फज़ीलते कनाअत – कनाअत (संतोष) फ़ज़ीलतें और बरकतें
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
फ़कीर के लिये ज़रूरी है कि वो कानेअ (कम चीज़ पर राज़ी होने वाला) हो, मख्लूकात से उम्मीदें वाबस्ता न करे, उन के अम्वाल पर निगाह न रखे और न ही मालो दौलत के हुसूल में हरीस हो, यह उस वक्त मुमकिन है जब इन्सान ब कदरे ज़रूरत अपने खाने पीने पहनने और रिहाइश की चीजों पर मुतमइन हो जाए और हर मामूली चीज़ पर इक्तिफ़ा करे और अपनी उम्मीदें एक दिन या एक माह से ज़ियादा तवील न करे, क्यूंकि कसरत की तलब और तूले अमल से कनाअत का महूम ख़त्म हो जाता है. और इन्सान हिर्स और लालच में मुब्तला हो जाता है, फिर येही तम्अ और लालच उसे बद अख़्लाकी और बुराइयों पर आमादा करते हैं जिन से इन्सान की अच्छी आदात तबाह हो जाती हैं और हिर्स व तम्अ उस की फ़ितरते सानिया बन जाते हैं।
इन्सान के पेट को कब्र की मिट्टी ही भरती है
फ़रमाने नबवी है : अगर इन्सान को सोने की दो वादियां भी मिल जाएं तो वो तीसरी की तमन्ना करेगा, इन्सान के पेट को कब्र की मिट्टी ही पुर करती है और अल्लाह तआला तौबा करने वाले की तौबा को क़बूल फ़रमा लेता है।
हज़रते अबू वाक़िदी अल्लैसी रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि जब हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम पर वहयी नाज़िल होती तो हम ब गरजे ता’लीम हाज़िर होते, एक मरतबा हम हाज़िर हुवे तो आप ने फ़रमाया : अल्लाह तआला फ़रमाता है : हम ने मालो दौलत नमाज़ व ज़कात की अदाएगी के लिये दिया है, अगर इन्सान को सोने की एक वादी मिल जाए तो वो दूसरी की तमन्ना करेगा अगर दूसरी मिल जाए तो तीसरी की आरजू करेगा, इन्सान के पेट को क़ब्र की मिट्टी ही भर सकती है और अल्लाह तआला हर तौबा करने वाले की तौबा कबूल कर लेता है।
हज़रते अबू मूसा अश्अरी रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : सूरए बराअत जैसी एक और सूरत भी नाज़िल हुई थी जो बाद में उठा ली गई, उस में था कि अल्लाह तआला इस दीन की ऐसी कौमों से इमदाद करवाएगा जिन के लिये भलाई में कोई हिस्सा नहीं होगा और अगर इन्सान को
दौलत की दो वादियां दे दी जाएं तो वो तीसरी वादी की तमन्ना करेगा, इन्सान का पेट कब्र की मिट्टी ही भरेगी और अल्लाह तआला तौबा करने वाले की तौबा को कबूल करता है ।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फ़रमान है : दो भूके कभी सैर नहीं होते, इल्म का भूका और दौलत का भूका ।
फ़रमाने नबवी है कि इन्सान बूढ़ा हो जाता है मगर दो चीजें जवान हो जाती हैं, हिर्स और दौलत की महब्बत ।
चूंकि येह खस्लत इन्सान को गुमराह कर देती है इस लिये अल्लाह तआला और उस के रसूल सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने कनाअत की तारीफ़ फ़रमाई है, चुनान्चे, फ़रमाने नबवी है कि उस शख्स के लिये खुश खबरी है जो इस्लाम के रास्ते पर चला और ज़िन्दगी की मामूली गुज़रान पर कनाअत कर ली।
फ़रमाने नबवी है : क़ियामत के दिन हर अमीर और फ़क़ीर येह तमन्ना करेगा कि इसे दुनिया में मामूली गिजा मुयस्सर आती ।
फ़रमाने नबवी है कि तवंगरी माल की कसरत से नहीं है बल्कि हकीकी मालदारी दिल की बे परवाई है।
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दुनिया की बहुत जुस्तजू मत करो
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हिर्स और दुनिया की बहुत जुस्तजू करने से मन्अ फ़रमाते हुवे इरशाद फ़रमाया कि ऐ लोगो ! अच्छे तरीके से रिज्क हासिल करो क्यूंकि बन्दे को वो ही कुछ मिलता है जो उस की किस्मत में लिख दिया गया है और कोई इन्सान अपना रिज्क खत्म किये बिगैर दुनिया से नहीं जाएगा।
मरवी है कि हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह ता आला से सवाल किया : तेरा कौन सा बन्दा ज़ियादा गनी है ? इरशादे रब्बानी हुवा : जो मेरे अता कर्दा रिज्क पर कनाअत करता है, फिर पूछा : आदिल कौन है ? रब तआला ने फ़रमाया : जो अपने आप से इन्साफ़ करता है।
हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : रूहुल कुद्स ने मुझे खबर दी है कि कोई शख्स दुनिया से अपना रिज्क पूरा किये बिगैर नहीं जाएगा लिहाज़ा अल्लाह तआला से डरो और रिज्के हलाल हासिल करो ।
हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि मुझे हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जब तुझे भूक लगे तो एक रोटी और पानी का पियाला तेरे लिये काफ़ी है और दुनिया की मजीद ख्वाहिश हलाकत है।
हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि मुझे हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : परहेज़गार बन ! तू सब से बड़ा आबिद होगा, कनाअत कर ! तू सब से बड़ा शुक्र गुज़ार होगा, जो अपने लिये पसन्द करता है वो ही दूसरों के लिये पसन्द कर ! तू मोमिन होगा।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने लालच से मन्अ फ़रमाया
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने लालच से मन्अ फ़रमाया है चुनान्चे, हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि एक बदवी ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में अर्ज की : मुझे एक मुख्तसर नसीहत कीजिये ! आप ने फ़रमाया : हर नमाज़ को ज़िन्दगी की आखिरी नमाज़ समझ कर पढ़ ! कोई ऐसी बात न कर जिस पर कल मा’ज़िरत करनी पड़े और लोगों के माल से उम्मीद न रख ।
हज़रते औफ़ बिन मालिक अल अशजई रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हम सात, आठ या नव आदमी हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के साथ बैठे हुवे थे, आप ने फ़रमाया : तुम रसूलल्लाह की बैअत नहीं करते ? चुनान्चे, हम ने हाथ बढ़ा कर बैअत की, हम में से किसी ने पूछा : या रसूलल्लाह ! आप ने हम से किस चीज़ की बैअत ली ? आप ने फ़रमाया : यह कि अल्लाह की इबादत करो, उसे ला शरीक समझो, पांच नमाजें पढ़ो, सुनो और इताअत करो, एक बात आप ने
आहिस्ता की, फिर फ़रमाया : और लोगों से किसी चीज़ का सवाल न करो। रावी कहते है कि हम में से कुछ ऐसे भी थे जिन का अगर कोड़ा गिर जाता तो वोह किसी से उठा कर देने का सवाल न करते ।
हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो का फ़रमान है : लालच को तर्क, फ़क़र और लोगों से ना उम्मीदी गना है, जो लोगों के मालो दौलत से ना उम्मीद रहता है वो सब से बे परवा हो जाता है।
किसी दाना से मालदारी के मा’ना पूछे गए तो उस ने जवाब दिया कि मुख़्तसर उम्मीदें और मा’मूली गुज़रान पर राज़ी होने का नाम गना है, इसी लिये कहा गया है :
..ऐश की सिर्फ चन्द घड़ियां हैं और कारहाए नुमायां अन्जाम देने के लिये वक्त कम है। .तू कनाअत कर उस ऐश पर जो तुझ को हासिल है और ख्वाहिशाते नफ्सानी को छोड़ कर आज़ाद हो जा और ऐश की ज़िन्दगी बसर कर। .बहुत से वो लोग जिन को मौत आई वोह सोना चांदी और लअलो जवाहिर छोड़ कर मर गए।
हज़रते मुहम्मद बिन वासेअ रहमतुल्लाह अलैह खुश्क रोटी पानी में भिगो कर खाते और कहते : जो इस पर कनाअत कर ले वो ह किसी का मोहताज नहीं होगा।
बेहतरीन दौलत क्या है?
हज़रते सुफ्यान का कौल है कि तुम्हारे लिये बेहतरीन दौलत वो है जो तुम्हारे कब्जे में नहीं है और कब्जे में आई हुई दौलत में वो बेहतरीन दौलत है जो तुम्हारे हाथ से निकल गई है।
हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : हर दिन एक फ़रिश्ता पुकार कर कहता है कि ऐ इन्सान ! गुमराह करने वाले बहुत से माल से वो ह मा’मूली माल बेहतर है जो तुझे ज़िन्दा रहने में मदद दे।
हज़रते सुमैत् बिन अजलान रहमतुल्लाह अलैह का फ़रमान है कि ऐ इन्सान तेरा बालिश्त भर पेट तुझे जहन्नम में न ले जाए। किसी दाना से पूछा गया : तेरा माल क्या है ? उस ने कहा : ज़ाहिर में पाकीज़गी, बातिन में नेकी और लोगों से ना उम्मीदी।
मरवी है कि रब्बे जुल जलाल ने इन्सान से फ़रमाया : अगर तुझे सारी दुनिया मिल जाती तब भी तुझे इस दुनिया से दो वक्त की खूराक मिलती, अब जब कि मैं ने दुनिया से तुझे सिर्फ खूराक दी है और इस का हिसाब दूसरों पर रख दिया है तो मैं ने येह तुझ पर एहसान किया है।
हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : जब तुम कोई हाजत तलब करो तो थोड़ी मांगो, इतना न मांगो कि दूसरे पर वबाल बन जाओ क्यूंकि जो कुछ तुम्हारा नसीब है वोह तुम्हें ज़रूर मिलेगा।
बनू उमय्या के एक हाकिम ने हज़रते अबू हाज़िम रहमतुल्लाह अलैह की तरफ़ ख़त लिखा जिस में उन से किसी ज़रूरत के मुतअल्लिक़ पूछा गया ताकि वो इसे पूरी कर दें। अबू हाज़िम रहमतुल्लाह अलैह ने जवाब में लिखा, मैं ने अपनी ज़रूरतें अपने मालिक की बारगाह में पेश की हुई हैं, जिन को वो पूरा कर देता है, खुश हो जाता हूं और जिन को वोह रोक देता है उस से कनाअत कर लेता हूं।
किसी दाना से पूछा गया कि कौन सी चीज़ दाना के लिये बाइसे खुशी और दुख दूर करने का सामान है ? दाना ने जवाब दिया कि दाना के लिये सब से बड़ी खुशी नेक अमल और गम दूर करने में उस के मददगार अल्लाह की रिज़ा पर राज़ी रहना है।
एक दाना का कौल है : मैं ने लोगों में सब से गमज़दा हासिद को, सब से बेहतरीन ज़िन्दगी वाला कनाअत पसन्द को, सब से ज़ियादा मसाइब पर सब्र करने वाला लालची को, सब से ज़ियादा खुश तारिके दुनिया को और सब से ज़ियादा पशेमान हद से तजावुज़ करने वाला आलिम को पाया है। इसी मौजूअ पर कहा गया है
.जब जवान इस बात पर मुकम्मल ए’तिमाद करता है कि राजिके मुतलक उसे ज़रूर रिज्क देगा। .तो उस की इज्जत मैली नहीं होती और न ही उस का चेहरा कभी पुराना होता है। .जो शख्स कनाअत इख़्तियार कर लेता है उसे कभी किसी चीज़ की परवाह नहीं हुई और उस पर कभी दुख का साया नहीं पड़ता।
एक और शाइर कहता है :
कब तक मैं इस तरह सफ़र करता रहूंगा और ज़बरदस्त जद्दोजहद और ये आमदो रफ़्त जारी रखूगा? .मैं घर से दूर हमेशा दोस्तों से पोशीदा रहता हूं, उन्हें मेरे हालात का इल्म नहीं होता। .मैं कभी मशरिक़ में होता हूं और कभी मगरिब में, हिर्स का गलबा यूं है कि मेरे दिल में कभी मौत का खयाल ही नहीं आता। .अगर मैं कनाअत करता तो खुशहाली की ज़िन्दगी बसर करता क्यूंकि हकीकी तवंगरी कनाअत में है कसरते मालो दौलत तवंगरी नहीं है।
हजरते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो का इरशाद
हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो का इरशाद है कि क्या मैं तुम्हें न बतलाऊं कि मैं अल्लाह तआला के माल से क्या कुछ लेना हलाल समझता हूं? सुनो ! सर्दी और गर्मी के लिये दो चादरें और इस के इलावा मुझे हज, उमरह और गिजा के लिये कुरैश के मा’मूली जवान की शिकम सैरी के बक़दर गिजा की फ़राहमी । लोगो ! मैं मुसलमानों से आ’ला और अरफ़अ नहीं हूं, ब खुदा मैं नहीं जानता कि इतना लेना भी जाइज़ है या नहीं ? गोया आप इतनी सी मिक्दार में भी शक फ़रमा रहे थे कि कहीं येह कनाअत के दाइरे से खारिज तो नहीं है ?
एक बदवी ने अपने भाई को हिर्स से रोकते हुवे कहा : तुम दुनिया के तालिब हो और उस चीज़ के मतलूब हो जो कभी टल नहीं सकती, तुम ऐसी चीज़ को तलाश कर रहे हो जो पहले ही तुम्हारी हो चुकी है, गोया कि गाइब चीज़ तुम्हारे सामने और हाज़िर चीज़ तुम से मुन्तकिल होने वाली है, शायद तुम ने किसी हरीस को महरूम और किसी तारिके दुनिया को रिज्क पाते हुवे नहीं देखा है, इसी मौजूअ पर किसी शाइर ने कहा है :
..मैं देख रहा हूं कि तेरा तमव्वुल तेरे हिर्स को बढ़ा रहा है गोया कि तू नहीं मरेगा। .कभी तू अपनी हिर्स से रुक कर ये भी कहेगा कि बस मुझे ये काफ़ी है और मैं इस कदर पर राजी हूं। ।
एक हरीस लालची को सबक
हज़रते शा’बी रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं कि एक आदमी ने चन्डोल (चिड़या) को शिकार किया, चिड़या ने कहा : तुम मेरा क्या करोगे? उस आदमी ने कहा : ज़ब्ह कर के खाऊंगा, चिड़या ने कहा : ब खुदा ! मेरे खाने से तुम्हारा पेट नहीं भरेगा, मैं तुम्हें तीन ऐसी बातें बताऊंगी, जो मेरे खाने से कहीं बेहतर हैं, एक तो मैं तुम को इस कैद की हालत में ही बताऊं, दूसरी दरख्त पर बैठ कर और तीसरी पहाड़ पर बैठ कर बताऊंगी।
आदमी ने कहा : चलो ठीक है पहली बात बताओ ! चिड़या ने कहा : याद रखो गुज़री बात पर अपसोस न करना, आदमी ने उसे छोड़ दिया, जब वोह दरख्त पर जा कर बैठ गई तो आदमी ने कहा : दूसरी बात बताओ ! चिड़या ने कहा : ना मुमकिन बात को मुमकिन न समझना। फिर वोह उड़ कर पहाड़ पर जा बैठी और कहने लगी : ऐ बद नसीब ! अगर तू मुझे जब्ह कर देता तो मेरे पोटे से बीस मिस्काल के दो मोती निकलते, येह सुन कर वोह शख्स अफ्सोस से अपने होंट कांटते हुवे कहने लगा कि अब तीसरी बात बता दे ! चिड़या बोली : तुम ने तो पहली दो को भुला दिया है, अब तीसरी बात किस लिये पूछते हो ? मैं ने तुम से कहा था कि गुज़श्ता बात पर अफ्सोस न करना और ना मुमकिन चीज़ को मुमकिन न समझना, मैं तो अपने गोश्त, खून और परों समेत भी बीस मिस्काल की नहीं हूं चे जाएकि मेरे पोटे में बीस बीस मिस्काल के दो मोती हों, येह कहा और वोह उड़ गई।
येह इन्सान के इन्तिहाई हरीस होने की मिसाल है क्यूंकि वोह भी लालच में ना मुमकिन को मुमकिन समझते हुवे राहे हक़ से भटक जाता है।
हज़रते इब्ने सम्माक रहमतुल्लाह अलैह का कौल है : उम्मीदें तेरे दिल का जाल और पैरों की बेड़ियां हैं, दिल से उम्मीदें निकाल दे, तेरे पाउं बेड़ियों से आजाद हो जाएंगे।
हिर्स लालच की बुराई और मजम्मत
हज़रते अबू मुहम्मद अल यज़ीदी रहमतुल्लाह अलैह का कौल है कि मैं ख़लीफ़ा हारूनुर्रशीद के यहां आया तो वो एक ऐसे काग़ज़ को पढ़ रहा था, जिस पर आबे ज़र से कुछ लिखा हुवा था,
ख़लीफ़ा ने जब मुझे देखा तो मुस्कुरा दिया। मैं ने कहा : अमीरल मोमिनीन ! कोई खास बात है ? कहा : मैं ने बनू उमय्या के ख़ज़ाने में येह दो शे’र पाए जो मुझे बहुत अच्छे लगे हैं और मैं ने इन में एक और शे’र का इज़ाफ़ा कर दिया है :…जब तेरी हाजत रवाई का दरवाज़ा तुझ पर बन्द हो जाए तो रुक जा, कोई और तेरी हाजत रवाई कर देगा। .पेट का बन्दा होना इस के भरने के लिये काफ़ी है और काम की बुराइयों से बचने के लिये इन से इजतिनाब ज़रूरी है। ..और अपने मक्सद को हासिल करने के लिये रकीक हरकतें मत कर और इतिका मआसी से परहेज़ कर जिस की वज्ह से तू सज़ा से महफूज़ हो जाएगा।
इल्म इन्सान को हिर्स और गदायाने इबराम से महफूज रखता है –
हज़रते अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ीअल्लाहो अन्हो ने हज़रते का’ब रज़ीअल्लाहो अन्हो से पूछा कि उलमा के इल्म हासिल कर लेने के बाद कौन सी चीज़ उन के दिलों से इल्म निकाल लेती है ? हज़रते का’ब रज़ीअल्लाहो अन्हो ने कहा : लालच, हिर्स और लोगों के आगे हाथ फैलाना । किसी शख्स ने हज़रते फुजैल रहमतुल्लाह अलैह से इस कौल की तशरीह चाही तो इन्हों ने जवाब दिया कि इन्सान लालच में जब किसी चीज़ को अपना मतलूब व मक्सूद बना लेता है तो उस का दीन रुख्सत हो जाता है। हिर्स यह है कि इन्सान कभी इस चीज़ की और कभी उस चीज़ की तलब में रहता है यहां तक कि वो सब कुछ हासिल करना चाहता है और कभी इस मक्सद के हुसूल के लिये तेरा साबिका मुख़्तलिफ़ लोगों से पड़ेगा, जब वो तेरी ज़रूरतें पूरी करेंगे तो तेरी नाक में नकील डाल कर जहां चाहेंगे ले जाएंगे, वो तुझ से अपनी इज्जत चाहेंगे और तू रुस्वा हो जाएगा और इसी महब्बते दुनिया के बाइस जब भी तू उन के सामने से गुज़रेगा तो उन्हें सलाम करेगा और जब वो बीमार होंगे, तू इयादत को जाएगा और येह तेरे तमाम अफ्आल खुदा की रज़ा के लिये नहीं होंगे। तेरे लिये बहुत अच्छा होता अगर तू उन लोगों का मोहताज न होता।
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब