्हें चुप करवा दिया तो वोह बोली : तुम में से कोई नहीं मगर उस पर वारिद होने वाला है। इस पर हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है : फिर नजात देंगे हम उन को जो परहेज़गारी करते  हैं और छोड़ देंगे उस में ज़ालिमों को गिरा हुवा। हज़रते अहमद रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि एक जमाअत ने जहन्नम में दाखिल होने वाले लोगों के बारे में इख़्तिलाफ़ किया है। बा’ज़ का कहना है कि उस में मोमिन दाखिल नहीं होंगे और बा’ज़ ने कहा है कि तमाम लोग उस में वारिद होंगे, फिर अल्लाह तआला उन लोगों को नजात देगा जो तक्वा रखते हैं।

तमाम लोग उस में वारिद होंगे। फिर उंगलियों को कानों के करीब ले जा कर कहा कि येह दो बहरे हों अगर मैं ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को येह फ़रमाते हुवे न सुना हो कि वुरूद से मुराद दुखूल है, कोई नेक और बुरा बाक़ी न रहेगा मगर सब उस में दाखिल होंगे, तब वोह जहन्नम मोमिनों पर हज़रते इब्राहीम अलैहहिस्सलाम  की तरह ठन्डा और सलामती वाला हो जाएगा यहां तक कि उस आग या जहन्नम के लिये आप ने फ़रमाया : मोमिनों की सर्दी की वज्ह से फ़रयाद निकलेगी फिर अल्लाह तआला उन लोगों को नजात देगा जो परहेज़गारी करते हैं और ज़ालिमों को जहन्नम में गिरा हुवा छोड़ देगा।

हाकिम की रिवायत है कि लोग जहन्नम में वारिद होंगे और अपने आ’माल की बदौलत उस से निकलेंगे, पहले बिजली की चमक की तरह, फिर घुड़ सुवार की तरह, फिर ऊंट सुवार की तरह, फिर दौड़ते हुवे आदमी की तरह और फिर पैदल आदमी की तरह निकलेंगे।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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अजाबे जहन्नम का खौफ

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

 बुखारी शरीफ़ की हदीस है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम अक्सर येह दुआ फ़रमाया करते थे : ऐ हमारे रब हम को दुन्या में नेकी और आखिरत  में नेकी अता फ़रमा और हम को आग के अज़ाब से बचा। अबू या’ला की रिवायत है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने एक दिन खुतबा दिया और फ़रमाया : दो अज़ीम चीजों जन्नत और जहन्नम को न भूलो। फिर आप रोए यहां तक कि आंसू जारी हो गए या आप के मुबारक आंसूओं ने आप की दाढ़ी मुबारक के दोनों पहलूओं को तर कर दिया और आप ने फ़रमाया : अगर तुम जानते जो कुछ आख़िरत के बारे में मैं जानता हूं तो तुम मिट्टी पर चलते और अपने सरों पर ख़ाक डालते ।

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तबरानी ने अवसत में येह रिवायत नक्ल की है कि जिब्रील अलैहहिस्सलाम  ऐसे वक्त में हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के पास आए जिस वक्त में वोह कभी नहीं आया करते थे चुनान्चे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम जिबील के लिये खड़े हुवे और पूछा : जिब्रील ! क्या बात है कि मैं तुम्हारा रंग मुतग़य्यर देखता हूं ? जिब्रील ने कहा : मैं आप के पास इस लिये आया हूं कि अल्लाह तआला ने जहन्नम को मजीद दहकाने का हुक्म दिया है। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : ऐ जिब्रील ! मुझे जहन्नम की हक़ीक़त बतलाओ या जहन्नम के अवसाफ़ बयान करो।

जिब्रील ने कहा : अल्लाह तआला ने जहन्नम को दहकाने का हुक्म दिया और उसे एक हज़ार साल रोशन किया गया और भड़काया गया यहां तक कि वोह सफ़ेद हो गई फिर हुक्म हुवा और उसे फिर एक हज़ार साल तक भड़काया गया हत्ता कि वोह सुर्ख हो गई, फ़िर मजीद एक हज़ार साल उसे भड़काने का हुक्म मिला यहां तक कि वोह तारीक हो गई, अब वोह सियाह व तारीक है, उस में कोई चिंगारी भी रोशन नज़र नहीं आती और न ही कभी उस का भड़कना ख़त्म होता है।

कसम है रब्बे जुल जलाल की जिस ने आप को हक़ के साथ नबी बना कर मबऊस फ़रमाया है ! अगर जहन्नम को सूई के सूराख के बराबर खोल दिया जाए तो उस की गर्मी से दुन्या की तमाम मख्लूक मर जाए, ब खुदा ! जिस ने आप को हक़ के साथ मबऊस फ़रमाया है, अगर जहन्नम के निगहबान फ़िरिश्तों में से कोई फ़िरिश्ता दुन्या में ज़ाहिर हो जाए तो तमाम अहले दुन्या उस की बद सूरती देख कर और उस की बदबू सूंघ कर मर जाएं। ब खुदा ! जिस ने आप को हक़ के साथ मबऊस फ़रमाया है अगर जहन्नम की जन्जीरों का एक हल्का जिन का अल्लाह तआला ने अपनी मुक़द्दस किताब में जिक्र किया है दुन्या के पहाड़ों पर रख दिया जाए तो वोह पिघल जाएं और वोह हल्का सब से निचली ज़मीन पर जा ठहरे।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने येह सुन कर फ़रमाया : ऐ जिब्रील ! मुझे इतना ही काफ़ी है मेरा जिगर टुकड़े टुकड़े न करो कि मैं इन्तिकाल कर जाऊं ! तब आप ने जिब्रील अलैहहिस्सलाम  को देखा वोह रो रहे थे, आप ने फ़रमाया : जिब्रील तुम रोते हो ? हालांकि तुम्हारा अल्लाह के हां एक ख़ास मर्तबा है, जिबील ने कहा : मैं कैसे न रोऊ हालांकि मैं रोने का ज़ियादा हक़दार हूं, शायद कि मैं अल्लाह तआला के इल्म में इस हाल से किसी दूसरे हाल में लिखा गया होऊ और मैं नहीं जानता कहीं मुझे भी आजमाइश में न डाल दिया जाए जैसा कि इब्लीस को आज़माइश में डाल कर ज़लीलो रुस्वा कर दिया गया है, वोह भी तो फ़रिश्तों में था और मैं नहीं जानता कि मुझे भी कहीं हारूत व मारूत की तरह मसाइब में मुब्तला न कर दिया जाए।

रावी कहते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम येह सुन कर रोने लगे और जिब्रील भी रोने लगे दोनों हज़रात बराबर रोते रहे ता आंकि निदा की गई : ऐ जिब्रील और ऐ मुहम्मद ! अल्लाह तआला ने तुम्हें मामून कर दिया है तुम उस की ना फ़रमानी नहीं करोगे । जिब्रील अलैहहिस्सलाम   येह सुनते ही परवाज़ कर गए और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम अन्सार के ऐसे लोगों के पास से गुज़रे जो बज़्ला सन्जियों में मसरूफ़ थे और हंस रहे थे। आप ने फ़रमाया : क्या तुम हंसते हो और तुम्हारे पीछे जहन्नम है, पस अगर तुम जान लेते जो मैं जान चुका हूं तो तुम कम हंसते और ……मज़ाक मस्खरियों में ज़ियादा रोते, खाना पीना छोड़ देते और बुलन्द पहाड़ों की तरफ़ निकल जाते ताकि अल्लाह की रजामन्दी के लिये खुद पर रियाज़त व मेहनत को मुसल्लत कर सको। तब निदा की गई कि ऐ मुहम्मद ! सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मेरे बन्दों को ना उम्मीद न करो, मैं ने आप को खुश खबरी देने वाला बना कर भेजा है आप को मशक्कतों में डालने वाला बना कर नहीं भेजा, तब हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : अपने आ’माल दुरुस्त करो और कुर्बे इलाही हासिल करो।

मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने जिब्रील . से फ़रमाया : क्या बात है मैं ने मीकाईल अलैहहिस्सलाम  को कभी हंसते हुवे नहीं देखा ? जिब्रील ने अर्ज़ किया कि जब से आग को पैदा किया गया है, मीकाईल  कभी नहीं हंसे ।

जहन्नम की आग कैसी है ?

इब्ने माजा और हाकिम की हदीस है जिसे हाकिम ने सहीह कहा है कि तुम्हारी येह आग जहन्नम की आग का सत्तरवां जुज़ है और अगर वोह दो मरतबा रहमत के पानी से न बुझाई जाती तो तुम उस से फ़ाइदा हासिल न कर सकते और येह आग अल्लाह तआला से दुआ मांगती है कि मुझे दोबारा जहन्नम में न भेजना ।

बैहक़ी ने रिवायत की है कि हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने येह आयत पढ़ी : “जब गल जाएंगे उन के चमड़े तो हम बदल देंगे उन के लिये दूसरे चमड़े ताकि वोह अज़ाब चखें”। और हज़रते का’ब रज़ीअल्लाहो अन्हो से कहा कि मुझे इस की तफ्सीर बतलाओ अगर आप ने सच कहा तो मैं आप की तस्दीक करूंगा वरना आप की बात रद्द कर दूंगा । हज़रते का’ब रज़ीअल्लाहो अन्हो बोले कि इन्सान का चमड़ा जलेगा और उसी लम्हा नया हो जाएगा या हर दिन में छे हज़ार मरतबा नया होगा, हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने कहा : वाकेई आप ने सच कहा ।

बैहकी ने इस आयत के तहत हज़रते हसन बसरी रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल नक्ल किया है कि उन्हें हर दिन में सत्तर हज़ार मरतबा आग खाएगी और हर मरतबा जब कि उन्हें आग जलाएगी और फिर पहले की तरह हो जाएंगे।

मुस्लिम शरीफ़ की एक हदीस में है कि दुन्या में सब से ज़ियादा दुन्यावी ने’मतें पाने वाले जहन्नमी को लाया जाएगा, उसे जहन्नम में एक गोता दे कर पूछा जाएगा कि ऐ इन्सान ! तू ने कभी ऐश भी देखी है या तुझ पर कभी इन्आमात की बारिश भी हुई है? वोह कहेगा : नहीं ! ब खुदा ! ऐ अल्लाह कभी भी नहीं । फिर दुन्या में सब से ज़ियादा मसाइब बरदाश्त करने वाले जन्नती को लाया जाएगा और उसे जन्नत का चक्कर लगवा कर पूछा जाएगा : ऐ इन्सान ! तू ने कभी तंगदस्ती देखी है या तुझ पर कभी मसाइब भी आए थे? वोह कहेगा : नहीं ! ब खुदा ! ऐ अल्लाह कभी भी मैं ने तंगदस्ती और दुख तक्लीफ़ नहीं देखे ।

दोज़खियों पर शेना मुसल्लत कर दिया जाएगा

इब्ने माजा की रिवायत है कि जहन्नमियों पर रोना मुसल्लत किया जाएगा वोह रोएंगे यहां तक कि उन के आंसू ख़त्म हो जाएंगे, फिर वोह खून रोएंगे यहां तक कि उन के चेहरों में गढ़ों जैसे गढ़े होंगे कि अगर उन में किश्तियां छोड़ दी जाएं तो वोह चलने लगें।

अबू या’ला की हदीस है : ऐ लोगो ! रोओ, अगर तुम्हें रोना नहीं आता तो रोने की सी सूरत बनाओ, क्यूंकि जहन्नमी जहन्नम में रोएंगे यहां तक कि उन के आंसू उन के रुख्सारों पर ऐसे बहेंगे जैसे उन के रुख्सार नरें हों, फिर आंसू ख़त्म हो जाएंगे और वोह खून रोएंगे ता आंकि उन की आंखें ज़ख्मों से लहू लुहान हो जाएंगी ।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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Jahannam ka khouf, dozakh ka dar, dozakh ka khouf, dozakh ka bayan, dozakh kaisi he

 

जनाज़ा और कब्र

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 जनाज़े, देखने वालों के लिये सामाने इबरत होते हैं, इस में अक्लमन्दों के लिये याद देहानी और तम्बीह होती है मगर गाफ़िल इस से गाफ़िल ही होते हैं, उन का मुशाहदा उन के दिलों की सख़्ती को ज़ियादा करता है क्यूंकि वोह यह समझते हैं कि हम हमेशा दूसरों के जनाज़े देखते रहेंगे और यह नहीं समझते कि उन्हें भी एक दिन ला महाला इसी तरह उठाया जाएगा या वोह इस पर गौरो फ़िक्र करें लेकिन वोह कुर्ब के बा वुजूद गौरो फ़िक्र नहीं करते और न ही येह सोचते हैं कि आज जो लोग जनाज़ों पर उठाए जा रहे हैं येह भी उन की तरह गिनती व शुमार में लगे रहते थे मगर उन के सब हिसाब बातिल हो गए हैं और अन करीब उन की मीआद खत्म होगी लिहाज़ा कोई बन्दा जनाज़े को न देखे मगर खुद को इसी हालत में देखे क्यूंकि अन करीब वोह भी इसी तरह उठा कर ले जाया जाएगा, वोह उठ गया, येह कल या परसों इस दुनिया से उठ जाएगा।

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हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि आप जब जनाज़ा देखते तो फ़रमाते : चलो ! हम भी तुम्हारे पीछे आने वाले हैं।

हज़रते मक्हूल दिमश्की रज़ीअल्लाहो अन्हो जब जनाज़ा देखते तो फ़रमाते : तुम सुब्ह को जाओ और हम आयिन्दा शाम को आने वाले हैं, येह ज़बरदस्त नसीहत और तेज़ गफलत है, पहला चला जाता है और दूसरा इस हाल में रहता है कि उस में अक्ल नहीं होती।

हज़रते उसैद बिन हुजेर रज़ीअल्लाहो अन्हो का कहना है कि मैं किसी जनाज़े में हाज़िर नहीं हुवा मगर मेरे नफ़्स ने मुझे ऐसी बातों में लगाए रखा जो इस के अन्जामे कार और जो कुछ मेरे साथ होगा उस से इलावा थीं।

जब हज़रते मालिक बिन दीनार रज़ीअल्लाहो अन्हो का भाई फ़ौत हुवा तो आप रोते हुवे उस के जनाज़े में निकले और फ़रमाया : ब खुदा ! उस वक्त तक मेरी आंखें ठन्डी नहीं होंगी जब तक कि मुझे मालूम न हो जाए कि मेरा ठिकाना कौन सा है ? और मैं ज़िन्दगी भर इसे जान नहीं सकूँगा !

हज़रते आ’मस रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि हम जनाज़ों में जाते और तमाम को देख कर येह न जानते कि हम किस से ताज़िय्यत करें।

हज़रते साबित बुनानी रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं कि हम जनाज़ों में जाते तो हर शख्स को कपड़ा लपेटे रोता देखते, वाकेई वोह लोग मौत से इन्तिहाई खौफ़ज़दा होते थे मगर आज हम ऐसे लोगों को देखते हैं जो जनाजों में शामिल होते हैं मगर उन में से अक्सर हंसते रहते हैं, लह्वो लइब में मश्गूल होते हैं और उस की मीरास की बातें करते और उस के वुरसा की बातें करते हैं और मरने वाले के अज़ीज़ो अकारिब ऐसी राहों की जुस्त्जू में होते हैं जिस के जरीए वोह उस के छोड़े हुवे माल से कुछ हासिल कर सकें और उन में से कोई भी अपने जनाज़े के मुतअल्लिक़ नहीं सोचता और जब वोह भी इसी तरह उठाया जाएगा इस बारे में वोह गौरो फ़िक्र नहीं करता।

इस गफलत का सबब उन के दिलों की सख्ती है जो गुनाहों और ना फ़रमानियों की कसरत से पैदा हुई है यहां तक कि हम अल्लाह तआला, कियामत और उन वहशत नाकियों को भी भूल गए हैं जो हमें पेश आने वाली हैं, हम लह्वो लइब में मश्गूल हो गए जो हमारे लिये बेकार हैं।

पस हम अल्लाह से इस गफ़्लत से बेदारी का सुवाल करते हैं क्यूंकि जनाज़ों के हाज़िरीन की सब से उम्दा सिफ़त येह है कि वोह जनाज़ों में मय्यित पर रोएं हालांकि अगर उन्हें अक्ल होती तो वोह मय्यित की बजाए अपनी हालत पर रोते।

हज़रते इब्राहीम ज़य्यात रज़ीअल्लाहो अन्हो ने ऐसे लोगों को देखा जो मुर्दे पर इज़्हारे रहम कर रहे थे, आप ने फ़रमाया : अगर तुम मय्यित की बजाए अपने आप पर रहम करते तो तुम्हारे लिये बेहतर था क्यूंकि वोह तीन वहशत नाकियों से नजात पा गया है, उस ने इज़राईल का चेहरा देख लिया है, मौत के जाइके की तल्खी चख चुका है और ख़ातिमे के खौफ़ से बा अम्न हो गया है।

हज़रते अबू अम्र बिन अला रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि मैं जरीर के यहां बैठा हुवा था और वोह अपने कातिब से शे’र लिखवा रहे थे, तब एक जनाज़ा आया तो वोह रुक गए और कहा कि ब खुदा ! मुझे इन जनाज़ों ने बूढ़ा कर दिया है और उन्हों ने येह शे’र पढ़े :

जनाज़े हमें आते हुवे ख़ौफ़ज़दा कर देते हैं और जब चले जाते हैं तो हम इन के पीठ फेरते ही लह्वो लइब में लग जाते हैं। भेड़ों के गल्ले की तरह जो भेड़िये के गार में खौफजदा होता है और जब भेड़िया गाइब हो जाता है तो वोह चरने लगती है।

जनाज़े के आदाब

जनाज़े के आदाब में से तफ़क्कुर, तम्बीह, मुस्तइदी और मुतवाजेअ हो कर उस के आगे चलना है जैसा कि फ़िक़ह में इस के आदाब और तरीके मजकूर हैं।

उन आदाब में से येह भी है कि आदमी सब से हुस्ने जन रखे अगर्चे वोह फ़ासिक ही क्यूं न हो और बुरे ख़यालात को अपनी तरफ़ से समझे क्यूंकि अगर्चे वोह ज़ाहिरी तौर पर अच्छा क्यूं न हो, ख़ातिमा ऐसी चीज़ है जिस का खतरा जारी व सारी रहता है इसी लिये हज़रते उमर बिन ज़र रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि इन का एक हमसाया फ़ौत हो गया जो बद किरदार था तो बहुत से लोग उस के जनाज़े से रुक गए, आप उस के जनाज़े में शरीक हुवे, उस की नमाज़े जनाज़ा पढ़ी, जब उसे कब्र में उतारा जाने लगा तो आप ने उस की क़ब्र पर खड़े हो कर कहा : ऐ पिदरे फुलां ! अल्लाह तुझ पर रहम करे, यक़ीनन तू ने अपनी ज़िन्दगी तौहीद में बसर की और अपने चेहरे को सजदों से गुबार आलूद किया और अगर लोगों ने तुझे गुनहगार और बद किरदार कहा तो हम में से ऐसा कौन है जो गुनहगार और बद किरदार नहीं।

एक गुनाहगार का अजीबो गरीब वाकिआ

एक आदमी जो गुनाहों में मुन्हमिक रहता था, मर गया, वोह बसरा के करीब रहता था मगर जब वोह मरा तो उस की औरत ने ऐसा कोई आदमी न पाया जो जनाज़ा उठाने में उस का हाथ बटाता क्यूंकि उस के हमसाए उस के कसरते गुनाह के सबब किनारा कश हो गए चुनान्चे, उस ने दो मजदूर उजरत पर लिये और वोह उसे जनाज़ा गाह में ले गए मगर किसी ने उस की नमाज़े जनाज़ा न पढ़ी और वोह उसे सहरा में दफ्न करने के लिये ले गए।

उस अलाके के नज़दीक पहाड़ में एक बहुत बड़ा ज़ाहिद रहता था, औरत जब अपने शोहर का जनाज़ा उठवा कर ले गई तो ज़ाहिद को मुन्तज़िर पाया चुनान्चे, ज़ाहिद ने उस की नमाजे जनाज़ा पढ़ाने का इरादा किया तो शहर में येह खबर फैल गई कि ज़ाहिद पहाड़ से उतरा है ताकि फुलां शख्स की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाए चुनान्चे, शहर के सब लोग वहां रवाना हो गए और उन्हों ने ज़ाहिद की इक्तिदा में उस की नमाज़े जनाज़ा पढ़ी।

लोगों को ज़ाहिद के इस फ़ेल से सख़्त हैरत हुई, ज़ाहिद ने कहा कि मुझ से ख्वाब में कहा गया है कि फुलां जगह जाओ, वहां तुम्हें एक जनाज़ा नज़र आएगा जिस के साथ सिर्फ एक औरत होगी, तुम उस शख्स की नमाज़े जनाज़ा पढ़ो क्यूंकि वोह मगफूर है, येह बात सुन कर लोगों के तअज्जुब में और इज़ाफ़ा हुवा।

ज़ाहिद ने औरत से उस मर्द के हालात दरयाफ्त किये और उस की बख्शिश के अस्बाब की तहकीक करना चाही तो औरत ने कहा जैसा कि मशहूर है उस का सारा दिन शराब ख़ाने में गुज़रता और शराब में मस्त रहते गुज़रता था।

ज़ाहिद ने कहा कि क्या तुम इस की किसी नेक आदत को भी जानती हो ? औरत ने कहा : हां ! तीन चीजें जानती हूं, जब वोह सुबह के वक्त मदहोशी से इफ़ाका पाता तो कपड़े तब्दील करता, वुजू करता और सुब्ह की नमाज़ जमाअत से पढ़ा करता था फिर शराब ख़ाने में जाता और बदकारियों में मश्गूल रहता।

दूसरे येह कि उस के घर में हमेशा एक या दो यतीम रहा करते थे, उन से वोह औलाद से भी ज़ियादा मेहरबानी से पेश आया करता था।

तीसरे येह कि जब वोह रात की तारीकी में नशे की मदहोशी से इफ़ाका पाता तो रोता और कहता : ऐ रब्बे करीम ! जहन्नम के कोनों में से कौन से कोने को मेरे इस ख़बीस नफ्स से तू पुर करेगा ? ज़ाहिद येह सुनते ही लौट गया और उस की बखिशश का राज़ खुल गया।

हज़रते जहाक रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि एक शख्स ने हुजूर * से पूछा कि सब से बड़ा ज़ाहिद कौन है ? आप ने फ़रमाया : जो क़ब्र और मसाइब को न भूला, दुन्यावी जेबो जीनत की उम्दा चीज़ों को तर्क कर दिया, फ़ानी चीज़ों पर दाइमी चीज़ों को तरजीह दी, आयिन्दा कल को अपनी ज़िन्दगी में शुमार न किया और खुद को अहले कुबूर में से शुमार किया ।

हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो से पूछा गया क्या वज्ह है कि आप कब्रिस्तान के करीब रहते हैं ? आप ने फ़रमाया : मैं ने इन्हें उम्दा हमसाया पाया है, सच्चे हमसाए जो ज़बानें बन्द रखते हैं और आखिरत की याद दिलाते हैं।

हज़रते उस्मान बिन अफ्फान रज़ीअल्लाहो अन्हो जब कब्रों पर खड़े होते तो रोया करते यहां तक कि आप की दाढ़ी आंसूओं से तर हो जाती आप से इस के मुतअल्लिक़ पूछा गया और कहा गया कि आप जन्नत और जहन्नम का तजकिरा करते हैं और नहीं रोते लेकिन कब्रों पर क्यूं रोते हैं ? आप ने फ़रमाया : मैं ने हुजूर * को येह फ़रमाते हुवे सुना है कि कब्र आख़िरत के मनाज़िल में से पहली मन्ज़िल है, अगर साहिबे क़ब्र इस से नजात पा लेता है तो बा’द की मन्ज़िलें उस के लिये आसान हो जाती हैं और अगर इस से नजात नहीं पाता तो बा’द की मन्ज़िलें और ज़ियादा सख्त होती हैं ।

कहा गया है कि हज़रते अम्र बिन आस रज़ीअल्लाहो अन्हो ने कब्रिस्तान को देखा तो सवारी से उतर पड़े और दो रक्अत नमाज़ अदा की, फिर उन से कहा गया कि पहले तो आप ऐसा नहीं करते थे, आप ने फ़रमाया : मैं ने कब्रिस्तान वालों को और उस चीज़ को याद किया जो इन के और मेरे दरमियान हाइल की गई है तो मैं ने इस बात को पसन्द किया कि दो रक्अतें अदा कर के मैं रब का कुर्ब चाहूं।

हज़रते मुजाहिद रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं कि सब से पहले कब्र इन्सान से येह कलाम करती है कि मैं कीड़ों, तन्हाई, गुर्बत और अन्धेरे का घर हूं, मैं ने तेरे लिये येही कुछ तय्यार किया है, तू मेरे लिये क्या तय्यार कर के लाया है ?

हज़रते अबू ज़र रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि क्या मैं तुम्हें अपने फ़क़र का दिन बताऊं ? येह वोह दिन होगा जब मुझे कब्र में रखा जाएगा।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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फजीलते मेहमानी ए फुकरा – गरीबो को मेहमान बनाने की फज़िलतें

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फ़रमान है मेहमान के लिये तकल्लुफ़ न करो

तुम उसे दुश्मन समझोगे और जिस ने उसे दुश्मन समझा उस ने अल्लाह को दुश्मन समझा और जिस ने अल्लाह तआला को दुश्मन समझा अल्लाह तआला ने उसे दुश्मन समझा ।

फ़रमाने नबवी है कि उस शख्स के पास खैरो बरकत नहीं जिस में मेहमान नवाज़ी नहीं।

सभी इस्लामी विषयों टॉपिक्स की लिस्ट इस पेज पर देखें – इस्लामी जानकारी-कुरआन, हदीस, किस्से हिंदी में

 

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का ऐसे शख्स से गुज़र हुवा जिस के पास बहुत से ऊंट और गाएं थीं मगर उस ने मेहमानी न की और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का ऐसी औरत से गुज़र हुवा जिस के पास छोटी छोटी बकरियां थीं उस ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के लिये एक बकरी ज़ब्ह की तब आप ने फ़रमाया : इन दो को देखो अल्लाह तआला के हाथ में अख़्लाक़ हैं।

हज़रते अबू राफेअ रज़ीअल्लाहो अन्हो जो हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के गुलाम थे, फ़रमाते हैं कि आप के यहां एक मेहमान उतरा, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जाओ ! फलां यहूदी से कहो कि मेरा मेहमान आया है, मुझे रजब के महीने तक के लिये कुछ आटा भेज दो, यहदी येह पैगाम सुन कर बोला : ब खुदा ! मैं उन को कुछ नहीं दूंगा मगर येह कि कुछ रह्न रखा जाए, मैं ने जा कर हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को खबर दी, आप ने फ़रमाया : ब खुदा ! मैं आस्मानों में अमीन हूं, जमीन में अमीन हूं, अगर वोह मुझे उधार देता तो मैं ज़रूर अदा कर देता, जाओ मेरी जिरह ले जाओ और उस के पास रह्न रख दो।

हज़रते इब्राहीम अलैहहिस्सलाम  जब खाना खाने का इरादा फ़रमाते तो मील दो मील मेहमान की तलाश में निकल जाया करते थे। आप की कुन्यत अबुज्जयफ़ान थी और आप की सिद्के निय्यत की वज्ह से आज तक इन की जारी कर्दा ज़ियाफ़त मौजूद है, कोई रात न गुज़रती मगर आप के यहां तीन से ले कर दस और सो के दरमियान जमाअत खाना न खाती हो, इन के घर के निगहबान ने कहा कि इन की कोई रात मेहमान से खाली नहीं रही।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से पूछा गया : ईमान क्या है ? आप ने फ़रमाया कि खाना खिलाना और सलाम करना ।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने कफ्फारात और दरजात के मुतअल्लिक इरशाद फ़रमाया कि खाना खिलाना और रात को नमाज़ पढ़ना दर आं हाल येह कि लोग सोए हुवे हों ।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से हज्जे मबरूर के मुतअल्लिक़ पूछा गया : तो आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि खाना खिलाना और शीरीं गुफ्तारी ।

हज़रते अनस रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं कि जिस घर में मेहमान दाखिल नहीं होते उस घर में फ़रिश्ते भी दाखिल नहीं होते।

मेहमान की फजीलत और खाना खिलाने की फजीलत के बारे में बे शुमार हदीसें वारिद हुई हैं। किसी ने क्या खूब कहा है :

मैं मेहमान को क्यूं न महबूब समझू और उस की खुशी से राहत महसूस क्यूं न करूं ! वोह मेरे पास अपना रिज्क खाता है और इस पर मेरा शुक्रिया अदा करता है।

हुकमा का कौल है कि कोई भलाई खुशरूई, खुश गुफतारी और खन्दा पेशानी के बिगैर पायए तक्मील को नहीं पहुंचती।

एक और शाइर कहता है:

मैं अपने मेहमान का कजावा उतारने से पहले उसे हंसाता हूं, वोह मेरे पास शादाब होता है हालांकि कहत साली होती है। अक्सर मेहमानी में शादाबी नहीं होती लेकिन करीम का चेहरा फिर भी शादाब रहता है।

दा’वत करने वाले ! मुनासिब येह है कि तू अपने खाने में परहेज़गारों को बुलाए और फ़ासिकों से एहतिराज़ करे चुनान्चे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं कि जब तुम कुछ लोगों को खाने की दावत दो तो नेकों को अपने खाने में बुलाओ।

फ़रमाने नबवी है कि नेक के खाने के इलावा किसी का खाना न खा और नेक परहेज़गार को खिलाने के इलावा किसी और को न खिला।

दा’वत में मालदारों की बजाए फुकरा को बुलाओ चुनान्चे, नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि बद तरीन खाना वोह वलीमा है जिस में फ़कीरों की बजाए उमरा को बुलाया जाए ।

नीज़ दा’वत करने वाले के लिये येह भी ज़रूरी है कि वोह ज़ियाफ़त में अपने रिश्तेदारों को नज़र अन्दाज़ न करे क्यूंकि उन्हें नज़र अन्दाज़ करना वीरानी और क़तए रेहमी है इसी तरह अपने दोस्तों और जान पहचान वालों की तरतीब का भी खयाल रखे क्यूंकि इस में बा’ज़ को मुख्लस करना दूसरों के दिलों के लिये वहशत होती है।

नीज़ येह भी ज़रूरी है कि दा’वत करने वाला अपनी दा’वत फ़न और खुदबीनी जैसी बुराइयों के लिये न करे बल्कि इस से अपने भाइयों के दिलों का मैलान और खाना खिलाने और मोमिन भाइयों के दिलों में खुशी व मसर्रत के दुखूल के लिये नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की सुन्नत की पैरवी करे । ऐसे आदमी को दा’वत न दे जिस के मुतअल्लिक उसे मा’लूम हो कि उस का आना बाइसे तक्लीफ़ होगा या उस का आना मदउवीन के आने के लिये किसी सबब से बाइसे रन्ज होगा।

और येह भी मुनासिब है कि वोह उस शख्स को दावत दे जिस के मुतअल्लिक मालूम हो कि वोह इसे क़बूल कर लेगा।

हज़रते सुफ्यान रज़ीअल्लाहो अन्हो का क़ौल है कि जिस ने किसी ऐसे शख्स को दावत में बुलाया जो उसे ना पसन्द करता है तो उस ने खता की और अगर मदऊ ने उस की दा’वत कबूल कर ली तो उस ने दो ख़ताएं की क्यूंकि इस दा’वत करने वाले ने मदऊ को ना पसन्दीदगी के बा वुजूद ला घसीटा है, अगर उसे इस बात की खबर होती तो वोह कभी भी उसे खाना न खिलाता मुत्तकी को खाना खिलाना उस की इताअत में इआनत और बदकार को खिलाना उस की बदकारी को तक्विय्यत देना है।

हज़रते इब्ने मुबारक रज़ीअल्लाहो अन्हो से एक दरजी ने कहा : मैं बादशाहों के कपड़े सीता हूं, क्या आप को मेरे मुतअल्लिक़ अन्देशा है कि मैं जुल्म व उदवान के मददगारों में गिना जाऊं ? आप ने फ़रमाया : नहीं ! जुल्म के मददगार तो वोह हैं जो तेरे हाथ कपड़ा बेचते हैं और सूई वगैरा, बहर हाल तुम तौबा करो।

दावत कबूल करना सुन्नते मुअक्कदा है।

दा’वत को कबूल करना सुन्नते मुअक्कदा है, बा’ज़ मवाकेअ पर तो इसे वाजिब भी कहा गया है।

नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम इरशाद फ़रमाते हैं कि अगर मुझे गाए या बकरी की पतली सी पिन्डली की भी दावत दी जाए तो मैं उसे कबूल कर लूंगा और अगर मुझे जानवर का दस्त हदिय्या किया जाएगा तो मैं कबूल कर लूंगा।

दा’वत कबूल करने के लिये पांच आदाब हैं जो ‘इहयाओ उलूमुद्दीन’ वगैरा में मजकूर हैं।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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आशूरा के दिन की फज़िलतें और बरकतें 

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लमi मदीनए मुनव्वरा तशरीफ़ लाए तो आप ने यहूद को आशूरा के दिन का रोज़ा रखते देख कर पूछा कि तुम इस दिन रोज़ा क्यूं रखते हो ? उन्हों ने कहा : येह ऐसा दिन है जिस में अल्लाह तआला ने मूसाअलैहहिस्सलाम  और बनी इसराइल को फिरौन और उसकी कौम पर गलबा अता फ़रमाया था लिहाज़ा हम ताज़ीमन इस दिन का रोज़ा रखते हैं, इस पर हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि हम मूसा अलैहहिस्सलाम  से तुम्हारी निस्बत ज़ियादा करीब हैं चुनान्चे, आप ने भी इस दिन का रोज़ा रखने का हुक्म दिया ।

 खुशूशिय्याते यौमे आशूरा – आशुरा की खास बातें

आशूरा के दिन के साथ बहुत सी बातें मख्सूस हैं, इन में से चन्द येह हैं : इस दिन हज़रते आदम अलैहहिस्सलाम  की तौबा क़बूल की गई, इसी दिन इन्हें पैदा किया गया, इसी दिन इन्हें जन्नत में दाखिल किया गया। …..इसी दिन अर्श, कुरसी, आस्मान, जमीन, सूरज, चांद, सितारे और जन्नत पैदा किये गए।

इसी दिन हज़रते मूसा अलैहहिस्सलाम और आप की उम्मत को नजात मिली और फ़िरऔन अपनी कौम समेत गर्क हुवा।

इसी दिन हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम  पैदा किये गए, इसी दिन इन्हें आस्मानों की तरफ़ उठाया गया।

इसी दिन हज़रते इदरीस अलैहहिस्सलाम  को मकामे बुलन्द की तरफ़ उठाया गया।

इसी दिन हज़रते नूह अलैहहिस्सलाम  की किश्ती कोहे जूदी पर ठहरी। इसी दिन हज़रते सुलैमान अलैहहिस्सलाम  को मुल्के अज़ीम अता किया गया।

इसी दिन हज़रते यूनुस अलैहहिस्सलाम  मछली के पेट से निकाले गए। इसी दिन हज़रते याकूब अलैहहिस्सलाम  की बीनाई लौटाई गई। अलैहहिस्सलाम इसी दिन हज़रते यूसुफ़ अलैहहिस्सलाम गहरे कुएं से निकाले गए। इसी दिन हज़रते अय्यूबअलैहहिस्सलाम . की तकलीफ़ रफ्अ की गई। आस्मान से ज़मीन पर सब से पहली बारिश इसी दिन नाज़िल हुई और

इसी दिन का रोज़ा उम्मतों में मशहूर था यहां तक कि येह भी कहा गया है कि इस दिन का रोज़ा माहे रमज़ान से पहले फ़र्ज़ था फिर मन्सूख कर दिया गया और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हिजरत से पहले इस दिन का रोज़ा रखा।

जब आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मदीनए मुनव्वरा तशरीफ़ लाए तो आप ने इस दिन की जुस्तजू की ताकीद की ता आंकि, आप ने आख़िर उम्र शरीफ़ में फ़रमाया कि अगर मैं आयिन्दा साल तक जिन्दा रहा तो आयिन्दा नवीं और दसवीं का रोज़ा रखूगा मगर आप ने उसी साल विसाल फ़रमाया और दसवीं के इलावा रोज़ा न रख सके मगर आप ने इस दिन या’नी नवीं और दसवीं और ग्यारहवीं मुहर्रम के दिनों में रोज़ा रखने को पसन्द फ़रमाया ।

जैसा कि फ़रमाने नबवी है : इस दिन से एक दिन पहले और एक दिन बा’द रोज़ा रखो और यहूद के तरीके की मुखालफ़त करो क्यूंकि वोह एक दिन ही का रोज़ा रखते थे।

बैहक़ी ने शोअबुल ईमान में रिवायत नक्ल की है कि जिस ने आशूरा के दिन अपने घर वालों और अहलो इयाल पर वुस्अत की, अल्लाह तआला उस के सारे साल में वुस्अत और बरकत अता फरमाता है ।

तबरानी की एक मुन्कर रिवायत में है कि इस दिन में एक दिरहम का सदका सात लाख दिरहम के बराबर है

और वोह हदीस जिस में है कि जिस ने इस दिन सुर्मा लगाया वोह उस साल आंखें दुखने से महफूज़ रहेगा और जिस ने इस दिन गुस्ल किया वोह बीमार नहीं होगा, मौजूअ है।

हाकिम ने इस की तसरीह की है कि इस दिन सुर्मा लगाना बिदअत है।

इब्ने कय्यम ने कहा है कि सुर्मा लगाने, दाने भूनने, तेल लगाने और आशूरा के दिन खुश्बू वगैरा लगाने की हदीस झूटों की वज्अ कर्दा है।

वाज़ेह हो कि आशूरा के दिन हज़रते इमाम हुसैन रज़ीअल्लाहो अन्हो के साथ जो कुछ बीती वोह इस दिन की अजमत, रफ्अत, अल्लाह के नज़दीक इस के दरजा और अहले बैते अतहार के मरातिब से इस दिन का तअल्लुक इस दिन की रफ्अत व अज़मत की बय्यन शहादत है लिहाज़ा जो शख्स इस दिन आप के मसाइब का ज़िक्र करे उसे येह मुनासिब नहीं कि सिवाए इन्ना लिल्लाहे इना इलयहे राजेऊँन  के और कुछ कहे क्यूंकि इसी में हुक्मे इलाही की मुताबअत और फ़रमाने इलाही की मुहाफ़ज़त होगी जिस में इरशाद होता है :  येही हैं जिन पर अल्लाह तआला की तरफ़ से दुरूद और रहमत है और येही लोग हिदायत याफ्ता हैं। खास तौर पर ख़याल करो कि कहीं रवाफ़िज़ की बिदअतों में मश्गूल न हो जाओ जैसा कि वोह लोग और उन के हम मिस्ल रोना, पीटना और गम का इज़हार करते हैं क्यूंकि येह काम मोमिनों के अख़्लाक़ से बईद हैं, अगर येह चीजें अच्छी होती तो इन के नाना सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का यौमे विसाल इन उमूर का ब तरीके औला मुस्तहिक़ होता और हमें अल्लाह काफ़ी है और वोही उम्दा मददगार है।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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अशर ए जिलहिज्जा की फ़ज़ीलतें

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 हज और कुर्बानी के दिन

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : और अय्याम ऐसे नहीं हैं जिन में अमल अल्लाह तआला को इन दिनों या’नी ज़िल हिज्जा के दस दिनों के अमल से ज़ियादा पसन्द हो । सहाबए किराम ने अर्ज़ किया : क्या राहे खुदा में जिहाद भी ऐसा नहीं ? आप ने फ़रमाया : हां ! राहे खुदा में जिहाद भी मगर येह कि आदमी अपना मालो जान ले कर राहे खुदा में निकला और इन में से कुछ भी सलामत न लाया।

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हज़रते जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला को इन अय्याम से ज़ियादा महबूब और कोई दिन नहीं है और इन दस दिनों से अफ़ज़ल अल्लाह तआला के यहां कोई दिन नहीं है, कहा गया कि राहे खुदा में जिहाद के दिन भी ऐसे नहीं हैं ? आप ने फ़रमाया कि राहे खुदा में जिहाद के दिन भी इन जैसे नहीं मगर जिस शख्स ने राहे खुदा में अपने घोड़े को ज़ख्मी कर दिया और खुद भी ज़ख़्मी हुवा।

हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा  से मरवी है कि एक जवान जो अहादीसे रसूल को सुना करता था, जब ज़िल हिज्जा का चांद नज़र आया तो उस ने रोज़ा रख लिया, जब हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को येह खबर मिली तो आप ने उसे बुलाया और पूछा : तुझे किस ने इस बात पर आमादा किया कि तू ने रोज़ा रख लिया ? उस ने अर्ज की : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मेरे मां-बाप आप पर कुरबान हों, येह हज व कुरबानी के दिन हैं, शायद कि अल्लाह तआला मुझे भी इन की दुआओं में शामिल फ़रमा ले। आप ने फ़रमाया : तेरे हर दिन के रोजे का अज्र सो गुलाम आज़ाद करने के बराबर, सो ऊंटों की कुरबानियों और राहे खुदा में दिये गए सो घोड़ों के अज्र के बराबर है। जब आठवीं ज़िल हिज्जा का दिन होगा तो तुझे उस दिन के रोजे का सवाब हज़ार गुलाम आज़ाद करने, हज़ार ऊंट की कुरबानी करने और राहे खुदा में सुवारी के लिये हज़ार घोड़े देने के बराबर हासिल होगा। जब नवीं का दिन होगा तो तुझे उस दिन के रोजे का सवाब दो हज़ार गुलाम आज़ाद करने, दो हज़ार ऊंटों की कुरबानी और राहे खुदा में सुवारी के लिये दिये गए दो हज़ार घोड़ों के अज्र के बराबर होगा ।

नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि नवीं ज़िल हिज्जा का रोज़ा दो साल के रोज़ों के बराबर और आशूरे का रोज़ा एक साल के रोजे के बराबर है।

मुफस्सिरीने किराम इस फ़रमाने इलाही : और हम ने मूसा को तीस रातों का वादा दिया और उस को दस से पूरा किया। की तफ्सीर में लिखते हैं कि इन दस रातों से मुराद ज़िल हिज्जा की पहली दस रातें हैं।

हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि अल्लाह तआला ने दिनों में से चार दिन, महीनों में से चार महीने, औरतों में से चार औरतें पसन्द फ़रमाई हैं, चार आदमी जन्नत में सब से पहले जाएंगे और चार आदमियों की जन्नत मुश्ताक है, दिनों में से पहला जुमुआ का दिन है, इस में ऐसी साअत है कि जब कोई बन्दा इस साअत में अल्लाह तआला से दुन्या या आख़िरत की किसी ने मत का सुवाल करता है तो अल्लाह तआला उसे अता फ़रमाता है। दूसरा नवीं ज़िल हिज्जा (अरफ़ा) का दिन है, जब अरफ़ा का दिन होता है तो अल्लाह तआला फ़रिश्तों में फ़ख्न करता है और फ़रमाता है : ऐ फ़िरिश्तो ! मेरे बन्दों को देखो जो बिखरे बाल, गुबार आलूद चेहरे लिये माल खर्च कर के और जिस्मों को मशक्कत में डाल कर हाज़िर हुवे हैं, तुम गवाह हो जाओ मैं ने उन्हें बख़्श दिया है। तीसरा कुरबानी का दिन है। जब कुरबानी का दिन होता है और बन्दा कुरबानी से कुर्बे इलाही तलब करता है तो जूही कुरबानी के खून का पहला कतरा जमीन पर गिरता है वोह बन्दे के हर गुनाह का कफ्फ़ारा हो जाता है। चौथा ईदुल फित्र का दिन है, जब बन्दे माहे रमज़ान के रोजे रख लेते हैं और ईद की नमाज़ पढ़ने बाहर निकलते हैं तो अल्लाह तआला फ़िरिश्तों से फ़रमाता है कि हर काम करने वाला उजरत तलब करता है, मेरे बन्दों ने महीने भर रोज़े रखे और अब ईद के लिये आए हैं और अपना अज्र तलब कर रहे हैं, मैं तुम्हें गवाह बनाता हूं कि मैं ने उन्हें बख़्श दिया है, और पुकारने वाला पुकार कर कहता है : ऐ उम्मते मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम तुम लौट जाओ, अल्लाह तआला ने तुम्हारी बुराइयों को नेकियों में बदल दिया है।

चार पसन्दीदा महीने में

चार पसन्दीदा महीने येह हैं : रजबुल मुरज्जब, जी का’दा, ज़िल हिज्जा और मुहर्रमुल हराम। औरतें येह हैं : मरयम बिन्ते इमरान, ख़दीजा बिन्ते खुवैलिद (जो जहान की औरतों में सब से पहले अल्लाह और उस के रसूल पर ईमान लाई) फ़िरऔन की बीवी आसिया बिन्ते मुज़ाहिमऔर जन्नती औरतों की सरदार फ़ातिमा बिन्ते मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ।

सब से सबकत ले जाने वाले

हर कौम में से एक सबक़त ले जाने वाला है, अरब में से सबक़त ले जाने वाले हमारे आका व मौला मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम हैं, फ़ारिस से हज़रते सलमान, रूम से हज़रते सुहैब और हबशा से हज़रते बिलाल रज़ीअल्लाहो अन्हो हैं।

और वोह चार जन्नत जिन की मुश्ताक है येह हज़रते अली बिन अबी तालिब, हज़रते सलमान फ़ारिसी, हज़रते अम्मार बिन यासिर और हज़रते मिक्दाद बिन अस्वद रज़ीअल्लाहो अन्हो हैं।

नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मरवी है : आप ने फ़रमाया कि जिस ने यौमुत्तरविय्या (आठवीं ज़िल हिज्जा) का रोज़ा रखा, अल्लाह तआला उसे हज़रते अय्यूब अलैहहिस्सलाम  के मसाइब पर सब्र करने के बराबर सवाब अता फ़रमाता है और जिस ने यौमे अरफ़ा (ज़िल हिज्जा की नवीं) का रोज़ा रखा, अल्लाह तआला उसे हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम  के बराबर सवाब अता फ़रमाता है।

आप से येह भी मरवी है कि जब अरफ़ा का दिन होता है तो अल्लाह तआला अपनी रहमत को फैलाता है, इस दिन से ज़ियादा किसी दिन में भी लोग आग से आज़ाद नहीं हुवे और जिस ने अरफ़ा के दिन अल्लाह तआला से दुन्या या आखिरत की हाजत तलब की तो अल्लाह तआला उस की हाजत पूरी कर देता है और अरफ़ा के दिन का रोज़ा एक साल गुज़श्ता और एक साल आयिन्दा के गुनाहों का कफ्फारा होता है और इस में येह हिक्मत है , कि येह दिन दो ईदों के दरमियान है और ईदैन मोमिनों के लिये मसर्रत के दिन होते हैं और इस से बढ़ कर कोई मसर्रत नहीं कि उन लोगों के गुनाह बख़्श दिये जाएं

आशूरे का दिन ईदैन के बाद होता है लिहाज़ा इस का रोज़ा एक साल के गुनाहों का कफ्फ़ारा है, दूसरी वज्ह येह है कि यौमे आशूरा मूसा अलैहहिस्सलाम  के लिये था और यौमे अरफ़ा हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के लिये है और आप की इज्जतो अजमत दीगर अम्बिया से अरफ़अ व आ’ला है।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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Jil hijja ki barkaten , haj aur kurbani ki barkate

 

 

 

फजाइले ईदुल फ़ित्र – ईद की बरकतें

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

फजाइले ईदुल फ़ित्र – ईद नाम है माहे शव्वाल के पहले दिन और ज़िल हिज्जा के दसवें दिन का, इन दोनों को ईद इस लिये कहते हैं कि इस में लोग इताअते इलाही या’नी माहे रमज़ान के फ़र्ज़ रोजे और हज से फ़ारिग हुवे और इताअते रसूल सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की तरफ़ लौट आए या’नी इन्हों ने शव्वाल के छे रोजे रखे और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की जियारत की तय्यारी की, या इन्हें ईद इस लिये कहा जाता है कि येह दिन हर साल लौट आते हैं, या इस लिये कि इस में अल्लाह तआला बार बार फज्लो करम करता है, या इस लिये कि इन के आने से खुशियां लौट आती हैं, बहर हाल तमाम तौजीहात में औद का मा’ना पाया जाता है।

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पहली नमाजे ईद कब हुई ?

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लमने पहली नमाजे ईद सन 2 हिजरी में नमाजे ईदुल फित्र अदा की और फिर इसे कभी तर्क नहीं फ़रमाया लिहाज़ा येह सुन्नते मुअक्कदा है।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि अपनी ईदों को तक्बीरों से जीनत बख़्शो। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं कि जिस शख्स ने ईद के दिन तीन सो मरतबा सुबहान अल्लाहे वबे हम्देही  पढ़ा और मुसलमान मुर्दो की रूहों को इस का सवाब हदिय्या किया तो हर मुसलमान की कब्र में एक हज़ार अन्वार दाखिल होते हैं और जब वोह मरेगा अल्लाह तआला उस की कब्र में एक हज़ार अन्वार दाखिल फ़रमाएगा।

हज़रते वब बिन मुनब्बेह रज़ीअल्लाहो अन्हो का कहना है कि शैतान हर ईद पर नौहा व जारी करता है और तमाम शैतान उस के इर्द गिर्द जम्अ हो कर पूछते हैं : ऐ आका ! आप क्यूं गज़बनाक और उदास हैं ? वोह कहता है : अल्लाह तआला ने आज के दिन उम्मते मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को बख़्श दिया है लिहाज़ा तुम उन्हें लज्जतों और ख्वाहिशाते नफ्सानी में मश्गूल करो।

हज़रते वहब बिन मुनब्बेह रज़ीअल्लाहो अन्हो से येह भी मरवी है कि अल्लाह तआला ने ईदुल फ़ित्र के दिन जन्नत को पैदा फ़रमाया और दरख्त तूबा ईदुल फ़ित्र के दिन बोया, जिब्रील का वहय के लिये ईदुल फित्र के दिन इन्तिख़ाब किया और फ़िरऔन के जादूगरों की तौबा भी अल्लाह तआला ने ईदुल फ़ित्र के दिन कबूल फ़रमाई।

फ़रमाने नबवी है कि जिस ने ईद की रात तलबे सवाब के लिये कियाम किया, उस दिन उस का दिल नहीं मरेगा जिस दिन तमाम दिल मर जाएंगे।।)

हिकायत – हज़रत उमर की ईद का किस्सा

हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने ईद के दिन अपने बेटे को पुरानी कमीस पहने देखा तो रो पड़े, बेटे ने कहा : अब्बाजान ! आप किस लिये रोते हैं ? आप ने फ़रमाया : ऐ बेटे ! मुझे अन्देशा है कि आज ईद के दिन जब लड़के तुझे इस फटे पुराने कमीस में देखेंगे तो तेरा दिल टूट जाएगा, बेटे ने जवाब दिया : दिल तो उस का टूटे जो रज़ाए इलाही को न पा सका या उस ने मां या बाप की ना फ़रमानी की हो और मुझे उम्मीद है कि आप की रजामन्दी के तुफैल अल्लाह तआला भी मुझ से राजी होगा। येह सुन कर हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो रो पड़े, बेटे को गले लगाया और उस के लिये दुआ की।

किसी शाइर ने क्या खूब कहा है :

उन्हों ने कहा : कल ईद है तुम क्या पहनोगे ? मैं ने कहा ऐसी पोशाक जिस ने बन्दे को रफ़्ता रफ़्ता बहुत कुछ दिया। .फकर  और सब्र दो कपड़े हैं और इन के दरमियान दिल है जिस को इस का मालिक ईदों

और जुमुओं में देखता है। .तब मेरी ईद नहीं होगी, ऐ उम्मीद अगर तू मुझ से गाइब हो जाए और अगर तू मेरे सामने और कानों के करीब हुई तो फिर मेरी ईद है।

 

येह बात भी वारिद है कि जब ईद की सुब्ह होती है तो अल्लाह तआला फ़िरिश्तों को भेजता है जो ज़मीन पर उतरते हैं और वोह गली कूचों और रास्तों में खड़े हो जाते हैं और बुलन्द आवाज़ से कहते हैं जिसे जिन्न व इन्सान के सिवा तमाम मख्लूक सुनती है, वोह कहते हैं : ऐ मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की उम्मत ! अपने रब्बे करीम की तरफ़ आओ, वो तुम्हें अताए अज़ीम देगा और तुम्हारे बहुत बड़े गुनाह मुआफ़ फ़रमाएगा और जब लोग ईदगाहों में आ जाते हैं तो अल्लाह तआला फ़िरिश्तों से फ़रमाता है : मजदूरी का बदला क्या है जब वोह अपना काम मुकम्मल कर ले ? फ़रिश्ते कहते हैं : उस का बदला येह है कि उसे पूरा अज्र दिया जाए, तब अल्लाह तआला फ़रमाता है : मैं तुम्हें गवाह बनाता हूं, मैं ने उन लोगों के लिये अपनी बखिशश और रज़ा को उन का अज्र बनाया है।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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Pahli eid, eid ul fitr, eid ki barkaten

 

 

 

फ़जाइले लैलतुल कद्र

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के हुजूर में बनी इस्राईल के ऐसे शख्स का तजकिरा किया गया जिस ने हज़ार माह राहे खुदा में अपने कन्धे पर हथयार उठाए थे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने उस पर इज़हारे तअज्जुब फ़रमाया और अपनी उम्मत के लिये ऐसी नेकी की तमन्ना फ़रमाई और कहा : ऐ रब ! तू ने मेरी उम्मत को सब उम्मतों से कम उम्र वाला बनाया और आ’माल में सब उम्मतों से कम किया है, तब अल्लाह तआला ने आप को लैलतुल क़द्र अता फ़रमाई जो हज़ार महीनों की इबादत से अफ़ज़ल है, जितनी मुद्दत बनी इस्राईल के उस आदमी ने राहे खुदा में हथयार उठाए थे, आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को और आप की उम्मत को इस तवील मुद्दत के मुकाबले में एक रात बख़्शी गई येह नेमते उजमा (लैलतुल क़द्र) इस उम्मत के ख़साइस में से है।

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मुसलमानों को लैलतुल कद्र क्यों अता की गई ?

एक रिवायत में है कि उस शख्स का नाम शमऊन था, उस ने कामिल एक हज़ार माह दुश्मनों से जिहाद किया और कभी भी उस के घोड़े का नम्दा) (पसीने से) खुश्क न हुवा, उसे अल्लाह तआला ने जो कुव्वत और दिलेरी अता फ़रमाई थी उस के बल बूते पर उस ने दुश्मनों को मगलूब किया ता आंकि उन के दिल बहुत तंग हुवे और उन्हों ने उस की औरत की तरफ़ एक कासिद भेजा और वोह इस बात के ज़ामिन हुवे कि वोह औरत को सोने का भरा हुवा थाल पेश करेंगे, अगर वोह अपने शोहर को कैद कर ले ताकि वोह उस मर्दे मुजाहिद को अपने तय्यार कर्दा मकान में कैद कर दें और सब लोग राहत व सुकून पाएं चुनान्चे, जब वोह सो गया तो औरत ने उसे खजूर के छाल से बटे हुवे मज़बूत रस्सों से बांध दिया, जब वोह बेदार हुवा तो उस ने अपने जिस्म को हरक़त दी जिस से उस ने रस्सियों को टुकड़े टुकड़े कर दिया और औरत से पूछा : तू ने ऐसा क्यूं किया ? औरत बोली : मैं तुम्हारी कुव्वत का अन्दाज़ा लगाना चाहती थी। जब काफ़िरों को इस की खबर मिली तो उन्हों ने औरत की तरफ़ एक मोटी जन्जीर भेजी, औरत ने उसे फिर बांध दिया और उस मर्दे मुजाहिद ने पहले की तरह उसे भी तोड़ दिया। तब इब्लीस काफ़िरों के पास आया और उन्हें येह बात समझाई कि वोह औरत से कहें कि वोह मर्द ही से पूछे कि कौन सी चीज़ ऐसी है जिस के तोड़ने की वोह ताकत नहीं रखता, चुनान्चे, उन्हों ने औरत की तरफ़ आदमी भेजा और उसे येही कहला भेजा चुनान्चे, औरत ने उस से सवाल किया तो उस मर्दे मुजाहिद ने कहा : मेरे गेसू, उस के अठ्ठारह तवील गैसू थे जो ज़मीन पर घिसटते रहते थे। जब वोह सो गया तो औरत ने चार गैसूओं से उस के पाउं और चार से उस के हाथ बांध दिये, फिर काफ़िर आ गए और उन्हों ने उसे पकड़ लिया और उसे अपनी कुरबानगाह की तरफ़ ले गए, वोह चार सो हाथ बुलन्द थी मगर इतनी बुलन्दी और फ़राखी के बा वुजूद उस में सिर्फ एक सुतून था, काफ़िरों ने उस के कान और होंट काट दिये और वोह तमाम वहीं जम्अ थे, तब उस मर्दे मुजाहिद ने अल्लाह तआला से सुवाल किया कि उसे उन बन्धनों को तोड़ने की कुव्वत बख़्शे और उन काफ़िरों पर येह सुतून मअ सकफ़ के गिरा दे और उसे उन के चंगुल से नजात दे चुनान्चे, अल्लाह तआला ने उसे कुव्वत बख़्शी वोह हिला तो उस के तमाम बन्धन टूट गए, तब उस ने सुतून को हिलाया जिस की वज्ह से छत काफ़िरों पर आ गिरी और अल्लाह तआला ने उन सब को हलाक कर दिया और उसे नजात बख़्शी ।

जब सहाबए किराम रज़ीअल्लाहो अन्हो ने येह बात सुनी तो उन्हों ने कहा : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम क्या हम भी उस जैसा सवाब पा सकते हैं ? आप ने फ़रमाया : मुझे इस का इल्म नहीं, फिर आप ने अपने रब से सुवाल किया तो अल्लाह तआला ने आप को लैलतुल क़द्र अता की जैसा कि पहले मजकूर हुवा है।

हज़रते अनस रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जब लैलतुल कद्र आती है तो जिब्रील  : फ़िरिश्तों की एक जमाअत के साथ नाज़िल होते हैं और हर उस बन्दे पर रहमत भेजते हैं और बख्शिश की दुआ करते हैं जो खड़े हो कर या बैठ कर अल्लाह तआला के ज़िक्र में मश्गूल व मसरूफ़ होता है।

लैलतुल कद्र में बे शुमार रहमतों का नुजूल

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं कि लैलतुल कद्र में जमीन पर बे शुमार फ़रिश्ते उतरते हैं(3) और उन के उतरने के लिये आस्मान के दरवाजे खोल दिये जाते हैं।

जैसा कि हदीस शरीफ़ में वारिद हुवा है, तब अन्वार चमकते हैं, अज़ीम तजल्ली होती है जिस में मुल्के अज़ीम मुन्कशिफ़ हो जाता है, लोग इस में मुख्तलिफ़ दरजात पर फ़ाइज़ होते हैं, बा’ज़ ऐसे होते हैं जिन पर ज़मीनो आस्मान के मलकूत मुन्कशिफ़ होते हैं और जब उन पर आस्मानों के मलकूत मुन्कशिफ़ होते हैं तो वोह आस्मानों में फ़रिश्तों को उन सूरतों में देखते हैं जिन में वोह मश्गूले इबादत होते हैं, बा’ज़ क़ियाम में, बा’ज़ कुऊद में, बा’ज़ रुकूअ में, बा’ज़ ज़िक्र में, बा’ज़ शुक्र में और बा’ज़ तस्बीह व तहलील में मसरूफ़ हैं।

बा’ज़ लोगों पर जन्नत के अहवाल मुन्कशिफ़ होते हैं और वोह जन्नत के महल्लात, घर, हरें, नहरें, दरख्त और जन्नत के फल वगैरा देखते हैं और अर्श आ’जम का नज्जारा करते हैं जो कि जन्नत की छत है, अम्बिया, औलिया, शुहदा और सिद्दीक़ीन के मकामात देखते हैं। बा’ज़ ऐसे लोग भी होते हैं जिन की आंखों से हिजाब उठ जाते हैं और वोह रब्बे जुल जलाल के जमाल के इलावा और कुछ नहीं देख पाते।

हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जिस शख्स ने माहे रमज़ान की सत्ताईसवीं शब, सुब्ह होने तक इबादत में गुज़ारी वोह मुझे रमज़ान की तमाम रातों की इबादत से ज़ियादा पसन्द है । हज़रते फ़ातिमतुज्जहरा राज़ी अल्लाहो अन्हा  ने अर्ज की : ऐ अब्बाजान ! वोह ज़ईफ़ मर्द और औरतें क्या करें जो कियाम पर कुदरत नहीं रखते, आप ने फ़रमाया : क्या वोह तक्ये नहीं रख सकते जिन का सहारा लें और इस रात के लम्हात में से कुछ लम्हात बैठ कर गुज़ारें और अल्लाह तआला से दुआ मांगें मगर येह बात अपनी उम्मत के तमाम माहे रमज़ान को कियाम में गुज़ारने से ज़ियादा महबूब है।

हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जिस ने लैलतुल कद्र बेदार हो कर गुज़ारी और इस में दो रक्अत नमाज अदा की और अल्लाह तआला से बख्शिश तलब की तो अल्लाह तआला ने उसे बख़्श दिया, उसे अपनी रहमत में जगह देता है और जिब्रील अलैहहिस्सलाम  ने उस पर अपने पर फेरे और जिस पर जिब्रील ने अपने पर फेरे वोह जन्नत में दाखिल हुवा।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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Lailtul kadr, kadar wali raat, ramzan ki khas raat, ramzan ki 27wi raat

 

 

 

फ़जाइले रमजानुल मुअज्जम – रमज़ान की फ़ज़ीलतें और बरकतें

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

इरशादे खुदावन्दी है : “ऐ लोगो जो ईमान लाए हो तुम पर रोज़े फ़र्ज़ किये गए हैं जैसे तुम से पहले वाले लोगों पर फ़र्ज़ किये गए थे”। हज़रते सईद बिन जुबैर रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि हम से पहले वाले लोगों पर इशा से ले कर दूसरी रात के आने तक रोज़ा होता था जैसा कि इब्तिदाए इस्लाम में भी येही दस्तूर था।

पहले की उम्मते रमज़ान कैसे मनाती थी

अहले इल्म की एक जमाअत का कौल है कि नसारा पर इसी तरह रोज़ा फ़र्ज़ किया गया था, कभी तो रोज़ों का महीना शदीद गर्मी और कभी सख्त सर्दी में आ जाता जिस की वज्ह से इन्हें सफ़र और अपने कारोबार में सख्त दुश्वारी पेश आती चुनान्चे, इन के बड़े इकठे हुवे और बाहम मिल कर येह तै किया गया कि रोजे सर्दियों और गर्मियों के इलावा साल के किसी और मोसिम में रखे जाएं चुनान्चे, इन्हों ने रोज़ों के लिये बहार का मोसिम मुकर्रर किया और अपने इस हेर फेर के कफ्फारे के तौर पर दस रोजों का इज़ाफ़ा कर दिया।

फिर इन का एक बादशाह बीमार पड़ गया, उस ने नज्र मानी कि अगर वोह इस बीमारी से तन्दुरुस्त हो गया तो एक हफ्ते के रोज़ों का इज़ाफ़ा करेगा चुनान्चे, जूही वोह तन्दुरुस्त हुवा उस ने लोगों के लिये एक हफ्ते के रोजे बढ़ा दिये।

जब येह बादशाह मरा और दूसरा बादशाह इन का हुक्मरान बना तो उस ने लोगों को हुक्म दिया कि तुम पूरे पचास रोजे पूरे करो, फिर इन्हें दो मौतें पहुंची और वोह जानवरों की मौत थी तो उस बादशाह ने कहा अपने रोजों को जियादा करो चुनान्चे, दस रोजे इन रोजों से पहले और दस बा’द में बढ़ा दिये गए।

नीज़ कहा गया कि कोई उम्मत ऐसी नहीं मगर अल्लाह तआला ने उन पर माहे रमजान के रोजे फ़र्ज़ किये थे मगर वोह इस से बरगश्ता हो गए।

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रमज़ान का मतलब अर्थ क्या होता है ?

बगवी का कौल है और सहीह भी येही है कि रमज़ान, महीने का नाम है और येह रमज़ा से मुश्तक है जिस के मा’ना गर्म पथ्थर के हैं क्यूंकि वोह शदीद गर्मी के मोसिम में रोजे रखा करते थे। अरब कबीलों ने जब महीनों के नाम रखना चाहे तो इन अय्याम में येह महीना इन्तिहाई गर्मी के मोसिम में आया चुनान्चे, इस का नाम रमज़ान रखा गया। कुछ हज़रात का कहना है कि इस माह को रमज़ान इस लिये कहते हैं कि येह माहे मुक़द्दस गुनाहों को जला देता है।

फर्जिय्यते रोजा – रोजे का फ़र्ज़ होना

रोज़े हिजरत के दूसरे साल फ़र्ज़ किये गए, येह दीन का एक अहम रुक्न है, इस के वुजूब के मुन्किर की तक्फ़ीर की जाएगी, अहादीसे मुक़द्दसा में इस माह के बहुत से फ़ज़ाइल मन्कूल हैं जिन में से एक हदीस येह है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जब रमज़ानुल मुबारक की पहली रात आती है तो जन्नत के तमाम दरवाजे खोल दिये जाते हैं और पूरा माहे रमज़ान इन में से कोई दरवाज़ा बन्द नहीं किया जाता और अल्लाह तआला पुकारने वाले को हुक्म देता है जो निदा करता है कि ऐ नेकी के तलब करने वाले ! मुतवज्जेह हो और ऐ गुनाहों के तलबगार रुक जा।

फिर वोह कहता है : कोई बख्रिशश तलब करने वाला है जिसे बख़्श दिया जाए ? कोई साइल है जिसे अता किया जाए ? कोई तौबा करने वाला है जिस की तौबा कबूल की जाए ? और सुब्ह होने तक येह निदा होती रहती है और अल्लाह तआला हर ईदुल फित्र की रात दस लाख ऐसे बन्दों को बख़्शता है जिन पर अज़ाब वाजिब हो चुका होता है ।

हज़रते सलमान फ़ारिसी रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हमें शा’बान के आखिरी दिन खुतबा दिया और फ़रमाया ऐ लोगो ! तुम पर एक अज़ीम महीना साया फ़िगन है जिस में लैलतुल कद्र है जो हज़ार महीनों से बेहतर है, अल्लाह तआला ने इस के रोज़ों को फ़र्ज़ और इस की रातों में इबादत को सुन्नत करार दिया है, जो शख्स इस माह में किसी नेकी से कुर्ब हासिल करता है उसे दीगर महीनों में फ़र्ज़ की अदाएगी का सवाब मिलता है और जिस ने फ़र्ज़ अदा किया वोह ऐसे है जैसे उस ने दूसरे महीनों में सत्तर फ़राइज़ अदा किये।

सब्र का महीना है और सब्र का अज्र जन्नत है,

येह सब्र का महीना है और सब्र का अज्र जन्नत है, येह भाईचारे और हमदर्दी का महीना है, येह ऐसा महीना है कि जिस में मोमिन का रिज्क ज़ियादा होता है, जिस शख्स ने इस महीने में किसी रोज़ादार का रोजा इफ्तार कराया उसे गुलाम आज़ाद करने का सवाब मिलता है और उस के गुनाह बख़्श दिये जाते हैं।

हम ने अर्ज की : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम हम में से हर शख्स ऐसी चीज़ नहीं पाता जिस से वोह रोज़ादार का रोजा इफ्तार कराए, आप ने फ़रमाया : अल्लाह तआला येह सवाब हर उस शख्स को अता करता है जो किसी रोज़ादार का रोज़ा दूध के घूंट या पानी के घूंट या खजूर से इफ्तार कराता है और जिस ने किसी रोज़ादार को सैर किया तो येह उस के गुनाहों की बख्शिश होगी और अल्लाह तआला उसे मेरे हौज़ से ऐसा सैराब करेगा कि वोह इस के बाद कभी प्यासा न होगा और उसे भी रोज़ादार के बराबर अज्र मिलेगा लेकिन रोज़ादार के अज्र से कुछ कम नहीं किया जाएगा और येह वोह महीना है जिस का अव्वल रहमत, दरमियान मगफिरत और आखिर जहन्नम से आज़ादी है।

जिस ने इस महीने में अपने खादिम से तख़फ़ीफ़ की, अल्लाह तआला उसे जहन्नम से आज़ादी देगा। इस में चार काम बहुत ज़ियादा करो, दो कामों से तुम अपने रब को राजी करोगे और दो कामों से तुम्हें बे नियाज़ी नहीं है, वोह दो काम जिन से तुम अपने रब को राजी करोगे वोह ला इलाहा इल लल लाह  की शहादत और इस्तिग़फ़ार करना है और वोह दो काम जिन से तुम्हारे लिये मफ़र नहीं है वोह अपने रब से जन्नत का सुवाल और जहन्नम से पनाह मांगना है।

इन अहादीसे फ़ज़ाइल में से एक हदीस येह भी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जिस ने ईमान और तलबे सवाब के लिये माहे रमज़ान के रोजे रखे उस के अगले पिछले तमाम गुनाह बख़्श दिये जाते हैं।

 

नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं : रब तआला फ़रमाता है कि इन्सान का हर अमल उसी के लिये है सिवाए रोजे के पस तहकीक़ रोज़ा मेरे लिये है और मैं ही इस की जज़ा हूं और तुझे ऐसी इबादत काफ़ी है जिसे अल्लाह तआला ने अपनी ज़ात से मन्सूब किया है।

रोज़ादार के मुंह की बू मुश्क से बेहतर है

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम इरशाद फ़रमाते हैं कि माहे रमज़ान में मेरी उम्मत को पांच चीजें दी गई हैं जो इस से पहले किसी उम्मत को नहीं दी गई, रोज़ादार के मुंह की बू) अल्लाह के यहां मुश्क से ज़ियादा उम्दा है, उन के इफ्तार तक फ़रिश्ते उन के लिये बख्शिश तलब करते हैं, कि इस माह में सरकश शैतान कैद कर दिये जाते हैं, अल्लाह तआला हर दिन जन्नत को संवारता है और इरशाद फ़रमाता है कि अन करीब मेरे नेक बन्दे इस में दाखिल होंगे, उन से तक्लीफ़ और अज़िय्यत दूर कर दी जाएगी।

और इस महीने की आखिरी रात में उन्हें बख्शा जाता है। अर्ज किया गया : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम क्या इस से मुराद लैलतुल क़द्र है ? आप ने फ़रमाया : नहीं ! लेकिन काम करने वाला काम पूरा कर के अपना अज्र पाता है।)

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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