Teacher Shayari Guru shayari Ustad Shayari
टीचर शायरी हिंदी
Teacher Shayari उस्ताद, गुरु, टीचर इनके बिना कोई भी व्यक्ति जीवन में सफल नहीं हो सकता, हमारे जीवन में टीचर का बड़ा महत्त्व होता है, हमें अपने टीचर को बहुत सम्मान देना चाहिए, केवल शिक्षक दिवस पर ही नहीं बल्कि दुसरे मौकों जेसे टीचर के बर्थ डे आदि पर भी उन्हें विश करना चाहिए. अगर आप अपने टीचर, गुरु या उस्ताद को कोई अच्छा सा मेसेज करना चाहते हैं तो आपका इस पेज पर स्वागत है, यहाँ हम Teacher shayari पेश कर रहे हैं, इन टीचर शायरी को आप अपने टीचर, गुरु, उस्ताद को भेजें और उन्हें अपना सम्मान और प्यार दें.
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Ustad Shayari उस्ताद शायरी
अदब ता’लीम का जौहर है ज़ेवर है जवानी का
वही शागिर्द हैं जो ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं
-चकबस्त ब्रिज नारायण
माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत
है रोक-टोक उन की हक़ में तुम्हारे नेमत
वो भी क्या ख़ूब हैं जो पूछते हैं
कौन सी ख़ूबियाँ हैं मुर्शिद में
~साबिर ज़फ़र
इह नुकता जद पुखता कीता,
ज़ाहर आख सुणाया हू ।
मैं तां भुल्ली वैंदी बाहू,
मुरशिद राह विखाया हू ।
देखा न कोहकन कोई फ़रहाद के बग़ैर
आता नहीं है फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर
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वो करेंगे ना-ख़ुदाई तो लगेगी पार कश्ती,
है ‘नसीर’ वर्ना मुश्किल, तिरा पार यूँ उतरना !!
खुसरो मौला के रुठते, पीर के सरने जाय
कहे खुसरो पीर के रुठते, मौला नहिं होत सहाय
सोहबत-ए-पीर-ए-रूम से मुझ पे हुआ ये राज़ फ़ाश
लाख हकीम सर-ब-जेब एक कलीम सर-ब-कफ़
माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत
है रोक-टोक उन की हक़ में, तुम्हारे नेमत
वही शागिर्द फिर हो जाते हैं उस्ताद ऐ ‘जौहर’
जो अपने जान ओ दिल से ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं
ख़िरद को गुलामी से आज़ाद कर
जवानों को पीरों का उस्ताद कर – इक़बाल
होना था हश्र-ए-हसरत-ओ-हिरमाँ अगर यही
‘रह्बर’ ज़हे-नसीब कि तू पीर हो गया
हम को तो मयस्सर नहीं मिट्टी का दिया भी
घर पीर का बिजली के चराग़ों से है रौशन
किस तरह ‘अमानत’ न रहूँ ग़म से मैं दिल-गीर
आँखों में फिरा करती है उस्ताद की सूरत
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Guru Shayari and Guru Dohe
सुनिये सन्तों साधु मिलि, कहहिं कबीर बुझाय।
जेहि विधि गुरु सों प्रीति छै कीजै सोई उपाय॥
तन मन शीष निछावरै, दीजै सरबस प्रान।
कहैं कबीर गुरु प्रेम बिन, कितहूँ कुशल नहिं क्षेम॥
सोइ-सोइ नाचनचाइये जेहि निबहे गुरु प्रेम
कहै कबीर गुरु प्रेम बिन कतहुँ कुशल नहि क्षेम
गुरु के सनमुख जो रहै, सहै कसौटी दुख।
कहैं कबीर तो दुख पर वारों, कोटिक सूख॥
रामहि सुमिरत रन भिरत देत परत गुरु पाँय।
तुलसी जिन्हहि न पुलक तनु ते जग जीवत जायँ॥
कबीरा ते नर अन्ध है गुरु को कहते और
हरि रूठे गुरु ठौर है गुरु रुठै नहीं ठौर
सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास॥
मंत्री, वैद्य और गुरु यदि अप्रसन्नता के भय या लाभ की आशा से हित की बात न कहकर प्रिय बोलते हैं तो राज्य, शरीर और धर्म- इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है॥
जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु हैं मैं नाय।
प्रेम गली अति साँकरी, ता में दो न समाय॥
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