मोहब्बत व नफ्स का मुहासबा
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
हज़रते सुफ्यान रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : मोहब्बत इत्तिबाए रसूल सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम है। एक और बुजुर्ग का कौल है कि मोहब्बत दाइमी जिक्र का नाम है, एक और कौल है कि मोहब्बत महबूब को खुद पर तरजीह देना है और बा’ज़ का कौल है कि मोहब्बत नाम है दुनिया के क़ियाम को बुरा समझने का, मजकूरए बाला सब अकवाल मोहब्बत के समरात की तरफ इशारा करते हैं, नफ़्से मोहब्बत को किसी ने नहीं छेड़ा, बा’ज़ ने येह कहा कि मोहब्बत नाम महबूब के उन कमालात का है जिस के इदराक से दिल मजबूर और जिस की अदाएगी से ज़बाने मसदूद हैं।
हज़रते जुनैद रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि अल्लाह तआला ने दुनिया से तअल्लुक रखने वालों पर मोहब्बत को हराम कर दिया है और फ़रमाया : हर मोहब्बत किसी इवज़ के जवाब में होती है, जब इवज़ ख़त्म हो जाता है मोहब्बत जाइल हो जाती है।
हज़रते जुन्नून रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि उस शख्स से जो अल्लाह की मोहब्बत का इज़हार करे, कह दो कि किसी गैर के सामने ज़लील होने से बचते रहना।
हज़रते शिब्ली रहमतुल्लाह अलैह से कहा गया कि हमें आरिफ़, मुहिब की तारीफ़ बतलाइये ! उन्हों ने कहा : आरिफ़ अगर बात करता है तो हलाक हो जाता है और मुहिब अगर चुप रहता है तो हलाक हो जाता है और आप ने येह अश्आर पढ़े :
ऐ मेहरबान सरदार ! तेरी मोहब्बत मेरे दिल की गहराइयों में मुकीम है। ऐ मेरी पलकों से नींद उड़ाने वाले ! जो कुछ मुझ पर बीती तू उसे जानता है।
किसी दूसरे शाइर का कौल है :
मुझे उस पर इन्तिहाई तअज्जुब होता है जो मुझ से कहता है तू ने मेरी मोहब्बत को याद किया है, क्या मैं उस की मोहब्बत भूल गया हूं जो उसे याद करूं ? जब मैं तुझे याद करता हूं तो मर जाता हूं फिर जिन्दा हो जाता हूं, अगर मेरा हुस्ने जन न होता तो मैं कभी जिन्दा न होता। पस मैं मौत में जिन्दगी पाता हूं और तेरे शौक में मौत पाता हूं, कितनी मरतबा मैं तेरे लिये जिन्दा होता हूं और मरता हूं। मैं ने मोहब्बत का जाम के बाद जाम पिया, न शराबे मोहब्बत कम हुई और न ही मैं सैर हुवा। ऐ काश ! उस का ख़याल मेरा नस्बुल ऐन हो, जब भी वोह मेरी नज़रों से दूर हो, मैं अन्धा हो जाता हूं।
हज़रते राबिआ अदविय्या रज़ीअल्लाहो अन्हा ने एक दिन कहा : कौन है जो हमें अपने महबूब का पता बतलाए ? उन की ख़ादिमा बोली कि हमारा महबूब हमारे साथ है लेकिन दुनिया ने हमें उस से जुदा कर रखा है।
इब्नुल जला रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है, अल्लाह तआला ने हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम की तरफ़ वही फ़रमाई कि जब मैं बन्दे के दिल को दुनिया और आखिरत की मोहब्बत से खाली पाता हूं तो उस के दिल को अपनी मोहब्बत से भर देता हूं और उसे अपनी हिफ़ाज़त में ले लेता हूं।
कहते हैं कि हज़रते जनाबे समनून रज़ीअल्लाहो अन्हो ने एक दिन मोहब्बत के मुतअल्लिक गुफ्तगू फ़रमाई तो उन के सामने एक परिन्दा उतरा और वोह अपनी चोंच ज़मीन पर मारने लगा यहां तक कि उस से खून बहने लगा और वोह मर गया।
हज़रते इब्राहीम बिन अदहम रज़ीअल्लाहो अन्हो ने कहा : ऐ अल्लाह तू जानता है कि जन्नत तेरे उन इन्आमात के मुकाबले में जो मुझे वदीअत हुवे हैं मेरे नज़दीक मच्छर के पर के बराबर वन नहीं रखती, तू ने मुझे अपनी मोहब्बत से सरफ़राज़ किया है, अपने ज़िक्र की उल्फ़त बख़्शी है और अपनी अज़मत में गौरो फ़िक्र करने के लिये फ़रागत मर्हमत फ़रमाई है।
हज़रते सीरी सकती रज़ीअल्लाहो अन्हो का क़ौल है कि जिस ने अल्लाह से मोहब्बत की वोह ज़िन्दए जावीद हुवा, जिस ने दुनिया से मोहब्बत की वोह बे आबरू हुवा, अहमक सुब्हो शाम ज़िल्लतो रुस्वाई से बसर करता है और अक्लमन्द अपने उयूब तलाश करता रहता है।
मुहासबा ए नफ्स – अपने नफ्स का हिसाब किताब रखना
अल्लाह तआला ने कुरआने मजीद में नफ्स के मुहासबे का हुक्म दिया है,
फ़रमाने इलाही है : ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरो और हर नफ़्स येह देखे कि उस ने कल के लिये क्या भेजा है। इस आयते करीमा में इस बात की तरफ़ इशारा है कि इन्सान अपने गुज़श्ता आ’माल का मुहासबा करे इसी लिये हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया : क़ब्ल इस के कि तुम्हारा मुहासबा हो, तुम खुद अपना मुहासबा करो और इस से पहले कि तुम्हारे आ’माल तोले जाएं तुम खुद अपने आ’माल तोल लो।
हदीस शरीफ़ में है कि एक आदमी ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से अर्ज किया : मुझे नसीहत कीजिये ! आप ने फ़रमाया : क्या तुम नसीहत की तलब में आए हो? अर्ज़ की : जी हां ! आप ने फ़रमाया : जब किसी काम का इरादा करो तो उस का अन्जाम सोच लो, अगर उस का अन्जाम अच्छा हो तो कर लो और अगर उस का बुरा अन्जाम हो तो उस से रुक जाओ।
हदीस शरीफ़ में है : अक्लमन्द के लिये मुनासिब है कि वोह चार घड़ियों में एक घड़ी अपने नफ्स के मुहासबे में खर्च करे ।
फ़रमाने इलाही है : और तौबा करो अल्लाह की तरफ़ मुकम्मल तौबा ऐ मोमिनो ताकि तुम फलाह पाओ। और तौबा ऐसा फेल है जो काम कर चुकने के बाद शर्मिन्दगी और पशेमानी से मुत्तसिफ़ होता है।
फ़रमाने नबवी है कि मैं दिन में सो मरतबा तौबा करता हूं और अल्लाह से बख्रिशश तलब करता हूं।
फ़रमाने इलाही है :
“बेशक वोह लोग जो परहेज़गार हैं जब उन्हें शैतान की तरफ़ से वस्वसा आता है तो वोह जिक्र करते हैं पस अचानक वोह देखने वाले होते हैं।”
हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो जब रात तारीक होती तो अपने कदमों पर चाबुक मारते और अपने नफ्स से कहते कि तू ने आज क्या अमल किया ? हज़रते मैमून बिन मेहरान रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि आदमी उस वक्त तक मुत्तकी नहीं बन सकता जब तक वोह काम के बाद अपने शरीक या शरीकों के मुहासबे से भी अपने नफ्स का सख़्त मुहासबा न करे।।
हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा से मरवी है कि हज़रते अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो ने मुझ से वक्ते विसाल फ़रमाया कि मुझे लोगों में से कोई भी उमर से ज़ियादा महबूब नहीं है, फिर आप ने मुझ से पूछा कि मैं ने क्या कहा है ? मैं ने आप का फरमान दोहराया तो आप ने फ़रमाया कि मेरे नज़दीक उमर से ज़ियादा बा इज्जत कोई शख्स नहीं है, तो गोया आप ने एक बात कह कर इस पर गौर फ़रमाया और इसे दूसरे जुम्ले में तब्दील कर दिया।
हज़रते अबू तलहा से मन्कूल है कि जब इन्हें इन के बाग के परन्दे ने नमाज़ से इन की तवज्जोह हटा दी तो इन्हों ने इस कोताही के बदले में इन्तिहाई पशेमानी के आलम में वोह सारा बाग अल्लाह की राह में वक्फ कर दिया।
हज़रते अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ीअल्लाहो अन्हो की हृदीस में है कि इन्हों ने लकड़ियों का गठ्ठा उठाया तो लोगों ने कहा : ऐ अबू यूसुफ़ ! तेरे घर में लकड़ियां मौजूद थीं और तेरे गुलाम भी इस काम के लिये मौजूद थे, तू ने येह काम क्यूं किया ? तो इन्हों ने जवाब दिया कि मैं अपने नफ्स का इम्तिहान ले रहा था कि कहीं येह इन कामों को बुरा तो नहीं समझता !
हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो का क़ौल है कि मोमिन अपने नफ़्स का हाकिम होता है और इस का मुहासबा करता रहता है, उन लोगों का कयामत में हिसाब आसान और हल्का होगा जो दुनिया में अपने नफ्सों का मुहासबा करते रहे हैं और क़ियामत में उन लोगों का सख़्त मुहासबा होगा जो दुनिया में अपने नफ्सों का मुहासबा नहीं करते।
फिर मुहासबा की तफ्सीर में फ़रमाया कि अचानक मोमिन को कोई चीज़ पसन्द आ जाती है और वोह इसे देख कर कहता है ब खुदा ! तू मुझे पसन्द है, तू मेरी ज़रूरत है लेकिन अफ़सोस येह है कि तेरे और मेरे दरमियान हिसाब हाइल है, येह हिसाब क़ब्ल अज़ अमल की मिसाल है और जब मोमिन से कोई लगज़िश सरज़द हो जाती है तो वोह खुद से कहता है तेरा इस फेल से क्या मतलब था ? ब खुदा ! मैं इस पर उज्र पेश नहीं करूंगा और ब खुदा ! अगर अल्लाह तआला ने चाहा तो मैं कभी भी ऐसा काम फिर नहीं करूंगा।
हज़रते अनस बिन मालिक रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि एक दिन हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो और मैं मदीनए मुनव्वरा से बाहर निकले यहां तक कि वोह एक दीवार के करीब पहुंचे, मैं ने सुना वो कह रहे थे और मेरे और उन के दरमियान एक दीवार हाइल थी, वाह वाह ! उमर बिन खत्ताब अमीरुल मोमिनीन है ! ब खुदा ऐ नफ्स ! अल्लाह से डर, वरना वोह तुझे अज़ाब करेगा। हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो इस फ़रमाने इलाही : और में मलामत करने वाले नफ़्स की कसम खाता हूं। की तफ्सीर में फ़रमाते हैं कि मोमिन से जब कोई गलती होती है तो वोह अपने नफ्स का तआकुब करता है कि तेरा इस बात से क्या इरादा था ? तेरा मेरे खाने और पीने से मन्शा क्या था ? और बदकार कदम ब कदम आगे बढ़ता रहता है मगर गुनाहों पर मुहासबए नफ्स नहीं करता।
हज़रते मालिक बिन दीनार रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : अल्लाह तआला उस बन्दे पर रहम करे जिस ने अपने नफ्स से यह कहा कि तू ने ऐसा ऐसा काम अन्जाम नहीं दिया फिर उस की खिदमत की, उस की नाक में नकील डाल कर किताबुल्लाह की पैरवी को उस के लिये लाज़िमी करार दे दिया, ऐसा शख्स अपने नफ्स का काइद होगा और हक़ीक़त में येही नफ्स का मुहासबा है।
हज़रते मैमून बिन मेहरान रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि मुत्तकी शख्स अपने नफ्स का जालिम बादशाह और बखील हिस्सेदार से भी ज़ियादा मुहासबा करता है।
हज़रते इब्राहीम तैमी रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि मैं ने अपने नफ्स के सामने जन्नत की मिसाल पेश की, उस के फल खाना, उस की नहरों से पानी पीना और उस की पाकीज़ा औरतों से मैल मिलाप रखने की तफ्सील बयान की, फिर मैं ने अपने नफ़्स को जहन्नम की तफ्सील सुनाई या’नी उस का थोहर खाना, उस की पीप पीना और उस के भारी जन्जीर और तौक़ गले में पहनने का बता कर कहा : तुझे इन दोनों में से कौन सी चीज़ पसन्द है? नफ़्स बोला मेरा इरादा है कि दुनिया में जा कर नेक अमल कर के आऊं, तब मैं ने उसे कहा कि फिलहाल तुझे मोहलत मिली हुई है, लिहाज़ा खूब नेक आ’माल कर ले।
हज़रते मालिक बिन दीनार रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं कि मैं ने हज्जाज को खिताब करते हुवे सुना, वोह कह रहा था : अल्लाह तआला उस बन्दे पर रहम फ़रमाए जिस ने अपना हिसाब दूसरे के पास जाने से पहले खुद ही अपने नफ्स का मुहासबा कर लिया, अल्लाह उस बन्दे पर रहम फ़रमाए जिस ने अपने अमल की लगाम पकड़ कर सोचा कि मैं ऐसा काम क्यूं कर रहा हूं ? अल्लाह तआला उस बन्दे पर रहम फ़रमाए जिस ने अपनी भरती को देखा, अल्लाह उस बन्दे पर रहम फ़रमाए जिस ने अपने आ’माल के मीज़ान को देखा वोह इसी तरह कहता रहा यहां तक कि मैं रो पड़ा, (लेकिन हज्जाज के मज़ालिम और सुलहा व अबरार पर उस की चीरा दस्तियों ने खुद उस को कभी अपने नफ्स के मुहासबे का मौक़अ नहीं दिया)।
हज़रते अहनफ़ बिन कैस रहमतुल्लाह अलैह के एक साथी की रिवायत है कि मैं उन के साथ रहता था, उन की रात की इबादत उमूमी तौर पर दुआओं पर मुश्तमिल होती थी और वोह चराग़ की तरफ़ आते उस की लौ में अपनी उंगली रख देते यहां तक कि उस पर आग का असर महसूस किया जाता, फिर अपने नफ़्स से मुखातब हो कर कहते : ऐ अहनफ़ ! तुझे फुलां फुलां दिन किस चीज़ ने ऐसे ऐसे काम करने पर उक्साया था, तुझे फुलां रोज़ कौन सी चीज़ ने ऐसे बुरे अमल पर आमादा किया था।
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
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