तकब्बुर व खुदबीनी

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 अल्लाह तआला तुम को और मुझ को दुनिया और आख़िरत में भलाई की तौफ़ीक़ दे, खूब गौर कर लो कि तकब्बुर और खुदबीनी फ़ज़ाइल से दूर कर देते हैं और रज़ाइल के हुसूल का ज़रीआ बनते हैं और तेरी रिजालत (घटियापन)  के लिये इतना ही काफ़ी है कि तकब्बुर तुझे नसीहत सुनने नहीं देता और तू अच्छी आदतों के क़बूल करने से पसो पेश करता है, इसी लिये दानिशमन्दों ने कहा है कि हया और तकब्बुर से इल्म जाएअ हो जाता है, इल्म तकब्बुर के लिये मुसीबत है जैसे कि बुलन्दो बाला इमारतों के लिये सैलाब मुसीबत होता है।

फ़रमाने नबवी है : वो शख्स जन्नत में नहीं जाएगा जिस के दिल में एक दाने के बराबर भी तकब्बुर होगा।

फ़रमाने नबवी है : जो तकब्बुर की वज्ह से अपना कपड़ा घसीटते हुवे चलता है, अल्लाह तआला उस की तरफ़ नज़रे रहमत नहीं फ़रमाएगा।

दानाओं का कौल है कि तकब्बुर और खुदबीनी की वज्ह से मुल्क हमेशा नहीं रहता और अल्लाह तआला ने भी तकब्बुर का फ़साद के साथ बयान फ़रमाया है

चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है : यह आख़िरत का घर हम उन लोगों को अता करते हैं जो ज़मीन में तकब्बुर और फ़साद नहीं चाहते। और फ़रमाने इलाही है :  अलबत्ता मैं उन लोगों से जो ज़मीन में तकब्बुर और फसाद करते हैं अपनी निशानियों को फेर लूंगा।

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एक दाना का कौल है कि जब मैं किसी मुतकब्बिर को देखता हूं तो उस के तकब्बुर का जवाब तकब्बुर से देता हूं।

कहते हैं कि इब्ने अवाना इन्तिहाई मुतकब्बिर आदमी था, उस ने एक मरतबा अपने गुलाम से कहा : मुझे पानी पिलाओ ! गुलाम बोला : हां ! इब्ने अवाना यह सुन कर चिल्लाया कि “हां” तो वो कहे जिसे “ना” कहने का इख़्तियार हो, यह कह कर उसे तमांचे मारे और उस ने मिज़ारे को बुला कर उस से बात चीत की, जब गुफ्तगू से फ़ारिग हुवा तो पानी मंगवा कर कुल्ली की ताकि उस से गुफ्तगू की नजासत दूर हो जाए।

और कहा गया है कि फुलां ने खुद को तकब्बुर की उस सीढ़ी पर पहुंचा दिया है कि अगर वोह गिर गया तो फिर टूट फूट जाएगा।

जाहिज़ का कौल है कि कुरैश में बनू मख्जूम और बनू उमय्या का तकब्बुर मशहूर था जब कि अरब में बनू जा’फ़र बिन किलाब और बनू जुरारा बिन अदी का तकब्बुर मशहूर था और अकासिरा लोगों को अपना गुलाम तसव्वुर करते थे और खुद को उन का मालिक तसव्वुर करते थे।

बनू अब्दुद्दार कबीले के एक आदमी से कहा गया कि तुम ख़लीफ़ा के पास क्यूं नहीं आते ? वोह बोला : मैं इस बात से डरता हूं कि वोह पुल मेरे इज्जतो एहतिराम को नहीं उठा सकेगा।

हज्जाज बिन अरतात से कहा गया : क्या वज्ह है कि तुम जमाअत में शामिल नहीं होते, उस ने जवाब दिया कि मैं दुकानदारों के कुर्ब से घबराता हूं। और येह भी कहा गया है कि वाइल बिन हुज्र हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के यहां आया और आप ने उसे ज़मीन का एक टुकड़ा दिया और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हज़रते अमीरे मुआविय्या रज़ीअल्लाहो अन्हो से फ़रमाया कि इसे वोह ज़मीन दिखा दो और लिख भी दो ! चुनान्चे, हज़रते मुआविय्या रज़ीअल्लाहो अन्हो शदीद गर्मी के आलम में उस के साथ रवाना हुवे, वोह ऊंटनी पर सुवार हो गया और आप पैदल चलने लगे, जब उन्हें गर्मी ने निहायत तंग किया तो उन्हों ने उसे कहा कि मुझे अपने पीछे ऊंटनी पर बिठा लो। उस ने कहा : मैं तुम्हें अपनी ऊंटनी पर नहीं बिठाऊंगा क्यूंकि मैं उन बादशाहों में से नहीं जो लोगों को अपने पीछे ऊंटनियों पर सुवार कर लेते हैं।

आप ने फ़रमाया : मैं नंगे पाउं हूं मुझे अपने जूते ही दे दो, वाइल बोला : ऐ अबू सुफ़्यान के बेटे ! मैं बुख्ल की वज्ह से नहीं बल्कि इस वज्ह से तुम्हें अपने जूते नहीं देता कि मैं इस बात को ……ईरान के सलातीन जो किस्रा से मौसूम थे। अच्छा नहीं समझता कि यमन के बादशाहों को येह खबर मिले कि तुम ने मेरे जूते पहने हैं अलबत्ता तुम्हारी इज्जत अफ़्ज़ाई के लिये इतना कर सकता हूं कि तुम मेरी ऊंटनी के साए में चलते रहो। कहते हैं कि उस ने अमीरे मुआविय्या रज़ीअल्लाहो अन्हो का ज़माना पाया और वोह आप के दौरे हुकूमत में एक दफ़्आ आप के यहां आया तो आप ने उसे अपने साथ तख्त पर बिठाया और गुफ्तगू की।

मसरूर बिन हिन्द ने एक आदमी से कहा कि तुम मुझे पहचानते हो ? वोह बोला कि नहीं ! मसरूर ने कहा मैं मसरूर बिन हिन्द हूं, उस आदमी ने कहा : मैं तुझे नहीं पहचानता, मसरूर चिल्ला कर बोला : खुदा उसे गारत करे जो चांद को नहीं पहचानता ।

ऐसे ही मुतकब्बिरों के बारे में शाइर ने कहा है :

उस बे वुकूफ़ से कह दो कि जो तकब्बुर से अपने सुरीन मटका कर चल रहा है अगर तुझे मालूम हो जाए कि इन में क्या है तो तू हैरान न हो।तकब्बुर दीन का फ़साद, अक्ल की कमी का बाइस और इज्जत की हलाकत है, इस से खबरदार रह।

और कहा गया है कि हर कमीना आदमी तकब्बुर करता है और हर बुलन्द मर्तबा आदमी इन्किसारी को अपनाता है।

फ़रमाने नबवी है कि तीन चीजें हलाक करने वाली हैं : दाइमी बुख़्ल, ख्वाहिशाते नफ्सानी की पैरवी और इन्सान का खुद को बहुत बड़ा समझना ।

हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया :

जब हज़रते नूह के विसाल का वक्त करीब आया तो इन्हों ने अपने बेटों को बुला कर फ़रमाया : मैं तुम्हें दो चीज़ों का हुक्म देता हूं और दो चीज़ों से रोकता हूं मैं तुम्हें शिर्क और तकब्बुर से रोकता हूं और “ला इलाहा इललल्लाह”  पढ़ने का हुक्म देता हूं क्यूंकि ज़मीनो आस्मान और इन में मौजूद सब अश्या एक पलड़े में और येह कलिमा दूसरे पलड़े में रख दिया जाए तब भी येह कलिमा भारी रहेगा और अगर आस्मानो ज़मीन एक दाइरे में रख दिये जाएं और येह कलिमा उन के ऊपर रख दिया जाए तो वोह उन्हें दो टुकड़े कर देगा और तुम्हें “सुबहान अल्लाहे वबे हम देहि” – पढ़ने का हुक्म देता हूं क्यूंकि येह कलिमा हर चीज़ की नमाज़ है और इसी की वज्ह से हर चीज़ को रिज्क दिया जाता है।

हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम  का फरमान है : उस शख्स के लिये खुश खबरी है जिस को अल्लाह तआला ने किताब का इल्म दिया और वोह मुतकब्बिर हो कर नहीं मरा ।

। हज़रते अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ीअल्लाहो अन्हो एक मरतबा लकड़ियों का गठ्ठा सर पर उठाए बाज़ार से गुज़रे, आप से किसी ने कहा कि आप को लकड़ियों का गठ्ठा उठाने की क्या ज़रूरत पेश आ गई है हालांकि आप को इन की ज़रूरत नहीं है, आप ने फ़रमाया : मैं ने चाहा लकड़ियों का गठ्ठा सर पर उठा कर बाज़ार से गुज़रू ताकि मेरे दिल में से तकब्बुर निकल जाए।

तफ्सीरे कुरतुबी में फ़रमाने इलाही :

और वोह औरतें अपने पैर जमीन पर न मारें।

के येह मा’ना हैं कि वोह इज़हारे जीनत और लोगों को अपनी तरफ़ मुतवज्जेह करने के लिये अगर ऐसा करें तो येह उन के लिये हराम है और इसी तरह जो शख्स तकब्बुर के तौर पर अपना जूता ज़मीन पर ज़ोर ज़ोर से मार कर चलता है तो येह भी हराम है क्यूंकि इस में सरासर तकब्बुर ही तकब्बुर है।

 

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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तकब्बुर का बुरा अंजाम

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 तकब्बुर की मज़म्मत और बद अन्जामी के मुतअल्लिक़ क़ब्ल अज़ी जो कुछ लिखा जा चुका है, अब इस में कुछ और इज़ाफ़ा किया जाता है।

तकब्बुर पहला गुनाह है

तकब्बुर वो पहला गुनाह है जो इब्लीस से सरज़द हुवा, फिर अल्लाह तआला ने इस पर ला’नत की, इसे उस जन्नत से जिस की चौड़ाई आस्मान और ज़मीन के बराबर है, निकाल कर जहन्नम के अज़ाब में फेंक दिया।

हदीसे कुदसी में है : रब तआला फ़रमाता है कि “तकब्बुर मेरी चादर और बड़ाई मेरा लिबास है, जो शख्स इन दो में से किसी एक के बारे में मुझ से झगड़ा करेगा मैं उस के दांत तोड़ दूंगा और मुझे किसी की परवा नहीं है”

हदीस में वारिद है कि मुतकब्बिर (घमंड करने वाला), इन्सानों की शक्ल में च्यूंटियों की तरह कब्रों से उठेंगे, हर तरफ़ से ज़िल्लतो रुस्वाई उन्हें ढांप लेगी और उन्हें दोज़खियों की पीप की मिट्टी पिलाई जाएगी। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : तीन शख्स ऐसे हैं कि अल्लाह तआला कियामत के दिन उन से ‘कलाम’ नहीं करेगा, उन की तरफ़ नहीं देखेगा और उन के लिये दर्दनाक अज़ाब है : ‘बूढ़ा ज़ानी’, ‘ज़ालिम बादशाह’ और ‘सरकश मुतकब्बिर’ ।

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हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : उन्हों ने येह आयत पढ़ी :

और जब उसे कहा जाता है कि अल्लाह से  डर तो उस को इज्जत ने गुनाह के साथ पकड़ा। फिर फ़रमाया : बेशक हम अल्लाह के लिये हैं और बेशक हम उसी की तरफ़ लौटने वाले हैं ।

एक मुतकब्बिर ने एक ऐसे शख्स को जो “नेकी और अच्छी बातों का हुक्म देता था” कत्ल कर दिया तो दूसरा शख्स खड़ा हो गया और उस ने कहा : तुम उन लोगों को क़त्ल करते हो जो तुम्हें अच्छी बातें और नेक अमल करने का हुक्म देते हैं, तब मुतकब्बिर ने उसे भी कत्ल कर दिया जिस ने उस की मुखालफत की और उसे भी जिस ने उसे नेकी का हुक्म दिया था।

हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : इन्सान के गुनहगार होने के लिये इतना काफ़ी है कि जब उसे अल्लाह से डरने को कहा जाए तो वो येह कहे कि तुम अपना ख़याल रखो !  हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने एक शख्स से फ़रमाया कि दाएं हाथ से खाओ, उस ने कहा : मैं दाएं हाथ से खाने की ताक़त नहीं रखता, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि तू ताकत नहीं रखेगा। उस शख्स को दाएं हाथ से खाना खाने से तकब्बुर ने रोक दिया था, रावी कहते हैं कि इस के बाद उस शख्स ने उस हाथ को न उठाया या’नी वोह शल हो गया (और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने उस के हक़ में जो इरशाद फ़रमाया था वो पूरा हो गया)।

रिवायत है कि हज़रते साबित बिन कैस बिन शम्मास रज़ीअल्लाहो अन्हो ने अर्ज किया : या रसूलल्लाह ! मैं ऐसा आदमी हूं कि खूब सूरत लिबास और साफ़ सुथरा रहने को पसन्द करता हूं क्या यह तकब्बुर है ? आप ने फ़रमाया : नहीं बल्कि तकब्बुर हक़ से चश्म पोशी करना और लोगों को हक़ीर समझना है, हालांकि वो अल्लाह के बन्दे हैं ।

हज़रते वहब बिन मुनब्बेह रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि जब हज़रते मूसा अलैहहिस्सलाम  ने फ़िरऔन से कहा : ईमान ला, तेरा मुल्क तेरे ही पास रहेगा तो फ़िरऔन ने कहा : मैं हामान से मश्वरा कर लूं, चुनान्चे, जब उस ने हामान से मश्वरा किया तो उस ने कहा कि अब तक तो तू रब रहा है, लोग तेरी इबादत करते रहे हैं और अब तू इबादत करने वाला बन्दा बनना चाहता है ? फ़िरऔन ने येह मश्वरा सुना तो तकब्बुर की वज्ह से अल्लाह का बन्दा बनने और मूसा अलैहहिस्सलाम  की पैरवी करने से इन्कार कर दिया, पस अल्लाह तआला ने उसे गर्क कर दिया।

अल्लाह तआला ने कुरैश के बारे में फ़रमाया है कि जब उन्हें इस्लाम की दावत दी गई तो वोह कहने लगे :

यह कुरआने मजीद उन दो बस्तियों (मक्का और

ताइफ) के बड़े लोगों पर क्यूं नहीं उतारा गया। हज़रते कतादा रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि दो बस्तियों के बड़ों से मुराद वलीद बिन मुगीरा और अबू मसऊद सकफ़ी थे, कुरैशे मक्का ने उन का ज़िक्र इस लिये किया था कि वोह ज़ाहिरी मालो दौलत में नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से आगे बढ़े हुवे थे और उन्हों ने कहा : मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम) तो यतीम इन्सान हैं अल्लाह तआला ने उन्हें कैसे हमारे लिये भेजा है !

अल्लाह तआला ने फ़रमाया :

क्या वो तेरे रब की रहमत तक्सीम करते हैं ? फिर अल्लाह तआला ने उन के जहन्नम में दाखिल होने के वक्त उन के इस तअज्जुब की खबर दी है जब कि उन्हों ने अहले सुफ्फा को जिन्हें वो हकीर समझते थे, जहन्नम में न देखा तो फिर वो कहेंगे कि: “और हमें क्या हो गया है कि हम उन लोगों को नहीं देखते जिन्हें हम शरीरों से गिना करते थे। रिवायत है कि अशरार से उन की मुराद हज़रते अम्मार, बिलाल, सुहैब और मिक्दाद रज़ीअल्लाहो अन्हो होंगे।

हज़रते वहब रज़ीअल्लाहो अन्हो का कहना है कि इल्म, आस्मान से नाज़िल होने वाली साफ़, शफ़्फ़ाफ़ मीठी बारिश की तरह है जिसे पौधे  अपनी जड़ों के जरीए पी कर अपने जाइके बदला करते हैं, चुनान्चे, कड़वे की कड़वाहट और मीठे की मिठास बढ़ती है, इसी तरह लोग इल्म को अपनी हिम्मतों और ख्वाहिशात के मुताबिक़ हासिल करते हैं और इस से मुतकब्बिर का तकब्बुर और मुतवाजेअ का इन्किसार बढ़ता है और यह इस लिये होता है कि जिस जाहिल का नसबुल ऐन और मतमहे नज़र तकब्बुर होता है, जब वो इल्म हासिल कर लेता है तो उसे एक ऐसी चीज़ मिल जाती है जिस की वज्ह से वो और ज़ियादा तकब्बुर कर सकता है और वोह तकब्बुर ही में बढ़ता चला जाता है और जब कोई शख्स बे इल्मी के बा वुजूद अल्लाह से खाइफ़ रहता है तो जब वो इल्म हासिल करता है तो उसे मा’लूम हो जाता है कि उस के लिये खौफे खुदा के मुकम्मल दलाइल लाए गए हैं, चुनान्चे, उस का ख़ौफ़, शफ़्क़त और इन्किसारी बढ़ती है। चुनान्चे, हज़रते अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : एक क़ौम होगी जो कुरआन पढ़ेंगे मगर वो उन के हल्क़ से नीचे नहीं जाएगा, कहेंगे कि हम ने कुरआन पढ़ा है, हम से ज़ियादा अच्छा कारी और आलिम कौन है ? फिर आप ने सहाबए किराम की तरफ़ मुतवज्जेह हो कर फ़रमाया : ऐ उम्मत ! वो तुम में से होंगे वोह जहन्नम का ईंधन होंगे।

हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि मुतकब्बिर उलमा न बनो कि तुम्हारा इल्म तुम्हारी जहालत से आगे न बढ़े।

हिकायत – गुनाहगार और आबिद का किस्सा

बनी इस्राईल में एक शख्स था जिस के कसरते गुनाह और फ़ितना व फ़साद की वज्ह से उसे बनी इस्राईल का खलीअ कहा जाता था जिस के मा’ना हैं अपने गुनाहों से बनी इस्राईल को आजिज़ करने वाला, एक मरतबा उस का ऐसे इन्सान से गुज़र हुवा जिसे बनी इस्राईल का आबिद कहा जाता था, आबिद के सर पर बादल का टुकड़ा साया किये हुवे था, जब उस गुनहगार ने आबिद को देखा तो उस के दिल में ख़याल आया कि मैं बनी इस्राईल का बदबख्त तरीन आदमी हूं और येह बनी इस्राईल का आबिद है, अगर मैं इस के पास बैठ जाऊं तो शायद अल्लाह तआला मुझ पर भी रहम कर दे, चुनान्चे, वोह आबिद के पास जा कर बैठ गया, आबिद के दिल में ख़याल आया कि मैं बनी इस्राईल का आबिद हूं और येह बनी इस्राईल का बदबख़्त आदमी है, येह मेरे साथ कैसे बैठेगा ! उसे बहुत शर्म महसूस हुई और उस बदबख़्त से कहा : यहां से उठ जाओ ! उस वक्त अल्लाह तआला ने बनी इस्राईल के उस ज़माने के नबी पर वही फ़रमाई कि उन दोनों को नए सिरे से इबादत शुरू करने का हुक्म दीजिये क्यूंकि मैं ने बदबख़्त को बख़्श दिया है और आबिद के आ’माल को बरबाद कर दिया है।

दूसरी रिवायत है कि बादल का टुकड़ा आबिद के सर से हट कर बदबख्त के सर पर साया फ़िगन हो गया । येह बात तुम पर इस हक़ीक़त को अच्छी तरह वाजेह कर देगी कि अल्लाह तआला बन्दों के दिलों को देखता है।

मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में एक शख्स का तजकिरा बड़े अच्छे अल्फ़ाज़ में किया गया, एक मरतबा वोही शख्स नज़र आया तो सहाबए किराम ने अर्ज़ की : या रसूलल्लाह ! येह वोही शख्स है जिस का हम ने आप के सामने तजकिरा किया था । हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : मुझे इस के चेहरे पर शैतान का असर नज़र आता है। उस शख्स ने आ कर सलाम किया और हुजूर के सामने बैठ गया, आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने उस शख्स से फ़रमाया कि मैं तुझे खुदा की कसम दे कर पूछता हूं : तेरे नफ़्स ने कभी तुझ से येह कहा है कि कौम में मुझ से अफ़्ज़ल कोई नहीं है ? उस ने कहा : ब खुदा ऐसा हुवा है और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने नूरे नबुव्वत से उस के दिल में मौजूद तकब्बुर का असर उस के चेहरे पर देख लिये। ।

तकब्बुर के बारे में इरशादाते सहाबा

हज़रते हारिस बिन जइज्जुबैदी सहाबी रज़ीअल्लाहो अन्हो का इरशाद है कि मुझे हर वोह मज्हका खैज़ कारी तअज्जुब में डालता है जिस से तू तो खन्दा पेशानी से मिलता है और वोह तुझे नाक भौं चढ़ा कर मिलता है और तुझ पर अपने इल्म का एहसान जताता है, अल्लाह तआला मुसलमानों से ऐसे कारियों को ख़त्म करे ।

हज़रते अबू जर रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि मैं ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की मौजूदगी में एक शख्स से तल्ख कलामी की और उसे कहा : ऐ हबशी के बेटे ! हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने येह सुन कर फ़रमाया : ऐ अबू ज़र ! साअ को हल्का कर ! साअ को हल्का कर ! किसी सफ़ेद को सियाह पर फजीलत नहीं है।”

हज़रते अबू ज़र रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं कि येह सुनते ही मैं लेट गया और उस शख्स से कहा : उठो और मेरा चेहरा रौंद डालो।

हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो का फ़रमान है कि जो शख्स किसी जहन्नमी को देखना चाहता है वोह ऐसे आदमी को देखे जो खुद बैठा हुवा हो और लोग उस के सामने खड़े हों।

हज़रते अनस रज़ीअल्लाहो अन्हो का फ़रमान है कि सहाबए किराम को कोई शख्स हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से ज़ियादा महबूब न था, जब वोह हुजूर को देखते तो खड़े न होते क्यूंकि उन्हें इल्म था कि आप इस चीज़ को अच्छा नहीं समझते। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम  बा’ज़ अवकात अपने सहाबा के साथ चलते तो उन्हें आगे चलने का हुक्म फ़रमाते और खुद उन के दरमियान चलते, येह इस लिये करते ताकि दूसरों को तालीम हो या फिर कल्बे अन्वर से तकब्बुर और बड़ाई के शैतानी वसाविस के निकालने के लिये ऐसा करते जैसा कि नमाज़ में नया कपड़ा पहन कर फिर पुराना पहन लेते, उस में भी येही हिक्मत होती थी।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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