नमाज़ ना पढने पर (तर्केसलात) पर वईदें
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
दोज़खियों के मुतअल्लिक़ खबर देते हुवे रब्बे जलील ने फ़रमाया कि उन से जहन्नम में यह पूछा जाएगा कि “तुम को जहन्नम में क्या चीज़ ले गई वो कहेंगे कि हम नमाज़ पढ़ने वालों में से न थे और न मिस्कीनों को खाना खिलाने वालों में से थे बल्कि बहस करने वालों के साथ बहस किया करते थे।”
हजरते अहमद रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि आदमी और कुफ्र के दरमियान फ़र्क, नमाज़ का छोड़ देना है।
सभी इस्लामी विषयों टॉपिक्स की लिस्ट इस पेज पर देखें – इस्लामी जानकारी-कुरआन, हदीस, किस्से हिंदी में
नमाज़ छोड़ देने के बारे में सिहाहे सित्ता की चन्द हदीसें
मुस्लिम की रिवायत है कि आदमी और शिर्क या कुफ्र के दरमियान फ़र्क नमाज़ का छोड़ देना है।
अबू दावूद और निसाई की रिवायत है कि बन्दे और कुफ्र के दरमियान नमाज़ छोड़ देने के सिवा और कोई फर्क नहीं।
तिर्मिज़ी की रिवायत है कि कुफ्र और ईमान के दरमियान फ़र्क तर्के नमाज़ है।
इब्ने माजा की रिवायत है कि बन्दे और कुफ्र के दरमियान फ़र्क नमाज़ का छोड़ देना है।
तिर्मिज़ी वगैरा की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि हमारे और इन के दरमियान फ़र्क नमाज़ का है, जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस ने काफ़िरों जैसा काम किया।
तबरानी की रिवायत है कि जिस ने जान बूझ कर अमदन नमाज़ छोड़ दी उस ने खुल्लम खुल्ला काफ़िरों जैसा काम किया है।
एक रिवायत में है कि बन्दे और शिर्क या कुफ़्र के दरमियान फ़र्क तर्के नमाज़ है, जब उस ने नमाज़ छोड़ दी तो काफिरों जैसा काम किया।
दूसरी रिवायत में है कि बन्दे और शिर्क या कुफ्र के दरमियान नमाज़ छोड़ने के सिवा और कोई फर्क नहीं है, जिस ने “नमाज़” छोड़ दी उस ने मुशरिकों जैसा काम किया।
एक और रिवायत में है कि उस ने इस्लाम को बरह्ना कर दिया और इस्लाम की तीन बुन्यादें हैं जिन पर इस्लाम की इमारत काइम है, जिस ने इन में से एक को तर्क कर दिया, वो काफ़िर है और उस का कत्ल कर देना हलाल है, कलिमए शहादत पढ़ना या’नी अल्लाह तआला की वहदानिय्यत की गवाही देना, फ़र्ज़ नमाज़ अदा करना और रमजान के रोजे रखना।
दूसरी रिवायत जिस को अस्नादे हसन के साथ नक्ल किया गया है, यह है कि जिस ने इन में से किसी एक को छोड़ दिया वो अल्लाह तआला का मुन्किर है, उस से कोई हीला और बदला कबूल नहीं किया जाएगा और उस का खून और माल लोगों के लिये हलाल है।
तबरानी वगैरा में वो ब तरीके हसन मरवी है : हज़रते उबादा बिन सामित रज़ीअल्लाहो अन्हो ने कहा है कि मुझे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने सात बातों की वसिय्यत फ़रमाई : किसी को अल्लाह तआला के साथ शरीक न ठहराओ चाहे तुम्हें टुकड़े टुकड़े कर दिया जाए या जला दिया जाए या फांसी पर लटका दिया जाए, जान बूझ कर नमाज़ न छोड़ो क्यूंकि जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी वो दीन से निकल गया, गुनाह और नाफरमानी न करो यह अल्लाह तआला के कहर के अस्बाब हैं और शराब न पियो क्यूंकि यह गुनाहों का मम्बअ है।।) (अल हदीस)
तिर्मिज़ी की रिवायत है कि हज़रते मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के सहाबए किराम तर्के नमाज़ के इलावा किसी और अमल के छोड़ने को कुफ्र नहीं समझते थे।
सहीह हदीस में है कि बन्दे और कुफ्र व ईमान के दरमियान फ़र्क नमाज़ है, जब उस ने नमाज़ छोड़ दी तो गोया उस ने शिर्क किया।
बज्जाज़ की रिवायत है कि जो नमाज़ अदा नहीं करता उस का इस्लाम में कोई हिस्सा नहीं है और जिस का वुजू सहीह नहीं है उस की नमाज़ नहीं ।
तबरानी की रिवायत है कि जिस शख्स में अमानत नहीं उस का ईमान नहीं जिस का वुजू सहीह नहीं, उस की नमाज़ नहीं और जिस ने नमाज़ नहीं पढ़ी उस का दीन नहीं रहा, जैसे वुजूद में सर का मक़ाम है इसी तरह दीन में नमाज़ का मक़ाम है।
इब्ने माजा और बैहक़ी में हज़रते अबुद्दरदा से मरवी है कि मुझे मेरे हबीब सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने वसिय्यत फ़रमाई : अल्लाह तआला के साथ शिर्क न कर अगर तुझे काट दिया जाए और जला दिया जाए, फ़र्ज़ नमाज़ अमदन न छोड़ क्यूंकि जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी वो हमारे जिम्मे से निकल गया और शराब न पी क्यूंकि यह हर बुराई की कुन्जी है।
मुस्नदे बज्जाज़ में हज़रते इब्ने अब्बास से मरवी है : आप ने फ़रमाया : जब मेरी पुतलियों की सिहहत के बा वुजूद मेरी बीनाई जाएअ हो गई तो मुझ से कहा गया कि आप कुछ नमाज़ छोड़ दें, हम आप का इलाज करते हैं, मैं ने कहा : ऐसा नहीं होगा क्यूंकि मैं ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से सुना है, आप ने फ़रमाया : जिस ने नमाज छोड़ दी वो अल्लाह तआला से इस हाल में मुलाकात करेगा कि अल्लाह तआला उस पर नाराज़ होगा।
तबरानी की एक रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की ख़िदमत में एक शख्स ने हाज़िर हो कर अर्ज की, कि मुझे ऐसा अमल बताइये जिसे कर के मैं जन्नत में जाऊं। आप ने फ़रमाया : अल्लाह तआला के साथ शिर्क न कर अगर्चे तुझे अज़ाब दिया जाए और जिन्दा जला दिया जाए, वालिदैन का फ़रमां बरदार बन, अगर्चे वो तुझे तेरे तमाम मालो अस्बाब से बे दखल कर दें.
और जान बूझ कर नमाज़ न छोड़ क्यूंकि जिस ने दीदा दानिस्ता नमाज़ छोड़ दी वोह अल्लाह तआला के जिम्मे से निकल गया।
एक और रिवायत में है : अल्लाह तआला के साथ शिर्क न कर अगचे तुझे कत्ल कर दिया जाए और जला दिया जाए, वालिदैन की नाफरमानी न कर अगर्चे वो तुझे तेरे अहलो इयाल और माल से निकाल दें, फ़र्ज़ नमाज़ को अमदन न छोड़ क्यूंकि जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी वो अल्लाह तआला के जिम्मे से निकल गया, शराब कभी न पी क्यूंकि इस का पीना हर बुराई की जड़ है, खुद को “ना फ़रमानियों” से बचा क्यूंकि इन से अल्लाह तआला नाराज़ हो जाता है, अपने आप को जंग के दिन भगोड़ा बनने से बचा अगर्चे लोग हलाक हो जाएं और लोग मर जाएं मगर तू साबित कदम रह, अपनी ताकत के मुताबिक़ अपने अहलो इयाल पर खर्च कर, इन की तादीब से कभी गाफ़िल न हो और इन्हें ख़ौफ़ ख़ुदा दिलाता रह।
सहीह इब्ने हब्बान में रिवायत है कि बादल वाले दिन नमाज़ जल्दी पढ़ा लिया करो क्यूंकि जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस ने कुफ्र किया।
“तबरानी” में हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की कनीज़ हज़रते उमैमा राज़ी अल्लाहो अन्हा से मरवी है कि मैं एक मरतबा हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के सर पर पानी डाल रही थी कि एक शख्स ने आ कर कहा : मुझे वसिय्यत फ़रमाई जाए, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : अल्लाह तआला के साथ किसी को शरीक न बना अगर्चे तुझे काट दिया जाए और जला दिया जाए, वालिदैन की “ना फ़रमानी” न कर अगरचे वो तुझे तेरे घर और मालो दौलत के छोड़ने का कहें तो सब कुछ छोड़ दे, शराब कभी न पी क्यूंकि यह हर बुराई की कुन्जी है और फ़र्ज़ नमाज़ कभी भी जान बूझ कर न छोड़ क्यूंकि जिस ने ऐसा किया वो अल्लाह और उस के रसूल के ज़िम्मे से निकल गया।
अबू नुऐम की रिवायत है कि जिस शख्स ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी, अल्लाह तआला उस का नाम “जहन्नम” के उस दरवाजे पर लिख देता है जिस में से उसे दाखिल होना होता है ।
तबरानी और बैहक़ी की रिवायत है कि जिस ने नमाज़ छोड़ दी गोया उस का माल और अहलो इयाल (सब कुछ) ख़त्म हो गया।
हाकिम ने हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : ऐ गिरोह ए कुरैश ! तुम नमाज़ ज़रूर अदा करो और ज़कात अदा करो, नहीं तो अल्लाह तुम्हारी तरफ़ ऐसे शख्स को भेजेगा जो दीन के लिये तुम्हारी गर्दनें उड़ा देगा।
बज्जाज़ की रिवायत है कि जो शख्स नमाज़ अदा नहीं करता उस का दीन में कोई हिस्सा नहीं, और जिस का वुजू सहीह नहीं उस की नमाज़ सहीह नहीं।
मुसनद ए अहमद की एक मुरसल रिवायत है कि अल्लाह तआला ने इस्लाम में चार चीजें फ़र्ज़ की हैं, जो शख्स इन में से तीन को पूरा करता है मगर एक को छोड़ देता है उसे अज़ाब से कोई चीज़ नहीं बचाएगी यहाँ तक की चारों पर अमल करे, नमाज़, जकात, रोज़ा और हज । अस्बहानी की रिवायत है कि जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी, अल्लाह तआला उस के आ’माल को बरबाद कर देता है और उसे अपने जिम्मे से निकाल देता है यहां तक कि वो अल्लाह की बारगाह में तौबा करे ।
तबरानी की रिवायत है कि जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस ने खुल्लम खुल्ला कुफ्र किया।
मुसनद ए अहमद में रिवायत है कि अमदन नमाज को न छोड़ो क्यूंकि जिस ने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दी उस से अल्लाह और रसूल का जिम्मा खत्म हो गया ।(3) ।
इब्ने अबी शैबा और तारीखे बुख़ारी में हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो पर मौकूफ़ रिवायत है : जिस ने नमाज़ न पढ़ी वो काफ़िर है।
मुहम्मद बिन नसर और इब्ने अब्दुल बर्र अपनी मसानीद में हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मौकूफ़ रिवायत करते हैं कि जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस ने कुफ्र किया।
इब्ने नस्र रहमतुल्लाह अलैह ने इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो से मौकूफ़ रिवायत की है कि जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस का दीन नहीं है।
इब्ने अब्दुल बर्र ने हज़रते जाबिर रज़ीअल्लाहो अन्हो तक मौकूफ़ रिवायत की है कि जिस ने नमाज़ नहीं पढ़ी वो काफ़िर है।
एक और रिवायत में है जो अबुदरदा रज़ीअल्लाहो अन्हो पर मौकूफ़ है कि जो नमाज़ अदा नहीं करता उस का ईमान नहीं है और जिस का वुजू नहीं उस की नमाज़ नहीं ।
इब्ने अबी शैबा की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जिस ने नमाज़ छोड़ दी उस ने कुफ्र किया।मुहम्मद बिन नस्र रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि मैं ने इस्हाक से सुना, वो कहते थे : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से यह हदीसे सहीह साबित है कि आप ने फ़रमाया : तारिके नमाज़ काफ़िर है। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के जमानए मुक़द्दसा से ले कर आज तक तमाम उलमा की राए है कि तारिके नमाज़ जो बिगैर किसी उज्र के नमाज़ नहीं पढ़ता हत्ता कि नमाज़ का वक़्त निकल जाता है तो वो काफ़िर है।
हज़रते अय्यूब रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं कि तर्के नमाज़ “कुफ्र” है जिस में किसी को इख़्तिलाफ़ नहीं है। फ़रमाने इलाही है
“पर उन के बाद बुरे लोग जा नशीन हुवे जिन्हों ने
नमाज़ों को जाएअ किया और ख्वाहिशाते नफ्सानी की पैरवी की पस अन करीब वो गय्य में जाएंगे
मगर जिस ने तौबा की (वो महफूज़ रहेगा)। हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं कि जाएअ करने का यह मा’ना नहीं है कि बिल्कुल नमाज़ पढ़ते ही नहीं बल्कि यह कि इसे मुअख्खर कर के पढ़ते हैं। ।
जाया ए सलात का क्या माना है?
इमामुत्ताबिईन हज़रते सईद बिन मुसय्यब रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं कि इस आयत में ज़ियाअ से यह मुराद है कि जोहर की अस्र के वक्त और अस की मगरिब के वक्त और मगरिब की इशा के वक्त और इशा की फ़ज्र के वक्त और फ़ज्र की सूरज के तुलूअ होने के वक्त के करीब पढ़ी जाए, जो शख्स इस तरीके से नमानें पढ़ता हुवा मर जाए और उस ने तौबा न की तो अल्लाह तआला ने उस के लिये “गय्य” का वादा फ़रमाया है जो जहन्नम की एक गहरी और अज़ाब से भरपूर वादी है।
फ़रमाने इलाही है : “ऐ ईमान वालो तुम्हें तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद अल्लाह के ज़िक्र से ग़ाफ़िल न करे, और जिस ने ऐसा किया पस वो लोग खसारा पाने वाले हैं”। मुफस्सिरीन की एक जमाअत का कौल है : यहां ज़िक्र से मुराद नमाजें हैं लिहाज़ा जो शख्स नमाज़ के वक्त अपने माल की वज्ह से जैसे इस की ख़रीदो फरोख्त वगैरा में मश्गूल हो कर नमाज़ से गाफ़िल हो गया या अपनी औलाद में मश्गूल हो कर नमाज़ भूल गया वो नुक्सान पाने वालों में से है। इसी लिये हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फ़रमान है कि क़यामत के दिन इन्सान के सब आ’माल से पहले नमाज़ का मुहासबा होगा, अगर उस की नमाजें मुकम्मल हुई तो वो फलाह व कामरानी पा गया और अगर उस की नमाजें कम हो गई तो वो खाइबो खासिर है।
और फ़रमाने इलाही है : । “पस वैल है उन नमाजियों के लिये जो अपनी नमाज़ों से बे ख़बर हैं। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : यह वो लोग हैं जो नमाजों को उन के अवकात से मुअख्ख़र कर के पढ़ते हैं। मुस्नदे अहमद की ब सनदे सहीह, तबरानी और सहीह इब्ने हब्बान की रिवायत है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने एक दिन नमाज़ का तजकिरा फ़रमाया और फ़रमाया : जिस ने इन नमाज़ों को पाबन्दी से अदा किया, वो नमाज़ उस शख्स के लिये कयामत के दिन नूर, हुज्जत और नजात होगी और जिस शख्स ने नमाज़ों को अदा न किया कियामत के दिन उस के लिये नमाज़, नूर, हुज्जत और नजात न होगी और वो कियामत के दिन कारून, फ़िरऔन, हामान और उबय्य बिन खलफ़ के साथ होगा।
बा’ज़ उलमा का कहना है : इन लोगों के साथ तारिके नमाज़ इस लिये उठाया जाएगा कि अगर उस ने अपने मालो अस्बाब में मश्गूलिय्यत की वज्ह से नमाज़ नहीं पढ़ी तो वो कारून की तरह हो गया और उसी के साथ उठाया जाएगा, अगर मुल्क की मश्गूलिय्यत में नमाज़ नहीं पढ़ी तो फ़िरऔन की तरह है और उसी के साथ उठाया जाएगा, अगर वज़ारत की मश्गूलिय्यत नमाज़ से मानेअ हुई तो वो हामान की तरह है और उसी के साथ उठेगा, अगर तिजारत की वज्ह से नमाज़ नहीं पढ़ी तो वो उबय्य बिन खलफ़ ताजिरे मक्का की तरह है और उसी के साथ उठाया जाएगा।
बज्जाज़ ने हज़रते सा’द बिन अबी वक्कास रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि मैं ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से इस आयत के मा’ना पूछे “जो लोग अपनी नमाज़ों से बे ख़बर हैं” तो आप ने फ़रमाया कि ये वो लोग हैं जो नमाज़ों को उन के अवकात से मुअख्खर कर देते हैं।
अबू या’ला ने सनदे हसन के साथ मुसअब बिन सा’द रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल अपनी मुस्नद में नक्ल किया है । मुसअब रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं : मैं ने अपने वालिद से अर्ज की अब्बाजान ! आप ने अल्लाह तआला के इस फ़रमान पर गौर किया है : “जो लोग अपनी नमाज़ों से बे ख़बर हैं” हम में से कौन है जो नहीं भूलता और उस के ख़यालात मुन्तशिर नहीं होते ? उन्हों ने जवाब दिया इस का मतलब ये नहीं बल्कि इस का मतलब नमाज़ों का वक़्त जाएअ कर देना है।)
वैल के मा’ना सख्त अज़ाब है, एक कौल ये भी है कि वैल जहन्नम की एक वादी का नाम है अगर उस में दुन्या के पहाड़ डाले जाएं तो वो भी इस की शदीद गर्मी की वज्ह से पिघल जाएं और ये वादी उन लोगों का मस्कन है जो नमाजों में सुस्ती करते हैं और इन को इन के अवकात से मुअख्खर कर के पढ़ते हैं, हां अगर वो अल्लाह तआला की तरफ़ रुजूअ और तौबा कर लें और गुज़श्ता आ’माल पर पशेमान हो जाएं तो और बात है।
नमाज़ कज़ा होने पर वईदें
सहीह इब्ने हब्बान की रिवायत है कि जिस की नमाज़ कज़ा हो गई तो गोया उस का माल और घराना तबाह हो गया।
हाकिम की रिवायत है कि जिस ने बिगैर किसी उज्रे शरई के दो नमाजों को यक्जा किया तो वो कबीरा गुनाहों के दरवाजे में दाखिल हुवा।
सिहहाहे सित्ता की रिवायत है जिस की नमाजे अस्र क़ज़ा हो गई तो गोया उस के अहलो इयाल और माल तबाह हो गया ।
इब्ने खुजेमा रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी “सहीह” में इन अल्फ़ाज़ का इज़ाफ़ा किया है कि इमामे मालिक का कौल है कि इस से मुराद वक्त का निकल जाना है।
निसाई की रिवायत है कि नमाजों में एक नमाज़ ऐसी है कि जिस की वो नमाज़ क़ज़ा हो गई तो गोया उस के अहलो इयाल और मालो मताअ सब तबाह हो गया और वह नमाजे असर है।
मुस्लिम और निसाई की रिवायत है कि यह नमाजे असर तुम से पहले लोगों पर पेश की गई लेकिन उन्हों ने इसे खो दिया, पस तुम में से जो शख्स इसे पाबन्दी से पढ़ता है उसे दो गुना सवाब मिलता है और इस नमाज के बाद सितारे नज़र आने तक कोई नमाज़ नहीं है (मगरिब का जब वक्त शुरू होता है तो बा’ज़ सितारों पर ताबिन्दगी आ जाती है)
अहमद, बुखारी और निसाई में रिवायत है कि जिस ने नमाजे असर छोड़ दी उस का अमल बरबाद हो गया।
मुस्नदे अहमद और इब्ने अबी शैबा की रिवायत है कि जिस ने नमाजे असर छोड़ दी, अमदन बैठा रहा यहां तक कि नमाज़ क़ज़ा हो गई तो बेशक उस का अमल तबाह हो गया।
इब्ने अबी शैबा की मुर्सल रिवायत है कि जिस ने नमाजे असर छोड़ दी, यहां तक कि सूरज गुरूब हो गया और उस के लिये कोई उज्र भी नहीं था तो गोया उस का अमल बरबाद हो गया।
अब्दुर्रज्जाक की रिवायत है कि तुम में से किसी एक का अहल और मालो मताअ से तन्हा रह जाना नमाजे असर के क़ज़ा हो जाने से बेहतर है ।
तबरानी और अहमद की रिवायत है कि जिस ने जान बूझ कर नमाजे असर छोड़ दी यहां तक कि सूरज गुरूब हो गया तो गोया उस के अहलो इयाल और माल बरबाद हो गया।
शाफेई और बैहक़ी की रिवायत है कि जिस की एक नमाज़ फ़ौत हो गई गोया उस का घराना और माल हलाक हो गया।)
बुखारी ने हज़रते समुरह बिन जुन्दब रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम अकसर अपने सहाबए किराम से फ़रमाया करते थे कि तुम में से किसी ने ख्वाब देखा है तो बयान करे। लोग अपने ख्वाब आप को सुनाया करते । एक सुब्ह हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हमें बतलाया कि मेरे पास दो आने वाले आए और उन्हों ने मुझे जगा कर कहा कि हमारे साथ चलिये ! मैं उन के साथ चल पड़ा यहां तक कि हम ने ऐसे आदमी को देखा जो लैटा हुवा था और दूसरा एक भारी पथ्थर लिये खड़ा था। जब वो भारी पथ्थर उस के सर पर मारता तो उस सोने वाले का सर रेज़ा रेज़ा हो जाता, फिर वोह पथ्थर उठा लेता है और उस आदमी का सर सहीह हो जाता है जैसा कि पहले था, वो फिर पथ्थर मारता है और उस का पहले जैसा हश्र हो जाता है, मैं ने उन दोनों से कहा : सुबहान अल्लाह यह क्या है ? उन्हों ने मुझे कहा : अभी और चलिये ! और चलिये !
फिर हम एक ऐसे आदमी के पास आए जो पीठ के बल लैटा हुवा था और दूसरा हाथ में लोहे की सन्सी लिये खड़ा था और सोने वाले के चेहरे की एक जानिब सन्सी से उस की बाछ को गुद्दी की तरफ़ खींचता है और उस के नथनों और आंखों से भी येही सुलूक करता है और उस के यह आ’जाए बदन गुद्दी की तरफ़ मुड़ जाते हैं फिर वोह दूसरी सम्त से आता है और उस के साथ वोही सुलूक करता है जो पहले कर चुका है। जब वो दूसरी जानिब जाता है तो पहली जानिब चेहरा सहीह हो जाता है, फिर वोह वापस आता है और पहली तरफ़ से उस के चेहरे को वो ही अज़िय्यत देता है, मैं ने कहा : यह क्या है? उन्हों ने कहा : अभी और चलिये और चलिये ! हम चल पड़े और तन्नूर जैसी एक चीज़ देखी, रावी कहता है कि मुझे ऐसे याद पड़ता है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने यह फ़रमाया : इस में से मिली जुली आवाजें और शोर उठ रहा था, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : हम ने देखा उस में नंगे मर्द और औरतें थीं, अचानक उन के नीचे से आग का शो’ला निकलता, जूही येह शो’ला निकलता वो शदीद घबराहट के आलम में आहो फुगां शुरू कर देते, मैं ने पूछा : यह कौन हैं ? उन्हों ने मुझ से कहा : अभी और चलिये और चलिये !
हम फिर रवाना हो गए और तब एक ऐसी नहर पर पहुंचे जो मैं समझता हूं कि खून की तरह सुर्ख थी, उस में एक आदमी तैर रहा है और नहर के किनारे पर एक आदमी बहुत से पथ्थर लिये खड़ा है, वो उसे पथ्थर मारता है और वो तैरने लगता है। जब भी वो उस के करीब आता है वो उसे पथ्थर मारता है। मैं ने उन से पूछा : ये क्या है ? उन्हों ने कहा : अभी और चलिये और चलिये । हम फिर चल दिये और एक ऐसे बद सूरत आदमी के पास आए कि तुम ने उस जैसा बद सूरत नहीं देखा होगा, वो आग भड़काता है और फिर उस के इर्द गिर्द भागने लगता है, मैं ने उन से पूछा : यह क्या है ? उन्हों ने कहा : चलिये और चलिये ! हम फिर चल पड़े और ऐसे बाग के करीब पहुंचे जिस में तवीलो अरीज़ सब्ज़ा और हर किस्म के पौदे, फूल वगैरा लगे थे और बाग के पीछे एक तवीलुल कामत आदमी है जिस का सर आस्मान से छू रहा है और उस के चारों तरफ़ छोटे छोटे बच्चे जम्अ हैं। मैं ने पूछा : यह क्या है ? और यह सब कौन हैं ? उन दो फरिश्तों ने मुझे कहा : अभी और चलिये और चलिये !
फिर हम ने एक अज़ीम दरख्त देखा, मैं ने आज तक उस जैसा तवील और हसीन दरख़्त नहीं देखा है, उन्हों ने मुझ से कहा कि इस पर चढ़िये । चुनान्चे, उस पर चढ़ कर एक ऐसे शहर में पहुंचे जो सोने चांदी की ईटों से बना हुवा था, हम ने दरवाजा खोलने को कहा तो हमारे लिये दरवाज़ा खोल दिया गया, वहां हमें कुछ इन्तिहाई हसीनो जमील और कुछ इन्तिहाई बद सूरत आदमी मिले, उन दो फरिश्तों ने उन आदमियों से कहा कि तुम जाओ और इस नहर में घुस जाओ।
आप ने फ़रमाया : तब मैं ने देखा, एक सफ़ेद पानी की नहर बह रही थी, वो लोग नहर की तरफ़ चल दिये, जब वापस आए तो हम ने देखा उन की बद सूरती जाइल हो चुकी थी और वो इन्तिहाई खूब सूरत बन गए थे।
मुझ से उन दो फ़रिश्तों ने कहा कि यह जन्नते अदन है और यह आप की मन्ज़िल है, आप ने फ़रमाया : फिर मैं ने निगाह उठा कर ऊपर देखा तो मुझे सफ़ेद बादल की तरह एक महल नज़र आया। उन्हों ने मुझे कहा : यह आप का घर है, मैं ने उन से कहा : अल्लाह तआला तुम्हें बरकतों से नवाजे, मुझ को इजाज़त दो ताकि मैं इस में दाखिल होऊं, उन्हों ने कहा : अभी नहीं लेकिन जाएंगे आप ही ! फिर मैं ने उन से कहा : आज रात मैं ने बहुत से अजाइब देखे हैं, यह जो कुछ मैं ने देखा, क्या है ? उन्हों ने कहा : हम अभी आप को बतलाते हैं :
पहले जिस आदमी को आप ने देखा कि उस का सर पथ्थर से कुचला जा रहा है, वो ऐसा शख्स है जो कुरआने मजीद पढ़ कर उस पर अमल नहीं करता और फ़र्ज़ नमाज़ों से सो जाता है, अदा नहीं करता, वोह आदमी जिस की बाछे और नथने और आंखें सन्सी से गुद्दी की तरफ मोड़ी जा रही हैं, वोह ऐसा आदमी है जो झूट घड़ता है और झूटी बातें फैलाता है और आप ने तन्नूर जैसी इमारत में जो नंगे मर्द और औरतें देखी हैं वोह जानी मर्द व ज़ानिय्या औरतें हैं और जिस आदमी को आप ने खून की नहर में तैरते और पथ्थर खाते देखा है वोह सूदखोर है और जिस आदमी को आप ने आग भड़काते और उस के गिर्द घूमते देखा है वोह मालिक है जो जहन्नम का दारोगा है। आप ने जिस तवील आदमी को बाग में देखा है वोह हज़रते इब्राहीम अलैहहिस्सलाम हैं और उन के इर्द गिर्द जो बच्चे थे वोह ऐसे बच्चे हैं जो बचपन ही में दीने फ़ितरत पर फ़ौत हुवे हैं।
बा’ज़ मुसलमानों ने पूछा : या रसूलल्लाह ! मुशरिकों के नन्हे मुन्ने फ़ौत हो जाने वाले बच्चे भी वहां होंगे? आप ने फ़रमाया : हां ।
और जिस जमाअत के लोगों का आप ने एक पहलू खूब सूरत और दूसरा पहलू बद सूरत देखा है, येह वोह लोग हैं जो अपने आ’माल में नेकियां बुराइयां दोनों साथ लाते हैं और अल्लाह तआला उन की गलतियों से दर गुज़र फ़रमाता है।
बज्जाज़ की रिवायत में इस तरह है कि फिर हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ऐसी कौम पर तशरीफ़ लाए जिन के सर पथ्थर से फोड़े जा रहे थे, जब वोह रेज़ा रेज़ा हो जाते तो फिर अपनी अस्ली हालत पर आ जाते और येही अज़ाब इन्हें बराबर दिया जा रहा है, आप ने पूछा : जिब्रील येह कौन हैं ? जिब्रील ने कहा : येह वोह लोग हैं जिन के सर नमाज़ पढ़ने से भारी हो जाते या’नी येह नमाज़ नहीं पढ़ते थे।1) ।
मर्दे मोमिन की नमाज
खतीब और इब्नुल नज्जार की रिवायत है कि नमाज़ इस्लाम की अलामत है जिस का दिल नमाज़ की तरफ़ मुतवज्जेह रहा और उस ने तमाम शराइत के साथ सहीह वक्त पर और सहीह तरीके से नमाज़ पढ़ी, वोह मोमिन है।
इब्ने माजा की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि रब्बे जुल जलाल का इरशाद है : मैं ने आप की उम्मत पर पांच नमाजें फ़र्ज़ की हैं और मैं ने अपने लिये वादा कर लिया है कि जो शख्स इन नमाज़ों को इन के अवकात में अदा करेगा उसे जन्नत में दाखिल करूंगा और जो इन की पाबन्दी नहीं करेगा, मेरा उस शख्स के लिये कोई वा’दा नहीं है।
अहमद और हाकिम की रिवायत है कि जिस शख्स ने यह जान लिया कि नमाज़ उस पर वाजिब और ज़रूरी है और उस ने इसे अदा किया वो जन्नत में जाएगा
तिर्मिज़ी, निसाई और इब्ने माजा की हदीस है कि कियामत में सब से पहला अमल जिस का बन्दे से मुहासबा होगा वो नमाज़ है, अगर नमाजें सहीह हुई तो वो कामयाब व कामरान हुवा और अगर नमाज़ों में नुक्सान निकला तो वो ख़ाइबो ख़ासिर हुवा, अगर उस के फ़राइज़ कम हो जाएंगे तो अल्लाह तआला फ़रमाएगा, देखो मेरे बन्दे की नफ़्ली इबादत है ? और नवाफ़िल से उस के फ़राइज़ को पूरा किया जाएगा फिर सारे आमाल का दारो मदार नमाज़ के मुआमले में कामयाबी और नाकामी पर होगा।
निसाई की हदीस में है कि क़ियामत के दिन सब से पहले इन्सान से नमाज़ का मुहासबा किया जाएगा और सब से पहले लोगों में खून का फैसला किया जाएगा।
अहमद, अबू दावूद, निसाई, इब्ने माजा और हाकिम में यह हदीस है कि क़ियामत में सब से पहले इन्सान की नमाज़ का मुहासबा होगा, अगर पूरी हुई तो इन्हें मुकम्मल लिख दिया जाएगा और अगर कम हुई तो अल्लाह तआला फ़रिश्तों से फ़रमाएगा : देखो मेरे बन्दे की नफ्ल इबादत है ? और उस से फ़र्ज़ इबादत मुकम्मल की जाएगी, फिर ज़कात का मुहासबा होगा और इसी तरह फिर सारे आ’माल का ।
इब्ने असाकिर की हदीस है कि पहली वो चीज़ जिस का बन्दे से अव्वल कियामत में मुहासबा किया जाएगा, उस की नमाज़ देखी जाएगी, अगर नमाज़ सहीह हुई तो सारे आ’माल सहीह हो गए और अगर नमाज़ में नुक्सान हुवा तो सारे आ’माल में नुक्सान पाया जाएगा, फिर अल्लाह तआला फरिश्तों से फ़रमाएगा देखो मेरे बन्दे की नफ्ली इबादत है ? अगर नफ्ली इबादत होगी तो इस से फ़राइज़ पूरे किये जाएगे, उस के बाक़ी फ़राइज़ का मुहासबा होगा येही अल्लाह तआला की बख्रिशश व रहमत का तरीका है।
तबरानी की हदीस है कि क़ियामत में सब से पहले इन्सान की नमाज़ों का सवाल होगा अगर उस की नमाजें दुरुस्त हुई तो सारे आ’माल दुरुस्त हुवे और वो नजात पा गया, अगर उस की नमाजें सहीह न हुई तो वो नाकाम व ना मुराद हुवा।)
अहमद, अबू दावूद, हाकिम और निसाई की हदीस है : क़ियामत के दिन सब से पहले इन्सान के सारे आ’माल में नमाज़ की पुरसिश होगी, अल्लाह तआला फरिश्तों से फ़रमाएगा हालांकि वो सब कुछ जानता है, कि मेरे बन्दे की नमाजें देखो, मुकम्मल हैं या ना मुकम्मल ? अगर मुकम्मल हुई तो मुकम्मल लिख दिया जाएगा और अगर कुछ कम हुई तो फ़रमान होगा : क्या मेरे बन्दे की नफ़्ल इबादत है ? अगर उस की नफ्ल इबादत हुई तो हुक्म होगा कि इस से फ़राइज़ को मुकम्मल करो, फिर इसी तरह दीगर आ’माल का मुहासबा होगा।
तयालिसी, तबरानी और अज्जियाओ फ़िल मुख़्तारा की हदीस है कि मेरे पास रब तआला का पैगाम ले कर जिब्रीले अमीन आए और कहा : रब तआला फ़रमाता है : ऐ मुहम्मद ! सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मैं ने आप की उम्मत पर पांच नमाजे फ़र्ज़ की हैं, जो शख़्स इन्हें सहीह वुजू से सहीह वक्त में सहीह रुकूअ और सुजूद से अदा करेगा, मेरा उन नमाज़ों के सबब उस से वा’दा है कि मैं उसे जन्नत में दाखिल करूंगा और जिस ने मुझ से इस आलम में मुलाकात की, कि उस की कुछ नमाजें कम हैं तो मेरा उस के साथ वा’दा नहीं है, चाहूं तो उसे अज़ाब दूं और चाहूं तो उस पर रहम करूं ।
बैहकी की हदीस है कि नमाज़ तराजू है, जिस ने इसे पूरा किया वो कामयाब है।
दैलमी की हदीस है कि नमाज़ शैतान का मुंह काला करती है, सदका उस की कमर तोड़ता है, अल्लाह के लिये लोगों से महब्बत और इल्म दोस्ती उसे शिकस्ते फ़ाश देती है, जब तुम यह आ’माल करते हो तो शैतान तुम से इतना दूर हो जाता है कि जैसे सूरज के तुलूअ होने की जगह गुरूब होने की जगह से दूर है।
तिर्मिज़ी, इब्ने हब्बान और हाकिम की रिवायत है कि अल्लाह तआला से डरो और पांच नमाजें पढ़ो, माहे रमज़ान के रोजे रखो, माल की ज़कात दो, अपने हाकिमों की इताअत करो, तुम अपने रब की जन्नत को पा लोगे।
अहमद, बुख़ारी, मुस्लिम, अबू दावूद और निसाई में हदीस है कि अल्लाह तआला के यहां सब से पसन्दीदा अमल नमाज़ को उस के सहीह वक्त में अदा करना है, फिर वालिदैन से हुस्ने सुलूक और फिर राहे खुदा में जिहाद करना है।(सहीह वक्त पर नमाज़ की अदाएगी अल्लाह को सब से जियादा महबूब है।
बैहक़ी ने हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की ख़िदमत में एक आदमी ने हाज़िर हो कर अर्ज की : मुझे बतलाइये कि अल्लाह तआला को सब से ज़ियादा कौन सा अमल पसन्द है ? आप ने फ़रमाया : नमाज़ को सहीह वक्त में अदा करना और जिस ने नमाज़ को छोड़ दिया उस का दीन नहीं और नमाज़ दीन का सुतून है। इसी लिये जब हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो को शदीद जख्मी कर दिया गया तो किसी ने आप से कहा : अमीरुल मोमिनीन ! नमाज, आप ने फ़रमाया : “बहुत अच्छा, बिला शुबा उस शख्स का दीन में कोई हिस्सा नहीं है जिस ने नमाज़ को जाएअ कर दिया” और आप ने नमाज़ पढ़ी हालांकि आप के ज़ख़्म से खून बह रहा था।
जहबी की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जब बन्दा अव्वल वक्त में नमाज़ पढ़ता है तो उस की नमाज़ आस्मानों की तरफ़ जाती है और वो नूरानी शक्ल में होती है यहां तक कि अर्शे इलाही तक जा पहुंचती है और नमाज़ी के लिये कियामत तक दुआ करती रहती है कि अल्लाह तेरी हिफ़ाज़त फ़रमाए जैसे तू ने मेरी हिफ़ाज़त की है और जब आदमी बे वक्त नमाज़ पढ़ता है तो उस की नमाज़ सियाह शक्ल में ऊपर आस्मानों की तरफ़ चढ़ती है जब वोह आस्मान तक पहुंचती है तो उसे बोसीदा कपड़े की तरह लपेट कर पढ़ने वाले के मुंह पर मारा जाता है ।
अबू दावूद की रिवायत है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : तीन आदमी ऐसे हैं कि अल्लाह तआला जिन की नमाज़ और ज़िक्र क़बूल नहीं करता, उन में से एक वो है जो वक्त गुज़र जाने के बाद नमाज़ पढ़ता है। बा’ज़ उलमा का कहना है : हृदीस शरीफ़ में है कि जो शख्स नमाज़ की पाबन्दी करता है उसे अल्लाह तआला पांच चीज़ों से सरफ़राज़ फ़रमाता है :
उस से तंगदस्ती खत्म कर दी जाती है
उसे अज़ाबे क़ब्र नहीं होगा
नामए आ’माल उसे दाएं हाथ में दिया जाएगा
पुल सिरात पर बिजली की तरह गुज़रेगा और
जन्नत में बिला हिसाब दाखिल होगा।
नमाज में सुस्ती पर मसाइब
जो शख्स नमाज़ों में सुस्ती करता है अल्लाह तआला उसे पन्दरह मसाइब में मुब्तला करता है : पांच दुन्या में, तीन मौत के वक्त, तीन क़ब्र में और तीन कब्र से निकलते वक्त ।
दुन्यावी मसाइब यह हैं कि ……उस की उम्र से बरकत छीन ली जाती है …….उस के चेहरे से सालिहीन की निशानी मिट जाती है .उस के किसी भी अमल का अल्लाह तआला अज्र नहीं देता…….उस की दुआ आस्मानों की तरफ़ बुलन्द नहीं होती …….नेकों की दुआओं में उस का कोई हिस्सा नहीं होता। और जो मसाइब उसे मौत के वक्त दरपेश होंगे वो येह हैं कि क…..वोह ज़लील हो कर मरेगा की…..भूका मरेगा और
…….प्यासा मरेगा, अगर उसे दुन्या के तमाम समन्दर पिला दिये जाएं तो भी उस की प्यास नहीं बुझेगी। कब्र के मसाइब येह हैं कि …क़ब्र उस पर तंग होगी यहां तक कि उस की पस्लियां एक दूसरे में पैवस्त हो जाएंगी
…….उस की कब्र में आग भड़काई जाएगी जिस के अंगारों पर वो रात दिन लौटता रहेगा
की…….उस की कब्र में एक अज़दहा मुकर्रर कर दिया जाएगा जिस का नाम शुजाअ या’नी गन्जा होगा, उस की आंखें आग की होंगी और उस के नाखुन लौहे के होंगे जिन की लम्बाई एक दिन के सफ़र के बराबर होगी, वोह कड़क दार बिजली जैसी आवाज़ में मय्यित से हम कलाम होगा और कहेगा : मैं गन्जा अज़दहा हूं, मेरे रब ने हुक्म दिया है कि मैं तुझे नमाज़ों के ज़ियाअ के बदले सुबह से शाम तक डसता रहूं, सुब्ह की नमाज़ के लिये सूरज निकलने तक, नमाजे जोहर के जाएअ करने पर तुझे ज़ोहर से अस्र तक, असर की नमाज के लिये मगरिब तक, मगरिब की नमाज़ के ज़ियाअ पर इशा तक और नमाजे इशा के जाएअ करने की वज्ह से तुझे सुब्ह तक डसता रहूं, और जब वोह उसे डसेगा वोह सत्तर हाथ ज़मीन में धंस जाएगा और कियामत तक इसी तरह उस को अज़ाब होता रहेगा,
और जो मसाइब उसे क़ब्र से निकलते हुवे हश्र के मैदान में झेलने होंगे वोह येह हैं: …….सख्त हिसाब ……अल्लाह की नाराजी और ….जहन्नम में दाखिला।
एक रिवायत में है कि वोह कियामत में इस हालत में आएगा कि उस के चेहरे पर तीन सतरें लिखी होंगी :
…….पहली सतर येह होगी : ऐ अल्लाह के हुकूक जाएअ करने वाले ! …….दूसरी सतर होगी : ऐ अल्लाह की नाराजी के लिये मख्सूस ! और …….तीसरी सतर होगी कि जैसे तू ने अल्लाह के हुकूक दुन्या में जाएअ किये हैं ऐसे ही तू आज अल्लाह की रहमत से ना उम्मीद होगा।
इस हदीस में मजमूई ता’दाद तो पन्दरह बताई गई है मगर तफ्सीलन चौदह का ज़िक्र है, शायद राविये हदीस पन्दरहवीं बात भूल गए।
हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि क़ियामत के दिन एक शख़्स अल्लाह की बारगाह में खड़ा किया जाएगा और अल्लाह तआला उसे जहन्नम में जाने का हुक्म देगा। वोह पूछेगा : या अल्लाह ! मुझे किस लिये जहन्नम में भेजा जा रहा है ? रब तआला फ़रमाएगा कि नमाज़ों को उन के अवकात से मुअख्खर कर के पढ़ने और मेरे नाम की झूटी कसमें खाने की वज्ह से येह हो रहा है।
बा’ज़ मुहद्दिसीन से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने एक दिन सहाबए किराम रज़ीअल्लाहो अन्हुमा से कहा कि तुम यूं दुआ मांगा करो ! “ऐ अल्लाह ! हम में से किसी को शकी और महरूम न बना।” फिर फ़रमाया : जानते हो बद बख़्त महरूम कौन होता है? कहा गया : कौन होता है ? या रसूलल्लाह ! आप ने फ़रमाया : जो इन्सान तारिके नमाज़ होता है ।
नीज़ फ़रमाया (मुहद्दिसीन ने) : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मरवी है : आप ने फ़रमाया कि क़ियामत के दिन सब से पहले तारिकीने नमाज़ के मुंह काले किये जाएंगे और जहन्नम में एक वादी है जिसे “लमलम” कहा जाता है, उस में सांप रहते हैं, हर सांप ऊंट जितना मोटा और एक माह के सफ़र के बराबर तवील होगा, वो बे नमाज़ी को डसेगा उस का ज़हर सत्तर साल तक बे नमाज़ी के जिस्म में जोश मारता रहेगा, फिर उस का गोश्त गल जाएगा।
अमदन नमाज तर्क करने वाला जानी से भी बदतर है।
नीज़ येह भी मरवी है कि बनी इस्राईल की एक औरत हज़रते मूसा .की ख़िदमत में आई और अर्ज किया ऐ नबिय्यल्लाह ! मैं ने बहुत बड़ा गुनाह किया है और तौबा भी की है, अल्लाह तआला से दुआ मांगिये कि वोह मेरे गुनाह को बख्श दे और मेरी तौबा क़बूल फ़रमा ले।
हज़रते मूसा अलैहहिस्सलाम ने पूछा : तू ने कौन सा गुनाह किया है ? वोह कहने लगी कि मैं ज़िना की मुर्तकिब हुई और जो बच्चा पैदा हुवा मैं ने उसे क़त्ल कर दिया है ! येह सुन कर मूसा अलैहहिस्सलाम बोले ! ऐ बद बख़्त ! निकल जा, कहीं तेरी नुहूसत की वज्ह से आस्मान से आग नाज़िल हो कर हमें न जला दे ! चुनान्चे, वोह शिकस्ता दिल हो कर वहां से चल पड़ी, तब जिब्रील अलैहहिस्सलाम नाज़िल हुवे और कहा : ऐ मूसा ! अलैहहिस्सलाम अल्लाह तआला फ़रमाता है कि तू ने गुनाह से तौबा करने वाली को क्यूं वापस कर दिया है ? क्या तू ने इस से भी ज़ियादा बुरा आदमी नहीं पाया ? मूसा अलैहहिस्सलाम ने पूछा : ऐ जिब्रील ! इस औरत से ज़ियादा बुरा कौन है ? जिब्रील अलैहहिस्सलाम बोले कि इस से बुरा वोह है जो जान बूझ कर नमाज़ छोड़ दे।
बा’ज़ सालिहीन से मरवी है कि एक आदमी ने अपनी मुर्दा बहन को दफ्न किया तो उस की थैली बे ख़बरी में कब्र में गिर गई जब सब लोग उसे दफ्न कर के चले गए तो उसे अपनी थैली याद आई, चुनान्चे, वोह आदमी लोगों के चले जाने के बाद बहन की कब्र पर पहुंचा और उसे खोदा ताकि थैली निकाल ले, उस ने देखा कि उस की कब्र में शो’ले भड़क रहे हैं, चुनान्चे, उस ने कब्र पर मिट्टी डाली और इन्तिहाई गमगीन रोता हुवा मां के पास आया और पूछा : मां ! येह बताओ कि मेरी बहन क्या करती थी ? मां ने पूछा : तुम क्यूं पूछ रहे हो ? वोह बोला मैं ने अपनी बहन की कब्र में आग के शो’ले भड़कते देखे हैं उस की मां रोने लगी और कहा : तेरी बहन नमाज़ में सुस्ती करती रहती थी और नमाज़ों को उन के अवकात से मुअख्ख़र कर के पढ़ा करती थी।
येह तो उस का हाल है जो नमाज़ों को उन के अवकात से मुअख्खर कर के पढ़ा करती थी और उन लोगों का क्या हाल है जो सिरे से नमाज़ पढ़ते ही नहीं।
ऐ अल्लाह ! हम तुझ से नमाज़ों को उन के अवक़ात में अदा करने और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ने की तौफ़ीक़ तलब करते हैं, बेशक ऐ रब ! तू मेहरबान, करीम, रऊफ़ और रहीम है।
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
Tags
namaz na padhne ka azaab, namaz chhod dene ka azaab, namaz me susti, namaz tark karne pr azaab hadees, benamazi ki saza,