हराम खाने की मज़म्मत
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
फ़रमाने इलाही है : और तुम एक दूसरे का माल नाहक़ न खाओ।
इस आयत के मा’ना में इख्तिलाफ़ है लिहाज़ा इसे सूद, जूआ, गसब, चोरी, खियानत, झूटी गवाही और झूटी कसम खा कर माल हथयाने के मा’नों में लिया गया है, हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : इस से मुराद वोह चीजें हैं जो इन्सान नाहक हासिल कर लेता है। कहते हैं कि जब येह आयत नाज़िल हुई तो लोगों ने एक दूसरे के यहां कुछ खाना पीना भी ममनूअ समझ लिया, तब सूरए नूर की येह आयत नाज़िल हुई।
“तुम पर कोई मुजाअका नहीं है कि तुम अपने घरों से और अपने वालिदैन के घरों से खाओ।”
और बा’ज़ ने कहा है कि इस से मुराद गलत बैअ है और हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो के इस कौल से कि “येह आयत मोहकमात में से है जिस का हुक्म क़ियामत तक बाक़ी रहेगा।” इस से मुराद है कि नाहक तरीके से खाना हर उस चीज़ को शामिल है जो गलत तरीके से हासिल की जाए, चाहे वोह जुल्म कर के ली जाए जैसे गसब, खियानत और चोरी वगैरा, या लह्वो लइब से हासिल की जाए जैसे जूआ या खेल कूद के जरीए हासिल करें, या मक्र और धोके से हासिल की जाए जैसे नाजाइज़ तौर पर ख़रीदो फरोख्त की जाए और मेरे इस क़ौल की ताईद में बाज़ उलमा का कौल भी है कि येह आयत इन्सान के अपने माल को भी नाज़ाइज़ तरीको से खर्च करने की मुमानअत पर दलालत करती है और दूसरों के माल को मजकूरए बाला सूरतों में से किसी सूरत में हासिल करने की भी मुमानअत करती है।
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और फ़रमाने इलाही : “मगर येह कि तिजारत हो” इस में इस्तिस्नाए मुन्कतेअ है या’नी तिजारत के जरीए तुम माल ले सकते हो क्यूंकि तिजारत उस जिन्स में से नहीं है जिस की मुमानअत कर दी गई है, ख्वाह इस को किसी मा’ना पर महमूल किया जाए और इस की तावील सबब से करना ताकि इस्तिस्ना मुत्तसिल बन जाए, दुरुस्त नहीं है अगर्चे तिजारत तबादले के अक़्द के साथ खास है मगर दूसरे दलाइल की रोशनी में इस का इतलाक कर्ज व हिबा पर भी होता है और फ़रमाने इलाही : ” से मुराद येह है कि खुशदिली और जाइज़ तरीक़ पर हो, खाने का खुसूसी ज़िक्र करना कैद लगाने के लिये नहीं है बल्कि सिर्फ इस लिये है कि आम तौर पर खाना ही मक्सूद होता है, येह बिल्कुल इस तरह है जैसे:
इस सिलसिले के दलाइल कसीर और अहादीसे मुक़द्दसा में इस के मुतअल्लिक़ वारिद शुदा तम्बीहात बेशुमार हैं जिन में से हम बा’ज़ का जिक्र किये देते हैं।
हराम माल खाने से बचने की हदीस मुबारक
मुस्लिम वगैरा में हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : अल्लाह तआला पाक है, वोह पाक चीज़ों को क़बूल फ़रमाता है और उस ने मोमिनों को वोही हुक्म दिया है जो उस ने रसूलों को दिया है, चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है :
ऐ रसूलो ! पाकीज़ा चीज़ों में से खाओ और अच्छे अमल करो। और दूसरी आयत में फ़रमाया :
ऐ मोमिनो हमारे दिये हुवे रिज्क में से पाकीज़ा चीजें खाओ।
हराम खाने वाले की दुआ कुबूल नहीं होती
फिर आप ने ऐसे आदमी का तजकिरा फ़रमाया जो तवील सफ़र के बाद बिखरे बालों और गुबार आलूद चेहरे के साथ आता है और आस्मान की तरफ़ हाथ उठा कर ऐ अल्लाह ! ऐ अल्लाह ! कहता है हालांकि उस का खाना पीना, लिबास और गिजा सब हराम होता है, इस सूरत में उस की दुआ रब्बे जलील कैसे क़बूल फ़रमाएगा।
तबरानी ने अस्नादे हसन से येह रिवायत की है कि रिज्के हलाल तलाश करना हर मुसलमान पर वाजिब है ।
तबरानी और बैहक़ी की रिवायत है कि फ़राइज़े नमाज़ के बा’द रिज्के हलाल तलब करना भी फ़र्ज़ है।
तिर्मिज़ी और हाकिम की हदीस है कि जिस ने हलाल खाया या सुन्नत के मुताबिक़ अमल किया और लोग उस के शर से महफूज़ रहे, वोह जन्नत में जाएगा। सहाबए किराम ने अर्ज़ की : या रसूलल्लाह ! येह चीज़ तो आज आप की उम्मत में बहुत है, आप ने फ़रमाया : मेरे बाद कुछ वक्त ऐसा ही होगा।
अहमद वगैरा ने अस्नादे हसन के साथ रिवायत की है : जब तेरे अन्दर चार चीजें हों तो दुनिया की कोताहियां तुझे नुक्सान नहीं देंगी, अमानत की निगहबानी, रास्त गोई, हुस्ने खुल्क और रिज्के हलाल।
तबरानी की हदीस है : उस के लिये खुश खबरी है जिस का कसब उम्दा, बातिन सहीह, ज़ाहिर बा इज्जत और लोग उस के शर से महफूज़ हों, उसे खुश खबरी हो जिस ने इल्म के साथ अमल किया, जाइद माल राहे खुदा में खर्च किया और गैर ज़रूरी बातें करने से इजतिनाब किया।
हलाल खाने से दुआ कुबूल होगी
तबरानी में है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : ऐ सा’द ! हलाल का खाना खा, तेरी दुआएं कबूल होंगी, कसम है उस ज़ात की जिस के कब्जए कुदरत में मुहम्मद की जान है जब आदमी अपने पेट में हराम का लुक्मा डालता है तो इस की वज्ह से उस की चालीस दिन की इबादत कबूल नहीं होती, जो बन्दा हराम से अपना गोश्त बढ़ाता है। (जहन्नम की) आग उस के बहुत करीब होती है।
मुस्नदे बज्जाज़ में ब सनदे मुन्कर रिवायत है कि उस का दीन नहीं जिस में अमानत नहीं और न उस शख्स की नमाज़ और ज़कात है जिस ने हराम का माल पाया और इस में से कमीस पहन ली, उस की नमाज़ क़बूल नहीं होगी, जब तक कि वोह इसे उतार नहीं देता क्यूंकि शाने इलाही इस चीज़ से बुलन्दो बाला है कि वोह ऐसे शख्स की नमाज़ कबूल करे या कोई और अमल कबूल करे कि जिस के जिस्म पर हराम का लिबास हो ।
अहमद ने हज़रते इब्ने उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है : उन्हों ने फ़रमाया : जिस शख्स ने दस दिरहम का कपड़ा खरीदा और उस में एक दिरहम हराम का था, जब तक वोह कपड़ा उस के जिस्म पर रहता है, अल्लाह तआला उस की नमाज़ क़बूल नहीं फ़रमाता, फिर उन्हों ने अपने दोनों कानों में दो उंगलियां दाखिल कर के फ़रमाया कि अगर मैं ने नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को येह फ़रमाते हुवे न सुना हो तो येह दोनों बहरे हो जाएं ।
बैहक़ी की रिवायत है कि जिस ने चोरी का माल खरीदा हालांकि वोह जानता है कि येह चोरी का माल है तो वोह भी उस की रुस्वाई और गुनाह में शरीक होगा।
हाफ़िज़ मुन्ज़िरी ने काबिले हसन अस्नाद या मौकूफ़ सनद के साथ और अहमद ने ब सनदे जय्यद येह हदीस नक्ल की है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : कसम है उस की जिस के दस्ते कुदरत में मेरी जान है कि तुम में से कोई अपनी रस्सी ले कर पहाड़ की तरफ़ निकल जाए और लकड़ियां इकठ्ठी कर के पीठ पर लाद कर ले आए और उन्हें बेच कर खाए वोह इस से बेहतर है कि वोह अपने मुंह में हराम का लुक्मा डाले ।
इब्ने खुजमा और इब्ने हब्बान ने अपनी सहीह में और हाकिम ने येह हदीस नक्ल की है कि जिस ने हराम का माल जम्अ किया, फिर इसे सदक़ा कर दिया तो उसे कोई अजर नहीं मिलेगा और उस का गुनाह उसी पर रहेगा।।
तबरानी की हदीस है कि जिस ने माले हराम हासिल कर के उस से किसी को आज़ाद किया और सिलए रेहमी की, येह उस के लिये सवाब की बजाए अज़ाब और गुनाह का मूजिब होगा।
अहमद वगैरा ने येह हदीस नक्ल की है जिस की सनद को बा’ज़ मुहद्दिसीन ने हसन कहा है कि अल्लाह तआला ने जैसे तुम्हारे दरमियान रिज्क तक्सीम कर दिया है ऐसे ही आदात तक्सीम कर दी हैं।
अल्लाह तआला हर इन्सान को, ख्वाह वोह दुनिया को अच्छा समझता हो या बुरा, दुनिया देता है और दीन उसे देता है जो दीन को पसन्द करता है और अल्लाह तआला जिसे दीन देता है उसे महबूब रखता है, ब खुदा ! बन्दा उस वक्त तक कामिल मुसलमान नहीं बनता जब तक कि उस की ज़बान और दिल इस्लाम न लाए और उस की ज़बान और दिल से लोग सलामत न रहें
और उस वक्त तक बन्दा मोमिन नहीं बनता जब तक उस के हमसाए उस के कीने और जुल्म से महफूज़ न हों और बन्दा हराम की कमाई से जो कुछ हासिल करता है उस में से उस का सदक़ा कबूल नहीं होता और न ही राहे खुदा में उस को देने से उस के माल में बरकत होती है और जो माल वोह अपने पीछे छोड़ जाता है वोह उस के लिये जहन्नम का सामान होता है, बेशक अल्लाह तआला बुराई से बुराइयों को नहीं मिटाता बल्कि नेकियों से बुराइयों को मिटाता है, बेशक ख़बीस चीज़ से ख़बीस चीज़ नहीं मिटती ।
तिर्मिज़ी ने हसन, सहीह और गरीब क़रार दे कर येह हदीस नक्ल की है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से उन चीजों के बारे में पूछा गया जिन की वज्ह से अक्सर लोग जहन्नम में जाएंगे, आप ने फ़रमाया : मुंह और शर्मगाह, और उन चीज़ों के मुतअल्लिक़ सुवाल किया गया जिन के सबब अक्सर लोग जन्नत में जाएंगे, आप ने फ़रमाया : खौफे खुदा और हुस्ने खुल्क।
हराम माल खाने माल हड़पने का क़यामत में अज़ाब
तिर्मिज़ी ने ब सनदे सहीह येह हदीस रिवायत की है कि बन्दा उस वक्त तक कियामत के दिन नहीं हिलेगा जब तक कि उस से चार चीजों का सुवाल नहीं हो जाएगा, उस ने अपनी उम्र कैसे पूरी की, अपनी जवानी किन कामों में सर्फ की, माल कैसे हासिल किया और कहां खर्च किया और अपने इल्म पर कितना अमल किया
बैहक़ी की हदीस है कि दुनिया सर सब्ज़ और शीरीं है, जिस शख्स ने इस में हलाल तरीके से माल कमाया और इसे सहीह तौर पर खर्च किया, अल्लाह तआला उसे इस का सवाब देगा
और उसे जन्नत में दाखिल फ़रमाएगा और जिस ने इस में नाजाइज़ तरीकों से माल कमाया और नाजाइज़ तरीकों से इसे खर्च किया, अल्लाह तआला उसे जहन्नम में भेजेगा और उन बहुत से लोगों के लिये जो माल की महब्बत में अल्लाह और उस के रसूल को भूल जाते हैं, कियामत के दिन जहन्नम होगा। अल्लाह तआला फ़रमाता है :
जब वोह बुझने लगेगी हम उस की सोज़िश और ज़ियादा कर देंगे। इब्ने हब्बान ने अपनी सहीह में येह हदीस नक्ल की है कि जो गोश्त और खून हराम के माल से पैदा हुवा उस पर जन्नत हराम है और जहन्नम उस की ज़ियादा मुस्तहिक़ है।
तिर्मिज़ी की रिवायत है कि जो गोश्त माले हराम से परवरिश पाता है, आग उस के लिये ज़ियादा मुनासिब है। एक रिवायत में है कि जो गोश्त नाजाइज़ तरीकों से हासिल कर्दा माल से परवरिश पाए, उस के लिये आग ज़ियादा मुनासिब है।
एक और रिवायत में ब सनदे हसन नक्ल किया गया है कि वोह जिस्म जन्नत में नहीं जाएगा जिस ने हराम माल से गिजा हासिल की हो ।
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
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Haram khane ka azaab, haram se bachne ki hadees, haram maal hadees, dua kubul nahi hoti,