क़यामत के दिन क्या क्या मुसीबते और आफतें होंगी
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
मरवी है कि हज़रते आइशा सिद्दीका राज़ी अल्लाहो अन्हा ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से दरयाफ्त किया कि या रसूलल्लाह ! क्या कियामत के दिन दोस्त दोस्त को याद करेगा ? आप ने फ़रमाया : तीन जगहों पर कोई किसी को याद नहीं करेगा, मीज़ाने अमल के वक्त यहाँ तक की वो अपना हल्का या भारी पलड़ा देख न ले, नामए आ’माल के उड़ने के वक्त या तो उसे दाएं हाथ या बाएं हाथ में नामए आ’माल दे दिया जाए और उस वक्त जब कि जहन्नम से आग की गर्दन बाहर निकलेगी और लोगों की तरफ बढ़ती चली आएगी और कहेगी : मैं हर मुशरिक, सरकश, मुतकब्बिर और उस शख्स पर मुकर्रर की गई हूं जो कियामत के दिन पर ईमान नहीं रखता था पस वो उन्हें अपने शो’लों में लपेट कर जहन्नम की घाटियों में डाल देगी और जहन्नम पर बाल से बारीक और तल्वार की धार से जियादा तेज़ पुल है और उस पर कांटे होंगे, लोग उस पर बिजली की चमक और तेज़ हवा की तरह गुज़रेंगे ।
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हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जब अल्लाह तआला ने ज़मीनो आस्मान को पैदा फ़रमाया तो फिर सूर को पैदा फ़रमाया और इस्राफ़ील को दिया वो इसे मुंह में रखे अर्श की तरफ़ निगाह जमाए खड़ा है कि कब उसे सूर फूंकने का हुक्म मिलता है। अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं मैं ने अर्ज की : या रसूलल्लाह ! सूर क्या है? आप ने फ़रमाया : वो बैल का एक सींग है। मैं ने कहा : वोह कैसा है ? आप ने फ़रमाया : बहुत बड़े दाइरे वाला है, कसम है उस ज़ात की जिस ने मुझे हक़ के साथ मबऊस फ़रमाया है उस के दाइरे का घेरा ज़मीन और आस्मान की चौड़ाई के बराबर है, उसे तीन मरतबा फूंका जाएगा, पहले घबराहट के लिये, दूसरे मौत के लिये और तीसरी मरतबा कब्रों से उठने के लिये, फिर रूहें ऐसे निकलेंगी जैसे शहद की मख्खियां । वोह ज़मीनो आस्मान के खला को पुर कर देंगी और नाक के रास्ते जिस्मों में दाखिल हो जाएंगी, फिर फ़रमाया : सब से पहले मेरी कब्र शक होगी।
दूसरी रिवायत में है : तब अल्लाह तआला जिब्राईल, मीकाईल और इस्राफ़ील को ज़िन्दा करेगा वोह हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की कब्र अन्वर की तरफ़ आएंगे, उन के साथ बुराक़ और जन्नती लिबास होंगे, फिर हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की कब्रे अन्वर शक होगी और आप जिब्रीले अमीन को देख कर फ़रमाएंगे कि येह कौन सा दिन है ? जिब्राईल अर्ज करेंगे : येह रोज़े कियामत है, येह मुसीबत का दिन है, येह सख्ती का दिन है। आप फ़रमाएंगे : ऐ जिब्रील !
अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत के साथ कैसा सुलूक किया है ? जिब्रील अर्ज़ करेंगे : आप को बिशारत हो कि सब से पहले शख्स आप हैं जिन की कब्र शक हुई है।
हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला फ़रमाएगा : ऐ जिन्नो इन्स ! मैं ने तुम्हें नसीहत की थी, लो तुम्हारे नामए आ’माल में तुम्हारे आ’माल दर्ज हैं, जो अपना सहीफ़ा अच्छा पाए वोह अल्लाह की हम्द करे और जो इसे बेहतर न पाए वोह अपने आप को मलामत करे ।
हज़रते यहया बिन मुआज राजी रज़ीअल्लाहो अन्हो से मन्कूल है कि इन्हों ने अपनी मजलिस में येह आयात सुनी : उस दिन हम परहेज़गारों को रहमान की तरफ जम्अ करेंगे वफ्द की सूरत में और हम मुजरिमों को जहन्नम की तरफ़ प्यासा हांकेंगे।या’नी परहेज़गार सवार हो कर अल्लाह की बारगाह में हाज़िर होंगे और मुजरिम पैदल और प्यासे जहन्नम में जाएंगे, तो आप ने फ़रमाया : ऐ लोगो ! नेकी और भलाई में पेश पेश रहो। कल तुम हश्र के दिन कब्रों से उठाए जाओगे और मुख़्तलिफ़ सम्तों से फ़ौज दर फ़ौज आओगे, अल्लाह के सामने अकेले अकेले खड़े होगे और तुम से एक एक हर्फ़ का सुवाल किया जाएगा, नेक लोग अल्लाह की बारगाह में सुवार हो कर गिरोह दर गिरोह आएंगे, बदकारों को पैदल और प्यासा लाया जाएगा और लोग जमाअत दर जमाअत जहन्नम में दाखिल होंगे। ऐ भाइयो !
तुम्हारे आगे एक ऐसा दिन है जो तुम्हारे साल व माह के अन्दाज़ों के मुताबिक़ पचास हज़ार बरस का है जो हलचल मचाने वाला और भाग दौड़ का दिन है जिस दिन लोग खालिके कायनात की बारगाह में खड़े होंगे जो हसरत, अफ़्सोस, नुक्ता चीनी, मुहासबा, चीखो पुकार, मुसीबत, सख्ती और दोबारा जिन्दा होने का दिन है जिस दिन इन्सान अपने किये हुवे आ’माल देखेगा। अफ्सोस ! पछतावे का दिन, जिस दिन बा’ज़ चेहरे सफ़ेद और बा’ज़ सियाह होंगे, जिस दिन किसी को माल और औलाद फ़ाइदा नहीं देगी मगर जो कल्बे सलीम ले कर आएगा वो ही फ़ाइदा पाएगा, जिस दिन ज़ालिमों को मा’ज़िरत कोई फ़ाइदा नहीं देगी और उन के लिये ला’नत और बुरा ठिकाना होगा।
हज़रते मक़ातिल बिन सुलैमान रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि क़यामत के दिन मख्लूक सो बरस कामिल ख़ामोश रहेगी और लोग सो बरस तक तारीकियों में हैरानो परेशान रहेंगे और सो बरस वो एक दूसरे पर चढ़ दौड़ेंगे, रब के यहां झगड़े करेंगे, कियामत के दिन की तवालत पचास हज़ार बरस की होगी मगर मोमिन मुख्लिस पर ऐसे गुज़रेगा, जितना हल्की फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ने में वक्त सर्फ होता है।
फ़रमाने नबवी है कि बन्दे के क़दम उस वक्त तक नहीं हिलेंगे जब तक कि उस से चार चीज़ों का सुवाल नहीं कर लिया जाएगा, उस ने अपनी उम्र कैसे सर्फ की, अपने आप को किस चीज़ में मसरूफ़ रखा, अपने इल्म पर कितना अमल किया और दौलत कैसे कमाई और कैसे खर्च की है ?
हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने हर एक नबी को कबूल होने वाली एक एक दुआ अता फ़रमाई थी, उन सब ने अपनी अपनी वोह दुआ दुनिया में मांग ली मगर मैं ने अपनी दुआ को कयामत के दिन अपनी उम्मत की शफाअत के लिये महफूज़ रख लिया है।
ऐ रब्बे जुल जलाल ! रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की हुरमत व तौकीर के तुफैल हमें इन की शफाअत से महरूम न फ़रमा.
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
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Qayamat ki musibate, qayamat ke din kya hoga,
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)