शांति और प्रेम का प्रतीक सफेद कबूतर
अक्सर आपने देखा होगा कि सफेद कबूतर को शांति और प्रेम के प्रतीक के रूप में दिखाया जाता है, इस सफेद कबूतर की चोंच में पत्तियां होती हैं, क्या आपने कभी सोचा है कि केवल सफेद कबूतर पक्षी को ही शांति दूत और प्रेम और सद्भाव के सिम्बोल निशान के रूप में क्यों दर्शाया जाता है? तथा इस सफेद कबूतर की चोंच में पत्तियां क्यों चित्रित की जाती है?.
सफेद कबूतर को अंग्रेजी में “Pigeon” और “Dove कहा जाता है, विश्व में कबूतरों की सैकड़ों प्रजातियां पाई जाती है जिनके अलग-अलग प्रकार के रंग और आकार होते हैं सबसे प्रमुखता से पाए जाने वाले कबूतर स्लेटी रंग के जंगली कबूतर तथा सफेद रंग के डव कबूतर होते हैं, शांति और प्रेम के प्रतीक के रूप में सफेद कबूतर डव का इस्तेमाल किया जाता है, विश्व भर की संस्थाओं, राष्ट्रीय सरकारों, विभिन्न मानव अधिकार संबंधी अभियानों आदि में सफेद कबूतर के चिन्ह का इस्तेमाल किया जाता है.
सफेद कबूतर को शांति के प्रतीक के रूप में विश्व की कई संस्कृतियों और सभ्यताओं में दिखाया गया है यूं तो इसके पीछे कई प्रकार की कहानियां प्रचलित है हम यहाँ दो प्रमुख कहानिया प्रस्तुत कर रहे हैं, सबसे प्रमुख कहानी पैगंबर नोहा ( नुह अलेहिसलाम) की है, पैगंबर नोहा का वर्णन हमें यहूदी किताबों, ईसाईयों की बाइबल और पवित्र कुरान में मिलता है.
इस किस्से के अनुसार जब पृथ्वी पर पाप बढ़ गए तो ईश्वर ने पैगंबर नोहा (Prophet Noha) को आदेश दिया कि वे एक बड़ी नाव (Ark) बनाएं और सभी प्रकार के जीव जंतुओं को उसमें रख ले, पैगंबर नोहा ने ऐसा ही किया इसके बाद पूरी पृथ्वी पर एक भयानक जल प्रलय आया,ना केवल आसमान से अथाह पानी बरसा बल्कि ज़मीन के अन्दर से भी पानी बाहर निकल आया, जिससे सभी पापी मनुष्य डूब गए, केवल पैगंबर नोहा की कश्ती में जो जीव जंतु और मनुष्य सवार थे वह जिंदा बचे, काफी लंबे समय तक सफर करने के बाद नोहा ने जब यह जानना चाहा कि पानी का स्तर कम हुआ है या नहीं तथा नहीं जमीन दिखाई देने लगी है या नहीं इसके लिए उन्होंने सबसे पहले एक कौवे को अपनी नाव से उड़ाया, परन्तु यह कौवा कभी लौट कर नहीं आया वह मृत जीवों का मांस खाने में लग गया इससे नोहा ने उसे श्राप दिया, इसके बाद उन्होंने एक सफेद कबूतर को यह देखने के लिए उड़ाया की जमीन पानी से बाहर आई है या नहीं कुछ देर बाद यह सफेद कबूतर लौट कर पैगंबर नोहा के पास आया, यह सफेद कबूतर अपनी चोंच में ओलिव वृक्ष की एक छोटी सी डाली तोड़कर लाया था, तथा यह बताना चाहता था कि जलस्तर कम हो गया है और जमीन पानी से बाहर निकल आई है और उस पर पेड़ पौधे उगने लगे हैं, यह देख नोहा कबूतर से बहुत खुश हुए और उन्होंने कबूतर को आशीर्वाद दिया कि विश्व भर में लोग उससे प्रेम करेंगे और वह प्रेम और शांति के प्रतीक के रूप में जाना जाएगा.
कबूतर को शांति का प्रतीक मानने की कहानी
कबूतर को शांति का प्रतीक क्यों माना जाता है इसके बारे में मध्य एशिया में एक कहानी और प्रचलित है, इस कहानी के अनुसार एक बार दो राज्यों में युद्ध होने वाला था, इनमें से एक राजा अपने आप को कवच से सुसज्जित करके लड़ाई पर जाने लगा परन्तु जब उसने अपनी मां से सर पर पहनने की हेलमेट मांगी तो उसकी मां ने कहा कि उसकी हेलमेट में एक कबूतर ने अपना घोंसला बना लिया है इसलिए उसकी मां ने कहा कि तुम बिना हेलमेट के युद्ध में चले जाओ, और किसी बेचारे पक्षी को परेशान मत करो और उसके घोसले और बच्चों को नष्ट मत करो. यह सुनकर वह दयालु राजा बिना हेलमेट पहने ही युद्ध में चला गया.
जब दूसरे राजा ने देखा कि विरोधी राजा बिना हेलमेट के हि लड़ाई करने आया है तो उसने उससे मुलाकात की और इसका कारण पूछा, दयालु राजा ने हेलमेट पहन कर न आने का कारण बता दिया, जब दूसरे विरोधी राजा ने यह बात सुनी तो उसका ह्रदय पिघल गया, उसने सोचा कि इतने दयालु राजा और उसके लोगों को मैं मारने के लिए आया था, यह बहुत ही गलत युद्ध था जो होने जा रहा था. उसे बहुत अफसोस हुआ और उसने राजा की दयालुता से प्रभावित होकर उससे मित्रता कर ली, दोनों राज्यों में घनिष्ठ मित्रता हो गई, और इस प्रकार एक भयानक युद्ध टल गया तभी से सफेद कबूतर को शांति और प्रेम का प्रतीक माना जाने लगा.
वर्ल्ड पीस कांग्रेस 1949 में कबूतर को शांति के प्रतिक के रूप में चुना गया
कई महान कलाकारों ने सफेद कबूतर को शांति और प्रेम के रूप में चित्रित किया है पिकासो ने भी अपने पेंटिंग में ऑलिव की पत्ती लिए हुए कबूतर को चित्रित किया था, इस चित्र को वर्ल्ड पीस कांग्रेस ने सन 1949 में शांति के प्रतीक पीस एंबलम के रूप में चुना, इसके बाद लगभग विश्व की हर संस्था में सफेद कबूतर को शांति और प्रेम के प्रतीक के रूप में चित्रित किया जाने लगा.
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