तवक्कुल क्या हौता है, अल्लाह पर तवक्कुल की हकीकत
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है : ” उस की कुरसी आस्मानों और जमीन को इहाता किये हुवे है”।
कुरसी से मुराद इल्मे इलाही है या मुल्के खुदावन्दी या फिर मशहूर आसमान का नाम है। हजरते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि कुरसी एक मोती है जिस की लम्बाई अल्लाह तआला के सिवा कोई नहीं जानता, हदीस में है कि सातों आसमान और ज़मीन कुरसी के सामने ऐसे हैं जैसे वसीअ सहरा में एक हल्का (गोला) पड़ा हो । मजीद फ़रमाया कि आसमान कुरसी में हैं और कुरसी अर्श इलाही के सामने है।
हज़रते इकरमा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है, सूरज कुरसी के नूर का सत्तरवां हिस्सा है और अर्शे इलाही हिजाबाते इलाही के नूर का सत्तरवां हिस्सा है।
मरवी है कि अर्श और कुरसी के उठाने वाले फरिश्तों के बीच सत्तर हज़ार नूर के और सत्तर हज़ार जुल्मत के पर्दे हाइल हैं, हर पर्दा पांच सो साल का सफ़र है, अगर यह पर्दे न होते तो हामिलीने कुरसी हामिलीने अर्श के नूर से जल जाते ।
अर्श एक नूरानी शै है जो कुरसी से ऊपर है और एक अलाहिदा वुजूद रखता है मगर इस कौल से हज़रते हसन बसरी रज़ीअल्लाहो अन्हो को इख़्तिलाफ़ है।
अर्श इलाही की बनावट
अर्शे इलाही की बनावट के मुतअल्लिक मुख्तलिफ़ रिवायतें हैं बा’ज़ कहते हैं : सुर्ख याकूत का है या सब्ज़ मोती का है बा’ज़ की राय है कि सफेद मोती से बनाया गया है, अल्लाह तआला ही इस की हक़ीक़त को बेहतर जानता है।
फ़लकियात के माहिरीन इसे नवां आसमान, फलके आ’ला, फ़लकुल अफ़लाक और फ़लके अतुलस कहते हैं । इस में कोई सितारा वगैरा नहीं है, क़दीम हैअत दानों के बक़ौल तमाम सितारे आठवें आस्मान में हैं जिस को वोह फ़लकुल बुरूज और अहले शरअ कुरसी कहते हैं।
अशें इलाही मख्लूकात की छत है, कोई चीज़ उस के दाइरे से बाहर नहीं निकल सकती, वह बन्दों के इल्मो इदराक और मतलूब की इन्तिहा है, अल्लाह तआला ने उसे “अज़ीम” करार दिया है चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है
“पस अगर वोह फिर जाएं तो कहिये कि मुझे अल्लाह काफ़ी है उस के सिवा कोई मा’बूद नहीं उसी पर मेरा भरोसा है और वोह अर्श अज़ीम का मालिक है”।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का नामे नामी तौरैत में मुतवक्किल था और क्यूं न होता, आप से बढ़ कर मा’रिफ़ते खुदावन्दी का शनासा और कौन है ? आप मुवहिहदीन के सरदार और
आरिफ़ीने कामिलीन के रहनुमा हैं, तवक्कुल की हकीक़त आप पर रोजे रोशन की तरह ज़ाहिर थी।
तवक्कुल की हकीकत
तवक्कुल का मतलब यह नहीं है कि असबाब से क़तए नज़र कर लिया जाए जैसा कि कुछ लोगों का ख़याल है बल्कि तवक्कुल अस्बाब के साथ साथ होता है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से एक बदवी ने पूछा : मैं ऊंट का पैर बांध कर, या खुला छोड़ कर तवक्कुल करूं ? आप ने । फ़रमाया : ऊंट का पाउं बांध दे और तवक्कुल कर अल्लाह पर ।
फ़रमाने नबवी है कि “अगर तुम, अल्लाह पर तवक्कुल करने की हक़ीक़त को पा लेते तो अल्लाह तआला तुम्हें परन्दों की तरह रिज्क देता जो सुब्ह भूके उठते हैं और शाम को पेट भरे होते हैं” ।
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हज़रते इब्राहीम बिन अदहम और हजरते शक़ीक़ बल्खी के दरमियान सवालो जवाब
हज़रते इब्राहीम बिन अदहम और हज़रते शकीक़ बल्खी रहमतुल्लाह अलैह की मक्कए मुअज्जमा में मुलाकात हुई, इब्राहीम ने पूछा : ऐ शक़ीक़ बल्खी ! तुम ने यह बुलन्द मर्तबा कैसे पाया ? हज़रते शक़ीक़ ने जवाब दिया कि एक मरतबा मेरा एक बयाबान से गुज़र हुवा, वहां मैं ने एक ऐसा परिंदा पड़ा देखा जिस के दोनों बाजू टूट गए थे। मेरे दिल में येह वस्वसा पैदा हुवा कि देखू तो सही इसे कैसे रिज्क मिलता है, मैं वहां बैठ गया, कुछ देर बाद एक परिंदा आया जिस की चोंच में एक टिड्डी थी और उस ने वो परन्दे के मुंह में डाल दी । मैं ने दिल में सोचा कि वो राज़िके काइनात एक परिंदे के जरीए दूसरे परिंदे का रिज्क पहुंचा देता है, मेरा रिज्क भी मुझे हर हालत में पहुंचा सकता है लिहाज़ा मैं ने सब कारोबार छोड़ दिये और इबादत में मसरूफ़ हो गया।
हज़रते इब्राहीम बिन अदहम रहमतुल्लाह अलैह ने कहा : ऐ शक़ीक़ ! तुम ने मजबूर व मा’जूर परन्दा बनना पसन्द किया और तन्दुरुस्त परन्दा बनना पसन्द न किया कि तुम को मकामे बुलन्द नसीब होता, क्या तुम ने यह फ़रमाने नबवी नहीं सुना कि ऊपर वाला हाथ नीचे वाले हाथ से बेहतर है, मोमिन तो हमेशा बुलन्दिये दरजात की तमन्ना करता है ताकि वोह अबरार की सफ़ में जगह पाता है।
हज़रते शक़ीक़ रहमतुल्लाह अलैह ने येह सुनते ही हज़रते इब्राहीम रहमतुल्लाह अलैह के हाथों को चूमा और कहा : बेशक आप मेरे उस्ताद हैं।
तवक्कुले हकीकी क्या है?
जब इन्सान रिज्क के हुसूल के अस्बाब मुहय्या कर ले तो अस्बाब की बजाए अपना नसबुल ऐन उस खालिके काइनात को बनाए जो हक़ीक़त में रोजी रसां है, साइल जो कश्कोल ले कर गदागरी करता रहता है वह कश्कोल को नहीं बल्कि हमेशा देने वाले सखी की तरफ़ मुतवज्जेह रहता है।
फरमाने नबवी है : “जो शख्स अपने आप को सब से ज़ियादा गनी बनाना चाहता है वोह अपने माल से ज़ियादा इन्आमे खुदावन्दी पर नज़र रखे।”
तवक्कुले हकीकी की एक मिसाल
हज़रते हुजैफ़ा मरअशी रहमतुल्लाह अलैह ने कई साल तक हज़रते इब्राहीम बिन अदहम रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत की थी। एक मरतबा लोगों ने इन से पूछा कि तुम हज़रते इब्राहीम रहमतुल्लाह अलैह की सोहबत का कोई अजीब वाक़िआ सुनाओ ! इन्हों ने कहा कि एक बार हम मक्का ए मुअज्जमा की तरफ जा रहे थे, रास्ते में हमारा ज़ादेराह ख़त्म हो गया हम कूफ़ा की एक वीरान मस्जिद में ठहर गए, हज़रते इब्राहीम ने मुझे देख कर फ़रमाया : तुम भूक से निढाल नज़र आते हो, मैं ने कहा : हां, मुझे शिद्दत की भूख लग रही है। आप ने मुझ से कलम दवात मंगवाई और काग़ज़ पर बिस्मिल्लाह के बाद लिखा “हर हालत में ऐ रब्बे जुल जलाल तू ही हमारा मक्सूद और हर काम में तू ही मल्जा है, फिर येह अश्आर लिखे :
मैं तेरी हम्द करने वाला, शुक्र करने वाला और ज़िक्र करने वाला हूं, मैं भूका, खस्ताहाल और बरह्ना हूं। ऐ अल्लाह ! तीन बातों का मैं ज़ामिन हूं और बकिय्या तीन की जमानत तू कबूल फ़रमा ले। तेरे सिवा किसी और की सना मेरे लिये आग से कम नहीं है, अपने बन्दे को उस आग से बचा ले।
और मुझ से फ़रमाया : दिल में किसी गैर का खयाल न लाना, जो आदमी तुम्हें सब से पहले नज़र आए यह रुक्आ दे देना । सब से पहला शख्स जो मुझे मिला वह एक खच्चर सवार था, मैं ने वह रुक्आ उस को दे दिया, उस ने पढ़ा और रोने लगा, फिर पूछा : इस रुक्ए का कातिब कहां है ? मैं ने कहा : फुलां वीरान मस्जिद में बैठा है। यह सुनते ही उस ने मुझे एक थैली दी जिस में छे सो दीनार थे, बाद में मुझे एक और शख्स मिला, मैं ने उस से खच्चर सुवार के बारे में पूछा : तो उस ने कहा कि वह नसरानी था, मैं ने वापस आ कर हज़रते इब्राहीम बिन अदहम रहमतुल्लाह अलैह को सारा वाकिआ सुनाया। आप ने फ़रमाया : ज़रा ठहरो वो अभी आ जाएगा। कुछ देर के बाद वह नसरानी आ गया और हज़रते इब्राहीम के सर को चूमने लगा और मुसलमान हो गया।
ला हौला वाला कुव्वत इल्ला बिल्लाह की एक कुव्वत
हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि अल्लाह तआला ने हामिलीने अर्श (फ़िरिश्तों) को पैदा फ़रमाया और उन्हें अर्श को उठाने का हुक्म दिया मगर वो न उठा सके, अल्लाह तआला ने हर फरिश्ते के साथ सात आस्मानों के फरिश्तों के बराबर फरिश्ते पैदा किये, फिर उन्हें अर्श उठाने का हुक्म दिया मगर वो न उठा सके, फिर अल्लाह तआला ने हर फ़रिश्ते के साथ सातों आस्मानों और ज़मीनों के फरिश्तों के बराबर फरिश्ते पैदा फ़रमाए और उन्हें अर्श उठाने का हुक्म दिया मगर वो फिर भी न उठा सके, तब अल्लाह तआला ने फ़रमाया : तुम “ला हौला वाला कुव्वत इल्ला बिल्लाह” कहो, जब उन्हों ने ये कहा तो अर्शे इलाही को उठा लिया मगर उन के कदम सातवीं ज़मीन में हवा पर जम गए । जब उन्हों ने महसूस किया कि हमारे कदम हवा पर हैं और नीचे कोई ठोस चीज़ मौजूद नहीं है तो उन्हों ने अर्शे इलाही को मजबूती से थाम लिया और ला हौला वाला कुव्वत इल्ला बिल्लाह पढ़ने में महूव हो गए ताकि वो इन्तिहाई पस्तियों पर गिरने से महफूज़ रहें अब वो अर्श को उठाए हुवे हैं और अर्शे इलाही उन्हें थामे हुवे हैं बल्कि इन तमाम को कुदरते इलाही संभाले हुवे है।
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
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