नफ्स की इता अत करना ख्वाइशों और इच्छाओं की बात मानना
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है :
क्या तू ने उस को नहीं देखा कि जिस ने अपनी ख्वाहिश को मा‘बूद बना लिया है और उसे अल्लाह ने इल्म पर गुमराह बना दिया है। हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि इस से मुराद वोह काफ़िर है जिस ने अल्लाह तआला की जानिब से अताकर्दा किसी हिदायत और दलील के बिगैर ख्वाहिशात को अपना दीन बना लिया है। इस का मतलब येह है कि वोह ख्वाहिशाते नफ़्सानी का पैरो है और वोह हर ऐसा काम करने पर तय्यार हो जाता है जिस की तरफ़ उस की ख्वाहिशात इशारा करती हैं और अल्लाह तआला की किताब के मुताबिक़ अमल नहीं करता गोया कि वोह अपनी ख्वाहिशात की इबादत करता है। फ़रमाने इलाही है :
और उन की ख्वाहिशात की इत्तिबाअ न कर। और इरशादे रब्बानी है : “और ख्वाहिश की पैरवी न कर येह तुझे अल्लाह के रस्ते से हटा देगी।”
इसी लिये हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम इन अल्फ़ाज़ में अल्लाह से दुआ मांगा करते : ऐ अल्लाह मैं तुझ से पनाह मांगता हूं उस ख्वाहिश से जिस की इताअत की जाती है और उस बुख़्ल से जिस का इत्तिबाअ किया जाता है। और आप ने फ़रमाया कि तीन बातें इन्सान के लिये मोहलिक हैं, इताअत कर्दा ख्वाहिश, इत्तिबाअ कर्दा बुख़्ल और इन्सान का अपने आप को बहुत बड़ा समझना और येह इस लिये है कि हर गुनाह का बाइस नफ़्सानी ख्वाहिशात हैं और येही इन्सान को जहन्नम की तरफ ले जाती हैं। अल्लाह तआला हमें इन से पनाह दे। आमीन !
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क्या करे क्या ना करें जब दो कामों में से एक चुनना हो तो
एक आरिफ़ का कौल है कि जब दो बातें तेरे सामने हों और तुझे पता न चले कि उन में से कौन सी बात उम्दा होगी तो येह देख कि उन दो में से कौन सी बात तेरी ख्वाहिश के करीब है तू उसी को छोड़ दे और दूसरी को पायए तक्मील तक पहुंचा।
इसी नुक्ते की तरफ़ इशारा करते हुवे इमामे शाफेई रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया है :
जब तेरा काम दो बातों के दरमियान हाइल हो और तुझे उन में से अच्छे और बुरे की खबर न लगे। तो उस बात के मुताबिक़ काम कर जो तेरी ख्वाहिश के मुखालिफ़ हो क्यूंकि ख्वाहिशात इन्सान को बुरे कामों की तरफ़ ले जाती हैं।
हज़रते अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि जब तू दो सोचों में घिर जाए तो जो सोच तुझे ज़ियादा पसन्द हो उसे छोड़ दे और जो ना पसन्द हो उसे पसन्द कर ले, इस की वज्ह येह है कि मा’मूली काम आसानी से हो जाएगा, इस में मेहनत मशक्कत नहीं करनी पड़ती, किसी से तआवुन की दरख्वास्त नहीं करनी पड़ती, इस लिये नफ़्से इन्सानी इस के करने का हुक्म देता है और इसी की तरफ इसे उकसाता है मगर मुश्किल काम मुश्किल ही से सर अन्जाम दिया जाता है. तक्लीफ उठानी पड़ती है, कोई तआवुन नहीं करता, खुद बड़ी मुश्किल से इन्सान इसे पूरा करता है इस लिये नफ़्से इन्सानी इसे करने में पसो पेश करता है और मेहनतो मशक्कत को बुरा समझता है (पस तुझे येही काम इख्तियार करना चाहिये)।
हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो का इरशाद है कि अपने नफ्सों को रोको क्यूंकि येह ऐसा हरावल दस्ता हैं जो तुम्हें बुराई की आखिरी सरहद तक ले जाता है, हक़ कड़वा और गिरां है, बातिल सुबुक और तबाह कुन है, तौबा के इलाज से बेहतर येही है कि इन्सान गुनाहों ही को छोड़ दे बहुत सी निगाहों ने शहवत की काश्त की और एक लम्हे की लज्जत उन को तवील गम की मीरास दे गई।
लुकमान अलैहिस्सलाम की नसीहते
हज़रते लुकमान अलैहिस्सलाम अपने बेटे से कहा कि ऐ बेटे ! मैं सब से पहले तुझे तेरे नफ्स से डराता हूं क्यूंकि हर नफ़्स की ख्वाहिशात और आरजूएं हैं, अगर तू उन को पूरा कर देगा तो वोह अपनी ख्वाहिशात को तवील कर देगा और तुझ से तमाम ख़्वाहिशात को पूरा करने की तलब करेगा, बिला शुबा शहवत दिल में इस तरह पोशीदा होती है जैसे पथ्थर में आग ! अगर तू पथ्थर पर चक्माक मारेगा तो आग निकलेगी वरना नहीं।
किसी शाइर का कौल है:
जब तू ने नफ्स की हर पुकार पर लब्बैक कहा तो वोह तुझे मनहिय्यात की तरफ़ बुलाएगा।
एक और शाइर कहता है :
जब तू ख्वाहिशाते नफ़्सानी की मुखालफ़त नहीं करेगा तो येह तुझे हर उस काम के लिये कहेंगी जो तेरे लिये बाइसे आर हो।
एक और शाइर कहता है :
अगर तू ने अपनी ख्वाहिशात की पैरवी की तो न तुझे सीधा रास्ता मिलेगा और न तू सरदारी हासिल कर सकेगा।
एक और शाइर कहता है:
जब तू तमाम अवसाफ़े हमीदा का हुसूल और अल्लाह की रहमत से अपनी मुरादों का बर आना चाहता है। तो इस बुरे नफ़्स की ख्वाहिशात की मुखालफ़त कर क्यूंकि येह इश्क से भी ज़ियादा दुश्मन और मोहलिक है। वोह दोनों ख्वाहिशात को हलाक करने का सबब हैं अलबत्ता आशिक जब पाक दामन हो तो गुनाह से बच जाता है। और नफ़्सानी ख्वाहिशात पूरा होने की आरजूओं को तर्क कर दे, अगर तू अक्लमन्द है तो वोह काम कर जो तेरे नफ़्स की ख्वाहिशात के ख़िलाफ़ हो ।
एक और शाइर कहता है:
ख्वाहिशात की पैरवी में अक्ल का नूर छुप जाता है और ख्वाहिशात की मुखालफ़त करने वाले की अक्ल की नूरानिय्यत बराबर बढ़ती रहती है।
फ़ज़्ल बिन अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो का कहना है :
ज़माना जाहिल को बुलन्द मक़ाम दे देता है और ख्वाहिशात की पैरवी अक्लमन्द, जी राए को उस के मकाम से फेर देती है।
कभी लोग ऐसे जवान की तारीफ़ करते हैं जो खताकार होता है और एहसान करने वाले शख्स को मलामत की जाती है हालांकि वो बा मुराद होता है।
नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फरमान है कि अल्लाह तआला ने अक्ल को पैदा फ़रमाया और उसे फ़रमाया : सामने आ ! तो वोह सामने हुई, फिर फ़रमाया : पीछे हट ! तो वोह पीछे हट गई। रब तआला ने फ़रमाया : मुझे अपनी इज्जतो जलाल की क़सम ! मैं तुझे अपनी सब से ज़ियादा पसन्दीदा मख्लूक में रखूगा। फिर अल्लाह तआला ने हमाकत को पैदा फ़रमाया और आगे आने का हुक्म दिया चुनान्चे, वो आगे हुई, फिर फ़रमाया : पीछे हट ! तो वोह पीछे हट गई । तब अल्लाह तआला ने फ़रमाया : मुझे अपनी इज्जत और जलाल की कसम ! मैं तुझे बद तरीन मख्लूक में रखूगा । येह तिर्मिज़ी की रिवायत है।
किसी ने क्या खूब कहा है :
उस शख्स की राए जो हर बात में अक्ल से मश्वरा करता है सवाब को पा लेती है। और उस ने देखा कि जब भी ख्वाहिशात की पैरवी की जाए वोह बुरे अन्जाम और अज़ाब में मुब्तला करती है।
एक दूसरा शाइर कहता है:
जब तू चाहे कि उम्मीदों से बहरा वर हो तो नफ़्स को ख्वाहिशात की पैरवी से बचा। और इस की ख्वाहिशात पूरी न कर और गुमराह और बागियों की रौनक़ न बन । नफ्स और इस की ख्वाहिशात को तर्क कर दे क्यूंकि येह हर उस शख्स को जो इस की तरफ कदम बढ़ाता है, बुराइयों का हुक्म देता है। शायद कि तू इस तरह जहन्नम से नजात पा ले जो आंतें काटने वाली और खाल उतारने वाली है।
नफ्स की मुखालफत बहुत ज़रूरी है
दानाओं का कौल है कि ख्वाहिश एक बुरी सुवारी है जो तुझे मुसीबतों की तारीकियों में ले जाती है और ना मुवाफ़िक चरागाह है जो तुझे दुखों का वारिस बनाती है लिहाज़ा ख़बरदार हो कि तुझे नफ़्स की ख्वाहिश बुराइयों पर सुवार न करे और गुनाहों की अन्धेर नगरी में खैमाजन न करे।
किसी दाना से कहा गया कि अगर तुम शादी कर लेते तो खूब था, तो उस ने बरजस्ता जवाब दिया अगर मैं तलाक़ दे सकता तो अपने नफ़्स को तलाक दे देता, और येह शे’र पढ़ा :दुनिया से तन्हा हो जा क्यूंकि तू तन्हा ही दुनिया में भेजा गया था।
दुनिया नींद और आख़िरत बेदारी है और इन का दरमियानी फ़ासिला मौत है और हम परागन्दा ख्वाबों में हैं, जिस ने ख्वाहिश की आंख से देखा वोह तुन्दो तेज़ हो गया, जिस ने ख्वाहिश की पैरवी की उस ने जुल्म किया और जिस ने तवील उम्मीदें रखीं उस ने इन्तिहा को न पाया और न ही किसी देखने वाले के लिये निहायत है। (तूले अमल की कोई इन्तिहा नहीं)
किसी दाना ने एक शख्स को वसिय्यत की, कि मैं तुझे ख्वाहिशाते नफ्सानी से मुकाबला करने का हुक्म देता हूं क्यूंकि ख्वाहिशात बुराइयों की कुंजी और नेकियों की दुश्मन हैं, तेरी हर ख्वाहिश तेरी दुश्मन है और सब से बुरी ख्वाहिश येह है जो गुनाहों को तेरे सामने बतौरे नेकी पेश करती है। जब येह दुश्मन तुझ से झगड़ा करेंगे तो तू इन के पंजे से बच, सुस्ती से मुबर्रा होशयारी, झूट से मुबर्रा सच, तसाहिल से पाक मश्गूलिय्यत, जज्अ फ़जअ से पाक सब्र और ऐसी निय्यत जो बेकारी से आलूदा न हो, की मौजूदगी ही में नजात पा सकेगा।
ऐ रब्बे जुल जलाल ! हमारी अक्ल को हमारी ख्वाहिशात पर गालिब फ़रमा दे, हमें नुक्सान और सबुक सारी से बचा, हमें आख़िरत की बजाए दुनिया में मश्गूल न कर और हमें अपना ज़िक्र करने वाला और अपनी नेमतों का शुक्र करने वाला बना दे, सय्यिदुना व मौलाना मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की नबुव्वत के तुफैल हमें सआदते दारैन अता फ़रमा ! वाल हम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन
फ़रमाने नबवी है कि तुम्हारा दीन बेहतरीन परहेज़गारी है।और फ़रमाया : परहेज़गारी आ’माल की सरवरी है। और फ़रमाया : परहेज़गार बन, सब लोगों से ज़ियादा इबादत गुज़ार बन जाएगा और कनाअत कर कि सब लोगों से ज़ियादा शुक्र गुज़ार बन जाएगा।
फ़रमाने नबवी है कि जिस में परहेज़गारी मौजूद नहीं (जो उसे अल्लाह तआला की ना फ़रमानी से रोके तो) उस के किसी अमल की अल्लाह तआला को परवा नहीं है।
हज़रते इब्राहीम बिन अदहम रज़ीअल्लाहो अन्हो का फरमान है कि जोहद के तीन मर्तबे हैं, एक जोह्द फ़र्ज़ है और वोह अल्लाह तआला की हराम कर्दा चीज़ों से रुकना, दूसरा ज़ोह्द सलामती के लिये है और वोह है मुश्तबा चीज़ों को तर्क कर देना, तीसरा जोहद फ़ज़ीलत के हुसूल के लिये है और वोह है अल्लाह तआला की हलाल कर्दा अश्या को भी छोड़ देना और येह जोहद का बहुत ही आ’ला मर्तबा है।
इब्ने मुबारक रज़ीअल्लाहो अन्होका कौल है कि जोह्द, जोहद को छुपाने का नाम है, जब ज़ाहिद लोगों से दूर रहे तो उस की जुस्त्जू रखो और जब ज़ाहिद लोगों की तलाश में सरगर्दा हो तो उस से किनार कशी इख्तियार कर लो।
किसी ने क्या ही खूब कहा है :
मैं ने इस राज़ को पा लिया है, इस के सिवा और कुछ नहीं है कि परहेज़गारी दुनिया और दौलते दुनिया को छोड़ देने का नाम है। .जब तू दौलत पा कर इसे तर्क कर दे तो समझ ले कि तेरा तक्वा ऐसे है जैसे एक मुसलमान का तक्वा है।
जाहिद वोह नहीं है जो दुनिया के न होते हुवे इस से किनारा कश हुवा बल्कि ज़ाहिद वोह है कि जिस के पास दुनिया अपनी तमाम तर हश्र सामानियों के साथ आई मगर उस ने इस से मुंह फेर लिया और भाग गया, जैसा कि अबू तमाम कहता है :
जब आदमी ने जोह्द इख़्तियार न किया और दुनिया अपनी तमाम तर रा’नाइयों के साथ जल्वागर हुई तो वोह ज़ाहिद नहीं कहलाएगा।
दुनिया से किनारा कशी
बा’ज़ हुकमा का कौल है कि क्या वज्ह है कि हम दुनिया से किनारा कशी नहीं करते हालांकि इस की उम्र गिनी चुनी, इस की भलाई मा’मूली, इस की सफ़ा में तिलछट, इस की उम्मीदें धोका और फ़रेब हैं, आती है तो दुख ले कर आती है और जब जाती है तो गमों का बोझ छोड़ जाती है,
शाइर कहता है:
दुनिया के तालिब के लिये हलाकत है, इस को बका नहीं और इस की गर्दिश ख्वाबो ख़याल है। इस का साफ़ गदला, इस की खुशी नुक्सान, इस की उम्मीदें पुर फरेब और इस की रोशनियां तारीकी हैं। इस की जवानी बुढ़ापा, इस की राहत बीमारी, इस की लज्जतें शर्मिन्दगी और इस को पाना न पाने के बराबर है। दुन्यादार अगर्चे शद्दाद की बिहिश्त (आराम देह मक़ाम) जितनी ने’मतें पा लें, तब भी इस के मसाइब से नहीं छूटेगा। इस से रू गर्दानी कर, इस की रौनक को बा वकार न समझ क्यूंकि इस की ने’मतें ऐसी हैं जिन में इताब मुज़मिर है। उस दाइमी इन्आमात के घर के लिये अमल कर जिस की ने’मतें कभी न मिटेंगी और जिस में मौत और बुढ़ापे का कोई अन्देशा न होगा।
यहूया बिन मुआज़ रज़ीअल्लाहो अन्हो का एक दानिशमन्दाना कौल है कि दुनिया को इब्रत की निगाह से देख, इसे अपनी पसन्द से छोड़, इस के हुसूल में मजबूरी से कोशिश कर और आख़िरत को तवज्जोह से तलब कर।
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
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