शब रात स्टेटस शब रात dp और शब रात शायरी pictures
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कहूँ किससे मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता।~ग़ालिब
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तेरा पहलू तेरे दिल की तरह आबाद रहे,
तुझ पे गुज़रे न क़यामत शब-ए-तन्हाई की।
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सफ़र तमाम करो अब कि सहर होती है
चराग़ ए आख़िर ए शब तुझको किसके नाम करूँ
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जल उठीं दर्द की शम्में बुझ गया दिल का चाँद
शब ए फ़िराक़ की अब नज़्र सब कलाम करूँ
*** Shab Shayari
कितनी मुश्किल से मैंने ख़ुद को सुलाया कल शब,
अपनी आँखों को तेरे ख़्वाब का लालच दे कर
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जागती आँखों से भी देखो दुनिया को
ख़्वाबों का क्या है वो हर शब आते हैं
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शब-ऐ-फुरकत का जागा हूं, ऐ फरिश्तों अब तो सोने दो
कभी होगी फुरसत तो कर लेना, हिसाब आहिस्ता आहिस्ता.
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कब से हूँ क्या बताऊँ जहान-ए-ख़राब में
शब हाय हिज्र को भी रखूं गर हिसाब में ~ग़ालिब
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ग़ालिब छुटी शराब पर अब भी कभी कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र-ओ-शब-ए-माहताब में
~ग़ालिब
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दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब की जली हुई
इक शम्मा रह गई है सो वो भी ख़मोश है
~ग़ालिब
*** Shab Shayari
जुल्मतकदे में मेरे शब-ऐ-ग़म का जोश है,
इक शम्मा है दलील-ए-सहर सो खामोश है.. ~ग़ालिब
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सियाही जैसे गिर जावे दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर
मिरी क़िस्मत में यूँ तस्वीर है शब-हा-ए-हिज्राँ की
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तुम्हारे ख़ाब से हर शब लिपट के सोते हैं
सज़ाएं भेज दो, हमने ख़ताएँ भेजी हैं #Gulzar
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तमाम शब जहाँ जलता है इक उदास दिया
हवा की राह में इक ऐसा घर भी आता है
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इक तो शब-ए-फ़िराक़ के सदमे हैं जाँ-गुदाज़
अंधेर इस पे ये है कि होती सहर नहीं ~हैरत_इलाहाबादी
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ये दिल में था कि आज शब बिताएँ अपने साथ हम
निकल-निकल के आ गई इबारतें किताब से … ~निश्तर_ख़ानक़ाही
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हमें ख़बर है के हम हैं चराग़-ए-आख़िर-ए-शब
हमारे बाद अँधेरा नहीं उजाला है ~ज़हीर_कश्मीरी
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मुझसे ही दिलबरी तुम करो मुझसे ही राब्ता रहे
मुझसे ही तेरी सहर हो मुझसे ही शब ढलने लगे
*** Shab Shayari
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शब-ए-फुर्कत इन्हें देखे से अपना जी बहलता है,
झलक है जल्वा-ए-यार की कुछ कुछ सितारों में
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तुम आ सको तो शब को बढ़ा दो कुछ और भी,
अपने कहे में सुब्ह का तारा है इन दिनों!
*** Shab Shayari
याद का फिर कोई दरवाज़ा खुला आख़िरे-शब
दिल में बिख़री कोई ख़ुशबू-ए-क़बा आख़िरे-शब
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कुछ बे-अदबी और शब-ए-वस्ल नहीं की
हाँ यार के रुख़्सार पे रुख़्सार तो रक्खा
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तुम चले जाना शब-ए-वस्ल को ढल जाने दो
अपने तालिब की तबीयत तो बहल जाने दो
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तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार जब से है
न शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से है
*** Shab Shayari
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दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से
फिर तेरा वादा-ए-शब याद आया
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तफ़्सील-ए-इनायात तो अब याद नहीं है
पर पहली मुलाक़ात की शब याद है मुझ को
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मेरी शब-ए-तारीक का चेहरा हुआ रौशन
सूरज सा कोई शाम को महताब में डूबा
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टूटी जो आस जल गये पलकों पे सौ चिराग़,
निखरा कुछ और रंग शब-ए-इंतज़ार का !!- मुमताज़ मिर्ज़ा
*** Shab Shayari
मैं तमाम दिन का थका हुआ, तू तमाम शब का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर, तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ -Bashir badr
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पलकों ने इतनी एड़ीयां रगड़ी शब-ए-फ़िराक़
ज़म ज़म तुम्हारी याद का जारी है आज भी
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सितारों से उलझता जा रहा हूँ
शब-ए-फ़ुरक़त बहुत घबरा रहा हूँ
तेरे ग़म को भी कुछ बहला रहा हूँ
जहाँ को भी समझा रहा हूँ
*** Shab Shayari
तुम आये हो न शब ए इंतज़ार गुज़री है
तलाश में है सहर, बार बार गुज़री है
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ज़िक्र-ए-शब-ए-विसाल हो क्या क़िस्सा मुख़्तसर
जिस बात से वो डरते थे वो बात हो गई !!
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सामने उम्र पड़ी है शब-ए-तन्हाई की
वो मुझे छोड़ गया शाम से पहले पहले
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जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र-भर करते रहे ~
चाँद के हमराह हम हर शब सफ़र करते रहे!
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शब-ए-तन्हाई-ए-फ़ुर्क़त में दिल से,
कुछ उस की गुफ़्तुगू है और मैं हूँ !!
*** Shab Shayari
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उस शब का नुज़ूल हो रहा है जिस शब की सहर न मिल सकेगी
पूछोगे हर इक से हम कहाँ हैं और अपनी ख़बर न मिल सकेगी
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शिकवा-ए-जुल्मते-शब से तो कहीं बेहतर था।।
अपने हिस्से की कोई शमअ जलाते जाते।।
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किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल,
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते…
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इस शहर-ए-बे-चराग़ में जाएगी तू कहाँ,
आ ऐ शब-ए-फ़िराक़ तुझे घर ही ले चलें!
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तुम भी हर शब दिया जला कर पलकों की दहलीज़ पर रखना
मैं भी रोज़ इक ख़्वाब तुम्हारे शहर की जानिब भेजूँगा
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मिटा सकी न उन्हें रोज़ ओ शब की बारिश भी
दिलों पे नक़्श जो रंग-ए-हिना के रक्खे थे
*** Shab Shayari
लम्बी है बहुत आज की शब जागने वालो
और याद मुझे कोई कहानी भी नहीं है
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शब-ए-इन्तज़ार की कशमकश न पूछ कैसे सहर हुई
कभी इक चिराग़ जला दिया कभी इक चिराग़ बुझा दिया.
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है निस्फ-ए-शब वो दीवाना अभी तक घर नहीं आया
किसी से चाँदनी रातों का किस्सा छिड़ गया होगा
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वादे की रात वो आए ही नहीं
उस शब की अब तक सुबह न हुई
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ये एक शब की मुलाक़ात भी ग़नीमत है।।
किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो।। ~फ़राज़
*** Shab Shayari
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब ए ग़म गुज़ार के ~Faiz
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न पूछो कि किस तरह ये शब गुज़ारी है
ग़म-ए-हिज्र से बेहाल होकर ज़िंदगी हारी है,
ताउम्र भटकता रहा है तन्हा अक्स मेरा ऐसे
अब तो बस आईने में नुमाया शख़्स से ही यारी है !…
*** Shab Shayari
ये नही इल्म के किस तरह करूंगा…
लेकिन बात ये तय है के इस शब को सहर करना है…