नफ्स की इता अत करना ख्वाइशों और इच्छाओं की बात मानना

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है :

क्या तू ने उस को नहीं देखा कि जिस ने अपनी ख्वाहिश को मा‘बूद बना लिया है और उसे अल्लाह ने इल्म पर गुमराह बना दिया है। हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि इस से मुराद वोह काफ़िर है जिस ने अल्लाह तआला की जानिब से अताकर्दा किसी हिदायत और दलील के बिगैर ख्वाहिशात को अपना दीन बना लिया है। इस का मतलब येह है कि वोह ख्वाहिशाते नफ़्सानी का पैरो  है और वोह हर ऐसा काम करने पर तय्यार हो जाता है जिस की तरफ़ उस की ख्वाहिशात इशारा करती हैं और अल्लाह तआला की किताब के मुताबिक़ अमल नहीं करता गोया कि वोह अपनी ख्वाहिशात की इबादत करता है। फ़रमाने इलाही है :

और उन की ख्वाहिशात की इत्तिबाअ न कर। और इरशादे रब्बानी है : “और ख्वाहिश की पैरवी न कर येह तुझे अल्लाह के रस्ते से हटा देगी।”

इसी लिये हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम इन अल्फ़ाज़ में अल्लाह से दुआ मांगा करते : ऐ अल्लाह मैं तुझ से पनाह मांगता हूं उस ख्वाहिश से जिस की इताअत की जाती है और उस बुख़्ल से जिस का इत्तिबाअ किया जाता है। और आप ने फ़रमाया कि तीन बातें इन्सान के लिये मोहलिक हैं, इताअत कर्दा ख्वाहिश, इत्तिबाअ कर्दा बुख़्ल और इन्सान का अपने आप को बहुत बड़ा समझना और येह इस लिये है कि हर गुनाह का बाइस नफ़्सानी ख्वाहिशात हैं और येही इन्सान को जहन्नम की तरफ ले जाती हैं। अल्लाह तआला हमें इन से पनाह दे। आमीन !

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क्या करे क्या ना करें जब दो कामों में से एक चुनना हो तो

एक आरिफ़ का कौल है कि जब दो बातें तेरे सामने हों और तुझे पता न चले कि उन में से कौन सी बात उम्दा होगी तो येह देख कि उन दो में से कौन सी बात तेरी ख्वाहिश के करीब है तू उसी को छोड़ दे और दूसरी को पायए तक्मील तक पहुंचा।

इसी नुक्ते की तरफ़ इशारा करते हुवे इमामे शाफेई रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया है :

जब तेरा काम दो बातों के दरमियान हाइल हो और तुझे उन में से अच्छे और बुरे की खबर न लगे। तो उस बात के मुताबिक़ काम कर जो तेरी ख्वाहिश के मुखालिफ़ हो क्यूंकि ख्वाहिशात इन्सान को बुरे कामों की तरफ़ ले जाती हैं।

हज़रते अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि जब तू दो सोचों में घिर जाए तो जो सोच तुझे ज़ियादा पसन्द हो उसे छोड़ दे और जो ना पसन्द हो उसे पसन्द कर ले, इस की वज्ह येह है कि मा’मूली काम आसानी से हो जाएगा, इस में मेहनत मशक्कत नहीं करनी पड़ती, किसी से तआवुन की दरख्वास्त नहीं करनी पड़ती, इस लिये नफ़्से इन्सानी इस के करने का हुक्म देता है और इसी की तरफ इसे उकसाता है मगर मुश्किल काम मुश्किल ही से सर अन्जाम दिया जाता है. तक्लीफ उठानी पड़ती है, कोई तआवुन नहीं करता, खुद बड़ी मुश्किल से इन्सान इसे पूरा करता है इस लिये नफ़्से इन्सानी इसे करने में पसो पेश करता है और मेहनतो मशक्कत को बुरा समझता है (पस तुझे येही काम इख्तियार करना चाहिये)।

हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो का इरशाद है कि अपने नफ्सों को रोको क्यूंकि येह ऐसा हरावल दस्ता हैं जो तुम्हें बुराई की आखिरी सरहद तक ले जाता है, हक़ कड़वा और गिरां है, बातिल सुबुक और तबाह कुन है, तौबा के इलाज से बेहतर येही है कि इन्सान गुनाहों ही को छोड़ दे बहुत सी निगाहों ने शहवत की काश्त की और एक लम्हे की लज्जत उन को तवील गम की मीरास दे गई।

लुकमान अलैहिस्सलाम की नसीहते

हज़रते लुकमान अलैहिस्सलाम  अपने बेटे से कहा कि ऐ बेटे ! मैं सब से पहले तुझे तेरे नफ्स से डराता हूं क्यूंकि हर नफ़्स की ख्वाहिशात और आरजूएं हैं, अगर तू उन को पूरा कर देगा तो वोह अपनी ख्वाहिशात को तवील कर देगा और तुझ से तमाम ख़्वाहिशात को पूरा करने की तलब करेगा, बिला शुबा शहवत दिल में इस तरह पोशीदा होती है जैसे पथ्थर में आग ! अगर तू पथ्थर पर चक्माक मारेगा तो आग निकलेगी वरना नहीं।

किसी शाइर का कौल है:

जब तू ने नफ्स की हर पुकार पर लब्बैक कहा तो वोह तुझे मनहिय्यात की तरफ़ बुलाएगा।

एक और शाइर कहता है :

जब तू ख्वाहिशाते नफ़्सानी की मुखालफ़त नहीं करेगा तो येह तुझे हर उस काम के लिये कहेंगी जो तेरे लिये बाइसे आर हो।

एक और शाइर कहता है :

अगर तू ने अपनी ख्वाहिशात की पैरवी की तो न तुझे सीधा रास्ता मिलेगा और न तू सरदारी हासिल कर सकेगा।

एक और शाइर कहता है:

जब तू तमाम अवसाफ़े हमीदा का हुसूल और अल्लाह की रहमत से अपनी मुरादों का बर आना चाहता है। तो इस बुरे नफ़्स की ख्वाहिशात की मुखालफ़त कर क्यूंकि येह इश्क से भी ज़ियादा दुश्मन और मोहलिक है। वोह दोनों ख्वाहिशात को हलाक करने का सबब हैं अलबत्ता आशिक जब पाक दामन हो तो गुनाह से बच जाता है। और नफ़्सानी ख्वाहिशात पूरा होने की आरजूओं को तर्क कर दे, अगर तू अक्लमन्द है तो वोह काम कर जो तेरे नफ़्स की ख्वाहिशात के ख़िलाफ़ हो ।

एक और शाइर कहता है:

ख्वाहिशात की पैरवी में अक्ल का नूर छुप जाता है और ख्वाहिशात की मुखालफ़त करने वाले की अक्ल की नूरानिय्यत बराबर बढ़ती रहती है।

फ़ज़्ल बिन अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो का कहना है :

ज़माना जाहिल को बुलन्द मक़ाम दे देता है और ख्वाहिशात की पैरवी अक्लमन्द, जी राए को उस के मकाम से फेर देती है।

कभी लोग ऐसे जवान की तारीफ़ करते हैं जो खताकार होता है और एहसान करने वाले शख्स को मलामत की जाती है हालांकि वो बा मुराद होता है।

नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फरमान है कि अल्लाह तआला ने अक्ल को पैदा फ़रमाया और उसे फ़रमाया : सामने आ ! तो वोह सामने हुई, फिर फ़रमाया : पीछे हट ! तो वोह पीछे हट गई। रब तआला ने फ़रमाया : मुझे अपनी इज्जतो जलाल की क़सम ! मैं तुझे अपनी सब से ज़ियादा पसन्दीदा मख्लूक में रखूगा। फिर अल्लाह तआला ने हमाकत को पैदा फ़रमाया और आगे आने का हुक्म दिया चुनान्चे, वो आगे हुई, फिर फ़रमाया : पीछे हट ! तो वोह पीछे हट गई । तब अल्लाह तआला ने फ़रमाया : मुझे अपनी इज्जत और जलाल की कसम ! मैं तुझे बद तरीन मख्लूक में रखूगा । येह तिर्मिज़ी की रिवायत है।

किसी ने क्या खूब कहा है :

उस शख्स की राए जो हर बात में अक्ल से मश्वरा करता है सवाब को पा लेती है। और उस ने देखा कि जब भी ख्वाहिशात की पैरवी की जाए वोह बुरे अन्जाम और अज़ाब में मुब्तला करती है।

एक दूसरा शाइर कहता है:

जब तू चाहे कि उम्मीदों से बहरा वर हो तो नफ़्स को ख्वाहिशात की पैरवी से बचा। और इस की ख्वाहिशात पूरी न कर और गुमराह और बागियों की रौनक़ न बन । नफ्स और इस की ख्वाहिशात को तर्क कर दे क्यूंकि येह हर उस शख्स को जो इस की तरफ कदम बढ़ाता है, बुराइयों का हुक्म देता है। शायद कि तू इस तरह जहन्नम से नजात पा ले जो आंतें काटने वाली और खाल उतारने वाली है।

नफ्स की मुखालफत बहुत ज़रूरी है

दानाओं का कौल है कि ख्वाहिश एक बुरी सुवारी है जो तुझे मुसीबतों की तारीकियों में ले जाती है और ना मुवाफ़िक चरागाह है जो तुझे दुखों का वारिस बनाती है लिहाज़ा ख़बरदार हो कि तुझे नफ़्स की ख्वाहिश बुराइयों पर सुवार न करे और गुनाहों की अन्धेर नगरी में खैमाजन न करे।

किसी दाना से कहा गया कि अगर तुम शादी कर लेते तो खूब था, तो उस ने बरजस्ता जवाब दिया अगर मैं तलाक़ दे सकता तो अपने नफ़्स को तलाक दे देता, और येह शे’र पढ़ा :दुनिया से तन्हा हो जा क्यूंकि तू तन्हा ही दुनिया में भेजा गया था।

दुनिया नींद और आख़िरत बेदारी है और इन का दरमियानी फ़ासिला मौत है और हम परागन्दा ख्वाबों में हैं, जिस ने ख्वाहिश की आंख से देखा वोह तुन्दो तेज़ हो गया, जिस ने ख्वाहिश की पैरवी की उस ने जुल्म किया और जिस ने तवील उम्मीदें रखीं उस ने इन्तिहा को न पाया और न ही किसी देखने वाले के लिये निहायत है। (तूले अमल की कोई इन्तिहा नहीं)

किसी दाना ने एक शख्स को वसिय्यत की, कि मैं तुझे ख्वाहिशाते नफ्सानी से मुकाबला करने का हुक्म देता हूं क्यूंकि ख्वाहिशात बुराइयों की कुंजी और नेकियों की दुश्मन हैं, तेरी हर ख्वाहिश तेरी दुश्मन है और सब से बुरी ख्वाहिश येह है जो गुनाहों को तेरे सामने बतौरे नेकी पेश करती है। जब येह दुश्मन तुझ से झगड़ा करेंगे तो तू इन के पंजे से बच, सुस्ती से मुबर्रा होशयारी, झूट से मुबर्रा सच, तसाहिल से पाक मश्गूलिय्यत, जज्अ फ़जअ से पाक सब्र और ऐसी निय्यत जो बेकारी से आलूदा न हो, की मौजूदगी ही में नजात पा सकेगा।

ऐ रब्बे जुल जलाल ! हमारी अक्ल को हमारी ख्वाहिशात पर गालिब फ़रमा दे, हमें नुक्सान और सबुक सारी से बचा, हमें आख़िरत की बजाए दुनिया में मश्गूल न कर और हमें अपना ज़िक्र करने वाला और अपनी नेमतों का शुक्र करने वाला बना दे, सय्यिदुना व मौलाना मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की नबुव्वत के तुफैल हमें सआदते दारैन अता फ़रमा ! वाल हम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन

फ़रमाने नबवी है कि तुम्हारा दीन बेहतरीन परहेज़गारी है।और फ़रमाया : परहेज़गारी आ’माल की सरवरी है। और फ़रमाया : परहेज़गार बन, सब लोगों से ज़ियादा इबादत गुज़ार बन जाएगा और कनाअत कर कि सब लोगों से ज़ियादा शुक्र गुज़ार बन जाएगा।

फ़रमाने नबवी है कि जिस में परहेज़गारी मौजूद नहीं (जो उसे अल्लाह तआला की ना फ़रमानी से रोके तो) उस के किसी अमल की अल्लाह तआला को परवा नहीं है।

हज़रते इब्राहीम बिन अदहम रज़ीअल्लाहो अन्हो का फरमान है कि जोहद के तीन मर्तबे हैं, एक जोह्द फ़र्ज़ है और वोह अल्लाह तआला की हराम कर्दा चीज़ों से रुकना, दूसरा ज़ोह्द सलामती के लिये है और वोह है मुश्तबा चीज़ों को तर्क कर देना, तीसरा जोहद  फ़ज़ीलत के हुसूल के लिये है और वोह है अल्लाह तआला की हलाल कर्दा अश्या को भी छोड़ देना और येह जोहद  का बहुत ही आ’ला मर्तबा है।

इब्ने मुबारक रज़ीअल्लाहो अन्होका कौल है कि जोह्द, जोहद को छुपाने का नाम है, जब ज़ाहिद लोगों से दूर रहे तो उस की जुस्त्जू रखो और जब ज़ाहिद लोगों की तलाश में सरगर्दा हो तो उस से किनार कशी इख्तियार कर लो।

किसी ने क्या ही खूब कहा है :

मैं ने इस राज़ को पा लिया है, इस के सिवा और कुछ नहीं है कि परहेज़गारी दुनिया और दौलते दुनिया को छोड़ देने का नाम है। .जब तू दौलत पा कर इसे तर्क कर दे तो समझ ले कि तेरा तक्वा ऐसे है जैसे एक मुसलमान का तक्वा है।

जाहिद वोह नहीं है जो दुनिया के न होते हुवे इस से किनारा कश हुवा बल्कि ज़ाहिद वोह है कि जिस के पास दुनिया अपनी तमाम तर हश्र सामानियों के साथ आई मगर उस ने इस से मुंह फेर लिया और भाग गया, जैसा कि अबू तमाम कहता है :

जब आदमी ने जोह्द इख़्तियार न किया और दुनिया अपनी तमाम तर रा’नाइयों के साथ जल्वागर हुई तो वोह ज़ाहिद नहीं कहलाएगा।

दुनिया से किनारा कशी

बा’ज़ हुकमा का कौल है कि क्या वज्ह है कि हम दुनिया से किनारा कशी नहीं करते हालांकि इस की उम्र गिनी चुनी, इस की भलाई मा’मूली, इस की सफ़ा में तिलछट, इस की उम्मीदें धोका और फ़रेब हैं, आती है तो दुख ले कर आती है और जब जाती है तो गमों का बोझ छोड़ जाती है,

शाइर कहता है:

दुनिया के तालिब के लिये हलाकत है, इस को बका नहीं और इस की गर्दिश ख्वाबो ख़याल है। इस का साफ़ गदला, इस की खुशी नुक्सान, इस की उम्मीदें पुर फरेब और इस की रोशनियां तारीकी हैं। इस की जवानी बुढ़ापा, इस की राहत बीमारी, इस की लज्जतें शर्मिन्दगी और इस को पाना न पाने के बराबर है। दुन्यादार अगर्चे शद्दाद की बिहिश्त (आराम देह मक़ाम) जितनी ने’मतें पा लें, तब भी इस के मसाइब से नहीं छूटेगा। इस से रू गर्दानी कर, इस की रौनक को बा वकार न समझ क्यूंकि इस की ने’मतें ऐसी हैं जिन में इताब मुज़मिर है। उस दाइमी इन्आमात के घर के लिये अमल कर जिस की ने’मतें कभी न मिटेंगी और जिस में मौत और बुढ़ापे का कोई अन्देशा न होगा।

यहूया बिन मुआज़ रज़ीअल्लाहो अन्हो का एक दानिशमन्दाना कौल है कि दुनिया को इब्रत की निगाह से देख, इसे अपनी पसन्द से छोड़, इस के हुसूल में मजबूरी से कोशिश कर और आख़िरत को तवज्जोह से तलब कर।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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Nafs, nafs ki mukhalfat, nafs hadees, khwaishon ki mukhalfat

 

 

हुकूकुल इबाद – बन्दों के हक

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

हर इन्सान पर यह लाज़िम है कि जब वोह दूसरे से मिले तो उसे सलाम कहे, जब वोह उसे दावत दे तो उस की दा’वत कबूल करे, जब उसे छींक आए तो उस का जवाब दे, जब वोह बीमार हो तो उस की इयादत को जाए, जब वोह मर जाए तो उस के जनाजे में हाज़िर हो, जब वोह कसम दिलाए तो उस की कसम को पूरा करे, जब वोह नसीहत का ख्वास्तगार हो तो उसे नसीहत करे, उस की अमे मौजूदगी में उस की पीठ की हिफ़ाज़त करे या’नी उस की गीबत न करे और उस के लिये वोही कुछ पसन्द करे जो अपने लिये पसन्द करता है और हर वोह चीज़ जिसे वोह अपने लिये ना पसन्द समझता है उस के लिये भी मकरूह समझे ।

येह तमाम अहकाम अहादीस में वारिद हुवे हैं चुनान्चे, हज़रते अनस रज़ीअल्लाहो अन्हो हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से रिवायत करते हैं : आप ने फ़रमाया : तुझ पर मुसलमानों के चार हक़ हैं : इन के नेक की इमदाद कर, बुरे के लिये तलबे मगफिरत कर, इन में से जाने वाले (मरने वाले) के लिये दुआ मांग और इन में से तौबा करने वाले के साथ महब्बत रख ।

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो इस फ़रमाने इलाही : “वोह आपस में रहम करने वाले हैं।”  की तफ्सीर में फ़रमाते हैं कि उन के नेक बुरों के लिये, बुरे नेकों के लिये दुआ करते हैं, जब कोई बदकार उम्मते मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के नेक मर्द को देखता है तो कहता है : ऐ अल्लाह ! तू ने इसे जो भलाई मर्हमत फ़रमाई है इस में बरकत दे, इसे साबित कदम रख और हमें इस की बरकतों से नवाज़, और जब कोई नेक किसी बदकार को देखता है तो कहता है : ऐ अल्लाह इसे हिदायत दे इस की तौबा कबूल फ़रमा और इस की लगजिशों को मुआफ़ फ़रमा दे।

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मुसलमान पर मुसलमान का हक़

मुसलमान पर मुसलमान का येह भी हक़ है कि वोह जो कुछ अपने लिये पसन्द करता है, दूसरे भाई के लिये भी वोही पसन्द करे और जो चीज़ अपने लिये बुरी समझता है दूसरे मुसलमान के लिये भी उसे बुरा समझे।

हज़रते नो’मान बिन बशीर रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं कि मैं ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को येह फ़रमाते हुवे सुना है कि एक दूसरे से महब्बत करने और बाहम मशक्कत करने में मुसलमानों की मिसाल एक जिस्म जैसी है, जब जिस्म का कोई उज्व तक्लीफ़ में होता है तो तमाम जिस्म उस के एहसास और बुख़ार में मुब्तला होता है।

हज़रते अबू मूसा रज़ीअल्लाहो अन्हो, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से रिवायत करते हैं : आप ने फ़रमाया कि मुसलमान, मुसलमान के लिये दीवार की तरह है जिस का एक हिस्सा दूसरे को तक्विय्यत देता है।

मुसलमान के हुकूक में येह भी है कि वोह अपनी ज़बान और किसी फे’ल से दूसरे मुसलमान को दुख न पहुंचाए।

फ़रमाने नबवी है कि मुसलमान वोह है जिस के हाथ और ज़बान से मुसलमान महफूज़ रहें।

एक तवील हदीस है जिस में हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने लोगों को अच्छी आदात अपनाने के मुतअल्लिक हुक्म फ़रमाया है,  अगर तुम येह नहीं कर सकते हो तो लोगों को अपने शर से महफूज रखो, येह तुम्हारे लिये सदक़ा है जो तुम ने अपनी ज़ात के लिये दिया है।

और फ़रमाया : अफ़्ज़ल मुसलमान वोह है जिस के हाथ और ज़बान से मुसलमान महफूज रहें ।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जानते हो मुसलमान कौन है ? सहाबए किराम ने अर्ज किया कि अल्लाह और उस का रसूल बेहतर जानते हैं, आप ने फ़रमाया : मुसलमान वोह है जिस के हाथ और ज़बान से दूसरे मुसलमान महफूज़ रहें । सहाबा ने अर्ज की : मोमिन कौन है ? आप ने फ़रमाया : जिस ने अपनी तरफ़ से मुसलमानों को उन के माल और जानों में बे खौफ़ कर दिया, पूछा गया : मुहाजिर कौन है ? आप ने फ़रमाया : जिस ने बुराइयों को छोड़ दिया और उन से किनारा कश रहा ।

 

एक शख्स ने अर्ज किया : या रसूलल्लाह ! इस्लाम क्या है? आप ने फ़रमाया : यह कि तू दिल से अल्लाह को तस्लीम कर ले और तेरे हाथ और ज़बान से दूसरे मुसलमान महफूज़ रहें।

हज़रते मुजाहिद रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि जहन्नमियों पर ख़ारिश मुसल्लत कर दी जाएगी जो तेज़ी से उन का गोश्त ख़त्म कर के उन की हड्डियां नुमायां कर देगी, तब निदा आएगी : ऐ फुलां ! क्या येह ख़ारिश तुझे तक्लीफ़ देती है ? वोह कहेगा : हां ! आवाज़ आएगी, येह मुसलमान को तकालीफ़ देने का तेरे लिये बदला है।

फ़रमाने नबवी है : मैं ने एक ऐसे शख्स को जन्नत में चलते फिरते देखा है जिस ने मुसलमानों के रास्ते से एक ऐसे दरख्त को काट दिया था जो उन्हें तक्लीफ़ दिया करता था।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो ने अर्ज किया : या रसूलल्लाह ! मुझे ऐसा अमल बतलाइये जिस से मैं नफ्अ हासिल करूं, आप ने फ़रमाया : मुसलमानों के रास्ते से तक्लीफ़ देने वाली चीज़ों को दूर किया करो।

फ़रमाने नबवी है कि जो शख्स मुसलमानों के रास्ते से ऐसी किसी चीज़ को दूर कर देता है जो उन्हें तकलीफ़ देती है तो अल्लाह तआला इस के बदले में उस के लिये नेकी लिख देता है और जिस के लिये अल्लाह तआला नेकी लिख देता है उस के लिये जन्नत को वाजिब कर देता है ।

फ़रमाने नबवी है : किसी मुसलमान के लिये जाइज़ नहीं है कि वोह अपने मुसलमान भाई की तरफ़ ऐसा इशारा करे जिसे वोह ना पसन्द करता है।

फ़रमाने नबवी है : किसी मुसलमान के लिये येह जाइज़ नहीं है कि वोह किसी मुसलमान को ख़ौफ़ज़दा करे ।

नीज़ इरशाद फ़रमाया कि अल्लाह तआला मोमिन की तकलीफ़ को ना पसन्द फ़रमाता है ।

हज़रते रबीअ बिन खैसम रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि लोगों की दो किस्में हैं, अगर तेरा मुखातब मोमिन है तो उसे ईज़ा न दे और अगर जाहिल है तो उस की जहालत में न पड़ो और बन्दे पर मुसलमान का येह भी हक़ है कि वोह हर मुसलमान से तवाज़ोअ से पेश आए और तकब्बुर से पेश न आए क्यूंकि अल्लाह तआला हर इतराने वाले मुतकब्बिर को ना पसन्द फ़रमाता है।

लोगो से नरमी से पेश आना हुकुकुल एबाद की हदीसे मुबारक

फ़रमाने नबवी है : अल्लाह तआला ने मुझे वहय फ़रमाई है कि तुम तवाज़ोअ करो और एक दूसरे पर फ़ख्न व तकब्बुर न करो, अगर कोई दूसरा तुम से तकब्बुर से पेश आए तो बरदाश्त करो।चुनान्चे, अल्लाह तआला ने अपने नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से इरशाद फ़रमाया है :

दर गुज़र को अपनाइये नेकी का हुक्म कीजिये और जाहिलों से मुंह फेर लीजिये। हज़रते इब्ने अबी औफ़ा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम हर मुसलमान से तवाज़ोअ से पेश आते और बेवा और मिस्कीन के साथ चल कर इन की हाजत रवाई करने में आर महसूस न फ़रमाते और न तकब्बुर से काम लेते ।

हुकूकुल इबाद में येह बात भी दाखिल है कि लोगों की बातें एक दूसरे को न बतलाई जाएं और किसी की बात सुन कर किसी दूसरे को न सुनाई जाए।

फ़रमाने नबवी है कि चुगुल खोर जन्नत में नहीं जाएगा।

खलील बिन अहमद रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : जो तेरे सामने दूसरे लोगों की चुगलियां खाता है वोह तेरी चुगलियां दूसरे लोगों के सामने खाता होगा और जो तुझे दूसरे लोगों की बातें बताता है वोह तेरी बातें दूसरे लोगों को बताता होगा।

एक हक़ येह भी है कि गुस्से की हालत में अपने किसी जानने वाले से तीन दिन से ज़ियादा तर्के तअल्लुक न करे।

हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : किसी मुसलमान के लिये येह जाइज़ नहीं है कि वोह अपने भाई से तीन दिन से ज़ियादा कतए तअल्लुक करे, दोनों एक दूसरे के सामने आएं, येह इधर मुंह फेर कर गुज़र जाए और वोह उधर मुंह फेरे चला जाए, उन में से बेहतर वोह है जो सलाम करने में पहल करे ।

फ़रमाने नबवी है : जिस ने किसी मुसलमान भाई को उस की लगज़िश के सबब छोड़ दिया अल्लाह तआला उसे कियामत में छोड़ देगा।

इकरमा से मरवी है : अल्लाह तआला ने यूसुफ़ अलैहहिस्सलाम  से फ़रमाया : भाइयों से तेरे अफ़वो दर गुज़र की वज्ह से मैं ने दो आलम में तेरा ज़िक्र बुलन्द कर दिया है।

हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने अपनी ज़ात की खातिर कभी किसी से इन्तिकाम नहीं लिया, हां जब हुदूदुल्लाह की बात होती थी तो आप अल्लाह की रज़ाजूई की ख़ातिर बदला लिया करते थे।

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : कोई शख्स किसी गलती से दर गुज़र नहीं करता मगर उस के बदले में अल्लाह तआला उस की इज्जत बुलन्द करता है। (या’नी जो शख्स किसी गलती से दर गुज़र करता है, अल्लाह तआला उस की इज्जत बुलन्द करता है)

फ़रमाने नबवी है कि सदके से माल कम नहीं होता, अफवो  दर गुज़र से अल्लाह तआला इन्सान की इज्जत बढ़ाता है और जो शख्स अल्लाह की खुशनूदी के लिये तवाज़ोअ करता है अल्लाह तआला उसे बुलन्द मर्तबा अता फ़रमाता है।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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सूदखोरी ब्याज खाने की मनाही

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

मुमानअते सूदखोरी और ब्याज

सूदखोरी की मुमानअत में काफ़ी आयात नाज़िल हुई हैं और बहुत सी अहादीस भी इस सिलसिले में वारिद हुई हैं, चुनान्चे, बुख़ारी और अबू दावूद की हदीस है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने जिस्म पर नक्श गूदने वाले और नक्श गुदवाने वाले, सूद देने वाले और सूद लेने वाले पर ला’नत की है और कुत्ते की कीमत लेने और बदकारियों से मन्अ फ़रमाया और तस्वीर बनाने वालों पर ला’नत फ़रमाई है।

अहमद, अबू या’ला, सहीह इब्ने खुर्जामा और सहीह इब्ने हब्बान ने हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है : इन्हों ने फ़रमाया : सूद लेने वाला, सूद देने वाला, इस पर गवाह बनने वाले, इस की तहरीर करने वाले पर जब कि उसे मालूम हो कि येह तहरीर सूद के लिये हो रही है, जिस्म पर फूल गूदने वाले, फूल गुदवाने वाले पर जो अपनी खूब सूरती के लिये ऐसा करता है, सदके से इन्कार करने वाला और बदवी जो हिजरत के बाद फिर मुर्तद्द हुवा, सब मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की ज़बाने मुबारक से मलऊन करार पाए हैं।

 

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सूद खोर जन्नत में नहीं जायेगा

हाकिम ने ब सनदे सहीह रिवायत की है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि चार शख्स ऐसे हैं जिन के लिये अल्लाह तआला ने लाज़िम कर दिया है कि उन्हें जन्नत में दाखिल नहीं करेगा और न ही वो उस की ने’मतों से लुत्फ़ अन्दोज़ होंगे, शराबी, सूदखोर, नाहक यतीम का माल खाने वाला और वालिदैन का ना फ़रमान ।

हाकिम की एक रिवायत है जिसे सहीह करार दिया गया है कि सूद के तिहत्तर दरवाजे हैं जिन में से सब से कमतर येह है कि जैसे कोई शख्स अपनी मां से निकाह कर ले ।

 

बज्जाज़ ने ब सनदे सहीह रिवायत की है कि सूद के कुछ ऊपर सत्तर अक्साम हैं, इसी तरह शिर्क भी है। बैहक़ी की रिवायत है कि सूद के सत्तर दरवाज़े हैं और सब से अदना येह है कि इन्सान अपनी मां से बदकारी करे ।

तबरानी कबीर में हज़रते अब्दुल्लाह बिन सलाम से रिवायत की है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : वोह दिरहम जो इन्सान सूद में लेता है, अल्लाह के नज़दीक हालते इस्लाम में तेंतीस मरतबा ज़िना करने से भी बदतर है।

इस रिवायत की सनद में इन्किताअ है और इब्ने अबिदन्या और बगवी ने इसे मौकूफैन न हज़रते अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत किया है और येही सहीह है और येह हदीसे मौकूफ़ भी हदीसे मरफूअ के हुक्म में है क्यूंकि एक सूदी दिरहम का मजकूरए बाला ता’दाद में ज़िना करने से भी अल्लाह तआला के हां बहुत बड़ा गुनाह होना, वहय के बिगैर मा’लूम होना ना मुमकिन है, गोया कि उन्हों ने येह हदीस हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से सुनी होगी।

सूद खाना ब्याज खाना सबसे बुरा गुनाह है

हज़रते अब्दुल्लाह रज़ीअल्लाहो अन्हो का कहना है, सूद के बहत्तर गुनाह हैं, इस का सब से अदना गुनाह हालते इस्लाम में किसी का अपनी मां से ज़िना करने के बराबर है और एक सूदी दिरहम कुछ ऊपर तीस मरतबा ज़िना करने से बदतर है और उन्हों ने येह भी कहा कि अल्लाह तआला कियामत के दिन हर नेक और बद को खड़े होने की इजाजत देगा मगर सूदखोर खड़ा नहीं होगा लेकिन जैसे वोह शख्स खड़ा होता है जिसे शैतान ने आसेब से बावला कर दिया हो।

अहमद ने ब सनदे जय्यद हज़रते का’ब अहबार रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि मैं तेंतीस मरतबा ज़िना करने को एक दिरहम सूद खाने से अच्छा समझता हूं, जब मैं सूद कमाऊं तो अल्लाह ही जानता है कि मैं क्या खा रहा हूं ।

अहमद ने ब सनदे सहीह और तबरानी ने येह हदीस नक्ल की है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : इन्सान का जान बूझ कर एक दिरहम सूद खाना तेंतीस मरतबा जिना करने से बदतर है।

इब्ने अबिदुन्या और बैहक़ी की रिवायत है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने सहाबए किराम को खुतबा दिया और सूद और इस की बुराइयां बयान करते हुवे फ़रमाया कि ऐसा एक दिरहम जिसे आदमी ब तौरे सूद लेता है, अल्लाह तआला के यहां इन्सान के तेंतीस मरतबा ज़िना करने से ज़ियादा बुरा है और सब से बड़ा सूद मुसलमान के माल में से कुछ लेना है।

तबरानी ने सगीर और औसत में रिवायत की है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि जिस शख्स ने नाजाइज़ तौर पर किसी ज़ालिम की इआनत की ताकि वोह किसी का माल दबा ले तो ऐसा शख्स अल्लाह और उस के रसूल की ज़िम्मेदारी से बरी है और जिस ने एक दिरहम सूद खाया वोह तेंतीस मरतबा जिना करने के बराबर है और जिस का गोश्त माले हराम खा कर बढ़ा, जहन्नम ऐसे शख्स का ज़ियादा मुस्तहिक़ है।

बैहक़ी की रिवायत है कि सूद के कुछ ऊपर सत्तर दरवाज़े हैं, इस का सब से कमतर गुनाह हालते इस्लाम में मां से ज़िना करने के बराबर है और सूद का एक दिरहम तिरपन मरतबा ज़िना करने से ज़ियादा बुरा है।

तबरानी ने औसत में अम्र बिन राशिद रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि सूद के बहत्तर दरवाजे हैं, इन में से अदना दरवाज़ा (गुनाह) आदमी का अपनी मां से जिना करने के बराबर है और सब से बुरा सूद येह है कि इन्सान अपने भाई के माल की तरफ़ हाथ लम्बा करे (सूद में मुसलमान भाई का माल ले)।

इब्ने माजा और बैहक़ी ने अबी मा’शर से, उन्हों ने अबू सईद मक़बुरी से और उन्हों ने हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : सूद में सत्तर गुनाह हैं, सब से अदना गुनाह येह है कि जैसे आदमी अपनी मां से निकाह कर ले ।

 

जिना और सूद का आम हो जाना अजाबे इलाही को दावत देता है।

हाकिम ने सनदे सहीह के साथ हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फलों को बड़ा होने से पहले बेचने से मन्अ फ़रमाया है और फ़रमाया : जब किसी शहर में ज़िना और सूद आम हो जाए तो उन्हों ने गोया खुद ही अल्लाह के अज़ाब को दा’वत दे दी है।

अबू या’ला ने सनदे जय्यद के साथ हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है : उन्हों ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की हदीस बयान करते हुवे फ़रमाया कि किसी कौम का ज़िना और सूदखोरी ज़ाहिर नहीं होते मगर वोह लोग अज़ाबे इलाही को अपने लिये हलाल कर लेते हैं। (या’नी जो कौम ज़िना और सूदखोरी में मुब्तला है उस ने गोया अज़ाबे इलाही को दावत दी है)।

अहमद ने येह हदीस नक्ल की है : ऐसी कोई कौम नहीं जिस में सूद चल निकले मगर वोह कहतसाली में मुब्तला की जाती है और जिस कौम में ज़िना की कसरत हो जाती है, अल्लाह तआला उसे ख़ौफ़ और कहते आम में मुब्तला कर देता है चाहे बारिश ही क्यूं न हो जाए।

अहमद ने एक तवील हदीस में, इब्ने माजा ने मुख़्तसरन और अस्बहानी ने इस हदीस को बयान किया है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि जब मुझे मेराज में सैर कराई गई और हम सातवें आस्मान पर पहुंचे तो मैं ने ऊपर देखा तो मुझे बिजली की कड़क और गरज चमक नज़र आई, फिर मैं ने ऐसी कौम को देखा जिन के पेट मकानों की तरह थे और बाहर से उन के पेटों में चलते फिरते सांप नज़र आ रहे थे, मैं ने पूछा : जिब्रील ! यह कौन हैं ? उन्हों ने जवाब दिया कि येह सूदखोर हैं।

अस्बहानी ने हज़रते अबू सईद खुदरी रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि जब मुझे आस्मानों की तरफ़ मे’राज कराई गई तो मैं ने आस्माने दुन्या में ऐसे आदमियों को देखा जिन के पेट बड़े बड़े घड़ों जैसे थे, उन के पेट झुके हुवे थे और वोह फ़िरऔन के पैरूकारो के रास्तों में पड़े हुवे थे और वोह हर सुब्हो शाम जहन्नम के किनारे खड़े हो कर कहते : ऐ अल्लाह ! कियामत कभी काइम न करना, मैं ने पूछा : जिब्रील ! येह कौन हैं ? जिब्रील ने अर्ज की, कि येह आप की उम्मत के सूदखोर हैं। वोह नहीं खड़े होंगे मगर जैसे वोह शख्स खड़ा होता है जिसे शैतान आसेब से बावला कर देता है। अस्बहानी का कौल है कि आले फ़िरऔन जो सुब्हो शाम आग पर पेश किये जाते हैं, उन्हें रौंदते हुवे गुज़रेंगे।

तबरानी ने सनदे सहीह से रिवायत नक्ल की है, आप ने फ़रमाया : क़ियामत से पहले ज़िना, सूद और शराब आम हो जाएगा ।

तबरानी ने कासिम बिन अब्दुल्लाह वर्राक रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि मैं ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन अबी औफ़ा रज़ीअल्लाहो अन्हो को सियारफ़ा (जहां सूद वगैरा का कारोबार होता है) के बाज़ार में देखा, वोह अहले बाज़ार से कह रहे थे ऐ अहले सियारफ़ा ! तुम्हें खुश खबरी हो ! उन्हों ने कहा : अल्लाह आप को जन्नत की खुश खबरी दे, ऐ अबू मुहम्मद ! आप हमें किस चीज़ की खुश खबरी दे रहे हैं ? आप ने कहा : मैं ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को सियारफ़ा के लिये फ़रमाते सुना है कि उन्हें आग की बिशारत दे दो।

तबरानी की हदीस है कि अपने आप को उन गुनाहों से बचा जिन की मगफिरत नहीं होती खियानत ऐसा ही एक गुनाह है, जो जिस चीज़ में खियानत करता है क़ियामत के दिन उसे उसी के साथ लाया जाएगा, सूदखोरी, जो सूद खाता है वोह कियामत के दिन पागल आसेब ज़दा उठाया जाएगा, फिर आप ने येह आयत पढ़ी :

जो सूद खाते हैं वोह उस शख्स की तरह खड़े होंगे जिसे शैतान आसेब से बावला कर देता है।

अस्बहानी की हदीस है कि क़ियामत के दिन सूदखोर पागल की तरह अपने दोनों पहलू खींचता हुवा आएगा, फिर आप ने येह आयत पढ़ी :

“वोह उस शख्स की तरह खड़े होंगे जिसे शैतान आसेब से पागल कर देता है।”

इब्ने माजा और हाकिम की हदीस है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि जो भी सूद से अपना माल बढ़ा लेता है, आखिरे कार वोह तंगदस्ती का शिकार बनता है।

हाकिम ने ब सनदे सहीह येह हदीस नक्ल की है कि सूद ख़्वाह कितना ही बढ़ जाए आखिरे कार किल्लत पर मुन्तज होता है।

अबू दावूद और इब्ने माजा ने हसन से, उन्हों ने हज़रते अबू हुरैरा से रिवायत की है (मुहद्दिसीन ने हज़रते अबू हुरैरा से हसन के समाए हदीस में इख्तिलाफ़ किया है, जमहूर का क़ौल है कि समाअ साबित नहीं है) हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : लोगों पर ऐसा ज़माना आएगा कि उन में कोई भी ऐसा न होगा जो सूद न खाता हो और जो सूद नहीं खाएगा सूद का गुबार उस तक ज़रूर पहुंच जाएगा ।

अब्दुल्लाह बिन अहमद ने जवाइदुल मुस्नद में येह हदीस नक्ल की है कि क़सम है उस जात की जिस के दस्ते कुदरत में मेरी जान है, अलबत्ता मेरी उम्मत के लोग बुराइयों में रात गुज़ारेंगे, ऐशो इशरत करेंगे और लह्वो लड़ब में मश्गूल होंगे, जब सुब्ह होगी तो अल्लाह की हराम कर्दा चीज़ों को हलाल करने, औरतों से गाना बजाना सुनने, शराब पीने, सूद खाने और रेशम पहनने के सबब सुवर और बन्दर बन जाएंगे।अहमद और बैहक़ी की हदीस है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : इस उम्मत का एक गुरौह खाने पीने और लह्वो लइब में रात गुज़ारेगा, जब सुब्ह करेंगे तो उन की सूरतें मस्ख हो चुकी होंगी, वोह बन्दर और खिन्ज़ीर होंगे और अलबत्ता वोह जमीन में धंसेंगे और उन पर पथ्थर बरसाए जाएंगे यहां तक कि लोग कहेंगे, फुलां घर और फुलां लोग जमीन में धंस गए हैं और बिला शुबा उन पर पथ्थरों की बारिश की जाएगी जैसे कौमे लूत पर की गई थी, उन के कबाइल पर उन के घरों पर येह इब्तिला उन के शराब पीने, रेशमी लिबास पहनने, गाने बजाने की महफ़िलें मुन्अक़िद करने, सूद खाने और क़तए रेहूमी के सबब होगा और एक ख़स्लत को बयान करना रावी भूल गए।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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हराम खाने की मज़म्मत

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 फ़रमाने इलाही है : और तुम एक दूसरे का माल नाहक़ न खाओ।

इस आयत के मा’ना में इख्तिलाफ़ है लिहाज़ा इसे सूद, जूआ, गसब, चोरी, खियानत, झूटी गवाही और झूटी कसम खा कर माल हथयाने के मा’नों में लिया गया है, हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : इस से मुराद वोह चीजें हैं जो इन्सान नाहक हासिल कर लेता है। कहते हैं कि जब येह आयत नाज़िल हुई तो लोगों ने एक दूसरे के यहां कुछ खाना पीना भी ममनूअ समझ लिया, तब सूरए नूर की येह आयत नाज़िल हुई।

“तुम पर कोई मुजाअका नहीं है कि तुम अपने घरों से और अपने वालिदैन के घरों से खाओ।”

और बा’ज़ ने कहा है कि इस से मुराद गलत बैअ है और हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो के इस कौल से कि “येह आयत मोहकमात में से है जिस का हुक्म क़ियामत तक बाक़ी रहेगा।” इस से मुराद है कि नाहक तरीके से खाना हर उस चीज़ को शामिल है जो गलत तरीके से हासिल की जाए, चाहे वोह जुल्म कर के ली जाए जैसे गसब, खियानत और चोरी वगैरा, या लह्वो लइब से हासिल की जाए जैसे जूआ या खेल कूद के जरीए हासिल करें, या मक्र और धोके से हासिल की जाए जैसे नाजाइज़ तौर पर ख़रीदो फरोख्त की जाए और मेरे इस क़ौल की ताईद में बाज़ उलमा का कौल भी है कि येह आयत इन्सान के अपने माल को भी नाज़ाइज़ तरीको से खर्च करने की मुमानअत पर दलालत करती है और दूसरों के माल को मजकूरए बाला सूरतों में से किसी सूरत में हासिल करने की भी मुमानअत करती है।

 

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और फ़रमाने इलाही : “मगर येह कि तिजारत हो” इस में इस्तिस्नाए मुन्कतेअ है या’नी तिजारत के जरीए तुम माल ले सकते हो क्यूंकि तिजारत उस जिन्स में से नहीं है जिस की मुमानअत कर दी गई है, ख्वाह इस को किसी मा’ना पर महमूल किया जाए और इस की तावील सबब से करना ताकि इस्तिस्ना मुत्तसिल बन जाए, दुरुस्त नहीं है अगर्चे तिजारत तबादले के अक़्द के साथ खास है मगर दूसरे दलाइल की रोशनी में इस का इतलाक कर्ज व हिबा पर भी होता है और फ़रमाने इलाही : ” से मुराद येह है कि खुशदिली और जाइज़ तरीक़ पर हो, खाने का खुसूसी ज़िक्र करना कैद लगाने के लिये नहीं है बल्कि सिर्फ इस लिये है कि आम तौर पर खाना ही मक्सूद होता है, येह बिल्कुल इस तरह है जैसे:

इस सिलसिले के दलाइल कसीर और अहादीसे मुक़द्दसा में इस के मुतअल्लिक़ वारिद शुदा तम्बीहात बेशुमार हैं जिन में से हम बा’ज़ का जिक्र किये देते हैं।

हराम माल खाने से बचने की हदीस मुबारक

मुस्लिम वगैरा में हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : अल्लाह तआला पाक है, वोह पाक चीज़ों को क़बूल फ़रमाता है और उस ने मोमिनों को वोही हुक्म दिया है जो उस ने रसूलों को दिया है, चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है :

ऐ रसूलो ! पाकीज़ा चीज़ों में से खाओ और अच्छे अमल करो। और दूसरी आयत में फ़रमाया :

ऐ मोमिनो हमारे दिये हुवे रिज्क में से पाकीज़ा चीजें खाओ।

 

हराम खाने वाले की दुआ कुबूल नहीं होती

फिर आप ने ऐसे आदमी का तजकिरा फ़रमाया जो तवील सफ़र के बाद बिखरे बालों और गुबार आलूद चेहरे के साथ आता है और आस्मान की तरफ़ हाथ उठा कर ऐ अल्लाह ! ऐ अल्लाह ! कहता है हालांकि उस का खाना पीना, लिबास और गिजा सब हराम होता है, इस सूरत में उस की दुआ रब्बे जलील कैसे क़बूल फ़रमाएगा।

तबरानी ने अस्नादे हसन से येह रिवायत की है कि रिज्के हलाल तलाश करना हर मुसलमान पर वाजिब है ।

तबरानी और बैहक़ी की रिवायत है कि फ़राइज़े नमाज़ के बा’द रिज्के हलाल तलब करना भी फ़र्ज़ है।

तिर्मिज़ी और हाकिम की हदीस है कि जिस ने हलाल खाया या सुन्नत के मुताबिक़ अमल किया और लोग उस के शर से महफूज़ रहे, वोह जन्नत में जाएगा। सहाबए किराम ने अर्ज़ की : या रसूलल्लाह ! येह चीज़ तो आज आप की उम्मत में बहुत है, आप ने फ़रमाया : मेरे बाद कुछ वक्त ऐसा ही होगा।

अहमद वगैरा ने अस्नादे हसन के साथ रिवायत की है : जब तेरे अन्दर चार चीजें हों तो दुनिया की कोताहियां तुझे नुक्सान नहीं देंगी, अमानत की निगहबानी, रास्त गोई, हुस्ने खुल्क और रिज्के हलाल।

तबरानी की हदीस है : उस के लिये खुश खबरी है जिस का कसब उम्दा, बातिन सहीह, ज़ाहिर बा इज्जत और लोग उस के शर से महफूज़ हों, उसे खुश खबरी हो जिस ने इल्म के साथ अमल किया, जाइद माल राहे खुदा में खर्च किया और गैर ज़रूरी बातें करने से इजतिनाब किया।

हलाल खाने से दुआ कुबूल होगी

तबरानी में है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : ऐ सा’द ! हलाल का खाना खा, तेरी दुआएं कबूल होंगी, कसम है उस ज़ात की जिस के कब्जए कुदरत में मुहम्मद की जान है जब आदमी अपने पेट में हराम का लुक्मा डालता है तो इस की वज्ह से उस की चालीस दिन की इबादत कबूल नहीं होती, जो बन्दा हराम से अपना गोश्त बढ़ाता है। (जहन्नम की) आग उस के बहुत करीब होती है।

मुस्नदे बज्जाज़ में ब सनदे मुन्कर रिवायत है कि उस का दीन नहीं जिस में अमानत नहीं और न उस शख्स की नमाज़ और ज़कात है जिस ने हराम का माल पाया और इस में से कमीस पहन ली, उस की नमाज़ क़बूल नहीं होगी, जब तक कि वोह इसे उतार नहीं देता क्यूंकि शाने इलाही इस चीज़ से बुलन्दो बाला है कि वोह ऐसे शख्स की नमाज़ कबूल करे या कोई और अमल कबूल करे कि जिस के जिस्म पर हराम का लिबास हो ।

अहमद ने हज़रते इब्ने उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है : उन्हों ने फ़रमाया : जिस शख्स ने दस दिरहम का कपड़ा खरीदा और उस में एक दिरहम हराम का था, जब तक वोह कपड़ा उस के जिस्म पर रहता है, अल्लाह तआला उस की नमाज़ क़बूल नहीं फ़रमाता, फिर उन्हों ने अपने दोनों कानों में दो उंगलियां दाखिल कर के फ़रमाया कि अगर मैं ने नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को येह फ़रमाते हुवे न सुना हो तो येह दोनों बहरे हो जाएं ।

बैहक़ी की रिवायत है कि जिस ने चोरी का माल खरीदा हालांकि वोह जानता है कि येह चोरी का माल है तो वोह भी उस की रुस्वाई और गुनाह में शरीक होगा।

हाफ़िज़ मुन्ज़िरी ने काबिले हसन अस्नाद या मौकूफ़ सनद के साथ और अहमद ने ब सनदे जय्यद येह हदीस नक्ल की है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : कसम है उस की जिस के दस्ते कुदरत में मेरी जान है कि तुम में से कोई अपनी रस्सी ले कर पहाड़ की तरफ़ निकल जाए और लकड़ियां इकठ्ठी कर के पीठ पर लाद कर ले आए और उन्हें बेच कर खाए वोह इस से बेहतर है कि वोह अपने मुंह में हराम का लुक्मा डाले ।

इब्ने खुजमा और इब्ने हब्बान ने अपनी सहीह में और हाकिम ने येह हदीस नक्ल की है कि जिस ने हराम का माल जम्अ किया, फिर इसे सदक़ा कर दिया तो उसे कोई अजर  नहीं मिलेगा और उस का गुनाह उसी पर रहेगा।।

तबरानी की हदीस है कि जिस ने माले हराम हासिल कर के उस से किसी को आज़ाद किया और सिलए रेहमी की, येह उस के लिये सवाब की बजाए अज़ाब और गुनाह का मूजिब होगा।

अहमद वगैरा ने येह हदीस नक्ल की है जिस की सनद को बा’ज़ मुहद्दिसीन ने हसन कहा है कि अल्लाह तआला ने जैसे तुम्हारे दरमियान रिज्क तक्सीम कर दिया है ऐसे ही आदात तक्सीम कर दी हैं।

अल्लाह तआला हर इन्सान को, ख्वाह वोह दुनिया को अच्छा समझता हो या बुरा, दुनिया देता है और दीन उसे देता है जो दीन को पसन्द करता है और अल्लाह तआला जिसे दीन देता है उसे महबूब रखता है, ब खुदा ! बन्दा उस वक्त तक कामिल मुसलमान नहीं बनता जब तक कि उस की ज़बान और दिल इस्लाम न लाए और उस की ज़बान और दिल से लोग सलामत न रहें

और उस वक्त तक बन्दा मोमिन नहीं बनता जब तक उस के हमसाए उस के कीने और जुल्म से महफूज़ न हों और बन्दा हराम की कमाई से जो कुछ हासिल करता है उस में से उस का सदक़ा कबूल नहीं होता और न ही राहे खुदा में उस को देने से उस के माल में बरकत होती है और जो माल वोह अपने पीछे छोड़ जाता है वोह उस के लिये जहन्नम का सामान होता है, बेशक अल्लाह तआला बुराई से बुराइयों को नहीं मिटाता बल्कि नेकियों से बुराइयों को मिटाता है, बेशक ख़बीस चीज़ से ख़बीस चीज़ नहीं मिटती ।

तिर्मिज़ी ने हसन, सहीह और गरीब क़रार दे कर येह हदीस नक्ल की है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से उन चीजों के बारे में पूछा गया जिन की वज्ह से अक्सर लोग जहन्नम में जाएंगे, आप ने फ़रमाया : मुंह और शर्मगाह, और उन चीज़ों के मुतअल्लिक़ सुवाल किया गया जिन के सबब अक्सर लोग जन्नत में जाएंगे, आप ने फ़रमाया : खौफे खुदा और हुस्ने खुल्क।

हराम माल खाने माल हड़पने का क़यामत में अज़ाब

तिर्मिज़ी ने ब सनदे सहीह येह हदीस रिवायत की है कि बन्दा उस वक्त तक कियामत के दिन नहीं हिलेगा जब तक कि उस से चार चीजों का सुवाल नहीं हो जाएगा, उस ने अपनी उम्र कैसे पूरी की, अपनी जवानी किन कामों में सर्फ की, माल कैसे हासिल किया और कहां खर्च किया और अपने इल्म पर कितना अमल किया

बैहक़ी की हदीस है कि दुनिया सर सब्ज़ और शीरीं है, जिस शख्स ने इस में हलाल तरीके से माल कमाया और इसे सहीह तौर पर खर्च किया, अल्लाह तआला उसे इस का सवाब देगा

और उसे जन्नत में दाखिल फ़रमाएगा और जिस ने इस में नाजाइज़ तरीकों से माल कमाया और नाजाइज़ तरीकों से इसे खर्च किया, अल्लाह तआला उसे जहन्नम में भेजेगा और उन बहुत से लोगों के लिये जो माल की महब्बत में अल्लाह और उस के रसूल को भूल जाते हैं, कियामत के दिन जहन्नम होगा। अल्लाह तआला फ़रमाता है :

जब वोह बुझने लगेगी हम उस की सोज़िश और ज़ियादा कर देंगे। इब्ने हब्बान ने अपनी सहीह में येह हदीस नक्ल की है कि जो गोश्त और खून हराम के माल से पैदा हुवा उस पर जन्नत हराम है और जहन्नम उस की ज़ियादा मुस्तहिक़ है।

तिर्मिज़ी की रिवायत है कि जो गोश्त माले हराम से परवरिश पाता है, आग उस के लिये ज़ियादा मुनासिब है। एक रिवायत में है कि जो गोश्त नाजाइज़ तरीकों से हासिल कर्दा माल से परवरिश पाए, उस के लिये आग ज़ियादा मुनासिब है।

एक और रिवायत में ब सनदे हसन नक्ल किया गया है कि वोह जिस्म जन्नत में नहीं जाएगा जिस ने हराम माल से गिजा हासिल की हो ।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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यतीम से मोहब्बत करने और परवरिश करने का सवाब

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

बुख़ारी शरीफ़ की हदीस है कि मैं और यतीम की कफालत करने वाला जन्नत में ऐसे होंगे और फिर आप ने शहादत की उंगली और दरमियानी उंगली को थोड़ा सा खोल कर उन की तरफ़ इशारा फ़रमाया ।

मुस्लिम शरीफ़ की हदीस है कि हुजूर ने फ़रमाया : मैं और यतीम की परवरिश करने वाला, चाहे वो यतीम उस का अज़ीज़ हो या कोई गैर, जन्नत में ऐसे होंगे जैसे यह दो उंगलियां, और मालिक ने अंगुश्ते शहादत और दरमियानी उंगली की तरफ़ इशारा किया।

यतीम की परवरिश करने का अज़ीम सवाब

बज्जाज़ की हदीस है कि जिस ने किसी यतीम की परवरिश की, चाहे वो यतीम उस का अज़ीज़ ही क्यूं न हो, पस वोह और मैं जन्नत में ऐसे होंगे जैसे येह दोनों उंगलियां मिली हुई हैं और जिस ने तीन बेटियों की परवरिश की वो जन्नत में होगा और उसे राहे खुदा में रोज़ादारों और नमाज़ी मुजाहिद के बराबर सवाब मिलेगा ।

इब्ने माजा शरीफ़ की हदीस है कि जिस शख्स ने तीन यतीमों की परवरिश की ज़िम्मेदारी उठा ली वो उस शख्स की तरह सवाब पाएगा, जो रात को इबादत करता है और दिन को रोज़ा रखता है और राहे खुदा में जिहाद करने के लिये तल्वार ले कर निकल खड़ा होता है, मैं और वो जन्नत में ऐसे दो भाई होंगे जैसे येह दो उंगलियां मिली हुई हैं, फिर आप ने अंगुश्ते शहादत और दरमियानी उंगली को मिलाया।

तिर्मिज़ी ने ब सनदे सहीह रिवायत की है कि जिस शख्स ने किसी मुसलमान यतीम की खाने पीने के मुआमले में कफ़ालत की तो अल्लाह तआला उसे जन्नत में भेजेगा मगर येह कि वोह कोई ऐसा गुनाह करे जो लाइके बख्शिश न हो।

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तिर्मिज़ी की ब सनदे हसन रिवायत है कि जिस किसी ने यतीम की परवरिश की यहां तक कि वोह अपने पैरों पर खड़ा होने के लाइक हो गया तो अल्लाह तआला उस के लिये जन्नत वाजिब कर देता है।

इब्ने माजा की हदीस है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि मुसलमानों का सब से बेहतर घर वोह है जिस में किसी यतीम से अच्छा सुलूक किया जाता है और एक मुसलमान का बुरा घर वोह है जिस में किसी यतीम को दुख और तक्लीफ़ पहुंचाई जाती है ।

अबू या’ला ने ब सनदे हसन रिवायत की है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : मैं पहला शख़्स होऊंगा जिस के लिये जन्नत का दरवाज़ा खुलेगा मगर मैं एक औरत को अपने आगे देख कर पूछूगा कि तुम कौन हो और मुझ से पहले क्यूं जा रही हो? वोह कहेगी : मैं ऐसी औरत हूं जो अपने यतीम बच्चों की परवरिश के लिये घर बैठी रही।

तबरानी की रिवायत है जिस में एक के सिवा सब रावी सिकह हैं और इस के बा वुजूद येह रिवायत मतरूक नहीं है। कसम है उस ज़ात की जिस ने मुझे हक के साथ मबऊस फ़रमाया है, अल्लाह तआला क़ियामत के दिन उस शख्स पर अज़ाब नहीं करेगा जिस ने यतीम पर रहम किया और उस से नर्म गुफ्तगू की और उस की यतीमी और कमज़ोरी पर रहम करते हुवे और अल्लाह तआला के दिये हुवे माल की वज्ह से उसे अपनी पनाह में ले लिया और उस पर ज़ियादती व जुल्म नहीं किया।

इमाम अहमद रज़ीअल्लाहो अन्हो वगैरा की हदीस है कि जिस शख्स ने अल्लाह की खुशनूदी के लिये किसी यतीम के सर पर हाथ फेरा तो उसे हर उस बाल के बदले में जो उस के हाथ के नीचे आया, नेकियां मिलेंगी और जिस शख्स ने किसी यतीम से नेकी की या उस की परवरिश की तो मैं और वोह जन्नत में दो उंगलियों की तरह होंगे।

मुहद्दिसीन की एक जमाअत ने येह हदीस रिवायत की है और हाकिम ने इस को सहीह कहा है कि अल्लाह तआला ने हज़रते याकूब . से फ़रमाया कि तेरी आंखों की बीनाई चले जाने, कमर झुक जाने और यूसुफ़ के साथ भाइयों के ना रवा सुलूक करने की वज्ह येह

है कि उन के यहां एक मरतबा भूका रोजेदार यतीम आया, उन्हों ने घर वालों के तआवुन से बकरी जब्ह कर के खाई मगर यतीम को खाना न खिलाया पस अल्लाह तआला ने उन्हें खबर दी कि मैं अपनी मख्लूक में से उसे सब से ज़ियादा महबूब रखता हूं जो यतीमों और मिस्कीनों से महब्बत रखता है और उन्हें हुक्म दिया कि खाना तय्यार करो और मिस्कीनों, यतीमों को बुला कर खिलाओ चुनान्चे, उन्हों ने ऐसा ही किया।

सहीहैन ने हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि बेवा, यतीम और मिस्कीन की परवरिश करने वाला ऐसा है जैसे राहे खुदा में जिहाद करने वाला होता है। रावी कहता है : गालिबन आप ने येह भी फ़रमाया कि वोह उस शख्स की तरह अज्र पाता है जो रातों को इबादत करता है और दिन में रोजे से रहता है।

इब्ने माजा की हदीस है कि बेवा और मिस्कीन की निगहदाश्त करने वाला मुजाहिद फ़ी सबीलिल्लाह है और उस शख्स की तरह है जो रातों को इबादत करता है और दिन को रोज़ा रखता है ।

यतीम से मोहब्बत करने का इनाम

बुजुर्गाने सलफ़ में से एक से मन्कूल है कि मैं इब्तिदाई ज़िन्दगी में आदी शराबी और बदकार था, मैं ने एक दिन किसी यतीम को देखा तो उस से निहायत अच्छा बरताव किया जैसे बाप अपने बेटे से करता है बल्कि उस से भी उम्दा सुलूक किया। जब मैं सोया तो ख्वाब में देखा कि जहन्नम के फ़रिश्ते इन्तिहाई बे दर्दी से मुझे घसीटते हुवे जहन्नम की तरफ़ ले जा रहे हैं और अचानक वो यतीम दरमियान में आ गया और कहने लगा : इसे छोड़ दो ताकि मैं रब से इस के बारे में गुफ्तगू कर लूं मगर उन्हों ने इन्कार कर दिया, तब निदा आई : इसे छोड़ दो ! हम ने इस यतीम पर रहम करने की वजह से इसे बख़्श दिया है, फिर मैं जाग पड़ा और उसी दिन से मैं यतीमों के साथ इन्तिहाई बा वकार सुलूक करता हूं।

सादात के खाते पीते घरानों में से एक घर में सय्यिद ज़ादियां रहती थीं, खुदा का करना ऐसा हुवा कि उन का बाप फ़ौत हो गया और वो कमसिन जानें यतीम और फ़को फ़ाका का शिकार हो गई यहां तक कि उन्हों ने शर्म की वज्ह से अपना वतन छोड़ दिया, वतन से निकल कर किसी शहर की वीरान मस्जिद में ठहर गईं, उन की मां ने उन्हें वहीं बिठाया और खुद खाना लेने के लिये बाहर निकल गई । चुनान्चे, वोह शहर के एक अमीर शख्स के पास पहुंची जो मुसलमान था और उसे अपनी सारी सर गुज़श्त सुनाई मगर वोह न माना और कहने लगा : तुम ऐसे गवाह लाओ जो तुम्हारे बयान की तस्दीक करें तब मैं तुम्हारी इमदाद करूंगा और वोह औरत येह कह कर वहां से चल दी कि मैं गरीबुल वतन गवाह कहां से लाऊं ? फिर वोह एक मजूसी के पास आई और उसे अपनी कहानी सुनाई, चुनान्चे, उस मजूसी ने उस की बातों को सहीह समझ कर अपने यहां की एक औरत को भेजा कि इसे और इस की बेटियों को मेरे घर पहुंचा दो, उस शख्स ने उन की इज्जत और एहतिराम में कोई दक़ीक़ए फ़िरो-गुज़ाश्त न किया।

जब आधी रात गजर गई तो उस मुसलमान अमीर ने ख्वाब में देखा कि कयामत काइम हो गई है और नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने अपने सरे मुबारक पर लिवाउल हम्द बांधा है और एक अज़ीमुश्शान महल के करीब खड़े हैं उस अमीर ने आगे बढ़ कर पूछा : या रसूलल्लाह ! येह महल किस का है? आप ने फ़रमाया : एक मुसलमान मर्द के लिये है, अमीर ने कहा : मैं खुदा को एक मानने वाला मुसलमान हूं, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने येह सुन कर फ़रमाया कि तुम इस बात के गवाह लाओ कि वाकई तुम मुसलमान हो। वोह बहुत परेशान हुवा तो हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने उसे उस सय्यिदा औरत की बात याद दिलाई जिस से उस ने गवाह मांगे थे। अमीर येह सुनते ही अचानक जाग खड़ा हुवा और उसे इन्तिहाई गम व अन्दोह ने आ घेरा, वोह उस सय्यिदा औरत और उन की बच्चियों की तलाश में निकल खड़ा हुवा, तलाश करते करते उस मजूसी के घर जा पहुंचा और उस से कहा कि येह सय्यिद ज़ादी और इस की बच्चियों को मुझे दे दो मगर मजूसी ने इन्कार कर दिया और बोला : मैं ने इन के सबब अज़ीम बरकतें पाई हैं, अमीर ने कहा : मुझ से हज़ार दीनार ले लो और इन्हें मेरे सिपुर्द कर दो लेकिन उस ने फिर भी इन्कार कर दिया। तब उस अमीर के दिल में उसे तंग करने का ख़याल आया और मजूसी उस की बुरी निय्यत देख कर बोला : जिन्हें तू लेने आया है, मैं उन का तुझ से ज़ियादा हक़दार हूं और तू ने ख्वाब में जो महल देखा है वोह मेरे लिये बनाया गया है, क्या तुझे अपने मुसलमान होने का फ़खर है, ब खुदा ! मैं और मेरे घर वाले उस वक़्त तक नहीं सोए जब तक कि हम सब इस सय्यिदा के हाथ पर इस्लाम नहीं लाए और मैं ने भी तेरी तरह ख्वाब में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की जियारत की है और आप ने मुझ से फ़रमाया : क्या सय्यिद ज़ादी और इस की बेटियां तेरे पास हैं ? मैं ने अर्ज किया : जी हां ! या रसूलल्लाह ! आप ने फ़रमाया : येह महल तेरे और तेरे घर वालों के लिये है। मुसलमान अमीर येह बात सुनते ही वापस लौट गया और अल्लाह तआला बेहतर जानता है कि वोह किस हिरमान व यास के साथ वापस हुवा होगा।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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तकब्बुर व खुदबीनी

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 अल्लाह तआला तुम को और मुझ को दुनिया और आख़िरत में भलाई की तौफ़ीक़ दे, खूब गौर कर लो कि तकब्बुर और खुदबीनी फ़ज़ाइल से दूर कर देते हैं और रज़ाइल के हुसूल का ज़रीआ बनते हैं और तेरी रिजालत (घटियापन)  के लिये इतना ही काफ़ी है कि तकब्बुर तुझे नसीहत सुनने नहीं देता और तू अच्छी आदतों के क़बूल करने से पसो पेश करता है, इसी लिये दानिशमन्दों ने कहा है कि हया और तकब्बुर से इल्म जाएअ हो जाता है, इल्म तकब्बुर के लिये मुसीबत है जैसे कि बुलन्दो बाला इमारतों के लिये सैलाब मुसीबत होता है।

फ़रमाने नबवी है : वो शख्स जन्नत में नहीं जाएगा जिस के दिल में एक दाने के बराबर भी तकब्बुर होगा।

फ़रमाने नबवी है : जो तकब्बुर की वज्ह से अपना कपड़ा घसीटते हुवे चलता है, अल्लाह तआला उस की तरफ़ नज़रे रहमत नहीं फ़रमाएगा।

दानाओं का कौल है कि तकब्बुर और खुदबीनी की वज्ह से मुल्क हमेशा नहीं रहता और अल्लाह तआला ने भी तकब्बुर का फ़साद के साथ बयान फ़रमाया है

चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है : यह आख़िरत का घर हम उन लोगों को अता करते हैं जो ज़मीन में तकब्बुर और फ़साद नहीं चाहते। और फ़रमाने इलाही है :  अलबत्ता मैं उन लोगों से जो ज़मीन में तकब्बुर और फसाद करते हैं अपनी निशानियों को फेर लूंगा।

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एक दाना का कौल है कि जब मैं किसी मुतकब्बिर को देखता हूं तो उस के तकब्बुर का जवाब तकब्बुर से देता हूं।

कहते हैं कि इब्ने अवाना इन्तिहाई मुतकब्बिर आदमी था, उस ने एक मरतबा अपने गुलाम से कहा : मुझे पानी पिलाओ ! गुलाम बोला : हां ! इब्ने अवाना यह सुन कर चिल्लाया कि “हां” तो वो कहे जिसे “ना” कहने का इख़्तियार हो, यह कह कर उसे तमांचे मारे और उस ने मिज़ारे को बुला कर उस से बात चीत की, जब गुफ्तगू से फ़ारिग हुवा तो पानी मंगवा कर कुल्ली की ताकि उस से गुफ्तगू की नजासत दूर हो जाए।

और कहा गया है कि फुलां ने खुद को तकब्बुर की उस सीढ़ी पर पहुंचा दिया है कि अगर वोह गिर गया तो फिर टूट फूट जाएगा।

जाहिज़ का कौल है कि कुरैश में बनू मख्जूम और बनू उमय्या का तकब्बुर मशहूर था जब कि अरब में बनू जा’फ़र बिन किलाब और बनू जुरारा बिन अदी का तकब्बुर मशहूर था और अकासिरा लोगों को अपना गुलाम तसव्वुर करते थे और खुद को उन का मालिक तसव्वुर करते थे।

बनू अब्दुद्दार कबीले के एक आदमी से कहा गया कि तुम ख़लीफ़ा के पास क्यूं नहीं आते ? वोह बोला : मैं इस बात से डरता हूं कि वोह पुल मेरे इज्जतो एहतिराम को नहीं उठा सकेगा।

हज्जाज बिन अरतात से कहा गया : क्या वज्ह है कि तुम जमाअत में शामिल नहीं होते, उस ने जवाब दिया कि मैं दुकानदारों के कुर्ब से घबराता हूं। और येह भी कहा गया है कि वाइल बिन हुज्र हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के यहां आया और आप ने उसे ज़मीन का एक टुकड़ा दिया और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हज़रते अमीरे मुआविय्या रज़ीअल्लाहो अन्हो से फ़रमाया कि इसे वोह ज़मीन दिखा दो और लिख भी दो ! चुनान्चे, हज़रते मुआविय्या रज़ीअल्लाहो अन्हो शदीद गर्मी के आलम में उस के साथ रवाना हुवे, वोह ऊंटनी पर सुवार हो गया और आप पैदल चलने लगे, जब उन्हें गर्मी ने निहायत तंग किया तो उन्हों ने उसे कहा कि मुझे अपने पीछे ऊंटनी पर बिठा लो। उस ने कहा : मैं तुम्हें अपनी ऊंटनी पर नहीं बिठाऊंगा क्यूंकि मैं उन बादशाहों में से नहीं जो लोगों को अपने पीछे ऊंटनियों पर सुवार कर लेते हैं।

आप ने फ़रमाया : मैं नंगे पाउं हूं मुझे अपने जूते ही दे दो, वाइल बोला : ऐ अबू सुफ़्यान के बेटे ! मैं बुख्ल की वज्ह से नहीं बल्कि इस वज्ह से तुम्हें अपने जूते नहीं देता कि मैं इस बात को ……ईरान के सलातीन जो किस्रा से मौसूम थे। अच्छा नहीं समझता कि यमन के बादशाहों को येह खबर मिले कि तुम ने मेरे जूते पहने हैं अलबत्ता तुम्हारी इज्जत अफ़्ज़ाई के लिये इतना कर सकता हूं कि तुम मेरी ऊंटनी के साए में चलते रहो। कहते हैं कि उस ने अमीरे मुआविय्या रज़ीअल्लाहो अन्हो का ज़माना पाया और वोह आप के दौरे हुकूमत में एक दफ़्आ आप के यहां आया तो आप ने उसे अपने साथ तख्त पर बिठाया और गुफ्तगू की।

मसरूर बिन हिन्द ने एक आदमी से कहा कि तुम मुझे पहचानते हो ? वोह बोला कि नहीं ! मसरूर ने कहा मैं मसरूर बिन हिन्द हूं, उस आदमी ने कहा : मैं तुझे नहीं पहचानता, मसरूर चिल्ला कर बोला : खुदा उसे गारत करे जो चांद को नहीं पहचानता ।

ऐसे ही मुतकब्बिरों के बारे में शाइर ने कहा है :

उस बे वुकूफ़ से कह दो कि जो तकब्बुर से अपने सुरीन मटका कर चल रहा है अगर तुझे मालूम हो जाए कि इन में क्या है तो तू हैरान न हो।तकब्बुर दीन का फ़साद, अक्ल की कमी का बाइस और इज्जत की हलाकत है, इस से खबरदार रह।

और कहा गया है कि हर कमीना आदमी तकब्बुर करता है और हर बुलन्द मर्तबा आदमी इन्किसारी को अपनाता है।

फ़रमाने नबवी है कि तीन चीजें हलाक करने वाली हैं : दाइमी बुख़्ल, ख्वाहिशाते नफ्सानी की पैरवी और इन्सान का खुद को बहुत बड़ा समझना ।

हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया :

जब हज़रते नूह के विसाल का वक्त करीब आया तो इन्हों ने अपने बेटों को बुला कर फ़रमाया : मैं तुम्हें दो चीज़ों का हुक्म देता हूं और दो चीज़ों से रोकता हूं मैं तुम्हें शिर्क और तकब्बुर से रोकता हूं और “ला इलाहा इललल्लाह”  पढ़ने का हुक्म देता हूं क्यूंकि ज़मीनो आस्मान और इन में मौजूद सब अश्या एक पलड़े में और येह कलिमा दूसरे पलड़े में रख दिया जाए तब भी येह कलिमा भारी रहेगा और अगर आस्मानो ज़मीन एक दाइरे में रख दिये जाएं और येह कलिमा उन के ऊपर रख दिया जाए तो वोह उन्हें दो टुकड़े कर देगा और तुम्हें “सुबहान अल्लाहे वबे हम देहि” – पढ़ने का हुक्म देता हूं क्यूंकि येह कलिमा हर चीज़ की नमाज़ है और इसी की वज्ह से हर चीज़ को रिज्क दिया जाता है।

हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम  का फरमान है : उस शख्स के लिये खुश खबरी है जिस को अल्लाह तआला ने किताब का इल्म दिया और वोह मुतकब्बिर हो कर नहीं मरा ।

। हज़रते अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ीअल्लाहो अन्हो एक मरतबा लकड़ियों का गठ्ठा सर पर उठाए बाज़ार से गुज़रे, आप से किसी ने कहा कि आप को लकड़ियों का गठ्ठा उठाने की क्या ज़रूरत पेश आ गई है हालांकि आप को इन की ज़रूरत नहीं है, आप ने फ़रमाया : मैं ने चाहा लकड़ियों का गठ्ठा सर पर उठा कर बाज़ार से गुज़रू ताकि मेरे दिल में से तकब्बुर निकल जाए।

तफ्सीरे कुरतुबी में फ़रमाने इलाही :

और वोह औरतें अपने पैर जमीन पर न मारें।

के येह मा’ना हैं कि वोह इज़हारे जीनत और लोगों को अपनी तरफ़ मुतवज्जेह करने के लिये अगर ऐसा करें तो येह उन के लिये हराम है और इसी तरह जो शख्स तकब्बुर के तौर पर अपना जूता ज़मीन पर ज़ोर ज़ोर से मार कर चलता है तो येह भी हराम है क्यूंकि इस में सरासर तकब्बुर ही तकब्बुर है।

 

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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जहन्नम और मीज़ान के बारे में पूरी जानकारी

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 अगर्चे जहन्नम और मीज़ान का ज़िक्र हम पहले भी कर चुके हैं, अब दोबारा इस का ज़िक्र इस लिये कर रहे हैं कि शायद गाफ़िल व बेकार दिल इस दोबारा ज़िक्र से कुछ मजीद इस्तिफ़ादा कर सकें, और बार बार ज़िक्र करने की ज़रूरत इस लिये भी पेश आई कि अल्लाह तआला के फ़रमान की इत्तिबाअ हो जाए क्यूंकि अल्लाह तआला ने भी कुरआने मजीद में मुतअद्दिद मकामात पर इस का ज़िक्र फ़रमाया है और जहन्नम और मीज़ान के अहवाल की हौलनाकियों को बहुत अज़ीम करार दिया है ताकि अक्लमन्दों के दिल इस के ज़िक्र से तम्बीह हासिल करें और जान लें कि दुनिया का कोई दुख दर्द, जहन्नम के मुकाबले में कोई हैसिय्यत नहीं रखता और आख़िरत ही उम्दा और हमेशा रहने वाली है।

अब हम जहन्नम के हालात का बयान करते हैं, अल्लाह तआला हमें अपने लुत्फो अता के तुफैल इस से अमान बख़्शे ।

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हदीस शरीफ़ में है कि जहन्नम सख्त तारीक है जिस में कोई रोशनी और शो’ला नहीं है, इस के सात दरवाज़े हैं हर दरवाजे पर सत्तर हज़ार पहाड़ हैं, हर पहाड़ पर सत्तर हज़ार आग की घाटियां हैं, हर घाटी में सत्तर हज़ार दराजें हैं, हर दराज़ में आग की सत्तर हज़ार वादियां हैं हर वादी में आग के सत्तर हज़ार मकानात हैं, हर मकान में सत्तर हज़ार आग के घर हैं, हर घर में सत्तर हज़ार सांप और सत्तर हज़ार बिच्छू हैं, हर बिच्छू की सत्तर हज़ार दुमें हैं हर दुम में सत्तर हज़ार मोहरे हैं, हर मोहरे में ज़हर के सत्तर हज़ार मटके हैं, जब क़ियामत का दिन होगा, इन पर से पर्दा उठा लिया जाएगा, तब जिन्नो इन्स के दाएं बाएं गुबार का खैमा तन जाएगा, आगे भी गुबार, पीछे भी गुबार और उन के ऊपर भी जहन्नम का धुवां और गुबार होगा, जब वोह इसे देखेंगे तो घुटनों के बल गिर कर पुकारेंगे कि ऐ रब्बे जुल जलाल ! हमें इस से बचा !

मुस्लिम शरीफ़ की रिवायत है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : क़ियामत के दिन जहन्नम को सत्तर हज़ार लगामें डाल कर लाया जाएगा और हर लगाम को सत्तर हज़ार फ़िरिश्ते पकड़ कर खींच रहे होंगे।

हदीस शरीफ़ में है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने जहन्नम के फ़िरिश्तों की अज़मत को बयान करते हुवे, जिन के मुतअल्लिक इरशादे इलाही है : वोह सख्त और इन्तिहाई मज़बूत होंगे। फ़रमाया : हर फ़िरिश्ते के दो कन्धों का दरमियानी फ़ासिला एक साल का सफ़र होगा और उन में इतनी ताकत होगी कि अगर वोह उस हथोड़े से जो उन के हाथों में होगा किसी पहाड़ पर एक ज़र्ब लगाएं तो वोह रेज़ा रेज़ा हो जाए और वोह हर ज़र्ब से सत्तर हज़ार जहन्नमियों को जहन्नम की गहराइयों में गिराएंगे। फ़रमाने इलाही है:

उस पर उन्नीस फ़िरिश्ते मुकर्रर हैं। इस इरशाद से मुराद जहन्नमियों पर मुतअय्यन फ़िरिश्तों के सरदार हैं वरना जहन्नम के फ़िरिश्तों की तादाद अल्लाह तआला के सिवा कोई नहीं जानता।

फ़रमाने इलाही है कि “तेरे रब के लश्करों को उस के सिवा कोई नहीं जानता।”

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से जहन्नम की वुस्अत के मुतअल्लिक़ सुवाल किया गया तो उन्हों ने फ़रमाया : ब खुदा ! मैं नहीं जानता कि जहन्नम कितना वसीअ व अरीज़ है लेकिन हम इतना जानते हैं जहन्नम पर मुतअय्यन फ़िरिश्तों में से हर एक इतना अज़ीम है कि इन के कान की लौ और कन्धे का दरमियानी फ़ासिला सत्तर साल के सफ़र के बराबर है और जहन्नम में पीप और खून की वादियां बहती हैं।

तिर्मिज़ी शरीफ़ की हदीस है कि जहन्नम की दीवारों की चौड़ाई चालीस साल के सफ़र के बराबर है।

मुस्लिम शरीफ़ की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया तुम्हारी येह आग जहन्नम की आग के सत्तरवें हिस्से की गर्मी के बराबर गर्म है, सहाबए किराम ने अर्ज़ की :

या रसूलल्लाह ! सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम येह भी काफ़ी गर्म है। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जहन्नम की आग इस की गर्मी से उन्हत्तर हिस्से ज़ियादा गर्म है।

फरमाने नबवी है कि अगर जहन्नमियों में से कोई जहन्नमी अपनी हथेली दुनिया में निकाल दे तो उस की गर्मी से दुनिया जल जाए और जहन्नम के फ़िरिश्तों में से कोई फ़िरिश्ता दुनिया में ज़ाहिर हो और लोग उसे देख लें तो उस के जिस्म पर गज़बे इलाही के बे इन्तिहा आसार देख कर दुन्या के सब लोग हलाक हो जाएं ।

मुस्लिम वगैरा की हदीस है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम सहाबा के साथ बैठे हुवे थे कि आप ने धमाका सुना, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  ने फ़रमाया : जानते हो यह क्या है ? हम ने अर्ज किया : अल्लाह और उस का रसूल बेहतर जानते हैं। आप ने फ़रमाया : येह उस पथ्थर के जहन्नम की गहराई में गिरने की आवाज़ है जो आज से सत्तर साल पहले जहन्नम में गिराया गया था और वोह अब उस की गहराई तक पहंचा है।

हज़रते उमर बिन ख़त्ताब रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाया करते थे कि जहन्नम को बहुत याद किया करो क्यूंकि इस की गर्मी शदीद, इस की गहराई बहुत बईद और इस के हथोड़े लोहे के हैं।

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाया करते थे कि जहन्नम अपने रहने वालों को इस तरह उचक लेगी जैसे परन्दे दानों को उचक लेते हैं, और आप से इस फ़रमाने इलाही : रज़ीअल्लाहो अन्हो और जब वोह उन्हें दूर से देखेगी तो वोह उस से

गुस्से से भरी हुई आवाज़ सुनेंगे। के मा’ना दरयाफ़्त किये गए कि क्या जहन्नम की भी आंखें हैं ? तो आप ने फ़रमाया : हां ! तुम ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फ़रमान नहीं सुना कि जो अमदन किसी झूटी बात को मेरी तरफ़ मन्सूब करता है वोह अपना ठिकाना जहन्नम की दो आंखों के दरमियान समझे । हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से अर्ज किया गया कि क्या जहन्नम की भी आंखें हैं ? तो आप ने फ़रमाया : क्या तुम ने येह फ़रमाने इलाही नहीं सुना?

इस रिवायत की वोह हदीस भी ताईद करती है जिस में है कि जहन्नम से गर्दन निकलेगी, जिस की दो आंखें देखने के लिये और बोलने के लिये ज़बान होगी, वोह कहेगी कि आज मैं हर उस शख्स पर मुकर्रर की गई हूं जो अल्लाह तआला के साथ शरीक ठहराता था और वोह उन्हें उस परन्दे से भी ज़ियादा तेज़ी से देख लेगी जो तिल पसन्द करता है और जमीन पर उसे ढूंढ लेता है।

मीज़ान जिस में लोगों के आ‘माल तोले जाएंगे

मीज़ान जिस में लोगों के आ’माल तोले जाएंगे, उस के मुतअल्लिक नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि उस का नेकियों का पल्ला नूर का और बुराइयों वाला पल्ला जुल्मत का है।

तिर्मिज़ी की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि जन्नत अर्शे इलाही के दाई और जहन्नम बाई जानिब रखी जाएगी, नेकियों का पलड़ा दाई और बुराइयों का पलड़ा उस के बाई तरफ़ होगा लिहाज़ा नेकियों का पलड़ा जन्नत की मुक़ाबिल सम्त में और बुराइयों का पलड़ा जहन्नम के मुकाबिल होगा।

हज़रते इब्ने अब्बास  फ़रमाते थे कि नेकियां और बुराइयां ऐसे तराजू में तोली जाएंगी, जिस के दो पलड़े और ज़बान होगी। आप फ़रमाया करते थे : जब अल्लाह तआला बन्दों के आ’माल तोलने का इरादा फ़रमाएगा तो उन्हें जिस्मों में तब्दील फ़रमा देगा और फिर कियामत के दिन उन्हें तोला जाएगा।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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नमाज़ कायम करने का अल्लाह का हुक्म

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

चूंकि नमाज़ अफ़्ज़ल तरीन इबादत है लिहाज़ा हम ने किताबुल्लाह की पैरवी करते हुवे इस की तरगीब देने के लिये दूसरी मरतबा इस का ज़िक्र किया है क्यूंकि जो कुछ हम तहरीर कर चुके हैं नमाज़ के फ़ज़ाइल में इस से कहीं ज़ियादा आयात व अहादीस वारिद हुई हैं चुनान्चे, इरशादे नबवी है कि बन्दे के लिये इस से बढ़ कर कोई इन्आम नहीं है कि उसे दो रक्अत नमाज़ पढ़ने की इजाजत दी जाए।

हज़रते मुहम्मद बिन सीरीन रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि अगर मुझे जन्नत और दो रक्अत नमाज़ में से किसी एक को पसन्द करने का कहा जाए तो मैं जन्नत पर दो रक्अत नमाज़ को तरजीह दूंगा क्यूंकि दो रक्अतों में रज़ाए इलाही और जन्नत में मेरी रज़ा है।

फरिश्तों की इबादत और नमाज़

कहा जाता है कि अल्लाह तआला ने जब सात आस्मानों को पैदा फ़रमाया तो इन्हें फ़रिश्तों से ढांप दिया, वोह उस की इबादत से एक लम्हे को गाफ़िल नहीं होते और अल्लाह तआला ने हर आस्मान के फ़रिश्तों के लिये इबादत की एक किस्म मुकर्रर फ़रमा दी है चुनान्चे, एक आस्मान वाले क़ियामत तक के लिये कियाम में हैं, किसी आस्मान वाले रुकूअ में, किसी आस्मान वाले फ़रिश्ते सुजूद में और किसी आस्मान वाले अल्लाह तआला की हैबत और जलाल से अपने बाजू झुकाए हुवे हैं, इल्लिय्यीन और अर्श इलाही के फ़रिश्ते सफ़ बस्ता अर्श इलाही का तवाफ़ करते रहते हैं, अल्लाह तआला की हम्द करते हैं और ज़मीन वालों के लिये मगफिरत तलब करते हैं मगर अल्लाह तआला ने येह तमाम इबादतें एक नमाज़ में जम्अ कर दी हैं ताकि मोमिनों को आस्मानी फ़रिश्तों की हर इबादत का हिस्सा इनायत फ़रमा कर इन्हें इज्जत व तौकीर बख़्शे और इस में तिलावते कुरआने मजीद की इज्जत बख़्शी और मोमिनों से इबादत का शुक्र अदा करने की फ़रमाइश की, नमाज़ का शुक्र इस की मुकम्मल शराइत व हुदूद से अदाएगी है, फ़रमाने इलाही है : जो लोग गैब पर ईमान लाते हैं और नमाज़ काइम करते हैं और हमारे दिये हुवे रिज्क में से खर्च करते हैं।

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नमाज़ कायम करने का फरमान

मजीद इरशाद फ़रमाया :

और तुम नमाज़ काइम करो। इरशादे खुदावन्दी हुवा :

और नमाज़ कायम कीजिये। एक मक़ाम पर इरशाद है :

और जो नमाज़ों को काइम करने वाले हैं। कुरआने मजीद में जहां कहीं भी नमाज़ का ज़िक्र है वहां इसे कायम करने का भी हुक्म है और अल्लाह तआला ने जब मुनाफ़िकों का ज़िक्र किया तो फ़रमाया :

पस हलाकत है उन नमाजियों के लिये जो अपनी नमाज़ से सुस्ती करने वाले हैं। अल्लाह तआला ने इस आयत में मुनाफ़िकों को ‘मुसल्लीन’ कहा है और मोमिनों का ज़िक्र करते वक्त फ़रमाया :

जो नमाज़ों को कायम करने वाले हैं। और यह इस लिये फ़रमाया ताकि मा’लूम हो जाए कि नमाज़ी तो बहुत हैं मगर सहीह मा’ना में नमाज़ कायम करने वाले कम हैं, गाफिल लोग तो बस रवाज के तौर पर अमल करते हैं

और इन्हें उस दिन की याद नहीं आती जिस दिन आ’माल पेश किये जाएंगे, क्या मालूम इन की नमाजें मक्बूल होंगी या मर्दूद ?

नमाज़ का पूरा सवाब

हज़रते नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मरवी है : आप ने फ़रमाया : बेशक तुम में से बा‘ज़ वो हैं जो नमाज़ पढ़ते हैं मगर उन की नमाज़ में से तिहाई या चौथाई या पांचवां या छटा  हिस्सा यहां तक कि आप ने दसवें हिस्से तक गिना और फ़रमाया : सवाब लिखा जाता है । या’नी नमाज़ में से उसी हिस्से का सवाब मिलता है जिस को वो मुकम्मल यक्सूई और तवज्जोह से पढ़ता है। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मरवी है : आप ने फ़रमाया : जिस शख्स ने अल्लाह तआला की तरफ़ मुतवज्जेह हो कर मुकम्मल यक्सूई से दो रक्अत नमाज़ अदा की वो गुनाहों से उस दिन की तरह पाक हो गया जिस दिन कि उस की मां ने उसे जना था।

हक़ीक़त यह है कि बन्दे की नमाज बा अजमत तब होती है जब उस की तमाम तर तवज्जोह अल्लाह तआला की तरफ़ हो और वो नफ़्सानी ख़यालात में मश्गूल हो तो उस की मिसाल ऐसी है जैसे कोई शख्स अपनी गलतियों और लगज़िशों पर मा’ज़िरत करने के लिये बादशाह के दरबार में जा रहा हो और जब वो बादशाह के हुजूर पहुंच गया और बादशाह उसे सामने खड़ा देख कर उस की तरफ़ मुतवज्जेह हुवा तो वोह दाएं बाएं देखने लगे लिहाज़ा बादशाह उस की ज़रूरत पूरी नहीं करेगा और बादशाह उस की तवज्जोह के मुताबिक़ उस पर इनायत करेगा और उस की बात सुनेगा, इसी तरह जब बन्दा नमाज़ में दाखिल हो जाता है और दूसरी बातों के ख़यालात में खो जाता है तो उस की नमाज़ भी क़बूल नहीं होती।

जान लीजिये कि नमाज़ की मिसाल उस दा’वते वलीमा की सी है जिसे बादशाह ने मुअकिद किया हो और उस में किस्म किस्म के खाने तय्यार किये गए हों, खाने और पीने की हर चीज़ की जुदागाना लज्जत और जाइका हो फिर वोह लोगों को खाने की दावत दे, ऐसे ही नमाज़ है, अल्लाह तआला ने लोगों को इस की जानिब बुलाया है और इस में मुख्तलिफ़ अफ्आल और रंगारंग ज़िक्र वदीअत रखे हैं ताकि बन्दे उस की इबादत करें और उबूदिय्यत के रंगारंग मजे लें, इस में अपआल खाने की तरह और अज़कार पीने की अश्या जैसे हैं।

येह भी कहा गया है कि नमाज़ में बारह हज़ार अफ्आल थे, फिर येह बारह हज़ार अफ्आल बारह अफआल में मख्सूस कर दिये गए लिहाज़ा जो शख़्स भी नमाज़ पढ़ना चाहे उसे इन बारह चीज़ों का खयाल रखना चाहिये ताकि उस की नमाज़ कामिल हो जाए, जिन में से छे ख़ारिजे नमाज़ और छे दाखिले नमाज़ हैं

 

नमाज़ को कामिल करने और सही तरीके से पढने के लिए

पहला ‘इल्म’ है क्यूंकि फ़रमाने नबवी है कि वो थोड़ा अमल जिसे इन्सान मुकम्मल इल्म से अदा करे, उस ज़ियादा अमल से बेहतर है जिसे बे खबरी और जहालत में अदा किया जाए।दूसरा ‘वुजू’ है क्यूंकि फ़रमाने नबवी है कि तहारत के बिगैर नमाज़ होती ही नहीं ।तीसरा ‘लिबास’ है, चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है : तुम हर नमाज़ के वक्त जीनत हासिल करो। या’नी हर नमाज़ के वक्त कपड़े पहनो। चौथा ‘वक्त की पाबन्दी’ है, फ़रमाने इलाही है :

बेशक नमाज़ मोमिनों पर वक्ते मुकर्रर पर

फ़र्ज़ है। पांचवां ‘क़िब्ले की जानिब मुंह करना’ है, फ़रमाने इलाही है : पस अपने चेहरे को मस्जिदे हराम की तरफ़ फेर दो और तुम जहां कहीं भी हो अपने चेहरों को मस्जिदे हराम की तरफ़ फेर दो।.छटी ‘निय्यत’ है चुनान्चे, फ़रमाने नबवी है : आ’माल का दारो मदार निय्यतों पर है और हर शख्स के लिये वोही है जिस की उस ने निय्यत की। सातवीं ‘तक्बीरे तहरीमा’ है, फ़रमाने नबवी है इस में दुन्यावी अफ्आल को हराम करने वाली तक्बीरे तहरीमा और हलाल करने वाला सलाम फेरना है। आठवां ‘क़ियाम’ है क्यूंकि फ़रमाने इलाही है: और खड़े हो जाओ अल्लाह के लिये इताअत

करने वाले। या’नी खड़े हो कर नमाज़ पढ़ो। .नवां ‘सूरए फ़ातिहा’ का पढ़ना है क्यूंकि फ़रमाने इलाही है :

पस पढ़ो तुम जो तुम्हें कुरआन से मुयस्सर हो। दसवां ‘रुकूअ’ है, इरशादे इलाही है :

और रुकूअ करने वालों के साथ रुकूअ करो। ग्यारहवां ‘सजदे’ हैं, इरशादे इलाही है: ”

और सजदा करो। .बारहवां “काए’दा” है, इरशादे नबवी है कि जब किसी आदमी ने आखिरी सजदे से सर उठाया और तशहहुद पढ़ने के ब क़दर बैठ गया तो उस की नमाज़ मुकम्मल हो गई।

जब यह बारह चीजें पाई जाएं तो इन के तकमिला के लिये एक और चीज़ की ज़रूरत होती है और वोह है खुलूसे कल्ब ताकि तेरी नमाज़ सहीह मा’नों में अदा हो जाए और फ़रमाने इलाही है: पस अल्लाह की इबादत करो उस के दीन को खालिस करते हुवे। हम ने सब से पहले इल्म का तजकिरा किया था, इल्म की तीन किस्में हैं : एक येह कि वोह फ़राइज़ और सुनन को अलाहिदा अलाहिदा समझता हो, वुजू में जो फ़राइज़ और सुनन हैं, इन्हें जानता हो क्यूंकि येह नमाज़ के मुकम्मल करने का एक वासिता हैं और शैतान के मक्रों को जानता हो और इन के दफ़इय्या के लिये अपनी कोशिश सर्फ करे।

वुजू तीन चीज़ों से मुकम्मल होता है : ‘पहला’ येह कि तू अपने दिल को कीना, हसद और अदावत से पाक करे, ‘दूसरा’ येह कि अपने बदन को गुनाहों से पाक करे, ‘तीसरा’ येह कि पानी को जाएअ न करते हुवे अपने आ जाए वुजू को खूब अच्छी तरह धोए।

लिबास तीन चीजों से मुकम्मल होता है : ‘पहला’ येह कि वोह हलाल की कमाई से हासिल किया गया हो, ‘दूसरा’ येह कि नजासत से पाक हो, ‘तीसरा’ येह कि उस की वज्अ कतअ सुन्नत के मुताबिक़ हो और तकब्बुर व खुदबीनी के लिये उन कपड़ों को न पहना गया हो।

पाबन्दिये वक्त तीन चीज़ों पर मुन्हसिर है : ‘अव्वल’ येह कि तू इतना इल्म रखता हो कि सूरज, चांद सितारों से तू वक्त के तअय्युन में मदद ले सके, ‘दुवुम’ येह कि तेरे कान अज़ान की आवाज़ पर लगे रहें, ‘सिवुम’ येह कि तेरा दिल नमाज़ के वक्त की पाबन्दी के मुतअल्लिक मुतफ़क्किर हो।

इस्तिक्बाले किल्ला तीन चीज़ों से मुकम्मल होता है : ‘पहला’ येह कि तेरा मुंह का’बे की सम्त हो, ‘दूसरा’ येह कि तेरा दिल अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जेह हो और ‘तीसरा’ येह कि तू इन्तिहाई इन्किसारी से हाज़िर हो।

निय्यत तीन चीज़ों से मुकम्मल होती है : ‘पहला’ येह कि तुझे इल्म हो कि तू कौन सी नमाज़ पढ़ रहा है, ‘दूसरे’ येह कि तुझे इस बात का इल्म हो कि तू अल्लाह की बारगाह में खड़ा हो रहा है और वोह तुझे देख रहा है और तू खौफ़ज़दा हो कर हाज़िर हो, ‘तीसरे’ येह कि तुझे मालूम हो कि अल्लाह तआला तेरे दिल के भेदों को जानता है लिहाज़ा तू अपने दिल से दुन्यावी खयालात यक्सर खत्म कर दे।

तक्बीरे तहरीमा भी तीन चीजों से पायए तक्मील तक पहुंचती है : ‘पहला’ येह कि तुम सहीह मा’नों में अल्लाह तआला की बड़ाई बयान करो और सहीह तौर पर अल्लाहुअकबर  कहो, ‘दूसरा’ येह कि अपने दोनों हाथ कानों के बराबर तक उठाओ, ‘तीसरा’ येह कि तक्बीर कहते हुवे तुम्हारा दिल भी हाज़िर हो और इन्तिहाई ता’ जीम से तक्बीर कहो।

कियाम भी तीन चीजों से कामिल होता है : ‘पहला’ येह कि तेरी निगाह सजदा गाह पर हो, ‘दूसरा’ येह कि तेरा दाएं बाएं तवज्जोह न करे।

किराअत भी तीन चीज़ों से मुकम्मल होती है : ‘पहला’ येह कि तू सूरए फ़ातिहा को सहीह तलफ्फुज़ से ठहर ठहर कर गाने की तर्ज से एहतिराज़ करते हुवे पढ़े, ‘दूसरा’ येह कि इसे गौरो फ़िक्र से पढ़े और इस के मआनी में सोच बिचार करे, ‘तीसरा’ येह कि जो कुछ पढ़े उस पर अमल भी करे।

रुकूअ भी तीन अश्या से कामिल होता है : ‘पहला’ येह कि पीठ को बराबर रखो, ऊंचा या नीचा न रखो, ‘दूसरा’ येह कि अपने हाथ घुटनों पर रखो और उंगलियां खुली हुई हों, ‘तीसरा’ येह कि कामिल इतमीनान से रुकूअ करो और ता’ज़ीम व वकार से रुकूअ की तस्बीहात मुकम्मल करो।

सजदा भी तीन बातों से मुकम्मल होता है : ‘पहला’ येह कि तू अपने हाथ कानों के बराबर रख, ‘दूसरा’ येह कि कोहनियां खुली रख, ‘तीसरा’ येह कि मुकम्मल सुकून से सजदे की तस्बीहात मुकम्मल कर।

काएदा भी तीन चीज़ों से पायए तक्मील को पहुंचता है : ‘पहला’ येह कि तू दायां पाउं खड़ा रख और बाएं पर बैठ, ‘दूसरे’ येह कि तशहुद पूरी ता’ज़ीम से पढ़ और अपने और मुसलमानों के लिये दुआ मांग, ‘तीसरे’ येह कि इस के इख़्तिताम पर सलाम फेर ।

सलाम इस तरीके से पायए तक्मील को पहुंचता है कि दाई जानिब सलाम फेरते हुवे तेरी येह सच्ची निय्यत हो कि मैं दाई तरफ़ के फ़रिश्ते, मर्दो और औरतों को सलाम कर रहा हूं और इसी तरह बाई तरफ़ सलाम फेरते हुवे निय्यत कर और अपनी निगाह अपने दो कन्धों से मुतजाविज़ न कर।

इसी तरह इख्लास भी तीन चीज़ों से पूरा होता है : ‘एक’ येह कि नमाज़ से तेरा मुद्दआ रज़ाए इलाही का हुसूल हो लोगों की रजामन्दी का हुसूल न हो, ‘दूसरे’ येह कि नमाज़ की तौफ़ीक़ अल्लाह की तरफ़ से जान, ‘तीसरे’ येह कि तू इस की हिफाज़त कर ताकि इसे कियामत के दिन अल्लाह की बारगाह में पेश कर सके क्यूंकि फ़रमाने इलाही है :

जो शख्स नेकियां ले कर आया। येह नहीं फ़रमाया :

जिस ने नेकियां कीं, लिहाज़ा अपनी नेकियों को बुरे आ’माल से बरबाद कर के उस के हुजूर में न जा।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

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Namaz ka sahi tarika, namaz me dil, namaz ka poora sawab, namaz hadees

 

 

 

वुज़ू करने के फायदे और सवाब की हदीस शरीफ

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि जिस ने वुज़ू किया और बेहतरीन तरीके से किया फिर दो रक्अतें अदा की और उस के दिल में दुन्यावी ख़यालात नहीं आए वोह गुनाहों से उस दिन की तरह निकल गया जिस दिन उस की मां ने उसे जना था।

दूसरी रिवायत के अल्फ़ाज़ हैं : और उस ने इन दो रक्अतों में कोई ना मुनासिब हरकत नहीं की तो उस के गुज़श्ता गुनाह बख्श दिये जाते हैं।

फ़रमाने नबवी है : क्या मैं तुम्हें ऐसे कामों की खबर न दूं जिन से दरजात बुलन्द होते हैं और जो गुनाहों का कफ्फारा बनते हैं, तक्लीफ़ देह अवकात में मुकम्मल वुज़ू करना, मसाजिद की तरफ़ चलना और एक नमाज़ के बाद दूसरी नमाज़ का इन्तिज़ार करना, बस यह पनाहगाहें हैं। यह लफ़्ज़ आप ने तीन मरतबा फ़रमाए ।

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हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने एक एक मरतबा आ’जाए वुज़ू को धो कर फ़रमाया : यह वुज़ू है जिस के बिगैर अल्लाह तआला नमाज़ को क़बूल नहीं करता और आप ने दो दो मरतबा आ’जाए वुज़ू धो कर फ़रमाया कि जिस ने दो दो मरतबा आ’जाए वुज़ू को धोया उसे दोहरा सवाब मिलेगा और आप ने तीन तीन मरतबा आ’जाए वुज़ू को धोया और फ़रमाया : मेरा, मुझ से पहले आने वाले तमाम अम्बिया का और इब्राहीम अलैहहिस्सलाम  का वुज़ू है जो खलीलुल्लाह हैं।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है : “जो वुज़ू के वक्त अल्लाह को याद करता है, अल्लाह तआला उस के तमाम जिस्म को पाक कर देता है और जो शख़्स वुज़ू करते वक्त अल्लाह को याद नहीं करता उस का वो ही हिस्सा पाक होता है जिस पर पानी लगता है।”

फ़रमाने नबवी है कि जो हालते वुज़ू में वुज़ू करता है उस के नामए आ’माल में अल्लाह तआला दस नेकियां लिख देता है।

फ़रमाने नबवी है कि वुज़ू पर वुज़ू नूरुन अला नूर है।

इन तमाम रिवायात में आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने नए वुज़ू की फ़ज़ीलत की तरफ़ इशारा फ़रमाते हुवे इस की तरगीब दी है।

वुजू की बरकत से गुनाह धुल जाते हैं

फ़रमाने नबवी है कि जब बन्दए मुस्लिम वुज़ू करते हुवे कुल्ली करता है तो उस के मुंह से गुनाह निकल जाते हैं और जब वो नाक साफ़ करता है तो उस के नाक से गुनाह निकल जाते हैं, जब वोह मुंह धोता है तो उस के चेहरे के गुनाह निकल जाते हैं, जब वोह बाजू धोता है तो उस के नाखुनों के नीचे तक के तमाम गुनाह निकल जाते हैं, जब वोह सर का मस्ह करता है तो उस के सर के गुनाह निकल जाते हैं यहां तक कि कानों के नीचे तक के गुनाह गिर जाते हैं, जब वोह पाउं धोता है तो उस के पाउं के नाखुनों के नीचे तक के तमाम गुनाह निकल जाते हैं, फिर उस का मस्जिद की तरफ़ चलना और नमाज़ पढ़ना उस की इबादत में दाखिल हो जाता है। और मरवी है कि बा वुज़ू आदमी रोज़ादार की तरह है।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशादे गिरामी है कि जिस शख्स ने बेहतरीन वुज़ू किया फिर फ़रागत के बाद आस्मान की तरफ़ नज़र उठा कर कहा :

أشهد أن لا إله إلا الله وحده لاشريك له وأشهد أن محمدا عبده ورسوله

उस के लिये जन्नत के आठों दरवाजे खोल दिये जाते हैं, वोह जिस दरवाजे से चाहे दाखिल हो।

हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि बेहतरीन वुज़ू शैतान को तुझ से दूर भगा देता है।

हज़रते मुजाहिद रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : “जो शख्स इस बात की ताकत रखता है कि वोह बा वुज़ू, ज़िक्र और इस्तिगफार करते हुवे रात गुज़ारे तो उसे ऐसा करना चाहिये क्यूंकि रूहें जिस हालत में कब्ज की जाती हैं उसी हालत में उठाई जाएंगी।” ।

मरवी है कि हज़रते उमर बिन खत्ताब रज़ीअल्लाहो अन्हो ने एक सहाबिये रसूल को का’बे का गिलाफ़ लाने के लिये मिस्र भेजा, वोह सहाबी शाम के एक अलाके में ऐसी जगह कियाम पज़ीर हुवे जिस के करीब अहले किताब के एक ऐसे बड़े आलिम का सौमआ था कि कोई और आलिम उस से ज़ियादा बा इल्म नहीं था।

हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो के क़ासिद के दिल में उस आलिम से मिलने और उस की इल्मी बातें सुनने की ख्वाहिश पैदा हुई चुनान्चे, वोह उस की इबादत गाह के दरवाजे पर आए और दरवाज़ा खट-खटाया मगर बहुत देर के बाद दरवाज़ा खोला गया, फिर वोह आलिम के पास गए और उस से इल्मी गुफ्तगू करने की फ़रमाइश की और उसे उस आलिम के तबहहुर से बहुत तअज्जुब हुवा ! आखिर में उन्हों ने दरवाज़ा देर से खोलने की शिकायत की तो वोह आलिम बोला कि जब आप आए तो हम ने आप पर बादशाहों जैसी हैबत देखी लिहाज़ा हम ख़ौफ़ज़दा हो गए और हम ने आप को दरवाजे पर इस लिये रोक दिया कि अल्लाह तआला ने हज़रते मूसा अलैहहिस्सलाम  से फ़रमाया : ऐ मूसा ! जब तुझे कोई बादशाह ख़ौफ़ज़दा कर दे तो तू वुज़ू कर और अपने घर वालों को भी वुज़ू का हुक्म दे, तू जिस से डर रहा है उस से मेरी अमान में आ जाएगा चुनान्चे, हम ने दरवाज़ा बन्द कर दिया यहां तक कि मैं ने और इस में रहने वाले तमाम आदमियों ने वुज़ू कर लिया, फिर हम ने नमाज़ पढ़ी लिहाजा हम तुझ से बे ख़ौफ़ हो गए और फिर हम ने दरवाज़ा खोल दिया।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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मुसलमान की मदद करने का फरमान हदीस शरीफ

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

फ़रमाने इलाही है :

नेकी और परहेज़गारी में एक दूसरे की मुआवनत करो। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि जो शख्स किसी भाई की इमदाद और फ़ाइदे के लिये कदम उठाता है, उसे राहे खुदा में जिहाद करने वालों जैसा सवाब मिलता है ।

फ़रमाने नबवी है कि अल्लाह तआला ने ऐसी मख्लूक को पैदा फ़रमाया है जिन का काम लोगों की ज़रूरतों को पूरा करना है और अल्लाह तआला ने अपनी ज़ात की कसम खाई है कि उन्हें अज़ाब नहीं करेगा, जब कियामत का दिन होगा उन के लिये नूर के मिम्बर रखे जाएंगे वोह अल्लाह तआला से गुप्त्गू कर रहे होंगे हालांकि लोग अभी हिसाब में होंगे।

फ़रमाने नबवी है कि जो किसी मुसलमान भाई की हाजत रवाई के लिये कोशिश करता है चाहे उस की हाजत पूरी हो या न हो, अल्लाह तआला कोशिश करने वाले के अगले पिछले सब गुनाहों को बख्श देता है और उस के लिये दो बराअतें लिख दी जाती हैं जहन्नम से रिहाई और मुनाफ़क़त से बराअत ।

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फ़रमाने नबवी है कि जो शख्स किसी मुसलमान भाई की हाजत रवाई करता है, मैं उस के मीज़ान के करीब खड़ा होऊंगा, अगर उस की नेकियां ज़ियादा हुई तो सहीह वरना मैं उस की शफ़ाअत करूंगा। येह रिवायत हिल्या में अबू नुऐम ने नक्ल की है।

मुसलमान भाई की मदद से हर कदम पर नेकी और गुनाहों से पाकी

हज़रते अनस रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जो शख्स किसी मुसलमान भाई की हाजत रवाई के लिये चलता है अल्लाह तआला हर कदम के बदले उस के नामए आ’माल में सत्तर नेकियां लिख देता है और सत्तर गुनाह मुआफ़ कर दिये जाते हैं, पस अगर वो हाजत उस के हाथों पूरी हो जाए तो वो गुनाहों से ऐसे पाक हो जाता है जैसे मां के पेट से आया था और अगर वो इसी दरमियान मर जाए तो बिला हिसाब जन्नत में जाएगा।

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जो शख्स अपने मुसलमान भाई की हाजत रवाई के लिये उस के साथ जाता है और उस की हाजत पूरी कर देता है तो अल्लाह तआला उस के और जहन्नम के दरमियान सात खन्दकें बना देता है और दो खन्दकों का दरमियानी फ़ासिला ज़मीनो आस्मान के दरमियानी फ़ासिले के बराबर होता है।

हज़रते इब्ने अम्र रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला के कुछ ऐसे इन्आमात हैं जो उन लोगों के लिये मख्सूस हैं जो लोगों की हाजत रवाई करते रहते हैं और जब वोह यह तरीका छोड़ देते हैं तो अल्लाह तआला वो इन्आमात दूसरों की तरफ़ मुन्तकिल कर देता है।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जानते हो कि शेर अपनी दहाड़ में क्या कहता है ? सहाबा ने अर्ज किया कि अल्लाह और उस के रसूल बेहतर जानते हैं। आप ने फ़रमाया : वो कहता है कि ऐ अल्लाह ! मुझे किसी भलाई करने वाले पर मुसल्लत न करना ।

जुमेरात की फ़ज़ीलत और जुमेरात का बयान

किसी ज़रूरत या काम का इरादा करो तो उसे जुमेरात  के दिन शुरूअ करो

हज़रते अली बिन अबी तालिब रज़ीअल्लाहो अन्हो यह हदीसे मरफूअ बयान करते थे कि जब तुम किसी ज़रूरत या काम का इरादा करो तो उसे जुमेरात के दिन शुरूअ करो और जब अपने घर से निकलो तो ‘सूरए आले इमरान’ का आखिरी हिस्सा, ‘आयतुल कुरसी’, ‘सूरतुल क़द्र’ और ‘सूरए फ़ातिहा’ पढ़ो क्यूंकि इन में दुनिया और आखिरत की बहुत सी हाजतें हैं।

हज़रते अब्दुल्लाह बिन हसन बिन हुसैन रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं कि मैं किसी ज़रूरत के लिये हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रज़ीअल्लाहो अन्हो के पास गया, इन्हों ने मुझे कहा : जब भी आप को कोई ज़रूरत पेश आए तो मेरी तरफ कोई कासिद भेज दें या खत लिख दें क्यूंकि मुझे अल्लाह तआला से हया आती है कि आप मेरे दरवाजे पर तशरीफ़ लाएं।

हज़रते अली बिन अबू तालिब रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : रब्बे जुल जलाल की कसम ! जो हर आवाज़ को सुनता है, कोई शख्स ऐसा नहीं है जो अपने दिल में मसर्रत को जगह देता है मगर अल्लाह तआला इस सुरूर से लुत्फ़ अता फ़रमाता है, फिर जब कोई मुसीबत नाज़िल होती है तो वो इस सुरूर को इस तरह बहा ले जाती है जैसे पानी निशेब में बहता है यहां तक कि उसे अजनबी ऊंट की तरह हंका दिया जाता है, नीज़ आप ने फ़रमाया कि ना हन्जार लोगों से हाजत तलब करने से हाजत का पूरा न होना बेहतर है, आप ने मजीद फ़रमाया : “अपने भाई के पास बहुत ज़ियादा ज़रूरतें ले कर न जाओ क्यूंकि बछड़ा जब थनों को बहुत ज़ियादा चूसने लगता है तो उस की मां उसे सींग मारती है।

किसी शाइर ने क्या खूब कहा है :

जब तक तेरे मक़दूर में हो किसी एहसान करने में पसो पेश न कर और यह ज़िन्दगी गुज़रने वाली है। और अल्लाह तआला की इस नवाज़िश को याद रख कि उस ने तुझे लोगों का हाजत रवा बना दिया है मगर तू किसी के पास अपनी हाजत ले कर नहीं जाता।

एक और शाइर कहता है:

जहां तक तुझ से मुमकिन हो लोगों की ज़रूरतें पूरी कर और उन का हाजत रवा भाई बन । बेशक किसी जवान का उम्दा दिन वो ही है जिस में वह लोगों की हाजत रवाई करता है।

और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फ़रमान है : उस शख्स के लिये खुश खबरी है जिस के हाथों भलाइयों का सुदूर होता है और उस शख्स के लिये हलाकत है जिस के हाथों बुराइयां फ़रोग पाती है।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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