ज़ुल्म करने की मनाही
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
फ़रमाने इलाही है : “और अन क़रीब ज़ालिम जान लेंगे कौन सी फिरने की जगह फेरे जाएंगे। फ़रमाने नबवी है कि जुल्म कियामत के दिन तारीकी होगी।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने मजीद फ़रमाया : जो शख्स एक बालिश्त जमीन जुल्म से हासिल कर लेता है, अल्लाह तआला उस के गले में सातों ज़मीनों का तौक डालेगा।
बा’ज़ कुतुब में मरकूम है कि अल्लाह तआला फ़रमाता है : उस आदमी पर जुल्म मेरे गज़ब को भड़का देता है जिस का मेरे सिवा कोई मददगार नहीं है। किसी शाइर ने क्या खूब कहा है :
जब तू साहिबे इक्तिदार हो तो किसी पर हरगिज़ जुल्म न कर क्यूंकि जुल्म का अन्जाम शर्मिन्दगी है। तेरी आंखें सोएंगी मगर मज़लूम की आंखें जाग कर तेरे लिये अल्लाह तआला से बद दुआ करेंगी और अल्लाह तआला कभी सोता नहीं है।
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दूसरा शाइर कहता है :
जब मज़लूम ज़मीन पर चले और ज़ालिम बुरे आ’माल में हद से ज़ियादा बढ़ जाए, तो तू उस को मसाइबे ज़माना के सिपुर्द कर दे क्यूंकि ज़माना उसे वोह सबक़ देगा जो उस के वहमो गुमान में भी नहीं होगा।
अस्लाफ़े किराम में से बा’ज़ का कौल है कि कमज़ोरों पर जुल्म न कर, वरना तू बद तरीन ताकतवरों में से हो जाएगा।
हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि ज़ालिम के जुल्म की वज्ह से जज्र (सुरखाब) अपने आश्याने में मर जाता है।
कहते हैं : तौरैत में मरकूम था कि पुल सिरात के इस तरफ़ मुनादी निदा करेगा : ऐ सरकश ज़ालिमो ! ऐ बद बख़्त ज़ालिमो ! बेशक अल्लाह तआला ने अपनी इज्जत की कसम खाई है कि आज ज़ालिम का जुल्म पुल सिरात से नहीं गुज़रेगा (ज़ालिम पुल सिरात से नहीं गुज़र सकेंगे)।
हज़रते जाबिर रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि जब मुहाजिरीने हबशा हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की ख़िदमत में वापस लौट कर आ गए तो आप ने उन से फ़रमाया कि तुम ने हबशा में कोई अजीब बात देखी हो तो मुझे बतलाओ ! हज़रते कुतैबा रज़ीअल्लाहो अन्हो उन्ही मुहाजिरीन में से थे, उन्हों ने अर्ज की : या रसूलल्लाह ! सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मेरी तरफ़ तवज्जोह फ़रमाइये ! मैं बतलाता हूं : हम एक दिन बैठे हुवे थे कि हबशा की एक बूढ़ी औरत सर पर पानी का बरतन रखे जा रही थी, जब वोह एक हबशी जवान के करीब से गुज़री तो उस ने खड़े हो कर बुढ़िया के दोनों कन्धों पर हाथ रख कर उसे धक्का दिया जिस से बुढ़िया घुटनों के बल जा गिरी और उस का मटका टूट गया, वोह उठी और जवान की तरफ़ मुतवज्जेह हो कर कहने लगी : ऐ गद्दार ! तू अन करीब जान लेगा जब कि अल्लाह तआला अदालत फ़रमाएगा और पहले पिछले सब लोगों को जम्अ करेगा और हाथ पाउं आदमी के आ’माल की गवाही देंगे। अल्लाह के यहां तू भी अपना और मेरा फ़ैसला कल सुन लेगा। रावी कहते हैं : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने येह सुन कर फ़रमाया कि अल्लाह तआला ऐसी कौम को कैसे फलाह देगा जो ताकतवरों से कमज़ोरों को बदला नहीं दिला सकती।।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मरवी है : आप ने फ़रमाया : पांच आदमी ऐसे हैं जिन पर अल्लाह तआला गज़बनाक होता है, अगर वोह चाहेगा तो दुन्या में उन्हें अपने गज़ब का निशाना बनाएगा वरना (आखिरत में) उन्हें जहन्नम में डालेगा :
(1)हाकिमे कौम जो खुद तो लोगों से अपने हुकूक ले लेता है मगर उन्हें उन के हुकूक नहीं देता
और उन से जुल्म को दफ्अ नहीं करता।
2 कौम का काइद, लोग जिस की पैरवी करते हैं और ताकतवर और कमज़ोर के दरमियान फैसला नहीं कर सकता और ख्वाहिशाते नफ़्सानी के मुताबिक़ गुफ्तगू करता है (हदीस में हज़रते कुतैबा के बजाए सहाबिय्या का जिक्र है)
3 घर का सरबराह जो अपने घर वालों और औलाद को अल्लाह की इताअत का हुक्म नहीं देता और उन्हें दीनी उमूर की ता’लीम नहीं देता।
4) ऐसा आदमी जो उजरत पर मजदूर लाता है और काम मुकम्मल करवा के उस की उजरत पूरी नहीं देता, और
5 वोह आदमी जो अपनी बीवी का हक्के महर दबा कर उस पर ज़ियादती करता है।
हज़रते अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है, आप ने फ़रमाया : अल्लाह तआला ने जब मख्लूक को पैदा फ़रमाया और वोह खड़े हो गए तो उन्हों ने अल्लाह की तरफ़ सर उठा कर देखा और कहा : ऐ अल्लाह ! तू किस के साथ होगा ? रब्बे जलील ने फ़रमाया : मज़लूम के साथ यहां तक कि उसे उस का हक़ दिया जाए।
एक बुढ़िया पर जुल्म के बाइस हलाकत
वह्न बिन मुनब्बेह रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं : किसी ज़ालिम बादशाह ने शानदार महल बनवाया, एक मुफ्लिस बुढ़िया आई और उस ने महल के पहलू में अपनी कुटया बना ली जिस में वोह सुकून से रहती थी एक मरतबा जालिम बादशाह ने सवार हो कर महल के इर्द गिर्द चक्कर लगाया तो उसे बुढ़िया की कुटया नज़र आई, उस ने पूछा : येह किस की है ? कहा गया : येह एक बुढ़िया की है और वोह इस में रहती है चुनान्चे, उस ने हुक्म दिया कि इसे गिरा दो लिहाजा उसे गिरा दिया गया, जब बुढ़िया वापस आई तो उस ने अपनी मुन्हदिम कुटया देख कर पूछा कि इसे किस ने गिरा दिया है ? लोगों ने कहा : इसे बादशाह ने देखा और गिरा दिया, तब बुढ़िया ने आस्मान की तरफ़ सर उठाया और कहा : ऐ अल्लाह ! अगर मैं हाज़िर नहीं थी तो तू कहां था ? अल्लाह तआला ने जिब्रील अलैहहिस्सलाम को हुक्म दिया : महल को इस के रहने वालों पर उलट दो और ऐसा ही किया गया।
कहते हैं कि एक बरमकी अमीर और उस के बेटे को जब एक अब्बासी अमीरुल मुस्लिमीन ने कैद कर दिया तो बेटे ने कहा : ऐ अब्बा जान ! हम बा इज्जत होने के बाद कैद कर दिये गए हैं, बाप ने जवाब दिया, बेटे ! मजलूमों की फरयादें रातों को सफ़र करती रहीं, हम उन से गाफ़िल रहे मगर अल्लाह तआला उन से गाफ़िल नहीं था। यज़ीद बिन हकीम कहा करते थे : मैं कभी किसी से खौफजदा नहीं हुवा अलबत्ता मुझे एक शख्स ने डरा दिया या’नी मैं ने उस पर येह जानते हुवे जुल्म किया कि अल्लाह के सिवा उस का कोई मददगार नहीं है, वोह मुझ से कहता था कि मुझे अल्लाह काफ़ी है, अल्लाह तआला तेरे और मेरे दरमियान फैसला करेगा।
हज़रते अबी उमामा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : ज़ालिम कियामत के दिन आएगा जब वोह पुल सिरात पर पहुंचेगा तो उसे मज़लूम मिल जाएगा और वोह अपने जुल्म को खूब पहचान लेगा लिहाज़ा ज़ालिम मज़लूमों से नजात नहीं पाएंगे यहां तक कि जुल्म के बदले उन की नेकियां ले लेंगे और उन की नेकियां नहीं होंगी तो उन के जुल्म के बराबर अपने गुनाह ज़ालिमों पर डाल देंगे यहाँ तक की ज़ालिम जहन्नम के सब से निचले तबके में भेजे जाएंगे।
हज़रते अब्दुल्लाह बिन अनीस रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि मैं ने रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को येह फ़रमाते सुना है : क़ियामत के दिन लोग नंगे बदन, नंगे पाउं, गैर मखतूं, सियाह सूरतों में उठेंगे । पस मुनादी निदा करेगा : जिस की आवाज़ ऐसी होगी जो दूरो नज़दीक है कि वोह जन्नत में जाए बा वुजूद येह कि उस पर किसी जहन्नमी की दाद ख़्वाही रहती हो चाहे वोह एक थप्पड़ ही क्यूं न हो या इस से ज़ियादा हो और कोई जहन्नमी जहन्नम में न जाए दर-आं-हाल येह किर) उस पर किसी का हक रहता हो, चाहे वोह एक थप्पड़ हो या इस से ज़ियादा हो
और तेरा रब किसी एक पर भी जुल्म नहीं करेगा, हम ने अर्ज की : या रसूलल्लाह ! येह कैसे हो सकेगा हालांकि हम तो उस दिन नंगे बदन, नंगे पाउं होंगे, आप ने फ़रमाया : नेकियों और बुराइयों के साथ मुकम्मल बदला दिया जाएगा और तुम्हारा रब किसी एक पर जुल्म नहीं करेगा।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मरवी है : जो नाहक एक चाबुक मारता है, क़ियामत के दिन उस का बदला लिया जाएगा ।
हिकायत – उस्ताद ने शहजादे को ज़ुल्म की सीख
किसरा ने अपने बेटे के लिये एक उस्ताद मुकर्रर किया जो उसे तालीम देता था और अदब सिखाता, जब वोह बच्चा मुकम्मल तौर पर इल्मो फज्ल से बहरा वर हो गया तो उस्ताद ने उसे बुलाया और बिगैर किसी जुर्म और बिगैर किसी सबब के उसे इन्तिहाई दर्दनाक सज़ा दी, उस लड़के ने अपने उस्ताद के इस रविय्ये को बहुत ही बुरा समझा और दिल में उस की तरफ़ से अदावत पैदा हो गई यहां तक कि वोह जवान हो गया, उस का बाप मर गया और बाप के बाद वोह बादशाह बन गया। बादशाही संभालते ही उस ने उस्ताद को बुला कर पुछा : आप ने फलां दिन बिगैर किसी जुर्म और बिगैर किसी सबब मुझे इतनी दर्दनाक सज़ा क्यूं दी थी ? उस्ताद ने कहा : ऐ बादशाह ! जब तू इल्मो फ़न के कमाल तक पहुंच गया तो मुझे मालूम हो गया कि बाप के बाद तू बादशाह बनेगा, में ने सोचा तुझे सज़ा का जाइका और जुल्म की तक्लीफ से मुवाफिक कर दूं ताकि तू इस के बा’द किसी पर जुल्म न करे, बादशाह ने कहा : अल्लाह तआला आप को जज़ाए खैर दे और फिर उन का वज़ीफ़ा मुकर्रर कर दिया और उन के अख़राजात की अदाएगी का हुक्म सादिर कर दिया।
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
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