अजाबे जहन्नम का खौफ
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
बुखारी शरीफ़ की हदीस है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम अक्सर येह दुआ फ़रमाया करते थे : ऐ हमारे रब हम को दुन्या में नेकी और आखिरत में नेकी अता फ़रमा और हम को आग के अज़ाब से बचा। अबू या’ला की रिवायत है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने एक दिन खुतबा दिया और फ़रमाया : दो अज़ीम चीजों जन्नत और जहन्नम को न भूलो। फिर आप रोए यहां तक कि आंसू जारी हो गए या आप के मुबारक आंसूओं ने आप की दाढ़ी मुबारक के दोनों पहलूओं को तर कर दिया और आप ने फ़रमाया : अगर तुम जानते जो कुछ आख़िरत के बारे में मैं जानता हूं तो तुम मिट्टी पर चलते और अपने सरों पर ख़ाक डालते ।
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तबरानी ने अवसत में येह रिवायत नक्ल की है कि जिब्रील अलैहहिस्सलाम ऐसे वक्त में हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के पास आए जिस वक्त में वोह कभी नहीं आया करते थे चुनान्चे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम जिबील के लिये खड़े हुवे और पूछा : जिब्रील ! क्या बात है कि मैं तुम्हारा रंग मुतग़य्यर देखता हूं ? जिब्रील ने कहा : मैं आप के पास इस लिये आया हूं कि अल्लाह तआला ने जहन्नम को मजीद दहकाने का हुक्म दिया है। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : ऐ जिब्रील ! मुझे जहन्नम की हक़ीक़त बतलाओ या जहन्नम के अवसाफ़ बयान करो।
जिब्रील ने कहा : अल्लाह तआला ने जहन्नम को दहकाने का हुक्म दिया और उसे एक हज़ार साल रोशन किया गया और भड़काया गया यहां तक कि वोह सफ़ेद हो गई फिर हुक्म हुवा और उसे फिर एक हज़ार साल तक भड़काया गया हत्ता कि वोह सुर्ख हो गई, फ़िर मजीद एक हज़ार साल उसे भड़काने का हुक्म मिला यहां तक कि वोह तारीक हो गई, अब वोह सियाह व तारीक है, उस में कोई चिंगारी भी रोशन नज़र नहीं आती और न ही कभी उस का भड़कना ख़त्म होता है।
कसम है रब्बे जुल जलाल की जिस ने आप को हक़ के साथ नबी बना कर मबऊस फ़रमाया है ! अगर जहन्नम को सूई के सूराख के बराबर खोल दिया जाए तो उस की गर्मी से दुन्या की तमाम मख्लूक मर जाए, ब खुदा ! जिस ने आप को हक़ के साथ मबऊस फ़रमाया है, अगर जहन्नम के निगहबान फ़िरिश्तों में से कोई फ़िरिश्ता दुन्या में ज़ाहिर हो जाए तो तमाम अहले दुन्या उस की बद सूरती देख कर और उस की बदबू सूंघ कर मर जाएं। ब खुदा ! जिस ने आप को हक़ के साथ मबऊस फ़रमाया है अगर जहन्नम की जन्जीरों का एक हल्का जिन का अल्लाह तआला ने अपनी मुक़द्दस किताब में जिक्र किया है दुन्या के पहाड़ों पर रख दिया जाए तो वोह पिघल जाएं और वोह हल्का सब से निचली ज़मीन पर जा ठहरे।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने येह सुन कर फ़रमाया : ऐ जिब्रील ! मुझे इतना ही काफ़ी है मेरा जिगर टुकड़े टुकड़े न करो कि मैं इन्तिकाल कर जाऊं ! तब आप ने जिब्रील अलैहहिस्सलाम को देखा वोह रो रहे थे, आप ने फ़रमाया : जिब्रील तुम रोते हो ? हालांकि तुम्हारा अल्लाह के हां एक ख़ास मर्तबा है, जिबील ने कहा : मैं कैसे न रोऊ हालांकि मैं रोने का ज़ियादा हक़दार हूं, शायद कि मैं अल्लाह तआला के इल्म में इस हाल से किसी दूसरे हाल में लिखा गया होऊ और मैं नहीं जानता कहीं मुझे भी आजमाइश में न डाल दिया जाए जैसा कि इब्लीस को आज़माइश में डाल कर ज़लीलो रुस्वा कर दिया गया है, वोह भी तो फ़रिश्तों में था और मैं नहीं जानता कि मुझे भी कहीं हारूत व मारूत की तरह मसाइब में मुब्तला न कर दिया जाए।
रावी कहते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम येह सुन कर रोने लगे और जिब्रील भी रोने लगे दोनों हज़रात बराबर रोते रहे ता आंकि निदा की गई : ऐ जिब्रील और ऐ मुहम्मद ! अल्लाह तआला ने तुम्हें मामून कर दिया है तुम उस की ना फ़रमानी नहीं करोगे । जिब्रील अलैहहिस्सलाम येह सुनते ही परवाज़ कर गए और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम अन्सार के ऐसे लोगों के पास से गुज़रे जो बज़्ला सन्जियों में मसरूफ़ थे और हंस रहे थे। आप ने फ़रमाया : क्या तुम हंसते हो और तुम्हारे पीछे जहन्नम है, पस अगर तुम जान लेते जो मैं जान चुका हूं तो तुम कम हंसते और ……मज़ाक मस्खरियों में ज़ियादा रोते, खाना पीना छोड़ देते और बुलन्द पहाड़ों की तरफ़ निकल जाते ताकि अल्लाह की रजामन्दी के लिये खुद पर रियाज़त व मेहनत को मुसल्लत कर सको। तब निदा की गई कि ऐ मुहम्मद ! सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मेरे बन्दों को ना उम्मीद न करो, मैं ने आप को खुश खबरी देने वाला बना कर भेजा है आप को मशक्कतों में डालने वाला बना कर नहीं भेजा, तब हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : अपने आ’माल दुरुस्त करो और कुर्बे इलाही हासिल करो।
मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने जिब्रील . से फ़रमाया : क्या बात है मैं ने मीकाईल अलैहहिस्सलाम को कभी हंसते हुवे नहीं देखा ? जिब्रील ने अर्ज़ किया कि जब से आग को पैदा किया गया है, मीकाईल कभी नहीं हंसे ।
जहन्नम की आग कैसी है ?
इब्ने माजा और हाकिम की हदीस है जिसे हाकिम ने सहीह कहा है कि तुम्हारी येह आग जहन्नम की आग का सत्तरवां जुज़ है और अगर वोह दो मरतबा रहमत के पानी से न बुझाई जाती तो तुम उस से फ़ाइदा हासिल न कर सकते और येह आग अल्लाह तआला से दुआ मांगती है कि मुझे दोबारा जहन्नम में न भेजना ।
बैहक़ी ने रिवायत की है कि हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने येह आयत पढ़ी : “जब गल जाएंगे उन के चमड़े तो हम बदल देंगे उन के लिये दूसरे चमड़े ताकि वोह अज़ाब चखें”। और हज़रते का’ब रज़ीअल्लाहो अन्हो से कहा कि मुझे इस की तफ्सीर बतलाओ अगर आप ने सच कहा तो मैं आप की तस्दीक करूंगा वरना आप की बात रद्द कर दूंगा । हज़रते का’ब रज़ीअल्लाहो अन्हो बोले कि इन्सान का चमड़ा जलेगा और उसी लम्हा नया हो जाएगा या हर दिन में छे हज़ार मरतबा नया होगा, हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने कहा : वाकेई आप ने सच कहा ।
बैहकी ने इस आयत के तहत हज़रते हसन बसरी रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल नक्ल किया है कि उन्हें हर दिन में सत्तर हज़ार मरतबा आग खाएगी और हर मरतबा जब कि उन्हें आग जलाएगी और फिर पहले की तरह हो जाएंगे।
मुस्लिम शरीफ़ की एक हदीस में है कि दुन्या में सब से ज़ियादा दुन्यावी ने’मतें पाने वाले जहन्नमी को लाया जाएगा, उसे जहन्नम में एक गोता दे कर पूछा जाएगा कि ऐ इन्सान ! तू ने कभी ऐश भी देखी है या तुझ पर कभी इन्आमात की बारिश भी हुई है? वोह कहेगा : नहीं ! ब खुदा ! ऐ अल्लाह कभी भी नहीं । फिर दुन्या में सब से ज़ियादा मसाइब बरदाश्त करने वाले जन्नती को लाया जाएगा और उसे जन्नत का चक्कर लगवा कर पूछा जाएगा : ऐ इन्सान ! तू ने कभी तंगदस्ती देखी है या तुझ पर कभी मसाइब भी आए थे? वोह कहेगा : नहीं ! ब खुदा ! ऐ अल्लाह कभी भी मैं ने तंगदस्ती और दुख तक्लीफ़ नहीं देखे ।
दोज़खियों पर शेना मुसल्लत कर दिया जाएगा
इब्ने माजा की रिवायत है कि जहन्नमियों पर रोना मुसल्लत किया जाएगा वोह रोएंगे यहां तक कि उन के आंसू ख़त्म हो जाएंगे, फिर वोह खून रोएंगे यहां तक कि उन के चेहरों में गढ़ों जैसे गढ़े होंगे कि अगर उन में किश्तियां छोड़ दी जाएं तो वोह चलने लगें।
अबू या’ला की हदीस है : ऐ लोगो ! रोओ, अगर तुम्हें रोना नहीं आता तो रोने की सी सूरत बनाओ, क्यूंकि जहन्नमी जहन्नम में रोएंगे यहां तक कि उन के आंसू उन के रुख्सारों पर ऐसे बहेंगे जैसे उन के रुख्सार नरें हों, फिर आंसू ख़त्म हो जाएंगे और वोह खून रोएंगे ता आंकि उन की आंखें ज़ख्मों से लहू लुहान हो जाएंगी ।
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
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