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तकब्बुर घमंड और खुद को बड़ा समझने की बुराइयाँ और अज़ाब – Net In Hindi.com

तकब्बुर घमंड और खुद को बड़ा समझने की बुराइयाँ और अज़ाब

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तकब्बुर व खुदबीनी

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 अल्लाह तआला तुम को और मुझ को दुनिया और आख़िरत में भलाई की तौफ़ीक़ दे, खूब गौर कर लो कि तकब्बुर और खुदबीनी फ़ज़ाइल से दूर कर देते हैं और रज़ाइल के हुसूल का ज़रीआ बनते हैं और तेरी रिजालत (घटियापन)  के लिये इतना ही काफ़ी है कि तकब्बुर तुझे नसीहत सुनने नहीं देता और तू अच्छी आदतों के क़बूल करने से पसो पेश करता है, इसी लिये दानिशमन्दों ने कहा है कि हया और तकब्बुर से इल्म जाएअ हो जाता है, इल्म तकब्बुर के लिये मुसीबत है जैसे कि बुलन्दो बाला इमारतों के लिये सैलाब मुसीबत होता है।

फ़रमाने नबवी है : वो शख्स जन्नत में नहीं जाएगा जिस के दिल में एक दाने के बराबर भी तकब्बुर होगा।

फ़रमाने नबवी है : जो तकब्बुर की वज्ह से अपना कपड़ा घसीटते हुवे चलता है, अल्लाह तआला उस की तरफ़ नज़रे रहमत नहीं फ़रमाएगा।

दानाओं का कौल है कि तकब्बुर और खुदबीनी की वज्ह से मुल्क हमेशा नहीं रहता और अल्लाह तआला ने भी तकब्बुर का फ़साद के साथ बयान फ़रमाया है

चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है : यह आख़िरत का घर हम उन लोगों को अता करते हैं जो ज़मीन में तकब्बुर और फ़साद नहीं चाहते। और फ़रमाने इलाही है :  अलबत्ता मैं उन लोगों से जो ज़मीन में तकब्बुर और फसाद करते हैं अपनी निशानियों को फेर लूंगा।

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एक दाना का कौल है कि जब मैं किसी मुतकब्बिर को देखता हूं तो उस के तकब्बुर का जवाब तकब्बुर से देता हूं।

कहते हैं कि इब्ने अवाना इन्तिहाई मुतकब्बिर आदमी था, उस ने एक मरतबा अपने गुलाम से कहा : मुझे पानी पिलाओ ! गुलाम बोला : हां ! इब्ने अवाना यह सुन कर चिल्लाया कि “हां” तो वो कहे जिसे “ना” कहने का इख़्तियार हो, यह कह कर उसे तमांचे मारे और उस ने मिज़ारे को बुला कर उस से बात चीत की, जब गुफ्तगू से फ़ारिग हुवा तो पानी मंगवा कर कुल्ली की ताकि उस से गुफ्तगू की नजासत दूर हो जाए।

और कहा गया है कि फुलां ने खुद को तकब्बुर की उस सीढ़ी पर पहुंचा दिया है कि अगर वोह गिर गया तो फिर टूट फूट जाएगा।

जाहिज़ का कौल है कि कुरैश में बनू मख्जूम और बनू उमय्या का तकब्बुर मशहूर था जब कि अरब में बनू जा’फ़र बिन किलाब और बनू जुरारा बिन अदी का तकब्बुर मशहूर था और अकासिरा लोगों को अपना गुलाम तसव्वुर करते थे और खुद को उन का मालिक तसव्वुर करते थे।

बनू अब्दुद्दार कबीले के एक आदमी से कहा गया कि तुम ख़लीफ़ा के पास क्यूं नहीं आते ? वोह बोला : मैं इस बात से डरता हूं कि वोह पुल मेरे इज्जतो एहतिराम को नहीं उठा सकेगा।

हज्जाज बिन अरतात से कहा गया : क्या वज्ह है कि तुम जमाअत में शामिल नहीं होते, उस ने जवाब दिया कि मैं दुकानदारों के कुर्ब से घबराता हूं। और येह भी कहा गया है कि वाइल बिन हुज्र हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के यहां आया और आप ने उसे ज़मीन का एक टुकड़ा दिया और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हज़रते अमीरे मुआविय्या रज़ीअल्लाहो अन्हो से फ़रमाया कि इसे वोह ज़मीन दिखा दो और लिख भी दो ! चुनान्चे, हज़रते मुआविय्या रज़ीअल्लाहो अन्हो शदीद गर्मी के आलम में उस के साथ रवाना हुवे, वोह ऊंटनी पर सुवार हो गया और आप पैदल चलने लगे, जब उन्हें गर्मी ने निहायत तंग किया तो उन्हों ने उसे कहा कि मुझे अपने पीछे ऊंटनी पर बिठा लो। उस ने कहा : मैं तुम्हें अपनी ऊंटनी पर नहीं बिठाऊंगा क्यूंकि मैं उन बादशाहों में से नहीं जो लोगों को अपने पीछे ऊंटनियों पर सुवार कर लेते हैं।

आप ने फ़रमाया : मैं नंगे पाउं हूं मुझे अपने जूते ही दे दो, वाइल बोला : ऐ अबू सुफ़्यान के बेटे ! मैं बुख्ल की वज्ह से नहीं बल्कि इस वज्ह से तुम्हें अपने जूते नहीं देता कि मैं इस बात को ……ईरान के सलातीन जो किस्रा से मौसूम थे। अच्छा नहीं समझता कि यमन के बादशाहों को येह खबर मिले कि तुम ने मेरे जूते पहने हैं अलबत्ता तुम्हारी इज्जत अफ़्ज़ाई के लिये इतना कर सकता हूं कि तुम मेरी ऊंटनी के साए में चलते रहो। कहते हैं कि उस ने अमीरे मुआविय्या रज़ीअल्लाहो अन्हो का ज़माना पाया और वोह आप के दौरे हुकूमत में एक दफ़्आ आप के यहां आया तो आप ने उसे अपने साथ तख्त पर बिठाया और गुफ्तगू की।

मसरूर बिन हिन्द ने एक आदमी से कहा कि तुम मुझे पहचानते हो ? वोह बोला कि नहीं ! मसरूर ने कहा मैं मसरूर बिन हिन्द हूं, उस आदमी ने कहा : मैं तुझे नहीं पहचानता, मसरूर चिल्ला कर बोला : खुदा उसे गारत करे जो चांद को नहीं पहचानता ।

ऐसे ही मुतकब्बिरों के बारे में शाइर ने कहा है :

उस बे वुकूफ़ से कह दो कि जो तकब्बुर से अपने सुरीन मटका कर चल रहा है अगर तुझे मालूम हो जाए कि इन में क्या है तो तू हैरान न हो।तकब्बुर दीन का फ़साद, अक्ल की कमी का बाइस और इज्जत की हलाकत है, इस से खबरदार रह।

और कहा गया है कि हर कमीना आदमी तकब्बुर करता है और हर बुलन्द मर्तबा आदमी इन्किसारी को अपनाता है।

फ़रमाने नबवी है कि तीन चीजें हलाक करने वाली हैं : दाइमी बुख़्ल, ख्वाहिशाते नफ्सानी की पैरवी और इन्सान का खुद को बहुत बड़ा समझना ।

हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया :

जब हज़रते नूह के विसाल का वक्त करीब आया तो इन्हों ने अपने बेटों को बुला कर फ़रमाया : मैं तुम्हें दो चीज़ों का हुक्म देता हूं और दो चीज़ों से रोकता हूं मैं तुम्हें शिर्क और तकब्बुर से रोकता हूं और “ला इलाहा इललल्लाह”  पढ़ने का हुक्म देता हूं क्यूंकि ज़मीनो आस्मान और इन में मौजूद सब अश्या एक पलड़े में और येह कलिमा दूसरे पलड़े में रख दिया जाए तब भी येह कलिमा भारी रहेगा और अगर आस्मानो ज़मीन एक दाइरे में रख दिये जाएं और येह कलिमा उन के ऊपर रख दिया जाए तो वोह उन्हें दो टुकड़े कर देगा और तुम्हें “सुबहान अल्लाहे वबे हम देहि” – पढ़ने का हुक्म देता हूं क्यूंकि येह कलिमा हर चीज़ की नमाज़ है और इसी की वज्ह से हर चीज़ को रिज्क दिया जाता है।

हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम  का फरमान है : उस शख्स के लिये खुश खबरी है जिस को अल्लाह तआला ने किताब का इल्म दिया और वोह मुतकब्बिर हो कर नहीं मरा ।

। हज़रते अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ीअल्लाहो अन्हो एक मरतबा लकड़ियों का गठ्ठा सर पर उठाए बाज़ार से गुज़रे, आप से किसी ने कहा कि आप को लकड़ियों का गठ्ठा उठाने की क्या ज़रूरत पेश आ गई है हालांकि आप को इन की ज़रूरत नहीं है, आप ने फ़रमाया : मैं ने चाहा लकड़ियों का गठ्ठा सर पर उठा कर बाज़ार से गुज़रू ताकि मेरे दिल में से तकब्बुर निकल जाए।

तफ्सीरे कुरतुबी में फ़रमाने इलाही :

और वोह औरतें अपने पैर जमीन पर न मारें।

के येह मा’ना हैं कि वोह इज़हारे जीनत और लोगों को अपनी तरफ़ मुतवज्जेह करने के लिये अगर ऐसा करें तो येह उन के लिये हराम है और इसी तरह जो शख्स तकब्बुर के तौर पर अपना जूता ज़मीन पर ज़ोर ज़ोर से मार कर चलता है तो येह भी हराम है क्यूंकि इस में सरासर तकब्बुर ही तकब्बुर है।

 

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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