अल्लाह के सिवा किसी और को अपना वली बनाना और क़ियामत का मैदान

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अल्लाह के बजाय दुनिया वालों से, अमीर लोगों से उम्मीद रखना बुरा है

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 काफिरों से मेल मिलाप न रखो

फ़रमाने इलाही है : और ज़ालिमों की तरफ़ न झुको कि तुम्हें आग छूएगी ।

बा’ज़ मुफस्सिरीन का क़ौल है : अहले लुगत इस बात पर मुत्तफ़िक़ हैं कि “रुकून” मुतलक मैलान और तवज्जोह का नाम है, चाहे वो मैलान मा’मूली हो या ज़ियादा। अब्दुर्रहमान बिन जैद रहमतुल्लाह अलैह का कौल है कि यहां रुकून से मुराद छुपाना है या’नी उन के कुफ्र का इन्कार न करना । इकरमा का कौल है : रुकून से मुराद है उन कुफ्फ़ार से नेकी न करो, आयत के ज़ाहिरी मा’ना ये हैं कि कुफ्फार और बदकार मुसलमानों से बाहम मेल मिलाप न रखो।।

हज़रते निशापुरी रहमतुल्लाह अलैह अपनी तफ़्सीर में लिखते हैं  : मुहक्किकीन का कौल है कि जिस रुकून से मन्अ किया गया है वो है कुफ्फार के कुफ्र को अच्छा समझना, उन के तरीके कार को खूब जानना और दूसरों के सामने उन की तारीफ़ करना और गुमराही के कामों में उन का शरीके कार बनना है, हां अगर उन के मज़ालिम के सद्देबाब और नफ्अ अन्दोजी की वज्ह से उन से मेल मिलाप बढ़ाता है तो इस में कोई हरज नहीं है लेकिन मेरा ज़मीर ये कहता है कि तलबे मआश के लिये उन से मेल मिलाप की रुख्सत है मगर तकवा का तकाज़ा ये है कि उन से बिल्कुल अलहादगी की जाए, क्या अल्लाह तआला बन्दे की मुश्किलात में उसे काफ़ी नहीं है ?

मैं कहता हूं कि इमामे निशापूरी का कौल बिल्कुल सहीह है। आज के दौर में तो खुसूसी तौर पर इस बात की ज़रूरत है कि उन से तअल्लुकात न रखे जाएं क्यूंकि नेकी का हुक्म करना और बुराइयों से रोकना इस धोके और फ़रेबकारी के दौर में ना मुमकिन है और जब कि उन का जुल्म इस अन्दाज़ पर आ गया है कि उन से बाहम तअल्लुक हलाकत में डाल सकता है तो तुम्हारा उस शख्स के बारे में क्या खयाल है जो उन ज़ालिमों और सरकशों से जबरदस्त महब्बत करता है, उन की शराब नोशी और हराम कारी की महाफ़िल में शरीक होता है और उन के तकाज़ाए दोस्ती को पूरा करता है और उन के तर्जे मुआशरत में घुल मिल जाता है, उन का सा लिबास पहन कर खुश होता है और उन की ज़ाहिरी और फ़ानी रौनक को बेहतर समझता है और उन की मुआशी खुशहाली पर रश्क करता है, हालांकि अगर हक़ीक़त में देखा जाए तो ये सब चीजें एक दाने से भी हक़ीर और मच्छर के पर से भी ज़ियादा बे वकार हैं जब कि इन्सान दिल की गहराइयों से उन्हें चाहने लगे, चाहने वाला और जिसे चाहा गया है दोनों बे वक़ार हैं।

फ़रमाने नबवी है कि इन्सान अपने दोस्त के दीन पर होता है, तुम यह देखो कि तुम्हारा दोस्त कौन है ?

मन्कुल है कि अच्छे साथी की मिसाल अत्तार जैसी है, अगर वो इत्र नहीं देगा लेकिन तुम इत्र की खुश्बू से महरूम नहीं रहोगे और हर बुरे साथी की मिसाल लुहार की है अगर्चे वो तुझे नहीं जलाएगा मगर उस की धौंकनी का धुवां तुम तक ज़रूर पहुंचेगा

और कपड़ों को कसीफ़ कर देगा और तनफ्फुस को भी गज़न्द पहुंचाएगा)।

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अल्लाह के सिवा दूसरों को अपना वली बनाना

फ़रमाने इलाही है कि उन लोगों की मिसाल जिन्हों ने अल्लाह के सिवा अपने और मददगार बना लिये हैं मकड़ी के घर की सी मिसाल है (जो बहुत ही बूदा और कमजोर होता है)

फ़रमाने नबवी है कि जिस ने किसी दौलत मन्द की उस की दौलत की वज्ह से ता’ज़ीम की उस का एक तिहाई ईमान जाएअ हो गया।

फ़रमाने नबवी है : जब किसी फ़ासिक की तारीफ़ की जाती है तो अल्लाह तआला सख्त नाराज़ होता है और अर्श इलाही कांप जाता है

फरमाने इलाही है

“हम कियामत के मैदान में तमाम इन्सानों को उन के इमाम के साथ बुलाएंगे”। मुफ़स्सिरीने किराम का इमाम के तअय्युन में इख्तिलाफ़ है : हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो और आप के रुफका इमाम से मुराद नामए आ’माल लेते हैं, चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है : “ और जिस शख्स को दाएं हाथ में किताब दी जाएगी।

हज़रते ज़ैद रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि इमाम से मुराद रुत्बे की किताबें हैं और लोगों को “ऐ तौरात वाले !”, “ऐ इन्जील वाले !” और “ऐ कुरआन वाले !” कह कर बुलाया जाएगा।

हज़रते मुजाहिद रहमतुल्लाह अलैह का कौल है कि इमाम से मुराद नबी है। लोगों को यूं बुलाया जाएगा : ऐ इब्राहीम अलैहहिस्सलाम  की इत्तिबाअ करने वालो आओ ! ऐ मूसा अलैहहिस्सलाम  की इत्तिबा करने वालो आओ ! ऐ ईसा अलैहहिस्सलाम  की इत्तिबा करने वालो आओ ! और ऐ मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की इत्तिबाअ करने वालो आओ !

हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि इमाम से मुराद इमामे वक़्त है जिस के रोकने से वोह रुक जाते थे और जिस के हुक्म पर वो अमल करते थे।

हज़रते इब्ने उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जब अल्लाह तआला कियामत के दिन तमाम मख्लूक को जम्अ फ़रमाएगा तो हर ख़ाइन को झन्डा दिया जाएगा और कहा जाएगा : यह फुलां बिन फुलां की खियानत का झन्डा है।

तिर्मिज़ी वगैरा में हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने इस आयत की तफ्सीर में फ़रमाया : “लोगों में से एक आदमी को बुलाया जाएगा, उस के दाएं हाथ में नामए आ’माल दिया जाएगा, उस के जिस्म को साठ हाथ लम्बा कर के उस के सर पर चमकदार मोतियों का ताज रखा जाएगा, उस का चेहरा इन्तिहाई रोशन होगा, फिर वो अपने दोस्तों की तरफ़ जाएगा जो उसे दूर से देख कर कहेंगे : इस के मर्तबे में इज़ाफ़ा फ़रमा और हमें भी ऐसा ही मक़ाम इनायत फ़रमा । जब वो उन के पास आएगा तो कहेगा कि तुम्हें खुश खबरी हो, तुम में से हर एक को ये ही मक़ाम मिलेगा और काफ़िर का मुंह काला कर के उस का कद आदम अलैहहिस्सलाम  के क़द के बराबर साठ हाथ कर दिया जाएगा और उसे जुल्मत का ताज पहनाया जाएगा, वो अपने साथियों के पास आएगा वो उसे देख कर कहेंगे : ऐ अल्लाह ! हम इस के शर से पनाह चाहते हैं और हमें ऐसे अन्जाम से बचा, वो उन के पास आएगा तो वो कहेंगे : ऐ अल्लाह ! इसे रुस्वा कर । तब काफ़िर कहेगा कि अल्लाह तआला ने तुझे अपनी रहमत से दूर कर दिया, तुम में से हर एक के साथ ये ही सुलूक किया जाएगा।

फ़रमाने इलाही है: जब ज़मीन ज़लज़ले से हिलाई जाएगी और वोह अपने बोझ निकाल डालेगी।

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो इस आयत की तफ्सीर में फ़रमाते हैं कि ज़मीन नीचे से हिलेगी और इस के पेट में जितने मुर्दे और दफ़ीने हैं, सब को बाहर निकाल देगी। हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने यह आयत पढ़ी : “उस दिन ज़मीन अपनी ख़बरें बयान करेगी” और फ़रमाया : जानते हो इस की ख़बरें क्या हैं ? सहाबा ने अर्ज़ किया : अल्लाह और उस के रसूल सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम बेहतर जानते हैं, आप ने फ़रमाया : वो हर मर्द और हर औरत के हर उस अमल की गवाही देगी जो उस की पुश्त पर किया गया है।

तबरानी की हदीस है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : ज़मीन पर गुनाह करने से परहेज़ करो क्यूंकि वो तुम्हारी मां है और जो शख्स भी इस पर कोई अमल करता है वो उस की (कियामत के दिन) खबर देगी।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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