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हमीं पे ख़त्म हैं जौर-ओ-सितम ज़माने के
हमारे बाद उसे किस की आरज़ू होगी
~फ़सीह अकमल
वो अदा-ए-दिलबरी हो कि नवा-ए-आशिक़ाना
जो दिलों को फ़तह कर ले वही फ़ातेह-ए-ज़माना
मिटा कर हस्ती-ए-नाकाम को राह-ए-मोहब्बत में
ज़माने के लिए इक दरस-ए-इबरत ले के आया हूँ
~नसीम शाहजहाँपुरी
ज़माना अहल-ए-ख़िरद से तो हो चुका मायूस,
अजब नहीं कोई दीवाना काम कर जाए !!
क्या ख़बर है उनको के दामन भी भड़क उठते हैं
जो ज़माने की हवाओं से बचाते हैं चिराग़
~Faraz
नज़र में शोखि़याँ लब पर मुहब्बत का तराना है
मेरी उम्मीद की जद में अभी सारा जमाना है
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ज़माना कुफ़्र-ए-मोहब्बत से कर चुका था गुरेज़,
तेरी नज़र ने पलट दी हवा ज़माने की !!
वो अहद कि दिल खंज़र की नोक पर रखते थे,
ऐ काश ये हो उन्हीं ज़ुर्रतों का ज़माना आए !! ~आतिशमिज़ाज
ये अपनी कहानी ज़माने में ‘हसरत’
सभी को पता है, सभी को ख़बर है
चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं
नहीं बदलता ज़माना तो हम बदलते हैं
~सदा अम्बालवी
दबा के चल दिए सब क़ब्र में, दुआ न सलाम,
ज़रा सी देर में क्या हो गया ज़माने को
मेरी आवारगी भी एक करिश्मा है ज़माने में
हर एक दरवेश ने मुझको दुआ-ए-खैर ही दी है
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क्यूँकर हुआ है फ़ाश ज़माने पे क्या कहें,
वो राज़-ए-दिल जो कह न सके राज़-दाँ से हम !!
ज़माना एक दिन मुझको इन्हीं लफ़्ज़ों में ढूँढेगा
वो हर एहसास जो लफ़्ज़ों में ढाला छोड़ जाऊँगा
रूठा हुआ है मुझसे इस बात पर ज़माना
शामिल नहीं है मेरी फ़ितरत में सर झुकाना
Zamane par Shayari
लगाई है जो ये सीने में आग तुमने मेरे,
अब वही आग ज़माने को लगा दूँ क्या मैं
नहीं इताब-ए-ज़माना ख़िताब के क़ाबिल,
तेरा जवाब यही है कि मुस्कुराए जा !!
बरसात की भीगी रातों में फिर कोई सुहानी याद आई
कुछ अपना ज़माना याद आया कुछ उनकी जवानी याद आई
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किस-किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम,
तू मुझ से खफा है तो ज़माने के लिए आ !!
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हमने छोड़ा था ज़माना जिन्हें पाने के लिए,
लो वही छोड़ चले हमको ज़माने के लिए !!
उन से एक पल में कैसे बिछड़ जाए हम
जिनसे मिलने मैं शायद ज़माने लगे….
मेरा कमाल-ए-शेर बस इतना है ऐ ‘जिगर’,
वो मुझ पे छा गए मैं ज़माने पे छा गया !!
ज़माना याद करे या सबा करे ख़ामोश,
हम इक चराग़-ए-मोहब्बत जलाए जाते हैं !!
हमको न मिल सका तो फ़क़त इक सुकून-ए-दिल
ऐ ज़िंदगी वगरना ज़माने में क्या न था
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यूँ ही नहीं मशहूर-ए-ज़माना मेरा क़ातिल,
उस शख़्स को इस फ़न में महारत भी बहुत थी !!
तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई लेके हँस दो
आ जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना -शकीलबदायुनी
अपना ज़माना आप बनाते हैं अहले-दिल,
हम वे नहीं कि जिसको ज़माना बना गया !! -ज़िगर
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देख कर दिल-कशी ज़माने की,
आरज़ू है फ़रेब खाने की !!
मोहब्बत मे ऐसे कदम डगमगाए,
ज़माना यह समझा के हम पी के आए !! -हसरत जयपुरी
Zamane par Shayari
क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क ने जाना है,
हम खाक नशीनो की ठोकर में ज़माना है!! –
Zamane par Shayari
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पहले तराशा उस ने मेरा वजूद शीशे से ‘फ़राज़’,
फिर ज़माने भर के हाथों में पत्थर थमा दिए !!
ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना,
ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते !!
परवाह नहीं चाहे जमाना कितना भी खिलाफ हो,
चलूँगा उसी राह पर जो सीधी और साफ हो !!