हुकूके शोहर – शोहर के हक़ बीवी पर
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
निकाह इताअत की एक किस्म है लिहाज़ा बीवी शोहर की मुती है और उस पर लाज़िम है कि शौहर उस से जो कुछ तलब करे वोह उस की इताअत करे ब शर्त येह कि वोह उसे अल्लाह तआला की ना फ़रमानी का हुक्म न दे । बीवी पर शौहर के हुकूक के मुतअल्लिक बहुत सी अहादीस वारिद हुई हैं, इरशादे नबवी है कि जो औरत इस हालत में मरे कि उस का शौहर उस से राजी हो वोह जन्नत में जाएगी।
एक शख्स सफ़र पर रवाना हुवा और उस ने अपनी बीवी से अहद लिया कि वोह ऊपर से नीचे न उतरे, उस का बाप नीचे रहता था, वोह बीमार हो गया, उस औरत ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में आदमी भेज कर बाप के पास जाने की इजाज़त तलब की, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि अपने शौहर की इताअत कर, फिर वोह मर गया और औरत ने फिर इजाज़त तलब की तो हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : अपने शौहर की इताअत कर, उस के बाप को दफ्न कर दिया गया और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने उसे खबर दी कि अल्लाह तआला ने उस के शौहर की इताअत की वज्ह से उस के बाप को बख़्श दिया है।
नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फरमान है कि जब औरत ने पांच नमाजें पढ़ीं, माहे रमजान के रोज़े रखे, अपनी इस्मत की हिफाज़त की और अपने शोहर की इताअत की, वोह अपने रब की जन्नत में दाखिल हुई।
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और सरकार सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने शोहर की इताअत को इस्लाम की मबादियात में से करार दिया।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में औरतों का तजकिरा हुवा तो आप ने फ़रमाया : हामिला, बच्चा जनने और दूध पिलाने वाली, अपनी औलादों पर मेहरबानी करने वाली
औरतें, अगर अपने शोहर की ना फ़रमानी न करें तो इन में जो नमाज़ पढ़ने वाली हैं वोह जन्नत में दाखिल होंगी।
रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि मैं ने जहन्नम को देखा उस में रहने वाली अक्सर औरतें थीं तो ख़वातीन में से बा’ज़ ने अर्ज किया : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम किस की वज्ह से ? आप ने फ़रमाया : कसरत से ला’नत करती हैं और शौहर की ना फ़रमानी करती हैं।या’नी जो इन्हें ज़िन्दगी गुज़ारने में मदद देता है, उस के शुक्रिय्ये की बजाए कुफ्रान करती हैं।
दूसरी हदीस में आया है कि मैं ने जन्नत को देखा, उस में सब से कम औरतें थीं, मैं ने कहा : औरतें कहां हैं ? जिब्रील ने कहा : इन्हें दो सुर्ख चीज़ों ने मश्गूल कर दिया है, सोने और जा’फ़रान ने, या’नी जेवरात और रंगीन कपड़ों ने ।
शादी करने में भलाई है
हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की ख़िदमत में एक जवान औरत ने आ कर अर्ज़ की : या रसूलल्लाह ! मैं जवान औरत हूं मुझे निकाह के पैगाम आते हैं मगर मैं शादी को मकरूह समझती हूं, आप मुझे बताएं कि बीवी पर शौहर का क्या हक़ है ? आप ने फ़रमाया : अगर शौहर की चोटी से ऐड़ी तक पीप हो और वोह इसे चाटे तो शौहर का हक अदा नहीं कर पाएगी, उस ने पूछा : तो मैं शादी न करूं ? आप ने फ़रमाया कि तुम शादी करो क्यूंकि इस में भलाई है।
हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि बनू खसअम की एक औरत हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में आई और कहा : मैं गैर शादी शुदा औरत हूं और शादी करना चाहती हूं, शौहर के क्या हुकूक हैं ? आप ने फ़रमाया : बीवी पर शौहर का येह हक़ है कि जब वोह उस का इरादा करे, अगर उस के इरादे के वक्त वोह ऊंट की पीठ पर हो तब भी उसे न रोके। शौहर का येह भी हक़ है कि बीवी उस के घर से उस की इजाज़त के बिगैर कोई चीज़ न दे, अगर उस ने बिला इजाज़त कुछ दे दिया तो गुनहगार होगी और शौहर को सवाब होगा, बीवी पर येह भी हक़ है कि शौहर की इजाज़त के बिगैर नफ़्ली रोजे न रखे, अगर उस ने ऐसा किया तो वोह भूकी प्यासी रही और उस का रोज़ा कबूल नहीं होगा और अगर घर से शौहर की इजाजत के बिगैर बाहर निकली तो जब तक वोह वापस न हो जाए या तौबा न करे, फ़िरिश्ते उस पर ला’नत करते रहते हैं।
शोहर का मर्तबा हदीसे पाक
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं कि अगर मैं किसी को किसी के लिये सजदे का हुक्म देता तो औरत को हुक्म देता कि वोह अपने शौहर को सजदा करे । क्यूंकि शौहर के बीवी पर बहुत हुकूक हैं।
फरमाने नबवी है : औरत उस वक्त रब तआला से जियादा करीब होती है जब वोह घर के अन्दर हो ।
औरतों का घर में नमाज़ पढना मस्जिद से अफज़ल है हदीस शरीफ
और औरत का घर के सहून में नमाज़ पढ़ना मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से अफ़ज़ल है।
और घर के अन्दर नमाज़ पढ़ना सहन में नमाज़ पढ़ने से अफ़ज़ल है और घर के अन्दर वाले घर में उस की नमाज़ कमरे में नमाज़ से अफ़ज़ल है।
येह आप ने मजीद पर्दा नशीनी के लिये फ़रमाया, इसी लिये फ़रमाने नबवी है कि औरत सरासर बर्हनगी है, जब वोह निकलती है तो शैतान उसे झांकता है।
नीज़ फ़रमाया कि औरत के लिये दस बर्हनगियां हैं जब वोह शादी करती है तो शौहर उस की एक बहरनगी ढांप लेता है और जब वोह मरती है तो कब्र उस की तमाम उरयानियां छुपा लेती है ।
औरत पर शौहर के बहुत से हुकूक हैं, इन में से दो बातें अहम हैं, इन में से एक निगहबानी और पर्दा है, दूसरा हाजत के इलावा दीगर चीज़ों का मुतालबा न करना और मर्द की हराम की कमाई से हासिल कर्दा रिज्क से परहेज़, गुज़श्ता ज़माने में औरतों का येही किरदार था।
चुनान्चे, आदमी जब घर से बाहर निकलता तो उस की बीवी या बेटी उसे कहती कि हराम की कमाई से बचना क्यूंकि हम दुख दर्द और भूक बरदाश्त कर सकते हैं मगर जहन्नम की आग बरदाश्त नहीं कर सकते।
गुज़श्ता लोगों में से एक आदमी ने सफ़र का इरादा किया तो उस के हमसाइयों ने उस के सफ़र को अच्छा न समझा और उन्हों ने उस की बीवी से कहा : तू उस के सफ़र पर कैसे राजी हुई हालांकि उस ने तेरे लिये खर्च वगैरा नहीं छोड़ा, औरत ने कहा : मेरा शौहर जब से मैं उसे जानती हूं मैं ने उसे बहुत खाने वाला पाया है, रिज्क देने वाला नहीं पाया, मेरा रब रज्जाक है, खाने वाला चला जाएगा और रिज्क देने वाला बाकी रहेगा।
एक नेक बीवी का किस्सा
हज़रते राबिआ बिन्ते इस्माईल ने हज़रते अहमद बिन अबिल हवारी को निकाह का पैगाम दिया मगर उन्हों ने अपनी इबादत गुज़ारी की वज्ह से शादी को ना पसन्द किया और उन से जवाब में कहा ब खुदा ! इबादत की मश्गूलिय्यत की वजह से मुझे औरतों से महब्बत और उन्स नहीं रहा। राबिआ ने कहा : मैं आप को अपने शग्ल से मुन्हरिफ़ करने और ख्वाहिशात की तक्मील के लिये निकाह का पैगाम नहीं दे रही हूं बल्कि मैं ने अपने साबिक़ शौहर के विरसा में से माले कसीर पाया है, मैं चाहती हूं कि येह माल आप के नेक भाइयों पर खर्च करूं और आप के सबब मुझे आप के भाइयों का पता चल जाएगा और मैं नेकों की खिदमत कर के अल्लाह तआला का रास्ता पा लूंगी। हज़रते अहमद रहमतुल्लाह अलैह ने कहा : मैं अपने शैख़ से इजाज़त ले लूं चुनान्चे, आप अपने शैख़ हज़रते अबू सुलैमान दारानी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में आए, कहते हैं कि हज़रते अबू सुलैमान अपने मुरीदीन को शादी से मन्अ किया करते थे और कहते थे कि हमारे साथियों में से जिस ने भी शादी की है उस की हालत दिगर गूं हुई है, जब उन्हों ने राबिआ की बातें सुनी तो मुझ से फ़रमाया : उस से निकाह कर लो क्यूंकि येह वलिय्या है, ब खुदा ! ऐसी बातें सिद्दीक़ीन की होती हैं, हज़रते अहमद रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं कि मैं ने राबिआ से निकाह कर लिया। हमारे घर में गच का सिर्फ एक कुंडा था जो खाना खाने के बाद जल्दी से हाथ धो कर बाहर जाने वालों की वज्ह से टूट गया, इश्नान (एक बूटी जो साबुन का काम देती है) से हाथ धोने वाले इस के इलावा होते थे। हज़रते अहमद कहते हैं कि मैं ने उस के बा’द तीन और औरतों से निकाह किया, राबिआ मुझे खूब खिलाती और खुश्बूएं वगैरा लगाती और कहा करती कि अपनी खुशी और कुव्वत के साथ अपनी बीवियों के पास जाओ और येह राबिआ शाम में ऐसी पहचानी जाती थी जैसे बसरा में राबिआ अदविय्या पहचानी जाती थीं।
बीवी पर येह भी लाज़िम है कि वोह शौहर के माल को जाएअ न करे बल्कि उस की हिफ़ाज़त करे, फ़रमाने नबवी है : औरत के लिये हलाल नहीं कि शौहर के घर से उस की इजाज़त के बिगैर कुछ खाए। हां ऐसा खाना खा सकती है जिस के खराब होने का अन्देशा हो, अगर बीवी, शौहर की रजामन्दी से खाएगी तो उसे शौहर के बराबर सवाब मिलेगा वरना शौहर की इजाज़त के बिगैर कुछ खाएगी तो शौहर को अज्र मिलेगा मगर बीवी पर गुनाह होगा।
वालिदैन पर हक़ है कि वोह लड़की की बेहतरीन तर्बिय्यत करें, उसे ऐसी तालीम दें जिस से वोह उम्दा रह्न सह्न और शौहर से बेहतर बरताव के आदाब सीख जाए
बेटी को शादी के वक़्त नेक माँ की नसीहत
जैसा कि मरवी है कि अस्मा बिन्ते खारिजा फ़ज़ारी ने अपनी बेटी की शादी के वक्त उस से कहा : अब तुम उस नशेमन से निकल रही हो जो तुम्हारा मल्जा व मामन था लेकिन अब तुम ऐसे फ़राश पर जा रही हो जिस से तुम्हारा कभी वासिता न पड़ा और ऐसे शोहर के पास जिस से तुम ने कभी भी उल्फ़त नहीं की तो तुम उस के लिये ज़मीन बन जाओ वोह तुम्हारा आस्मान होगा तुम उस का बिछौना बन जाओ वोह तुम्हारे लिये इमारत होगा तुम उस की बांदी बनना वोह तुम्हारा खादिम होगा, उस से किनारा कश न रहना वरना वोह तुझ से दूर हो जाएगा, उस से दूर न होना वरना वोह तुझे भूल जाएगा, अगर वोह तेरा कुर्ब चाहे तो उस के करीब हो अगर वोह तुझ से दूर होना चाहे तो तू भी दूर हो जा, उस की नाक, कान और आंख की हिफ़ाज़त करना ताकि वोह तुझ से उम्दा खुश्बू के इलावा और कुछ न सूंघे, उम्दा बात के सिवा और कुछ न सुने और वोह तुझे हमेशा खूब सूरत ही देखे । एक शख्स ने अपनी बीवी से कहा :
मुआफ़ करना इख्तियार कर मेरी महब्बत दाइम रहेगी और जब मुझे गुस्सा आ जाए तो मेरी शान में न बोलना। मुझे दफ़ की तरह ठोकर न लगाना क्यूंकि तू नहीं जानती कि मैं कैसे गाइब हो जाता हूं। और शिकायात ज़ियादा न करना कि महब्बत ख़त्म हो जाएगी और मेरा दिल तेरा इन्कार कर देगा और दिल तो बदलते रहते हैं। मैं ने दिल में महब्बत और अदावत देखी है और जब दोनों जम्अ हों तो महब्बत नहीं रहती वोह चली जाती है।
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
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