नमाज़ में खुशूअ व खुजूअ की अहमियत
दुरूद शरीफ़की फजीलत
हदीस शरीफ़ में है : एक दिन जिब्रीले अमीन, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुवे और कहा : मैंने आसमानों पर एक ऐसा फ़रिश्ता देखा जो तख्त नशीन था और सत्तर हज़ार फ़रिश्ते सफ़ बस्ता उस की ख़िदमत में हाज़िर थे, उस के हर सांस से अल्लाह तआला एक फ़रिश्ता पैदा फ़रमाता है, अभी अभी मैं ने उसे शिकस्ता परों के साथ कोहे काफ़ में रोते हुवे देखा है, जब उस ने मुझे देखा तो कहा तुम अल्लाह तआला के हुजूर मेरी सिफ़ारिश करो। मैंने पूछा : तेरा जुर्म क्या है ? उस ने कहा : मे’राज की रात जब मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम की सवारी गुज़री तो मैं तख्त पर बैठा रहा, ता’ज़ीम के लिये खड़ा नहीं हुवा, इस लिये अल्लाह तआला ने मुझे इस जगह इस अज़ाब में मुब्तला कर दिया है। जिब्रीले अमीन ने कहा : मैंने अल्लाह तआला की बारगाह में रो रो कर उस की सिफारिश की, अल्लाह तआला ने मुझ से फ़रमाया : तुम इस से कहो कि यह मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम पर दुरूद भेजे, चुनान्चे, उस फ़रिश्ते ने आप पर दुरूद भेजा तो अल्लाह तआला ने उस की इस लगज़िश को मुआफ कर दिया और उस के नए पर भी पैदा फ़रमा दिये ।
कियामत के दिन सब से पहले नमाज के बारे में पूछा जाएगा।
रिवायत है कि क़ियामत के दिन सब से पहले बन्दे की नमाजें देखी जाएंगी, अगर उस की नमाजें मुकम्मल हुई तो नमाज़ों समेत उस के सारे आ’माल कबूल कर लिये जाएंगे, अगर नमाजें ना मुकम्मल हुई तो नमाज़ों समेत उस के तमाम आ’माल रद्द कर दिये जाएंगे। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम का फरमान है : “फ़र्ज़ नमाज़ तराजू की तरह है, जिस ने इन्हें पूरा किया वोह कामयाब रहा.” हज़रते यज़ीदुर्रकाशी रज़िअल्लाहो अन्हो कहते हैं : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम की नमाज़ इस तरह बराबर होती थी जैसे वोह तुली हुई हो.
फ़रमाने नबवी है : “मेरी उम्मत के दो आदमी नमाज़ पढ़ेंगे, उन के रुकूअ सुजूद एक जैसे होंगे मगर उन की नमाज़ों में जमीन आसमान का फ़र्क होगा, एक में खुशूअ होगा और दूसरी बिगैर खुशूअ होगी”.
फ़रमाने नबवी है : “अल्लाह तआला क़यामत के दिन उस बन्दे पर नज़रे रहमत नहीं डालेगा जिस ने रुकूअ और सजदे के दरमियान अपनी पीठ को सीधा नहीं किया”
फ़रमाने नबवी है : “जिस ने वक्त पर नमाज़ पढ़ी, वुजू सहीह किया और रुकूअ व सुजूद को खुशूअ व खुजूअ से पायए तक्मील तक पहुंचाया उस की नमाज़ सफ़ेद और बर्राक सूरत में आसमानों की तरफ़ जाती है और कहती है : ऐ बन्दे ! जैसे तू ने मेरी मुहाफ़ज़त की इसी तरह अल्लाह तआला तुझे महफूज़ रखे, लेकिन जिस ने नमाज़ वक्त पर न पढ़ी, न वुजू सहीह किया और अपने रुकूअ व सुजूद को खुशूअ से आरास्ता न किया, उस की नमाज़ काली सियाह शक्ल में ऊपर जाती है और कहती है जैसे तू ने मुझे खराब किया अल्लाह तआला तुझे भी खराब करे, यहां तक कि उसे पुराने कपड़े की तरह लपेट कर उस के मुंह पर मारा जाता है”.
बद तरीन शख्स नमाज का चोर है
फ़रमाने नबवी सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम : “बद तरीन आदमी नमाज़ का चोर है।”
हज़रते इब्ने मसऊद रज़िअल्लाहो अन्हो का कौल है : नमाज़ एक पैमाना है जिस ने इसे पूरा कर दिया वह कामयाब हुवा और जिस ने इस में कमी की उस के लिये अज़ाब है। बा’ज़ उलमा का कौल है नमाज़ी ताजिर की तरह है ताजिर को उसी माल से नफ्अ मिलता है जो ख़ालिस हो, इसी तरह नमाज़ी की इबादत भी फ़राइज़ को अदा किये बिगैर फायदेमंद नहीं होती।
हज़रते अबू बक्र रज़िअल्लाहो अन्हो नमाज़ के वक्त फ़रमाते : लोगो ! अल्लाह तआला ने तुम्हारे लिये जो आग जलाई है उठो उसे नमाज़ के जरीए बुझा दो।
फ़रमाने नबवी है : “नमाज़ सुकून और तवाजोअ के साथ है, जो अपनी नमाज के बाइस फहूश और बुरे कामों से न रुका, अल्लाह तआला से उस की दूरी बढ़ती जाती है पस गाफ़िल की नमाज़ उसे बुराइयों से नहीं रोकती है”.
फ़रमाने नबवी है : “बहुत से नमाज़ी ऐसे हैं जिन को नमाज़ों से दुख और तक्लीफ़ के बिगैर कुछ हासिल नहीं होता”
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम का इरशाद है : “बन्दे का नमाज़ में वही हिस्सा है जिसे वह कामिल तवज्जोह से पढ़ता है”
अहले मा’रिफ़त कहते हैं : नमाज़ चार चीजों का नाम है, इल्म से आगाज़, हया के साथ कियाम, ता’ज़ीम से अदाएगी और खौफे खुदा के साथ इस का इख़्तिताम. बा’ज़ मशाइख का कौल है : जिस का दिल नमाज़ की हक़ीक़त को न समझता हो उस की नमाज़ फ़ासिद है।
फ़रमाने रसूले मक़बूल सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम है : “जन्नत में ‘अफ़्यह’ नाम की एक नहर है जिस में जा’फ़रान से पैदा की हुई हूरें, मोतियों के साथ दिल बहलाती रहती हैं और सत्तर हज़ार ज़बानों में अल्लाह तआला की तस्बीह करती रहती हैं, इन की आवाजें हज़रते दाउद अलैहिस्सलाम की अच्छी आवाज़ से ज़ियादा मीठी हैं, वह कहती हैं हम उन के लिये हैं जो खुजूअ व खुशूअ से नमाजें पढ़ते हैं”, अल्लाह तआला फ़रमाता है : मैं ऐसे नमाज़ी को अपने जवारे रहमत में जगह दूंगा और उसे शरफे दीदार से नवाज़ुंगा जो खुजूअ व खुशूअ से नमाज़ अदा करता है।
नमाज़ किस तरह अदा की जाए।
अल्लाह तआला ने हज़रते मूसा .की तरफ़ वही की : ऐ मूसा ! जब तू दिल शिकस्ता हो कर मुझे याद करता है तो मैं तुझे याद करता हूं, कामिल इत्मीनान और खुशूअ से मेरा जिक्र किया कर, अपनी ज़बान को दिल का मुतीअ (फर्माबरदार) बना, मेरी बारगाह में अब्दे ज़लील की तरह हाज़िरी दे, खौफ़ज़दा दिल से मुझे पुकार और सच्चाई की ज़बान से मुझे बुलाता रह ।
अल्लाह तआला ने हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम पर वह्यी नाज़िल फ़रमाई कि “अपनी उम्मत के गुनहगारों से कह दो ! मेरा ज़िक्र न करें मैं ने अपनी ज़ात की क़सम खाई है कि जो मुझे याद करेगा, मैं उसे याद करूंगा, यह जब मुझे याद करते हैं तो मैं उन पर ला’नत करता हूं”
ऐ अरबाबे होश ! यह तो उन लोगों का हाल है जो गुनहगार हैं मगर यादे खुदा से गाफ़िल नहीं, उन लोगों का क्या हाल होगा जो बदकार भी हैं और यादे खुदा से भी गाफ़िल हैं।
बा’ज़ सहाबा रज़ीअल्लाहो अन्हुम का कौल है : इन्सान नमाज़ में जिस कदर सुकून व इतमीनान और लज्जत व सुरूर हासिल करता है, उसी कदर कियामत के दिन वह पुर सुकून होगा।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम ने एक शख्स को देखा वोह नमाज़ में अपनी दाढ़ी से खेल रहा था, आप ने फ़रमाया : अगर इस के दिल में खुशूअ होता तो इस के आ’ज़ा में इस का जुहूर होता(दाढ़ी से इस तरह शाल करने से ज़ाहिर है कि उस के दिल में खुशूअ नहीं है) आप ने फ़रमाया : “जिस के दिल में खुशूअ नहीं उस की नमाज़ राएगां (बेफायदा) है”
खुशूअ व खुजूअ से नमाज अदा करने वालों की सिफ़ात
अल्लाह तआला ने नमाज़ में खुशूअ व खुजूअ रखने वालों की तारीफ़ कई आयातों में की है, फ़रमाने इलाही है :
( तर्जुमा कन्ज़ुल ईमान – अपनी नमाज़ में गिडगिडाते हैं.
अपनी नमाज़ की हिफाज़त करते हैं.
अपनी नमाज़ के पाबंद हैं. )
किसी ने खूब कहा है : “नमाज़ी तो बहुत हैं मगर खुशूअ से नमाज़ अदा करने वाले कम हैं, हाजी बहुत हैं लेकिन नेक सीरत कम हैं, परन्दे बहुत हैं मगर बुलबुलें कम हैं और आलिम बहुत है मगर आमिल कम हैं।” ।
नमाजे सहीह – सही नमाज़
“सहीह नमाज़” खुशूअ व खुजूअ और इन्किसारी का नाम है और येही कबूलिय्यते नमाज़ की अलामत है क्यूंकि जैसे नमाज़ जायज़ होने की कुछ शर्ते हैं इसी तरह कबूलिय्यते नमाज़ की भी शराइत हैं, जायज़ होने की शर्त फ़राइज़ का अदा करना और कबूलिय्यते नमाज़ की शराइत में खुशूअ और तकवा सरे फेहरिस्त हैं चुनान्चे, इरशादे रब्बानी है :
तर्जुमा कन्ज़ुल ईमान
बेशक मुराद को पहुंचे ईमान वाले जो अपनी नमाज़ में गिड़गिड़ाते हैं.
तकवा के बारे में अल्लाह का फरमान है
तर्जुमा कन्ज़ुल ईमान
अल्लाह उसी से कुबूल करता है जिसे डर है.
फ़रमाने नबवी है : “जिस ने कामिल खुशूअ से दो रक्अत नमाज़ अदा की, वह गुनाहों से ऐसा पाक हो जाता है जैसे पैदाइश के दिन पाक था”.
नमाज अन्धेरे में पढ़ी जाए।
हक़ीक़त यह है कि नमाज़ में दिल ख़यालाते फ़ासिदा की वज्ह से सहीह मानों में नमाज़ की तरफ़ मुतवज्जेह नहीं हो पाता लिहाज़ा इन ख़यालात से नजात हासिल करना ज़रूरी है। नजात के कई तरीके हैं एक यह भी है कि अन्धेरे में नमाज़ पढ़ी जाए या ऐसी जगह नमाज़ पढ़ी जाए जहां कामिल सुकूत हो, नीचे रंगीन फ़र्श न हो और नमाजी मुनक्कश कपड़े न पहने हो क्यूंकि इन चीज़ों पर जैसे ही नज़र पड़ती है इन्सान उधर मुतवज्जेह होता है, चुनान्चे, हदीस शरीफ़ में है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम ने हज़रते अबू जम रज़िअल्लाहो अन्हो के भेजे हुवे मुनक्कश कुर्ते में नमाज़ पढ़ी और नमाज़ के फ़ौरन बा’द उतार कर वापस भेज दिया और फ़रमाया : “इस ने अभी मुझे नमाज़ में अपनी तरफ़ मुतवज्जेह कर दिया”
एक मरतबा नए जूते पहन कर आप ने नमाज़ पढ़ी, नमाज़ के बाद आप ने उसे उतार दिया और वही पुराने जूते पहन लिये और फ़रमाया : “मैं नमाज़ में इस की तरफ़ देख कर मश्गूल हो गया”
मर्दो के लिये सोने के जेवरात की हुरमत से पहले आप एक दिन सोने की अंगूठी पहन कर मिम्बर पर तशरीफ़ फ़रमा थे, आप ने उसे उतार कर फेंक दिया और फ़रमाया : “यह मुझे अपनी तरफ़ मुतवज्जेह करती है”
हज़रते अबू तलहा रज़िअल्लाहो अन्हो ने एक मरतबा अपने बाग में नमाज़ पढ़ी, अचानक एक परन्दा उड़ा और वोह दरख्तों से निकलने की राह तलाश करने लगा। हज़रते अबू तलहा रज़िअल्लाहो अन्हो ने तअज्जुब से येह मन्ज़र देखा तो वह अदा शुदा रक्अतों की तादाद भूल गए, आप हुजूर सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुवे और इस आजमाइश का जिक्र करते हुवे कहने लगे : ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम मैं ने बाग अल्लाह की राह में दे दिया है, अब आप जैसे चाहें इसे खर्च करें ।
एक और शख्स ने हज़रते उस्मान रज़िअल्लाहो अन्हो के अहदे खिलाफ़त में अपने उस बाग में जो खजूरों से लदा हुवा था, नमाज़ पढ़ी तो उस की नज़र खजूरों के फल देखने में ऐसी उलझी कि उसे रक्अतों की तादाद याद न रही, नमाज़ खत्म कर के वोह हज़रते के पास आया और कहने लगा : मैं ने इस बाग को अल्लाह के नाम पर बख़्श दिया है, इसे अल्लाह के रास्ते में खर्च कर दीजिये। हज़रते उस्मान रज़िअल्लाहो अन्हो ने वोह बाग पचास हज़ार रूपये में बेच दिया।
अस्लाफ़े किराम में से बा’ज़ हज़रात का इरशाद है कि नमाज़ में चार चीजें इन्तिहाई बुरी हैं, किसी दूसरी तरफ़ मुतवज्जेह होना, मुंह पर हाथ फेरना, कंकरियां साफ़ करना और गुज़रगाह (चालू रास्ते) पर नमाज़ शुरूअ कर देना।
अल्लाह तआला अपने बन्दे की तरफ मुतवज्जेह रहता है।
फ़रमाने नबवी है कि “अल्लाह तआला अपने बन्दे की तरफ़ मुतवज्जेह रहता है जब तक वह अपनी तवज्जोह नमाज़ से नहीं हटाता”
हज़रते अबू बक्र रज़िअल्लाहो अन्हो जब नमाज़ में खड़े होते तो ऐसा मा’लूम होता था जैसे कोई मीख गड़ी हुई है। बा’ज़ हज़रात इतने सुकून से रुकूअ करते कि परन्दे उन्हें पत्थर समझ कर उन की पीठ पर बैठ जाते।
ज़ौक ए सलीम भी इस बात का तकाज़ा करता है कि जब दुन्यावी शानो शौकत वाले इन्सानों के हुजूर लोग इन्तिहाई ता’ जीम से हाज़िर होते हैं तो उस बादशाहों के बादशाह के हुजूर तो ब तरीके औला ता’ज़ीम व तकरीम से हाज़िर होना चाहिये।
‘तौरात’ में मरकूम है : “ऐ इन्सान ! मेरी बारगाह में रोते हुवे हाजिरी देने से न घबरा मैं (तेरा खुदा) तेरे दिल से भी ज़ियादा करीब हूं और हर जगह मेरा नूर जल्वा फ़िगन है”
रिवायत है : हज़रते उमर रज़िअल्लाहो अन्हो ने मिम्बर पर फ़रमाया : हालते इस्लाम में इन्सान बूढ़ा हो जाता है मगर उस की नमाज़ कामिल नहीं होती। पूछा गया : वोह कैसे ? फ़रमाया : दिल में खुशूअ न आया, इन्किसारी पैदा न हुई और नमाज़ में अल्लाह तआला की तरफ़ हमातन मुतवज्जेह न बना । (तो फिर नमाज़ कैसे कामिल हुई ?)
अबुल आलिया रहमतुल्लाह अलैह से इस आयत “ अल्लज़ी ना हुम अन सलाती हिम साहून” के मा’ना दरयाफ्त किये गए, उन्हों ने कहा : येह उस शख्स के बारे में है जो नमाज़ में भूल जाता है और उसे येह पता नहीं चलता कि उस ने दो रक्अत पढ़ी है या तीन ?
हज़रते हसन रहमतुल्लाह अलैह का कौल है कि यह इरशादे इलाही उस शख्स के बारे में है जो नमाज़ को भूल जाता है यहां तक कि उस का वक़्त ख़त्म हो जाता है।
नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम का इरशाद है : “अल्लाह तआला फ़रमाता है कि मेरे बन्दे फ़राइज़ को अदा किये बिगैर मुझ से रिहाई नहीं पा सकेंगे”