लम्बी लम्बी उम्मीदों का सहारा और फरमाने नबवी
फ़रमाने नबवी है कि मैं तुम पर दो चीज़ों के तसल्लुत से डरता हूं : तूले अमल या‘नी लम्बी उम्मीदें और ख्वाहिशात की पैरवी। बे शुबा तवील उम्मीदें आख़िरत की याद भुला देती हैं और ख्वाहिशात की पैरवी हक़ व सदाक़त से रोक देती है।
फ़रमाने नबवी है कि मैं तीन शख्सों के लिये तीन चीज़ों का ज़ामिन हूं : दुनिया में हमातन गर्क दुनिया के हरीस और बख़ील के लिये दाइमी फ़कर, दाइमी मश्शूलिय्यत और दाइमी गम मुक़द्दर किया गया है ।
हज़रते अबू दरदा रज़ीअल्लाहो अन्हो ने हिम्स वालों से कहा : तुम्हें शर्म नहीं आती तुम ऐसे मकानात बनाते हो जिन में तुम्हें नहीं रहना, ऐसी उम्मीदें रखते हो जिन्हें नहीं पा सकते और ऐसा सामान जम्अ करते हो जिसे अपने मस्रफ़ में नहीं लाते। तुम से पहली उम्मतों ने आलीशान इमारतें बनवाई, बहुत मालो दौलत जम्अ किया और तवील तरीन उम्मीदें रखीं मगर उन की उम्मीदें फ़रेब निकलीं और उन का जम्अ कर्दा माल बरबाद और उन की इमारतें कब्रें बन गई।
हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो ने हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो से कहा : अगर तुम अपने दोस्त से आरजुए मुलाकात रखते हो तो पैवन्द लगा कपड़ा पहनो, पुराना जूता इस्ति’माल करो, उम्मीदें कम करो और पेट भर कर न खाओ।
आदम अलैहिस्सलाम की बेटे शीस अलैहिस्सलाम को पांच बातों की वसियत
हज़रते आदम अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे शीस अलैहिस्सलाम को पांच बातों की वसियत की और फ़रमाया : अपनी औलाद को भी येही वसियत करना, आरिज़ी दुन्या पर मुतमइन न होना ! मैं जाविदानी जन्नत में मुतमइन था, अल्लाह तआला ने मुझे वहां से निकाल दिया।
औरतों की ख्वाहिशात पर काम न करना ! मैं ने अपनी बीवी की ख्वाहिश पर शजरे ममनूआ खा लिया और शर्मिन्दगी उठाई।
हर एक काम करने से पहले उस का अन्जाम सोच लो ! अगर मैं अन्जाम सोच लेता तो जन्नत से न निकाला जाता ।
जिस काम से तुम्हारा दिल मुतमइन न हो उस काम को न करो क्यों की जब मैं ने शजरे ममनुआ खाया तो मेरा दिल मुतमइन नहीं था मगर मैं उस के खाने से बाज़ न रहा।
काम करने से पहले मश्वरा कर लिया करो क्यूंकि अगर मैं फरिश्तों से मश्वरा कर लेता तो मुझे येह तक्लीफ़ न उठानी पड़ती।
मुजाहिद का कौल है : मुझ से अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि सुबह को शाम की फ़िक्र न करो और शाम को दूसरी सुब्ह की फ़िक्र न करो, मौत से पहले जिन्दगी को, बीमारी से पहले तंदुरुस्ती को गनीमत समझो क्यंकि पता नहीं कल तुम्हारा क्या हाल होगा।
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अल्लाह तआला से शर्म करो जैसा हक़ है
हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने सहाबए किराम से फ़रमाया : क्या तुम सब जन्नत में जाने की तमन्ना रखते हो ? उन्हों ने अर्ज़ की : हां ! आप ने फ़रमाया : उम्मीदें कम करो और अल्लाह तआला से कमा हक्कुहू शर्म करो । सहाबए किराम ने अर्ज की : या रसूलल्लाह ! हम अल्लाह से शर्म करते हैं। आप ने फ़रमाया : हया वह नहीं जो तुम समझते हो, हया यह है कि तुम कब्रों और इन की तकालीफ़ को याद करो, पेट को हराम से महफूज रखो, दिमाग को बुरे खयालात की आमाजगाह न बनाओ और जो शख्स आखिरत की इज्जत चाहता है वह दुन्यावी जीनतों को तर्क कर दे, यही हकीक़ी शर्म है और इसी से बन्दा अल्लाह तआला का कुर्ब हासिल करता है।
फ़रमाने नबवी है : इस उम्मत की अव्वलीन नेकी ज़ोहद और यकीन है और इस की हलाकत का आखिरी सबब बुख़्ल और झूटी उम्मीदें हैं।
लम्बी उम्मीदों के बारे में इरशादाते सहाबा
हज़रते उम्मे मुन्ज़िर रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : एक मरतबा हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम रात को लोगों के पास आए और फ़रमाया : ऐ लोगो! अल्लाह से शर्म करो : सहाबए किराम ने अर्ज किया : किस तरह या रसूलल्लाह ! आप ने फ़रमाया : तुम वोह कुछ जम्अ करते हो जो खाते नहीं, वह उम्मीदें रखते हो जो पा नहीं सकते और ऐसे मकानात बनाते हो जिन में तुम्हें हमेशा नहीं रहना है।
हज़रते अबू सईद खुदरी रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हज़रते उसामा बिन जैद रज़ीअल्लाहो अन्हो ने एक माह के कर्ज पर एक सो दीनार में लौंडी खरीदी । जब हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने सुना तो फ़रमाया : तुम्हें तअज्जुब नहीं हुवा ! उसामा ने एक माह के क़र्ज़ पर लौंडी खरीदी है, इस की उम्मीदें बहुत तवील हैं। रब्बे जुल जलाल की कसम ! मैं आंखें खोलता हूं तो मुझे इतनी उम्मीद नहीं होती कि पलकें एक दूसरे से मिलेंगी या अल्लाह तआला इस से पहले मेरी रूह कब्ज़ फ़रमा लेगा, मैं तो निगाह उठाने के बाद निगाह की वापसी की उम्मीद नहीं रखता, लुक्मा मुंह में डाल कर उसे चबाने तक ज़िन्दगी की उम्मीद नहीं रखता फिर इरशाद फ़रमाया : “ऐ लोगो ! अगर तुम अक्लमन्द हो तो अपने आप को मुर्दो में शामिल समझो, रब्बे जुल जलाल की क़सम ! जिस के कब्जए कुदरत में मेरी जान है तुम पर एक वक्त मुकर्रर (मौत) आएगा जिस को तुम टाल नहीं सकोगे।”
हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मिट्टी से मस्ह फ़रमा लेते, मैं अर्ज करता : हुजूर पानी करीब है आप फ़रमाते क्या ख़बर मैं पानी तक पहुंच सकू या न पहुंच सकू।
रिवायत है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने तीन लकड़ियां लीं, एक को सामने, दूसरी को पहलू में और तीसरी को दूर नस्ब फ़रमाया और फ़रमाया : जानते हो ! येह क्या है ? सहाबा ने अर्जु की : अल्लाह और उस का रसूल सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम बेहतर जानते है । फ़रमाया : “यह इन्सान है, यह मौत है और वह इन्सान की उम्मीदें हैं, आदमी उम्मीदों के पीछे भागता है मगर रास्ते में उसे मौत आ लेती है।”
हजरते ईसा का एक वाकिआ
मरवी है कि हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम बैठे हुवे थे और एक बूढ़ा फावड़े से ज़मीन खोद रहा था, आप ने अल्लाह तआला से दुआ मांगी : ऐ अल्लाह ! इस से ज़िन्दगी की उम्मीद छीन ले। बूढ़े ने फाऊड़ा रख दिया और लैट गया, जब कुछ देर गुज़र गई तो आप ने अल्लाह तआला से दुआ की इसे इस की उम्मीदें लौटा दे । बूढ़ा खड़ा हो गया और फाऊड़े से ज़मीन खोदने लगा तो आप ने इस का सबब पूछा : तो वोह कहने लगा : काम करते हुवे मेरे दिल में खयाल आया कि मैं अब बूढ़ा हो गया हूं, कब तक यह काम करता रहूंगा लिहाज़ा मैं ने फावड़ा रख दिया और लैट गया, कुछ देर बाद मेरे दिल में ख़याल आया तुझे ज़िन्दगी गुज़ारने के लिये ज़रूर कुछ न कुछ करना चाहिये चुनान्चे, मैं फावड़ा संभाल कर फिर खड़ा हो गया और काम करने लगा।
-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब
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Lambi ummeeden, duniya ki khwaishen, mout ko bhula dena, aakhirat ko bhula dena
(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)