तवाज़ो (विनम्रता) और कनाअत (संतोष) की फ़ज़ीलत
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फ़रमान है कि अल्लाह तआला अफ्व और दर गुज़र के जरीए बन्दे की इज्जत को बढ़ाता है और जो अल्लाह तआला की खुशनूदी की खातिर तवाज़ोअ करता है, अल्लाह तआला उसे बुलन्द फ़रमाता है।
फ़रमाने नबवी है : कोई आदमी ऐसा नहीं मगर उस के साथ दो फ़रिश्ते हैं और इन्सान पर फ़मो फ़िरासत का नूर होता है जिस से वह फ़िरिश्ते उस के साथ रहते हैं, पस अगर वोह इन्सान तकब्बुर करता है तो वोह उस से हिक्मत छीन लेते हैं और कहते हैं : “ऐ अल्लाह इसे सर निगू कर”, और अगर वोह तवाज़ोअ और इन्किसारी करता है तो फ़रिश्ता कहता है : “ऐ अल्लाह ! इसे सर बुलन्दी अता कर ।” हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं कि उस के लिये खुश खबरी है जिस ने तवंगरी में तवाज़ो की, जम्अ कर्दा माल को अच्छे तरीके पर खर्च किया, तंगदस्त और मुफ्लिसों पर मेहरबानी और उलमा और दानिशमन्दों से मेल जोल रखा ।
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मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम सहाबए किराम की एक जमाअत के साथ घर में खा रहे थे कि दरवाजे पर साइल आया जिसे एक ऐसी बीमारी थी कि जिस की वज्ह से लोग उस से नफ़रत करते थे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने उसे अन्दर आने की इजाजत दी, जब वोह अन्दर आया तो आप ने उसे अपने जानू मुबारक पर बिठाया और फ़रमाया : खाना खाओ, कुरैश के एक आदमी ने इसे बहुत ना पसन्द किया और फिर वोह कुरैशी जवान इस जैसी बीमारी में मुब्तला हो कर मरा ।
फ़रमाने नबवी है कि रब तआला ने मुझे दो बातों का इख्तियार दिया, एक येह कि मैं रसूले अब्द बनूं या नबिय्ये फ़रिश्ता बनूं ! मैं नहीं समझ रहा था कि मैं कौन सी बात पसन्द करूं ?
फ़रिश्तों में जिब्रीले अमीन मेरा दोस्त था, मैं ने सर उठा कर उस की तरफ़ देखा तो उस ने कहा : रब के यहां तवाज़ोअ इख्तियार कीजिये, तो मैंने अर्ज किया कि मैं रसूले अब्द बनना चाहता हूं.
अल्लाह तआला ने हज़रते मूसा अलैहहिस्सलाम की तरफ़ वही फ़रमाई कि मैं उस शख्स की नमाज़ कबूल फ़रमाता हूं जो मेरी अजमत के सामने इन्किसारी करता है, मेरी मख्लूक पर तकब्बुर नहीं करता और उस का दिल मुझ से खौफ़ज़दा रहता है।
फ़रमाने नबवी है कि करम तकवा का, इज्जत तवाज़ोअ का और यक़ीन बे नियाज़ी का नाम है। हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम का फ़रमान है कि दुन्या में तवाज़ोअ करने वालों के लिये खुश खबरी है, वोह कियामत के दिन मिम्बरों पर होंगे, लोगों में इस्लाह करने वालों को खुश खबरी हो, येह वोह लोग हैं जो क़यामत के दिन जन्नतुल फ़िरदौस के वारिस होंगे और दुन्या में अपने दिलों को पाक करने वालों को बिशारत हो, यही लोग कियामत के दिन दीदारे इलाही से मुशर्रफ़ होंगे।
बा’ज़ मुहद्दिसीने किराम से मरवी है, हुजूर ने फ़रमाया : जब अल्लाह तआला ने किसी बन्दे को इस्लाम की हिदायत दी, उसे बेहतरीन सूरत दी और उसे उस के गैर पसन्दीदा मकाम से दूर रखा और इन सब नवाज़िशात के बाद उसे मुतवाजेअ बनाया, इस से साबित हुवा कि तवाज़ोअ अल्लाह की पसन्दीदगी की अलामत है।
अल्लाह तआला अपने महबूब बन्दों को चार चीजें अता फरमाता है
फ़रमाने नबवी है कि चार चीजें ऐसी हैं जो अल्लाह अपने महबूब बन्दों के सिवा किसी को अता नहीं फ़रमाता : (1)…ख़ामोशी और यह पहली इबादत है, (इलावा अज़ीं) 2…तवक्कुल 3…तवाज़ोअ और
4)…दुन्या से किनारा कशी।
मरवी है कि रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम खाना खिला रहे थे कि एक हबशी आया जो चैचक में मुब्तला था और जगह जगह से उस की खाल उधड़ चुकी थी, वोह जिस के साथ बैठता वोह उस के पहलू से उठ जाता, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने अपने पहलू में बिठाया। और इरशाद फ़रमाया : मुझे वोह आदमी तअज्जुब में डालता है जो अपने हाथ में ऐसा ज़ख्म लिये फिरता है जो लोगों के लिये बाइसे तक्लीफ़ है और इस से उस का तकब्बुर मिट गया है । एक दिन हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने अपने सहाबा से फ़रमाया : क्या बात है मैं तुम में इबादत की शीरीनी नहीं पाता ? सहाबए किराम ने अर्ज की : हुजूर ! इबादत की शीरीनी क्या है ? आप ने फ़रमाया : तवाज़ोअ !
फ़रमाने नबवी है कि जब तुम मेरी उम्मत के तवाज़ोअ करने वालों को देखो तो उन से तवाज़ोअ से पेश आओ और मुतकब्बिरीन को देखो तो उन से तकब्बुर करो क्यूंकि येह उन के लिये तहकीर और ज़िल्लत है।
इसी मौजूअ पर येह चन्द अश्आर हैं :
तवाज़ोअ कर जो उस सितारे की तरह हो जो देखने वाले को पानी की सतह पर नज़र आता है, हालांकि वोह बहुत बुलन्दी पर होता है। ..धुवें की तरह न हो जो फ़ज़ा में खुद को बुलन्द करता है हालांकि उस की कोई इज्जत नहीं होती और वोह एक बेकार चीज़ है।
कनाअत की फ़ज़ीलत
कनाअत के मुतअल्लिक़ जो कुछ पहले बयान किया जा चुका है, उस से भी ज़ियादा अहादीसो अक्वाल कनाअत की फ़ज़ीलत में वारिद हुवे हैं, चुनान्चे, फ़रमाने नबवी है कि मोमिन की इज्जत लोगों से बे परवाई में है,
कनाअत में आज़ादी और इज्जत है। इसी लिये कहा गया है कि उस से बे नियाज़ हो जा जिसे तू चाहता है उस जैसा हो जाएगा जिस की तरफ़ हाजत ले कर जाएगा तू उस का कैदी होगा और जिस पर चाहे एहसान कर तू उस का सरदार होगा, थोड़ा माल जो तुझे किफ़ायत करे, उस ज़ियादा माल से बेहतर है जो तुझे गुमराह कर दे।
एक बुजुर्ग का कौल है कि मैंने कनाअत से अफ़ज़ल कोई मालदारी नहीं देखी और लालच से बढ़ कर तंगदस्ती नहीं देखी और येह अश्आर पढ़े :
कनाअत ने जब मुझे इज्जत का लिबास दिया और कौन सा वोह तमव्वुल है जो कनाअत से ज़ियादा बा इज्जत हो। पस उसे अपने नफ्स के लिये अस्ल पूंजी बना ले और इस के बाद परहेज़गारी को ज़खीरा कर ले। (3).तू दो गुना नफ्अ पाएगा, दोस्त से कुछ तलब करने से बे नियाज़ हो जाएगा और एक घड़ी सब्र के बदले जन्नत में इन्आमो इकराम पाएगा।
एक और शाइर कहता है:
..अपने जिस्म को मामूली गुजर बसर पर सब्र करने वाला बना वरना येह तुझ से तेरी ज़रूरत से बढ़ कर मालो दौलत मांगेगा। .तेरी ज़िन्दगी की मुद्दत इतनी ही है जितनी इस लम्हे की मुद्दत है जिस में तू सांस ले रहा है।
एक और शाइर कहता है:
अगर रिज्क तुझ से दूर है तो सब्र कर और जो कुछ मिल गया है उसी पर कनाअत कर ।अपने नफ़्स को उस (रिज्क) के हासिल करने में ज़हमत न दे, अगर वोह तेरा मुक़द्दर है तो क्या वोह मुझे मिल जाएगा !
एक और शाइर कहता है:
जब तुझे बखीलों का तमव्वुल हरीस बनाए तो उस वक्त कनाअत तुझे सैराब करने के लिये काफ़ी होगी। ऐसा जवान बन जिस का पाउं तहतुस्सरा में हो और उस के इरादों की चोटी सुरय्या को छु रही हो।
दूसरा शाइर कहता है :
ऐ आसानी से हासिल होने वाले रिज्क को कुव्वत से तलाश करने वाले ! अफसोस ! तू झूटी महब्बत में मुब्तला है, गलत चीज़ में दिल लगा रहा है। शेर अपनी तमाम तर कुव्वत के बा वुजूद जंगल के मुर्दार खाते हैं और मख्खियां अपनी कमज़ोरी के बा वुजूद शहद खाती हैं।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का तरीका येह था कि जब आप भूक महसूस फ़रमाते तो अहले बैते किराम से फ़रमाते कि नमाज के लिये खड़े हो जाओ और फ़रमाते : मुझे येही हुक्म दिया गया है और येह आयत पढ़ते :
“अपने घर वालों को नमाज़ का हुक्म कर और इस पर सब्र कर”
शाइर कहता है:
दुन्या की ज़ीनत और इस की गिरिफ़्तारी को तर्क कर दे और तुझे बहुत मालदार होने की हिर्स व आरजू फ़रेब में मुब्तला न करे। अल्लाह की तक्सीम पर कनाअत कर और उस पर राजी हो जा क्यूंकि कनाअत ऐसी दौलत है जो कभी ख़त्म नहीं होती। तू इस तमाम तर बेहूदा ऐश को तर्क कर दे क्यूंकि जब तू उसे ब गौर देखेगा तो उस में कोई नफ्अ नहीं पाएगा।
बा’ज़ शो’रा का कौल है :
जो कुछ तुझे बिगैर कोशिश के मिल जाता है उसी पर ‘कनाअत’ कर ले कि रब्बे जुल जलाल तो हशरातुल अर्ज में से किसी को भी नहीं भूलता । (रिज्क पहुंचाता है) ..अगर ज़माना तुझे इन्आमात से नवाजे तो खड़ा हो जा और अगर वक्त तुझ से पीठ फेर ले तो तू सो जा।
दानाओं का कौल है कि इज्जत खूब सूरत कपड़ों की मरहूने मिन्नत नहीं है क्यूंकि फ़राख दस्ती में बेहतरीन लिबास पहनना खूब सूरत कपड़ों से आरास्ता होना आदमी को मसरूफ़ कर देता है यहां तक कि दुन्यावी महब्बत की वज्ह से वोह दीनी उमूर की परवा नहीं करता और ऐसा आदमी बहुत ही कम तकब्बुर व खुदबीनी से खाली होता है।
बा’ज़ शो’रा का कहना है :
मैं दुन्या से सूखी रोटी और मोटे कपड़े पर राज़ी हूं और मुझे इन के सिवा कुछ नहीं चाहिये। .क्यूंकि मैं ने ज़माने को फानी उनी देखा है लिहाज़ा मेरी उम्र और ज़माना दोनों फ़ना होने वाले हैं।
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
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