वुज़ू करने के फायदे और सवाब की हदीस शरीफ
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि जिस ने वुज़ू किया और बेहतरीन तरीके से किया फिर दो रक्अतें अदा की और उस के दिल में दुन्यावी ख़यालात नहीं आए वोह गुनाहों से उस दिन की तरह निकल गया जिस दिन उस की मां ने उसे जना था।
दूसरी रिवायत के अल्फ़ाज़ हैं : और उस ने इन दो रक्अतों में कोई ना मुनासिब हरकत नहीं की तो उस के गुज़श्ता गुनाह बख्श दिये जाते हैं।
फ़रमाने नबवी है : क्या मैं तुम्हें ऐसे कामों की खबर न दूं जिन से दरजात बुलन्द होते हैं और जो गुनाहों का कफ्फारा बनते हैं, तक्लीफ़ देह अवकात में मुकम्मल वुज़ू करना, मसाजिद की तरफ़ चलना और एक नमाज़ के बाद दूसरी नमाज़ का इन्तिज़ार करना, बस यह पनाहगाहें हैं। यह लफ़्ज़ आप ने तीन मरतबा फ़रमाए ।
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हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने एक एक मरतबा आ’जाए वुज़ू को धो कर फ़रमाया : यह वुज़ू है जिस के बिगैर अल्लाह तआला नमाज़ को क़बूल नहीं करता और आप ने दो दो मरतबा आ’जाए वुज़ू धो कर फ़रमाया कि जिस ने दो दो मरतबा आ’जाए वुज़ू को धोया उसे दोहरा सवाब मिलेगा और आप ने तीन तीन मरतबा आ’जाए वुज़ू को धोया और फ़रमाया : मेरा, मुझ से पहले आने वाले तमाम अम्बिया का और इब्राहीम अलैहहिस्सलाम का वुज़ू है जो खलीलुल्लाह हैं।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है : “जो वुज़ू के वक्त अल्लाह को याद करता है, अल्लाह तआला उस के तमाम जिस्म को पाक कर देता है और जो शख़्स वुज़ू करते वक्त अल्लाह को याद नहीं करता उस का वो ही हिस्सा पाक होता है जिस पर पानी लगता है।”
फ़रमाने नबवी है कि जो हालते वुज़ू में वुज़ू करता है उस के नामए आ’माल में अल्लाह तआला दस नेकियां लिख देता है।
फ़रमाने नबवी है कि वुज़ू पर वुज़ू नूरुन अला नूर है।
इन तमाम रिवायात में आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने नए वुज़ू की फ़ज़ीलत की तरफ़ इशारा फ़रमाते हुवे इस की तरगीब दी है।
वुजू की बरकत से गुनाह धुल जाते हैं
फ़रमाने नबवी है कि जब बन्दए मुस्लिम वुज़ू करते हुवे कुल्ली करता है तो उस के मुंह से गुनाह निकल जाते हैं और जब वो नाक साफ़ करता है तो उस के नाक से गुनाह निकल जाते हैं, जब वोह मुंह धोता है तो उस के चेहरे के गुनाह निकल जाते हैं, जब वोह बाजू धोता है तो उस के नाखुनों के नीचे तक के तमाम गुनाह निकल जाते हैं, जब वोह सर का मस्ह करता है तो उस के सर के गुनाह निकल जाते हैं यहां तक कि कानों के नीचे तक के गुनाह गिर जाते हैं, जब वोह पाउं धोता है तो उस के पाउं के नाखुनों के नीचे तक के तमाम गुनाह निकल जाते हैं, फिर उस का मस्जिद की तरफ़ चलना और नमाज़ पढ़ना उस की इबादत में दाखिल हो जाता है। और मरवी है कि बा वुज़ू आदमी रोज़ादार की तरह है।
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशादे गिरामी है कि जिस शख्स ने बेहतरीन वुज़ू किया फिर फ़रागत के बाद आस्मान की तरफ़ नज़र उठा कर कहा :
أشهد أن لا إله إلا الله وحده لاشريك له وأشهد أن محمدا عبده ورسوله
उस के लिये जन्नत के आठों दरवाजे खोल दिये जाते हैं, वोह जिस दरवाजे से चाहे दाखिल हो।
हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि बेहतरीन वुज़ू शैतान को तुझ से दूर भगा देता है।
हज़रते मुजाहिद रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : “जो शख्स इस बात की ताकत रखता है कि वोह बा वुज़ू, ज़िक्र और इस्तिगफार करते हुवे रात गुज़ारे तो उसे ऐसा करना चाहिये क्यूंकि रूहें जिस हालत में कब्ज की जाती हैं उसी हालत में उठाई जाएंगी।” ।
मरवी है कि हज़रते उमर बिन खत्ताब रज़ीअल्लाहो अन्हो ने एक सहाबिये रसूल को का’बे का गिलाफ़ लाने के लिये मिस्र भेजा, वोह सहाबी शाम के एक अलाके में ऐसी जगह कियाम पज़ीर हुवे जिस के करीब अहले किताब के एक ऐसे बड़े आलिम का सौमआ था कि कोई और आलिम उस से ज़ियादा बा इल्म नहीं था।
हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो के क़ासिद के दिल में उस आलिम से मिलने और उस की इल्मी बातें सुनने की ख्वाहिश पैदा हुई चुनान्चे, वोह उस की इबादत गाह के दरवाजे पर आए और दरवाज़ा खट-खटाया मगर बहुत देर के बाद दरवाज़ा खोला गया, फिर वोह आलिम के पास गए और उस से इल्मी गुफ्तगू करने की फ़रमाइश की और उसे उस आलिम के तबहहुर से बहुत तअज्जुब हुवा ! आखिर में उन्हों ने दरवाज़ा देर से खोलने की शिकायत की तो वोह आलिम बोला कि जब आप आए तो हम ने आप पर बादशाहों जैसी हैबत देखी लिहाज़ा हम ख़ौफ़ज़दा हो गए और हम ने आप को दरवाजे पर इस लिये रोक दिया कि अल्लाह तआला ने हज़रते मूसा अलैहहिस्सलाम से फ़रमाया : ऐ मूसा ! जब तुझे कोई बादशाह ख़ौफ़ज़दा कर दे तो तू वुज़ू कर और अपने घर वालों को भी वुज़ू का हुक्म दे, तू जिस से डर रहा है उस से मेरी अमान में आ जाएगा चुनान्चे, हम ने दरवाज़ा बन्द कर दिया यहां तक कि मैं ने और इस में रहने वाले तमाम आदमियों ने वुज़ू कर लिया, फिर हम ने नमाज़ पढ़ी लिहाजा हम तुझ से बे ख़ौफ़ हो गए और फिर हम ने दरवाज़ा खोल दिया।
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
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