हीलियम की खोज और भारत
बहुत कम लोगों को पता होगा कि नोबल गैस हीलियम की खोज भारत में सूर्य ग्रहण के दौरान हुई थी हिलियम दूसरा सबसे सरल परमाणु है हाइड्रोजन के बाद, इसके नाभिक में केवल दो प्रोटॉन और न्यूट्रॉन होते हैं और दो इलेक्ट्रॉन इस नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं.
हिलियम का सबसे ज्यादा पाए जाने वाला रूप हिलियम-4 है वैज्ञानिकों के अनुसार यह बिग बेंग के दौरान उत्पन्न हुआ था. यूनिवर्स में हीलियम का निर्माण होता रहता है, जब भी दो हाइड्रोजन के परमाणु मिलते हैं तो वह एक हीलियम का परमाणु का निर्माण करते हैं इस प्रक्रिया को फ्यूजन या सल्लयन कहा जाता है. सूर्य और दुसरे तारों में यह प्रकिर्या लगातार चलती रहती है और हीलियम का निर्माण होता रहता हे.
हीलियम की खोज कैसे हुई थी
हीलियम की खोज सूर्य ग्रहण के दौरान भारत में हुई थी, हीलियम के अस्तित्व का प्रथम प्रमाण 18 अगस्त 1808 को फ्रेंच एस्ट्रोनॉमर जुल्स जानसेन Jules Janssen ने प्राप्त किया था, भारत के आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में जब एस्ट्रोनॉमर जुल्स जानसेन सूर्य ग्रहण का अध्ययन कर रहे थे तब उन्होंने हिलियम गैस का अस्तित्व का पता लगाया,
सूर्य ग्रहण के दौरान आने वाली किरणों को उन्होंने एक प्रिज्म से देखा इस प्रिज्म से बनने वाले स्पेक्ट्रम में उन्हें एक पीले रंग की रेखा दिखाई दी जो कि सूर्य के क्रोमोस्फीयर से आने वाले प्रकाश के स्पेक्ट्रम में बन रही थी तब उन्होंने सोचा कि यह लाइन सोडियम तत्व की वजह से बन रही है क्योंकि यह सोडियम से बनने वाली D1 और D2 फ्रानहाफर लाइन के समान थी.
20 अक्टूबर 1868 में इंग्लिश एस्ट्रोनामर नार्मन लोकीयर ने इस पीली लाइन को सूर्य के प्रकाश के स्पेक्ट्रम में देखा और इसका नाम D3 फ्रानहाफर रखा, उन्होंने बताया कि यह लाइन एक अज्ञात तत्व के कारण बन रही है नार्मन लोकीयर और इंग्लिश केमिस्ट एडवार्ड फ्रैंकलैंड ने इसका नाम हिलियस रखा जो की ग्रीक सूर्य देवता का नाम था.
इस तरह हीलियम तत्व की खोज भारत के आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में एक सूर्य ग्रहण के अध्ययन के दौरान हुई थी.