फजीलते सदका – इस्लाम में गरीबों को सदका खैरात देने का सवाब

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि जो शख़्स हलाल की कमाई से एक खजूर के बराबर सदका करता है (और अल्लाह तआला हलाल की कमाई ही का सदका कबूल फ़रमाता है) तो अल्लाह तआला उसे अपनी बरकत से क़बूल फ़रमा लेता है फिर उस की साहिबे सदका के लिये परवरिश करता है जैसे तुम अपने बछेरों की परवरिश करते हो यहां तक कि वो सदका पहाड़ के बराबर हो जाता है।

दूसरी हदीस में है (जैसे तुम में से कोई एक अपने बछेरे की परवरिश करता है) यहां तक कि एक लुक्मा उहुद पहाड़ के बराबर हो जाता है। इस हदीसे पाक की तस्दीक़ फ़रमाने इलाही से होती है :

क्या उन्हों ने नहीं जाना कि अल्लाह वो ही है  जो अपने बन्दों से तौबा कबूल फरमाता है और सदक़ात लेता है। और इरशाद फ़रमाया :

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अल्लाह तआला सूद को मिटाता है और सदक़ात को बढ़ाता है।

फ़जाइले सदक़ात

सदका माल को कम नहीं करता और अल्लाह तआला उस बख्रिशश के बदले इन्सान की इज्जतो वकार को बढ़ाता है और जो शख्स अल्लाह की रज़ाजूई के लिये तवाज़ोअ करता है, अल्लाह तआला उसे बुलन्द मर्तबा अता फ़रमाता है।

तबरानी की रिवायत है कि सदका माल को कम नहीं करता और न ही बन्दा सदक़ा देने के लिये अपना हाथ बढ़ाता है मगर वो अल्लाह तआला के हाथ में जाता है या’नी अल्लाह तआला उसे साइल के हाथ में जाने से पहले कबूल कर लेता है और कोई बन्दा बे परवाई के बा वुजूद सवाल का दरवाज़ा नहीं खोलता मगर अल्लाह तआला उस पर फ़क़र को मुसल्लत कर देता है, बन्दा कहता है : मेरा माल है मेरा माल है मगर उस के माल के तीन हिस्से हैं, जो खाया वो फ़ना हो गया जो पहना वो पुराना हो गया जो राहे खुदा में दिया वो हासिल कर लिया और जो इस के सिवा है वो उसे लोगों के लिये छोड़ जाने वाला है।

हदीस शरीफ़ में है : तुम में से कोई एक ऐसा नहीं है मगर अल्लाह तआला बगैर किसी तर्जुमान के उस से गुफ्तगू फ़रमाएगा, आदमी अपनी दाईं तरफ़ देखेगा तो उसे वो ही कुछ नज़र आएगा जो उस ने आगे भेजा है और बाईं तरफ़ वो ही कुछ दिखाई देगा जो उस ने आगे भेजा है और अपने सामने देखेगा तो उसे मुक़ाबिल में आग नज़र आएगी पस तुम उस आग से बचो अगर्चे खजूर का एक टुकड़ा ही राहे खुदा में दे कर बच सको।

हदीस शरीफ़ में है कि अपने चेहरों को आग से बचाओ अगर्चे खजूर के एक टुकड़े ही से क्यूं न हो। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  फ़रमाते हैं कि सदक़ा गुनाहों को इस तरह मिटा देता है जैसे पानी आग को बुझा देता है।

आप ने फ़रमाया : ऐ का’ब बिन उजरा ! जन्नत में वो ह खून और गोश्त नहीं जाएगा जो हराम ज़रीए से हासिल कर्दा माल से फला फुला हो, ऐ का’ब बिन उजरा ! लोग जाने वाले हैं, बा’ज़ जाने वाले अपने नफ्स को रिहाई देने वाले हैं और बा’ज़ इसे हलाक करने वाले हैं। ऐ का’ब बिन उजरा ! नमाज़ नज़दीकी है, रोज़ा ढाल है, सदक़ा गुनाहों को इस तरह दूर कर देता है जैसे चिकने पथ्थर से काई उतर जाती है।।

एक रिवायत में है कि जैसे पानी आग को बुझा देता है ।

फ़रमाया : सदक़ा अल्लाह तआला के गज़ब को ठन्डा कर देता है और मौत की ज़हमतों को दूर कर देता है ।

एक रिवायत में है कि अल्लाह तआला सदके के बदले ना गवार मौत के सत्तर दरवाजे बन्द कर देता है।

हदीस शरीफ में है कि लोगों के फैसले होने तक लोग अपने सदक़ात के साए में रहेंगे।

दूसरी रिवायत में है कि कोई आदमी सदके की चीज़ नहीं निकालता मगर इसे सत्तर शैतानों के जबड़ों से जुदा करता है। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से दरयाफ्त किया गया कि कौन सा सदका अफ्जल है ? तो आप ने फरमाया : कम हैसिय्यत शख्स का कोशिश से खर्च करना और अपने अहलो इयाल से इस की इब्तिदा करना ।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : एक दिरहम एक लाख दिरहम से सबक़त ले गया, एक शख्स ने अर्ज किया : वो ह कैसे ? आप ने फ़रमाया : एक शख्स का बहुत मालो दौलत था

और उस ने अपने पहलू से एक लाख दिरहम निकाल कर सदका कर दिया और दूसरे शख्स के पास सिर्फ दो दिरहम थे, उस ने इन में से एक राहे खुदा में दे दिया।

फरमाने नबवी है कि साइल को खाली हाथ न लौटाओ अगर्चे उसे गाए बकरी का चिरा हुवा सुम ही क्यूं न दे दो।

हदीस शरीफ़ में है कि सात शख्स ऐसे हैं जो रहमते इलाही के साए में होंगे जिस दिन रहमते इलाही के सिवा कोई साया न होगा, इन में से एक वो ह है जिस ने इन्तिहाई राज़दारी से राहे खुदा में खर्च किया यहां तक कि उस के बाएं हाथ को पता न चला कि दाएं हाथ ने क्या खर्च किया है ।

नेकी के रास्ते ये ह हैं, बुरी जगहों से बचो, पोशीदा सदक़ा अल्लाह के गज़ब को ठन्डा कर देता है और सिलए रेहमी ज़िन्दगी बढ़ाती है।

तबरानी की रिवायत में है कि नेक काम, बुरी जगहों से बचना और खुझ्या सदक़ा अल्लाह के गज़ब को ठन्डा कर देता है और सिलए रेहमी ज़िन्दगी बढ़ाती है और हर अच्छा काम सदक़ा है, दुन्या में अच्छे काम करने वाले आख़िरत में अच्छे काम करने वालों के साथ होंगे और जन्नत में सब से पहले भलाई करने वाले दाखिल होंगे।

तबरानी और अहमद की दूसरी रिवायत में है : रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से पूछा गया कि सदका क्या है ? तो आप ने फ़रमाया : दूना दो गुना और अल्लाह के हां इस से भी ज़ियादा है, फिर आप ने येह आयत पढ़ी : “कौन शख्स है जो अल्लाह को अच्छा क़र्ज़ दे पस वोह दुगना कर दे उस को उस के वासिते बहुत दुगना”। नीज़ पूछा गया : या रसूलल्लाह ! कौन सा सदका अफ़ज़ल है ? आप ने फ़रमाया : फ़कीर को पोशीदा देना और कम माल वाले का कोशिश से खर्च करना, फिर आप ने यह आयत पढ़ी :अगर तुम सदक़ात को ज़ाहिर करो तो अच्छा है और अगर तुम इन्हें छुपाओ और फ़कीर को दो

तो तुम्हारे लिये बहुत अच्छा है। जिस ने किसी मुसलमान को कपड़ा पहनाया तो जब तक उस के जिस्म पर इस कपड़े का एक धागा भी मौजूद रहेगा अल्लाह तआला सदका देने वाले इन्सान के उयूब को ढांपता रहेगा।

दूसरी रिवायत में है कि जिस मुसलमान ने किसी बरह्ना मुसलमान को कपड़ा पहनाया, अल्लाह तआला उसे जन्नत का लिबास पहनाएगा, जिस मुसलमान ने किसी भूके मुसलमान को खाना खिलाया अल्लाह तआला उसे जन्नत के फल खिलाएगा और जिस मुसलमान ने किसी प्यासे मुसलमान को सैराब किया अल्लाह तआला उसे जन्नत में मोहर शुदा शराबे तहूर पिलाएगा। मिस्कीन को सदक़ा, खैरात है और रिश्तेदार पर सदक़ा करने में दोहरा सवाब है, सदके का और सिलए रेहमी का सवाब ।

पूछा गया : कौन सा सदक़ा अफ़ज़ल है ? आप ने फ़रमाया : हर उस रिश्तेदार को देना जो तेरे लिये अपने दिल में बुग्ज व अदावत रखता है।

आप ने फ़रमाया : जिस ने किसी शख्स को दूध पीने के लिये बकरी वगैरा दी ताकि वो ह उस का दूध पी कर उसे वापस कर दे, या कर्ज दिया या सफ़र का साथी दिया, उसे गुलाम आज़ाद करने के बराबर सवाब मिलता है ।मजीद फ़रमाया कि हर क़र्ज़ सदका है।

एक रिवायत में है कि फ़रमाया : मैं ने मे’राज की रात जन्नत के दरवाजे पर लिखा देखा कि सदके का दस गुना और कर्ज का अठ्ठारह गुना सवाब है।

फ़रमाया : जो किसी तंगदस्त की मुश्किल आसान कर देता है, अल्लाह तआला दुन्या और आखिरत में उस पर आसानी कर देता है।

पूछा गया : या रसूलल्लाह ! कौन सा इस्लाम बेहतर है ? आप ने फ़रमाया : खाना खिलाना और हर वाकिफ़ और अजनबी पर तुम्हारा सलाम कहना ! साइल ने अर्ज की, कि मुझे हर चीज़ की हक़ीक़त बतलाइये ! आप ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने हर चीज़ को पानी से पैदा किया है, फिर मैं ने कहा : मुझे ऐसे अमल के मुतअल्लिक बताइये जिस के सबब मैं जन्नत में जाऊं ? आप ने फ़रमाया : खाना खिला, सलाम किया कर, सिलए रेहमी कर और रात को जब लोग सो रहे हों, नमाज़ पढ़, तू जन्नत में सलामती के साथ दाखिल होगा।।

फ़रमाने नबवी है कि अल्लाह की इबादत करो, मिस्कीनों को खिलाओ और सलाम करो, ब सलामत जन्नत में जाओगे ।

फ़रमाने नबवी है कि रहमत के नुजूल के अस्बाब में से मुसलमान मिस्कीन को खाना खिलाना है जिस ने अपने मुसलमान भाई को खाने और पीने से सैराब किया, अल्लाह तआला उस के और दोज़ख़ के दरमियान सत्तर खन्दकों का फ़ासिला कर देता है जिन में से हर एक खन्दक पांच सो साल के सफ़र की मसाफ़त पर है। ।

फ़रमाने नबवी है : अल्लाह तआला कियामत के दिन इरशाद फ़रमाएगा कि ऐ इन्सान ! मैं बीमार हुवा था मगर तू ने इयादत नहीं की थी। इन्सान कहेगा : मैं तेरी कैसे इयादत करता ? तू तो रब्बुल आलमीन है ! रब फ़रमाएगा : तुझे मालूम नहीं मेरा फुलां बन्दा बीमार है मगर तू उस की इयादत को न आया, क्या तुझे मालूम नहीं था कि अगर तू उस की इयादत करता तो मुझे उस के करीब पाता। ऐ इन्सान ! मैं ने तुझ से खाना खिलाने के लिये कहा था मगर तू ने मुझे खाना नहीं दिया था। इन्सान कहेगा : ऐ अल्लाह ! मैं तुझे कैसे खाना खिलाता ? तू तो रब्बुल आलमीन है ! रब फ़रमाएगा : तुझे इल्म नहीं था कि अगर तू उसे खाना खिलाता तो उसे मेरे यहां हासिल करता, ऐ इन्सान ! मैं ने तुझ से पानी तलब किया था मगर तू ने मुझे सैराब नहीं किया था । इन्सान कहेगा कि मैं तुझे कैसे सैराब करता ? तू तो रब्बुल आलमीन है ! रब तआला फ़रमाएगा : मेरे फुलां बन्दे ने तुझ से पानी मांगा था मगर तू ने उसे पानी नहीं पिलाया था, क्या तुझे मा’लूम नहीं था कि अगर उसे पानी पिलाता तो मेरे यहां इस का अज्र पाता।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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दुनिया की बुराई और उससे डरना

 (हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

हज़रते अबू उमामा बाहिली रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि साअलबा बिन हातिब ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में अर्ज़ किया : या रसूलल्लाह ! मेरे लिये दुआ करें अल्लाह तआला मुझे माल दे। आप ने फ़रमाया : ऐ साअलबा ! थोड़ा माल जिस का तू शुक्र अदा करता है उस माले कसीर से बेहतर है जिस का तू शुक्र अदा नहीं कर सकता, साअलबा ने अर्ज़ किया : या रसूलल्लाह ! मेरे लिये अल्लाह तआला से माल की दुआ कीजिये, आप ने फ़रमाया : ऐ साअलबा ! क्या तेरे पेशे नज़र मेरी ज़िन्दगी नहीं है, क्या तू इस बात पर राजी नहीं कि तेरी ज़िन्दगी नबी की ज़िन्दगी जैसी हो, ब खुदा ! अगर मैं चाहूं कि मेरे साथ सोने और चांदी के पहाड़ चलें तो चलेंगे।

 

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साअलबा ने अर्ज किया : उस ज़ात की क़सम जिस ने आप को नबिय्ये बर हक़ बना कर भेजा है ! अगर आप मेरे लिये अल्लाह से माल की दुआ करें तो मैं इस माल से हर हक़दार का हक पूरा करूंगा और मैं ज़रूर करूंगा, ज़रूर हुकूक अदा करूंगा, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने दुआ की : ऐ अल्लाह ! साअलबा को माल अता कर ! चुनान्चे, उस ने बकरियां ली और वो ऐसे बढ़ीं कि जैसे हशरातुल अर्ज (कीड़े मकोड़े) बढ़ते हैं और उन के लिये मदीने में रहना मुश्किल हो गया।

चुनान्चे, साअलबा मदीने से निकल कर मदीने के करीब एक वादी में आ गया और तीन नमाजें छोड़ कर सिर्फ दो नमाजें जोहर और अस्र जमाअत के साथ पढ़ने लगा, बकरियां और बढ़ीं और वो कुछ और दूर हो गया यहां तक कि वो सिर्फ नमाजे जुमआ में शरीक होता और बकरियां बराबर बढ़ती गई यहाँ तक कि इन की मसरूफ़िय्यत की वज्ह से उस की जुमआ की जमाअत भी छूट गई और वो जुमआ के दिन मदीने से आने वाले सवारों से मदीने के हालात पूछ लेता और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने उस के मुतअल्लिक पूछा कि साअलबा बिन हातिब का क्या बना ? अर्ज की गई कि या रसूलल्लाह ! उस ने बकरियां लीं और वो इतनी बढ़ीं कि उन का मदीने में रहना दुश्वार हो गया और उस के तमाम हालात बतलाए गए । आप ने सुन कर फ़रमाया : ऐ साअलबा ! अफसोस !…… ऐ साअलबा ! अफ्सोस !…..अफ्सोस !….. ऐ साअलबा ! रावी कहते हैं कि तब कुरआने मजीद की यह आयत नाज़िल हुई :

“उन के माल से सदका लीजिये उन के ज़ाहिर और बातिन को पाक कीजिये उन के सदक़ात और उन के लिये दुआ कीजिये बेशक आप की दुआ उन के लिये तस्कीन है। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने जुहैना और बनू सुलैम के दो आदमियों को सदक़ात की वुसूलयाबी पर मुकर्रर फ़रमाया और इन्हें सदक़ात के अहकामात और सदक़ात वुसूल करने की इजाजत लिख कर रवाना फ़रमाया कि जाओ और मुसलमानों से सदक़ात वुसूल कर के लाओ और फ़रमाया कि साअलबा बिन हातिब और फुलां आदमी के पास जाना जो बनी सुलैम से तअल्लुक रखता है और उन से भी सदक़ात वुसूल करना । चुनान्चे, येह दोनों हज़रात सा’लबा के पास आए और उसे हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फ़रमान पढ़वा कर सदक़ात (बकरियों की ज़कात) का सवाल किया। सा’लबा ने कहा : यह तो टेक्स है, यह तो टेक्स है, यह तो टेक्स ही की एक शक्ल है, तुम जाओ, जब तुम फ़ारिग हो चुको तो मेरे पास फिर आना।

फिर यह हज़रात बनू सुलैम के उस आदमी के पास आए जिस के मुतअल्लिक़ हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया था : जब उस ने सुना तो उस ने अपने आ’ला मर्तबा ऊंटों के पास जा कर उन में से सदके के लिये अलाहिदा कर दिये और उन्हें ले कर इन हज़रात की ख़िदमत में आया, इन हज़रात ने जब वो ऊंट देखे तो बोले : तुम्हारे लिये यह ऊंट देना ज़रूरी नहीं हैं और न ही हम तुम से उम्दा और आ’ला ऊंट लेने आए हैं, उस शख्स ने कहा : इन्हें ले लीजिये, मेरा दिल इन्हीं से खुश होता है और मैं यह आप ही को देने के लिये लाया हूं।

जब यह हज़रात सदक़ात की वुसूली से फ़ारिग हो चुके तो सा’लबा के पास आए और उस से फिर सदक़ात का सुवाल किया, सा’लबा ने कहा : मुझे खत दिखाओ और उस ने खत देख कर कहा : यह टेक्स ही की एक शक्ल है, तुम जाओ ताकि मैं इस बारे में कुछ गौर कर सकू, लिहाज़ा यह हज़रात वापस रवाना हो गए और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुवे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने इन से बात चीत करने से पहले महज़ इन्हें देखते ही फ़रमाया : ऐ सा’लबा अफसोस ! और बनू सुलैम के उस शख्स के लिये दुआ फ़रमाई, फिर इन हज़रात ने आप को सा’लबा और सुलैमी के मुकम्मल हालात सुनाए, अल्लाह तआला ने सा’लबा के बारे में यह आयात नाज़िल फ़रमाई :

“और बा’ज़ उन में से वो है कि जिस ने अल्लाह से अहद किया कि अगर अल्लाह हमें अपने फज्ल से अता फ़रमाएगा तो अलबत्ता हम सदक़ा देंगे और

सालिहीन में से होंगे पस जब उन को अल्लाह तआला ने अपने फज्ल से अता किया तो उन्हों ने बुख़्ल किया माल के साथ और फिर गए और मुंह फेरने वाले हैं पस निफ़ाक़ उन के दिलों में कियामत के दिन तक असर दे गया ब सबब इस के कि उन्हों ने अल्लाह से किये हुवे वादे के खिलाफ किया और ब सबब इस के कि वो झूट बोलते थे। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में उस वक्त सा’लबा का एक रिश्तेदार बैठा हुवा था, उस ने सा’लबा के मुतअल्लिक नाज़िल होने वाली आयात को सुना तो उठ कर सा’लबा के पास गया और उसे कहा : तेरी वालिदा मारी जाए ! अल्लाह तआला ने तेरे बारे में फुलां फुलां आयात नाज़िल की हैं, सा’लबा ने येह सुना तो हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुवा और सदका कबूल करने की दरख्वास्त की। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : मुझे अल्लाह तआला ने तेरा सदक़ा लेने से मन्अ कर दिया है।

सा’लबा यह सुनते ही अपने सर में खाक डालने लगा । हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : तेरे येह करतूत ! मैं ने तुझ से पहले कह दिया था मगर तू ने मेरी बात नहीं मानी थी।

जब हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने सदका लेने से बिल्कुल इन्कार कर दिया तो वो अपने ठिकाने पर लौट आए, जब हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम विसाल फ़रमा गए तो वो अपने सदक़ात ले कर अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो की खिदमत में हाज़िर हुवा मगर इन्हों ने भी लेने से इन्कार कर दिया, फिर हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो के दौरे खिलाफ़त में हाज़िर हुवा मगर इन्हों ने भी इन्कार कर दिया, यहां तक कि हज़रते उस्मान रज़ीअल्लाहो अन्हो के खलीफ़ा बनने के बाद सा’लबा का इन्तिकाल हो गया।

एक इबरत अंगेज वाकिआ – ईसा अलैहहिस्सलाम और लालची आदमी का किस्सा

जरीर ने लैस से रिवायत की है कि एक शख्स हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम  की सोहबत में आया और कहने लगा : मैं आप की सोहबत में हमेशा आप के साथ रहूंगा, लिहाज़ा हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम  और वोह आदमी इकट्ठे रवाना हो गए। जब एक दरया के किनारे पहुंचे तो खाना खाने के लिये बैठ गए, उन के पास तीन रोटियां थीं, जब दो रोटियां खा चुके और एक रोटी बाक़ी रह गई तो हज़रते ईसा . दरया पर पानी पीने तशरीफ़ ले गए। जब आप पानी पी कर वापस तशरीफ़ लाए तो रोटी मौजूद नहीं थी, आप ने पूछा : रोटी किस ने ली है? वोह आदमी बोला कि मुझे मालूम नहीं।

रावी कहते हैं कि हज़रते ईसा . उसे ले कर आगे चल पड़े और आप ने हिरनी को देखा जो दो बच्चे साथ लिये जा रही थी। आप ने उस के एक बच्चे को बुलाया, जब वोह आया तो आप ने उसे ज़ब्ह किया और गोश्त भून कर खुद भी खाया और उस शख्स को भी खिलाया, फिर बच्चे से फ़रमाया : अल्लाह के हुक्म से खड़ा हो जा। चुनान्चे, हिरनी का बच्चा खड़ा हो गया और जंगल की तरफ़ चल दिया, तब आप ने उस आदमी से कहा : मैं तुझ से उस ज़ात के नाम पर सुवाल करता हूं जिस ने तुझे येह मो’जिज़ा दिखलाया, रोटी किस ने ली थी ? वोह आदमी बोला : मुझे मालूम नहीं है।

फिर आप एक झील पर पहुंचे और उस शख्स का हाथ पकड़ा और दोनों सहे आब पर चल पड़े, जब पानी उबूर कर लिया तो आप ने उस शख्स से पूछा : तुझे उस ज़ात की क़सम ! जिस ने तुझे येह मो’जिज़ा दिखाया बता वोह रोटी किस ने ली थी ? उस आदमी ने फिर जवाब दिया कि मुझे मालूम नहीं है।

फिर आप रवाना हो गए और एक जंगल में पहुंचे, जब दोनों बैठ गए तो हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम  ने मिट्टी और रैत की ढेरी बना कर फ़रमाया कि अल्लाह के हुक्म से सोना हो जा, चुनान्चे, वोह सोना बन गई और आप ने उस की एक जैसी तीन ढेरियां बनाई और फ़रमाया : तिहाई मेरी, तिहाई तेरी और तिहाई उस शख्स की है जिस ने वोह रोटी ली थी, तब वोह आदमी बोला : वोह रोटी मैं ने ली थी, आप ने उस से फ़रमाया : येह सोना तमाम का तमाम तेरा है और उसे वहीं छोड़ कर आगे रवाना हो गए।

उस शख्स के पास दो आदमी आ गए, उन्हों ने जब जंगल में एक आदमी को इतने मालो मताअ के साथ देखा तो उन की निय्यत बदल गई और उन्हों ने इरादा किया कि उसे क़त्ल कर के माल समेट लें। उस आदमी ने जब उन की निय्यत भांप ली तो खुद ही बोल उठा कि येह माल हम तीनों ही आपस में बराबर बराबर तक्सीम कर लेते हैं, फिर उन्हों ने अपने में से एक शख्स को शहर की तरफ रवाना किया ताकि वोह खाना खरीद लाए । जिस शख्स को उन्हों ने शहर की तरफ़ खाना लाने के लिये भेजा था, उस के दिल में खयाल आया कि मैं इस माल में उन को हिस्सेदार क्यूं बनने दूं ? मैं खाने में ज़हर मिलाए देता हूं ताकि वोह दोनों ही हलाक हो जाएं और माल अकेला मैं ही ले लूं, चुनान्चे, उस ने ऐसा ही किया।

रावी कहते हैं कि इधर जो दो आदमी जंगल में बैठे हुवे थे, उन्हों ने इरादा कर लिया कि हम उसे एक तिहाई क्यूं दें ? जूही वोह आए हम उसे क़त्ल करें और दौलत हम दोनों आपस में तक्सीम कर लें, चुनान्चे, जब वोह आदमी खाना ले कर आया तो उन्हों ने उसे क़त्ल कर दिया और बाद में वोह खाना खाया जिसे खाते ही वोह दोनों भी मर गए और सोने की ढेरियां इसी तरह पड़ी रहीं और जंगल में तीन लाशें रह गई।

हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम  का फिर वहां से गुज़र हुवा और उन की येह हालत देख कर अपने साथियों से फ़रमाया : देखो येह दुनिया  है, इस से बचते रहना।

हिकायत – जुलकरनैन एक अजीब किस्सा

जुलकरनैन ऐसे लोगों के पास पहुंचे जिन के पास दुनिया वी मालो मताअ बिल्कुल नहीं था, उन्हों ने अपनी कब्रें तय्यार कर रखी थीं, जब सुब्ह होती तो वोह कब्रों की तरफ़ आते, उन की याद ताज़ा करते, उन्हें साफ़ करते और उन के करीब नमाजें पढ़ते और जानवरों की तरह कुछ घास पात खा लेते और उन्हों ने गुजर बसर सिर्फ ज़मीन से उगने वाली सब्जियों वगैरा पर महदूद कर रखी थी। जुलकरनैन ने उन के सरदार को एक आदमी भेज कर बुलाया लेकिन सरदार ने कहा : जुलकरनैन को जवाब देना कि मुझे तुम से कोई काम नहीं है, अगर तुम्हें कोई काम है तो मेरे पास आ जाओ। जुलकरनैन ने येह जवाब सुन कर कहा कि वाकेई उस ने सच कहा है : चुनान्चे, जुलकरनैन उस के पास आया और उस ने कहा : मैं ने तुम्हारी तरफ़ आदमी भेज कर तुम्हें बुलाया मगर तुम ने इन्कार कर दिया लिहाज़ा मैं खुद आया हूं। सरदार ने कहा : अगर मुझे तुम से कोई काम होता तो ज़रूर आता । जुलकरनैन ने कहा : मैं ने तुम्हें ऐसी हालत में देखा है कि किसी और कौम को इस हालत में नहीं देखा, सरदार ने कहा : आप किस हालत की बात कर रहे हैं ? जुलकरनैन ने कहा : येही कि तुम्हारे पास दुनिया वी मालो मताअ और मालो मनाल कुछ भी नहीं है.

जिस से तुम बहरा अन्दोज़ हो सको । सरदार ने कहा : हम सोना चांदी का जम्अ करना बहुत बुरा समझते हैं क्यूंकि जिस शख्स को येह चीजें मिलती हैं वोह इन में मगन हो जाता है और उस चीज़ को जो इन से कहीं बेहतर है, भूल जाता है। जुलकरनैन ने कहा : तुम ने कब्र क्यूं तय्यार कर रखी हैं ? हर सुब्ह इन की जियारत करते हो, इन्हें साफ़ करते हो और इन के करीब खड़े हो कर नमाज़ पढ़ते हो । सरदार ने कहा : येह इस लिये कि जब हम कब्रों को देखेंगे और दुनिया  की आरजू करेंगे तो येह क़बें हमें दुनिया  से बे नियाज़ कर देंगी और हमें हिर्स व हवा से रोक देंगी। जुलकरनैन ने पूछा : मैं ने देखा है कि ज़मीन के सब्जे के इलावा तुम्हारी कोई गिज़ा नहीं है, तुम जानवर क्यूं नहीं रखते ताकि तुम इन का दूध दोहो, इन पर सुवारी करो और इन से बहरा अन्दोज़ हो सको, सरदार ने कहा : हम इस चीज़ को अच्छा नहीं समझते कि हम अपने पेटों को इन की कब्रे बनाएं और हम ज़मीन के सब्जे से काफ़ी गिजा हासिल कर लेते हैं और येह इन्सान की गुज़र अवकात के लिये काफ़ी है, जब खाना हल्क से उतर जाता है (चाहे वोह कैसा ही हो) फिर इस का कोई मज़ा बाक़ी नहीं रहता।

फिर उस काइद (सरदार) ने जुलकरनैन के पीछे हाथ बढ़ा कर के एक खोपड़ी उठाई और कहा : जुलकरनैन ! जानते हो येह कौन है ? जुलकरनैन ने कहा : नहीं ! येह कौन है ? काइद ने कहा : येह दुनिया  के बादशाहों में से एक बादशाह था, अल्लाह तआला ने इसे दुनिया  वालों पर शाही अता फ़रमाई थी लेकिन इस ने जुल्मो सितम किया और सरकश बन गया। जब अल्लाह तआला ने इस की येह हालत देखी तो इसे मौत दे दी और येह एक गिरे पड़े पथ्थर की मानिन्द बे वक्अत हो गया, अल्लाह तआला ने इस के आ’माल शुमार कर लिये हैं ताकि इसे आख़िरत में सजा दे।

फिर उस ने एक और खोपड़ी उठाई जो बोसीदा थी और कहा : जुलकरनैन ! जानते हो येह कौन है ? जुलकरनैन ने कहा : नहीं, बताओ कौन है ? काइद ने कहा : येह एक बादशाह है जिसे पहले बादशाह के बाद हुकूमत मिली, येह अपने पीशर व बादशाह का मख्लूक पर जुल्मो सितम और ज़ियादतियां देख चुका था लिहाज़ा इस ने तवाज़ोअ की, अल्लाह का खौफ़ किया और मुल्क में अद्लो इन्साफ़ करने का हुक्म दिया, फिर येह भी मर कर ऐसा हो गया, जैसा तुम देख रहे हो और अल्लाह तआला ने इस का शुमार फ़रमा लिया है, यहां तक कि इसे आख़िरत में इन का बदला देगा। फिर वोह जुलकरनैन की खोपड़ी की तरफ़ मुतवज्जेह हुवा और कहने लगा : येह भी इन्ही की तरह है, जुलकरनैन ! ख़याल रखना कि तुम कैसे आ’माल कर रहे हो ? जुलकरनैन ने उस की बातें सुन कर कहा : क्या तुम मेरी दोस्ती में रहना चाहते हो ? मैं तुम्हें अपना भाई और वज़ीर या जो कुछ अल्लाह तआला ने मुझे मालो मनाल दिया है, उस में अपना शरीक बना लूंगा। सरदार ने कहा : मैं और आप सुल्ह नहीं कर सकते और न ही हम इकठे रह सकते हैं, जुलकरनैन ने कहा : वोह क्यूं ? सरदार ने कहा : इस लिये कि लोग तुम्हारे दुश्मन और मेरे दोस्त हैं, जुलकरनैन ने पूछा : वोह कैसे ? सरदार ने कहा : वोह तुम से तुम्हारा मुल्क, माल और दुनिया  की वज्ह से दुश्मनी रखते हैं और चूंकि मैं ने इन चीज़ों को छोड़ दिया है लिहाज़ा कोई एक भी मेरा दुश्मन नहीं है और इसी लिये मुझे किसी चीज़ की हाजत नहीं है और न मेरे पास किसी चीज़ की कमी है। रावी कहता है कि जुलकरनैन येह बातें सुन कर इन्तिहाई मुतअस्सिर हुवा और हैरान वापस लौट आया।

किसी शाइर ने क्या ही अच्छा कहा है :

ऐ वोह शख्स ! जो दुनिया  और इस की जीनत से नफ्अ अन्दोज़ होता है और दुनिया वी लज्जतों से उस की आंखें नहीं सोतीं। खुद को ना मुमकिन चीज़ों के हुसूल में मश्गूल कर दिया है, जब तू अल्लाह की बारगाह में हाज़िर होगा तो क्या जवाब देगा ?

दूसरे शाइर का कौल है :

मैं ने दुनिया  के जाहिलों को बहुत मरतबा अता करने और अहले फ़ज़ल से किनारा कशी करने पर मलामत की तो उस ने मुझ से कहा कि मेरी मजबूरी सुनिये।

जाहिल मेरे बेटे हैं लिहाज़ा मैं उन्हें सर बुलन्दी देती हूं और मुत्तकी अहले फ़ज़्ल मेरी सोकन आखिरत के फ़रज़न्द हैं (लिहाज़ा मैं इन से गुरैज़ करती हूं)।

हज़रते महमूद बाहिली का कौल है :

बेशक दुनिया  आए या जाए इन्सान के लिये हर हाल में फ़ितना व आज़माइश है। जब दुनिया  आती है तो दाइमी शुक्र साथ लाती है (तो शुक्र अदा कर) और जब जाए तो सब्र और साबित कदमी का मुजाहरा कर ।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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दुनिया के धोके और फ़रेब

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

दुनिया के तमाम हालात खुशी और गम के इर्द गिर्द गर्दिश करते रहते हैं, दुनिया अपने चाहने वालों की ख्वाहिशात के मुताबिक़ नहीं रहती बल्कि वो हकीमे मुतलक अल्लाह तआला की हिक्मत के मुताबिक़ रंग बदलती रहती है, फ़रमाने इलाही है :

वह हमेशा मुख्तलिफ़ रहेंगे मगर वो जिस पर तेरे रब ने रहम किया (वो इस से महफूज़ रहेंगे)। बा’ज़ मुफस्सिरीन का कहना है कि यहां ‘इख़्तिलाफ़’ से मुराद रिज्क का इख़्तिलाफ़ है या’नी बा’ज़ गनी हैं और बा’ज़ फ़क़ीर हैं लिहाज़ा हर शख्स के लिये ज़रूरी है जिसे दुनिया का माल मिल जाए और रब्बे जुल जलाल दुनिया को उस का ख़ादिम बना दे तो वो शुक्र अदा करता रहे और नेक कामों में उसे सर्फ करे क्यूंकि अच्छे आ’माल बुराइयों को ज़ेर कर लेते हैं और अपनी दुनिया पर गुरूर न करे और येह फ़रमाने इलाही इस बात को समझने के लिये काफ़ी है “तुम्हें दुनिया की ज़िन्दगी फ़रेब न दे और न तुम्हें कोई फ़रेब देने वाला अल्लाह से फरेब दे। और फ़रमाने इलाही है :

“लेकिन तुम ने अपने आप को फ़ितने में डाला और तुम मुन्तज़िर रहे और तुम ने शक किया और तुम्हें आरजूओं ने फ़रेब में डाला।”

दुनिया के फ़रेब से गुरेज़ के लिये येह आयात अक्लमन्द इन्सान को बहुत कुछ बसीरत सिखाती हैं। उन अक्लमन्दों की नींद और बेदारी कैसी अजीब है जो बे वुकूफों की शब बेदारी और कोशिशों पर रश्क करते हैं हालांकि खुद कुछ भी नहीं कर पाते। ।

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दानिशमन्द कौन ? समझदार कौन?

फ़रमाने नबवी है कि अक्लमन्द वोह है जिस ने अपने नफ्स का मुहासबा किया और मौत के बाद के लिये अमल किये और अहमक़ वोह है जिस ने नफ़्सानी ख्वाहिशात की पैरवी की और अल्लाह तआला से ढेरों दुनियावी तमन्नाएं रखीं ।

शाइर कहता है:

और जो शख़्स किसी पसन्दीदा चीज़ की वज्ह से दुनिया की तारीफ़ करता है मुझे ज़िन्दगी की कसम अन क़रीब वोह उसे बुरा भला कहेगा। .जब दुनिया चली जाती है तो इन्सान के दिल में हसरत छोड़ जाती है और जब आती है तो बे शुमार दुख ले कर आती है।

एक और शाइर कहता है :

ब खुदा ! अगर दुनिया अपनी तमाम तर मालो मता के बा वुजूद हमारे लिये परहेज़गारी का निशान होती और लगातार उस का रिज्क आता रहता। तब भी किसी मर्दे आज़ाद के लिये उस की तरफ़ रुजूअ मुनासिब न होता चे जाए कि येह माल ही ऐसा बनाया गया हो जो कल ख़त्म हो जाए।

इब्ने बस्साम कहता है:

दुनिया और इस के अय्याम पर हैफ़ है, बेशक येह दुखों के लिये पैदा की गई है। इस के दुख एक लम्हा भी ख़त्म नहीं होते चाहे इस में कोई बादशाह है या फ़क़ीर है। इस पर और इस के अजीब हालात पर तअज्जुब है, येह लोगों की जान लेवा मा’शूका है।

एक और शाइर कहता है:

मैं देखता हूं कि जमाना बखील तरीन लोगों को बे इन्तिहा माल देने पर आमादा रहता है। और साहिबे इज्जत व फजीलत से ज़माना दुनिया को रोक देता है, मैं ने इसे कहा : तुम अस्ल बात में गौर करो। ख़बीस हराम कमाई से माल इकठ्ठा करते हैं लिहाज़ा ख़बीस माल और ख़बीस लोगों में जम्अ होते हैं।

दूसरा शाइर कहता है :

ज़माने से पूछ तू ने किस्रा, कैसर, उन के महल्लात और उन में रहने वालों से क्या किया ? .क्या इन सब ने तुझ से जुदाई की इस्तिद्आ की थी कि तू ने किसी अक्लमन्द और किसी बे वुकूफ़ को नहीं छोड़ा।

कहते हैं कि एक बदवी किसी कबीले में आया, लोगों ने उसे खाना खिलाया और वोह खाना खा कर उन के खेमे के साए में लैट गया, फिर उन्हों ने खैमा उखेड़ लिया और बदवी को जब भूक लगी तो उस की आंख खुल गई और वोह कहता हुवा वहां से चल दिया

बा खबर हो जाओ येह दुनिया इमारत के साए की तरह है और ला महाला एक दिन इस का साया जाइल हो जाएगा। बिला शुबा दुनिया सुवार के लिये कैलूला करने की जगह है, उस ने अपनी हाजत पूरी की और फिर इसे छोड़ दिया।

किसी दाना ने अपने दोस्त से कहा : तुझे दावेदार  ने सब कुछ सुना दिया और बुलाने वाले ने सब कुछ वज़ेह  कर दिया, उस शख्स से बढ़ कर और कोई मुसीबत में मुब्तला नहीं जिस ने यक़ीने कामिल को गंवा दिया और गलत कारियों में मश्गूल हुवा।

हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि खौफे इलाही के लिये इल्म और तकब्बुर व गुरूर के लिये जहालत काफ़ी है।

फ़रमाने नबवी है कि जिस ने दुनिया से महब्बत रखी और इस की जैबो जीनत से मसरूर हुवा, उस के दिल से आख़िरत का ख़ौफ़ निकल गया।

बा’ज़ उलमा का कौल है कि बन्दे से मालो दौलत के चले जाने पर रन्जो गम करने और मालो दौलत की फ़रावानी में खुशी पर मुहासबा किया जाएगा।

बा’ज़ सलफ़े सालिहीन जिन्हें अल्लाह तआला ने दुनिया दी थी, वोह हराम कर्दा बातों से तुम से ज़ियादा बचने वाले थे और जो काम करना तुम्हें मुनासिब नज़र नहीं आता वोह उन के नज़दीक मोहलिक तरीन समझे जाते थे।

हज़रते उमर अब्दुल अज़ीज़ रज़ीअल्लाहो अन्हो बसा अवकात मिसअर बिन किदाम रज़ीअल्लाहो अन्होके येह अश्आर पढ़ा करते थे:

1)……ऐ फ़रेब खुर्दा ! तेरा दिन नींद और गफलत में और तेरी रात सोने में पूरी होती है और मौत तेरे लिये लाज़िमी है। (2)……ज़ाइल शुदा माल तुझे फ़रेब में डालता है और उम्मीदें पा कर तू बहुत खुश होता है जैसे ख्वाब देखने वाला ख्वाब में लुत्फ़ अन्दोज़ होता है। (3)……अन करीब तू अपनी इस दुनियावी मश्गूलिय्यत को बुरा समझेगा, ऐसी ज़िन्दगी तो दुनिया में जानवरों की होती है।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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तवाज़ो (विनम्रता) और कनाअत (संतोष) की फ़ज़ीलत

 (हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फ़रमान है कि अल्लाह तआला अफ्व और दर गुज़र के जरीए बन्दे की इज्जत को बढ़ाता है और जो अल्लाह तआला की खुशनूदी की खातिर तवाज़ोअ करता है, अल्लाह तआला उसे बुलन्द फ़रमाता है।

फ़रमाने नबवी है : कोई आदमी ऐसा नहीं मगर उस के साथ दो फ़रिश्ते हैं और इन्सान पर फ़मो फ़िरासत का नूर होता है जिस से वह फ़िरिश्ते उस के साथ रहते हैं, पस अगर वोह इन्सान तकब्बुर करता है तो वोह उस से हिक्मत छीन लेते हैं और कहते हैं : “ऐ अल्लाह इसे सर निगू कर”, और अगर वोह तवाज़ोअ और इन्किसारी करता है तो फ़रिश्ता कहता है : “ऐ अल्लाह ! इसे सर बुलन्दी अता कर ।” हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं कि उस के लिये खुश खबरी है जिस ने तवंगरी में तवाज़ो की, जम्अ कर्दा माल को अच्छे तरीके पर खर्च किया, तंगदस्त और मुफ्लिसों पर मेहरबानी और उलमा और दानिशमन्दों से मेल जोल रखा ।

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मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम सहाबए किराम की एक जमाअत के साथ घर में खा रहे थे कि दरवाजे पर साइल आया जिसे एक ऐसी बीमारी थी कि जिस की वज्ह से लोग उस से नफ़रत करते थे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने उसे अन्दर आने की इजाजत दी, जब वोह अन्दर आया तो आप ने उसे अपने जानू मुबारक पर बिठाया और फ़रमाया : खाना खाओ, कुरैश के एक आदमी ने इसे बहुत ना पसन्द किया और फिर वोह कुरैशी जवान इस जैसी बीमारी में मुब्तला हो कर मरा ।

फ़रमाने नबवी है कि रब तआला ने मुझे दो बातों का इख्तियार दिया, एक येह कि मैं रसूले अब्द बनूं या नबिय्ये फ़रिश्ता बनूं ! मैं नहीं समझ रहा था कि मैं कौन सी बात पसन्द करूं ?

फ़रिश्तों में जिब्रीले अमीन  मेरा दोस्त था, मैं ने सर उठा कर उस की तरफ़ देखा तो उस ने कहा : रब के यहां तवाज़ोअ इख्तियार कीजिये, तो मैंने अर्ज किया कि मैं रसूले अब्द बनना चाहता हूं.

अल्लाह तआला ने हज़रते मूसा अलैहहिस्सलाम  की तरफ़ वही फ़रमाई कि मैं उस शख्स की नमाज़ कबूल फ़रमाता हूं जो मेरी अजमत के सामने इन्किसारी करता है, मेरी मख्लूक पर तकब्बुर नहीं करता और उस का दिल मुझ से खौफ़ज़दा रहता है।

फ़रमाने नबवी है कि करम तकवा का, इज्जत तवाज़ोअ का और यक़ीन बे नियाज़ी का नाम है। हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम  का फ़रमान है कि दुन्या में तवाज़ोअ करने वालों के लिये खुश खबरी है, वोह कियामत के दिन मिम्बरों पर होंगे, लोगों में इस्लाह करने वालों को खुश खबरी हो, येह वोह लोग हैं जो क़यामत के दिन जन्नतुल फ़िरदौस के वारिस होंगे और दुन्या में अपने दिलों को पाक करने वालों को बिशारत हो, यही लोग कियामत के दिन दीदारे इलाही से मुशर्रफ़ होंगे।

बा’ज़ मुहद्दिसीने किराम से मरवी है, हुजूर  ने फ़रमाया : जब अल्लाह तआला ने किसी बन्दे को इस्लाम की हिदायत दी, उसे बेहतरीन सूरत दी और उसे उस के गैर पसन्दीदा मकाम से दूर रखा और इन सब नवाज़िशात के बाद उसे मुतवाजेअ बनाया, इस से साबित हुवा कि तवाज़ोअ अल्लाह की पसन्दीदगी की अलामत है।

अल्लाह तआला अपने महबूब बन्दों को चार चीजें अता फरमाता है

फ़रमाने नबवी है कि चार चीजें ऐसी हैं जो अल्लाह अपने महबूब बन्दों के सिवा किसी को अता नहीं फ़रमाता : (1)…ख़ामोशी और यह पहली इबादत है, (इलावा अज़ीं) 2…तवक्कुल 3…तवाज़ोअ और

4)…दुन्या से किनारा कशी।

मरवी है कि रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम खाना खिला रहे थे कि एक हबशी आया जो चैचक में मुब्तला था और जगह जगह से उस की खाल उधड़ चुकी थी, वोह जिस के साथ बैठता वोह उस के पहलू से उठ जाता, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने अपने पहलू में बिठाया। और इरशाद फ़रमाया : मुझे वोह आदमी तअज्जुब में डालता है जो अपने हाथ में ऐसा ज़ख्म लिये फिरता है जो लोगों के लिये बाइसे तक्लीफ़ है और इस से उस का तकब्बुर मिट गया है । एक दिन हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने अपने सहाबा से फ़रमाया : क्या बात है मैं तुम में इबादत की शीरीनी नहीं पाता ? सहाबए किराम ने अर्ज की : हुजूर ! इबादत की शीरीनी क्या है ? आप ने फ़रमाया : तवाज़ोअ !

फ़रमाने नबवी है कि जब तुम मेरी उम्मत के तवाज़ोअ करने वालों को देखो तो उन से तवाज़ोअ से पेश आओ और मुतकब्बिरीन को देखो तो उन से तकब्बुर करो क्यूंकि येह उन के लिये तहकीर और ज़िल्लत है।

इसी मौजूअ पर येह चन्द अश्आर हैं :

तवाज़ोअ कर जो उस सितारे की तरह हो जो देखने वाले को पानी की सतह पर नज़र आता है, हालांकि वोह बहुत बुलन्दी पर होता है। ..धुवें की तरह न हो जो फ़ज़ा में खुद को बुलन्द करता है हालांकि उस की कोई इज्जत नहीं होती और वोह एक बेकार चीज़ है।

कनाअत की फ़ज़ीलत

कनाअत के मुतअल्लिक़ जो कुछ पहले बयान किया जा चुका है, उस से भी ज़ियादा अहादीसो अक्वाल कनाअत की फ़ज़ीलत में वारिद हुवे हैं, चुनान्चे, फ़रमाने नबवी है कि मोमिन की इज्जत लोगों से बे परवाई में है,

कनाअत में आज़ादी और इज्जत है। इसी लिये कहा गया है कि उस से बे नियाज़ हो जा जिसे तू चाहता है उस जैसा हो जाएगा जिस की तरफ़ हाजत ले कर जाएगा तू उस का कैदी होगा और जिस पर चाहे एहसान कर तू उस का सरदार होगा, थोड़ा माल जो तुझे किफ़ायत करे, उस ज़ियादा माल से बेहतर है जो तुझे गुमराह कर दे।

एक बुजुर्ग का कौल है कि मैंने कनाअत से अफ़ज़ल कोई मालदारी नहीं देखी और लालच से बढ़ कर तंगदस्ती नहीं देखी और येह अश्आर पढ़े :

कनाअत ने जब मुझे इज्जत का लिबास दिया और कौन सा वोह तमव्वुल है जो कनाअत से ज़ियादा बा इज्जत हो। पस उसे अपने नफ्स के लिये अस्ल पूंजी बना ले और इस के बाद परहेज़गारी को ज़खीरा कर ले। (3).तू दो गुना नफ्अ पाएगा, दोस्त से कुछ तलब करने से बे नियाज़ हो जाएगा और एक घड़ी सब्र के बदले जन्नत में इन्आमो इकराम पाएगा।

एक और शाइर कहता है:

..अपने जिस्म को मामूली गुजर बसर पर सब्र करने वाला बना वरना येह तुझ से तेरी ज़रूरत से बढ़ कर मालो दौलत मांगेगा। .तेरी ज़िन्दगी की मुद्दत इतनी ही है जितनी इस लम्हे की मुद्दत है जिस में तू सांस ले रहा है।

एक और शाइर कहता है:

अगर रिज्क तुझ से दूर है तो सब्र कर और जो कुछ मिल गया है उसी पर कनाअत कर ।अपने नफ़्स को उस (रिज्क) के हासिल करने में ज़हमत न दे, अगर वोह तेरा मुक़द्दर है तो क्या वोह मुझे मिल जाएगा !

एक और शाइर कहता है:

जब तुझे बखीलों का तमव्वुल हरीस बनाए तो उस वक्त कनाअत तुझे सैराब करने के लिये काफ़ी होगी। ऐसा जवान बन जिस का पाउं तहतुस्सरा में हो और उस के इरादों की चोटी सुरय्या को छु रही हो।

दूसरा शाइर कहता है :

ऐ आसानी से हासिल होने वाले रिज्क को कुव्वत से तलाश करने वाले ! अफसोस ! तू झूटी महब्बत में मुब्तला है, गलत चीज़ में दिल लगा रहा है। शेर अपनी तमाम तर कुव्वत के बा वुजूद जंगल के मुर्दार खाते हैं और मख्खियां अपनी कमज़ोरी के बा वुजूद शहद खाती हैं।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का तरीका येह था कि जब आप भूक महसूस फ़रमाते तो अहले बैते किराम से फ़रमाते कि नमाज के लिये खड़े हो जाओ और फ़रमाते : मुझे येही हुक्म दिया गया है और येह आयत पढ़ते :

“अपने घर वालों को नमाज़ का हुक्म कर और इस पर सब्र कर”

शाइर कहता है:

दुन्या की ज़ीनत और इस की गिरिफ़्तारी को तर्क कर दे और तुझे बहुत मालदार होने की हिर्स व आरजू फ़रेब में मुब्तला न करे। अल्लाह की तक्सीम पर कनाअत कर और उस पर राजी हो जा क्यूंकि कनाअत ऐसी दौलत है जो कभी ख़त्म नहीं होती। तू इस तमाम तर बेहूदा ऐश को तर्क कर दे क्यूंकि जब तू उसे ब गौर देखेगा तो उस में कोई नफ्अ नहीं पाएगा।

बा’ज़ शो’रा का कौल है :

जो कुछ तुझे बिगैर कोशिश के मिल जाता है उसी पर ‘कनाअत’ कर ले कि रब्बे जुल जलाल तो हशरातुल अर्ज में से किसी को भी नहीं भूलता । (रिज्क पहुंचाता है) ..अगर ज़माना तुझे इन्आमात से नवाजे तो खड़ा हो जा और अगर वक्त तुझ से पीठ फेर ले तो तू सो जा।

दानाओं का कौल है कि इज्जत खूब सूरत कपड़ों की मरहूने मिन्नत नहीं है क्यूंकि फ़राख दस्ती में बेहतरीन लिबास पहनना खूब सूरत कपड़ों से आरास्ता होना आदमी को मसरूफ़ कर देता है यहां तक कि दुन्यावी महब्बत की वज्ह से वोह दीनी उमूर की परवा नहीं करता और ऐसा आदमी बहुत ही कम तकब्बुर व खुदबीनी से खाली होता है।

बा’ज़ शो’रा का कहना है :

मैं दुन्या से सूखी रोटी और मोटे कपड़े पर राज़ी हूं और मुझे इन के सिवा कुछ नहीं चाहिये। .क्यूंकि मैं ने ज़माने को फानी उनी देखा है लिहाज़ा मेरी उम्र और ज़माना दोनों फ़ना होने वाले हैं।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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तकब्बुर का बुरा अंजाम

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 तकब्बुर की मज़म्मत और बद अन्जामी के मुतअल्लिक़ क़ब्ल अज़ी जो कुछ लिखा जा चुका है, अब इस में कुछ और इज़ाफ़ा किया जाता है।

तकब्बुर पहला गुनाह है

तकब्बुर वो पहला गुनाह है जो इब्लीस से सरज़द हुवा, फिर अल्लाह तआला ने इस पर ला’नत की, इसे उस जन्नत से जिस की चौड़ाई आस्मान और ज़मीन के बराबर है, निकाल कर जहन्नम के अज़ाब में फेंक दिया।

हदीसे कुदसी में है : रब तआला फ़रमाता है कि “तकब्बुर मेरी चादर और बड़ाई मेरा लिबास है, जो शख्स इन दो में से किसी एक के बारे में मुझ से झगड़ा करेगा मैं उस के दांत तोड़ दूंगा और मुझे किसी की परवा नहीं है”

हदीस में वारिद है कि मुतकब्बिर (घमंड करने वाला), इन्सानों की शक्ल में च्यूंटियों की तरह कब्रों से उठेंगे, हर तरफ़ से ज़िल्लतो रुस्वाई उन्हें ढांप लेगी और उन्हें दोज़खियों की पीप की मिट्टी पिलाई जाएगी। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : तीन शख्स ऐसे हैं कि अल्लाह तआला कियामत के दिन उन से ‘कलाम’ नहीं करेगा, उन की तरफ़ नहीं देखेगा और उन के लिये दर्दनाक अज़ाब है : ‘बूढ़ा ज़ानी’, ‘ज़ालिम बादशाह’ और ‘सरकश मुतकब्बिर’ ।

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हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : उन्हों ने येह आयत पढ़ी :

और जब उसे कहा जाता है कि अल्लाह से  डर तो उस को इज्जत ने गुनाह के साथ पकड़ा। फिर फ़रमाया : बेशक हम अल्लाह के लिये हैं और बेशक हम उसी की तरफ़ लौटने वाले हैं ।

एक मुतकब्बिर ने एक ऐसे शख्स को जो “नेकी और अच्छी बातों का हुक्म देता था” कत्ल कर दिया तो दूसरा शख्स खड़ा हो गया और उस ने कहा : तुम उन लोगों को क़त्ल करते हो जो तुम्हें अच्छी बातें और नेक अमल करने का हुक्म देते हैं, तब मुतकब्बिर ने उसे भी कत्ल कर दिया जिस ने उस की मुखालफत की और उसे भी जिस ने उसे नेकी का हुक्म दिया था।

हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : इन्सान के गुनहगार होने के लिये इतना काफ़ी है कि जब उसे अल्लाह से डरने को कहा जाए तो वो येह कहे कि तुम अपना ख़याल रखो !  हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने एक शख्स से फ़रमाया कि दाएं हाथ से खाओ, उस ने कहा : मैं दाएं हाथ से खाने की ताक़त नहीं रखता, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि तू ताकत नहीं रखेगा। उस शख्स को दाएं हाथ से खाना खाने से तकब्बुर ने रोक दिया था, रावी कहते हैं कि इस के बाद उस शख्स ने उस हाथ को न उठाया या’नी वोह शल हो गया (और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने उस के हक़ में जो इरशाद फ़रमाया था वो पूरा हो गया)।

रिवायत है कि हज़रते साबित बिन कैस बिन शम्मास रज़ीअल्लाहो अन्हो ने अर्ज किया : या रसूलल्लाह ! मैं ऐसा आदमी हूं कि खूब सूरत लिबास और साफ़ सुथरा रहने को पसन्द करता हूं क्या यह तकब्बुर है ? आप ने फ़रमाया : नहीं बल्कि तकब्बुर हक़ से चश्म पोशी करना और लोगों को हक़ीर समझना है, हालांकि वो अल्लाह के बन्दे हैं ।

हज़रते वहब बिन मुनब्बेह रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि जब हज़रते मूसा अलैहहिस्सलाम  ने फ़िरऔन से कहा : ईमान ला, तेरा मुल्क तेरे ही पास रहेगा तो फ़िरऔन ने कहा : मैं हामान से मश्वरा कर लूं, चुनान्चे, जब उस ने हामान से मश्वरा किया तो उस ने कहा कि अब तक तो तू रब रहा है, लोग तेरी इबादत करते रहे हैं और अब तू इबादत करने वाला बन्दा बनना चाहता है ? फ़िरऔन ने येह मश्वरा सुना तो तकब्बुर की वज्ह से अल्लाह का बन्दा बनने और मूसा अलैहहिस्सलाम  की पैरवी करने से इन्कार कर दिया, पस अल्लाह तआला ने उसे गर्क कर दिया।

अल्लाह तआला ने कुरैश के बारे में फ़रमाया है कि जब उन्हें इस्लाम की दावत दी गई तो वोह कहने लगे :

यह कुरआने मजीद उन दो बस्तियों (मक्का और

ताइफ) के बड़े लोगों पर क्यूं नहीं उतारा गया। हज़रते कतादा रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि दो बस्तियों के बड़ों से मुराद वलीद बिन मुगीरा और अबू मसऊद सकफ़ी थे, कुरैशे मक्का ने उन का ज़िक्र इस लिये किया था कि वोह ज़ाहिरी मालो दौलत में नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से आगे बढ़े हुवे थे और उन्हों ने कहा : मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम) तो यतीम इन्सान हैं अल्लाह तआला ने उन्हें कैसे हमारे लिये भेजा है !

अल्लाह तआला ने फ़रमाया :

क्या वो तेरे रब की रहमत तक्सीम करते हैं ? फिर अल्लाह तआला ने उन के जहन्नम में दाखिल होने के वक्त उन के इस तअज्जुब की खबर दी है जब कि उन्हों ने अहले सुफ्फा को जिन्हें वो हकीर समझते थे, जहन्नम में न देखा तो फिर वो कहेंगे कि: “और हमें क्या हो गया है कि हम उन लोगों को नहीं देखते जिन्हें हम शरीरों से गिना करते थे। रिवायत है कि अशरार से उन की मुराद हज़रते अम्मार, बिलाल, सुहैब और मिक्दाद रज़ीअल्लाहो अन्हो होंगे।

हज़रते वहब रज़ीअल्लाहो अन्हो का कहना है कि इल्म, आस्मान से नाज़िल होने वाली साफ़, शफ़्फ़ाफ़ मीठी बारिश की तरह है जिसे पौधे  अपनी जड़ों के जरीए पी कर अपने जाइके बदला करते हैं, चुनान्चे, कड़वे की कड़वाहट और मीठे की मिठास बढ़ती है, इसी तरह लोग इल्म को अपनी हिम्मतों और ख्वाहिशात के मुताबिक़ हासिल करते हैं और इस से मुतकब्बिर का तकब्बुर और मुतवाजेअ का इन्किसार बढ़ता है और यह इस लिये होता है कि जिस जाहिल का नसबुल ऐन और मतमहे नज़र तकब्बुर होता है, जब वो इल्म हासिल कर लेता है तो उसे एक ऐसी चीज़ मिल जाती है जिस की वज्ह से वो और ज़ियादा तकब्बुर कर सकता है और वोह तकब्बुर ही में बढ़ता चला जाता है और जब कोई शख्स बे इल्मी के बा वुजूद अल्लाह से खाइफ़ रहता है तो जब वो इल्म हासिल करता है तो उसे मा’लूम हो जाता है कि उस के लिये खौफे खुदा के मुकम्मल दलाइल लाए गए हैं, चुनान्चे, उस का ख़ौफ़, शफ़्क़त और इन्किसारी बढ़ती है। चुनान्चे, हज़रते अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : एक क़ौम होगी जो कुरआन पढ़ेंगे मगर वो उन के हल्क़ से नीचे नहीं जाएगा, कहेंगे कि हम ने कुरआन पढ़ा है, हम से ज़ियादा अच्छा कारी और आलिम कौन है ? फिर आप ने सहाबए किराम की तरफ़ मुतवज्जेह हो कर फ़रमाया : ऐ उम्मत ! वो तुम में से होंगे वोह जहन्नम का ईंधन होंगे।

हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि मुतकब्बिर उलमा न बनो कि तुम्हारा इल्म तुम्हारी जहालत से आगे न बढ़े।

हिकायत – गुनाहगार और आबिद का किस्सा

बनी इस्राईल में एक शख्स था जिस के कसरते गुनाह और फ़ितना व फ़साद की वज्ह से उसे बनी इस्राईल का खलीअ कहा जाता था जिस के मा’ना हैं अपने गुनाहों से बनी इस्राईल को आजिज़ करने वाला, एक मरतबा उस का ऐसे इन्सान से गुज़र हुवा जिसे बनी इस्राईल का आबिद कहा जाता था, आबिद के सर पर बादल का टुकड़ा साया किये हुवे था, जब उस गुनहगार ने आबिद को देखा तो उस के दिल में ख़याल आया कि मैं बनी इस्राईल का बदबख्त तरीन आदमी हूं और येह बनी इस्राईल का आबिद है, अगर मैं इस के पास बैठ जाऊं तो शायद अल्लाह तआला मुझ पर भी रहम कर दे, चुनान्चे, वोह आबिद के पास जा कर बैठ गया, आबिद के दिल में ख़याल आया कि मैं बनी इस्राईल का आबिद हूं और येह बनी इस्राईल का बदबख़्त आदमी है, येह मेरे साथ कैसे बैठेगा ! उसे बहुत शर्म महसूस हुई और उस बदबख़्त से कहा : यहां से उठ जाओ ! उस वक्त अल्लाह तआला ने बनी इस्राईल के उस ज़माने के नबी पर वही फ़रमाई कि उन दोनों को नए सिरे से इबादत शुरू करने का हुक्म दीजिये क्यूंकि मैं ने बदबख़्त को बख़्श दिया है और आबिद के आ’माल को बरबाद कर दिया है।

दूसरी रिवायत है कि बादल का टुकड़ा आबिद के सर से हट कर बदबख्त के सर पर साया फ़िगन हो गया । येह बात तुम पर इस हक़ीक़त को अच्छी तरह वाजेह कर देगी कि अल्लाह तआला बन्दों के दिलों को देखता है।

मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में एक शख्स का तजकिरा बड़े अच्छे अल्फ़ाज़ में किया गया, एक मरतबा वोही शख्स नज़र आया तो सहाबए किराम ने अर्ज़ की : या रसूलल्लाह ! येह वोही शख्स है जिस का हम ने आप के सामने तजकिरा किया था । हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : मुझे इस के चेहरे पर शैतान का असर नज़र आता है। उस शख्स ने आ कर सलाम किया और हुजूर के सामने बैठ गया, आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने उस शख्स से फ़रमाया कि मैं तुझे खुदा की कसम दे कर पूछता हूं : तेरे नफ़्स ने कभी तुझ से येह कहा है कि कौम में मुझ से अफ़्ज़ल कोई नहीं है ? उस ने कहा : ब खुदा ऐसा हुवा है और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने नूरे नबुव्वत से उस के दिल में मौजूद तकब्बुर का असर उस के चेहरे पर देख लिये। ।

तकब्बुर के बारे में इरशादाते सहाबा

हज़रते हारिस बिन जइज्जुबैदी सहाबी रज़ीअल्लाहो अन्हो का इरशाद है कि मुझे हर वोह मज्हका खैज़ कारी तअज्जुब में डालता है जिस से तू तो खन्दा पेशानी से मिलता है और वोह तुझे नाक भौं चढ़ा कर मिलता है और तुझ पर अपने इल्म का एहसान जताता है, अल्लाह तआला मुसलमानों से ऐसे कारियों को ख़त्म करे ।

हज़रते अबू जर रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि मैं ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की मौजूदगी में एक शख्स से तल्ख कलामी की और उसे कहा : ऐ हबशी के बेटे ! हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने येह सुन कर फ़रमाया : ऐ अबू ज़र ! साअ को हल्का कर ! साअ को हल्का कर ! किसी सफ़ेद को सियाह पर फजीलत नहीं है।”

हज़रते अबू ज़र रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं कि येह सुनते ही मैं लेट गया और उस शख्स से कहा : उठो और मेरा चेहरा रौंद डालो।

हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो का फ़रमान है कि जो शख्स किसी जहन्नमी को देखना चाहता है वोह ऐसे आदमी को देखे जो खुद बैठा हुवा हो और लोग उस के सामने खड़े हों।

हज़रते अनस रज़ीअल्लाहो अन्हो का फ़रमान है कि सहाबए किराम को कोई शख्स हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से ज़ियादा महबूब न था, जब वोह हुजूर को देखते तो खड़े न होते क्यूंकि उन्हें इल्म था कि आप इस चीज़ को अच्छा नहीं समझते। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  बा’ज़ अवकात अपने सहाबा के साथ चलते तो उन्हें आगे चलने का हुक्म फ़रमाते और खुद उन के दरमियान चलते, येह इस लिये करते ताकि दूसरों को तालीम हो या फिर कल्बे अन्वर से तकब्बुर और बड़ाई के शैतानी वसाविस के निकालने के लिये ऐसा करते जैसा कि नमाज़ में नया कपड़ा पहन कर फिर पुराना पहन लेते, उस में भी येही हिक्मत होती थी।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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यतीमों पर जुल्म, यतीमों का माल खाने से मुमानअत

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

फ़रमाने इलाही है :

बेशक जो लोग नाहक यतीमों का माल खाते हैं सिवाए इस के नहीं कि वोह अपने पेटों में आग खाते हैं और अलबत्ता वोह जहन्नम में जाएंगे।

हज़रते कतादा रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि येह आयत बनी गतफ़ान के एक शख्स के हक़ में नाज़िल हुई, वोह अपने छोटे यतीम भतीजे का सरपरस्त बना और उस का तमाम माल खा गया।

नाहक और जुल्म से येह मुराद है कि वोह ऐसा करते हुवे हकीकत में यतीमों पर जुल्म करते हैं। इस वईद में वोह लोग दाखिल नहीं हैं जो कुतुबे फ़िक़ह में मुन्दरजा शराइत के मुताबिक़ इन के माल में तसर्रुफ़ करते हैं और खाते हैं।

फ़रमाने इलाही है: और जो ग़नी हो उसे चाहिये कि वोह बच्चे (यतीमों के माल से कुछ न ले) और जो फ़कीर  हो उसे चाहिये कि इन्साफ़ के साथ खाए। यानी वोह अपनी लाज़िमी ज़रूरत के मुताबिक़ ले ले या बतौरे कर्ज या अपने काम की उजरत के बराबर खाए या वोह इज़तिराब की हालत में हो लिहाज़ा अगर बाद में वोह फ़राख दस्त हो जाए तो यतीम का खाया हुवा माल वापस करे वगरना येह उस के लिये हलाल है।

 

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और अल्लाह तआला ने यतीमों के हुकूक पर ताकीद फ़रमा कर और उन से ज़ियादा शफ्कत व उल्फ़त रखने का जिक्र फ़रमा कर लोगों को तवज्जोह दिलाई है और इस इब्तिदाई आयत से पहले वाली आयत में इरशाद फ़रमाया है कि और बेशक डरें वह लोग इस बात से कि अगर वह अपने पीछे ना तवां औलाद छोड़ जाएँ वोह उन पर खौफ़ खाएं और चाहिये कि अल्लाह से डरें और चाहिये कि मोहकम बात कहें। इस आयते करीमा में उन लोगों के अक्वाल के बर अक्स जो इसे एक तिहाई से ज़ियादा वसिय्यत करने और इस जैसी और बातों पर महमूल करते हैं, आयिन्दा आने वाली आयत से रब्त देते हुवे येह मुराद है कि जिस शख्स की सर परस्ती में यतीम हो वोह इस से बेहतर सुलूक करे, यहां तक कि उसे ऐसे बुलाए जैसे वोह अपनी औलाद को बुलाता है, या’नी उसे “ऐ बेटे” कह कर बुलाए और उस से ऐसी भलाई, एहसान और नेक सुलूक करे और उस के माल को इस तरीके से खर्च करे जैसा कि वोह अपने मरने के बाद अपनी औलाद और अपने माल से सुलूक की आरजू रखता है क्यूंकि क़ियामत के दिन का मालिक रब्बे जुल जलाल आ’माल के मुताबिक जज़ा देता है या’नी जैसा करोगे वैसा भरोगे जैसे तुम दूसरों के साथ सुलूक करोगे वोही सुलूक तुम्हारे साथ किया जाएगा।

बसा अवक़ात इन्सान बे खौफ़ हो कर दूसरे के माल और औलाद  में तसर्रुफ़ करता है कि उसे अचानक मौत आ लेती है और अल्लाह तआला उसे उस के माल, औलाद  खानदान और तमाम तअल्लुकात की वैसी ही जज़ा देता है जैसा सुलूक उस ने दूसरे के साथ किया होता है, अगर अच्छा सुलूक किया होता है तो अच्छी जज़ा, और अगर बुरा सुलूक किया होता है तो बुरी जज़ा मिलती है।

लिहाज़ा हर अक्लमन्द को चाहिये कि अगर उस के दिल में दीन का खौफ़ न हो, तब भी उसे अपनी औलाद और माल की ख़ातिर खौफ़ करना चाहिये और यतीमों के माल को जो उस की सरपरस्ती में हैं, ऐसे खर्च करे जैसे वोह अपनी औलाद  के माल में उन के यतीम होने की उन के सरपरस्त से खर्च करने की उम्मीद रखता है।

अल्लाह तआला ने हज़रते दावूद अलैहहिस्सलाम  की तरफ़ वहय की, कि ऐ दावूद ! यतीम के लिये मेहरबान बाप की तरह और मुफ्लिस बेवा के लिये मेहरबान शोहर की तरह हो जा और जान ले कि जैसा बोएगा वैसा ही काटेगा या’नी तू जैसा करेगा वैसा ही तुझ से किया जाएगा क्यूंकि आख़िर एक दिन मरना है, तेरी औलाद को यतीम और बीवी को बेवा होना है।

यतीमों के माल खाने और उन पर जुल्म करने के मुतअल्लिक बहुत सी अहादीस में शदीद वईदें आई हैं जैसा कि मजकूरए बाला आयत में लोगों को इस तबाह कुन, बेहूदा और ज़लील हरकत से बाज़ रखने के लिये सख्त तम्बीह की गई है।

मुस्लिम वगैरा में मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : ऐ अबू ज़र ! मैं तुझे कमज़ोर समझता हूं और मैं तेरे लिये वोही कुछ पसन्द करता हूं जो अपने लिये पसन्द करता हूं, कभी दो पर हुक्मरान न बन और माले यतीम को अच्छा न समझ ।

बुखारी व मुस्लिम वगैरा में है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया है कि सात मोहलिक बातों से बचो, सहाबए किराम ने अर्ज की : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम वोह कौन सी हैं ? आप ने फ़रमाया : अल्लाह के साथ शरीक बनाना, जादू, नाहक किसी को क़त्ल करना, सूद खाना और यतीम का माल खाना वगैरा ।

हाकिम ने सनदे सहीह के साथ रिवायत की है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : चार शख्स ऐसे हैं कि येह अल्लाह का अद्ल होगा कि उन्हें जन्नत में न दाखिल करे और न ही उन्हें जन्नत की ने’मतों से लुत्फ़ अन्दोज़ होने दे, शराबी, सूद खोर, नाहक यतीमों का माल खाने वाला और वालिदैन का ना फ़रमान ।

सहीह इब्ने हब्बान में रिवायत है कि इन बातों में जो आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हज़रते अम्र बिन हज़्म रज़ीअल्लाहो अन्हो के तवस्सुत से यमन वालों को जो अहकाम भेजे थे, उन में येह भी था कि

कियामत के दिन अल्लाह तआला की बारगाह में सब से बड़ा गुनाह अल्लाह का शरीक ठहराना, नाहक़ किसी मोमिन को क़त्ल करना, जंग के दिन मैदान से जिहाद फ़ी सबीलिल्लाह से फ़रार, वालिदैन की ना फ़रमानी, पाकबाज़ औरतों पर इत्तिहाम लगाना, जादू सीखना, सूद खाना और यतीम का माल खाना है।

 यतीमों का माल नाहक खाना और इसका बदला

अबू याओला रहमतुल्लाह अलैह की रिवायत है कि क़ियामत के दिन कब्रों से एक ऐसी कौम उठाई जाएगी जिन के मुंह से आग भड़क रही होगी, अर्ज की गई : या रसूलल्लाह ! वोह कौन हैं ? आप ने फ़रमाया : क्या तुम ने फ़रमाने इलाही नहीं देखा : बेशक जो लोग जुल्म के तौर पर यतीमों का माल खाते हैं सिवाए इस के नहीं कि वोह अपने  पेट में आग खाते हैं। मुस्लिम की रिवायत से मे’राज शरीफ़ की हदीस में है :

पस में अचानक ऐसे आदमियों के पास आया जिन पर कुछ लोग मुकर्रर थे जो उन की दाढ़ियां नोच रहे थे और कुछ लोग जहन्नम के पथ्थर ला कर उन के मुंह में डाल रहे थे जो उन के पीछे से निकल रहे थे, मैं ने कहा : ऐ जिब्रील ! येह कौन हैं ? जिब्रील ने कहा : जो लोग नाहक यतीमों का माल खाते हैं वोह अपने पेट में आग खा रहे हैं, पस इस के सिवा और कुछ नहीं  (येह वोही लोग हैं)

शबे में राज नबिय्ये अकरम रज़ीअल्लाहो अन्हो का माले नाहक खाने वालों पर गुजर

कुरतुबी की तफ़्सीर में हज़रते अबू सईद खुदरी रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है, इन्हों ने नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से रिवायत की है, आप ने फ़रमाया :

मे’राज की रात मैं ने ऐसी कौम को देखा जिन के होंट ऊंट के होंटों जैसे थे और उन पर कुछ लोग मुकर्रर हैं जो उन के होंट पकड़ कर उन के मुंह में जहन्नम के पथ्थर डाल रहे हैं जो उन के नीचे से निकल रहे हैं, तब मैं ने पूछा : जिब्रील ! येह कौन हैं ? जिब्रील बोले : येह वोह हैं जो नाहक यतीमों का माल खाया करते थे।)

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

 

 

 

 

 

ज़ुल्म करने की मनाही

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

फ़रमाने इलाही है : “और अन क़रीब ज़ालिम जान लेंगे कौन सी फिरने की जगह फेरे जाएंगे। फ़रमाने नबवी है कि जुल्म कियामत के दिन तारीकी होगी।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने मजीद फ़रमाया : जो शख्स एक बालिश्त जमीन जुल्म से हासिल कर लेता है, अल्लाह तआला उस के गले में सातों ज़मीनों का तौक डालेगा।

बा’ज़ कुतुब में मरकूम है कि अल्लाह तआला फ़रमाता है : उस आदमी पर जुल्म मेरे गज़ब को भड़का देता है जिस का मेरे सिवा कोई मददगार नहीं है। किसी शाइर ने क्या खूब कहा है :

जब तू साहिबे इक्तिदार हो तो किसी पर हरगिज़ जुल्म न कर क्यूंकि जुल्म का अन्जाम शर्मिन्दगी है। तेरी आंखें सोएंगी मगर मज़लूम की आंखें जाग कर तेरे लिये अल्लाह तआला से बद दुआ करेंगी और अल्लाह तआला कभी सोता नहीं है।

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दूसरा शाइर कहता है :

जब मज़लूम ज़मीन पर चले और ज़ालिम बुरे आ’माल में हद से ज़ियादा बढ़ जाए, तो तू उस को मसाइबे ज़माना के सिपुर्द कर दे क्यूंकि ज़माना उसे वोह सबक़ देगा जो उस के वहमो गुमान में भी नहीं होगा।

अस्लाफ़े किराम में से बा’ज़ का कौल है कि कमज़ोरों पर जुल्म न कर, वरना तू बद तरीन ताकतवरों में से हो जाएगा।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि ज़ालिम के जुल्म की वज्ह से जज्र (सुरखाब) अपने आश्याने में मर जाता है।

कहते हैं : तौरैत में मरकूम था कि पुल सिरात के इस तरफ़ मुनादी निदा करेगा : ऐ सरकश ज़ालिमो ! ऐ बद बख़्त ज़ालिमो ! बेशक अल्लाह तआला ने अपनी इज्जत की कसम खाई है कि आज ज़ालिम का जुल्म पुल सिरात से नहीं गुज़रेगा (ज़ालिम पुल सिरात से नहीं गुज़र सकेंगे)।

हज़रते जाबिर रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि जब मुहाजिरीने हबशा हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की ख़िदमत में वापस लौट कर आ गए तो आप ने उन से फ़रमाया कि तुम ने हबशा में कोई अजीब बात देखी हो तो मुझे बतलाओ ! हज़रते कुतैबा रज़ीअल्लाहो अन्हो उन्ही मुहाजिरीन में से थे, उन्हों ने अर्ज की : या रसूलल्लाह ! सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मेरी तरफ़ तवज्जोह फ़रमाइये ! मैं बतलाता हूं : हम एक दिन बैठे हुवे थे कि हबशा की एक बूढ़ी औरत सर पर पानी का बरतन रखे जा रही थी, जब वोह एक हबशी जवान के करीब से गुज़री तो उस ने खड़े हो कर बुढ़िया के दोनों कन्धों पर हाथ रख कर उसे धक्का दिया जिस से बुढ़िया घुटनों के बल जा गिरी और उस का मटका टूट गया, वोह उठी और जवान की तरफ़ मुतवज्जेह हो कर कहने लगी : ऐ गद्दार ! तू अन करीब जान लेगा जब कि अल्लाह तआला अदालत फ़रमाएगा और पहले पिछले सब लोगों को जम्अ करेगा और हाथ पाउं आदमी के आ’माल की गवाही देंगे। अल्लाह के यहां तू भी अपना और मेरा फ़ैसला कल सुन लेगा। रावी कहते हैं : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने येह सुन कर फ़रमाया कि अल्लाह तआला ऐसी कौम को कैसे फलाह देगा जो ताकतवरों से कमज़ोरों को बदला नहीं दिला सकती।।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मरवी है : आप ने फ़रमाया : पांच आदमी ऐसे हैं जिन पर अल्लाह तआला गज़बनाक होता है, अगर वोह चाहेगा तो दुन्या में उन्हें अपने गज़ब का निशाना बनाएगा वरना (आखिरत में) उन्हें जहन्नम में डालेगा :

(1)हाकिमे कौम जो खुद तो लोगों से अपने हुकूक ले लेता है मगर उन्हें उन के हुकूक नहीं देता

और उन से जुल्म को दफ्अ नहीं करता।

2 कौम का काइद, लोग जिस की पैरवी करते हैं और  ताकतवर और कमज़ोर के दरमियान फैसला नहीं कर सकता और ख्वाहिशाते नफ़्सानी के मुताबिक़ गुफ्तगू करता है (हदीस में हज़रते कुतैबा के बजाए सहाबिय्या का जिक्र है)

3 घर का सरबराह जो अपने घर वालों और औलाद  को अल्लाह की इताअत का हुक्म नहीं देता और उन्हें दीनी उमूर की ता’लीम नहीं देता।

4) ऐसा आदमी जो उजरत पर मजदूर लाता है और काम मुकम्मल करवा के उस की उजरत पूरी नहीं देता, और

5 वोह आदमी जो अपनी बीवी का हक्के महर दबा कर उस पर ज़ियादती करता है।

हज़रते अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है, आप ने फ़रमाया : अल्लाह तआला ने जब मख्लूक को पैदा फ़रमाया और वोह खड़े हो गए तो उन्हों ने अल्लाह की तरफ़ सर उठा कर देखा और कहा : ऐ अल्लाह ! तू किस के साथ होगा ? रब्बे जलील ने फ़रमाया : मज़लूम के साथ यहां तक कि उसे उस का हक़ दिया जाए।

एक बुढ़िया पर जुल्म के बाइस हलाकत

वह्न बिन मुनब्बेह रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं : किसी ज़ालिम बादशाह ने शानदार महल बनवाया, एक मुफ्लिस बुढ़िया आई और उस ने महल के पहलू में अपनी कुटया बना ली जिस में वोह सुकून से रहती थी एक मरतबा जालिम बादशाह ने सवार हो कर महल के इर्द गिर्द चक्कर लगाया तो उसे बुढ़िया की कुटया नज़र आई, उस ने पूछा : येह किस की है ? कहा गया : येह एक बुढ़िया की है और वोह इस में रहती है चुनान्चे, उस ने हुक्म दिया कि इसे गिरा दो लिहाजा उसे गिरा दिया गया, जब बुढ़िया वापस आई तो उस ने अपनी मुन्हदिम कुटया देख कर पूछा कि इसे किस ने गिरा दिया है ? लोगों ने कहा : इसे बादशाह ने देखा और गिरा दिया, तब बुढ़िया ने आस्मान की तरफ़ सर उठाया और कहा : ऐ अल्लाह ! अगर मैं हाज़िर नहीं थी तो तू कहां था ? अल्लाह तआला ने जिब्रील अलैहहिस्सलाम  को हुक्म दिया : महल को इस के रहने वालों पर उलट दो और ऐसा ही किया गया।

कहते हैं कि एक बरमकी अमीर और उस के बेटे को जब एक अब्बासी अमीरुल मुस्लिमीन ने कैद कर दिया तो बेटे ने कहा : ऐ अब्बा जान ! हम बा इज्जत होने के बाद कैद कर दिये गए हैं, बाप ने जवाब दिया, बेटे ! मजलूमों की फरयादें रातों को सफ़र करती रहीं, हम उन से गाफ़िल रहे मगर अल्लाह तआला उन से गाफ़िल नहीं था। यज़ीद बिन हकीम कहा करते थे : मैं कभी किसी से खौफजदा नहीं हुवा अलबत्ता मुझे एक शख्स ने डरा दिया या’नी मैं ने उस पर येह जानते हुवे जुल्म किया कि अल्लाह के सिवा उस का कोई मददगार नहीं है, वोह मुझ से कहता था कि मुझे अल्लाह काफ़ी है, अल्लाह तआला तेरे और मेरे दरमियान फैसला करेगा।

हज़रते अबी उमामा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : ज़ालिम कियामत के दिन आएगा जब वोह पुल सिरात पर पहुंचेगा तो उसे मज़लूम मिल जाएगा और वोह अपने जुल्म को खूब पहचान लेगा लिहाज़ा ज़ालिम मज़लूमों से नजात नहीं पाएंगे यहां तक कि जुल्म के बदले उन की नेकियां ले लेंगे और उन की नेकियां नहीं होंगी तो उन के जुल्म के बराबर अपने गुनाह ज़ालिमों पर डाल देंगे यहाँ तक की  ज़ालिम जहन्नम के सब से निचले तबके में भेजे जाएंगे।

हज़रते अब्दुल्लाह बिन अनीस रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि मैं ने रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को येह फ़रमाते सुना है : क़ियामत के दिन लोग नंगे बदन, नंगे पाउं, गैर मखतूं, सियाह सूरतों में उठेंगे । पस मुनादी निदा करेगा : जिस की आवाज़ ऐसी होगी जो दूरो नज़दीक है कि वोह जन्नत में जाए बा वुजूद येह कि उस पर किसी जहन्नमी की दाद ख़्वाही रहती हो चाहे वोह एक थप्पड़ ही क्यूं न हो या इस से ज़ियादा हो और कोई जहन्नमी जहन्नम में न जाए दर-आं-हाल येह किर) उस पर किसी का हक रहता हो, चाहे वोह एक थप्पड़ हो या इस से ज़ियादा हो

और तेरा रब किसी एक पर भी जुल्म नहीं करेगा, हम ने अर्ज की : या रसूलल्लाह ! येह कैसे हो सकेगा हालांकि हम तो उस दिन नंगे बदन, नंगे पाउं होंगे, आप ने फ़रमाया : नेकियों और बुराइयों के साथ मुकम्मल बदला दिया जाएगा और तुम्हारा रब किसी एक पर जुल्म नहीं करेगा।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मरवी है : जो नाहक एक चाबुक मारता है, क़ियामत के दिन उस का बदला लिया जाएगा ।

हिकायत – उस्ताद ने शहजादे को ज़ुल्म की सीख

किसरा  ने अपने बेटे के लिये एक उस्ताद मुकर्रर किया जो उसे तालीम देता था और अदब सिखाता, जब वोह बच्चा मुकम्मल तौर पर इल्मो फज्ल से बहरा वर हो गया तो उस्ताद ने उसे बुलाया और बिगैर किसी जुर्म और बिगैर किसी सबब के उसे इन्तिहाई दर्दनाक सज़ा दी, उस लड़के ने अपने उस्ताद के इस रविय्ये को बहुत ही बुरा समझा और दिल में उस की तरफ़ से अदावत पैदा हो गई यहां तक कि वोह जवान हो गया, उस का बाप मर गया और बाप के बाद वोह बादशाह बन गया। बादशाही संभालते ही उस ने उस्ताद को बुला कर पुछा  : आप ने फलां दिन बिगैर किसी जुर्म और बिगैर किसी सबब मुझे इतनी दर्दनाक सज़ा क्यूं दी थी ? उस्ताद ने कहा : ऐ बादशाह ! जब तू इल्मो फ़न के कमाल तक पहुंच गया तो मुझे मालूम हो गया कि बाप के बाद तू बादशाह बनेगा, में ने सोचा तुझे सज़ा का जाइका और जुल्म की तक्लीफ से मुवाफिक कर दूं ताकि तू इस के बा’द किसी पर जुल्म न करे, बादशाह ने कहा : अल्लाह तआला आप को जज़ाए खैर दे और फिर उन का वज़ीफ़ा मुकर्रर कर दिया और उन के अख़राजात की अदाएगी का हुक्म सादिर कर दिया।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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Zalim par azaab, zulm karne wale pr azaab, zulm hadees, zulm aur zalim

तौबा की फ़ज़ीलत

 (हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

तौबा की फ़ज़ीलत में बहुत सी आयात वारिद हैं, फ़रमाने इलाही है : और तौबा करो अल्लाह की तरफ़ ऐ मोमिनो ! ताकि तुम फ़लाह पाओ। और फ़रमाया :  और जो लोग अल्लाह के साथ कोई और मा’बूद नहीं पुकारते और नाहक किसी इन्सान को कत्ल नहीं करते जिस के क़त्ल को अल्लाह ने हराम कर दिया है और ज़िना नहीं करते और जो कोई येह काम करेगा सख़्त मुसीबत से मुलाकात करेगा कियामत के दिन उसे दुगना अज़ाब दिया जाएगा और रुस्वाई के साथ हमेशा उसी में रहेगा मगर जिस ने तौबा की और ईमान लाया और अच्छे अमल किये पस येह लोग अल्लाह तआला इन की बुराइयों को नेकियों में बदल देता है और अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है और जो कोई तौबा करे और अच्छे अमल करे पस बेशक वोह रुजू करता है

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अल्लाह की तरफ़ रुजूअ करना ।

तौबा के मुतअल्लिक़ बहुत सी अहादीस हैं । मुस्लिम की एक हदीस है कि बेशक अल्लाह तआला अपनी रहमत को रात में वसीअ करता है ताकि दिन में गुनाह करने वाले तौबा करें और वोह उन की तौबा क़बूल फ़रमाए और इसी तरह दिन को अपना दस्ते रहमत दराज़ फ़रमाता है ताकि रात के गुनाहगारों की तौबा कबूल फ़रमाए यहां तक कि मगरिब से सूरज तुलूअ होगा।) (रोज़े कियामत तक)

तिर्मिज़ी की हदीस है : मगरिब की तरफ़ एक दरवाज़ा है जिस की चौड़ाई चालीस या सत्तर साल के सफ़र के बराबर है, अल्लाह तआला ने उसे आस्मानो जमीन की पैदाइश के वक्त से तौबा के लिये खोला है और उसे बन्द नहीं करेगा जब तक की मगरिब से सूरज तुलूअ होगा। (रोज़े कियामत तक)

तिर्मिज़ी की हदीसे सहीह है : अल्लाह तआला ने मगरिब में तौबा के लिये एक दरवाज़ा बनाया है जिस का अर्ज सत्तर साल के सफ़र के बराबर है, अल्लाह उस वक्त तक इसे बन्द नहीं फ़रमाएगा जब तक कि इस से पहले सूरज मगरिब से तुलूअ न करे।

चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है : जिस दिन तेरे रब की बा’ज़ निशानियां आएंगी किसी को उस का ईमान नफ्अ नहीं देगा। येह कहा गया है कि येह रिवायत और पहले वाली रिवायत के मरफूअ होने की तसरीह नहीं मिलती जैसा कि बैहक़ी ने इस की तसरीह की है, इस का जवाब येह है कि ऐसी बातें अपनी अक्ल और समझ से नहीं कही जातीं लिहाज़ा येह हदीस मरफूअ के हुक्म में होगी।

तबरानी ने जय्यद सनद से नक्ल किया है कि जन्नत के आठ दरवाजे हैं, सात दरवाजे बन्द हैं और एक दरवाजा तौबा के लिये खुला है यहां तक कि सूरज मगरिब से तलअ होगा।

इब्ने माजा ने जय्यद सनद से येह हदीस रिवायत की है कि अगर तुम इतने गुनाह करो कि तुम्हारे गुनाह आस्मानों तक पहुंच जाएं, फिर तुम तौबा करो तो अल्लाह तआला तुम्हारी तौबा क़बूल फ़रमा लेगा।

हाकिम की सहीह रिवायत है कि येह बात इन्सान की सआदत मन्दी की अलामत है कि उस की ज़िन्दगी तवील हो और अल्लाह तआला उसे तौबा की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए ।

तिर्मिज़ी, इब्ने माजा और हाकिम की रिवायत है कि हर इन्सान खताकार है और बेहतरीन खताकार तौबा करने वाले हैं।

एक खताकार और उसकी मुआफ़ी

बुख़ारी व मुस्लिम की हदीस है कि एक बन्दे ने गुनाह किया, फिर अल्लाह की बारगाह में अर्ज किया : ऐ अल्लाह ! मैं ने बहुत बड़ा गुनाह किया है, मेरा येह गुनाह मुआफ़ फ़रमा दे, रब ने फ़रमाया : मेरा बन्दा जानता है कि उस का खुदा है जो गुनाह पर मुआवज़ा करता है और गुनाहों को मुआफ़ करता है लिहाजा उस का गुनाह मुआफ कर दिया, फिर वोह इन्सान जितनी मुद्दत अल्लाह ने चाहा गुनाहों से रुका रहा, फिर उस ने दूसरा गुनाह कर लिया और कहा : ऐ अल्लाह ! मैं ने और गुनाह कर लिया, इसे मुआफ़ फ़रमा दे, तब रब्बे जलील ने फ़रमाया : मेरा बन्दा जानता है कि उस का खुदा गुनाहों को बख्श देता है और गुनाहों के सबब पकड़ लेता है लिहाज़ा अल्लाह ने उस का गुनाह मुआफ़ फ़रमा दिया फिर जितने दिन अल्लाह तआला ने चाहा वोह रुका रहा ता आंकि उस ने और गुनाह कर लिया और अर्ज़ किया कि या अल्लाह ! मैं ने फिर गुनाह किया है, मेरे इस गुनाह को मुआफ़ फ़रमा दे, रब ने फ़रमाया : मेरा बन्दा जानता है कि उस का खुदा गुनाहों को मुआफ़ फ़रमा देता है और इन पर मुआखज़ा भी करता है। इसी सबब उस के गुनाहों को मुआफ कर दिया जाता है और रब फ़रमाता है : मैं ने अपने बन्दे को बख़्श दिया, जो चाहे अमल करे ।

मुन्ज़िरी रहमतुल्लाह अलैहका कौल है : “जो चाहे अमल करे” का मतलब येह है कि अल्लाह अलीमो खबीर है, उसे इल्म है कि जब भी मेरा येह बन्दा गुनाह करेगा फ़ौरन ही गुनाह से तौबा कर लेगा और उस की दलील येह है कि वोह जूही गुनाह करता है तौबा कर लेता है और जब उस का येह तरीका हो कि गुनाह करते ही दिल की गहराइयों से तौबा कर ले तो ऐसी सूरत में उसे गुनाह नुक्सान नहीं देंगे, इस का येह मा’ना नहीं है कि वोह ज़बान से तौबा करे मगर दिल से गुनाहों से इज़हारे नफ़रत न करे और बार बार गुनाह करने लग जाए क्यूंकि येह झूटों की तौबा है।

मुहद्दिसीन की एक जमाअत ने येह सहीह रिवायत नक्ल की है कि मोमिन जब कोई गुनाह करता है तो उस के दिल पर सियाह नुक्ता पड़ जाता है, अगर वोह तौबा कर ले, गुनाह से रुक जाए और इस्तिगफ़ार करे तो वोह नुक्ता साफ़ हो जाता है और अगर वोह गुनाह करता रहता है तो उस का दिल सियाह नुक्तों में छुप जाता है,

इस का ज़िक्र अल्लाह तआला ने किताबे मुक़द्दस में फ़रमाया है, इरशाद होता है :

हरगिज़ नहीं येह बल्कि उन के दिलों पर उन के

आ’माल ने जंग चढ़ा दिया है। तिर्मिज़ी की रिवायत है कि अल्लाह तआला बन्दे की तौबा कबूल फ़रमाता है जब तक कि उस की रूह गले तक न पहुंच जाए।

 

रसूले  अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की हजरते मुआज को नसीहतें

तबरानी और बैहक़ी ने हज़रते मुआज़ रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने मेरा हाथ पकड़ा और कुछ दूर चलने के बा’द फ़रमाया : ऐ मुआज़ ! मैं तुझे

अल्लाह से डरने, सच्ची बात करने, वा’दा पूरा करने, अमानत की अदाएगी, खियानत से परहेज़, यतीम पर रहम, हमसाए की हिफ़ाज़त, गुस्सा ज़ब्त करने, नर्मी गुफ्तार, बहुत सलाम करने, हाकिम की इताअत, कुरआन में गौरो फ़िक्र, आखिरत को महबूब रखने, हिसाब से डरने, थोड़ी उम्मीदों और बेहतरीन अमल की वसिय्यत करता हूं और मुसलमान को गाली देने, झूटे की तस्दीक करने, सच्चे को झुटलाने, हाकिमे आदिल की ना फ़रमानी करने और जमीन में फ़ितना व फ़साद फैलाने से तुझे रोकता हूं, ऐ मुआज ! अल्लाह तआला का हर दरख्त और पथ्थर के पास जिक्र कर और हर पोशीदा गुनाह की छुप कर तौबा कर और हर जाहिरी गुनाह की ज़ाहिर में तौबा कर ।

 

तौबा करने वाले का गुनाह हर जगह से मिटा दिया जाता है

अस्बहानी की रिवायत है कि जब बन्दा अपने गुनाहों से तौबा कर लेता है तो अल्लाह तआला उस के मुहाफ़िज़ फ़रिश्तों को, उस के आ जाए बदन को और जमीन के उस टुकड़े को जिस पर उस ने गुनाह किया है उस बन्दे का गुनाह भुला देता है यहां तक कि वो कियामत में अल्लाह की बारगाह में पेश होगा और उस के गुनाहों की कोई गवाही देने वाला नहीं होगा।

अस्बहानी की एक रिवायत है कि गुनाहों पर शर्मसार अल्लाह तआला की रहमत का मुन्तज़िर होता है और मुतकब्बिर अल्लाह तआला की नाराज़ी का मुन्तज़िर होता है, ऐ अल्लाह के बन्दो ! जान लो कि हर अमल करने वाला अपने अमल को पाएगा और दुन्या से नहीं निकलेगा यहां तक कि वोह अपने अच्छे और बुरे आ’माल को देख लेगा और आ’माल का दारो मदार उन के खातिमे पर है, और रात, दिन तुम्हारी सवारियां हैं इन पर सवार हो कर आखिरत की तरफ़ अच्छा सफ़र करो, तौबा में ताखीर से बचो क्यूंकि मौत अचानक आती है, तुम में से कोई अल्लाह तआला के हिल्म की वज्ह से सुस्त न हो जाए क्यूंकि आग तुम से तुम्हारे जूते से भी करीब है, फिर हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने येह आयत पढ़ी : पस जो कोई ज़र्रा बराबर नेकी करेगा उसे देखेगा और जो कोई ज़र्रा बराबर बुराई करेगा उसे देखेगा ।

तबरानी येह हदीस नक्ल करते हैं कि गुनाहों से तौबा करने वाला उस शख्स की तरह है जिस का कोई गुनाह न हो।

बैहकी ने येह हदीस एक दूसरे तरीके से नक्ल की है, उस में येह लफ़्ज़ ज़ियादा हैं : गुनाहों से इस्तिगफार करने वाला जो बराबर गुनाह भी किये जा रहा है, ऐसा है जैसे वोह रब तआला से मज़ाक कर रहा हो ।

सहीह इब्ने हब्बान और हाकिम की रिवायत है कि गुनाहों पर शर्मिन्दगी तौबा है या’नी शर्मिन्दगी तौबा का अहम रुक्न है जैसे हज में वुकूफे अरफ़ात है।

तौबा के लिये ज़रूरी है कि वोह सिर्फ गुनाहों के ख़राब होने और अल्लाह तआला के अज़ाब से डरते हुवे की जाए, अपनी बेइज्जती के डर से या रूपये पैसे के जाएअ होने की वज्ह से न हो।

हाकिम ने सनदे सहीह से येह हदीस नक्ल की है लेकिन इस में एक रावी साक़ित है कि अल्लाह तआला किसी बन्दे के गुनाहों पर पशेमानी और शर्मिन्दगी देखता है तो उसे बखिशश तलब करने से पहले बख्श देता है।

मुस्लिम वगैरा की हदीस है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लमने फ़रमाया : उस ज़ात की कसम जिस के कब्जए कुदरत में मेरी जान है ! अगर तुम गुनाह न करो और बखशिश तलब न करो तो अल्लाह तआला तुम्हें नाबूद कर दे और तुम्हारे बदले में ऐसी कौम को लाए जो गुनाह करें और अल्लाह तआला से बख्रिशश तलब करें फिर अल्लाह तआला उन्हें मुआफ़ फ़रमा दे ।

मुस्लिम की हदीस है : कोई ऐसा नहीं है जिसे अल्लाह तआला से ज़ियादा अपनी तारीफ़ पसन्द हो, इसी लिये अल्लाह तआला ने अपनी तारीफ़ फ़रमाई है और कोई भी अल्लाह तआला से ज़ियादा गैरत वाला नहीं है, इसी लिये अल्लाह तआला ने बद कारियों को हराम कर दिया है और कोई एक ऐसा नहीं है जो अल्लाह तआला से ज़ियादा उज्र पसन्द करने वाला हो इसी के लिये अल्लाह तआला ने किताबें नाज़िल की और रसूलों को भेजा।

एक जानिया की तौबा

मुस्लिम की रिवायत है कि एक औरत जुहैना जो ज़िना से हामिला हुई थी हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की ख़िदमत में आई और अर्ज की : या रसूलल्लाह ! सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मैं काबिले हद हूं, मुझ पर हद जारी फ़रमाइये, हुजूर  ने उस के सर परस्त को बुला कर फ़रमाया कि इस से हुस्ने सुलूक करना और जब इस का बच्चा पैदा हो जाए तो इसे मेरे पास ले आना, चुनान्चे, उस शख्स ने ऐसा ही किया और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हुक्म फ़रमाया कि इस औरत के कपड़े अच्छी तरह बांध दिये जाएं, फिर आप ने उसे संगसार करने का हुक्म दिया और बाद में आप ने उस की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई । हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने अर्ज की : या रसूलल्लाह ! आप ने इस ज़ानिया की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई ? आप ने फ़रमाया : इस ने ऐसी तौबा की है कि अगर वोह मदीने के सत्तर आदमियों पर बांट दी जाए तो सब को पूरी हो जाए, क्या तुम ने इस से कोई अफ्जल शख्स देखा कि वोह खुद को अल्लाह की हुदूद के इजरा के लिये ले आई है।

तिर्मिज़ी ने ब सनदे हसन, सहीह इब्ने हब्बान और ब सनदे सहीह हाकिम ने हज़रते इब्ने उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है, इन्हों ने कहा : मैं हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की गुफ्तगू सुनता था, आप एक या दो मरतबा (और इन्हों ने सात मरतबा तक गिना) से ज़ियादा किसी बात को नहीं दोहराया करते थे मगर येह बात मैं ने आप से इस से भी ज़ियादा बार सुनी है, आप फ़रमाते थे कि बनी इस्राईल में एक किफ्ल नामी शख्स था, वोह गुनाहों से परहेज़ नहीं करता था, एक मरतबा वोह एक औरत के पास गया और उसे साठ दीनार दे कर गुनाह पर रज़ामन्द कर लिया, चुनान्चे, जब वोह बुराई के इन्तिहाई करीब हुवा तो वोह औरत कांपने और रोने लगी, उस ने औरत से कहा : क्या तुम मुझे अच्छा नहीं समझती हो ? वोह बोली नहीं बल्कि बात येह है कि मैं ने ऐसी बुराई कभी नहीं की है और आज मैं किसी ज़रूरत से मजबूर हो कर येह कर रही हूं। उस ने येह बात सुन कर कहा : वाकेई तुम ने इस हालत में भी ऐसी बुराई नहीं की है? येह दीनार ले जाओ, मैं ने तुम्हें बख़्श दिये हैं और खुदा की कसम ! मैं आयिन्दा कभी भी गुनाह नहीं करूंगा। फिर वोह उसी रात मर गया, सुब्ह उस के दरवाजे पर लिखा हुवा था कि अल्लाह तआला ने किफ़्ल को बख़्श दिया है।

हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो से सहीह हदीस मरवी है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : दो बस्तियां थीं, एक नेकों की और दूसरी बुरों की, एक मरतबा बुरों की बस्ती से एक आदमी नेकों की बस्ती की तरफ़ जाने के इरादे से निकला मगर उसे रास्ते में मशिय्यते इलाही के मुताबिक़ मौत आ गई चुनान्चे, उस शख्स के बारे में शैतान और फ़रिश्तए रहमत का झगड़ा हो गया, शैतान बोला इस ने कभी भी मेरी ना फ़रमानी नहीं की लिहाज़ा येह मेरा है, फ़रिश्तए रहमत ने कहा कि येह तो तौबा के इरादे से जा रहा था। अल्लाह तआला ने फैसला फ़रमाया कि तुम देखो, यह कौन सी बस्ती से ज़ियादा करीब है ? उन्हों ने उसे बालिश्त नेकों की बस्ती से करीब पाया लिहाज़ा अल्लाह तआला ने उसे बख्श दिया।

मुअम्मर की रिवायत है कि मैं ने कहने वाले से सुना है, अल्लाह तआला ने नेकों की बस्ती को उस के करीब कर दिया।

कातिल, इरादए तौबा की बदौलत नजात पा गया

बुख़ारी व मुस्लिम की हदीस है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : तुम से पहले लोगों में से एक शख्स था जिस ने निनानवे कत्ल किये थे, उस ने दुन्या के सब से बड़े आलिम के मुतअल्लिक़ पूछगछ की तो लोगों ने उसे एक राहिब का पता दिया चुनान्चे, वोह राहिब के पास आया और उसे कहा : मैं ने निनानवे कत्ल किये हैं, क्या मेरी तौबा क़बूल हो सकती है ? राहिब बोला : नहीं और उस आदमी ने राहिब को भी क़त्ल कर के सो क़त्ल पूरे कर लिये, फिर उस ने दोबारा दुन्या के सब से बड़े आलिम की तलाश शुरू की तो उसे एक आलिम का पता बताया गया, वोह आलिम के पास गया और कहा कि उस ने सो कत्ल किये हैं, क्या उस के लिये तौबा मुमकिन है ? आलिम ने कहा : हां ! तेरे और तेरी तौबा के दरमियान कौन हाइल हो सकता है ! फुलां फुलां जगह जाओ वहां अल्लाह तआला के नेक, इबादत गुज़ार लोग रहते हैं, तुम भी वहीं जा कर उन के साथ इबादत करो और फिर अपने वतन वापस न आना क्यूंकि येह बहुत बुरी जगह है।

चुनान्चे, वोह चल पड़ा, जब वोह आधे रास्ते में पहुंचा तो उसे मौत आ गई, लिहाजा उस के मुतअल्लिक़ रहमत और अज़ाब के फ़रिश्तों का आपस में झगड़ा हो गया, रहमत के फ़िरिश्तों ने कहा : येह ताइब हो कर अपना दिल रहमते खुदावन्दी से लगाए आ रहा था, अज़ाब के फ़रिश्तों ने कहा : इस ने कभी कोई नेकी नहीं की, तब उन के पास आदमी की शक्ल में एक फ़रिश्ता आया जिसे उन्हों ने अपना हकम तस्लीम कर लिया, उस फ़रिश्ते ने कहा : तुम ज़मीन नाप लो, वोह जिस बस्ती के करीब था वोह उन्ही में शुमार होगा चुनान्चे, उन्हों ने ज़मीन नापी और वोह नेकों की बस्ती के करीब निकला, लिहाजा उसे रहमत के फ़रिश्ते ले गए।।)

एक रिवायत में है कि वोह एक बालिश्त नेकों की बस्ती से करीब था लिहाजा उसे भी नेकों में से कर दिया गया।

दूसरी रिवायत है कि अल्लाह तआला ने बुरों की बस्ती की जमीन की तरफ़ वहय फ़रमाई, उस से कहा : दूर हो जा और नेकों की बस्ती की ज़मीन से कहा : तू करीब हो जा और फ़रमाया : इन बस्तियों का फ़ासिला नापो तो फ़रिश्तों ने उसे एक बालिश्त नेकों की बस्ती से करीब पाया और उसे बख़्श दिया गया ।

हजरते कतादा रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो ने हमें येह बतलाया था कि जब इज़राईल आया तो उस शख्स ने अपना सीना नेकों की तरफ़ कर दिया।

तबरानी ने सनदे जय्यद के साथ येह रिवायत नक्ल की है कि एक आदमी ने बहुत ज़ियादा गुनाह किये और वोह एक शख्स के पास आया और कहा : मैं ने निनानवे बे गुनाहों को कत्ल किया है, क्या तुम मेरे लिये तौबा का कोई रास्ता पाते हो ? उस आदमी ने कहा : नहीं, चुनान्चे, इस लिये उसे भी कत्ल कर दिया और दूसरे आदमी से कहा मैं ने सो बे गुनाहों को कत्ल किया है, क्या मेरे लिये तौबा का कोई तरीका है ? उस ने कहा : अगर मैं येह कहूं कि अल्लाह तआला तौबा करने वालों की तौबा क़बूल नहीं करता तो येह सरासर झूट है, देखो फुलां मक़ाम पर एक इबादत गुज़ार जमाअत रहती है, तुम भी वहां जाओ और उन के साथ रह कर इबादत करो, चुनान्चे, वोह उन की तरफ चल पड़ा और रास्ते ही में मर गया। इस पर अज़ाब और रहमत के फ़िरिश्तों ने झगड़ा किया अल्लाह तआला ने उन के पास फ़रिश्ता भेजा जिस ने कहा कि तुम इन दोनों जगहों की जमीन नाप लो, जिस जमीन से येह करीब होगा उसी का होगा, जब ज़मीन नापी गई तो उसे च्यूंटी के बराबर इबादत गुज़ार बन्दों की बस्ती से करीब पाया गया लिहाज़ा उसे बख्श दिया गया।

तबरानी की एक और रिवायत में है कि फिर वोह दूसरे राहिब के पास आया और कहा : मैं ने सो क़त्ल किये हैं, क्या तू मेरे लिये तौबा का रास्ता पाता है ? राहिब ने कहा : तुम अपने आप पर बहुत जुल्म कर चुके हो मैं कुछ नहीं जानता लेकिन करीब ही दो बस्तियां हैं, एक को नस्रा और दूसरी को कुफ्रा कहा जाता है, नस्रा वाले हमेशा अल्लाह की इबादत करते रहते हैं, उस में कोई गुनहगार नहीं रह सकता और कुफ्रा वाले हमेशा गुनाहों में मगन रहते हैं, वहां उन के सिवा और कोई नहीं रहता, तुम नस्रा में जाओ, अगर तुम वहां साबित क़दमी से नेक अमल करते रहे तो तुम्हारी तौबा की कबूलिय्यत में कोई शक नहीं होगा। चुनान्चे, वोह नस्रा का इरादा कर के रवाना हो गया। जब वोह दोनों बस्तियों के दरमियान पहुंचा तो उसे मौत ने आ लिया, फ़िरिश्तों ने अल्लाह तआला से उस शख्स के बारे में सवाल किया तो रब्बे जलील ने फ़रमाया कि देखो येह कौन सी बस्ती से करीब है, जिस बस्ती से करीब हुवा, इसे उन्ही लोगों में से लिख दो, पस फ़िरिश्तों ने उसे च्यूटी के बराबर नस्रा से करीब पाया लिहाजा उसे नस्रा वालों में से लिख दिया गया ।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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Touba hadees, touba gunaho ko mita deti he, allah se touba, gunahon se touba

गुनाहों से डरने की फ़ज़ीलत

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 यह बात अच्छी तरह जेह्न नशीन कर लीजिये कि गुनाहों से मुतनब्बेह करने वाली बातों में खौफ़े इलाही, उस के इन्तिकाम का अन्देशा, उस की हैबत और शानो शौकत, उस के अज़ाब का डर और उस की गिरफ़्त बहुत नुमायां हैसिय्यत रखती हैं, फ़रमाने इलाही है कि

“जो लोग अल्लाह तआला के अहकामात की मुखालफ़त करते हैं वो इस अम्र से डरें कि उन्हें फ़ितना या दर्दनाक अज़ाब पहुंचे।”

मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम एक जवान के पास तशरीफ़ लाए जो नज्अ के आलम में था, आप ने फ़रमाया : अपने आप को किस आलम में पाते हो ? अर्ज किया : या रसूलल्लाह ! सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मैं अल्लाह की रहमत का उम्मीद वार हूं और अपने गुनाहों से खौफ़ज़दा हूं। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने येह सुन कर फ़रमाया कि किसी बन्दे के दिल में ऐसी दो बातें जम्अ नहीं होती मगर अल्लाह तआला उस बन्दे की उम्मीद पूरी कर देता है और गुनाहों के खौफ से उसे बे नियाज़ कर देता है ।

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वहब बिन वर्द से मरवी है : हज़रते ईसा . फ़रमाया करते थे कि जन्नत की महब्बत और जहन्नम का ख़ौफ़ मुसीबत के वक्त सब्र देता है और येह दो चीजें दुन्यावी लज्जतों, ख्वाहिशात और ना फ़रमानियों से दूर कर देती हैं।

हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : ब खुदा तुम से पहले ऐसे लोग हो गुज़रे हैं जो गुनाहों को इतना अजीम समझते थे कि वो बेहद व बे हिसाब सोने चांदी की बख्शिशों को भी अपने एक गुनाह से नजात का ज़रीआ नहीं समझते थे।

फ़रमाने नबवी है कि जो कुछ मैं सुनता हूं, क्या तुम सुनते हो ? आसमान चर चराता है और उस का हक़ है कि वोह चर चराए, रब्बे जुल जलाल की क़सम ! आस मान में चार उंगल जगह नहीं है जिस में फ़रिश्ते बारगाहे इलाही में सजदा रेज़, कियाम करने वाला या रुकूअ करने वाला न हो, जो कुछ मैं जानता हूं अगर तुम जानते तो कम हंसते और ज़ियादा रोते और निकल जाते या पहाड़ों पर चढ़ जाते और अल्लाह तआला के शदीद इन्तिकाम और हैबतो जलाल के खौफ़ से अल्लाह तआला की पनाह ढूंडते ।

एक रिवायत में हज़रते बक्र बिन अब्दुल्लाह अल मज़नी रहमतुल्लाह अलैह का कौल है : जो लोग हंसते हुवे गुनाह करते हैं वो रोते हुवे जहन्नम में जाएंगे।

हदीस शरीफ़ में है : कि अगर मोमिन अल्लाह तआला के तय्यार कर्दा तमाम अज़ाबों को जानता तो कभी भी जहन्नम से बे खौफ़ न होता ।

सहीहैन में है, जब येह आयत नाज़िल हुई :

“और अपने करीबी रिश्तेदारों को डरा”।

तो आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम खड़े हो गए और फ़रमाया : ऐ गिरौह ए  कुरैश ! अल्लाह तआला से अपने नफ्सों को खरीद लो, मैं तुम्हें अल्लाह तआला के मुआमलात में किसी चीज़ से बे परवा नहीं करूंगा, ऐ बनी अब्दे मनाफ़ ! (हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के रिश्तेदार) मैं तुम्हें अहकामे खुदावन्दी में किसी चीज़ से बे परवा नहीं करूंगा, ऐ अब्बास ! (रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के चचा) मैं आप को अल्लाह तआला के अज़ाब से किसी चीज़ से बे परवा नहीं करूंगा, ऐ सफ़िय्या ! (रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की फूफी) मैं तुम को अल्लाह के सामने किसी चीज़ से बे परवा नहीं करूंगा, ऐ फ़ातिमा ! (हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की बेटी) मेरे माल से जो चाहे मांग लो मगर मैं अल्लाह के सामने तुम्हें किसी चीज़ से बे परवा नहीं करूंगा।

हज़रते आइशा सिद्दीका रज़ीअल्लाहो अन्हा  ने येह आयत पढ़ी : “और जो लोग अल्लाह की अताकर्दा चीजों से देते हैं और उन के दिल इस बात से डरते हैं कि वोह अल्लाह तआला की तरफ़ लौटने वाले हैं”।

और पूछा : या रसूलल्लाह ! सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम क्या येह वोह शख्स है जो ज़िना करता है, चोरी करता है, शराब पीता है मगर खौफे खुदा भी रखता है ? आप ने फ़रमाया : ऐ अबू बक्र की बेटी ! ऐसा नहीं है बल्कि इस से मुराद वोह शख्स है जो नमाज़ पढ़ता है, रोज़ा रखता है, सदक़ा देता है मगर इस बात से डरता है कि कहीं वोह ना मक्बूल न हों। इसे अहमद ने रिवायत किया है।

हज़रते हसन बसरी रज़ीअल्लाहो अन्हो से कहा गया : ऐ अबू सईद ! तुम्हारी क्या राए है ? हम ऐसे लोगों की मजलिस में बैठते हैं जो हमें रहमते खुदावन्दी से उम्मीदें वाबस्ता रखने की ऐसी बातें सुनाते हैं कि हमारे दिल खुशी से उड़ने लगते हैं, आप ने फ़रमाया : ब खुदा ! तुम अगर ऐसी कौम में बैठते जो तुम्हें खौफे खुदा की बातें सुनाते और तुम को अज़ाबे इलाही से डराते यहां तक कि तुम अम्न पा लो, वोह तुम्हारे लिये बेहतर है उस चीज़ से कि तुम ऐसे लोगों में बैठो जो तुम को बे खौफ़ी और उम्मीद में रखें यहां तक कि तुम को खौफ़ आ घेरे ।

फारूके आ‘जम और अल्लाह का खौफ

हज़रत फ़ारूके आज़म, उमर बिन ख़त्ताब सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को जब नेजे से ज़ख़्मी कर दिया गया और उन की वफ़ात का वक्त करीब आया तो उन्हों ने अपने बेटे से कहा : बेटे ! मेरा चेहरा ज़मीन पर रख दो, अफ्सोस ! और शदीद अफसोस ! अगर अल्लाह ने मुझ पर रहम न फ़रमाया । हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो ने कहा : अमीरुल मोमिनीन ! आप को किस चीज़ का खौफ़ है? अल्लाह तआला ने आप के हाथ से फुतूहात कराई, शहर आबाद कराए। उन्हों ने कहा : मैं इस बात को पसन्द करता हूं कि मुझे बराबर ही में छोड़ दिया जाए या’नी न नुक्सान और न नफ्अ दिया जाए।

हज़रते जैनुल आबिदीन अली बिन हुसैन रज़ीअल्लाहो अन्हो जब वुजू से फ़ारिग होते तो कांपने लग जाते, लोगों ने सबब पूछा : तो आप ने फ़रमाया : तुम पर अफ्सोस है ! तुम्हें पता नहीं मैं किस की बारगाह में जा रहा हूं और किस से मुनाजात का इरादा कर रहा हूं।

हज़रते अहमद बिन हम्बल रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया : खौफे खुदा ने मुझे खाने पीने से रोक दिया, अब मुझे खाने पीने की ख्वाहिशात नहीं होतीं।

सहीहैन की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने उन सात आदमियों का जिक्र किया कि जिस दिन कोई साया नहीं होगा तो अल्लाह तआला उन्हें अपने अर्श के साए में जगह देगा, उन में से एक वोह आदमी है जिस ने तन्हाई में अल्लाह तआला के अज़ाब और वईद को याद किया और अपने कुसूर याद कर के खौफ़े इलाही से उस की आंखों से आंसू बह निकले और ख़ौफ़े इलाही की वज्ह से वोह नाफरमानी और गुनाहों से किनारा कश हो गया।

अजाबे जहन्नम से महफूज दो आंखें

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : दो आंखें ऐसी हैं जिन्हें आग नहीं छूएगी, एक वोह आंख जो आधी रात में अल्लाह के ख़ौफ़ से रोई और दूसरी वोह आंख जिस ने राहे खुदा में निगहबानी करते हुवे रात गुज़ारी ।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : क़ियामत के दिन हर आंख रोएगी मगर जो आंख अल्लाह की हराम कर्दा चीज़ों से रुक गई, जो आंख राहे खुदा में बेदार रही और जिस आंख से ख़ौफ़े इलाही की वजह से मख्खी के सर के बराबर आंसू निकला वोह रोने से महफूज़ रहेगी।

 खौफ़े इलाही से रोने वाला जहन्नम से आजाद है।

तिर्मिज़ी ने हसन और सहीह कह कर हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : वोह शख्स जहन्नम में हरगिज़ दाखिल नहीं होगा जो अल्लाह के ख़ौफ़ से रोया यहां तक कि दूध दोबारा थन में लौट आए और राहे खुदा का गुबार और जहन्नम का धुवां यक्जा नहीं होंगे।

हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ीअल्लाहो अन्हो का क़ौल है कि हज़ार दीनार राहे खुदा में खर्च करने से मुझे खौफे खुदा से एक आंसू बहा लेना ज़ियादा पसन्द है।

हज़रते औन बिन अब्दुल्लाह रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं : मुझे येह रिवायत मिली है कि इन्सान के ख़ौफ़ खुदा से बहने वाले आंसू उस के जिस्म के जिस हिस्से पर लगते हैं, उस हिस्से को अल्लाह तआला जहन्नम पर हराम कर देता है और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का सीनए अन्वर रोने की वज्ह से ऐसे जोश मारता था जैसे हांडी उबलती और जोश मारती है  (या’नी जैसे भड़कती आग पर हांडी जोश मारती है)

कन्दी का कौल है कि खौफे खुदा से रोने वाले का एक आंसू समन्दरों जैसी तवीलो अरीज़ आग को बुझा देता है।

इब्ने सम्माक की अपने नफ्स को सर जनिश

हज़रते इब्ने सम्माक रहमतुल्लाह अलैह अपने नफ्स को सर-ज़निश करते और फ़रमाते कि कहने को तो ज़ाहिदों जैसी बातें करते हो और अमल मुनाफ़िकों जैसा करते हो और इस कजरवी के बा वुजूद जन्नत में जाने का सुवाल करते हो ? दूर हो ! दूर हो ! जन्नत के लिये दूसरे लोग हैं जिन के आ’माल हमारे आ’माल से कतई मुख़्तलिफ़ हैं।

हजरत जा‘फ़र सादिक रज़ीअल्लाहो अन्हो की नसीहतें

हज़रते सुफ़यान सौरी रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं कि हज़रते जा’फ़रे सादिक़ रज़ीअल्लाहो अन्हो की खिदमत में, मैं हाज़िर हुवा और अर्ज़ की : ऐ रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के लख्ते जिगर ! मुझे वसिय्यत कीजिये ! आप ने फ़रमाया : “सुफ्यान ! झूटे में मुरुव्वत नहीं होती, हासिद में खुशी नहीं होती, गमगीन में भाईचारा नहीं होता और बद खुल्क के लिये सरदारी नहीं होती।” मैं ने कहा : ऐ रसूले खुदा के फ़रज़न्द ! कुछ और नसीहत फ़रमाइये ! आप ने फ़रमाया : ऐ सुफियान  ! अल्लाह तआला की मन्अ कर्दा चीज़ों से रुक जा तू आबिद होगा, अल्लाह की तक्सीम पर राज़ी हो तू मुसलमान होगा, जैसी तुम लोगों से दोस्ती चाहते हो तुम भी उन के साथ वैसी दोस्ती रखो, तब तुम मोमिन होगे, बुरों से दोस्ती न रख वरना तू भी बुरे अमल करने लगेगा, चुनान्चे हदीस में है कि आदमी अपने दोस्त के तरीके पर होता है, तुम येह देखो कि तुम्हारी दोस्ती किस से है ? और अपने कामों में उन लोगों से मश्वरा लो जो खौफे खुदा रखते हों, मैं ने अर्ज़ किया : ऐ रसूले खुदा के फ़रज़न्द ! कुछ और नसीहत कीजिये ! आप ने फ़रमाया : जो बिगैर कबीले के इज्जत और बिगैर हुकूमत के हैबत चाहे उसे चाहिये कि खुदा की नाफरमानी की ज़िल्लत से निकल कर अल्लाह की फ़रमां बरदारी में आ जाए, मैं ने कहा : ऐ रसूले खुदा के फ़रज़न्द ! कुछ और नसीहत फ़रमाइये ! आप ने फ़रमाया : मुझे मेरे वालिद ने तीन बेहतरीन अदब की बातें सिखलाई और फ़रमाया : ऐ बेटे ! जो बूरों की सोहबत इख़्तियार करता है, सलामत नहीं रहता, जो बुरी जगह जाता है मुत्तहम होता है और जो अपनी ज़बान की हिफ़ाज़त नहीं करता शर्मिन्दगी उठाता है।

 

इब्ने मुबारक रज़ीअल्लाहो अन्हो का कहना है कि मैं ने वुहैब बिन वर्द रज़ीअल्लाहो अन्हो से पूछा कि जो शख्स अल्लाह की ना फ़रमानी करता है, क्या वोह इबादत का मज़ा पाता है? उन्हों ने कहा : नहीं और मा’सिय्यत का इरादा करने वाला भी नहीं।

इमाम अबुल फ़रज इब्ने जौज़ी रहमतुल्लाह अलैह का क़ौल है कि ख़ौफ़ ख्वाहिशाते नफ़्सानी को जलाने वाली आग है, जिस क़दर येह आग शहवात को जलाएगी और गुनाहों से रोकेगी, उस क़दर येह बेहतरीन होगी इसी तरह जिस क़दर येह खौफ़ इबादत पर बर अंगेख्ता करेगा उसी कदर येह बेहतरीन होगा और ख़ौफ़ साहिबे इज्जत कैसे नहीं होगा, इसी से ही तो पाक दामनी, तक्वा, परहेज़गारी, मुजाहदात और ऐसे उम्दा आ’माल का जुहूर होता है जिन से अल्लाह तआला का कुर्ब हासिल होता है जैसा कि आयात व अहादीस से साबित होता है चुनान्चे, इरशादे इलाही है :

“उन लोगों के लिये हिदायत और रहमत है जो

अपने रब से डरते हैं। और फ़रमाने इलाही है :

अल्लाह उन से राजी हुवा और वोह अल्लाह से राजी हुवे येह उस के लिये है जो अपने रब से डरा।

नीज़ फ़रमाने इलाही है:

और मुझ से डरो अगर तुम ईमानदार हो।

मजीद इरशाद हुवा :

और जो शख्स अपने परवरदिगार के आगे खड़े

होने से डरता है उस के लिये दो जन्नतें हैं।

और इरशाद फ़रमाया:

अलबत्ता नसीहत हासिल करेगा जो शख्स डरता है। फ़रमाने इलाही है : सिवाए उस के नहीं कि अल्लाह के बन्दों में से आलिम डरते हैं। और हर वोह आयत या हृदीस जो इल्म की फ़ज़ीलत पर दलालत करती है वोह खौफ़ की फ़ज़ीलत पर भी दलालत करती है क्यूंकि खौफ़ इल्म ही का फल है।

इब्ने अबिदुन्या की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया जब ख़ौफ़ ए खुदा से बन्दे का जिस्म कांपता है और उस के रोंगटे खड़े हो जाते हैं उस के गुनाह ऐसे झड़ते हैं जैसे सूखे दरख्त से पत्ते झड़ते हैं।हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : अल्लाह तआला फ़रमाता है : मुझे अपनी इज्जतो जलाल की कसम ! मैं अपने बन्दे पर दो ख़ौफ़ और दो अम्न जम्अ नहीं करता, अगर वोह दुन्या में मुझ से अम्न में (बे ख़ौफ़) होता है तो मैं कियामत के दिन ख़ौफ़ज़दा करूंगा और अगर दुन्या में वोह मुझ से डरता है तो मैं उसे कियामत के दिन बे खौफ़ कर दूंगा।

अबू सुलैमान अद्दारानी रहमतुल्लाह अलैह का कौल है कि हर वोह दिल जिस में ख़ौफ़ खुदा नहीं है वीराना है, और फ़रमाने इलाही है :  पस खुदा की तदबीर से बे खौफ़ नहीं होते मगर ख़सारा पाने वाली कौम ही बे खौफ़ होती है।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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जहन्नम के हालात और गुनाहगारों के लिए अज़ाब

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 अबू दावूद, निसाई और तिर्मिज़ी की रिवायत है : जब अल्लाह तआला ने जन्नत और जहन्नम को पैदा फ़रमाया तो जिब्रील .को भेजा कि जन्नत और उस में जो कुछ मैं ने जन्नतियों के लिये तय्यार किया है उसे देख आओ, जिब्रील अलैहहिस्सलाम  ने आ कर जन्नत और उस में रहने वालों के लिये तय्यार शुदा नेमतों को देखा और बारगाहे इलाही में जा कर अर्ज़ किया : तेरे इज्जतो जलाल की कसम ! जो भी इस का तजकिरा सुनेगा इस में आने की कोशिश करेगा, अल्लाह तआला ने हुक्म दिया और जन्नत पर मसाइब तारी कर दिये गए, फिर अल्लाह तआला ने फ़रमाया : जाओ और देखो कि मैं ने जन्नत में आने वालों के लिये क्या इन्तिज़ाम किया है ! जिब्रील जन्नत की तरफ़ आए तो देखा कि वो मसाइब में छुपा दी गई है चुनान्चे, जिब्रील वापस आ गए और कहा : मुझे तेरी इज्जत की कसम ! मुझे डर है कि इस में कोई नहीं जाएगा।

फिर अल्लाह तआला ने फ़रमाया : जाओ जहन्नम और इस में पहुंचने वालों के लिये मैं ने जो कुछ तय्यार किया है उसे देखो ! जिब्रील ने जहन्नम को देखा उस की एक आग दूसरी आग को रौंद रही थी जिब्रील अलैहहिस्सलाम  वापस आ गए और बारगाहे इलाही में अर्ज़ की : तेरी इज्जत की कसम ! जो भी इस का तजकिरा सुनेगा इस में नहीं आएगा, अल्लाह तआला ने हुक्म दिया और जहन्नम को शहवात से ढांप दिया गया। रब तआला ने जिब्रील से फ़रमाया : अब जाओ और इसे देखो, जिब्रील आए जहन्नम को देखा और वापस जा कर बारगाहे इलाही में अर्ज़ की : तेरी इज्जत की कसम ! मुझे डर है कि कोई भी इस में गिरने से नहीं बचेगा।

जहन्नम कैसी है वहां क्या क्या है ?

बैहक़ी ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है : इन्हों ने फ़रमाने इलाही :

बेशक जहन्नम महलों जैसी चिंगारियां फेंकती है। की तशरीह में फ़रमाया : “यह नहीं कहता कि वह दरख्तों जितनी बड़ी चिंगारियां फेंकती है बल्कि किलों और शहरों जितनी बड़ी बड़ी चिंगारियां फेंकती है।

अहमद, इब्ने माजा, सहीह इब्ने हब्बान और हाकिम की रिवायत है कि “वैल” जहन्नम की एक वादी है, काफ़िर उस में चालीस साल बराबर गिरता चला जाएगा मगर उस की गहराई तक नहीं पहुंच सकेगा।

तिर्मिज़ी की रिवायत है कि वैल जहन्नम की एक वादी है, काफ़िर सत्तर साल में भी उस की गहराई तक नहीं पहुंच सकेगा।(दोनों रिवायतों में गहराई तक पहुंचने की मुद्दत का फ़र्क है, दोनों का मक्सद यह है कि उस की गहराई बहुत ही ज़ियादा है जो बरसों में तै होगी।)।

जुब्बुल हुन का अजाब

इब्ने माजा और तिर्मिज़ी की हदीस है : आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि जुब्बुल हुज्न से अल्लाह की पनाह मांगो, सहाबए किराम ने पूछा : या रसूलल्लाह ! सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम जुब्बुल हुज्न क्या है ? आप ने फ़रमाया : जहन्नम की एक वादी है जिस से जहन्नम भी दिन में चार सो मरतबा पनाह मांगता है, पूछा गया : हुजूर ! इस में कौन जाएंगे ? आप ने फ़रमाया : वह रियाकार कारियों के लिये तय्यार की गई है जो अपने आ’माल की नुमाइश करते हैं और अल्लाह तआला के यहां सब से ज़ियादा ना पसन्द ऐसे कारी हैं जो ज़ालिम हाकिमों से मेल जोल रखते हैं।

“तबरानी” की रिवायत है कि जहन्नम में एक ऐसी वादी है कि जहन्नम उस वादी से दिन में चार सो मरतबा पनाह मांगता है और यह हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की उम्मत के रियाकारों के लिये तय्यार की गई है।

इब्ने अबिदुन्या रहमतुल्लाह अलैह की रिवायत है कि जहन्नम में सत्तर हज़ार वादियां हैं, हर वादी में सत्तर हज़ार घाटियां हैं, हर घाटी में सत्तर हज़ार सूराख हैं, हर सूराख में एक सांप है जो दोज़खियों के चेहरों को डसता रहता है।

 

बुखारी ने अपनी तारीख में येह मुन्किरुस्सनद हदीस नक्ल की है कि जहन्नम में सत्तर हज़ार वादियां हैं, हर वादी में सत्तर हज़ार घाटियां हैं, हर घाटी में सत्तर हज़ार घर हैं, हर घर में सत्तर हज़ार मकान हैं, हर मकान में सत्तर हज़ार कूएं हैं, हर कूएं में सत्तर हज़ार अज़दहे है, हर अज़दहे की बाछों में सत्तर हज़ार बिच्छू हैं, काफ़िर और मुनाफ़िक इन तमाम का अज़ाब पाए बिगैर नहीं रहेगा।

तिर्मिज़ी में मुन्कतउस्सनद रिवायत है कि जहन्नम के किनारे से अज़ीम चट्टान लुढ़काई जाती है और सत्तर साल गुज़रने के बा वुजूद भी वोह जहन्नम की गहराई तक पहुंच नहीं पाती।

हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाया करते : जहन्नम को अक्सर याद किया करो क्यूंकि उस की गर्मी सख्त, उस की गहराई बेहद है और उस में लोहे के हथोड़े हैं।

बज्जाज़, अबू या’ला, सहीह इब्ने हब्बान और बैहक़ी की रिवायत है कि अगर जहन्नम में पथ्थर फेंका जाए और उसे नीचे जाते हुवे सत्तर साल गुज़र जाएं, तब भी वोह उस की गहराई तक नहीं पहुंच सकेगा।

जहन्नम दोज़ख की गहराई

“मुस्लिम” में हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हम हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के साथ थे कि हम ने एक धमाका सुना, हुजूर ने फ़रमाया : जानते हो यह क्या था ? हम ने अर्ज़ किया : अल्लाह और उस का रसूल सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ज़ियादा जानते हैं, आप ने फ़रमाया : यह पथ्थर था जिसे अल्लाह तआला ने सत्तर साल पहले जहन्नम में डाला था अभी वह इस की गहराई तक पहुंच सका है।

तबरानी में हज़रते अबू सईद खुदरी रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने एक हौलनाक आवाज़ सुनी, जिब्रील अलैहहिस्सलाम  हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  के पास आए तो आप ने पूछा : जिब्रील येह कैसी आवाज़ थी ? जिब्रील ने अर्ज किया : येह चट्टान थी जिसे सत्तर साल पहले जहन्नम के किनारे से गिराया गया था और वोह अभी जहन्नम की गहराई तक पहुंची है, अल्लाह तआला ने चाहा कि आप को भी इस की आवाज़ सुना दी जाए, इस के बा’द किसी ने विसाल तक आप को हंसते हुवे नहीं देखा।

अहमद और तिर्मिज़ी की रिवायत है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने सर की तरफ़ इशारा कर के फ़रमाया : अगर इस जितना सीसा आस्मान से जमीन की तरफ़ फेंका जाए तो ज़मीनो आस्मान की पांच सो साला सफ़र की दूरी के बा वुजूद रात से पहले पहले यह ज़मीन पर आ जाए और अगर इसे जहन्नम के किनारे से जहन्नम में फेंका जाए तो चालीस साल गुज़रने से पहले उस की गहराई तक न पहुंच सके।

अहमद, अबू या’ला और हाकिम की रिवायत है कि अगर जहन्नम का हथोड़ा जो लोहे से तय्यार किया हुवा है, ज़मीन पर रख दिया जाए और जिन्नो इन्सान मिल कर उसे उठाना चाहें तो उसे उठा नहीं सकेंगे।

हाकिम की रिवायत है कि अगर पहाड़ पर हथोड़े की एक ज़र्ब लगाई जाए तो वोह रेज़ा रेज़ा हो कर रैत बन जाए।

इब्ने अबिन्या की रिवायत है कि अगर जहन्नम का एक पथ्थर दुन्या के पहाड़ों पर रख दिया जाए तो वोह उस की गर्मी से पिघल जाएं।

हाकिम की एक रिवायत है कि ज़मीनें सात हैं और हर ज़मीन का दूसरी जमीन के दरमियान पांच सो साल के सफ़र के बराबर फ़ासिला है, सब से ऊपर वाली जमीन मछली की पुश्त पर है जिस ने अपनी दोनों आंखें आस्मान से मिलाई हुई हैं, मछली चट्टान पर है और चट्टान फ़िरिश्ते के हाथ में है, दूसरी ज़मीन हवा का कैदखाना है, जब अल्लाह तआला ने कौमे आद की हलाकत का इरादा फ़रमाया तो वहां के ख़ाज़िन को फ़रमाया कि उन पर हवा भेज जो उन को हलाक कर दे, खाज़िन ने अर्ज़ किया : या अल्लाह ! मैं उन पर बैल के नथनों के बराबर हवा भेजूंगा, रब्बे जुल जलाल ने फ़रमाया : तब तो दुन्या की तमाम मख्लूक हलाक हो जाएगी और येह सब के लिये काफ़ी होगी, उन पर अंगूठी के सुराख के बराबर हवा भेजो और येही वोह हवा है जिस के मुतअल्लिक इरशादे इलाही है :

उस ने किसी चीज़ को नहीं छोड़ा जिस पर वोह आई मगर उसे बोसीदा हड्डी की तरह कर दिया। तीसरी जमीन में जहन्नम के पथ्थर हैं, चौथी में जहन्नम का गन्धक है, सहाबए किराम ने अर्ज किया : या रसूलल्लाह ! जहन्नम के लिये भी गन्धक है ? आप ने फ़रमाया : ब खुदा ! उस में गन्धक की कई वादियां हैं, अगर उन में बुलन्दो बाला मुस्तहकम पहाड़ डाले जाएं तो नर्म हो कर रेज़ा रेज़ा हो जाएं, पांचवीं में जहन्नम के सांप हैं जिन के मुंह गारों की तरह हैं जब वोह काफ़िर को एक मरतबा डसेंगे तो उस की हड्डियों पर गोश्त बाक़ी नहीं रहेगा।

छटी में जहन्नम के बिच्छू हैं जिन में सब से छोटा बिच्छू भी पहाड़ी खच्चर के बराबर है वोह जब काफ़िर को डसेगा तो काफ़िर जहन्नम की शिद्दत और गर्मी को भूल जाएगा।

सातवीं में इब्लीस लोहे से जकड़ा हुवा है, उस का एक हाथ आगे और एक पीछे है, जब अल्लाह तआला चाहता है कि उसे किसी बन्दे के लिये छोड़ दे तो उसे छोड़ देता है।

जहन्नम में बड़े बड़े सांप बिच्छु और अजदहे हैं

अहमद, तबरानी, सहीह इब्ने हब्बान और हाकिम की रिवायत है कि जहन्नम में बख़्ती ऊंटों की गर्दनों जैसे सांप हैं, जब उन में से कोई एक डसता है तो उस की गर्मी सत्तर साल के रास्ते की दूरी से महसूस की जाती है और जहन्नम में पहाड़ी खच्चरों जैसे बिच्छू हैं, जब वोह डसते हैं तो उन की गर्मी चालीस साल की दूरी से महसूस की जाती है ।

तिर्मिज़ी, सहीह इब्ने हब्बान और हाकिम की रिवायत है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाने इलाही के बारे में फ़रमाया है कि वोह जैतून के तेल की तल्छट की तरह होगा, जब वोह उन के चेहरों के करीब आएगा तो उन के चेहरे की खाल बालों समेत उधड़ कर उस में गिर जाएगी ।

“तिर्मिज़ी” की रिवायत है कि गर्म पानी उन के सरों पर डाला जाएगा तो वोह शदीद गर्म पानी उन के सरों से गुज़र कर उन के पेट में असर अन्दाज़ होगा और जो कुछ उन के लिये पेटों में होगा उसे बाहर निकाल देगा यहां तक कि इसी शिद्दत से उन के पैरों से बह निकलेगा और उन के वुजूद की चरबी ख़त्म कर देगा, फिर दोबारा उसे वैसे ही डाला जाएगा और बार बार इन्सानों को भी हैअते ऊला पर किया जाता रहेगा।

जहाक का कौल है कि हमीम वोह गर्म पानी है जो ज़मीनो आस्मान की पैदाइश के वक़्त से जहन्नमियों को पिलाने के वक्त तक बराबर गर्म हो रहा है और फिर उन्हें पिलाने के साथ उन के सरों पर भी डाला जाएगा।

एक कौल येह है कि वोह जहन्नम के गढ़ों में जम्अ होने वाले जहन्नमियों के आंसू होंगे जो उन्हें पिलाए जाएंगे। और भी मुख़्तलिफ़ अक्वाल हैं।

कुरआने पाक में इसी पानी का जिक्र है, इरशादे इलाही है : “और वोह गर्म पानी पियेंगे जो उन की अन्तडियां

काट देगा। अहमद, तिर्मिज़ी और हाकिम की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने इस फ़रमाने इलाही :

और उसे पीप का पानी पिलाया जाएगा जिसे वोह घूंट घूंट  पियेगा और उसे गले से उतार नहीं सकेगा। के बारे में फ़रमाया कि दोज़खी उसे अपने मुंह के करीब लाएगा तो उस की बदबू की वज्ह से उसे सख्त ना पसन्द करेगा मगर जब प्यास के मारे मुंह के और ज़ियादा करीब लाएगा तो उस का मुंह भुन जाएगा और उस के सर की खाल बालों समेत उस में गिर जाएगी और जब वोह उसे घूंट घूंट पियेगा तो वोह उस की अन्तड़ियां काट कर बाहर निकाल देगा चुनान्चे,

फ़रमाने इलाही है :

और जब वोह फरयाद करेंगे तो उन की फ़रयाद रसी की जाएगी ऐसे पानी के साथ जो गले हुवे तांबे जैसा होगा जो उन के दहनों को भून डालेगा वोह बहुत बुरा पीना है। जहन्नम का बदबू दार पानी

अहमद और हाकिम की रिवायत है कि अगर “जहन्नम” के बदबू दार पानी का डोल दुन्या में गिरा दिया जाए तो तमाम मख्लूक उस की बदबू से परेशान हो जाए, उस पानी का नाम गस्साक़ है जिस का फ़रमाने इलाही में भी जिक्र है चुनान्चे, इरशाद होता है : “पस चखो गर्म पानी और गस्साक़ को”

और जहन्नमियों के मशरूब के मुतअल्लिक़ इरशाद फ़रमाया : “मगर गर्म पानी और गस्साक़ होगा।”

गुस्साक़ के मा’ना में कुछ इख़्तिलाफ़ है ।

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि इस से मुराद वोह मवाद है जो जहन्नमियों के चमड़ों से बहेगा और बा’ज़ मुफस्सिरीन का कहना है कि इस से मुराद उन की पीप है। हज़रते का’ब रज़ीअल्लाहो अन्हो का क़ौल है कि वोह जहन्नम का एक कूआं है जिस में हर ज़हरीली चीज़ जैसे सांप बिच्छू वगैरा का ज़हर बह कर आएगा और वहां जम्अ होता रहेगा फिर काफ़िर को वहां लाया जाएगा और उसे इस में गौता दिया जाएगा, जब वोह निकलेगा तो उस का चमड़ा और गोश्त गिर चुका होगा और उस के पैरों और टांगों के पीछे चिमटा हुवा घिसटता हुवा आएगा जैसे आदमी अपने किसी कपड़े को घसीटता हुवा लाता है।

तिर्मिज़ी की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने येह आयत पढ़ी : और अगर पानी के लिये फ़रयाद करें तो उन की फरयाद रसी होगी उस पानी से कि चर्ख दिये (पिघले) हुवे धात की तरह है कि उन के मुंह भून (जला) देगा क्या ही बुरा पीना ।

अल्लाह से कमा हक्कुहू डरो और तुम हरगिज न मरो मगर येह कि मुसलमान हो कर मरो। और फ़रमाया कि जक्कुम का अगर एक क़तरा ज़मीन पर डाल दिया जाए तो मख्लूक पर जिन्दगी गुज़ारना दूभर हो जाए, उस शख्स का क्या हाल होगा जिस की गिज़ा ही ज़क्कुम होगी।

दूसरी रिवायत के अल्फ़ाज़ येह हैं : उस का क्या हाल होगा जिस का जक्कुम के सिवा कोई खाना नहीं होगा।

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से सहीह रिवायत के साथ मरवी है : उन्हों ने फ़रमाने इलाही :

और खाना गले में फंस जाने वाला। की तफ्सीर में फ़रमाया कि उस में कांटे होंगे जो हल्क पकड़ लेंगे, न ऊपर आएंगे और न नीचे पेट में उतरेंगे।

बुखारी और मुस्लिम की रिवायत है कि काफ़िर के कन्धों का दरमियानी फ़ासिला तेज़ रफ़्तार सवार के तीन दिन की मसाफ़त के बराबर होगा।

अहमद की रिवायत है कि काफिर की दाढ उहद पहाड के बराबर होगी और उस की रान बैज़ा पहाड़ की मिस्ल होगी और जहन्नम में उस की बैठक कुदैद और मक्कए मुअज्जमा के दरमियानी फ़ासिले के बराबर होगी या’नी तीन दिन के सफ़र के बराबर, उस के चमड़े की मोटाई बयालीस यमनी हाथ होगी या बयालीस अजमी हाथ, इब्ने हब्बान ने पहले कौल को तरजीह दी है।

मुस्लिम की रिवायत है कि काफ़िर की दाढ या दांत उहूद पहाड़ जैसा होगा और उस के चमड़े की मोटाई तीन दिन के सफर के बराबर होगी।

तिर्मिज़ी की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि क़ियामत के दिन काफ़िर की दाढ़ उहुद के बराबर होगी, उस की रान बैज़ा के बराबर और जहन्नम में उस की बैठक तीन दिन के सफ़र के बराबर होगी जैसे रबज़ा और मदीने का दरमियानी फ़ासिला है।

अहमद की रिवायत है : क़ियामत के दिन काफ़िर की दाढ़ उहुद पहाड़ जैसी होगी, उस के चमड़े की मोटाई सत्तर हाथ होगी, उस का बाजू बैज़ा पहाड़ जैसा, और उस की रान वरिकान(1) जैसी और जहन्नम में उस की बैठक मेरे और रबजा के दरमियानी फ़ासिले के बराबर होगी।(2) ___एक रिवायत में है कि जहन्नम में उस की बैठक तीन दिन के सफ़र के बराबर होगी जैसे रबज़ा है ।(3) अहमद, तिर्मिज़ी और तबरानी की रिवायत है : जिसे हाफ़िज़ मुन्ज़री ने अच्छी सनद वाली हदीस कहा है और तिर्मिज़ी ने उसे फुजैल बिन यज़ीद से नक्ल किया है कि काफ़िर जहन्नम में एक या दो फ़सख के बराबर लम्बी ज़बान जहन्नम में खींचता फिरेगा और लोग उसे रौंदते होंगे, एक फ़सख तीन मील के करीब होता है।

फ़ज़्ल बिन यज़ीद ने अबिल अजलान से रिवायत की है कि काफ़िर कियामत में दो फ़सख लम्बी ज़बान खींच रहा होगा और लोग उसे रौंद रहे होंगे।

बैहक़ी वगैरा की रिवायत है कि जहन्नमियों के जिस्म जहन्नम में बहुत बड़े कर दिये जाएंगे यहां तक कि उस के कान की लौ से उस के कन्धे तक सात सो साल के सफ़र का फ़ासिला होगा, उस की खाल की मोटाई सत्तर हाथ और उस की दाढ़ जबले उहुद के बराबर होगी।

अहमद और हाकिम ने ब सनदे सहीह मुजाहिद से रिवायत किया है कि हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया : जानते हो जहन्नमियों के जिस्म कितने अज़ीम होंगे ? मैं ने कहा : नहीं ! तब उन्हों ने कहा : हां ! ब खुदा ! तुम नहीं जानते कि उन के कान की लौ और उन के कन्धे के दरमियान सत्तर साल के सफ़र का फ़ासिला होगा, उस की वादियों में खून और पीप रवां होगी, मैं ने कहा : नहरें होंगी तो उन्हों ने फ़रमाया : नहीं बल्कि वादियां होंगी।) ……एक अजीम सियाह पहाड़ का नाम है ।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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