तबकाते जहन्नम और इन के अजाब

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

फ़रमाने इलाही है : उस (जहन्नम) के सात दरवाज़े हैं हर दरवाजे का जुज़ मुकर्रर है। यहां से जुज़ से मुराद गिरौह, जमाअत और फ़ीरके है और दरवाज़ों से मुराद तबकात हैं जो ऊपर नीचे बने हुवे हैं। (जहन्नम का हर तबका एक गिरोह के लिये मख्सूस है.

इब्ने जुरैज का कौल है कि जहन्नम के तबकात सात है : ‘जहन्नम’, ‘लज़ा’ फिर ‘हुतमा’, फिर ‘सईर’ फिर ‘सकर’ फिर ‘जहीम’ और फिर ‘हाविया । पहला तबका मुवहिहदीन के लिये, दूसरा यहूद के लिये, तीसरा नसारा के लिये, चौथा साईबीन के लिये, पांचवां आतीश परस्तों के लिये, छटा मुशरिकों के लिये और सातवां मुनाफ़िकों के लिये है।

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“जहन्नम” सब से ऊपर का तबका है और बाकी सब मजकूरा तरतीब के साथ इस के नीचे हैं। और ये बई मा’ना है कि अल्लाह तआला इब्लीस के पैरोकारों को सात गिरोहों में तक़सीम फ़रमाएगा और हर गिरोह  और फरीक जहन्नम के एक तबके में रहेगा, इस का सबब येह है कि कुफ्र और गुनाहों के मरातिब चूंकि मुख्तलिफ़ हैं इस लिये जहन्नम में दुखूल के लिये इन के दरजात भी मुख्तलिफ़ हैं। और यह भी कहा गया है कि इन सात तबकात को इन्सान के सात आ’जाए बदन के मुताबिक़ बनाया गया है, आ’ज़ा येह हैं : आंख, कान, ज़बान, पेट, शर्मगाह, हाथ और पैर, क्यूंकि येही आ’ज़ा गुनाहों का मर्कज़ हैं इसी लिये इन के वारिद होने के दरवाजे भी सात हैं।

हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि जहन्नम के ऊपर नीचे (तह ब तह) सात तबकात हैं लिहाज़ा पहले, पहला भरा जाएगा, फिर दूसरा, फिर तीसरा, इसी तरह सब तबकात भरे जाएंगे।

बुख़ारी ने अपनी तारीख में और तिर्मिज़ी ने हज़रते इब्ने उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जहन्नम के सात दरवाज़े हैं : इन में एक दरवाजा उस शख्स के लिये है जिस ने मेरी उम्मत पर तल्वार उठाई।

आतीशे जहन्नम की हौलनाकियां – दोज़ख की आग कैसी है?

तबरानी ने औसत में रिवायत की है कि एक मरतबा हज़रते जिब्रील अलैहहिस्सलाम  ऐसे वक्त में तशरीफ़ लाए कि उस वक्त में इस से क़ब्ल किसी वक्त में नहीं आते थे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम खड़े हो गए और फ़रमाया : जिब्रील ! क्या बात है ? मैं तुम को मुतगय्यिर देख रहा हूं ? जिब्रील ने अर्ज की : मैं उस वक्त आप के पास आया हूं जब कि अल्लाह तआला ने जहन्नम को दहका देने का हुक्म दिया है। आप ने फ़रमाया : जिब्रील ! मुझे उस आग या जहन्नम के बारे में बतलाओ ! जिब्रील अलैहहिस्सलाम  ने अर्ज की, कि अल्लाह तआला ने “जहन्नम” को हुक्म दिया और उस में एक हज़ार साल तक आग दहकाई गई यहां तक कि वोह सफ़ेद हो गई, फिर उसे हज़ार साल तक दहकाया गया यहां तक कि वोह सुर्ख हो गई, फिर उसे हुक्मे खुदावन्दी से हज़ार साल तक और भड़काया गया यहाँ तक की वोह बिल्कुल सियाह हो गई, अब वोह सियाह और तारीक है, न उस में चिंगारी रोशन होती है और न ही उस का भड़कना ख़त्म होता है और न उस के शो’ले बुझते हैं।

उस ज़ात की कसम ! जिस ने आप को नबिय्ये बरहक बना कर मबऊस फ़रमाया है, अगर सूई के नाके के बराबर भी जहन्नम को खोल दिया जाए तो तमाम अहले ज़मीन फ़ना हो जाएं, और कसम है ! उस ज़ात की जिस ने आप को हक के साथ भेजा, अगर जहन्नम के फ़रिश्तों में से एक फ़रिश्ता दुन्या वालों पर ज़ाहिर हो जाए तो ज़मीन की तमाम मख्लूक उस की बद सूरती और बदबू की वज्ह से हलाक हो जाए, और कसम है ! उस ज़ात की जिस ने आप को हक़ के साथ मबऊस फ़रमाया, अगर जहन्नम के जन्जीरों का एक हल्का “जिस का अल्लाह तआला ने कुरआने करीम में जिक्र किया है” दुन्या के पहाड़ों पर रख दिया जाए तो वोह रेज़ा रेज़ा हो जाएं

और वोह हल्का “तहतुस्सरा” में जा ठहरे, हुजूरसल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने येह सुन कर फ़रमाया : बस जिब्रील बस ! इतना तजकिरा ही काफ़ी है, मेरे लिये येह बात इन्तिहाई परेशान कुन है। रावी कहते हैं कि तब हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने जिब्रील को देखा ! वोह रो रहे हैं। आप ने फ़रमाया : जिब्रील ! तुम क्यूं रोते हो हालांकि तुम्हारा तो अल्लाह के हां बहुत बड़ा मक़ाम है। जिब्रील ने कहा : मैं क्यूं न रोऊ ? मैं ही रोने का ज़ियादा हक़दार हूं, क्या ख़बर इल्मे खुदा में मेरा इस मक़ाम के इलावा कोई और मक़ाम हो ! क्या ख़बर कहीं मुझे इब्लीस की तरह न आजमाया जाए ! वोह भी तो फ़रिश्तों में रहता था ! और क्या खबर मुझे हारूत व मारूत की तरह आज़माइश में न डाल दिया जाए ! तब हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम और जिब्रील अलैहहिस्सलाम  दोनों अश्कबार हो गए और येह अश्कबारी बराबर जारी रही यहां तक कि आवाज़ आई : “ऐ जिब्रील ! ऐ मुहम्मद ! (सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम) अल्लाह तआला ने तुम दोनों को अपनी नाफरमानी से महफूज कर लिया है” पस इस के बाद जिबील अलैहहिस्सलाम  आस्मानों की तरफ परवाज़ कर गए।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का गुज़र अन्सार की एक जमाअत से हुवा जो हंस रहे थे और फुजूल बातों में मसरूफ़ थे। आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : तुम हंसते हो ! हालांकि तुम्हारे पीछे जहन्नम है जिसे मैं जानता हूं, अगर तुम जानते तो कम हंसते और ज़ियादा रोते, तुम खाना पीना छोड़ देते और पहाड़ों की तरफ निकल जाते और इन्तिहाई मसाइब बरदाश्त कर के अल्लाह की इबादत करते।

उस वक्त अल्लाह तआला की तरफ़ से निदा आई कि ऐ मुहम्मद ! सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मेरे बन्दों को ना उम्मीद न करो, आप खुश खबरी देने वाले बना कर भेजे गए हैं, लोगों को मसाइब में डालने वाले बना कर नहीं भेजे गए, पस रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि राहे रास्त पर गामज़न रहो और रहमते खुदावन्दी से उम्मीद रखो ।

अहमद की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने जिब्रील से कहा : मैं ने कभी भी मीकाईल को हंसते हुवे नहीं देखा, इस की क्या वज्ह है ? जिब्रील ने कहा कि जब से जहन्नम को पैदा किया गया है मीकाईल अलैहहिस्सलाम  कभी नहीं मुस्कुराए ।

मुस्लिम शरीफ़ में रिवायत है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि क़ियामत के दिन जहन्नम को सत्तर हज़ार लगामें दे कर लाया जाएगा और हर लगाम के साथ सत्तर हज़ार फ़रिश्ते उसे खींच रहे होंगे।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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नमाज़ ना पढने पर (तर्केसलात) पर वईदें

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

दोज़खियों के मुतअल्लिक़ खबर देते हुवे रब्बे जलील ने फ़रमाया कि उन से जहन्नम में यह पूछा जाएगा कि “तुम को जहन्नम में क्या चीज़ ले गई वो कहेंगे कि हम नमाज़ पढ़ने वालों में से न थे और न मिस्कीनों को खाना खिलाने वालों में से थे बल्कि बहस करने वालों के साथ बहस किया करते थे।”

हजरते अहमद रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि आदमी और कुफ्र के दरमियान फ़र्क, नमाज़ का छोड़ देना है।

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नमाज़ छोड़ देने के बारे में सिहाहे सित्ता की चन्द हदीसें

मुस्लिम की रिवायत है कि आदमी और शिर्क या कुफ्र के दरमियान फ़र्क नमाज़ का छोड़ देना है।

अबू दावूद और निसाई की रिवायत है कि बन्दे और कुफ्र के दरमियान नमाज़ छोड़ देने के सिवा और कोई फर्क नहीं।

तिर्मिज़ी की रिवायत है कि कुफ्र और ईमान के दरमियान फ़र्क तर्के नमाज़ है।

इब्ने माजा की रिवायत है कि बन्दे और कुफ्र के दरमियान फ़र्क नमाज़ का छोड़ देना है।

तिर्मिज़ी वगैरा की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि हमारे और इन के दरमियान फ़र्क नमाज़ का है, जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस ने काफ़िरों जैसा काम किया।

तबरानी की रिवायत है कि जिस ने जान बूझ कर अमदन नमाज़ छोड़ दी उस ने खुल्लम खुल्ला काफ़िरों जैसा काम किया है।

एक रिवायत में है कि बन्दे और शिर्क या कुफ़्र के दरमियान फ़र्क तर्के नमाज़ है, जब उस ने नमाज़ छोड़ दी तो काफिरों जैसा काम किया।

दूसरी रिवायत में है कि बन्दे और शिर्क या कुफ्र के दरमियान नमाज़ छोड़ने के सिवा और कोई फर्क नहीं है, जिस ने “नमाज़” छोड़ दी उस ने मुशरिकों जैसा काम किया।

एक और रिवायत में है कि उस ने इस्लाम को बरह्ना कर दिया और इस्लाम की तीन बुन्यादें हैं जिन पर इस्लाम की इमारत काइम है, जिस ने इन में से एक को तर्क कर दिया, वो काफ़िर है और उस का कत्ल कर देना हलाल है, कलिमए शहादत पढ़ना या’नी अल्लाह तआला की वहदानिय्यत की गवाही देना, फ़र्ज़ नमाज़ अदा करना और रमजान के रोजे रखना।

दूसरी रिवायत जिस को अस्नादे हसन के साथ नक्ल किया गया है, यह है कि जिस ने इन में से किसी एक को छोड़ दिया वो अल्लाह तआला का मुन्किर है, उस से कोई हीला और बदला कबूल नहीं किया जाएगा और उस का खून और माल लोगों के लिये हलाल है।

तबरानी वगैरा में वो ब तरीके हसन मरवी है : हज़रते उबादा बिन सामित रज़ीअल्लाहो अन्हो ने कहा है कि मुझे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने सात बातों की वसिय्यत फ़रमाई : किसी को अल्लाह तआला के साथ शरीक न ठहराओ चाहे तुम्हें टुकड़े टुकड़े कर दिया जाए या जला दिया  जाए या फांसी पर लटका दिया जाए, जान बूझ कर नमाज़ न छोड़ो क्यूंकि जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी वो दीन से निकल गया, गुनाह और नाफरमानी न करो यह अल्लाह तआला के कहर के अस्बाब हैं और शराब न पियो क्यूंकि यह गुनाहों का मम्बअ है।।) (अल हदीस)

तिर्मिज़ी की रिवायत है कि हज़रते मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के सहाबए किराम  तर्के नमाज़ के इलावा किसी और अमल के छोड़ने को कुफ्र नहीं समझते थे।

सहीह हदीस में है कि बन्दे और कुफ्र व ईमान के दरमियान फ़र्क नमाज़ है, जब उस ने नमाज़ छोड़ दी तो गोया उस ने शिर्क किया।

बज्जाज़ की रिवायत है कि जो नमाज़ अदा नहीं करता उस का इस्लाम में कोई हिस्सा नहीं है और जिस का वुजू सहीह नहीं है उस की नमाज़ नहीं ।

तबरानी की रिवायत है कि जिस शख्स में अमानत नहीं उस का ईमान नहीं जिस का वुजू सहीह नहीं, उस की नमाज़ नहीं और जिस ने नमाज़ नहीं पढ़ी उस का दीन नहीं रहा, जैसे वुजूद में सर का मक़ाम है इसी तरह दीन में नमाज़ का मक़ाम है।

इब्ने माजा और बैहक़ी में हज़रते अबुद्दरदा से मरवी है कि मुझे मेरे हबीब सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने वसिय्यत फ़रमाई : अल्लाह तआला के साथ शिर्क न कर अगर तुझे काट दिया जाए और जला दिया जाए, फ़र्ज़ नमाज़ अमदन न छोड़ क्यूंकि जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी वो हमारे जिम्मे से निकल गया और शराब न पी क्यूंकि यह हर बुराई की कुन्जी है।

मुस्नदे बज्जाज़ में हज़रते इब्ने अब्बास  से मरवी है : आप ने फ़रमाया : जब मेरी पुतलियों की सिहहत के बा वुजूद मेरी बीनाई जाएअ हो गई तो मुझ से कहा गया कि आप कुछ नमाज़ छोड़ दें, हम आप का इलाज करते हैं, मैं ने कहा : ऐसा नहीं होगा क्यूंकि मैं ने  रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से सुना है, आप ने फ़रमाया : जिस ने नमाज छोड़ दी वो अल्लाह तआला से इस हाल में मुलाकात करेगा कि अल्लाह तआला उस पर नाराज़ होगा।

तबरानी की एक रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की ख़िदमत में एक शख्स ने हाज़िर हो कर अर्ज की, कि मुझे ऐसा अमल बताइये जिसे कर के मैं जन्नत में जाऊं। आप ने फ़रमाया : अल्लाह तआला के साथ शिर्क न कर अगर्चे तुझे अज़ाब दिया जाए और जिन्दा जला दिया जाए, वालिदैन का फ़रमां बरदार बन, अगर्चे वो तुझे तेरे तमाम मालो अस्बाब से बे दखल कर दें.

और जान बूझ कर नमाज़ न छोड़ क्यूंकि जिस ने दीदा दानिस्ता नमाज़ छोड़ दी वोह अल्लाह तआला के जिम्मे से निकल गया।

एक और रिवायत में है : अल्लाह तआला के साथ शिर्क न कर अगचे तुझे कत्ल कर दिया जाए और जला दिया जाए, वालिदैन की नाफरमानी न कर अगर्चे वो तुझे तेरे अहलो इयाल और माल से निकाल दें, फ़र्ज़ नमाज़ को अमदन न छोड़ क्यूंकि जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी वो अल्लाह तआला के जिम्मे से निकल गया, शराब कभी न पी क्यूंकि इस का पीना हर बुराई की जड़ है, खुद को “ना फ़रमानियों” से बचा क्यूंकि इन से अल्लाह तआला नाराज़ हो जाता है, अपने आप को जंग के दिन भगोड़ा बनने से बचा अगर्चे लोग हलाक हो जाएं और लोग मर जाएं मगर तू साबित कदम रह, अपनी ताकत के मुताबिक़ अपने अहलो इयाल पर खर्च कर, इन की तादीब से कभी गाफ़िल न हो और इन्हें ख़ौफ़ ख़ुदा दिलाता रह।

सहीह इब्ने हब्बान में रिवायत है कि बादल वाले दिन नमाज़ जल्दी पढ़ा लिया करो क्यूंकि जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस ने कुफ्र किया।

“तबरानी” में हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की कनीज़ हज़रते उमैमा राज़ी अल्लाहो अन्हा  से मरवी है कि मैं एक मरतबा हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के सर पर पानी डाल रही थी कि एक शख्स ने आ कर कहा : मुझे वसिय्यत फ़रमाई जाए, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : अल्लाह तआला के साथ किसी को शरीक न बना अगर्चे तुझे काट दिया जाए और जला दिया जाए, वालिदैन की “ना फ़रमानी” न कर अगरचे  वो तुझे तेरे घर और मालो दौलत के छोड़ने का कहें तो सब कुछ छोड़ दे, शराब कभी न पी क्यूंकि यह हर बुराई की कुन्जी है और फ़र्ज़ नमाज़ कभी भी जान बूझ कर न छोड़ क्यूंकि जिस ने ऐसा किया वो अल्लाह और उस के रसूल के ज़िम्मे से निकल गया।

अबू नुऐम की रिवायत है कि जिस शख्स ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी, अल्लाह तआला उस का नाम “जहन्नम” के उस दरवाजे पर लिख देता है जिस में से उसे दाखिल होना होता है ।

तबरानी और बैहक़ी की रिवायत है कि जिस ने नमाज़ छोड़ दी गोया उस का माल और अहलो इयाल (सब कुछ) ख़त्म हो गया।

हाकिम ने हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : ऐ गिरोह ए कुरैश ! तुम नमाज़ ज़रूर अदा करो और ज़कात अदा करो, नहीं तो अल्लाह तुम्हारी तरफ़ ऐसे शख्स को भेजेगा जो दीन के लिये तुम्हारी गर्दनें उड़ा देगा।

बज्जाज़ की रिवायत है कि जो शख्स नमाज़ अदा नहीं करता उस का दीन में कोई हिस्सा नहीं, और जिस का वुजू सहीह नहीं उस की नमाज़ सहीह नहीं।

मुसनद ए अहमद की एक मुरसल  रिवायत है कि अल्लाह तआला ने इस्लाम में चार चीजें फ़र्ज़ की हैं, जो शख्स इन में से तीन को पूरा करता है मगर एक को छोड़ देता है उसे अज़ाब से कोई चीज़ नहीं बचाएगी यहाँ तक की चारों पर अमल करे, नमाज़, जकात, रोज़ा और हज । अस्बहानी की रिवायत है कि जिस ने जान बूझ कर  नमाज़ छोड़ दी, अल्लाह तआला उस के आ’माल को बरबाद कर देता है और उसे अपने जिम्मे से निकाल देता है यहां तक कि वो अल्लाह की बारगाह में तौबा करे ।

तबरानी की रिवायत है कि जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस ने खुल्लम खुल्ला कुफ्र किया।

मुसनद ए अहमद में रिवायत है कि अमदन नमाज को न छोड़ो क्यूंकि जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी उस से अल्लाह और रसूल का जिम्मा खत्म हो गया ।(3) ।

इब्ने अबी शैबा और तारीखे बुख़ारी में हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो पर मौकूफ़ रिवायत है : जिस ने नमाज़ न पढ़ी वो काफ़िर है।

मुहम्मद बिन नसर और इब्ने अब्दुल बर्र  अपनी मसानीद में हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मौकूफ़ रिवायत करते हैं कि जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस ने कुफ्र किया।

इब्ने नस्र रहमतुल्लाह अलैह ने इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो से मौकूफ़ रिवायत की है कि जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस का दीन नहीं है।

इब्ने अब्दुल बर्र ने हज़रते जाबिर रज़ीअल्लाहो अन्हो तक मौकूफ़ रिवायत की है कि जिस ने नमाज़ नहीं पढ़ी वो काफ़िर है।

एक और रिवायत में है जो अबुदरदा रज़ीअल्लाहो अन्हो पर मौकूफ़ है कि जो नमाज़ अदा नहीं करता उस का ईमान नहीं है और जिस का वुजू नहीं उस की नमाज़ नहीं ।

इब्ने अबी शैबा की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस ने कुफ्र किया।मुहम्मद बिन नस्र रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि मैं ने इस्हाक से सुना, वो कहते थे : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से यह हदीसे सहीह साबित है कि आप ने फ़रमाया : तारिके नमाज़ काफ़िर है। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के जमानए मुक़द्दसा से ले कर आज तक तमाम उलमा की राए है कि तारिके नमाज़ जो बिगैर किसी उज्र के नमाज़ नहीं पढ़ता हत्ता कि नमाज़ का वक़्त निकल जाता है तो वो काफ़िर है।

हज़रते अय्यूब रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं कि तर्के नमाज़ “कुफ्र” है जिस में किसी को इख़्तिलाफ़ नहीं है। फ़रमाने इलाही है

“पर उन के बाद बुरे लोग जा नशीन हुवे जिन्हों ने

नमाज़ों को जाएअ किया और ख्वाहिशाते नफ्सानी की पैरवी की पस अन करीब वो गय्य में जाएंगे

मगर जिस ने तौबा की (वो महफूज़ रहेगा)। हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं कि जाएअ करने का यह मा’ना नहीं है कि बिल्कुल नमाज़ पढ़ते ही नहीं बल्कि यह कि इसे मुअख्खर कर के पढ़ते हैं। ।

जाया ए सलात का क्या माना है?

इमामुत्ताबिईन हज़रते सईद बिन मुसय्यब रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं कि इस आयत में ज़ियाअ से यह मुराद है कि जोहर की अस्र के वक्त और अस की मगरिब के वक्त और मगरिब की इशा के वक्त और इशा की फ़ज्र के वक्त और फ़ज्र की सूरज के तुलूअ होने के वक्त के करीब पढ़ी जाए, जो शख्स इस तरीके से नमानें पढ़ता हुवा मर जाए और उस ने तौबा न की तो अल्लाह तआला ने उस के लिये “गय्य” का वादा फ़रमाया है जो जहन्नम की एक गहरी और अज़ाब से भरपूर वादी है।

फ़रमाने इलाही है : “ऐ ईमान वालो तुम्हें तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद अल्लाह के ज़िक्र से ग़ाफ़िल न करे, और जिस ने ऐसा किया पस वो लोग खसारा पाने वाले हैं”। मुफस्सिरीन की एक जमाअत का कौल है : यहां ज़िक्र से मुराद नमाजें हैं लिहाज़ा जो शख्स नमाज़ के वक्त अपने माल की वज्ह से जैसे इस की ख़रीदो फरोख्त वगैरा में मश्गूल हो कर नमाज़ से गाफ़िल हो गया या अपनी औलाद  में मश्गूल हो कर नमाज़ भूल गया वो नुक्सान पाने वालों में से है। इसी लिये हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फ़रमान है कि क़यामत के दिन इन्सान के सब आ’माल से पहले नमाज़ का मुहासबा होगा, अगर उस की नमाजें मुकम्मल हुई तो वो फलाह व कामरानी पा गया और अगर उस की नमाजें कम हो गई तो वो खाइबो खासिर है।

और फ़रमाने इलाही है : । “पस वैल है उन नमाजियों के लिये जो अपनी नमाज़ों से बे ख़बर हैं। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : यह वो लोग हैं जो नमाजों को उन के अवकात से मुअख्ख़र कर के पढ़ते हैं। मुस्नदे अहमद की ब सनदे सहीह, तबरानी और सहीह इब्ने हब्बान की रिवायत है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने एक दिन नमाज़ का तजकिरा फ़रमाया और फ़रमाया : जिस ने इन नमाज़ों को पाबन्दी से अदा किया, वो नमाज़ उस शख्स के लिये कयामत के दिन नूर, हुज्जत  और नजात होगी और जिस शख्स ने नमाज़ों को अदा न किया कियामत के दिन उस के लिये नमाज़, नूर, हुज्जत और नजात न होगी और वो कियामत के दिन कारून, फ़िरऔन, हामान और उबय्य बिन खलफ़ के साथ होगा।

बा’ज़ उलमा का कहना है : इन लोगों के साथ तारिके नमाज़ इस लिये उठाया जाएगा कि अगर उस ने अपने मालो अस्बाब में मश्गूलिय्यत की वज्ह से नमाज़ नहीं पढ़ी तो वो कारून की तरह हो गया और उसी के साथ उठाया जाएगा, अगर मुल्क की मश्गूलिय्यत में नमाज़ नहीं पढ़ी तो फ़िरऔन की तरह है और उसी के साथ उठाया जाएगा, अगर वज़ारत की मश्गूलिय्यत नमाज़ से मानेअ हुई तो वो हामान की तरह है और उसी के साथ उठेगा, अगर तिजारत की वज्ह से नमाज़ नहीं पढ़ी तो वो उबय्य बिन खलफ़ ताजिरे मक्का की तरह है और उसी के साथ उठाया जाएगा।

बज्जाज़ ने हज़रते सा’द बिन अबी वक्कास रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि मैं ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से इस आयत के मा’ना पूछे “जो लोग अपनी नमाज़ों से बे ख़बर हैं” तो आप ने फ़रमाया कि ये वो लोग हैं जो नमाज़ों को उन के अवकात से मुअख्खर कर देते हैं।

अबू या’ला ने सनदे हसन के साथ मुसअब बिन सा’द रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल अपनी मुस्नद में नक्ल किया है । मुसअब रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं : मैं ने अपने वालिद से अर्ज की अब्बाजान ! आप ने अल्लाह तआला के इस फ़रमान पर गौर किया है : “जो लोग अपनी नमाज़ों से बे ख़बर हैं” हम में से कौन है जो नहीं भूलता और उस के ख़यालात मुन्तशिर नहीं होते ? उन्हों ने जवाब दिया इस का मतलब ये नहीं बल्कि इस का मतलब नमाज़ों का वक़्त जाएअ कर देना है।)

वैल के मा’ना सख्त अज़ाब है, एक कौल ये भी है कि वैल जहन्नम की एक वादी का नाम है अगर उस में दुन्या के पहाड़ डाले जाएं तो वो भी इस की शदीद गर्मी की वज्ह से पिघल जाएं और ये वादी उन लोगों का मस्कन है जो नमाजों में सुस्ती करते हैं और इन को इन के अवकात से मुअख्खर कर के पढ़ते हैं, हां अगर वो अल्लाह तआला की तरफ़ रुजूअ और तौबा कर लें और गुज़श्ता आ’माल पर पशेमान हो जाएं तो और बात है।

नमाज़ कज़ा होने पर वईदें

सहीह इब्ने हब्बान की रिवायत है कि जिस की नमाज़ कज़ा हो गई तो गोया उस का माल और घराना तबाह हो गया।

हाकिम की रिवायत है कि जिस ने बिगैर किसी उज्रे शरई के दो नमाजों को यक्जा किया तो वो कबीरा गुनाहों के दरवाजे में दाखिल हुवा।

सिहहाहे सित्ता की रिवायत है जिस की नमाजे अस्र क़ज़ा हो गई तो गोया उस के अहलो इयाल और माल तबाह हो गया ।

इब्ने खुजेमा रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी “सहीह” में इन अल्फ़ाज़ का इज़ाफ़ा किया है कि इमामे मालिक का कौल है कि इस से मुराद वक्त का निकल जाना है।

निसाई की रिवायत है कि नमाजों में एक नमाज़ ऐसी है कि जिस की वो नमाज़ क़ज़ा हो गई तो गोया उस के अहलो इयाल और मालो मताअ सब तबाह हो गया और वह नमाजे असर  है।

मुस्लिम और निसाई की रिवायत है कि यह नमाजे असर तुम से पहले लोगों पर पेश की गई लेकिन उन्हों ने इसे खो दिया, पस तुम में से जो शख्स इसे पाबन्दी से पढ़ता है उसे दो गुना सवाब मिलता है और इस नमाज के बाद सितारे नज़र आने तक कोई नमाज़ नहीं है (मगरिब का जब वक्त शुरू होता है तो बा’ज़ सितारों पर ताबिन्दगी आ जाती है)

अहमद, बुखारी और निसाई में रिवायत है कि जिस ने नमाजे असर  छोड़ दी उस का अमल बरबाद हो गया।

मुस्नदे अहमद और इब्ने अबी शैबा की रिवायत है कि जिस ने नमाजे असर छोड़ दी, अमदन बैठा रहा यहां तक कि नमाज़ क़ज़ा हो गई तो बेशक उस का अमल तबाह हो गया।

इब्ने अबी शैबा की मुर्सल रिवायत है कि जिस ने नमाजे असर छोड़ दी, यहां तक कि सूरज गुरूब हो गया और उस के लिये कोई उज्र भी नहीं था तो गोया उस का अमल बरबाद हो गया।

अब्दुर्रज्जाक की रिवायत है कि तुम में से किसी एक का अहल और मालो मताअ से तन्हा रह जाना नमाजे असर  के क़ज़ा हो जाने से बेहतर है ।

तबरानी और अहमद की रिवायत है कि जिस ने जान बूझ कर नमाजे असर छोड़ दी यहां तक कि सूरज गुरूब हो गया तो गोया उस के अहलो इयाल और माल बरबाद हो गया।

शाफेई और बैहक़ी की रिवायत है कि जिस की एक नमाज़ फ़ौत हो गई गोया उस का घराना और माल हलाक हो गया।)

बुखारी ने हज़रते समुरह बिन जुन्दब रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम अकसर अपने सहाबए किराम से फ़रमाया करते थे कि तुम में से किसी ने ख्वाब देखा है तो बयान करे। लोग अपने ख्वाब आप को सुनाया करते । एक सुब्ह हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हमें बतलाया कि मेरे पास दो आने वाले आए और उन्हों ने मुझे जगा कर कहा कि हमारे साथ चलिये ! मैं उन के साथ चल पड़ा यहां तक कि हम ने ऐसे आदमी को देखा जो लैटा हुवा था और दूसरा एक भारी पथ्थर लिये खड़ा था। जब वो भारी पथ्थर उस के सर पर मारता तो उस सोने वाले का सर रेज़ा रेज़ा हो जाता, फिर वोह पथ्थर उठा लेता है और उस आदमी का सर सहीह हो जाता है जैसा कि पहले था, वो फिर पथ्थर मारता है और उस का पहले जैसा हश्र हो जाता है, मैं ने उन दोनों से कहा : सुबहान अल्लाह  यह क्या है ? उन्हों ने मुझे कहा : अभी और चलिये ! और चलिये !

फिर हम एक ऐसे आदमी के पास आए जो पीठ के बल लैटा हुवा था और दूसरा हाथ में लोहे की सन्सी लिये खड़ा था और सोने वाले के चेहरे की एक जानिब सन्सी से उस की बाछ को गुद्दी की तरफ़ खींचता है और उस के नथनों और आंखों से भी येही सुलूक करता है और उस के यह आ’जाए बदन गुद्दी की तरफ़ मुड़ जाते हैं फिर वोह दूसरी सम्त से आता है और उस के साथ वोही सुलूक करता है जो पहले कर चुका है। जब वो दूसरी जानिब जाता है तो पहली जानिब चेहरा सहीह हो जाता है, फिर वोह वापस आता है और पहली तरफ़ से उस के चेहरे को वो ही  अज़िय्यत देता है, मैं ने कहा : यह क्या है? उन्हों ने कहा : अभी और चलिये और चलिये ! हम चल पड़े और तन्नूर जैसी एक चीज़ देखी, रावी कहता है कि मुझे ऐसे याद पड़ता है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने यह फ़रमाया : इस में से मिली जुली आवाजें और शोर उठ रहा था, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : हम ने देखा उस में नंगे मर्द और औरतें थीं, अचानक उन के नीचे से आग का शो’ला निकलता, जूही येह शो’ला निकलता वो शदीद घबराहट के आलम में आहो फुगां शुरू कर देते, मैं ने पूछा : यह कौन हैं ? उन्हों ने मुझ से कहा : अभी और चलिये और चलिये !

हम फिर रवाना हो गए और तब एक ऐसी नहर पर पहुंचे जो मैं समझता हूं कि खून की तरह सुर्ख थी, उस में एक आदमी तैर रहा है और नहर के किनारे पर एक आदमी बहुत से पथ्थर लिये खड़ा है, वो उसे पथ्थर मारता है और वो तैरने लगता है। जब भी वो उस के करीब आता है वो उसे पथ्थर मारता है। मैं ने उन से पूछा : ये क्या है ? उन्हों ने कहा : अभी और चलिये और चलिये । हम फिर चल दिये और एक ऐसे बद सूरत आदमी के पास आए कि तुम ने उस जैसा बद सूरत नहीं देखा होगा, वो आग भड़काता है और फिर उस के इर्द गिर्द भागने लगता है, मैं ने उन से पूछा : यह क्या है ? उन्हों ने कहा : चलिये और चलिये ! हम फिर चल पड़े और ऐसे बाग के करीब पहुंचे जिस में तवीलो अरीज़ सब्ज़ा और हर किस्म के पौदे, फूल वगैरा लगे थे और बाग के पीछे एक तवीलुल कामत आदमी है जिस का सर आस्मान से छू रहा है और उस के चारों तरफ़ छोटे छोटे बच्चे जम्अ हैं। मैं ने पूछा : यह क्या है ? और यह सब कौन हैं ? उन दो फरिश्तों ने मुझे कहा : अभी और चलिये और चलिये !

फिर हम ने एक अज़ीम दरख्त देखा, मैं ने आज तक उस जैसा तवील और हसीन दरख़्त नहीं देखा है, उन्हों ने मुझ से कहा कि इस पर चढ़िये । चुनान्चे, उस पर चढ़ कर एक ऐसे शहर में पहुंचे जो सोने चांदी की ईटों से बना हुवा था, हम ने दरवाजा खोलने को कहा तो हमारे लिये दरवाज़ा खोल दिया गया, वहां हमें कुछ इन्तिहाई हसीनो जमील और कुछ इन्तिहाई बद सूरत आदमी मिले, उन दो फरिश्तों ने उन आदमियों से कहा कि तुम जाओ और इस नहर में घुस जाओ।

आप ने फ़रमाया : तब मैं ने देखा, एक सफ़ेद पानी की नहर बह रही थी, वो लोग नहर की तरफ़ चल दिये, जब वापस आए तो हम ने देखा उन की बद सूरती जाइल हो चुकी थी और वो इन्तिहाई खूब सूरत बन गए थे।

मुझ से उन दो फ़रिश्तों ने कहा कि यह जन्नते अदन  है और यह आप की मन्ज़िल है, आप ने फ़रमाया : फिर मैं ने निगाह उठा कर ऊपर देखा तो मुझे सफ़ेद बादल की तरह एक महल नज़र आया। उन्हों ने मुझे कहा : यह आप का घर है, मैं ने उन से कहा : अल्लाह तआला तुम्हें बरकतों से नवाजे, मुझ को इजाज़त दो ताकि मैं इस में दाखिल होऊं, उन्हों ने कहा : अभी नहीं लेकिन जाएंगे आप ही ! फिर मैं ने उन से कहा : आज रात मैं ने बहुत से अजाइब देखे हैं, यह जो कुछ मैं ने देखा, क्या है ? उन्हों ने कहा : हम अभी आप को बतलाते हैं :

पहले जिस आदमी को आप ने देखा कि उस का सर पथ्थर से कुचला जा रहा है, वो ऐसा शख्स है जो कुरआने मजीद पढ़ कर उस पर अमल नहीं करता और फ़र्ज़ नमाज़ों से सो जाता है, अदा नहीं करता, वोह आदमी जिस की बाछे और नथने और आंखें सन्सी से गुद्दी की तरफ मोड़ी जा रही हैं, वोह ऐसा आदमी है जो झूट घड़ता है और झूटी बातें फैलाता है और आप ने तन्नूर जैसी इमारत में जो नंगे मर्द और औरतें देखी हैं वोह जानी मर्द व ज़ानिय्या औरतें हैं और जिस आदमी को आप ने खून की नहर में तैरते और पथ्थर खाते देखा है वोह सूदखोर है और जिस आदमी को आप ने आग भड़काते और उस के गिर्द घूमते देखा है वोह मालिक है जो जहन्नम का दारोगा है। आप ने जिस तवील आदमी को बाग में देखा है वोह हज़रते इब्राहीम अलैहहिस्सलाम  हैं और उन के इर्द गिर्द जो बच्चे थे वोह ऐसे बच्चे हैं जो बचपन ही में दीने फ़ितरत पर फ़ौत हुवे हैं।

बा’ज़ मुसलमानों ने पूछा : या रसूलल्लाह ! मुशरिकों के नन्हे मुन्ने फ़ौत हो जाने वाले बच्चे भी वहां होंगे? आप ने फ़रमाया : हां ।

और जिस जमाअत के लोगों का आप ने एक पहलू खूब सूरत और दूसरा पहलू बद सूरत देखा है, येह वोह लोग हैं जो अपने आ’माल में नेकियां बुराइयां दोनों साथ लाते हैं और अल्लाह तआला उन की गलतियों से दर गुज़र फ़रमाता है।

बज्जाज़ की रिवायत में इस तरह है कि फिर हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ऐसी कौम पर तशरीफ़ लाए जिन के सर पथ्थर से फोड़े जा रहे थे, जब वोह रेज़ा रेज़ा हो जाते तो फिर अपनी अस्ली हालत पर आ जाते और येही अज़ाब इन्हें बराबर दिया जा रहा है, आप ने पूछा : जिब्रील येह कौन हैं ? जिब्रील ने कहा : येह वोह लोग हैं जिन के सर नमाज़ पढ़ने से भारी हो जाते या’नी येह नमाज़ नहीं पढ़ते थे।1) ।

मर्दे मोमिन की नमाज

खतीब और इब्नुल नज्जार की रिवायत है कि नमाज़ इस्लाम की अलामत है जिस का दिल नमाज़ की तरफ़ मुतवज्जेह रहा और उस ने तमाम शराइत के साथ सहीह वक्त पर और सहीह तरीके से नमाज़ पढ़ी, वोह मोमिन है।

इब्ने माजा की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि रब्बे जुल जलाल का इरशाद है : मैं ने आप की उम्मत पर पांच नमाजें फ़र्ज़ की हैं और मैं ने अपने लिये वादा कर लिया है कि जो शख्स इन नमाज़ों को इन के अवकात में अदा करेगा उसे जन्नत में दाखिल करूंगा और जो इन की पाबन्दी नहीं करेगा, मेरा उस शख्स के लिये कोई वा’दा नहीं है।

अहमद और हाकिम की रिवायत है कि जिस शख्स ने यह जान लिया कि नमाज़ उस पर वाजिब और ज़रूरी है और उस ने इसे अदा किया वो जन्नत में जाएगा

तिर्मिज़ी, निसाई और इब्ने माजा की हदीस है कि कियामत में सब से पहला अमल जिस का बन्दे से मुहासबा होगा वो नमाज़ है, अगर नमाजें सहीह हुई तो वो कामयाब व कामरान हुवा और अगर नमाज़ों में नुक्सान निकला तो वो ख़ाइबो ख़ासिर हुवा, अगर उस के फ़राइज़ कम हो जाएंगे तो अल्लाह तआला फ़रमाएगा, देखो मेरे बन्दे की नफ़्ली इबादत है ? और नवाफ़िल से उस के फ़राइज़ को पूरा किया जाएगा फिर सारे आमाल का दारो मदार नमाज़ के मुआमले में कामयाबी और नाकामी पर होगा।

निसाई की हदीस में है कि क़ियामत के दिन सब से पहले इन्सान से नमाज़ का मुहासबा किया जाएगा और सब से पहले लोगों में खून का फैसला किया जाएगा।

अहमद, अबू दावूद, निसाई, इब्ने माजा और हाकिम में यह हदीस है कि क़ियामत में सब से पहले इन्सान की नमाज़ का मुहासबा होगा, अगर पूरी हुई तो इन्हें मुकम्मल लिख दिया जाएगा और अगर कम हुई तो अल्लाह तआला फ़रिश्तों से फ़रमाएगा : देखो मेरे बन्दे की नफ्ल इबादत है ? और उस से फ़र्ज़ इबादत मुकम्मल की जाएगी, फिर ज़कात का मुहासबा होगा और इसी तरह फिर सारे आ’माल का ।

इब्ने असाकिर की हदीस है कि पहली वो चीज़ जिस का बन्दे से अव्वल कियामत में मुहासबा किया जाएगा, उस की नमाज़ देखी जाएगी, अगर नमाज़ सहीह हुई तो सारे आ’माल सहीह हो गए और अगर नमाज़ में नुक्सान हुवा तो सारे आ’माल में नुक्सान पाया जाएगा, फिर अल्लाह तआला फरिश्तों से फ़रमाएगा देखो मेरे बन्दे की नफ्ली इबादत है ? अगर नफ्ली इबादत होगी तो इस से फ़राइज़ पूरे किये जाएगे, उस के बाक़ी फ़राइज़ का मुहासबा होगा येही अल्लाह तआला की बख्रिशश व रहमत का तरीका है।

तबरानी की हदीस है कि क़ियामत में सब से पहले इन्सान की नमाज़ों का सवाल होगा अगर उस की नमाजें दुरुस्त हुई तो सारे आ’माल दुरुस्त हुवे और वो नजात पा गया, अगर उस की नमाजें सहीह न हुई तो वो नाकाम व ना मुराद हुवा।)

अहमद, अबू दावूद, हाकिम और निसाई की हदीस है : क़ियामत के दिन सब से पहले इन्सान के सारे आ’माल में नमाज़ की पुरसिश होगी, अल्लाह तआला फरिश्तों से फ़रमाएगा हालांकि वो सब कुछ जानता है, कि मेरे बन्दे की नमाजें देखो, मुकम्मल हैं या ना मुकम्मल ? अगर मुकम्मल हुई तो मुकम्मल लिख दिया जाएगा और अगर कुछ कम हुई तो फ़रमान होगा : क्या मेरे बन्दे की नफ़्ल इबादत है ? अगर उस की नफ्ल इबादत हुई तो हुक्म होगा कि इस से फ़राइज़ को मुकम्मल करो, फिर इसी तरह दीगर आ’माल का मुहासबा होगा।

तयालिसी, तबरानी और अज्जियाओ फ़िल मुख़्तारा की हदीस है कि मेरे पास रब तआला का पैगाम ले कर जिब्रीले अमीन आए और कहा : रब तआला फ़रमाता है : ऐ मुहम्मद ! सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मैं ने आप की उम्मत पर पांच नमाजे फ़र्ज़ की हैं, जो शख़्स इन्हें सहीह वुजू से सहीह वक्त में सहीह रुकूअ और सुजूद से अदा करेगा, मेरा उन नमाज़ों के सबब उस से वा’दा है कि मैं उसे जन्नत में दाखिल करूंगा और जिस ने मुझ से इस आलम में मुलाकात की, कि उस की कुछ नमाजें कम हैं तो मेरा उस के साथ वा’दा नहीं है, चाहूं तो उसे अज़ाब दूं और चाहूं तो उस पर रहम करूं ।

बैहकी की हदीस है कि नमाज़ तराजू है, जिस ने इसे पूरा किया वो कामयाब है।

दैलमी की हदीस है कि नमाज़ शैतान का मुंह काला करती है, सदका उस की कमर तोड़ता है, अल्लाह के लिये लोगों से महब्बत और इल्म दोस्ती उसे शिकस्ते फ़ाश देती है, जब तुम यह आ’माल करते हो तो शैतान तुम से इतना दूर हो जाता है कि जैसे सूरज के तुलूअ होने की जगह गुरूब होने की जगह से दूर है।

तिर्मिज़ी, इब्ने हब्बान और हाकिम की रिवायत है कि अल्लाह तआला से डरो और पांच नमाजें पढ़ो, माहे रमज़ान के रोजे रखो, माल की ज़कात दो, अपने हाकिमों की इताअत करो, तुम अपने रब की जन्नत को पा लोगे।

अहमद, बुख़ारी, मुस्लिम, अबू दावूद और निसाई में हदीस है कि अल्लाह तआला के यहां सब से पसन्दीदा अमल नमाज़ को उस के सहीह वक्त में अदा करना है, फिर वालिदैन से हुस्ने सुलूक और फिर राहे खुदा में जिहाद करना है।(सहीह वक्त पर नमाज़ की अदाएगी अल्लाह को सब से जियादा महबूब है।

बैहक़ी ने हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की ख़िदमत में एक आदमी ने हाज़िर हो कर अर्ज की : मुझे बतलाइये कि अल्लाह तआला को सब से ज़ियादा कौन सा अमल पसन्द है ? आप ने फ़रमाया : नमाज़ को सहीह वक्त में अदा करना और जिस ने नमाज़ को छोड़ दिया उस का दीन नहीं और नमाज़ दीन का सुतून है। इसी लिये जब हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो को शदीद जख्मी कर दिया गया तो किसी ने आप से कहा : अमीरुल मोमिनीन ! नमाज, आप ने फ़रमाया : “बहुत अच्छा, बिला शुबा उस शख्स का दीन में कोई हिस्सा नहीं है जिस ने नमाज़ को जाएअ कर दिया” और आप ने नमाज़ पढ़ी हालांकि आप के ज़ख़्म से खून बह रहा था।

जहबी की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जब बन्दा अव्वल वक्त में नमाज़ पढ़ता है तो उस की नमाज़ आस्मानों की तरफ़ जाती है और वो नूरानी शक्ल में होती है यहां तक कि अर्शे इलाही तक जा पहुंचती है और नमाज़ी के लिये कियामत तक दुआ करती रहती है कि अल्लाह तेरी हिफ़ाज़त फ़रमाए जैसे तू ने मेरी हिफ़ाज़त की है और जब आदमी बे वक्त नमाज़ पढ़ता है तो उस की नमाज़ सियाह शक्ल में ऊपर आस्मानों की तरफ़ चढ़ती है जब वोह आस्मान तक पहुंचती है तो उसे बोसीदा कपड़े की तरह लपेट कर पढ़ने वाले के मुंह पर मारा जाता है ।

अबू दावूद की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : तीन आदमी ऐसे हैं कि अल्लाह तआला जिन की नमाज़ और ज़िक्र क़बूल नहीं करता, उन में से एक वो है जो वक्त गुज़र जाने के बाद नमाज़ पढ़ता है। बा’ज़ उलमा का कहना है : हृदीस शरीफ़ में है कि जो शख्स नमाज़ की पाबन्दी करता है उसे अल्लाह तआला पांच चीज़ों से सरफ़राज़ फ़रमाता है :

उस से तंगदस्ती खत्म कर दी जाती है

उसे अज़ाबे क़ब्र नहीं होगा

नामए आ’माल उसे दाएं हाथ में दिया जाएगा

पुल सिरात पर बिजली की तरह गुज़रेगा और

जन्नत में बिला हिसाब दाखिल होगा।

नमाज में सुस्ती पर मसाइब

जो शख्स नमाज़ों में सुस्ती करता है अल्लाह तआला उसे पन्दरह मसाइब में मुब्तला करता है : पांच दुन्या में, तीन मौत के वक्त, तीन क़ब्र में और तीन कब्र से निकलते वक्त ।

दुन्यावी मसाइब यह हैं कि ……उस की उम्र से बरकत छीन ली जाती है …….उस के चेहरे से सालिहीन की निशानी मिट जाती है .उस के किसी भी अमल का अल्लाह तआला अज्र नहीं देता…….उस की दुआ आस्मानों की तरफ़ बुलन्द नहीं होती …….नेकों की दुआओं में उस का कोई हिस्सा नहीं होता। और जो मसाइब उसे मौत के वक्त दरपेश होंगे वो येह हैं कि क…..वोह ज़लील हो कर मरेगा की…..भूका मरेगा और

…….प्यासा मरेगा, अगर उसे दुन्या के तमाम समन्दर पिला दिये जाएं तो भी उस की प्यास नहीं बुझेगी। कब्र के मसाइब येह हैं कि …क़ब्र उस पर तंग होगी यहां तक कि उस की पस्लियां एक दूसरे में पैवस्त हो जाएंगी

…….उस की कब्र में आग भड़काई जाएगी जिस के अंगारों पर वो रात दिन लौटता रहेगा

की…….उस की कब्र में एक अज़दहा मुकर्रर कर दिया जाएगा जिस का नाम शुजाअ या’नी गन्जा होगा, उस की आंखें आग की होंगी और उस के नाखुन लौहे के होंगे जिन की लम्बाई एक दिन के सफ़र के बराबर होगी, वोह कड़क दार बिजली जैसी आवाज़ में मय्यित से हम कलाम होगा और कहेगा : मैं गन्जा अज़दहा हूं, मेरे रब ने हुक्म दिया है कि मैं तुझे नमाज़ों के ज़ियाअ के बदले सुबह से शाम तक डसता रहूं, सुब्ह की नमाज़ के लिये सूरज निकलने तक, नमाजे जोहर के जाएअ करने पर तुझे ज़ोहर से अस्र तक, असर की नमाज के लिये मगरिब तक, मगरिब की नमाज़ के ज़ियाअ पर इशा तक और नमाजे इशा के जाएअ करने की वज्ह से तुझे सुब्ह तक डसता रहूं, और जब वोह उसे डसेगा वोह सत्तर हाथ ज़मीन में धंस जाएगा और कियामत तक इसी तरह उस को अज़ाब होता रहेगा,

और जो मसाइब उसे क़ब्र से निकलते हुवे हश्र के मैदान में झेलने होंगे वोह येह हैं: …….सख्त हिसाब ……अल्लाह की नाराजी और ….जहन्नम में दाखिला।

एक रिवायत में है कि वोह कियामत में इस हालत में आएगा कि उस के चेहरे पर तीन सतरें लिखी होंगी :

 

…….पहली सतर येह होगी : ऐ अल्लाह के हुकूक जाएअ करने वाले ! …….दूसरी सतर होगी : ऐ अल्लाह की नाराजी के लिये मख्सूस ! और …….तीसरी सतर होगी कि जैसे तू ने अल्लाह के हुकूक दुन्या में जाएअ किये हैं ऐसे ही तू आज अल्लाह की रहमत से ना उम्मीद होगा।

इस हदीस में मजमूई ता’दाद तो पन्दरह बताई गई है मगर तफ्सीलन चौदह का ज़िक्र है, शायद राविये हदीस पन्दरहवीं बात भूल गए।

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि क़ियामत के दिन एक शख़्स अल्लाह की बारगाह में खड़ा किया जाएगा और अल्लाह तआला उसे जहन्नम में जाने का हुक्म देगा। वोह पूछेगा : या अल्लाह ! मुझे किस लिये जहन्नम में भेजा जा रहा है ? रब तआला फ़रमाएगा कि नमाज़ों को उन के अवकात से मुअख्खर कर के पढ़ने और मेरे नाम की झूटी कसमें खाने की वज्ह से येह हो रहा है।

बा’ज़ मुहद्दिसीन से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने एक दिन सहाबए किराम रज़ीअल्लाहो अन्हुमा से कहा कि तुम यूं दुआ मांगा करो ! “ऐ अल्लाह ! हम में से किसी को शकी और महरूम न बना।” फिर फ़रमाया : जानते हो बद बख़्त महरूम कौन होता है? कहा गया : कौन होता है ? या रसूलल्लाह ! आप ने फ़रमाया : जो इन्सान तारिके नमाज़ होता है ।

नीज़ फ़रमाया (मुहद्दिसीन ने) : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मरवी है : आप ने फ़रमाया कि क़ियामत के दिन सब से पहले तारिकीने नमाज़ के मुंह काले किये जाएंगे और जहन्नम में एक वादी है जिसे “लमलम” कहा जाता है, उस में सांप रहते हैं, हर सांप ऊंट जितना मोटा और एक माह के सफ़र के बराबर तवील होगा, वो बे नमाज़ी को डसेगा उस का ज़हर सत्तर साल तक बे नमाज़ी के जिस्म में जोश मारता रहेगा, फिर उस का गोश्त गल जाएगा।

अमदन नमाज तर्क करने वाला जानी से भी बदतर है।

नीज़ येह भी मरवी है कि बनी इस्राईल की एक औरत हज़रते मूसा .की ख़िदमत में आई और अर्ज किया ऐ नबिय्यल्लाह ! मैं ने बहुत बड़ा गुनाह किया है और तौबा भी की है, अल्लाह तआला से दुआ मांगिये कि वोह मेरे गुनाह को बख्श दे और मेरी तौबा क़बूल फ़रमा ले।

हज़रते मूसा अलैहहिस्सलाम  ने पूछा : तू ने कौन सा गुनाह किया है ? वोह कहने लगी कि मैं ज़िना की मुर्तकिब हुई और जो बच्चा पैदा हुवा मैं ने उसे क़त्ल कर दिया है ! येह सुन कर मूसा अलैहहिस्सलाम  बोले ! ऐ बद बख़्त ! निकल जा, कहीं तेरी नुहूसत की वज्ह से आस्मान से आग नाज़िल हो कर हमें न जला दे ! चुनान्चे, वोह शिकस्ता दिल हो कर वहां से चल पड़ी, तब जिब्रील अलैहहिस्सलाम  नाज़िल हुवे और कहा : ऐ मूसा ! अलैहहिस्सलाम  अल्लाह तआला फ़रमाता है कि तू ने गुनाह से तौबा करने वाली को क्यूं वापस कर दिया है ? क्या तू ने इस से भी ज़ियादा बुरा आदमी नहीं पाया ? मूसा अलैहहिस्सलाम  ने पूछा : ऐ जिब्रील ! इस औरत से ज़ियादा बुरा कौन है ? जिब्रील अलैहहिस्सलाम  बोले कि इस से बुरा वोह है जो जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दे।

बा’ज़ सालिहीन से मरवी है कि एक आदमी ने अपनी मुर्दा बहन को दफ्न किया तो उस की थैली बे ख़बरी में कब्र में गिर गई जब सब लोग उसे दफ्न कर के चले गए तो उसे अपनी थैली याद आई, चुनान्चे, वोह आदमी लोगों के चले जाने के बाद बहन की कब्र पर पहुंचा और उसे खोदा ताकि थैली निकाल ले, उस ने देखा कि उस की कब्र में शो’ले भड़क रहे हैं, चुनान्चे, उस ने कब्र पर मिट्टी डाली और इन्तिहाई गमगीन रोता हुवा मां के पास आया और पूछा : मां ! येह बताओ कि मेरी बहन क्या करती थी ? मां ने पूछा : तुम क्यूं पूछ रहे हो ? वोह बोला मैं ने अपनी बहन की कब्र में आग के शो’ले भड़कते देखे हैं उस की मां रोने लगी और कहा : तेरी बहन नमाज़ में सुस्ती करती रहती थी और नमाज़ों को उन के अवकात से मुअख्ख़र कर के पढ़ा करती थी।

येह तो उस का हाल है जो नमाज़ों को उन के अवकात से मुअख्खर कर के पढ़ा करती थी और उन लोगों का क्या हाल है जो सिरे से नमाज़ पढ़ते ही नहीं।

ऐ अल्लाह ! हम तुझ से नमाज़ों को उन के अवक़ात में अदा करने और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ने की तौफ़ीक़ तलब करते हैं, बेशक ऐ रब ! तू मेहरबान, करीम, रऊफ़ और रहीम है।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

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नमाज़ अदा करने के फायदे

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

फ़रमाने इलाही है : तहक़ीक़ नमाज़ मुसलमानों पर वक्ते मुकर्रर पर लिखी हुई है। और फ़रमाने नबवी है : अल्लाह तआला ने बन्दों पर पांच नमाजें फ़र्ज़ की, जो शख्स इन्हें बा अज़मत समझते हुवे मुकम्मल शराइत के साथ अदा करता है, अल्लाह तआला का उस के लिये वादा है कि वो उस शख्स को जन्नत में दाखिल फ़रमाएगा और जो इन्हें अदा नहीं करता अल्लाह तआला का उस के लिये कोई वादा नहीं है, चाहे तो उसे अज़ाब दे और अगर चाहे तो जन्नत में दाखिल फ़रमा दे।

फ़रमाने नबवी है कि पांच नमाज़ों की मिसाल तुम में से किसी एक के घर के साथ बहने वाली वसीअ खुश गवार पानी की नहर जैसी है जिस से वो दिन में पांच मरतबा नहाता है, क्या उस के जिस्म पर मेल बाकी रहेगा ? सहाबए किराम ने अर्ज़ की : नहीं, आप ने फ़रमाया : जैसे पानी मेल कुचैल को बहा ले जाता है उसी तरह पांच नमाजें भी गुनाहों को बहा ले जाती हैं।

नमाज गुनाहों का कफ्फारा है

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशादे गिरामी है कि नमाज़े अपने अवकात के माबैन सरज़द होने वाले गुनाहों का कफ्फ़ारा है ब शर्तेकि कबीरा गुनाह से परहेज़ किया जाए जैसा कि फ़रमाने इलाही है:

बेशक नेकियां बुराइयों को खा जाती हैं।

मतलब यह है कि वो गुनाहों का कफ्फारा हो जाती हैं गोया कि गुनाह थे ही नहीं।

बुख़ारी व मुस्लिम और दीगर अस्हाबे सुनन वगैरा ने हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि एक शख्स ने किसी औरत का बोसा ले लिया और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हो कर यह वाकिआ कह सुनाया, गोया वो इस का कफ्फारा पूछना चाहता था, जब हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम पर यह आयत नाज़िल हुई : और काइम कर नमाज़ दिन के दोनों अतराफ़ में।

तो उस शख्स ने अर्ज की, कि यह मेरे लिये है ? आप ने फ़रमाया : “मेरे हर उस उम्मती के लिये है जिस ने ऐसा काम किया।”

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नमाज की ताकीद में इरशादाते नबविय्या (हदीसे पाक)

मुस्नदे अहमद और मुस्लिम शरीफ़ में हज़रते अबू उमामा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में एक आदमी हाज़िर हुवा और अर्ज की, कि मुझ पर हद जारी फ़रमाइये ! उस ने एक या दो मरतबा यही बात कही मगर हुजूर  ने तवज्जोह नहीं फ़रमाई, फिर नमाज़ पढ़ी गई । जब नमाज़ से आप फ़ारिग हुवे तो फ़रमाया : वो आदमी कहां है ? उस ने अर्ज़ की : मैं हाज़िर हूं या रसूलल्लाह ! आप ने फ़रमाया : तू ने मुकम्मल वुजू कर के हमारे साथ अभी नमाज़ पढ़ी है? उस ने अर्ज की : जी हां ! आप ने फ़रमाया : “तो तू गुनाहों से ऐसा पाक है जैसे तेरी मां ने तुझे जना था, आयिन्दा ऐसा न करना ।” उस वक्त हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम पर यह आयत नाज़िल हुई कि “नेकियां गुनाहों को ले जाती हैं।”

और आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम इरशाद है कि हमारे और मुनाफ़िकों के दरमियान फ़र्क, इशा और फज्र की नमाज़ है वो इन में आने की ताकत नहीं रखते।

हुजूर सरवरे काइनात सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है : जो शख्स अल्लाह तआला से इस हालत में मुलाकात करे कि उस ने नमाजें जाएअ कर दी हों तो अल्लाह तआला उस की नेकियों की परवा नहीं करेगा।

फ़रमाने नबवी है कि नमाज़ दीन का सुतून है, जिस ने इसे छोड़ दिया उस ने दीन (की इमारत) को ढा दिया ।

हुजूर रज़ीअल्लाहो अन्हो से पूछा गया कि कौन सा अमल अफ़ज़ल है ? तो आप ने फ़रमाया कि नमाज़ को इन के अवकात में अदा करना ।

फ़रमाने नबवी है : जिस ने मुकम्मल पाकीज़गी के साथ सहीह अवकात में हमेशा पांच नमाज़ों को अदा किया कयामत के दिन नमाजे उस के लिये नूर और हुज्जत होंगी और जिस ने इन्हें जाएअ कर दिया वोह फ़रऔन और हामान के साथ उठाया जाएगा।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि नमाज़ जन्नत की कुन्जी है।

मजीद फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने तौहीद के बाद नमाज़ से ज़ियादा पसन्दीदा कोई अमल फ़र्ज़ नहीं किया और अल्लाह तआला ने पसन्दीदगी ही की वज्ह से फ़रिश्तों को इसी इबादत में मसरूफ़ फ़रमाया है, लिहाज़ा इन में से कुछ रुकूअ में, कुछ सजदे में, बा’ज़ क़ियाम में और बा’ज़ कुऊद की हालत में इबादत कर रहे हैं।।

फ़रमाने नबवी है : “जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी वो हद्दे कुफ्र के करीब हो गया” या’नी वो ईमान से निकलने के करीब हो गया क्यूंकि उस ने अल्लाह की मजबूत रस्सी को छोड़ दिया और दीन के सुतून को गिरा दिया जैसे उस शख्स को जो शहर के करीब पहुंच जाए कहा जाता है कि वो शहर में पहुंच गया है, दाखिल हो गया है, इसी तरह इस हदीस में भी फ़रमाया गया है ।

और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी वो मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की जिम्मेदारी से निकल गया ।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो का फ़रमान है : जिस ने बेहतरीन वुजू किया फिर नमाज़ के इरादे से निकला वो नमाज़ में है जब तक कि वो नमाज़ के इरादे से मस्जिद की तरफ़ चलता रहे, उस के एक क़दम के बदले नेकी लिखी जाती है और दूसरे कदम के बदले में एक गुनाह मिटा दिया

जाता है। जब तुम में से कोई एक इक़ामत सुने तो उस के लिये ताखीर मुनासिब नहीं है, तुम में से वो ज़ियादा अज्र पाता है जिस का घर दूर होता है, पूछा गया : अबू हुरैरा इस की क्या वज्ह है ? आप ने फ़रमाया : ज़ियादा कदम चलने की वज्ह से उसे यह फजीलत हासिल है।

और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : तन्हाई की इबादत से अफ़ज़ल कोई अमल नहीं है जिस की बदौलत अल्लाह तआला का कुर्ब जल्द हासिल हो जाए।

हुजूर नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि ऐसा कोई मुसलमान नहीं है जो रजाए इलाही के लिये सजदा करता है और उस के हर सजदे के बदले में उस का एक दरजा बुलन्द न होता हो और अल्लाह तआला उस का एक गुनाह न मिटा देता हो ।

मरवी है कि एक शख्स ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से अर्ज की, कि मेरे लिये दुआ फ़रमाइये कि अल्लाह तआला मुझे आप की शफाअत के मुस्तहिकीन में से बनाए और जन्नत में आप की सोहबत नसीब फ़रमाए, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि कसरते सुजूद से मेरी इआनत तलब करो।(या’नी कसरत से इबादत करो) नीज़ कहा गया है कि इन्सान सजदे में रब के बहुत करीब होता है चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है :

और सजदा कर और करीब हो जा।

फ़रमाने इलाही है :

उन की निशानी उन के चेहरों पर सजदों के असरात

 

इस आयत की तफ्सीर में मुख्तलिफ़ अक्वाल हैं : यह कि इस से मुराद चेहरों का वो हिस्सा है जो सजदों के वक्त जमीन से लगता है या यह कि इस से मुराद खुशूअ व खुजूअ का नूर (यह आयते सजदा है और आयते सजदा पढ़ने या सुनने से सजदा वाजिब हो जाता है ख्वाह सुनना या पढ़ना बिल कस्द हो या बिला कस्द और इसी तरह तर्जमे का हुक्म है)

है जो बातिन से ज़ाहिर पर चमकता है और इस की शुआएं चेहरों पर नुमायां होती हैं और येही बात ज़ियादा सहीह है। या यह कि इस से मुराद वो नूर है जो वुजू के निशानात पर कियामत के दिन उन के चेहरों पर चमकेगा। फ़रमाने नबवी है : जब इन्सान सजदे की आयत पढ़ कर सजदा करता है तो शैतान रोते हुवे अलाहिदा हो जाता है और कहता है : हाए अपसोस ! इसे सजदों का हुक्म दिया गया और इस ने सजदा कर के जन्नत पा ली और मुझे सजदे का हुक्म दिया गया था मगर मैं ने ना फ़रमानी की और मेरे लिये जहन्नम बनाया गया।

नमाज के बारे में इरशादाते बुजर्गाने दीन

हज़रते अली बिन अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि आप हर रोज़ हज़ार सुजूद करते थे इस लिये लोग इन्हें सज्जाद कहा करते थे।

मरवी है कि हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रज़ीअल्लाहो अन्हो हमेशा मिट्टी पर सजदा किया करते थे।

हज़रते यूसुफ़ बिन अस्बात रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाया करते : ऐ जवानो ! मरज़ से पहले तन्दुरुस्ती को गनीमत समझते हुवे आगे बढ़ो, सिवाए एक आदमी के और कोई ऐसा नहीं है जिस पर मैं रश्क करता हूं, वो है रुकूअ और सुजूद मुकम्मल करने वाला, यही मेरे और उस के दरमियान हाइल हो गए हैं।

हज़रते सईद बिन जुबैर रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं कि सुजूद के सिवा मुझे दुन्या की किसी चीज़ से उन्स नहीं है।

हज़रते उक्बा बिन मुस्लिम रज़ीअल्लाहो अन्हो ने कहा है : अल्लाह तआला को बन्दे की उस आदत से बढ़ कर कोई और चीज़ ज़ियादा पसन्द नहीं है जिस में वो अल्लाह तआला की मुलाकात को पसन्द करता है और ऐसा कोई लम्हा नहीं है जिस में इन्सान अल्लाह के करीब तर हो जाता हो जब कि वो सर ब सुजूद हो जाता है।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो का फरमान है : इन्सान सजदे की हालत में रब से बहुत करीब हो जाता है लिहाज़ा सुजूद में बहुत ज़ियादा दुआएं मांगा करो।

 

 

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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अल्लाह के ज़िक्र की फ़ज़ीलत

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 फ़रमाने इलाही है:

“ तुम मुझे याद करो मैं तुम्हें याद करूंगा”। हज़रते साबित बुनानी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया : मैं जानता हूं जब मेरा रब मुझे याद फ़रमाता है, यह सुन कर लोग कुछ परेशान हो गए और दरयाफ़्त किया आप को कैसे पता चल जाता है? आप ने कहा : जब मैं उसे याद करता हूं तो वह भी मुझे याद फ़रमाता है।

फ़रमाने इलाही है:

“अल्लाह को बहुत याद करो”।

मज़ीद फ़रमाया :

“पस जब तुम अरफ़ात से पलटो तो मश्अरे हराम के नज़दीक अल्लाह को याद करो और जैसे तुम्हें हिदायत दी गई है वैसे उसे याद करो”।

दूसरे पारह में इरशादे रब्बानी है :

“जब तुम मनासिके हज पूरे कर चुको तो अल्लाह तआला को याद करो जैसे तुम अपने आबा को याद करते हो या उस से भी ज़ियादा याद करो”।

इरशादे इलाही है :

“वो लोग अल्लाह तआला को खड़े बैठे और पहलू के बल लैटे याद करते हैं” फ़रमाने इलाही है : “ पस जब तुम नमाज़ पूरी कर लो तो अल्लाह तआला को कियाम कुऊद और पहलू पर लैटे याद करो”।

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो इस आयत की तफ्सीर में फ़रमाते हैं : या’नी अल्लाह तआला को रात, दिन, बहरो बर, सफ़रो हज़र, मालदारी व मुफ़्लिसी, मरज़ो सेहत , ज़ाहिरो निहां गरज़ हर हालत में याद किया करो।

अल्लाह तआला का मुनाफ़िकों की मज़म्मत में इरशाद है :

” वो अल्लाह को बहुत कम याद करते हैं। फ़रमाने इलाही है :

 

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और फ़रमाने इलाही है :

“और बेशक ज़िक्रे खुदा बहुत बड़ा है”

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि इस आयत के दो मा’ना हो सकते हैं, पहला यह कि अल्लाह तआला का तुम्हें याद फ़रमाना तुम्हारे ज़िक्र से बहुत बड़ी चीज़ है, दूसरा यह कि ज़िक्रे खुदा हर इबादत से ज़ियादा बरतर और आ’ला है। इस सिलसिले में और भी बहुत सी आयात वारिद हुई हैं। – हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि गाफ़िलों में ज़िक्रे खुदा करने वालों की मिसाल सूखे घास में सब्ज़ पौदे की सी है।

मजीद फ़रमाया कि गाफ़िलों में ज़िक्रे खुदा करने वाले की मिसाल भगोड़ों के दरमियान जिहाद करने वाले की सी है।

फ़रमाने नबवी है : रब्बे जुल जलाल फ़रमाता है कि जब मेरा बन्दा मुझे याद करता है और मेरी याद में उस के होंट खुले होते हैं तो मैं उस के साथ होता हूं।

जिक्रे खुदा से बढ़ कर कोई अमल नहीं – हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है : इन्सान के लिये ज़िक्रे खुदा से बढ़ कर कोई अमल ऐसा नहीं है जो अज़ाबे इलाही से जल्द नजात दिलाने वाला हो, अर्ज की गई कि जिहाद फ़ी सबीलिल्लाह भी नहीं आप ने फ़रमाया : जिहाद फ़ी सबीलिल्लाह भी नहीं मगर यह कि तू अपनी तल्वार से जिहाद करे और वह टूट जाए। (बार बार के जिहाद से भी अफ़ज़ल है)

फरमाने नबवी है कि जो शख्स जन्नत के बागों से सैर होना चाहता है वो अल्लाह को बहुत याद करे ।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से पूछा गया कि कौन सा अमल अफ़्ज़ल है? आप ने फ़रमाया : जब तू मरे तो तेरी ज़बान ज़िक्रे खुदा से शीरीं हो।

फ़रमाने नबवी है कि ज़िक्रे खुदा में सुब्हो शाम बसर कर, तू इस हालत में दिन और रात मुकम्मल करेगा कि तुझ पर कोई गुनाह बाकी नहीं होगा।

फ़रमाने नबवी है कि सुब्हो शाम यादे इलाही, जिहाद फी सबीलिल्लाह में तल्वारें तोड़ने और बे दरेग राहे खुदा में माल लुटाने से बेहतर है ।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं : अल्लाह तआला फ़रमाता है कि जब मेरा बन्दा मुझे तन्हाई में याद करता है तो मैं उसे तन्हाई में याद करता हूं और जब वो मुझे जमाअत में याद करता है तो मैं उसे उस की जमाअत से बेहतर जमाअत में याद करता हूं, जब वो मुझ से एक बालिश्त करीब होता है तो मैं उस से एक हाथ करीब हो जाता हूं जब वो एक हाथ मेरे करीब होता है तो मैं दोनों हाथों की वुस्अत के बराबर उस के करीब हो जाता हूं और जब वो मेरी तरफ़ चल पड़ता है तो मेरी रहमत बढ़ कर उसे साय ए आफ़िय्यत में ले लेती है या’नी मैं उस की दुआओं को बहुत जल्द क़बूल फ़रमा लेता हूं।

फ़रमाने नबवी है : सात शख्स ऐसे हैं जिन्हें अल्लाह तआला अपने सायए रहमत में उस दिन जगह देगा जिस दिन कोई साया नहीं होगा, इन में से एक वो है जिस ने तन्हाई में खुदा को याद किया और खौफे खुदा की वज्ह से उस की आंखों से आंसू बह निकले ।

बेहतरीन अमल क्या है?

हज़रते अबुद्दरदा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि क्या मैं तुम्हें तुम्हारे आ’माल में से बेहतरीन अमल की खबर न दूं जो अल्लाह के नज़दीक सब आ’माल से पाकीज़ा, सब आ’माल में बुलन्द मर्तबा, सोने चांदी की बख्शिश से बेहतर, दुश्मनों से तुम्हारे उस जिहाद से जिस में तुम उन्हें कत्ल करो वह तुम्हें शहीद कर दें, अफ़्ज़लो आ’ला हो?? सहाबए किराम रज़ीअल्लाहो अन्हुम ने पूछा : हुजूर ! वो कौन सा अमल है? आप ने फ़रमाया : दाइमी ज़िक्रे इलाही ।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं कि अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है : जिस शख्स को मेरे ज़िक्र ने सवाल करने से रोके रखा मैं उसे बिगैर मांगे सब साइलों से बेहतर दूंगा।

हज़रते फुजेल रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं : हमें येह खबर मिली है कि अल्लाह तआला फ़रमाता है : ऐ मेरे बन्दे ! तू मुझे सुब्ह के बाद और असर  के बाद कुछ देर याद कर लिया कर, यह अमल तुझे सारे दिन के लिये काफ़ी होगा।

 

बा’ज़ उलमा का कहना है कि अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है : जब मैं किसी शख्स के दिल को अपनी याद में सरगर्मे अमल देखता हूं तो मैं उस के जुम्ला उमूर का मुतवल्ली हो जाता हूं और मैं उस का साथी, उस का हम नशीं और हम सुखन बन जाता हूं। हज़रते हसन रहमतुल्लाह अलैह का कौल है कि ज़िक्र दो हैं : एक तो तन्हाई में अल्लाह तआला को याद करना जो बहुत उम्दा और अजरे  अज़ीम का सबब है और इस से भी बेहतर ज़िक्र ये है कि इन्सान अल्लाह तआला की हराम कर्दा चीज़ों में अल्लाह को याद रखे और ऐसे उमूर से बाज़ रहे।

मरवी है कि यादे इलाही में जिन्दगी बसर करने वाले के सिवा हर इन्सान मौत के वक्त प्यासा जाता है।

हज़रते मुआज़ बिन जबल रज़ीअल्लाहो अन्हो का फ़रमान है कि जन्नती उस लम्हे के सिवा जो यादे इलाही में बसर नहीं हुवा, किसी चीज़ पर हसरत नहीं करेगा।।)

हुजूर रज़ीअल्लाहो अन्हो का इरशाद है कि कोई जमाअत भी ऐसी नहीं है जो यादे इलाही के लिये बैठी हो मगर फ़िरिश्ते उसे घेर लेते हैं और रहमते खुदावन्दी उसे ढांप लेती हो, अल्लाह तआला अपने मुकर्रबीन में उन्हें याद करता है।

जिक्रे खुदा  के लिये जमा होने वालों पर अल्लाह का ईनाम

फ़रमाने नबवी है कि जब कुछ लोग महज़ रज़ाए इलाही के लिये ज़िक्रे खुदा के लिये जम्अ होते हैं तो आस्मान से मुनादी निदा करता है कि खड़े हो जाओ, तुम्हारे गुनाहों को मुआफ़ कर दिया गया है और तुम्हारे गुनाहों को नेकियों से बदल दिया गया है।

नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फरमान है कि कोई कौम ऐसी नहीं जो कहीं बैठे और अल्लाह तआला का ज़िक्र (न करे) और नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम पर दुरूद न भेजे और क़यामत के दिन वो हसरत से दोचार न हो।

हज़रते दावूद अलैहहिस्सलाम  ने बारगाहे इलाही में अर्ज किया : इलाहुल आलमीन ! जब तू मुझे देखे कि मैं ज़िक्र करने वालों की मजलिस से उठ कर गाफ़िलों की मजलिस में जा रहा हूं तो मेरे तू पाउं तोड़ दे, बिला शुबहा मेरे ऊपर यह तेरा इन्आम होगा।

फरमाने नबवी है : नेक महफ़िल, मोमिन के लिये बीस लाख बुरी मजलिसों का कफ्फारा है।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : आस्मान के रहने वाले उन घरों को जिन में यादे इलाही होती है, ऐसे देखते हैं जैसे तुम सितारों को देखते हो (पुर शौक़ निगाहों से)

हज़रते सुफया न बिन उयैना रज़ीअल्लाहो अन्हो का कहना है : जब कोई जमाअत जिक्रे खुदा के लिये जम्अ होती है तो शैतान और दुन्या अलाहिदा हो जाते हैं, फिर शैतान दुन्या से कहता है : क्या तू ने इन्हें देखा ये क्या कर रहे हैं? दुन्या कहती है : इन्हें छोड़ दे, जूही ये ज़िक्रे इलाही से फ़ारिग होंगे मैं इन्हें गर्दनों से पकड़ कर तेरे हवाले कर दूंगी।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो एक मरतबा बाज़ार में तशरीफ़ लाए और फ़रमाया : लोगो ! मैं तुम्हें यहां देख रहा हूं हालांकि मस्जिद में हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की मीरास तक्सीम हो रही है। लोग बाज़ार छोड़ कर मस्जिद की तरफ़ गए मगर उन्हें कोई मीरास बटती दिखाई न दी, उन्हों ने हज़रते अबू हुरैरा से कहा : हम ने तो मस्जिद में कोई मीरास तक्सीम होते नहीं देखी। आप ने पूछा : तुम ने वहां क्या देखा है?  बोले : हम ने वहां ऐसी जमाअत देखी है जो ज़िक्रे खुदा कर रहे हैं और कुरआने मजीद पढ़ रहे हैं, आप ने फ़रमाया : ये ही तो नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की मीरास है ।

जिक्र करने वालों पर अल्लाह की रहमत

आ’मश ने अबू सालेह से,इन्हों ने हज़रते अबू हुरैरा और हज़रते अबू सईद खुदरी रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि हुजूर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया : अल्लाह तआला ने नामए आ’माल लिखने वाले फ़िरिश्तों के इलावा ऐसे सय्याह (घुमने वाले) फ़रिश्तों को पैदा फ़रमाया जो ज़मीन में सरगर्मे सफ़र रहते हैं, जब वो किसी जमाअत को ज़िक्र में मश्गूल पाते हैं तो दूसरों से कहते हैं कि इधर अपनी मतलूबा चीज़ की तरफ़ आओ ! लिहाजा वो सब फ़रिश्ते जम्अ हो जाते हैं और उन्हें आस्मान तक घेरे में ले लेते हैं। अल्लाह तआला फ़रमाता है : मेरे बन्दों को तुम ने किस हाल में छोड़ा? वोह क्या कर रहे थे? फ़रिश्ते कहते हैं : या अल्लाह ! वो तेरी हम्द, तेरी बुजुर्गी और तेरी तस्बीह बयान कर रहे थे। रब्बे जलील फ़रमाता है : क्या उन्हों ने मुझे देखा है  फ़रिश्ते

अर्ज करते हैं : नहीं। रब्बे जलील फ़रमाता है : अगर वो मुझे देख लें तो उन की क्या हालत होगी, फ़रिश्ते अर्ज करते हैं : अगर वो तुझे देख लें तो इस से भी ज़ियादा तेरी तस्बीह व तहमीद करें। रब फ़रमाता है : वो किस चीज़ से पनाह मांग रहे थे? फरिश्ते कहते हैं : जहन्नम से पनाह मांग रहे थे। रब फ़रमाता है : उन्हों ने जहन्नम को देखा है? फ़रिश्ते अर्ज करते हैं : नहीं। रब फ़रमाता है : अगर वो जहन्नम को देख लें तो उन की क्या हालत होगी? फ़रिश्ते अर्ज करते हैं : अगर वो जहन्नम को देख लें तो इस से और ज़ियादा भागें और नफ़रत करें। रब फ़रमाता है : वो क्या चीज़ मांग रहे थे? फ़रिश्ते अर्ज करते हैं : वो जन्नत का सवाल कर रहे थे, रब फ़रमाता है : क्या उन्हों ने जन्नत को देखा है? फ़रिश्ते कहते हैं : नहीं, रब फ़रमाता है : अगर वो जन्नत को देख लें तो उन की क्या हालत होगी? फ़रिश्ते कहते है : वो इसे और ज़ियादा चाहेंगे। रब तआला फ़रमाता है : मैं तुम्हें गवाह बनाता हूं कि मैं ने उन सब को बख्श दिया है। फ़रिश्ते अर्ज करते हैं : उन में फुलां बिन फुलां भी था जो अपनी किसी ज़रूरत के लिये आया था, रब्बे जलील फ़रमाता है : ये ऐसी जमाअत है जिस का हम-मजलिस व हमनशीं भी महरूम नहीं रहता । हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि सब से अफ़ज़ल कलिमा जो मैं ने और तमाम अम्बियाए किराम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम अलैहिमुससलाम  ने ज़बान से अदा किया है वो है : “ला इलाहा इललललाहो वह्दहू व ला शरिकालाहु”

फ़रमाने नबवी है कि जिस ने हर रोज़ एक सो मरतबा :

“ला इलाहा इललललाहो वह्दहू व ला शरिकालाहु लहुल मुल्को व लहुल हम्दो वहुवा अला कुल्ले शै इन कदीर”

ज़बान से अदा किया, उसे दस गुलामों के आज़ाद करने के बराबर सवाब मिलता है, उस के नामए आ’माल में सो नेकियां लिखी जाती हैं और उस के सो गुनाह मिटा दिये जाते हैं.

और उस दिन शाम तक वो शैतान से महफूज़ रहता है और उस से बढ़ कर कोई और अमल नहीं होता मगर यह कि कोई शख्स उस से ज़ियादा बार यह कलिमात पढ़े।

फ़रमाने नबवी है : ऐसा कोई बन्दा नहीं जो बेहतरीन तरीके से वुजू करे, फिर आस्मान की तरफ़ निगाह उठा कर कहे : “अशहदो अल्ला इलाहा इल लल लाहो वह्दहू ला शारिका लहू व अशहदो अन्ना मोहम्मदन अब्दोहू व रसूलोहू”

और उस के लिये जन्नत के दरवाजे न खोल दिये जाते हों, फिर वोह जिस दरवाजे से चाहे दाखिल हो जाए।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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इल्मुल यक़ीन, ऐनुल यक़ीन और सवालाते क़ियामत

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

फ़रमाने इलाही है: “हरगिज़ नहीं अगर तुम यकीनी तौर पर जानते”। यानी अगर तुम क़यामत के अहवालो वाक़ेआत को यक़ीनी तौर पर जानते, मगर तुम को तो माल की कसरत और एक दूसरे पर तफ़ाखुर ने इस बात से गाफिल कर दिया है, अगर तुम यह बात जान लेते तो तुम वो काम करते जो तुम्हारे लिये फ़ाइदा मन्द होते और उन कामों से बचते जो तुम्हारे लिये मुज़िर हैं लिहाज़ा फ़रमाया गया : अगर तुम सहीह मा’ना में इल्मे यक़ीन हासिल कर लेते, जैसा कि अम्बियाए किराम ने तुम्हें समझाया कि माल और अपने काबिले फ़न कारनामों का शुमार तुम्हें कियामत में कोई फ़ाइदा नहीं देगा, तुम ने जो माल की कसरत व तादाद पर फ़ख्न किया है उस की बदौलत तुम ज़रूर नारे जहन्नम को देखोगे चुनान्चे, खालिके कायनात ने कसम खाई कि तुम ज़रूर अपनी इन आंखों से अपने रू बरू जहन्नम और उस की शिद्दत को देखोगे।

“फिर तुम उसे ज़रूर यक़ीन की आंख से देखोगे। या’नी जहन्नम का इस तरीके से मुशाहदा करोगे कि जिसे ऐनुल यक़ीन कहा जाता है और जिस के बाद किसी शको शुबहा की गुन्जाइश बाकी नहीं रहती।

 

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मरातिबे यकीन का फर्क – यकीन के दर्जे

अगर इल्मुल यक़ीन और ऐनुल यक़ीन का फ़र्क दरयाफ़्त किया जाए तो वो यह है कि इल्मुल यकीन अम्बियाए किराम को अपनी नबुव्वत के मुतअल्लिक हासिल था और ऐनुल यक़ीन फ़रिश्तों को हासिल है जो जन्नत, दोज़ख, लौहो कलम और अर्श व कुरसी को अपनी आंखों से देखते हैं और इसी का नाम ऐनुल यक़ीन है। यूं भी कहा जा सकता है कि इल्मुल यक़ीन ज़िन्दों का, मौत और कब्रों के मुतअल्लिक इल्म है क्यूंकि वो जानते हैं कि मुर्दा कब्रों में हैं लेकिन वो यह समझने से क़ासिर हैं कि उन के साथ क्या सुलूक हो रहा है और ऐनुल यकीन मुर्दों को हासिल है क्यूंकि वह कुबूर को जन्नत का एक बाग या फिर जहन्नम का एक गढ़ा खुद देख चुके हैं।

यह भी कह सकते हो कि इल्मुल यकीन कयामत का इल्म और ऐनुल यकीन कयामत और उस की हौलनाकियों को देख लेना है।

यह भी कह सकते हो कि इल्मुल यक़ीन जन्नत और दोज़ख़ का इल्म और ऐनुल यकीन उन का देख लेना है। फ़रमाने इलाही है :

“फिर तुम उस दिन ने’मतों के बारे में ज़रूर पूछे जाओगे।”

या’नी क़यामत के दिन तुम से दुन्यावी नेमतों जैसे तन्दुरुस्ती, कुव्वते समाअत, कुव्वते बीनाई, हुसूले रिज्क के तरीके और खुर्दो नोश की तमाम अश्या के मुतअल्लिक़ पूछा जाएगा कि तुम ने इन चीज़ों को पा कर अल्लाह तआला का शुक्र भी अदा किया था ? उस की मा’रिफ़त हासिल की थी या इन्कार व कुफ्र के मुर्तकिब हुवे थे।।

इब्ने अबी हातिम और इब्ने मर्दविय्या की रिवायत है कि हज़रते जैद बिन अस्लम ने अपने वालिद से रिवायत की है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने पढ़ा कि “तुम को मालों की कसरत के मुकाबलों ने हलाक कर दिया” या’नी तुम इबादत से गाफ़िल हुवे।

“यहां तक कि तुम ने कब्रों को देखा” या’नी तुम्हें मौत आ गई। “हरगिज़ नहीं अलबत्ता तुम जान लोगे” या’नी जब तुम कब्रों में दाखिल होगे।

“फिर बेशक तुम अन करीब जान लोगे” जब तुम कब्रों से निकल कर मैदाने महशर में आओगे।

“हरगिज़ नहीं अगर तुम इल्मे यक़ीन के तौर पर जान लेते”या’नी तुम उस वक्त को जानते जब तुम अपने आ’माल समेत अल्लाह तआला की बारगाह में खड़े होगे और “जहन्नम को देख रहे होगे” यह बई तौर वाकेअ होगा कि पुल सिरात को जहन्नम के दरमियान रखा जाएगा, पस बा’ज़ मुसलमान नजात पाने वाले होंगे, बा’ज़ ज़ख्मी होंगे और बा’ज़ जहन्नम में गिराए जाएंगे।

“फिर उस दिन ज़रूर तुम से नेमतों के मुतअल्लिक सवाल किया जाएगा”(2) या’नी शिकम सेरी, सर्द मशरूबात, मकानात के साए, तुम्हारी बेहतरीन तख़्लीक़ का मस्रफ़ और नींद की आसाइशों के बारे में सवाल किया जाएगा।

हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि नेमत से मुराद तन्दुरुस्ती है। मजीद फ़रमाया कि जिस ने गेहूं की रोटी खाई, फुरात का ठन्डा पानी पिया और उस के रहने के लिये घर भी है, यही वोह ने’मतें हैं जिन के बारे में सुवाल किया जाएगा।

हज़रते अबू किलाबा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने यह आयत पढ़ कर फ़रमाया : मेरी उम्मत के लोग घी में खालिस शहद मिला कर उसे खाएंगे जिन के मुतअल्लिक़ उन से सुवाल किया जाएगा।

 

ठन्डा पानी भी एक नेमत है

हज़रते इकरमा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि जब यह आयत नाज़िल हुई तो सहाबए किराम राज़ी अल्लाहो अन्हुमा  ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से पूछा : हमें कौन सी नेमत हासिल है ? हम ने तो कभी पेट भर कर जव की रोटी भी नहीं खाई है, अल्लाह तआला ने नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की तरफ़ वहय फ़रमाई, इन से फ़रमाइये ! तुम जूते पहनते हो और ठन्डा पानी पीते हो, क्या येह ने’मतें नहीं हैं ?

तिर्मिज़ी वगैरा की रिवायत है कि जब यह सूरत नाज़िल हुई तो सहाबए किराम रज़ीअल्लाहो अन्हुमा ने पूछा : हम से कौन सी नेमतों का सवाल होगा ! हमें तो पानी और खजूरों के सिवा कोई गिज़ा मयस्सर नहीं है.

हर वक़्त तलवारे हमारी गर्दनो में लटकी हैं और दुश्मनों से लड़ाइयों में मसरूफ रहना पड़ता है, वह कौन सी नेमत है जिस के बारे में सवाल होगा? आपने फ़रमाया जल्द ही तुम्हे नेअमतें मिलेंगी.

हजरते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मर्वी है की हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया सब से पहले इन्सान से जिन नेअमतों का सवाल होगा वह यह होंगी की अल्लाह ता आला फरमाएगा मैंने तुम्हे तंदुरुस्ती नहीं दी थी और तुम्हे पीने के लिए ठंडा पानी नहीं दिया था?.

गोश्त, खजूर और ठन्डे पानी के मुताआल्लिक क़यामत में सवाल होगा

मुस्लिम वगैरह में हजरते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मर्वी है की हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम एक मर्तबा काशानाए नुबुव्वत से बहार तशरीफ़ लाये तो आप को अचानक हजरते अबू बकर और हजरते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो मिल गए आप ने पुछा इस वक़्त घर के बाहार किस लिए आना हुआ? अर्ज़ की हुज़ूर भूक ने हमें घरों से निकाला है. आपने फरमाया ब खुदा मै भी भूक की वजह से घर से निकला हूँ. कुछ ठहरने के बाद आप सब एक अंसारी के घर तशरीफ़ लाये मगर वह घर पर मौजूद नहीं थे, उन की बीवी ने आपको देख कर खुश आमदीद कहा. आप ने उस अंसारी के बारे में पुछा तो उस की बीवी ने अर्ज़ की हुज़ूर वह हमारे लिए ठंडा पानी लेने गए हैं. उसी वक़्त वह अंसारी सहाबी भी वापस आ गए उन्होंने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम और हजरते अबू बकर व उमर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की देख कर कहा अलहम्दोलिल्लाह आज में इन्तेहाई बा इज्ज़त मेहमानों का शर्फे मेजबानी हांसिल कर रहा हूँ, फिर वह गए और खजूरों का एक खोशा लाये जिस में कच्ची पक्की बहुत सी खजूरें थी और अर्ज़ की तानावुल फरमाइए और छुरी उठाई तो हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया दूध देने वाली का ख्याल रखना चुनाचे उस ने बकरी ज़बह की और आप सब ने बकरी का गोश्त और खजूरें तानावुल फरमाई, पानी पिया जब खाने और पानी से सैर हो चुके तो आपने फ़रमाया ब खुदा ए अबू बकर व उमर ! तुम से क़यामत के दिन इन नेअमतों के मुताल्लिक ज़रूर सवाल किया जायेगा.

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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कब्र के हालत और सवाल

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

फ़रमाने नबवी है : जब मय्यित को कब्र में रखा जाता है तो कब्र कहती है : ऐ इन्सान ! तुझ पर अफ़सोस है तुझे मेरे बारे में किस चीज़ ने धोके में डाला था ? क्या तुझे मालूम नहीं था कि मैं आजमाइशों, तारीकियों, तन्हाई और कीड़े मकोड़ों का घर हूं, जब तू मुझ पर से आगे पीछे कदम रखता गुज़रा करता था तो तुझे कौन सा गुरूर घेरे होता था ? अगर मय्यित नेक होती है तो उस की तरफ से कोई जवाब देने वाला क़ब्र को जवाब देता है क्या तुझे मालूम नहीं है यह शख्स नेकियों का हुक्म देता और बुराइयों से रोका करता था। कब्र कहती है : तब तो मैं इस के लिये सब्जे में तब्दील हो जाऊंगी, उस का जिस्म नूरानी बन जाएगा और उस की रूह अल्लाह तआला के कुर्बे रहमत में जाएगी।

मदफ़न की निदा पुकार

उबैद बिन उमैर अल्लैसी रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है कि जब कोई शख्स मरता है तो ज़मीन का वह टुकड़ा जिस में उस ने दफ़्न होना होता है, निदा करता है कि मैं तारीकी और तन्हाई का घर हूं, अगर तू अपनी ज़िन्दगी में नेक अमल करता रहा तो मैं आज तुझ पर सरापा रहमत बन जाऊंगा और अगर तू ना फ़रमान था तो मैं आज तेरे लिये सज़ा बन जाऊंगा। मैं वो हूं कि जो मुझ में हक़ का फ़रमां बरदार बन कर आता है वो खुश हो कर बाहर निकलता है और जो ना फ़रमान बन कर आता है वो ज़लील हो कर बाहर निकलता है।

हज़रते मोहम्मद बिन सबीह रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं कि मुझ तक यह रिवायत पहुंची है कि जब आदमी को क़ब्र में रखा जाता है और उसे अज़ाब दिया जाता है तो उस के करीबी मुर्दे कहते हैं : ऐ अपने भाइयों और हमसाइयों के बाद दुन्या में रहने वाले ! क्या तू ने हमारे जाने से कोई नसीहत हासिल न की ? और तेरे सामने हमारा मर कर कब्रों में दफ्न हो जाना कोई काबिले गौर बात न थी ? तू ने हमारी मौत से हमारे आ’माल खत्म होते देखे ! लेकिन तू जिन्दा रहा और तुझे अमल करने की मोहलत दी गई, मगर तू ने इस मोहलत को गनीमत न जाना और नेक आ’माल न किये और उस से ज़मीन का वो टुकड़ा कहता है : ऐ दुन्या की ज़ाहिरी पर इतराने वाले ! तू ने अपने उन रिश्तेदारों से इबरत क्यूं न हासिल की जो दुन्यावी ने’मतों पर इतराया करते थे मगर वो तेरे । सामने मेरे पेट में गुम हो गए, उन की मौत उन्हें कब्रों में ले आई और तू ने उन्हें कन्धों पर सवार उस मन्ज़िल की तरफ़ आते देखा कि जिस से कोई राहे फ़िरार नहीं है।

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‘माल भी मरने वाले से सवाल करते हैं

यज़ीदूरक्काशी रहमतुल्लाह अलैह का कौल है कि मुझे यह रिवायत मिली है : जब मय्यित को क़ब्र में रखा जाता है तो उस के आ’माल जम्अ हो जाते हैं, फिर अल्लाह तआला उन्हें कुव्वते गोयाई देता है और वह कहते हैं : ऐ कब्र के तन्हा इन्सान ! तेरे सब दोस्त और अज़ीज़ तुझ से जुदा हो गए हैं, आज हमारे सिवा तेरा और कोई साथी न होगा।

हज़रते का’ब रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि जब नेक आदमी को क़ब्र में रखा जाता है तो उस के अच्छे आ’माल, नमाज़, रोज़ा, हज, जिहाद और सदक़ा वगैरा उस के पास जम्अ हो जाते हैं, जब अज़ाब के फ़िरिश्ते उस के पैरों की तरफ़ से आते हैं तो नमाज़ कहती है : इस से दूर रहो, तुम्हारा यहां कोई काम नहीं, यह इन पैरों पर खड़ा हो कर अल्लाह तआला की लम्बी लम्बी इबादत करता था।

फिर वह फ़िरिश्ते सर की तरफ़ से आते हैं तो रोज़ा कहता है : तुम्हारे लिये इस तरफ़ कोई राह नहीं है क्यूंकि दुन्या में अल्लाह तआला की खुशनूदी के लिये इस ने बहुत रोजे रखे और तवील भूक प्यास बरदाश्त की, फ़रिश्ते उस के जिस्म के दूसरे हिस्सों की तरफ़ से आते हैं तो हज और जिहाद कहते हैं कि हट जाओ ! इस ने अपने जिस्म को दुख में डाल कर अल्लाह तआला की रिज़ा के लिये हज और जिहाद किया था लिहाज़ा तुम्हारे लिये यहां कोई जगह नहीं है।

फिर वह हाथों की तरफ़ से आते हैं तो सदका कहता है : मेरे दोस्त से हट जाओ ! इन हाथों से कितने सदक़ात निकले हैं जो महज़ खुशनूदिये खुदा के लिये दिये गए और इन हाथों से निकल कर वो बारगाहे इलाही में मकबूलिय्यत के दरजे पर फ़ाइज़ हुवे लिहाज़ा यहां तुम्हारा कोई काम नहीं है। फिर उस मय्यित को कहा जाता है कि तेरी ज़िन्दगी और मौत दोनों बेहतरीन हैं और रहमत के फ़रिश्ते उस की कब्र में जन्नत का फ़र्श बिछाते हैं, उस के लिये जन्नती लिबास लाते हैं, हद्दे निगाह तक उस की कब्र को फ़राख कर दिया जाता है और जन्नत की एक किन्दील उस की कब्र में रोशन कर दी जाती है जिस से वो कयामत के दिन तक रोशनी हासिल करता रहेगा।

 

हज़रते उबैद बिन उमैर ने एक जनाज़े के जुलूस में कहा : मुझे यह रिवायत पहुंची है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : मय्यित को कब्र में बिठाया जाता है, दर-आं-हाल यह कि वह चलने वालों के क़दमों की चाप को सुन रहा होता है तो उस के साथ क़ब्र गुफ्तगू करती है और कहती है कि ऐ इन्सान ! तुझ पर अफ्सोस है क्या तुझे मुझ से, मेरी तंगी से, बदबू से, हैबत और कीड़ों से नहीं डराया गया था ! अब तू मेरे लिये क्या तय्यारी कर के लाया है ?

मोमिन की वफात पर फरिश्तों की आमद

हज़रते बरा बिन आज़िब रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हम हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  के साथ एक अन्सारी जवान के जनाजे में गए, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  उस की कब्र पर सर झुका कर बैठ गए, फिर तीन मरतबा :

ऐ अल्लाह ! मैं तुझ से अज़ाबे क़ब्र से पनाह मांगता हूं। कह कर फ़रमाया कि जब मोमिन की मौत का वक़्त करीब आता है तो अल्लाह तआला उस की तरफ़ ऐसे फ़रिश्ते भेजता है जिन के चेहरे सूरज की तरह रोशन होते हैं, वह उस के लिये खुश्बूएं और कफ़न साथ लाते हैं और हृद्दे नज़र तक बैठ जाते हैं, जब उस मोमिन की रूह परवाज़ करती है तो आस्मानो ज़मीन के दरमियान रहने वाले तमाम फ़रिश्ते उस के दरजात की बुलन्दी की दुआ करते हैं, उस के लिये आस्मानों के दरवाजे खोल दिये जाते हैं और आस्मान के हर दरवाजे की ख्वाहिश होती है कि यह रूह मेरे यहां से दाखिल हो, जब उस की रूह ऊपर को जाती है तो कहा जाता है : ऐ अल्लाह ! तेरा फुलां बन्दा आ गया है। रब तआला इरशाद फ़रमाता है :

इसे ले जाओ और इसे वो इन्आमात दिखलाओ जो मैं ने इस के लिये तय्यार किये हैं क्यूंकि मैं ने वादा किया है कि “इन्हें मिट्टी से मैं ने पैदा किया है और इसी में उन को लौटाऊंगा।”.

मुर्दा कब्र में लोगों के जूतों की चाप को सुनता होता है, जब वो उसे दफ्न कर के वापस जा रहे होते हैं, तब उसे कहा जाता है कि ऐ इन्सान ! तेरा रब कौन है ? तेरा दीन क्या है ? और तेरा नबी कौन है ? वो जवाब में कहता है : मेरा रब अल्लाह, मेरा दीन इस्लाम और मेरे नबी मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम है।

फिर फ़रमाया : क़ब्र में फ़िरिश्ते सख़्त सर ज़निश करते हैं और यह आखिरी मुसीबत है जो मय्यित पर कब्र में नाज़िल होती है। जब वो इन के सुवालात के जवाब से फ़ारिग हो जाता है तो मुनादी निदा करता है : तू ने सच कहा और यही फ़रमाने इलाही है : “अल्लाह तआला मोमिनों को मुस्तहकम बात के साथ साबित क़दम रखता है। फिर उस के पास एक हसीनो जमील शख्स आता है जिस के जिस्म से खुश्बू की लपटें आती हैं और वो इन्तिहाई दीदा जैब लिबास जैबे तन किये हुवे होता है, वो आ कर कहता है कि तुझे रहमते खुदावन्दी और हमेशा रहने वाली नेमतों की अमीन “जन्नत” की खुश खबरी हो, मोमिन जवाब में कहता है : अल्लाह तुझे भलाई से सरफ़राज़ फ़रमाए, तू कौन है ? जवाब मिलता है : मैं तेरा नेक अमल हूं, तू नेकियों में बढ़ कर हिस्सा लेता था और बुराइयों से रुक जाता था इस लिये अल्लाह तआला ने तुझे बेहतरीन जज़ा दी है।

फिर मुनादी निदा करता है कि इस मोमिन के लिये जन्नती फ़र्श बिछा दो और इस के लिये जन्नत की जानिब एक दरवाज़ा खोल दो, चुनान्चे, उस के लिये जन्नती फ़र्श बिछा दिया जाता है और जन्नत की तरफ़ एक दरवाज़ा खोल दिया जाता है और वो दुआ मांगता है, ऐ अल्लाह ! कियामत को जल्दी काइम फ़रमा ताकि मैं अपने अहलो इयाल और माल से मुलाकात करूं । – हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जब काफ़िर का आखिरी वक्त करीब आता है और दुन्या से रुख्सत हुवा चाहता है तो सख्त बेरहम फ़रिश्ते आग और दोज़ख के तारकोल का लिबास लिये आते हैं और उसे इन्तिहाई खौफ़ज़दा कर देते हैं, जब उस की रूह निकलती है तो आस्मान

और जमीन के दरमियान रहने वाले तमाम फ़रिश्ते उस पर ला’नत भेजते हैं, आस्मानों के दरवाजे बन्द कर दिये जाते हैं और हर दरवाज़ा यह चाहता है कि येह रूह इधर से न गुज़रे, जब उस की रूह ऊपर चढ़ती है तो उसे नीचे फेंक दिया जाता है और कहा जाता है : ऐ अल्लाह ! तेरा फुलां बन्दा आया है जिसे ज़मीनो आस्मान ने कबूल नहीं किया है, रब तआला फ़रमाता है कि इसे वापस लौटाओ और इसे वो अज़ाब दिखलाओ जो मैं ने इस के लिये कब्र में तय्यार किया है क्यूंकि इन्सान से मेरा वादा है : “तुम्हें हम ने मिट्टी से पैदा किया और हम तुम्हें उसी में लौटाएंगे।”

और वो मुर्दा क़ब्र में दफ्न कर के वापस जाने वालों के जूतों की चाप सुनता है तब उस से कहा जाता है : ऐ इन्सान ! तेरा रब कौन है ? तेरा नबी कौन है ? और तेरा दीन क्या है ? वोह कहता है : मैं नहीं जानता और उसे कहा जाता है : तू न जाने ।

फिर उस के पास एक बदसूरत, बदबू दार और इन्तिहाई गलीज़ कपड़ों वाला आ कर कहता है : तुझे करे खुदावन्दी और दाइमी दर्दनाक अज़ाब की खुश खबरी हो, मुर्दा काफ़िर कहता है : अल्लाह तआला तुझे बुरी खबर सुनाए तू कौन है ? वो कहता है : मैं तेरे आ’माले बद हूं। ब खुदा तू बुराइयों में बहुत तेज़ी दिखाता था और नेकियों से ए’राज़ किया करता था लिहाज़ा अल्लाह तआला ने तुझे बुरी जज़ा दी। काफ़िर कहता है : अल्लाह तआला तुझे भी जज़ा दे।

फिर उस के लिये एक गूंगा, अन्धा और बहरा फ़रिश्ता मुकर्रर किया जाता है, जिस के पास लोहे का हथोड़ा होता है जिसे अगर जिन्नो इन्सान मिल कर उठाना चाहें तो न उठा सकें, अगर वो पहाड़ पर मारा जाए तो वो मिट्टी हो जाए । वो फ़िरिश्ता उस इन्सान को हथोड़ा मारता है जिस से वो रेज़ा रेज़ा हो जाता है फिर वो ज़िन्दा हो जाता है और फ़रिश्ता उसे आंखों के दरमियान मारता है जिस की आवाज़ जिन्नो इन्सान के सिवा ज़मीन की तमाम मख्लूक सुनती है, फिर मुनादी निदा करता है : इस के लिये जहन्नम की दो तख्तियां बिछाओ और इस के लिये जहन्नम की जानिब एक दरवाज़ा खोल दो ! लिहाजा उस के लिये जहन्नम के दो तख्ते बिछा दिये जाते हैं और जहन्नम की तरफ़ दरवाज़ा खोल दिया जाता है।

हज़रते मोहम्मद बिन अली रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है कि हर मरने वाले पर मौत के वक्त उस के अच्छे और बुरे आ’माल पेश किये जाते हैं, वो नेकियों की तरफ़ टिक-टिकी बांधे देखता है और गुनाहों के देखने से आंखें चुराता है।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम- ने फ़रमाया : मोमिन पर जब मौत का वक्त करीब आता है तो फ़रिश्ते रेशम के एक कपड़े में मुश्क और नाज़ बू  की टहनियां लाते हैं, उन जन्नती अश्या को देख कर मोमिन की रूह ऐसी आसानी से निकलती है जैसे आटे में से बाल निकलता है और कहा जाता है : ऐ नफ़्से मुतमइन्ना ! अपने रब की तरफ़ खुश और पसन्दीदा हो कर लौट जा, अल्लाह तआला की तय्यार कर्दा आसाइशों और इज्जत की तरफ़ जा और जब रूह निकल आती है तो उसे उस मुश्क और नाज़ बू में रख कर ऊपर रेशम लपेट कर जन्नत की तरफ़ ले जाया जाता है।

काफ़िर पर अजाब

जब काफ़िर पर मौत का वक्त करीब आता है तो फ़रिश्ते एक टाट पर जहन्नम की चिंगारियां रख कर आते हैं जिस की वज्ह से उस की रूह शदीद अज़ाब से खींची जाती है और कहा जाता है : ऐ नफ्से ख़बीस ! मुसीबत ज़दा और महूर हो कर अल्लाह तआला के अज़ाब और जिल्लतो रुस्वाई की तरफ़ निकल जा, जब उस की रूह निकल आती है तो उसे उन अंगारों पर रखा जाता है जिस से वो उबलने लगती है और उस पर टाट लपेट कर फिर जहन्नम की तरफ़ ले जाया जाता है। हज़रते मुहम्मद बिन का’ब कुरजी रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है : इन्हों ने यह फ़रमाने इलाही :

यहां तक कि जब उन में से किसी एक पर मौत आए तो वो कहता है ऐ मेरे रब मुझे वापस लौटा ताकि मैं नेक अमल करूं उस जगह जिसे मैं छोड़ आया हूं। पढ़ कर कहा : यह सुन कर रब तआला ने फ़रमाया : तू क्या चाहता है और तुझे किस चीज़ की ख्वाहिश है ? क्या तू इस लिये जाना चाहता है ताकि माल जम्अ करे ? दरख्त लगाए, इमारतें बनाए और नहरें खुदवाए ? वो कहेगा नहीं बल्कि इस लिये कि मैं छोड़े हुवे नेक अमल कर लूंगा।

रब फ़रमाता है: “तहक़ीक़ ये बात है जिसे वो कहने वाला है।”

हश्त (हरगिज़ नहीं) यह तो एक बात है जो वह अपने मुंह से कहता है। या’नी हर काफ़िर मौत के वक्त यही कलिमात ज़रूर कहता है।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि मोमिन की कब्र एक सब्ज़ बाग होता है, उस की क़ब्र सत्तर हाथ फ़राख कर दी जाती है और वो चौदहवीं रात के चांद की तरह चमकेगा, फिर फ़रमाया कि ये आयते मुबारका : “बेशक उस के लिये ज़िन्दगी तंग होती है”। जानते हो किस के बारे में नाज़िल हुई है ? सहाबए किराम राज़ी अल्लाहो अन्हुम ने अर्ज किया : अल्लाह और उस का रसूल बेहतर जानता है, आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : यह काफ़िर के अजाब के मुतअल्लिक़ है, उस की कब्र में उस पर निनानवे सांप मुसल्लत कर दिये जाते हैं, हर सांप के सात सर होते हैं, जो उस के वुजूद को नोचते, उसे खाते और हश्र के दिन तक उस पर गर्म गर्म फूंकें मारते रहते हैं।

और यह बात भी समझ लीजिये कि इस मख्सूस अदद पर तअज्जुब न कीजिये क्यूंकि उन सांपों की तादाद इन बुराइयों की तादाद के बराबर है जैसे तकब्बुर, दिखावा, हसद, कीना और किसी के लिये दिल में मेल रखना वगैरा अगर्चे इन बुराइयों के उसूल गिने चुने हैं मगर इन की शाखें और फिर इन शाखों की शाखें बहुत ज़ियादा हैं जो सब की सब मोहलिक हैं और कब्र में यही सिफ़ाते मज़मूमा सांपों की शक्ल में तब्दील हो कर आएंगी, जो बुराई उस काफ़िर के वुजूद में ज़ियादा रासिख़ होगी वह अज़दहे की तरह डसेगी, जो ज़रा कम होगी वह बिच्छू की तरह डंक मारेगी और जो इन दो के दरमियान होगी वह सांप की शक्ल में नुमूदार होगी।

अस्हाबे मा’रिफ़त और साहिबे दिल हज़रात अपने नूरे बसीरत से इन मोहलिकात और इन की फुरूअ को जानते हैं मगर इन की तादाद पर मुत्तलअ होना, यह नूरे नबुव्वत का काम है इस जैसी हदीसों के ज़ाहिरी मा ना सहीह और इन के पोशीदा मआनी भी हैं जो अहले मा’रिफ़त ब खूबी समझते हैं, लिहाजा अगर किसी जाहिर बीन पर इन के हक़ाइक़ मुन्कशिफ़ न हों तो उसे इन्कार की बजाए तस्दीक और तस्लीम से काम लेना चाहिये क्यूंकि ईमान का कम अज़ कम दरजा यही है।

 

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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शदाइदे मर्ग – मौत के वक़्त की तकलीफ और मुसीबतें

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने मौत और इस के दुख दर्द का तजकिरा फ़रमाते हुवे इरशाद फ़रमाया कि यह दुख दर्द तल्वार से लगने वाली तीन सो चोटों के बराबर होता है।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मौत की शिद्दत के मुतअल्लिक़ पूछा गया तो आप ने इरशाद फ़रमाया कि आसान तरीन मौत ऊन में कांटेदार टहनी की तरह है, उसे जब खींचा जाएगा तो उस के साथ ज़रूर कुछ न कुछ ऊन भी खींची चली आएगी।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम एक मरीज़ के पास तशरीफ़ लाए और फ़रमाया : मैं जानता हूं कि वो किस हाल में है और पसीना उसे किस लिये आ रहा है ? दर्दो अलम मौत की शिद्दत व हिद्दत की वज्ह से है।

हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो लोगों को जिहाद पर उभारते और फ़रमाते कि अगर तुम जिहाद में शुमूलिय्यत इख्तियार न करोगे तब भी मरना ज़रूर है, ब खुदा ! मुझे तल्वारों के एक हज़ार वार बिस्तर पर मरने से ज़ियादा आसान नज़र आते हैं।

इमाम औज़ाई रहमतुल्लाह अलैह का कौल है : हमारे इल्म में यह बात आई है कि मुर्दा कब्र से उठने के वक्त तक मौत की तल्खी महसूस करता रहेगा।

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बा‘ज शदाइदे मर्ग की तफ्सील

हज़रते शहाद बिन औस रहमतुल्लाह अलैह का कौल है कि मौत मोमिन के लिये दुन्या और आख़िरत के खौफ़ों में सब से ज़ियादा हौसला शिकन खौफ़ है, वो आरियों से चिर जाने, कैचियों से आ’ज़ा काट दिये जाने और देगों में उबलने से भी ज़ियादा सख्त है, अगर कोई मुर्दा जिन्दा हो कर दुन्या वालों को मौत की तल्खी की खबर दे दे तो वो ज़िन्दगी के लुत्फ़ को भूल जाएं और कभी आराम की नींद न सोएं।

जैद बिन अस्लम रहमतुल्लाह अलैह अपने बाप से रिवायत करते हैं कि जब मोमिन किसी अपने अमल की वज्ह से किसी दरजे को नहीं पा सकता तो मौत के वक्त उसे सकरात और उस के दुख से वासिता पड़ता है ताकि वो इस तरह जन्नत के उस आखिरी दरजे को भी हासिल करे जिसे वो आ’माल से हासिल नहीं कर सका, अगर किसी काफ़िर के कुछ अच्छे आ’माल होते हैं और दुन्या में उसे इस का बदला हासिल नहीं हो सका है तो उस पर मौत की शिद्दत को हल्का कर दिया जाता है ताकि वो उन अच्छे कामों का बदला पा ले और मरने के बाद सीधा जहन्नम में जाए।

एक साहिब अक्सर मरीजों से मौत की शिद्दत के मुतअल्लिक गुफ्तगू किया करते थे, जब वो खुद मरजुल मौत में मुब्तला हुवे तो लोगों ने उन से मौत की शिद्दत के बारे में सुवाल किया, वो कहने लगा : ऐसा महसूस होता है जैसे आस्मान जमीन मिल गए हैं और मेरी रूह सूई के नाके से निकल रही है।

फ़रमाने नबवी है कि मर्गे मुफ़ाजात मोमिन के लिये राहत और गुनहगार के लिये बाइसे ज़हमत है।

हज़रते मक्हूल रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : अगर मय्यित के बालों में से एक बाल ज़मीनो आस्मान में रहने वालों पर रख दिया जाए तो सब अल्लाह तआला के इज़्न से मर जाएं क्यूंकि मय्यित के हर एक बाल में मौत होती है और मौत जब किसी चीज़ पर तारी होती है तो वो चीज़ फ़ना हो जाती है।)

मरवी है कि अगर मौत के दर्द का एक कतरा दुन्या के पहाड़ों पर रख दिया जाए तो सब पहाड़ पिघल जाएं।

अम्बिया अलैहिमुस्सलाम पर मौत बहुत आसान कर दी जाती है

मरवी है कि जब हजरते इब्राहीम अलैहहिस्सलाम  का इन्तिकाल हुवा तो अल्लाह तआला ने फ़रमाया : ऐ मेरे खलील ! तुम ने मौत को कैसा पाया ? उन्हों ने अर्ज की : जैसे सीख को गीली ऊन में डाल कर खींचा जाए, रब तआला ने फ़रमाया : “हम ने तुम्हारे लिये मौत को बहुत आसान कर दिया है। (तू ने तब भी इस की यह शिद्दत महसूस की है)।

मरवी है कि हज़रते मूसा अलैहहिस्सलाम  . की रूह बारगाहे रब्बुल इज्जत में हाज़िर हुई तो रब्बे जलील ने फ़रमाया : मूसा ! तुम ने मौत को कैसा पाया ? हज़रते मूसा अलैहहिस्सलाम  ने अर्ज की : जैसे चिड़या जाल में फंस जाती है और वो मरती नहीं बल्कि आसाइश तलब करती है और न रिहाई पाती है कि उड़ जाए (ये ही हाल दमे नज्अ इन्सान का होता है)।

यह भी मरवी है कि इन्हों ने कहा : मैं ने ऐसा दर्द महसूस किया जैसे ज़िन्दा बकरी की कस्साब खाल उतार रहा हो।

मरवी है कि मौत के वक्त हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के करीब पानी का प्याला रखा था, आप उस में दस्ते अतहर डुबो कर पेशानी पर मलते और फ़रमाते : ऐ अल्लाह ! मुझ पर मौत की सख्तियों को आसान फ़रमा और हज़रते ख़ातूने जन्नत रज़ीअल्लाहो अन्हा खड़ी रो रही थीं, हाए मेरे अब्बा की तक्लीफ़ ! और आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमा रहे थे कि तेरे बाप पर आज के बाद कोई दुख वारिद नहीं होगा।

हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने हज़रते का’ब रज़ीअल्लाहो अन्हो से कहा : हमें मौत की शिद्दत के मुतअल्लिक़ बताओ, हज़रते का’ब रज़ीअल्लाहो अन्हो ने कहा : अमीरुल मोमिनीन ! मौत ऐसी टहनी की तरह है जिस में बहुत ज़ियादा कांटे हों और वो इन्सान के जिस्म में दाखिल हो गई हो और उस के हर हर कांटे ने हर रग में जगह पकड़ ली हो फिर उसे एक आदमी इन्तिहाई सख्ती से खींचे, तो कुछ बाहर आ जाए और बाकी जिस्म में बाकी रह जाए।

फ़रमाने नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम है कि बन्दा मौत की सख्तियों को बीमारी समझ कर उन का इलाज करता है मगर उस के जिस्म के आ’ज़ा एक दूसरे से विदा होते हैं और कहते हैं कि तुझ पर सलाम हो, अब हम कियामत तक के लिये एक दूसरे से जुदा हो रहे हैं।

“मजकूरए बाला अहवाल” उन मुकद्दस हस्तियों के थे जो अल्लाह तआला के दोस्त और महबूब हैं, हम जो गुनाहों से आलूदा हैं, हमारी क्या हालत होगी ! हमारे लिये तो मौत की सख्तियों के इलावा और भी आफ़तें

होंगी।

मौत की तीन मुसीबतें होती हैं

मौत की तीन मुसीबतें होती हैं : पहली : नज्अ की तक्लीफ़, जो अभी मजकूर हो चुकी है। दूसरे : इज़राईल की सूरत का मुशाहदा और उसे देख कर दिल में इन्तिहाई खौफ़ो दहशत का पैदा होना, अगर बे पनाह हिम्मत वाला आदमी भी मलकुल मौत की उस सूरत को देख ले जो वो फ़ासिको फ़ाजिर की मौत के वक़्त ले कर आते हैं तो उसे ताबे तहम्मुल न रहे।

मरवी है कि हज़रते इब्राहीम ने मलकुल मौत से कहा : क्या तुम मुझे अपनी वो सूरत दिखा सकते हो जिस में तुम गुनहगारों की रूह कब्ज़ करने को जाते हो ? मलकुल मौत बोले : आप में देखने की ताब नहीं है। आप ने फ़रमाया : मैं देख लूंगा चुनान्चे, मलकुल मौत ने कहा : थोड़ी सी देर दूसरी तरफ़ तवज्जोह कीजिये।

जब आप ने कुछ देर के बाद देखा तो एक काला सियाह आदमी जिस के रौंगटे खड़े हुवे थे, बदबू के भभके उठ रहे थे, सियाह कपड़े पहने हुवे और उस के मुंह और नथनों से आग के शो’ले निकल रहे थे और धुवां उठ रहा था, सामने नज़र आया, हज़रते इब्राहीम अलैहहिस्सलाम  यह मन्ज़र देख कर बेहोश हो गए, जब आप को होश आया तो देखा कि मलकुल मौत साबिक़ा शक्ल में बैठे हुवे थे। आप ने फ़रमाया : अगर फ़ासिको फ़ाजिर के लिये मौत की और कोई सख्ती न हो तब भी सिर्फ तुम्हारी सूरत देखना ही उन के लिये बहुत बड़ा अज़ाब है।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हज़रते दावूद अलैहहिस्सलाम  इन्तिहाई गैरत मन्द जवान थे, जब आप बाहर तशरीफ़ ले जाते तो दरवाजे बन्द कर जाते, एक दिन आप घर के दरवाजे बन्द कर के बाहर तशरीफ़ ले गए। आप की ज़ौजए मोहरतमा ने देखा कि सेहन में एक आदमी खड़ा हुवा था, वो बोली न जाने इस को किस ने घर में दाखिल होने दिया है ? अगर दावूद अलैहहिस्सलाम  आ गए तो ज़रूर उन्हें दुख पहुंचेगा। फिर हज़रते दावूद , तशरीफ़ लाए और उसे खड़ा देख कर पूछा : कौन हो ? उस ने कहा : मैं वो हूं जो बादशाहों से भी नहीं डरता, न कोई पर्दा मेरी राह में हाइल होता है। हज़रते दावूद , ख़ामोश खड़े के खड़े रह गए और फ़रमाया : तब तो तुम मलकुल मौत हो ।

एक कासएसर से हजरते ईसा अलैहहिस्सलाम  की गुफ्तगू

मरवी है कि हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम  का एक इन्सानी खोपड़ी के करीब से गुज़र हुवा, आप ने उसे पाउं से ठोंक दिया और फ़रमाया : ब हुक्मे खुदा मुझ से बात कर, खोपड़ी बोली : ऐ रूहल्लाह ! मैं फुलां फुलां ज़माने का बादशाह था, एक मरतबा मैं अपने मुल्क में ताज सर पर रखे, लश्कर के घेरे में तख्त पर बैठा हुवा था, अचानक मलकुल मौत मेरे सामने आ गया जिसे देख कर मेरा हर उज्व मुअत्तल हो गया और मेरी रूह परवाज़ कर गई। पस उस इजतिमा में क्या रखा था, जुदाई तो सामने खड़ी थी और उस उन्स व महब्बत में क्या था, वहशत ही वहशत और तन्हाई ही तन्हाई थी, यह धोका है जो ना फ़रमानों ने डाल दिया जो इताअत मन्दों के लिये नसीहत है।

यह वह आफ़त है जिसे हर गुनहगार और फ़रमां बरदार देखता है। अम्बियाए किराम ने मौत के वक्त सिर्फ नज्अ की सख्ती को बयान फ़रमाया है, उस ख़ौफ़ व दहशत का तजकिरा नहीं किया जो मलकुल मौत की सूरत देखने वाले इन्सान पर तारी होता है। अगर मलकुल मौत की सूरत को कोई रात को ख्वाब में देख ले तो उसे बकिय्या जिन्दगी बसर करना अजीरन हो जाए, जब  कि उसे मौत की सख्ती के वक्त ऐसी हैबतनाक शक्ल में देखे।

अल्लाह तआला के फ़रमां बरदार और नेक लोग मलकुल मौत को इन्तिहाई हसीनो जमील शक्ल में देखते हैं चुनान्चे, हज़रते इकरमा हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत करते हैं कि हज़रते इब्राहीम अलैहहिस्सलाम  बहुत गैरत मन्द इन्सान थे, आप का एक इबादत ख़ाना था, जब आप बाहर जाते उसे बन्द कर जाते । एक दिन बाहर से तशरीफ़ लाए तो देखा कि इबादत खाने में एक आदमी खड़ा है। आप ने पूछा : तुझे किस ने मेरे घर में दाखिल किया है ? वो बोला : इस के मालिक ने । आप ने फ़रमाया : “इस का मालिक तो मैं हूं।” उस ने कहा : मुझे उस ने दाखिल किया है जो इस मकान का आप से और मुझ से ज़ियादा मालिक है। आप ने पूछा : क्या तुम फ़रिश्तों में से हो ? वो बोला : हां ! मैं मलकुल मौत हूं। आप ने फ़रमाया : क्या तुम मुझे अपनी वो सूरत दिखला सकते हो जिस शक्ल में तुम मोमिनों की रूह को कब्ज़ करते हो ? मलकुल मौत ने कहा : हां ! आप ज़रा दूसरी तरफ़ तवज्जोह कीजिये।

चन्द लम्हे दूसरी तरफ़ मुतवज्जेह होने के बाद आप ने दोबारा उस की तरफ़ देखा तो उन्हें एक हसीनो जमील जवान नज़र आया जिस के चेहरे पर नूर बरस रहा था, लिबास इन्तिहाई पाकीज़ा पहने और उस से खुश्बू की लपटें उठ रही थीं। आप ने येह मन्ज़र देख कर फ़रमाया : ऐ इज़राईल ! अगर मोमिन को मौत के वक्त और कोई इन्आम न मिले, सिर्फ तुम्हारी सूरत ही देखने को मिल जाए तो येही काफ़ी है और बड़ा इन्आम है।

मुहाफ़िज फ़िरिश्तों का मुशाहदा

मौत के वक्त एक मुसीबत मुहाफ़िज़ फ़िरिश्तों का मुशाहदा है। हज़रते वुहैब रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है कि हमें यह ख़बर मिली है कि जब भी कोई आदमी मरता है तो वह मरने से पहले “नामए आ’माल” लिखने वाले फ़िरिश्तों का मुशाहदा करता है, अगर वो आदमी नेक होता है तो वो कहते हैं कि अल्लाह तआला तुझे हमारी तरफ़ से जज़ाए खैर दे, तू ने हमें बहुत सी बेहतरीन मजालिस में बिठलाया और बहुत ही नेक काम लिखने को दिये।

और अगर मरने वाला गुनहगार होता है तो वो कहते हैं कि अल्लाह तुझे हमारी तरफ़ से जजाए खैर न दे, तू ने बहुत ही बुरी मजालिस में हमें बिठलाया और गुनाहों और फ़ोहूश कलाम सुनने पर मजबूर किया, अल्लाह तुझे बेहतर जज़ा न दे। उस वक्त इन्सान की आंखें खुली की खुली रह जाती हैं और वो किसी चीज़ को नहीं देख पाता सिवाए अल्लाह तआला के फ़िरिश्तों के।

तीसरी आफ़त गुनहगारों का जहन्नम में अपने ठिकाने को देखना और वहां जाने से पहले ही इन्तिहाई खौफ़ज़दा हो जाना है, उस वक्त वह नज्अ के आलम में होता है, उस के आ’जाए बदन ढीले पड़ जाते हैं और उस की रूह निकलने को तय्यार होती है। मगर वो मलकुल मौत की आवाज़ के (जो दो बशारतों में से एक पर मुश्तमिल होती है) बिगैर नहीं निकल सकती, या तो यह कि ऐ दुश्मने खुदा ! तुझे जहन्नम की बशारत हो, या फिर यह कि ऐ अल्लाह के दोस्त ! तुझे जन्नत की बशारत हो, इसी लिये अक्लमन्द मौत के वक्त से बहुत ख़ौफ़ज़दा रहते हैं।

नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फ़रमान है कि तुम में से कोई शख्स भी उस वक्त तक दुन्या से नहीं निकलता जब तक कि अपना ठिकाना, ख़्वाह वोह जन्नत में हो या जहन्नम में हो, देख न ले

 

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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जिन्दगी के बारे में गौरो फिक्र

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

अल्लाह तआला ने कुरआने मजीद में बहुत से मकामात पर इन्सान को गौरो फ़िक्र करने का हुक्म दिया है चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है :

बेशक ज़मीनो आस्मान की पैदाइश और रात दिन के इख़्तिलाफ़ में (अहले बसीरत के लिये निशानियां हैं)।

या’नी रात दिन के एक दूसरे के पीछे आने जाने में अक्लमन्दों के लिये गौरो फ़िक्र की दा’वत है क्यूंकि ज्यों ही एक जाता है, दूसरा आ जाता है, चुनान्चे, इरशादे इलाही है :

अल्लाह तआला वो है जिस ने रात और दिन को एक दूसरे के पीछे आने वाला कर दिया है। हज़रते अता रहमतुल्लाह अलैह का कौल है कि पहली आयत में इख़्तिलाफ़ से मुराद नूर व जुल्मत, कमी और ज़ियादती है। किसी ने क्या खूब कहा है :

(1)….ऐ रात के इब्तिदाई हिस्से में खुश खुश सोने वाले ! कभी सुब्ह को मसाइब भी नाज़िल हो जाया करते हैं। (2.)…..रात के पहले पहर की पाकीज़गी से खुश न हो, रात के बहुत से आख़िरी हिस्से जहन्नम के शो’लों को भड़का देते हैं।

दूसरा शाइर कहता है:

.बेशक रातें लोगों की मन्ज़िल हैं  (2)…..छोटी रातें गमों की वज्ह से तवील हो जाती हैं और तवील रातें मसर्रत की वज्ह से छोटी मा’लूम होती हैं।

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ऊलुल अल बाब कौन हैं

और अल्लाह तआला ने गौरो फ़िक्र करने वालों की तारीफ़ की,

चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है :  यह वो लोग हैं जो खड़े हुवे बैठे हुवे और पहलू के बल लैटे हुवे अल्लाह को याद करते हैं और जमीनो आसमान की पैदाइश में गौरो फ़िक्र करते हैं (और कहते हैं) ऐ हमारे परवरदिगार तू ने इन को बे फाइदा पैदा नहीं किया।

 

जाते बारी ता आला में गौरो फ़िक्रकी मुमानअत। अल्लाह की ज़ात में गौरो फ़िक्र न करो

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि कुछ लोगों ने अल्लाह तआला की जातो सिफ़ात में गौरो फ़िक्र किया तो हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : “मख्लूके खुदा के अहवाल में गौरो फ़िक्र करो, अल्लाह की ज़ात में गौरो फ़िक्र न करो क्यूंकि तुम उस की बे मिसाल कुदरत पर कादिर नहीं हो सकते ।”

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मरवी है कि एक दिन आप एक ऐसी जमाअत के पास गए जो गौरो फ़िक में डूबी हुई थी, आप ने पूछा : क्या बात है तुम बोलते क्यूं नहीं हो? उन्हों ने जवाब दिया : हम अल्लाह तआला के बारे में गौरो फ़िक्र कर रहे हैं, आप ने फ़रमाया : अच्छा ! लेकिन मख्लूके खुदा में गौरो फ़िक्र करो, खालिके काइनात की ज़ात में गौरो फ़िक मत करो, फिर आप ने फ़रमाया : मगरिब में एक सफ़ेद बर्राक नूरानी ज़मीन है, सूरज का वहां तक चालीस दिनों का सफ़र है, वहां अल्लाह तआला ने एक मख्लूक पैदा फ़रमाई है, वो जब से पैदा हुवे हैं उन्हों ने एक लम्हा भी अल्लाह तआला की ना फ़रमानी नहीं की, लोगों ने पूछा : हुजूर ! उन में शैतान का गुज़र नहीं है ?

आप ने फ़रमाया : उन्हें शैतान की पैदाइश का इल्म ही नहीं, पूछा गया : वो आदम की औलाद में से हैं ? आप ने फ़रमाया : उन्हें तो आदम अलैहहिस्सलाम  की पैदाइश का भी इल्म नहीं है।

हज़रते अता रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है कि एक दिन मैं और उबैद बिन उमैर हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा  की खिदमत में हाज़िर हुवे, आप के और हमारे दरमियान पर्दा पड़ा हुवा था, उन्हों ने पूछा : उबैद ! तुम हमारी मुलाकात को क्यूं नहीं आते ? उबैद ने कहा : मैं हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के इस फरमान की वज्ह से देर से हाज़िर होता हूं कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया है

– ताख़ीर से मुलाकात करो, महब्बत बढ़ेगी । इब्ने उमैर बोले : आप हमें हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मुशाहदा की हुई मुन्फरिद बातों से कोई मुन्फरिद बात बतलाएं । हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा रो पड़ी और फ़रमाया : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की हर बात मुन्फरिद थी।

एक मरतबा हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम रात को मेरे यहां तशरीफ़ लाए और मेरे साथ आराम फ़रमा हुवे, थोड़ी देर के बाद फ़रमाया कि मुझे इजाज़त दो ताकि मैं अल्लाह तआला की इबादत करूं । चुनान्चे, आप एक मश्कीजे की तरफ़ गए, वुजू फ़रमाया और नमाज़ में खड़े हो गए। नमाज़ शुरूअ करते ही आप ने रोना शुरू किया यहां तक कि आप की मुबारक दाढ़ी आंसूओं से तर हो गई, फिर सजदा किया यहां तक कि रोते रोते ज़मीन गीली हो गई, सलाम के बाद आप पहलू के बल लैट गए ता आकी   हज़रते बिलाल रज़ीअल्लाहो अन्हो ने सुब्ह की अजान दे दी और आप को नमाज़ के लिये बुलाया और अर्ज की : या रसूलल्लाह ! आप किस लिये रोते हैं हालांकि अल्लाह तआला ने आप के सबब आप के अगलों और पिछलों की खताएं मुआफ़ फ़रमाई। आप ने फ़रमाया : अफ्सोस ! बिलाल तुम मुझे रोने से रोकते हो हालांकि अल्लाह तआला ने आज की रात मुझ पर यह आयत नाज़िल फ़रमाई है :  “बेशक ज़मीनो आसमान की पैदाइश और रात दिन के इख़्तिलाफ़ में अक्लमन्दों के लिये निशानियां हैं”। फिर इरशाद फ़रमाया : उस शख्स पर अफ्सोस है ! जिस ने यह आयत पढ़ी और इस में गौरो फ़िक्र नहीं किया।

इमाम औज़ाई रज़ीअल्लाहो अन्हो से पूछा गया कि इन आयात में गौरो फ़िक्र करने से क्या मुराद है ? तो उन्हों ने जवाब दिया : इन आयात को पढ़ो और फिर इन्हें समझने की कोशिश करो।

मुहम्मद बिन वासेअ रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है कि बसरा का एक शख्स हज़रते अबू ज़र रज़ीअल्लाहो अन्हो की वफ़ात के बाद उन की ज़ौजए मोहतरमा की खिदमत में हाज़िर हुवा और उन से हज़रते अबू ज़र रज़ीअल्लाहो अन्हो की इबादत के मुतअल्लिक पूछा । उन की बीवी ने जवाब दिया कि वो सारा दिन घर के कोने में बैठे गौरो फ़िक्र किया करते थे।

हज़रते हसन रहमतुल्लाह अलैह का कौल है कि एक लम्हे का गौरो फ़िक्र रात भर की इबादत से बेहतर है, हज़रते फुजेल का कौल है कि गौरो फ़िक्र एक आईना है जो तुझे तेरी नेकियां और बुराइयां दिखाता है।

हज़रते इब्राहीम रहमतुल्लाह अलैह से कहा गया कि आप बहुत ज़ियादा गौरो फ़िक्र करते हैं, उन्हों ने कहा कि गौरो फ़िक्र अक्ल का मगज़ है।

हज़रते सुफयान बिन उयैनाह रहमतुल्लाह अलैह शाइर के इस शे’र को अक्सर बतौरे तमसील पेश किया करते थे :

जब आदमी में गौरो फ़िक करने का माद्दा हो तो उसे हर चीज़ में इब्रतें नज़र आती हैं।

 

हजरते ईसा का हवारियों को जवाब

हज़रते ताऊस रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है कि हवारियों ने हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम  से कहा कि आज रूए ज़मीन पर आप जैसा कोई और भी है ? आप ने फ़रमाया : जिस का बोलना ज़िक्रे इलाही में हो, जिस की ख़ामोशी गौरो फ़िक्र में और जिस की निगाह, निगाहे इब्रत हो, वो मुझ जैसा है।

हज़रते हसन रहमतुल्लाह अलैह का क़ौल है कि जिस शख्स की गुफ्तगू हकीमाना नहीं वो लग्व है, जिस की ख़ामोशी गौरो फ़िक्र की ख़ामोशी नहीं है वो भूल है और जिस की निगाह, निगाहे इब्रत नहीं वो बेहूदा है।

फ़रमाने इलाही है :

अलबत्ता मैं अपनी निशानियों से ज़मीन पर नाहक तकब्बुर करने वालों को फेर दूंगा।

हज़रते हसन रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं कि इस आयत के मा’ना यह हैं कि मैं उन के दिलों में गौरो फ़िक्र करने की सलाहिय्यत ही नहीं रहने दूंगा।

हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ीअल्लाहो अन्होसे मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि अपनी आंखों को इबादत का हिस्सा दो, अर्ज की गई : हुजूर ! इन का इबादत से क्या हिस्सा है ? आप ने इरशाद फ़रमाया : कुरआने मजीद को देखना, उस में गौरो फ़िक्र करना और उस के अजाइबात में सबक हासिल करने वाली निगाह से गौरो ख़ौज़ करना ।

मक्कए मुअज्जमा के करीब जंगल में रहने वाली औरत से मरवी है उस ने कहा : अगर नेकों के दिल गौरो फ़िक्र में डूब कर गैब के पर्दों में पोशीदा उन इन्आमात को देख लें जिन को अल्लाह तआला ने उन के लिये तय्यार किया है तो उन की दुन्यावी ज़िन्दगी उन पर भारी हो जाए और दुन्या उन की नज़रों में बिल्कुल हक़ीर हो जाए।

हज़रते लुक्मान अलैहहिस्सलाम  तन्हाई में बैठ कर बहुत देर तक गौरो फ़िक्र में डूबे रहते, उन का ख़ादिम वहां से गुज़रता और कहता कि आप हमेशा तन्हा बैठे रहते हैं, अगर लोगों के साथ बैठा करें तो आप उन से उल्फ़त हासिल करें, आप जवाब में फ़रमाते कि तवील तन्हाई दाइमी गौरो फ़िक्र अता करती है और तवील तफ़क्कुर जन्नत का रास्ता है।

हज़रते वहब बिन मुनब्बेह रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि जिस शख्स का गौरो फ़िक्र बढ़ जाता है उसे इल्म अता होता है और जिसे इल्म अता होता है वो अमल करता है।

हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि अल्लाह तआला की ने’मतों में गौरो फ़िक्र करना सब से अफ़ज़ल इबादत है।

हज़रते अब्दुल्लाह बिन मुबारक रज़ीअल्लाहो अन्हो ने एक दिन सहल बिन अली रज़ीअल्लाहो अन्हो को खामोश और मुतफक्किर देख कर पूछा : कहां तक पहुंचे हो ? वो बोले कि पुल सिरात के मुतअल्लिक गौरो फ़िक्र कर रहा हूं।

हज़रते बिश्र रहमतुल्लाह अलैह का क़ौल है कि अगर लोग अल्लाह तआला की अज़मत में गौरो फ़िक करें तो कभी भी अल्लाह तआला की ना फ़रमानी न करें।

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि ऐसी दो रक्अतें जो हुजूरे कल्ब और इन्तिहाई गौरो फ़िक्र से पढ़ी जाएं वो सारी रात की बे हुजूरे कल्ब इबादत से अफ़ज़ल हैं।।

हज़रते अबू शुरैह रहमतुल्लाह अलैह चले जा रहे थे कि अचानक चादर लपेट कर बैठ गए और रोना शुरू कर दिया, रोने का सबब दरयाफ़्त किया गया तो इन्हों ने कहा : मैं अपनी गुज़श्ता उम्र, कलील नेकियों और मौत के जल्द आने पर गौर कर के रो रहा हूं।

अबू सुलैमान रहमतुल्लाह अलैह का कौल है : आंखों को रोने का और दिलों को गौरो फ़िक्र करने का आदी बनाओ, मजीद फ़रमाया : दुनिया के बारे में गौरो फ़िक्र आखिरत के लिये एक पर्दा है और नेकों के लिये अज़ाब है लेकिन आख़िरत के मुतअल्लिक़ गौरो फ़िक्र इल्म का वारिस बनाता है और दिलों को ज़िन्दा करता है।

हज़रते हातिम रहमतुल्लाह अलैह का कौल है कि इब्रत हासिल करने से इल्म बढ़ता है, ज़िक्र से महब्बत बढ़ती है और गौरो फ़िक्र से खौफे खुदा बढ़ता है।

हज़रते इब्ने अब्बास रहमतुल्लाह अलैह का कौल है कि नेकियों में गौरो फ़िक्र नेकियों की तरगीब देता है और गुनाहों पर पशेमानी गुनाह छोड़ने पर आमादा करती है।

रिवायत है, अल्लाह तआला ने अपनी बा’ज़ किताबों में फ़रमाया है कि मैं हर आलिम व दानिशमन्द का, कलाम नहीं उस की निय्यत और महब्बत देखता हूं, अगर उस की निय्यत व महब्बत मेरे लिये होती है तो मैं उस की ख़ामोशी को गौरो फ़िक्र की खामोशी, उस की गुफ्तगू को हम्द करार देता हूं, अगर्चे वोह ख़ामोश बैठा हुवा हो।

हज़रते हसन रहमतुल्लाह अलैह का क़ौल है कि अक्लमन्द हमेशा ज़िक्र से फ़िक्र की जानिब और गौरो फ़िक्र से ज़िक्रे खुदा की जानिब रुजूअ होते हैं यहां तक कि उन के दिल बोलते हैं और इल्मो हिक्मत की बातें करते हैं।

इस्हाक बिन खलफ़ रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं कि हज़रते दावूद ताई  एक चांदनी रात में छत पर बैठे अल्लाह तआला के अजाइबाते अर्को समा में गौरो फ़िक्र कर रहे थे और वो आस्मान की तरफ़ देख कर रो रहे थे यहां तक कि बे खुदी की हालत में हमसाए के घर में गिर पड़े, मकान का मालिक अपने बिस्तर से बरह्ना तल्वार ले कर झपटा, वो समझा शायद कोई चोर आ गया है लेकिन जब उस ने आप को देखा तो तल्वार मियान  में कर के पूछा : आप को किसी ने छत से धक्का दिया है ? आप ने फ़रमाया : मुझे मालूम नहीं।

हज़रते जुनैद रहमतुल्लाह अलैह का कौल है कि बेहतरीन और उम्दा मजलिस, मजलिसे गौरो फ़िक्र है जो तौहीद के मैदान में अन्जाम दी जाए और महब्बत के समन्दर से महब्बत के जाम पीना बेहतरीन शराब और मा रिफ़त की मुअत्तर हवाओं से लुत्फ़ अन्दोज़ होना सब हवाओं से बेहतर है और अल्लाह तआला से अजरे हसन की उम्मीद रखना उम्दगी में बे मिसाल है। फिर फ़रमाया : वो दिल कैसा बेहतरीन है जो इन मजालिस का शनासा है और उसे खुश खबरी हो जो महब्बत के उन लज़ीज़ तरीन जामों से काम व दह्न की तवाज़ोअ करता है।

इमामे शाफ़ेई रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि गुफ्तगू पर खामोशी से और हुसूले इल्म के लिये गौरो फ़िकर करने से इमदाद तलब करो।

मजीद फ़रमाया : कामों के बारे में अच्छी तरह सोच समझ लेना धोके से बचाता है और उम्दा राए शर्मिन्दगी और हद से ज़ियादा बढ़ जाने से बचा लेती है, कामों में तफ़क्कुर और गौरो खौज़ होशयारी पैदा करता है, दानाओं के मश्वरे और ज़हानते नफ़्स की पाएदारी और बसीरत की कुव्वत हैं लिहाज़ा इरादा करने से पहले सोच, काम करने से पहले गौरो फ़िकर कर और क़ब्ल अज़ वक्त मश्वरा हासिल कर।

मजीद फ़रमाया कि फ़ज़ाइल चार हैं :

“हिक्मत”……………जिस का दारो मदार गौरो फ़िक्र पर हो,

“पाकबाज़ी”…………जिस का दारो मदार शहवत से इजतिनाब है,

“कुव्वत”…………..जिस का दारो मदार गुस्से पर है, “अद्ल”……………..जिस का दारो मदार कवाए नफ्सानी के ए’तिदाल पर है

 

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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 घमंड और तक़ब्बुर की मज़म्मत और बुराइयाँ

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 अल्लाह तआला ने कुरआने मजीद की बहुत सी आयात में तकब्बुर की मज़म्मत की है और हर खुद सर मुतकब्बिर को बुरा गरदाना है चुनान्चे, इरशादे इलाही है : अलबत्ता मैं उन लोगों को अपनी आयात से फेर दूंगा जो ज़मीन में नाहक तकब्बुर करते हैं। और फ़रमाया : इसी तरह अल्लाह हर सरकश मुतकब्बिर के – दिल पर मुहर लगा देता है।

मजीद फ़रमाया : “और उन्हों ने फ़त्ह मांगी और हर सरकश इनाद रखने वाला ना मुराद हुवा।”

एक और आयत में इरशाद फ़रमाया :

वह तकब्बुर करने वालों को महबूब नहीं रखता। मज़ीद फ़रमाया : “बेशक उन्हों ने अपनी जिन्दगियों में तकब्बुर किया और बहुत बड़ी सरकशी की।”

फ़रमाने इलाही है : जो लोग मेरी इबादत से तकब्बुर करते हैं बहुत जल्द जहन्नम में ज़लील हो कर दाखिल होंगे। और भी मुतअद्दिद मकामात पर अल्लाह तआला ने तकब्बुर की मज़म्मत फ़रमाई है।

और फ़रमाने नबवी है : “जिस शख्स के दिल में राई के दाने के बराबर तकब्बुर होगा वो जन्नत में दाखिल नहीं होगा और जिस शख्स के दिल में राई के दाने के बराबर ईमान होगा वो जहन्नम में नहीं जाएगा।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : अल्लाह फ़रमाता है कि अज़मत और किब्रियाई मेरी चादरें हैं जो इन में से किसी का दावा करेगा मैं उसे जहन्नम में डाल दूंगा, मुझे किसी की परवा नहीं है।

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हज़रते अबू सलमह बिन अब्दुर्रहमान रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो और हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ीअल्लाहो अन्हो की कोहे सफ़ा पर मुलाकात हुई, कुछ देर ठहरने के बाद अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ीअल्लाहो अन्हो चले गए और हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो रोने लगे, लोगों ने रोने का सबब पूछा तो आप ने फ़रमाया : हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ीअल्लाहो अन्हो का कहना है, उन्हों ने हज़रते रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को यह फ़रमाते सुना है : “जिस शख्स के दिल में राई के बराबर तकब्बुर होगा अल्लाह तआला उसे मुंह के बल जहन्नम में डालेगा।”

फ़रमाने नबवी है कि आदमी अपने नफ़्स की पैरवी में बराबर बढ़ता चला जाता है यहां तक कि उसे मुतकब्बिरीन में लिखा जाता है और उसे उन्हीं के अज़ाब में मुब्तला किया जाएगा।

हज़रते सुलैमान बिन दावूद अलैहहिस्सलाम  ने एक मरतबा परिन्दों, इन्सानों, जिन्नों और दरिन्दों से फ़रमाया कि मेरे साथ में चलो चुनान्चे, आप दो लाख इन्सानों और दो लाख जिन्नों के साथ तख्त पर जल्वा फ़रमा हुवे और इतनी बुलन्दी तक जा पहुंचे कि वहां से फ़िरिश्तों की तस्बीहात की आवाज़ ब आसानी सुनी जा रही थी, फिर वहां से नीचे उतरे यहां तक कि उन के क़दम समन्दर को छूने लगे तो आप ने आवाज़ सुनी, अगर तुम्हारे किसी साथी के दिल में ज़र्रा बराबर तकब्बुर होगा तो जितनी बुलन्दी तक मैं तुम को ले गया हूं उस से भी जियादा गहराई में उसे धंसा दूंगा।

तीन शख्सों पर जहन्नम का मखसूस अजाब

नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं कि जहन्नम से एक गर्दन निकलेगी जिस के दो कान, दो आंखें और कुव्वते गोयाई रखने वाली ज़बान होगी, वो कहेगी कि मुझे तीन शख्सों पर मुकर्रर किया गया है, हर सरकश मुतकब्बिर के लिये, अल्लाह के साथ शरीक ठहराने वाले के लिये और तसवीरें बनाने वाले के लिये । फ़रमाने नबवी है कि बख़ील, मुतकब्बिर और बद ख्रिसाल जन्नत में नहीं जाएगा।  फ़रमाने नबवी है कि जन्नत और जहन्नम ने बाहम गुफ्तगू की : जहन्नम बोला कि : “मैं ने सरकशों और मुतकब्बिरों को अपने लिये पसन्द किया है।” जन्नत ने कहा : “मेरे अन्दर कमज़ोर, जईफ़ और दरमांदा लोग आएंगे।”

अल्लाह तआला ने जन्नत से फ़रमाया : “तू मेरी रहमत है, मैं जिस बन्दे को चाहूंगा उसे तेरे सिपुर्द कर दूंगा, और जहन्नम से फ़रमाया : “तू मेरा अज़ाब है, मैं जिसे चाहूंगा तेरे अज़ाब में झोंक दूंगा और तुम दोनों को भर दूंगा।

तकब्बुर करने वाला बहुत ही बुरा बन्दा

नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं कि वो बन्दा बहुत बुरा है जिस ने तकब्बुर किया, सरकशी इख़्तियार की और कादिरे मुतलक खुदा को भूल गया, वो बन्दा बहुत बुरा है जिस ने तकब्बुर किया, अपने आप को बहुत बड़ा समझा और बहुत बड़े बुलन्द व बा इज्जत खुदा को भूल गया, वो बन्दा बहुत बुरा है जो मक्सूदे ज़िन्दगी से गाफ़िल हो गया, उसे भूल गया और कब्रों और मसाइब को भुला बैठा, वो बन्दा बहुत बुरा है जिस ने बगावत और सरकशी की और अपनी इब्तिदा और इन्तिहा को भूल गया।

हज़रते साबित रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हमें मालूम हुवा है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से कहा गया कि फुलां में कितना तकब्बुर है ! आप ने फ़रमाया : क्या उस के लिये मौत नहीं है ?(या’नी वोह मौत से नहीं डरता)

हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि हज़रते नूह अलैहहिस्सलाम  ने वफ़ात के वक़्त अपने बेटों को बुला कर फ़रमाया : मैं तुम्हें दो बातों के करने का हुक्म देता हूं और दो बातों से रोकता हूं, मैं तकब्बुर और शिर्क से मन्अ करता हूं

और “ला इलाहा इललललाहो व सुबहान अल्लाहो वबेहम्देही ” पर कारबन्द रहने का हुक्म देता हूं, क्यूंकि अगर एक पलड़े में आस्मानो ज़मीन अपनी तमाम अश्या समेत रख दिये जाएं और दूसरे पलड़े में ” ला इलाहा इललललाहो” रख दिया जाए तो यह पलड़ा भारी हो जाएगा। अगर आस्मानो ज़मीन अपनी तमाम तर अश्या समेत एक दाइरे की तरह हो जाएं और उन में ” ला इलाहा इललललाहो” रख दिया जाए तो वोह दाइरा टूट जाएगा और मैं तुम्हें, ” व सुबहान अल्लाहो वबेहम्देही” पढ़ने का हुक्म देता हूं क्यूंकि यह हर चीज़ की तस्बीह है और इसी के सबब हर चीज़ को रिज्क दिया जाता है।

हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम  ने फ़रमाया : उसे बशारत हो जिसे अल्लाह ने अपनी किताब का इल्म दिया और वह मुतकब्बिर नहीं मरा ।

फ़रमाने नबवी है कि हर संग दिल, इतरा कर चलने वाला मुतकब्बिर, माल जम्अ करने वाला और किसी को राहे खुदा से रोकने वाला जहन्नमी है और हर मुफ़्लिस ज़ईफ़ जन्नती है।

फ़रमाने नबवी है : हमें सब से ज़ियादा महबूब हमारा सब से ज़ियादा मुकर्रब कयामत में वह शख्स होगा जो तुम में से बेहतरीन अख़्लाक़ का मालिक है और क़यामत के दिन हमें सब से ज़ियादा ना पसन्द और हम से सब से ज़ियादा दूर, लोगों का मुज़हिका उड़ाने वाले, बेहूदा गो और मुंह भर भर कर बातें करने वाले होंगे, पूछा गया : हुजूर ! यह कौन होंगे ? आप ने फ़रमाया : मुतकब्बिर होंगे।

फ़रमाने नबवी है : क़ियामत के दिन मुतकब्बिर च्यूंटियों की तरह उठाए जाएंगे लोग उन्हें रौंदेंगे और रेज़ा रेज़ा कर देंगे और वो इन्तिहाई जिल्लत में होंगे फिर उन्हें जहन्नम के कैदखाने की तरफ ले जाया जाएगा जिस का नाम बूलस है, उन पर जहन्नम की आग भड़केगी, उन्हें दोज़खियों के जिस्मों से निकलने वाली पीप पिलाई जाएगी।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि सरकश और मुतकब्बिरों को कियामत के दिन च्यूंटियों जैसी जसामत में पैदा किया जाएगा, अल्लाह तआला के यहां उन की ना क़द्री की वह से लोग उन्हें रौंद रहे होंगे।

हज़रते मुहम्मद बिन वासे रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि मैं बिलाल बिन अबी बर्दा के यहां गया और उन से कहा कि तुम्हारे वालिद ने मुझे हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की यह हदीस सुनाई थी कि जहन्नम में एक वादी है जिस का नाम “हबहब” है, अल्लाह तआला उस वादी में हर मुतकब्बिर को दाखिल करेगा, ऐ बिलाल ! खयाल रखना कहीं इस वादी के रहने वालों में से न हो जाना ।

फ़रमाने नबवी है कि जहन्नम में एक महल है जिस में तमाम मुतकब्बिरों को जम्अ किया जाएगा और फिर वो महल उन पर गिरा दिया जाएगा।

फ़रमाने नबवी है : ऐ अल्लाह ! मैं तकब्बुर की बुराई से तेरी पनाह मांगता हूं।

और फ़रमाया कि जो शख्स  दुनिया से इस हाल में जाए कि वो तीन चीज़ों से बरी हो, वो जन्नत में जाएगा : तकब्बुर, कर्ज, खियानत ।

हज़रते अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो का इरशाद है कि तुम में से कोई भी किसी मुसलमान को हक़ीर न समझे क्यूंकि हक़ीर मुसलमान भी अल्लाह तआला के नज़दीक बहुत मुअज्जज़ होता है।

हज़रते वहब रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि अल्लाह तआला ने जन्नते अदन को पैदा फ़रमा कर कहा : तू हर मुतकब्बिर पर हराम है।

हज़रते अहनफ़ बिन कैस रज़ीअल्लाहो अन्हो हज़रते मुसअब बिन जुबैर – रज़ीअल्लाहो अन्हो के साथ चारपाई पर बैठा करते थे, एक दिन अहनफ़ तशरीफ़ लाए तो हज़रते मुसअब पैर लम्बे किये हुवे दराज़ थे, उन्हें देख कर इन्हों ने पैर नहीं समेटे, हज़रते अहनफ़ बैठ गए और उन्हें बहुत दुख हुवा, यहां तक कि उन के चेहरे पर नाराज़ी की अलामतें ज़ाहिर हो गईं, तब इन्हों ने कहा : तअज्जुब है कि इन्सान तकब्बुर करता है हालांकि वो दो पेशाब गाहों से निकला है।

हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं : तअज्जुब है कि इन्सान रोज़ाना एक या दो मरतबा पाखाना धोता है और फिर भी अल्लाह तआला से मुकाबला करता है।

आयए करीमा (व फी अन फोसिकुम अ फ ला तुब्सेरून) के मुतअल्लिक बा’ज़ उलमा ने कहा है कि इस से मुराद इन्सान की शर्मगाहें हैं।

हज़रते मोहम्मद बिन हुसैन बिन अली रज़ीअल्लाहो अन्हो का क़ौल है कि इन्सान के दिल में जितना तकब्बुर दाखिल होता है उतना ही उस की अक्ल कम होती है, तकब्बुर ज़ियादा हो तो अक्ल बहुत कम होती है और अगर तकब्बुर थोड़ा हो तो उसी के हिसाब से अक्ल कम हो जाती है।

हज़रते सुलैमान रहमतुल्लाह अलैह से उस गुनाह के मुतअल्लिक़ पूछा गया जिस की मौजूदगी में नेकी कोई फ़ाइदा नहीं देती तो उन्हों ने कहा : वह तकब्बुर है।

हज़रते नो’मान बिन बशीर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने मिम्बर पर खड़े हो कर फ़रमाया : शैतान के कुछ जाल हैं, उन जालों में से यह जाल भी हैं : अल्लाह की नेमतों पर इतराना, उस की अताओं पर फ़ख्न करना, बन्दगाने खुदा से तकब्बुर करना और अल्लाह तआला की ना पसन्दीदा ख्वाहिशात की इत्तिबाअ करना । ऐ अल्लाह ! अपनी मन्नत और एहसान के तुफैल दुन्या और आख़िरत में हमें अफ़्व और आफ़िय्यत अता फ़रमा ! आमीन ।

फ़रमाने नबवी है कि जो शख्स तकब्बुर की वज्ह से अपने तहबन्द को घसीटता है अल्लाह तआला उसे निगाहे रहमत से नहीं देखता है ।

 

मज़ीद फ़रमाया कि एक शख्स अपनी चादर पर फ़खर  कर रहा था, उस का नफ्स बहुत इतरा रहा था, अल्लाह तआला ने उसे जमीन में धंसा दिया और वह कयामत के दिन तक उसी तरह धंसता चला जाएगा ।

फ़रमाने नबवी है कि जो “तकब्बुर” से अपने कपड़े घसीट कर चलता है अल्लाह तआला कयामत के दिन उस पर निगाहे रहमत नहीं फ़रमाएगा।

हज़रते जैद बिन अस्लम से मरवी है कि मैं हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो की खिदमत में हाज़िर हुवा तो अब्दुल्लाह बिन वाक़िद का गुज़र हुवा जो नए कपड़े पहने हुवे था, मैं ने सुना हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो कह रहे थे ऐ बेटे ! तहबन्द को ऊंचा कर लो क्यूंकि मैं ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को यह फ़रमाते हुवे सुना है कि जो अपने तहबन्द को तकब्बुर से घसीट कर चलता है, अल्लाह तआला उस की तरफ़ निगाहे रहमत नहीं करता।

 

रिवायत है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने एक मरतबा अपनी हथेली पर लुआबे दहन लगा कर फ़रमाया : अल्लाह तआला फ़रमाता है : ऐ इन्सान ! तू उज्व व गुरूर कर रहा है हालांकि मैं ने तुझे इस जैसे पानी से पैदा किया है, यहां तक कि जब मैं ने तुझे मुकम्मल कर दिया तो तू रंग बिरंगे कपड़े पहन कर ज़मीन पर दन-दनाता फिर रहा है ? हालांकि तुझे इसी ज़मीन में जाना है। तू ने माल जम्अ कर के इसे रोक लिया मगर जब मौत तेरे सामने आ जाती है तो सदका करने की इजाज़त तलब करता है, अब सदका करने का वक्त कहां ?

फ़रमाने नबवी है कि जब मेरा उम्मती इतरा कर चलेगा और फ़ारसो रूम वाले उन के ख़िदमत गुज़ार होंगे तो अल्लाह तआला उन पर दूसरों को मुसल्लत कर देगा।

 

फ़रमाने नबवी है:

जो अपने आप को बड़ा समझता है और इतरा कर चलता है, वह अल्लाह तआला से इस हालत में मुलाकात करेगा कि अल्लाह तआला उस पर नाराज़ होगा।

हज़रते अबू बक्र अल हुज़ली रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है :

हम हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो के साथ बैठे हुवे थे कि “इब्नुल अहतम” का गुज़र हुवा जो अपने महल की तरफ जा रहा था। उस ने मुतअद्दिद रेशमी अबाएं एक दूसरे पर पहन रखी थीं और इन की वज्ह से उस की अचकन खुली हुई थी, वह निहायत मुतकब्बिराना अन्दाज़ में एक एक क़दम रखता हुवा जा रहा था । हज़रते हसन ने एक नज़र उसे देखा और फ़रमाया : अफ़सोस ! अफसोस ! नाक चढ़ाने वाला इतरा कर चलने वाला मुंह फुलाए हुवे अपने दोनों पहलू देखता हुवा जा रहा है, ऐ बे वुकूफ ! तू अपने पहलूओं में ऐसी नेमतों को देख रहा है जिन का शुक्र अदा नहीं किया गया जो अल्लाह तआला के हुक्म से बनाई गई और न ही तू ने अल्लाह तआला के हुकूक को अदा किया है, तेरे बदन के हर एक उज्व में अल्लाह की ने’मत है और शैतान हर उज्व पर कब्जे की फ़िक्र में है। ब खुदा ! अपनी फ़ितरत के मुताबिक़ चलना या दीवाने की तरह लड़ खड़ा कर चलना इस चलने से बेहतर है।

इब्नुल अहतम ने जब यह सुना तो आ कर मा’ज़िरत करने लगा। आप ने फ़रमाया : मुझ से मा’ज़िरत न चाहो, अल्लाह तआला से तौबा करो, क्या तू ने यह फ़रमाने इलाही नहीं सुना है :

“और जमीन पर इतरा कर न चल बेशक तू न तो जमीन को फाड़ेगा और न ही पहाड़ों जितना लम्बा हो जाएगा।”

जवानी पर फखर नहीं करना चाहिये।

हज़रते हसन रहमतुल्लाह अलैह के करीब से एक जवान का गुज़र हुवा जो खूब सूरत कपड़े पहने हुवे था आप ने उसे बुला कर फ़रमाया : ऐ इन्सान ! अपनी जवानी पर फ़खर करता है ! अपनी आदतों से महब्बत करता है ! गोया कि क़ब्र ने तेरे वुजूद को छुपा लिया है और तू ने अपने आ’माल देख लिये हैं ! तुझ पर हैफ़ सद हैफ़ ! जा और अपने दिल का इलाज कर क्यूंकि अल्लाह तआला को बन्दों के उम्दा दिलों की ज़रूरत है।

रिवायत है कि हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रज़ीअल्लाहो अन्हो ने ख़िलाफ़त संभालने से पहले हज किया, हज़रते ताऊस रज़ीअल्लाहो अन्हो ने उन्हें देखा कि वह इतरा इतरा कर चल रहे हैं। ताऊस रहमतुल्लाह अलैह ने उन के पहलू को उंगली से दबा कर कहा : यह उस की चाल नहीं है जिस के पेट में गन्दगी भरी हो । जनाबे उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रज़ीअल्लाहो अन्हो ने मा’ज़िरत ख्वाहाना लहजे में कहा : ऐ अम्मे मोहतरम ! मेरे जिस्म के हर उज्व ने मुझे इस चाल पर मजबूर किया और मैं यह चाल सीख गया।

हज़रते मोहम्मद बिन वासेअ रहमतुल्लाह अलैह ने अपने बेटे को नाज़ो नखरे से चलते हुवे देख कर बुलाया और कहा : जानते हो तुम कौन हो ? तुम्हारी मां को मैं ने सो दिरहम में खरीदा था और तुम्हारा बाप मख्लूके खुदा में बहुत से लोगों से कम मर्तबा है।

हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने एक आदमी को तहबन्द घसीट कर चलते हुवे देख कर फ़रमाया कि शैतान के भी भाई हैं ! आप ने दो या तीन मरतबा यह जुम्ला दोहराया।

रिवायत है कि मुतर्रिफ़ बिन अब्दुल्लाह बिन अश्शिख्खीर रहमतुल्लाह अलैह ने मुहल्लब को रेशमी जुब्बा पहने नाज़ से चलते देख कर कहा कि ऐ बन्दए खुदा ! यह चाल उन लोगों की है जिन्हें अल्लाह तआला ना पसन्द करता है और जो रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के दुश्मन हैं, मुहल्लब ने कहा : मुझे पहचानते हो मैं कौन हूं ? हज़रते मुतर्रिफ़ रहमतुल्लाह अलैह बोले कि अच्छी तरह पहचानता हूं, तेरी इब्तिदा नापाक नुत्फ़े से, तेरी इन्तिहा गन्दे मुर्दार के तौर पर है और दरमियानी मुद्दत में तू गन्दगी उठाए फिरता है। मुहल्लब ने येह सुन कर मुतकब्बिराना चाल तर्क कर दी और आगे रवाना हो गया।

इसी मौजूअ पर अक्सर शो’रा ने बहुत से अश्आर कहे हैं, उन में से चन्द यह हैं :

उस की बारगाह में उम्दा और पाकीज़ा दिल मक्बूल हैं ।

मैं अपनी सूरत पर फ़खर करने वाले पर हैरान हूं क्यूंकि वह कल तक एक नापाक नुत्फ़ा था। और अपनी खूब सूरती के बा वुजूद कल क़ब्र में एक बदबू दार मुर्दार हो जाएगा।

खलफे अहमर कहता है :

मेरा एक इख़्तिलाफ़ पसन्द दोस्त है जिस की गलतियां ज़ियादा और अच्छाइयां कम हैं। वो गुबरीले से भी ज़ियादा ज़िद्दी है और कव्वे से भी ज़ियादा अकड़ कर चलता है।

एक और शाइर कहता है : .मैं ने मुतकब्बिर से कहा : जब कि उस ने कहा : मुझ जैसे रुजूअ नहीं किया करते । .ऐ बहुत जल्द दुन्या से कूच करने वाले ! तू तवाज़ोअ क्यूं नहीं करता !

हज़रते जुन्नून मिसरी रहमतुल्लाह अलैह इसी मौजूअ पर फ़रमाते हैं : ऐ मौत को न चाहने वाले मुतकब्बिर तुझ पर सलामती हो 1) हम मिट्टी से हैं। (2.)..यह दुन्या की ज़िन्दगी चन्द रोज़ा है, मौत के साथ ही पैर बराबर हो जाएंगे।

मुजाहिद ने फ़रमाने इलाही : के मा’ना यह बयान किये हैं कि वो अपने घर वालों की तरफ़ इतराता हुवा गया।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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अल्लाह का शुक्र अदा करने की फज़िलतें

रब्बे जुल जलाल ने कुरआने मजीद में ज़िक्र के साथ शुक्र को भी शामिल फ़रमाया है, इरशादे बारी तआला है :

“और बेशक अल्लाह का ज़िक्र बहुत बड़ा है”।

इरशादे इलाही है :

पस तुम मेरा ज़िक्र करो मैं तुम्हारा ज़िक्र करूंगा और मेरा शुक्र करो और कुफ्र न करो।

मज़ीद फ़रमाया :

अगर तुम ईमान लाए और शुक्र गुज़ार बन गए तो अल्लाह तआला तुम्हें अज़ाब नहीं देगा।

और फ़रमाया :

हम अन करीब शुक्र करने वालों को अज्र देंगे। और अल्लाह तआला ने शैतान मर्दूद का किस्सा बयान करते हुवे इरशाद फ़रमाया कि शैतान ने बारगाहे रब्बी में कहा : मैं उन्हें बहकाने के लिये तेरे सीधे रास्ते पर बैठ जाऊंगा। बा’ज़ उलमा का ख़याल है कि यहां सिराते मुस्तकीम से मुराद शुक्र का रास्ता है, शैतान ने अल्लाह तआला की मख्लूक पर ता’न करते हुवे कहा था :

तू उन में से अक्सर को शुक्र गुज़ार नहीं पाएगा। और फ़रमाने इलाही है:

मेरे बन्दों में थोड़े हैं जो शुक्र अदा करते हैं। और अल्लाह तआला ने शुक्र करने पर ने’मतों में ज़ियादती का तजकिरा फ़रमाया है चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है : अगर तुम ने शुक्र किया तो मैं नेमतों को जियादा करूंगा। और इस फ़रमान में किसी को मुस्तसना नहीं फ़रमाया और पांच चीजें ऐसी हैं जिन में अल्लाह तआला ने इस्तिसना किया है :

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तवंगरी …..कबूलिय्यत …..रिज्क …..बख्शिश और …..तौबा चुनान्चे फ़रमाने इलाही है:

अगर अल्लाह ने चाहा तो अन करीब तुम्हें मालदार कर देगा।

और इरशाद फ़रमाया है: वह जिसे चाहता है बे हिसाब रिज्क देता है।

और फ़रमाया : “और अल्लाह तआला शिर्क के सिवा जो गुनाह चाहे बख्श देगा”

मजीद फ़रमाया : “अल्लाह तआला जिस की तौबा चाहता है कबूल कर लेता है।”

शुक्र अल्लाह तआला की सिफ़ात में से एक सिफ़त है चुनान्चे इरशादे इलाही है :

और अल्लाह तआला शकूर व हलीम है।

अल्लाह तआला ने शुक्र को जन्नतियों का मुब्तदाए कलाम करार दिया है और फ़रमाया :

(जन्नती जन्नत में दाखिल होते ही कहेंगे) “हम्द और शुक्र है अल्लाह के लिये जिस ने अपना वा’दा सच्चा फ़रमाया ।” और फ़रमाया :

उन की आखिरी पुकार यह होगी हम्द है अल्लाह रब्बुल आलमीन के लिये। शुक्र की फ़ज़ीलत में बहुत सी अहादीस भी वारिद हुई हैं चुनान्चे, फ़रमाने नबवी है : “खा कर शुक्र अदा करने वाले साबिर रोज़ादार की तरह हैं।”

हुजूर मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की शुक्रगुजारी

हज़रते अता रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हम ने हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा की ख़िदमत में हाज़िर हो कर अर्ज की, कि आप हमें हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की कोई मुन्फरिद बात सुनाएं, हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा अश्कबार हो गई और फ़रमाया : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की कौन सी बात अजीब नहीं थी, सुनो ! हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम एक रात तशरीफ़ लाए और मेरे बिस्तर या मेरे लिहाफ़ में मेरे साथ लैट गए, यहां तक कि आप का जिस्मे अतहर मेरे जिस्म से मस होने लगा। तब आप ने फरमाया : ऐ अबू बक्र की बेटी ! मुझे इजाजत दो ताकि मैं रब की इबादत करूं, मैं ने अर्ज किया : अगर्चे मैं आप के कुर्ब को बे इन्तिहा पसन्द करती हूं मगर आप की ख्वाहिश को तरजीह देती हूं लिहाज़ा मैं आप को इजाज़त देती हूं, आप ज़रूर इबादत फ़रमाएं । आप उठ कर पानी के मश्कीजे की तरफ़ गए और थोड़े से पानी से वुजू फ़रमा कर आप ने नमाज़ शुरू कर दी और आप रोने लगे यहां तक कि आप के आंसू सीने पर बहने लगे, फिर आप रुकूअ में, सजदे से सर उठा कर भी रोते रहे यहां तक कि हज़रते बिलाल रज़ीअल्लाहो अन्हो ने हाज़िर हो कर नमाजे फ़ज़र  के मुतअल्लिक अर्ज़ किया, मैं ने पूछा : आप तो बख़्शे हुवे हैं, आप किस लिये रोते हैं ? आप ने फ़रमाया : क्या मैं अल्लाह का शुक्र गुज़ार बन्दा न बनूं ? और मैं क्यूं न रोऊं हालांकि अल्लाह ने यह आयत नाज़िल फरमाई है: बेशक आस्मानों और जमीन की पैदाइश और रात और दिन की बाहम बदलियों में निशानियां हैं अक्लमन्दों के लिये

एक पथ्थर की गिर्या व जारी

यह हदीस इस बात पर दलालत करती है कि इन्सान कभी भी बारगाहे रब्बुल इज्जत में रोना बन्द न करे और इस राज़ की तरफ़ यह रिवायत भी इशारा करती है कि अल्लाह तआला के एक नबी का ऐसे पथ्थर से गुज़र हुवा जो खुद तो छोटा था मगर उस से पानी बहुत निकल रहा था, अल्लाह तआला के नबी को बहुत तअज्जुब हुवा, अल्लाह तआला ने पथ्थर को कुव्वते गोयाई अता कर दी और उस ने कहा : जब से मैं ने अल्लाह तआला का यह फ़रमान सुना है कि

इन्सान और पथ्थर जहन्नम का ईंधन होंगे। मैं बराबर अल्लाह के ख़ौफ़ से रो रहा हूं।

अल्लाह के नबी ने अल्लाह से दुआ मांगी कि इस पथ्थर को जहन्नम की आग से बचा ले अल्लाह ने दुआ कबूल फ़रमा ली कुछ मुद्दत गुज़रने के बाद उन का फिर उसी तरफ़ जाना हुवा, देखा तो पथ्थर बराबर रोए जा रहा है उन्हों ने पूछा : अब क्यूं रोए जा रहा है ? पथ्थर ने जवाब दिया : उस वक़्त ख़ौफ़ की वज्ह से रो रहा था अब खुशी और मसर्रत में रो रहा हूं।

इन्सान का दिल भी पथ्थर की तरह या इस से भी ज़ियादा सख्त है, इस की सख्ती खौफ़ और शुक्र दोनों हालतों में गिर्या व जारी करने से ख़त्म होती है।

नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं : क़ियामत के दिन कहा जाएगा कि हम्द करने वाले खड़े हो जाएं, लोगों का एक गिरोह खड़ा हो जाएगा, उन के लिये झन्डा लगाया जाएगा और वो तमाम जन्नत में जाएंगे पूछा गया : या रसूलल्लाह ! हम्द करने वाले कौन हैं ? आप ने फ़रमाया : जो लोग हर हाल में अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं।

दूसरी रिवायत के अल्फ़ाज़ येह हैं “जो हर दुख-सुख में अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं।”

 फ़रमाने नबवी हैं कि शुक्र रब्बे रहमान की चादर है।

अल्लाह तआला ने हज़रते अय्यूब अलैहहिस्सलाम  की तरफ़ वहयी  फ़रमाई कि मैं तवील बातों के बदले अपने दोस्तों से शुक्र करने पर राजी हो गया हूं और साबिरीन की तारीफ़ में फ़रमाया कि उन का घर जन्नत में है, जब वो जन्नत में जाएंगे तो मैं उन्हें शुक्र करना सिखलाऊंगा क्यूंकि शुक्र बेहतरीन बात है और इस से मैं ने’मतें ज़ियादा करूंगा और उन की मुद्दते दीदार तवील करता जाऊंगा।

जब जम्ए अम्वाल के सिलसिले में वहयी ए रब्बानी का नुजूल हुवा तो हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से पूछा कि हम कौन सा माल इकठ्ठा करें ? आप ने फ़रमाया : जिक्र करने वाली ज़बान और शुक्र करने वाला दिल । इस हदीस से मालूम हुवा कि हमें माल के बदले शुक्र गुज़ार दिल को पसन्द करना चाहिये । हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि शुक्र निस्फ़ ईमान है।

अल्लाह का शुक्र अदा करने के तरीके

शुक्र, ज़बान, दिल और बदन से होता है। दिल का शुक्र नेकियों का इरादा करना और मख्लूक से इसे पोशीदा रखना । ज़बान का शुक्र यह है कि उन कलिमात को अदा करे जो इज़हारे शुक्र के लिये मख्सूस हैं। आ’जाए बदन का शुक्र यह है कि इन्हें इबादते इलाही में मसरूफ़ रखे और बुरे कामों में इस्ति’माल न करे, आंखों का शुक्र यह है कि वो जिस मुसलमान का ऐब देखें तो उसे ढांप लें । कानों का शुक्र येह है कि वो किसी मुसलमान की बुराई सुनें तो उसे छुपाएं, ये ही उन का शुक्र है। ज़बान का शुक्र येह है कि वो तक़दीरे इलाही पर अपनी रज़ा का इज़हार करे और इसे ये ही हुक्म दिया गया है, चुनान्चे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने एक शख्स से पूछा : कैसे हो ? उस ने कहा : अच्छा हूं। आप ने फिर पूछा ताकि तीसरी मरतबा पूछने पर उस शख्स ने कहा : अच्छा हूं अल्लाह की हम्द और शुक्र करता हूं तब हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि मैं ये ही कुछ तुम से सुनना चाहता था।

बुजर्गाने सलफ़का तरीकए शुक्रगुजारी

बुजुर्गाने सलफ़ का यह तरीका था कि वो दूसरों से पूछा करते थे कि कैसे हो ? उन की निय्यत यह होती थी कि लोग जवाब में अल्लाह का शुक्र करें और जवाब देने वाले और पूछने वाले दोनों का शुमार शुक्र गुज़ारों में हो जाए, उन की इस बात में रिया का क़तई दख्ल नहीं होता था। जिस शख्स से भी उस की हालत पूछी जाए वोह तीन बातों में से एक बात करेगा, शुक्र अदा करेगा, शिकायत करेगा या फिर खामोश रहेगा, अल्लाह का शुक्र अदा करना इबादत है, शिकायत करना गुनाह है जो दीनदारों के नज़दीक सख़्त ना पसन्दीदा फेल है, अल्लाह तआला के यहां उस की बुराई का कहना ही क्या जो बादशाहों का बादशाह है जिस के दस्ते कुदरत में बन्दए नाचीज़ की तमाम चीजें हैं लिहाज़ा इन्सान के लिये ज़रूरी है अगर वो मसाइब पर सबर नहीं कर सकता, कज़ाए इलाही पर राजी नहीं रह सकता और ला मुहाला अपनी तही दामनी का शिक्वा करना चाहता है तो वो लोगों के आगे शिकायतें करने के बजाए अल्लाह रब्बुल इज्जत के हुजूर अपनी गुज़ारिशात पेश करे वो ही मसाइब में मुब्तला करने वाला और वो ही इन से नजात देने वाला है और यह हक़ीक़त है कि बन्दए नाचीज़ का अल्लाह की बारगाह में अपनी ज़िल्लत का इज़हार करना हक़ीकी इज्जत है मगर अपने जैसे बन्दों के आगे शिक्वे करना और ज़िल्लत उठाना इन्तिहाई रुस्वा कुन चीज़ है।

फ़रमाने इलाही है : “तहक़ीक़ तुम अल्लाह के सिवा जिन को (मा’बूद समझ कर) पुकारते हो वो तुम्हारे जैसे अल्लाह के बन्दे हैं।”

नीज़ फ़रमाया : “तहक़ीक़ तुम अल्लाह के सिवा जिन की इबादत करते हो वोह तुम्हारे रिज्क के मालिक नहीं हैं अल्लाह के यहां रिज्क तलाश करो और उस की इबादत करो और उस का शुक्र अदा करो।”

शुक्र की अक्साम में से ज़बान से शुक्र अदा करना भी है चुनान्चे, मरवी है कि हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रज़ीअल्लाहो अन्हो की खिदमत में एक वफ़्द आया तो उन में से एक जवान खड़ा हो कर आप से गुफ्तगू करने की तय्यारी करने लगा। आप ने फ़रमाया : बड़ों की इज्जत करो या’नी बड़ों को मुझ से गुफ़्त्गू करने दो। इस पर वो जवान बोला : ऐ अमीरुल मोमिनीन ! अगर कियादत का मे’यार उम्र होता तो मुसलमानों में ऐसे बूढों की कसीर ता’दाद मौजूद है जो आप से उम्र में बड़े हैं। आप ने यह सुन कर फ़रमाया : चलो बात करो ! उस ने कहा : हम कुछ लेने नहीं आए क्यूंकि आप की मेहरबानियों से हमें बहुत कुछ मिल चुका है, किसी से खौफ़ज़दा हो कर नहीं आए क्यूंकि आप के अद्लो इन्साफ़ ने हमारे तमाम खौफ़ दूर कर के अम्न की ज़िन्दगी बख़्शी है, हम सिर्फ इस लिये आए हैं कि अपनी ज़बानों से आप का शुक्रिया अदा करें और वापस चले जाएं।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

 

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