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अल्लाह को याद करने की बरकते और अल्लाह का ज़िक्र का ईनाम – Net In Hindi.com

अल्लाह को याद करने की बरकते और अल्लाह का ज़िक्र का ईनाम

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अल्लाह के ज़िक्र की फ़ज़ीलत

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 फ़रमाने इलाही है:

“ तुम मुझे याद करो मैं तुम्हें याद करूंगा”। हज़रते साबित बुनानी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया : मैं जानता हूं जब मेरा रब मुझे याद फ़रमाता है, यह सुन कर लोग कुछ परेशान हो गए और दरयाफ़्त किया आप को कैसे पता चल जाता है? आप ने कहा : जब मैं उसे याद करता हूं तो वह भी मुझे याद फ़रमाता है।

फ़रमाने इलाही है:

“अल्लाह को बहुत याद करो”।

मज़ीद फ़रमाया :

“पस जब तुम अरफ़ात से पलटो तो मश्अरे हराम के नज़दीक अल्लाह को याद करो और जैसे तुम्हें हिदायत दी गई है वैसे उसे याद करो”।

दूसरे पारह में इरशादे रब्बानी है :

“जब तुम मनासिके हज पूरे कर चुको तो अल्लाह तआला को याद करो जैसे तुम अपने आबा को याद करते हो या उस से भी ज़ियादा याद करो”।

इरशादे इलाही है :

“वो लोग अल्लाह तआला को खड़े बैठे और पहलू के बल लैटे याद करते हैं” फ़रमाने इलाही है : “ पस जब तुम नमाज़ पूरी कर लो तो अल्लाह तआला को कियाम कुऊद और पहलू पर लैटे याद करो”।

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो इस आयत की तफ्सीर में फ़रमाते हैं : या’नी अल्लाह तआला को रात, दिन, बहरो बर, सफ़रो हज़र, मालदारी व मुफ़्लिसी, मरज़ो सेहत , ज़ाहिरो निहां गरज़ हर हालत में याद किया करो।

अल्लाह तआला का मुनाफ़िकों की मज़म्मत में इरशाद है :

” वो अल्लाह को बहुत कम याद करते हैं। फ़रमाने इलाही है :

 

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और फ़रमाने इलाही है :

“और बेशक ज़िक्रे खुदा बहुत बड़ा है”

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि इस आयत के दो मा’ना हो सकते हैं, पहला यह कि अल्लाह तआला का तुम्हें याद फ़रमाना तुम्हारे ज़िक्र से बहुत बड़ी चीज़ है, दूसरा यह कि ज़िक्रे खुदा हर इबादत से ज़ियादा बरतर और आ’ला है। इस सिलसिले में और भी बहुत सी आयात वारिद हुई हैं। – हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि गाफ़िलों में ज़िक्रे खुदा करने वालों की मिसाल सूखे घास में सब्ज़ पौदे की सी है।

मजीद फ़रमाया कि गाफ़िलों में ज़िक्रे खुदा करने वाले की मिसाल भगोड़ों के दरमियान जिहाद करने वाले की सी है।

फ़रमाने नबवी है : रब्बे जुल जलाल फ़रमाता है कि जब मेरा बन्दा मुझे याद करता है और मेरी याद में उस के होंट खुले होते हैं तो मैं उस के साथ होता हूं।

जिक्रे खुदा से बढ़ कर कोई अमल नहीं – हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है : इन्सान के लिये ज़िक्रे खुदा से बढ़ कर कोई अमल ऐसा नहीं है जो अज़ाबे इलाही से जल्द नजात दिलाने वाला हो, अर्ज की गई कि जिहाद फ़ी सबीलिल्लाह भी नहीं आप ने फ़रमाया : जिहाद फ़ी सबीलिल्लाह भी नहीं मगर यह कि तू अपनी तल्वार से जिहाद करे और वह टूट जाए। (बार बार के जिहाद से भी अफ़ज़ल है)

फरमाने नबवी है कि जो शख्स जन्नत के बागों से सैर होना चाहता है वो अल्लाह को बहुत याद करे ।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से पूछा गया कि कौन सा अमल अफ़्ज़ल है? आप ने फ़रमाया : जब तू मरे तो तेरी ज़बान ज़िक्रे खुदा से शीरीं हो।

फ़रमाने नबवी है कि ज़िक्रे खुदा में सुब्हो शाम बसर कर, तू इस हालत में दिन और रात मुकम्मल करेगा कि तुझ पर कोई गुनाह बाकी नहीं होगा।

फ़रमाने नबवी है कि सुब्हो शाम यादे इलाही, जिहाद फी सबीलिल्लाह में तल्वारें तोड़ने और बे दरेग राहे खुदा में माल लुटाने से बेहतर है ।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं : अल्लाह तआला फ़रमाता है कि जब मेरा बन्दा मुझे तन्हाई में याद करता है तो मैं उसे तन्हाई में याद करता हूं और जब वो मुझे जमाअत में याद करता है तो मैं उसे उस की जमाअत से बेहतर जमाअत में याद करता हूं, जब वो मुझ से एक बालिश्त करीब होता है तो मैं उस से एक हाथ करीब हो जाता हूं जब वो एक हाथ मेरे करीब होता है तो मैं दोनों हाथों की वुस्अत के बराबर उस के करीब हो जाता हूं और जब वो मेरी तरफ़ चल पड़ता है तो मेरी रहमत बढ़ कर उसे साय ए आफ़िय्यत में ले लेती है या’नी मैं उस की दुआओं को बहुत जल्द क़बूल फ़रमा लेता हूं।

फ़रमाने नबवी है : सात शख्स ऐसे हैं जिन्हें अल्लाह तआला अपने सायए रहमत में उस दिन जगह देगा जिस दिन कोई साया नहीं होगा, इन में से एक वो है जिस ने तन्हाई में खुदा को याद किया और खौफे खुदा की वज्ह से उस की आंखों से आंसू बह निकले ।

बेहतरीन अमल क्या है?

हज़रते अबुद्दरदा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि क्या मैं तुम्हें तुम्हारे आ’माल में से बेहतरीन अमल की खबर न दूं जो अल्लाह के नज़दीक सब आ’माल से पाकीज़ा, सब आ’माल में बुलन्द मर्तबा, सोने चांदी की बख्शिश से बेहतर, दुश्मनों से तुम्हारे उस जिहाद से जिस में तुम उन्हें कत्ल करो वह तुम्हें शहीद कर दें, अफ़्ज़लो आ’ला हो?? सहाबए किराम रज़ीअल्लाहो अन्हुम ने पूछा : हुजूर ! वो कौन सा अमल है? आप ने फ़रमाया : दाइमी ज़िक्रे इलाही ।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं कि अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है : जिस शख्स को मेरे ज़िक्र ने सवाल करने से रोके रखा मैं उसे बिगैर मांगे सब साइलों से बेहतर दूंगा।

हज़रते फुजेल रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं : हमें येह खबर मिली है कि अल्लाह तआला फ़रमाता है : ऐ मेरे बन्दे ! तू मुझे सुब्ह के बाद और असर  के बाद कुछ देर याद कर लिया कर, यह अमल तुझे सारे दिन के लिये काफ़ी होगा।

 

बा’ज़ उलमा का कहना है कि अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है : जब मैं किसी शख्स के दिल को अपनी याद में सरगर्मे अमल देखता हूं तो मैं उस के जुम्ला उमूर का मुतवल्ली हो जाता हूं और मैं उस का साथी, उस का हम नशीं और हम सुखन बन जाता हूं। हज़रते हसन रहमतुल्लाह अलैह का कौल है कि ज़िक्र दो हैं : एक तो तन्हाई में अल्लाह तआला को याद करना जो बहुत उम्दा और अजरे  अज़ीम का सबब है और इस से भी बेहतर ज़िक्र ये है कि इन्सान अल्लाह तआला की हराम कर्दा चीज़ों में अल्लाह को याद रखे और ऐसे उमूर से बाज़ रहे।

मरवी है कि यादे इलाही में जिन्दगी बसर करने वाले के सिवा हर इन्सान मौत के वक्त प्यासा जाता है।

हज़रते मुआज़ बिन जबल रज़ीअल्लाहो अन्हो का फ़रमान है कि जन्नती उस लम्हे के सिवा जो यादे इलाही में बसर नहीं हुवा, किसी चीज़ पर हसरत नहीं करेगा।।)

हुजूर रज़ीअल्लाहो अन्हो का इरशाद है कि कोई जमाअत भी ऐसी नहीं है जो यादे इलाही के लिये बैठी हो मगर फ़िरिश्ते उसे घेर लेते हैं और रहमते खुदावन्दी उसे ढांप लेती हो, अल्लाह तआला अपने मुकर्रबीन में उन्हें याद करता है।

जिक्रे खुदा  के लिये जमा होने वालों पर अल्लाह का ईनाम

फ़रमाने नबवी है कि जब कुछ लोग महज़ रज़ाए इलाही के लिये ज़िक्रे खुदा के लिये जम्अ होते हैं तो आस्मान से मुनादी निदा करता है कि खड़े हो जाओ, तुम्हारे गुनाहों को मुआफ़ कर दिया गया है और तुम्हारे गुनाहों को नेकियों से बदल दिया गया है।

नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फरमान है कि कोई कौम ऐसी नहीं जो कहीं बैठे और अल्लाह तआला का ज़िक्र (न करे) और नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम पर दुरूद न भेजे और क़यामत के दिन वो हसरत से दोचार न हो।

हज़रते दावूद अलैहहिस्सलाम  ने बारगाहे इलाही में अर्ज किया : इलाहुल आलमीन ! जब तू मुझे देखे कि मैं ज़िक्र करने वालों की मजलिस से उठ कर गाफ़िलों की मजलिस में जा रहा हूं तो मेरे तू पाउं तोड़ दे, बिला शुबहा मेरे ऊपर यह तेरा इन्आम होगा।

फरमाने नबवी है : नेक महफ़िल, मोमिन के लिये बीस लाख बुरी मजलिसों का कफ्फारा है।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : आस्मान के रहने वाले उन घरों को जिन में यादे इलाही होती है, ऐसे देखते हैं जैसे तुम सितारों को देखते हो (पुर शौक़ निगाहों से)

हज़रते सुफया न बिन उयैना रज़ीअल्लाहो अन्हो का कहना है : जब कोई जमाअत जिक्रे खुदा के लिये जम्अ होती है तो शैतान और दुन्या अलाहिदा हो जाते हैं, फिर शैतान दुन्या से कहता है : क्या तू ने इन्हें देखा ये क्या कर रहे हैं? दुन्या कहती है : इन्हें छोड़ दे, जूही ये ज़िक्रे इलाही से फ़ारिग होंगे मैं इन्हें गर्दनों से पकड़ कर तेरे हवाले कर दूंगी।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो एक मरतबा बाज़ार में तशरीफ़ लाए और फ़रमाया : लोगो ! मैं तुम्हें यहां देख रहा हूं हालांकि मस्जिद में हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की मीरास तक्सीम हो रही है। लोग बाज़ार छोड़ कर मस्जिद की तरफ़ गए मगर उन्हें कोई मीरास बटती दिखाई न दी, उन्हों ने हज़रते अबू हुरैरा से कहा : हम ने तो मस्जिद में कोई मीरास तक्सीम होते नहीं देखी। आप ने पूछा : तुम ने वहां क्या देखा है?  बोले : हम ने वहां ऐसी जमाअत देखी है जो ज़िक्रे खुदा कर रहे हैं और कुरआने मजीद पढ़ रहे हैं, आप ने फ़रमाया : ये ही तो नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की मीरास है ।

जिक्र करने वालों पर अल्लाह की रहमत

आ’मश ने अबू सालेह से,इन्हों ने हज़रते अबू हुरैरा और हज़रते अबू सईद खुदरी रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि हुजूर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया : अल्लाह तआला ने नामए आ’माल लिखने वाले फ़िरिश्तों के इलावा ऐसे सय्याह (घुमने वाले) फ़रिश्तों को पैदा फ़रमाया जो ज़मीन में सरगर्मे सफ़र रहते हैं, जब वो किसी जमाअत को ज़िक्र में मश्गूल पाते हैं तो दूसरों से कहते हैं कि इधर अपनी मतलूबा चीज़ की तरफ़ आओ ! लिहाजा वो सब फ़रिश्ते जम्अ हो जाते हैं और उन्हें आस्मान तक घेरे में ले लेते हैं। अल्लाह तआला फ़रमाता है : मेरे बन्दों को तुम ने किस हाल में छोड़ा? वोह क्या कर रहे थे? फ़रिश्ते कहते हैं : या अल्लाह ! वो तेरी हम्द, तेरी बुजुर्गी और तेरी तस्बीह बयान कर रहे थे। रब्बे जलील फ़रमाता है : क्या उन्हों ने मुझे देखा है  फ़रिश्ते

अर्ज करते हैं : नहीं। रब्बे जलील फ़रमाता है : अगर वो मुझे देख लें तो उन की क्या हालत होगी, फ़रिश्ते अर्ज करते हैं : अगर वो तुझे देख लें तो इस से भी ज़ियादा तेरी तस्बीह व तहमीद करें। रब फ़रमाता है : वो किस चीज़ से पनाह मांग रहे थे? फरिश्ते कहते हैं : जहन्नम से पनाह मांग रहे थे। रब फ़रमाता है : उन्हों ने जहन्नम को देखा है? फ़रिश्ते अर्ज करते हैं : नहीं। रब फ़रमाता है : अगर वो जहन्नम को देख लें तो उन की क्या हालत होगी? फ़रिश्ते अर्ज करते हैं : अगर वो जहन्नम को देख लें तो इस से और ज़ियादा भागें और नफ़रत करें। रब फ़रमाता है : वो क्या चीज़ मांग रहे थे? फ़रिश्ते अर्ज करते हैं : वो जन्नत का सवाल कर रहे थे, रब फ़रमाता है : क्या उन्हों ने जन्नत को देखा है? फ़रिश्ते कहते हैं : नहीं, रब फ़रमाता है : अगर वो जन्नत को देख लें तो उन की क्या हालत होगी? फ़रिश्ते कहते है : वो इसे और ज़ियादा चाहेंगे। रब तआला फ़रमाता है : मैं तुम्हें गवाह बनाता हूं कि मैं ने उन सब को बख्श दिया है। फ़रिश्ते अर्ज करते हैं : उन में फुलां बिन फुलां भी था जो अपनी किसी ज़रूरत के लिये आया था, रब्बे जलील फ़रमाता है : ये ऐसी जमाअत है जिस का हम-मजलिस व हमनशीं भी महरूम नहीं रहता । हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि सब से अफ़ज़ल कलिमा जो मैं ने और तमाम अम्बियाए किराम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम अलैहिमुससलाम  ने ज़बान से अदा किया है वो है : “ला इलाहा इललललाहो वह्दहू व ला शरिकालाहु”

फ़रमाने नबवी है कि जिस ने हर रोज़ एक सो मरतबा :

“ला इलाहा इललललाहो वह्दहू व ला शरिकालाहु लहुल मुल्को व लहुल हम्दो वहुवा अला कुल्ले शै इन कदीर”

ज़बान से अदा किया, उसे दस गुलामों के आज़ाद करने के बराबर सवाब मिलता है, उस के नामए आ’माल में सो नेकियां लिखी जाती हैं और उस के सो गुनाह मिटा दिये जाते हैं.

और उस दिन शाम तक वो शैतान से महफूज़ रहता है और उस से बढ़ कर कोई और अमल नहीं होता मगर यह कि कोई शख्स उस से ज़ियादा बार यह कलिमात पढ़े।

फ़रमाने नबवी है : ऐसा कोई बन्दा नहीं जो बेहतरीन तरीके से वुजू करे, फिर आस्मान की तरफ़ निगाह उठा कर कहे : “अशहदो अल्ला इलाहा इल लल लाहो वह्दहू ला शारिका लहू व अशहदो अन्ना मोहम्मदन अब्दोहू व रसूलोहू”

और उस के लिये जन्नत के दरवाजे न खोल दिये जाते हों, फिर वोह जिस दरवाजे से चाहे दाखिल हो जाए।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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