शदाइदे मर्ग – मौत के वक़्त की तकलीफ और मुसीबतें
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने मौत और इस के दुख दर्द का तजकिरा फ़रमाते हुवे इरशाद फ़रमाया कि यह दुख दर्द तल्वार से लगने वाली तीन सो चोटों के बराबर होता है।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मौत की शिद्दत के मुतअल्लिक़ पूछा गया तो आप ने इरशाद फ़रमाया कि आसान तरीन मौत ऊन में कांटेदार टहनी की तरह है, उसे जब खींचा जाएगा तो उस के साथ ज़रूर कुछ न कुछ ऊन भी खींची चली आएगी।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम एक मरीज़ के पास तशरीफ़ लाए और फ़रमाया : मैं जानता हूं कि वो किस हाल में है और पसीना उसे किस लिये आ रहा है ? दर्दो अलम मौत की शिद्दत व हिद्दत की वज्ह से है।
हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो लोगों को जिहाद पर उभारते और फ़रमाते कि अगर तुम जिहाद में शुमूलिय्यत इख्तियार न करोगे तब भी मरना ज़रूर है, ब खुदा ! मुझे तल्वारों के एक हज़ार वार बिस्तर पर मरने से ज़ियादा आसान नज़र आते हैं।
इमाम औज़ाई रहमतुल्लाह अलैह का कौल है : हमारे इल्म में यह बात आई है कि मुर्दा कब्र से उठने के वक्त तक मौत की तल्खी महसूस करता रहेगा।
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बा‘ज शदाइदे मर्ग की तफ्सील
हज़रते शहाद बिन औस रहमतुल्लाह अलैह का कौल है कि मौत मोमिन के लिये दुन्या और आख़िरत के खौफ़ों में सब से ज़ियादा हौसला शिकन खौफ़ है, वो आरियों से चिर जाने, कैचियों से आ’ज़ा काट दिये जाने और देगों में उबलने से भी ज़ियादा सख्त है, अगर कोई मुर्दा जिन्दा हो कर दुन्या वालों को मौत की तल्खी की खबर दे दे तो वो ज़िन्दगी के लुत्फ़ को भूल जाएं और कभी आराम की नींद न सोएं।
जैद बिन अस्लम रहमतुल्लाह अलैह अपने बाप से रिवायत करते हैं कि जब मोमिन किसी अपने अमल की वज्ह से किसी दरजे को नहीं पा सकता तो मौत के वक्त उसे सकरात और उस के दुख से वासिता पड़ता है ताकि वो इस तरह जन्नत के उस आखिरी दरजे को भी हासिल करे जिसे वो आ’माल से हासिल नहीं कर सका, अगर किसी काफ़िर के कुछ अच्छे आ’माल होते हैं और दुन्या में उसे इस का बदला हासिल नहीं हो सका है तो उस पर मौत की शिद्दत को हल्का कर दिया जाता है ताकि वो उन अच्छे कामों का बदला पा ले और मरने के बाद सीधा जहन्नम में जाए।
एक साहिब अक्सर मरीजों से मौत की शिद्दत के मुतअल्लिक गुफ्तगू किया करते थे, जब वो खुद मरजुल मौत में मुब्तला हुवे तो लोगों ने उन से मौत की शिद्दत के बारे में सुवाल किया, वो कहने लगा : ऐसा महसूस होता है जैसे आस्मान जमीन मिल गए हैं और मेरी रूह सूई के नाके से निकल रही है।
फ़रमाने नबवी है कि मर्गे मुफ़ाजात मोमिन के लिये राहत और गुनहगार के लिये बाइसे ज़हमत है।
हज़रते मक्हूल रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : अगर मय्यित के बालों में से एक बाल ज़मीनो आस्मान में रहने वालों पर रख दिया जाए तो सब अल्लाह तआला के इज़्न से मर जाएं क्यूंकि मय्यित के हर एक बाल में मौत होती है और मौत जब किसी चीज़ पर तारी होती है तो वो चीज़ फ़ना हो जाती है।)
मरवी है कि अगर मौत के दर्द का एक कतरा दुन्या के पहाड़ों पर रख दिया जाए तो सब पहाड़ पिघल जाएं।
अम्बिया अलैहिमुस्सलाम पर मौत बहुत आसान कर दी जाती है
मरवी है कि जब हजरते इब्राहीम अलैहहिस्सलाम का इन्तिकाल हुवा तो अल्लाह तआला ने फ़रमाया : ऐ मेरे खलील ! तुम ने मौत को कैसा पाया ? उन्हों ने अर्ज की : जैसे सीख को गीली ऊन में डाल कर खींचा जाए, रब तआला ने फ़रमाया : “हम ने तुम्हारे लिये मौत को बहुत आसान कर दिया है। (तू ने तब भी इस की यह शिद्दत महसूस की है)।
मरवी है कि हज़रते मूसा अलैहहिस्सलाम . की रूह बारगाहे रब्बुल इज्जत में हाज़िर हुई तो रब्बे जलील ने फ़रमाया : मूसा ! तुम ने मौत को कैसा पाया ? हज़रते मूसा अलैहहिस्सलाम ने अर्ज की : जैसे चिड़या जाल में फंस जाती है और वो मरती नहीं बल्कि आसाइश तलब करती है और न रिहाई पाती है कि उड़ जाए (ये ही हाल दमे नज्अ इन्सान का होता है)।
यह भी मरवी है कि इन्हों ने कहा : मैं ने ऐसा दर्द महसूस किया जैसे ज़िन्दा बकरी की कस्साब खाल उतार रहा हो।
मरवी है कि मौत के वक्त हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के करीब पानी का प्याला रखा था, आप उस में दस्ते अतहर डुबो कर पेशानी पर मलते और फ़रमाते : ऐ अल्लाह ! मुझ पर मौत की सख्तियों को आसान फ़रमा और हज़रते ख़ातूने जन्नत रज़ीअल्लाहो अन्हा खड़ी रो रही थीं, हाए मेरे अब्बा की तक्लीफ़ ! और आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमा रहे थे कि तेरे बाप पर आज के बाद कोई दुख वारिद नहीं होगा।
हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने हज़रते का’ब रज़ीअल्लाहो अन्हो से कहा : हमें मौत की शिद्दत के मुतअल्लिक़ बताओ, हज़रते का’ब रज़ीअल्लाहो अन्हो ने कहा : अमीरुल मोमिनीन ! मौत ऐसी टहनी की तरह है जिस में बहुत ज़ियादा कांटे हों और वो इन्सान के जिस्म में दाखिल हो गई हो और उस के हर हर कांटे ने हर रग में जगह पकड़ ली हो फिर उसे एक आदमी इन्तिहाई सख्ती से खींचे, तो कुछ बाहर आ जाए और बाकी जिस्म में बाकी रह जाए।
फ़रमाने नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम है कि बन्दा मौत की सख्तियों को बीमारी समझ कर उन का इलाज करता है मगर उस के जिस्म के आ’ज़ा एक दूसरे से विदा होते हैं और कहते हैं कि तुझ पर सलाम हो, अब हम कियामत तक के लिये एक दूसरे से जुदा हो रहे हैं।
“मजकूरए बाला अहवाल” उन मुकद्दस हस्तियों के थे जो अल्लाह तआला के दोस्त और महबूब हैं, हम जो गुनाहों से आलूदा हैं, हमारी क्या हालत होगी ! हमारे लिये तो मौत की सख्तियों के इलावा और भी आफ़तें
होंगी।
मौत की तीन मुसीबतें होती हैं
मौत की तीन मुसीबतें होती हैं : पहली : नज्अ की तक्लीफ़, जो अभी मजकूर हो चुकी है। दूसरे : इज़राईल की सूरत का मुशाहदा और उसे देख कर दिल में इन्तिहाई खौफ़ो दहशत का पैदा होना, अगर बे पनाह हिम्मत वाला आदमी भी मलकुल मौत की उस सूरत को देख ले जो वो फ़ासिको फ़ाजिर की मौत के वक़्त ले कर आते हैं तो उसे ताबे तहम्मुल न रहे।
मरवी है कि हज़रते इब्राहीम ने मलकुल मौत से कहा : क्या तुम मुझे अपनी वो सूरत दिखा सकते हो जिस में तुम गुनहगारों की रूह कब्ज़ करने को जाते हो ? मलकुल मौत बोले : आप में देखने की ताब नहीं है। आप ने फ़रमाया : मैं देख लूंगा चुनान्चे, मलकुल मौत ने कहा : थोड़ी सी देर दूसरी तरफ़ तवज्जोह कीजिये।
जब आप ने कुछ देर के बाद देखा तो एक काला सियाह आदमी जिस के रौंगटे खड़े हुवे थे, बदबू के भभके उठ रहे थे, सियाह कपड़े पहने हुवे और उस के मुंह और नथनों से आग के शो’ले निकल रहे थे और धुवां उठ रहा था, सामने नज़र आया, हज़रते इब्राहीम अलैहहिस्सलाम यह मन्ज़र देख कर बेहोश हो गए, जब आप को होश आया तो देखा कि मलकुल मौत साबिक़ा शक्ल में बैठे हुवे थे। आप ने फ़रमाया : अगर फ़ासिको फ़ाजिर के लिये मौत की और कोई सख्ती न हो तब भी सिर्फ तुम्हारी सूरत देखना ही उन के लिये बहुत बड़ा अज़ाब है।
हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हज़रते दावूद अलैहहिस्सलाम इन्तिहाई गैरत मन्द जवान थे, जब आप बाहर तशरीफ़ ले जाते तो दरवाजे बन्द कर जाते, एक दिन आप घर के दरवाजे बन्द कर के बाहर तशरीफ़ ले गए। आप की ज़ौजए मोहरतमा ने देखा कि सेहन में एक आदमी खड़ा हुवा था, वो बोली न जाने इस को किस ने घर में दाखिल होने दिया है ? अगर दावूद अलैहहिस्सलाम आ गए तो ज़रूर उन्हें दुख पहुंचेगा। फिर हज़रते दावूद , तशरीफ़ लाए और उसे खड़ा देख कर पूछा : कौन हो ? उस ने कहा : मैं वो हूं जो बादशाहों से भी नहीं डरता, न कोई पर्दा मेरी राह में हाइल होता है। हज़रते दावूद , ख़ामोश खड़े के खड़े रह गए और फ़रमाया : तब तो तुम मलकुल मौत हो ।
एक कासएसर से हजरते ईसा अलैहहिस्सलाम की गुफ्तगू
मरवी है कि हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम का एक इन्सानी खोपड़ी के करीब से गुज़र हुवा, आप ने उसे पाउं से ठोंक दिया और फ़रमाया : ब हुक्मे खुदा मुझ से बात कर, खोपड़ी बोली : ऐ रूहल्लाह ! मैं फुलां फुलां ज़माने का बादशाह था, एक मरतबा मैं अपने मुल्क में ताज सर पर रखे, लश्कर के घेरे में तख्त पर बैठा हुवा था, अचानक मलकुल मौत मेरे सामने आ गया जिसे देख कर मेरा हर उज्व मुअत्तल हो गया और मेरी रूह परवाज़ कर गई। पस उस इजतिमा में क्या रखा था, जुदाई तो सामने खड़ी थी और उस उन्स व महब्बत में क्या था, वहशत ही वहशत और तन्हाई ही तन्हाई थी, यह धोका है जो ना फ़रमानों ने डाल दिया जो इताअत मन्दों के लिये नसीहत है।
यह वह आफ़त है जिसे हर गुनहगार और फ़रमां बरदार देखता है। अम्बियाए किराम ने मौत के वक्त सिर्फ नज्अ की सख्ती को बयान फ़रमाया है, उस ख़ौफ़ व दहशत का तजकिरा नहीं किया जो मलकुल मौत की सूरत देखने वाले इन्सान पर तारी होता है। अगर मलकुल मौत की सूरत को कोई रात को ख्वाब में देख ले तो उसे बकिय्या जिन्दगी बसर करना अजीरन हो जाए, जब कि उसे मौत की सख्ती के वक्त ऐसी हैबतनाक शक्ल में देखे।
अल्लाह तआला के फ़रमां बरदार और नेक लोग मलकुल मौत को इन्तिहाई हसीनो जमील शक्ल में देखते हैं चुनान्चे, हज़रते इकरमा हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत करते हैं कि हज़रते इब्राहीम अलैहहिस्सलाम बहुत गैरत मन्द इन्सान थे, आप का एक इबादत ख़ाना था, जब आप बाहर जाते उसे बन्द कर जाते । एक दिन बाहर से तशरीफ़ लाए तो देखा कि इबादत खाने में एक आदमी खड़ा है। आप ने पूछा : तुझे किस ने मेरे घर में दाखिल किया है ? वो बोला : इस के मालिक ने । आप ने फ़रमाया : “इस का मालिक तो मैं हूं।” उस ने कहा : मुझे उस ने दाखिल किया है जो इस मकान का आप से और मुझ से ज़ियादा मालिक है। आप ने पूछा : क्या तुम फ़रिश्तों में से हो ? वो बोला : हां ! मैं मलकुल मौत हूं। आप ने फ़रमाया : क्या तुम मुझे अपनी वो सूरत दिखला सकते हो जिस शक्ल में तुम मोमिनों की रूह को कब्ज़ करते हो ? मलकुल मौत ने कहा : हां ! आप ज़रा दूसरी तरफ़ तवज्जोह कीजिये।
चन्द लम्हे दूसरी तरफ़ मुतवज्जेह होने के बाद आप ने दोबारा उस की तरफ़ देखा तो उन्हें एक हसीनो जमील जवान नज़र आया जिस के चेहरे पर नूर बरस रहा था, लिबास इन्तिहाई पाकीज़ा पहने और उस से खुश्बू की लपटें उठ रही थीं। आप ने येह मन्ज़र देख कर फ़रमाया : ऐ इज़राईल ! अगर मोमिन को मौत के वक्त और कोई इन्आम न मिले, सिर्फ तुम्हारी सूरत ही देखने को मिल जाए तो येही काफ़ी है और बड़ा इन्आम है।
मुहाफ़िज फ़िरिश्तों का मुशाहदा
मौत के वक्त एक मुसीबत मुहाफ़िज़ फ़िरिश्तों का मुशाहदा है। हज़रते वुहैब रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है कि हमें यह ख़बर मिली है कि जब भी कोई आदमी मरता है तो वह मरने से पहले “नामए आ’माल” लिखने वाले फ़िरिश्तों का मुशाहदा करता है, अगर वो आदमी नेक होता है तो वो कहते हैं कि अल्लाह तआला तुझे हमारी तरफ़ से जज़ाए खैर दे, तू ने हमें बहुत सी बेहतरीन मजालिस में बिठलाया और बहुत ही नेक काम लिखने को दिये।
और अगर मरने वाला गुनहगार होता है तो वो कहते हैं कि अल्लाह तुझे हमारी तरफ़ से जजाए खैर न दे, तू ने बहुत ही बुरी मजालिस में हमें बिठलाया और गुनाहों और फ़ोहूश कलाम सुनने पर मजबूर किया, अल्लाह तुझे बेहतर जज़ा न दे। उस वक्त इन्सान की आंखें खुली की खुली रह जाती हैं और वो किसी चीज़ को नहीं देख पाता सिवाए अल्लाह तआला के फ़िरिश्तों के।
तीसरी आफ़त गुनहगारों का जहन्नम में अपने ठिकाने को देखना और वहां जाने से पहले ही इन्तिहाई खौफ़ज़दा हो जाना है, उस वक्त वह नज्अ के आलम में होता है, उस के आ’जाए बदन ढीले पड़ जाते हैं और उस की रूह निकलने को तय्यार होती है। मगर वो मलकुल मौत की आवाज़ के (जो दो बशारतों में से एक पर मुश्तमिल होती है) बिगैर नहीं निकल सकती, या तो यह कि ऐ दुश्मने खुदा ! तुझे जहन्नम की बशारत हो, या फिर यह कि ऐ अल्लाह के दोस्त ! तुझे जन्नत की बशारत हो, इसी लिये अक्लमन्द मौत के वक्त से बहुत ख़ौफ़ज़दा रहते हैं।
नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फ़रमान है कि तुम में से कोई शख्स भी उस वक्त तक दुन्या से नहीं निकलता जब तक कि अपना ठिकाना, ख़्वाह वोह जन्नत में हो या जहन्नम में हो, देख न ले
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
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