फजीलते मेहमानी ए फुकरा – गरीबो को मेहमान बनाने की फज़िलतें
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फ़रमान है मेहमान के लिये तकल्लुफ़ न करो
तुम उसे दुश्मन समझोगे और जिस ने उसे दुश्मन समझा उस ने अल्लाह को दुश्मन समझा और जिस ने अल्लाह तआला को दुश्मन समझा अल्लाह तआला ने उसे दुश्मन समझा ।
फ़रमाने नबवी है कि उस शख्स के पास खैरो बरकत नहीं जिस में मेहमान नवाज़ी नहीं।
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हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का ऐसे शख्स से गुज़र हुवा जिस के पास बहुत से ऊंट और गाएं थीं मगर उस ने मेहमानी न की और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का ऐसी औरत से गुज़र हुवा जिस के पास छोटी छोटी बकरियां थीं उस ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के लिये एक बकरी ज़ब्ह की तब आप ने फ़रमाया : इन दो को देखो अल्लाह तआला के हाथ में अख़्लाक़ हैं।
हज़रते अबू राफेअ रज़ीअल्लाहो अन्हो जो हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के गुलाम थे, फ़रमाते हैं कि आप के यहां एक मेहमान उतरा, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जाओ ! फलां यहूदी से कहो कि मेरा मेहमान आया है, मुझे रजब के महीने तक के लिये कुछ आटा भेज दो, यहदी येह पैगाम सुन कर बोला : ब खुदा ! मैं उन को कुछ नहीं दूंगा मगर येह कि कुछ रह्न रखा जाए, मैं ने जा कर हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को खबर दी, आप ने फ़रमाया : ब खुदा ! मैं आस्मानों में अमीन हूं, जमीन में अमीन हूं, अगर वोह मुझे उधार देता तो मैं ज़रूर अदा कर देता, जाओ मेरी जिरह ले जाओ और उस के पास रह्न रख दो।
हज़रते इब्राहीम अलैहहिस्सलाम जब खाना खाने का इरादा फ़रमाते तो मील दो मील मेहमान की तलाश में निकल जाया करते थे। आप की कुन्यत अबुज्जयफ़ान थी और आप की सिद्के निय्यत की वज्ह से आज तक इन की जारी कर्दा ज़ियाफ़त मौजूद है, कोई रात न गुज़रती मगर आप के यहां तीन से ले कर दस और सो के दरमियान जमाअत खाना न खाती हो, इन के घर के निगहबान ने कहा कि इन की कोई रात मेहमान से खाली नहीं रही।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से पूछा गया : ईमान क्या है ? आप ने फ़रमाया कि खाना खिलाना और सलाम करना ।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने कफ्फारात और दरजात के मुतअल्लिक इरशाद फ़रमाया कि खाना खिलाना और रात को नमाज़ पढ़ना दर आं हाल येह कि लोग सोए हुवे हों ।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से हज्जे मबरूर के मुतअल्लिक़ पूछा गया : तो आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि खाना खिलाना और शीरीं गुफ्तारी ।
हज़रते अनस रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं कि जिस घर में मेहमान दाखिल नहीं होते उस घर में फ़रिश्ते भी दाखिल नहीं होते।
मेहमान की फजीलत और खाना खिलाने की फजीलत के बारे में बे शुमार हदीसें वारिद हुई हैं। किसी ने क्या खूब कहा है :
मैं मेहमान को क्यूं न महबूब समझू और उस की खुशी से राहत महसूस क्यूं न करूं ! वोह मेरे पास अपना रिज्क खाता है और इस पर मेरा शुक्रिया अदा करता है।
हुकमा का कौल है कि कोई भलाई खुशरूई, खुश गुफतारी और खन्दा पेशानी के बिगैर पायए तक्मील को नहीं पहुंचती।
एक और शाइर कहता है:
मैं अपने मेहमान का कजावा उतारने से पहले उसे हंसाता हूं, वोह मेरे पास शादाब होता है हालांकि कहत साली होती है। अक्सर मेहमानी में शादाबी नहीं होती लेकिन करीम का चेहरा फिर भी शादाब रहता है।
दा’वत करने वाले ! मुनासिब येह है कि तू अपने खाने में परहेज़गारों को बुलाए और फ़ासिकों से एहतिराज़ करे चुनान्चे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं कि जब तुम कुछ लोगों को खाने की दावत दो तो नेकों को अपने खाने में बुलाओ।
फ़रमाने नबवी है कि नेक के खाने के इलावा किसी का खाना न खा और नेक परहेज़गार को खिलाने के इलावा किसी और को न खिला।
दा’वत में मालदारों की बजाए फुकरा को बुलाओ चुनान्चे, नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि बद तरीन खाना वोह वलीमा है जिस में फ़कीरों की बजाए उमरा को बुलाया जाए ।
नीज़ दा’वत करने वाले के लिये येह भी ज़रूरी है कि वोह ज़ियाफ़त में अपने रिश्तेदारों को नज़र अन्दाज़ न करे क्यूंकि उन्हें नज़र अन्दाज़ करना वीरानी और क़तए रेहमी है इसी तरह अपने दोस्तों और जान पहचान वालों की तरतीब का भी खयाल रखे क्यूंकि इस में बा’ज़ को मुख्लस करना दूसरों के दिलों के लिये वहशत होती है।
नीज़ येह भी ज़रूरी है कि दा’वत करने वाला अपनी दा’वत फ़न और खुदबीनी जैसी बुराइयों के लिये न करे बल्कि इस से अपने भाइयों के दिलों का मैलान और खाना खिलाने और मोमिन भाइयों के दिलों में खुशी व मसर्रत के दुखूल के लिये नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की सुन्नत की पैरवी करे । ऐसे आदमी को दा’वत न दे जिस के मुतअल्लिक उसे मा’लूम हो कि उस का आना बाइसे तक्लीफ़ होगा या उस का आना मदउवीन के आने के लिये किसी सबब से बाइसे रन्ज होगा।
और येह भी मुनासिब है कि वोह उस शख्स को दावत दे जिस के मुतअल्लिक मालूम हो कि वोह इसे क़बूल कर लेगा।
हज़रते सुफ्यान रज़ीअल्लाहो अन्हो का क़ौल है कि जिस ने किसी ऐसे शख्स को दावत में बुलाया जो उसे ना पसन्द करता है तो उस ने खता की और अगर मदऊ ने उस की दा’वत कबूल कर ली तो उस ने दो ख़ताएं की क्यूंकि इस दा’वत करने वाले ने मदऊ को ना पसन्दीदगी के बा वुजूद ला घसीटा है, अगर उसे इस बात की खबर होती तो वोह कभी भी उसे खाना न खिलाता मुत्तकी को खाना खिलाना उस की इताअत में इआनत और बदकार को खिलाना उस की बदकारी को तक्विय्यत देना है।
हज़रते इब्ने मुबारक रज़ीअल्लाहो अन्हो से एक दरजी ने कहा : मैं बादशाहों के कपड़े सीता हूं, क्या आप को मेरे मुतअल्लिक़ अन्देशा है कि मैं जुल्म व उदवान के मददगारों में गिना जाऊं ? आप ने फ़रमाया : नहीं ! जुल्म के मददगार तो वोह हैं जो तेरे हाथ कपड़ा बेचते हैं और सूई वगैरा, बहर हाल तुम तौबा करो।
दावत कबूल करना सुन्नते मुअक्कदा है।
दा’वत को कबूल करना सुन्नते मुअक्कदा है, बा’ज़ मवाकेअ पर तो इसे वाजिब भी कहा गया है।
नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम इरशाद फ़रमाते हैं कि अगर मुझे गाए या बकरी की पतली सी पिन्डली की भी दावत दी जाए तो मैं उसे कबूल कर लूंगा और अगर मुझे जानवर का दस्त हदिय्या किया जाएगा तो मैं कबूल कर लूंगा।
दा’वत कबूल करने के लिये पांच आदाब हैं जो ‘इहयाओ उलूमुद्दीन’ वगैरा में मजकूर हैं।
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
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