रमज़ान महीने की हदीसे बरकते और फ़ज़ीलतें

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फ़जाइले रमजानुल मुअज्जम – रमज़ान की फ़ज़ीलतें और बरकतें

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

इरशादे खुदावन्दी है : “ऐ लोगो जो ईमान लाए हो तुम पर रोज़े फ़र्ज़ किये गए हैं जैसे तुम से पहले वाले लोगों पर फ़र्ज़ किये गए थे”। हज़रते सईद बिन जुबैर रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि हम से पहले वाले लोगों पर इशा से ले कर दूसरी रात के आने तक रोज़ा होता था जैसा कि इब्तिदाए इस्लाम में भी येही दस्तूर था।

पहले की उम्मते रमज़ान कैसे मनाती थी

अहले इल्म की एक जमाअत का कौल है कि नसारा पर इसी तरह रोज़ा फ़र्ज़ किया गया था, कभी तो रोज़ों का महीना शदीद गर्मी और कभी सख्त सर्दी में आ जाता जिस की वज्ह से इन्हें सफ़र और अपने कारोबार में सख्त दुश्वारी पेश आती चुनान्चे, इन के बड़े इकठे हुवे और बाहम मिल कर येह तै किया गया कि रोजे सर्दियों और गर्मियों के इलावा साल के किसी और मोसिम में रखे जाएं चुनान्चे, इन्हों ने रोज़ों के लिये बहार का मोसिम मुकर्रर किया और अपने इस हेर फेर के कफ्फारे के तौर पर दस रोजों का इज़ाफ़ा कर दिया।

फिर इन का एक बादशाह बीमार पड़ गया, उस ने नज्र मानी कि अगर वोह इस बीमारी से तन्दुरुस्त हो गया तो एक हफ्ते के रोज़ों का इज़ाफ़ा करेगा चुनान्चे, जूही वोह तन्दुरुस्त हुवा उस ने लोगों के लिये एक हफ्ते के रोजे बढ़ा दिये।

जब येह बादशाह मरा और दूसरा बादशाह इन का हुक्मरान बना तो उस ने लोगों को हुक्म दिया कि तुम पूरे पचास रोजे पूरे करो, फिर इन्हें दो मौतें पहुंची और वोह जानवरों की मौत थी तो उस बादशाह ने कहा अपने रोजों को जियादा करो चुनान्चे, दस रोजे इन रोजों से पहले और दस बा’द में बढ़ा दिये गए।

नीज़ कहा गया कि कोई उम्मत ऐसी नहीं मगर अल्लाह तआला ने उन पर माहे रमजान के रोजे फ़र्ज़ किये थे मगर वोह इस से बरगश्ता हो गए।

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रमज़ान का मतलब अर्थ क्या होता है ?

बगवी का कौल है और सहीह भी येही है कि रमज़ान, महीने का नाम है और येह रमज़ा से मुश्तक है जिस के मा’ना गर्म पथ्थर के हैं क्यूंकि वोह शदीद गर्मी के मोसिम में रोजे रखा करते थे। अरब कबीलों ने जब महीनों के नाम रखना चाहे तो इन अय्याम में येह महीना इन्तिहाई गर्मी के मोसिम में आया चुनान्चे, इस का नाम रमज़ान रखा गया। कुछ हज़रात का कहना है कि इस माह को रमज़ान इस लिये कहते हैं कि येह माहे मुक़द्दस गुनाहों को जला देता है।

फर्जिय्यते रोजा – रोजे का फ़र्ज़ होना

रोज़े हिजरत के दूसरे साल फ़र्ज़ किये गए, येह दीन का एक अहम रुक्न है, इस के वुजूब के मुन्किर की तक्फ़ीर की जाएगी, अहादीसे मुक़द्दसा में इस माह के बहुत से फ़ज़ाइल मन्कूल हैं जिन में से एक हदीस येह है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जब रमज़ानुल मुबारक की पहली रात आती है तो जन्नत के तमाम दरवाजे खोल दिये जाते हैं और पूरा माहे रमज़ान इन में से कोई दरवाज़ा बन्द नहीं किया जाता और अल्लाह तआला पुकारने वाले को हुक्म देता है जो निदा करता है कि ऐ नेकी के तलब करने वाले ! मुतवज्जेह हो और ऐ गुनाहों के तलबगार रुक जा।

फिर वोह कहता है : कोई बख्रिशश तलब करने वाला है जिसे बख़्श दिया जाए ? कोई साइल है जिसे अता किया जाए ? कोई तौबा करने वाला है जिस की तौबा कबूल की जाए ? और सुब्ह होने तक येह निदा होती रहती है और अल्लाह तआला हर ईदुल फित्र की रात दस लाख ऐसे बन्दों को बख़्शता है जिन पर अज़ाब वाजिब हो चुका होता है ।

हज़रते सलमान फ़ारिसी रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हमें शा’बान के आखिरी दिन खुतबा दिया और फ़रमाया ऐ लोगो ! तुम पर एक अज़ीम महीना साया फ़िगन है जिस में लैलतुल कद्र है जो हज़ार महीनों से बेहतर है, अल्लाह तआला ने इस के रोज़ों को फ़र्ज़ और इस की रातों में इबादत को सुन्नत करार दिया है, जो शख्स इस माह में किसी नेकी से कुर्ब हासिल करता है उसे दीगर महीनों में फ़र्ज़ की अदाएगी का सवाब मिलता है और जिस ने फ़र्ज़ अदा किया वोह ऐसे है जैसे उस ने दूसरे महीनों में सत्तर फ़राइज़ अदा किये।

सब्र का महीना है और सब्र का अज्र जन्नत है,

येह सब्र का महीना है और सब्र का अज्र जन्नत है, येह भाईचारे और हमदर्दी का महीना है, येह ऐसा महीना है कि जिस में मोमिन का रिज्क ज़ियादा होता है, जिस शख्स ने इस महीने में किसी रोज़ादार का रोजा इफ्तार कराया उसे गुलाम आज़ाद करने का सवाब मिलता है और उस के गुनाह बख़्श दिये जाते हैं।

हम ने अर्ज की : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम हम में से हर शख्स ऐसी चीज़ नहीं पाता जिस से वोह रोज़ादार का रोजा इफ्तार कराए, आप ने फ़रमाया : अल्लाह तआला येह सवाब हर उस शख्स को अता करता है जो किसी रोज़ादार का रोज़ा दूध के घूंट या पानी के घूंट या खजूर से इफ्तार कराता है और जिस ने किसी रोज़ादार को सैर किया तो येह उस के गुनाहों की बख्शिश होगी और अल्लाह तआला उसे मेरे हौज़ से ऐसा सैराब करेगा कि वोह इस के बाद कभी प्यासा न होगा और उसे भी रोज़ादार के बराबर अज्र मिलेगा लेकिन रोज़ादार के अज्र से कुछ कम नहीं किया जाएगा और येह वोह महीना है जिस का अव्वल रहमत, दरमियान मगफिरत और आखिर जहन्नम से आज़ादी है।

जिस ने इस महीने में अपने खादिम से तख़फ़ीफ़ की, अल्लाह तआला उसे जहन्नम से आज़ादी देगा। इस में चार काम बहुत ज़ियादा करो, दो कामों से तुम अपने रब को राजी करोगे और दो कामों से तुम्हें बे नियाज़ी नहीं है, वोह दो काम जिन से तुम अपने रब को राजी करोगे वोह ला इलाहा इल लल लाह  की शहादत और इस्तिग़फ़ार करना है और वोह दो काम जिन से तुम्हारे लिये मफ़र नहीं है वोह अपने रब से जन्नत का सुवाल और जहन्नम से पनाह मांगना है।

इन अहादीसे फ़ज़ाइल में से एक हदीस येह भी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जिस ने ईमान और तलबे सवाब के लिये माहे रमज़ान के रोजे रखे उस के अगले पिछले तमाम गुनाह बख़्श दिये जाते हैं।

 

नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं : रब तआला फ़रमाता है कि इन्सान का हर अमल उसी के लिये है सिवाए रोजे के पस तहकीक़ रोज़ा मेरे लिये है और मैं ही इस की जज़ा हूं और तुझे ऐसी इबादत काफ़ी है जिसे अल्लाह तआला ने अपनी ज़ात से मन्सूब किया है।

रोज़ादार के मुंह की बू मुश्क से बेहतर है

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम इरशाद फ़रमाते हैं कि माहे रमज़ान में मेरी उम्मत को पांच चीजें दी गई हैं जो इस से पहले किसी उम्मत को नहीं दी गई, रोज़ादार के मुंह की बू) अल्लाह के यहां मुश्क से ज़ियादा उम्दा है, उन के इफ्तार तक फ़रिश्ते उन के लिये बख्शिश तलब करते हैं, कि इस माह में सरकश शैतान कैद कर दिये जाते हैं, अल्लाह तआला हर दिन जन्नत को संवारता है और इरशाद फ़रमाता है कि अन करीब मेरे नेक बन्दे इस में दाखिल होंगे, उन से तक्लीफ़ और अज़िय्यत दूर कर दी जाएगी।

और इस महीने की आखिरी रात में उन्हें बख्शा जाता है। अर्ज किया गया : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम क्या इस से मुराद लैलतुल क़द्र है ? आप ने फ़रमाया : नहीं ! लेकिन काम करने वाला काम पूरा कर के अपना अज्र पाता है।)

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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