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अल्लाह की ईबादत करना और हराम कामों को छोड़ देना – Net In Hindi.com

अल्लाह की ईबादत करना और हराम कामों को छोड़ देना

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इबादत गुजारी व तर्के हराम.

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

ताअत के मा’ना : फ़ाराइज़ की अदाएगी, हराम चीजों से परहेज़ और हुदूदे शरअ पर कारबन्द होना है। हज़रते मुजाहिद रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाने इलाही के मुतअल्लिक कहते हैं : “इस का मतलब यह है कि बन्दा अल्लाह तआला की इबादत व इताअत करता रहे।”

 

ताअत की हकीकत – अल्लाह की इताअत क्या है?

ताअत की हक़ीक़त अल्लाह तआला की मा’रिफ़त, खौफे खुदा, अल्लाह तआला से उम्मीद हमावक्त अल्लाह तआला की तरफ़ रुजूअ होना है, वह बन्दा जो इन अवसाफ़ से खाली होता है वह ईमान की हक़ीक़त को नहीं पा सकता लिहाज़ा इताअत उस वक़्त तक सहीह नहीं होती जब तक कि बन्दा अल्लाह की मा’रिफत और उस बे मिस्ल, बे मिसाल कादिर व खालिक रब्बे जुल जलाल की तमाम सिफ़तों पर ईमान नहीं लाता।

एक बदवी ने हज़रते मुहम्मद बिन अली बिन हुसैन रज़ीअल्लाहो अन्हो  से अर्ज की, कि तुम ने अल्लाह को देखा है उस की इबादत करते हो? आप ने फ़रमाया : हां ! देख कर इबादत करता हूं। पूछा : वह कैसे ? आप ने फ़रमाया : वह आंखों के नूर से नहीं दिल के इदराक से देखा जाता है, उसे हवास नहीं पा सकते, वह अपनी ला ता’दाद निशानियों से पहचाना जाता है, बे अन्दाज़ा अवसाफ़ से मौसूफ़ है, वह किसी पर जुल्म नहीं करता, वह आस्मानो ज़मीन का मालिक है और उस के सिवा कोई मा’बूद नहीं है। बदवी बे साख्ता कह उठा : अल्लाह जानता है कि उसे किस घराने में अपना रसूल भेजना है।

बातिनी इल्म क्या है?

एक आरिफ़ से बातिनी इल्म के मुतअल्लिक़ पूछा गया : उन्हों ने कहा : वह अल्लाह तआला का राज़ है जिसे वह अपने दोस्तों के दिलों में डाल देता है और किसी फरिश्ते और इन्सान को इस की ख़बर तक नहीं होती।

हज़रते का’ब अहबार रज़ीअल्लाहो अन्हो  का कौल है अगर इन्सान एक दाने के बराबर अल्लाह तआला की अज़मत पर यकीन हासिल करे तो वोह हवा पर उड़े और पानी पर चले, पाक है वह ज़ात जिस ने अपनी माअरिफ़त के इदराक पर इन्सान के इकरारे आजिज़ाना को ईमान करार दिया और अता कर्दा ने’मतों पर इन्सान के शुक्र न कर सकने के ए’तिराफ़ को शुक्र करार दिया है”।

हज़रते महमूद अल वर्राक के अश्आर हैं :

जब कि अल्लाह तआला की ने’मतों पर मेरा शुक्र करना भी अल्लाह की एक ने मत है जिस पर शुक्र वाजिब है। पस मैं कैसे उस के करम के बिगैर शुक्रिया अदा कर सकता हूं अगरचे मुझे बहुत तवील ज़िन्दगी भी दे दी जाए।

जब इन्सान को खुशी मिलती है तो मसर्रतें आम हो जाती हैं और जब कोई दुख पहुंचता है तो इस के बाद उसे बेहतरीन अज्र मिलता है। हर खुशी और गमी में अल्लाह तआला की ऐसी नेमत पोशीदा है जो बहरो-बर में नहीं समा सकती।

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जब मा’रिफ़ते खुदावन्दी हासिल हो जाए तो बन्दगी का इक़रार लाज़िमी है और जब ईमान दिल में जगह बना ले, रब तआला की ताअत वाजिब हो जाती है।

ईमान की दो किस्में हैं : ज़ाहिर और बातिन, ज़बान से इकरार को ज़ाहिर और दिल से तस्दीक को बातिन कहते हैं । कुर्बे खुदावन्दी और इबादत व इताअत में मोमिनों के मुख्तलिफ़ दरजात हैं मगर ईमान में सब बराबर के शरीक हैं। जो मोमिन तवक्कुल, इख्लास और अल्लाह की रज़ाजोई में जितना हिस्सा रखता है उसी कदर उस का मर्तबा बुलन्द होता है।

इख्लास यह है कि बन्दा अल्लाह तआला से अपने आ’माल के अज्र का तालिब न हो, इस लिये कि जो शख्स सवाब की उम्मीद और अज़ाब के ख़ौफ़ से इबादत करता है उस का इख्लास मुकम्मल नहीं होता क्यूंकि उस ने तो अपनी भलाई के लिये इबादत की है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फरमान है कि “बुरे कुत्ते की तरह न बनो जो डर के मारे काम करता है, न ही बुरे मजदूर की तरह बनो जो उजरत के बिगैर काम ही नहीं करता”।

फ़रमाने इलाही है :  “और बाज़ लोगों में से वह है जो किनारे पर अल्लाह की इबादत करता है अगर उसे भलाई मिले तो वह मुतमइन हो जाता है और अगर उसे आज़माइश पड़े तो अपने मुंह वापस पलट जाए दुनिया  और आखिरत को ख़सारे में दिया।

अगर अल्लाह तआला आ’माल पर अज्र न देता तब भी उस के एहसानात और इन्आमात इतने हैं कि हम पर उस की इबादत और इताअत ज़रूरी थी जब की उस का हुक्म भी हो और अज्र का वादा भी हो ।

तवक्कुल’ यह है कि इन्सान हाजतमन्दी के वक्त अल्लाह तआला पर ए’तिमाद करे, ज़रूरत के वक्त उसी की तरफ़ रुजूअ करे और मसाइब के नुजूल में इतमीनाने कल्ब और कामिल सुकून का सुबूत फ़राहम करे क्यूंकि मुतवक्किल आदमी खूब जानता है कि मुसीबतों का उतरना अल्लाह ही की तरफ़ से है, वह खैरो शर के हर काम को बाप बेटे, मालो दौलत की तरफ़ से नहीं खालिके काइनात की तरफ़ से समझते हैं और किसी भी हालत में अल्लाह तआला के सिवा किसी और पर ए’तिमाद नहीं करते चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है :

“जो अल्लाह पर तवक्कुल रखता है पस अल्लाह उसे काफ़ी है”

‘रज़ा’ का मा’ना यह है कि इन्सान अल्लाह के जारीकर्दा उमूर को मुस्कुराते हुवे कबूल करे।

बा’ज़ उलमा का कौल है कि अल्लाह की बारगाह में सब से ज़ियादा करीब वह शख्स है जो उस की रज़ा पर राजी है, हुकमा का कौल है कि बहुत सी मसर्रतें बीमारी होती हैं और बहुत सी बीमारियां शिफ़ा होती हैं। किसी शाइर का कौल है:

कितनी ने’मतें ऐसी हैं जो मसाइब से घिरी हुई हैं। और कितनी मसर्रतें ऐसी हैं जो मसाइब की तरह नाज़िल हुई। खुशी और गम दोनों में सब्र कर क्यूंकि हर काम का एक अन्जाम होता है। हर गम के बाद खुशी है और हर खूबी में बुराई पोशीदा है।

हमारे लिये यह इरशादे रब्बानी काफ़ी है कि “तुम किसी चीज़ को ना पसन्द करते हो हालांकि वह तुम्हारे लिये बेहतर होती है।”

बन्दे की इबादत और ताअत हुब्बे दुन्या तर्क किये बिगैर ना मुकम्मल रहती है।

एक दानिश्वर का कौल है कि बेहतरीन नसीहत वह है जो दिल पर कोई हिजाब न रहने दे और यह हिजाबात दुन्यावी तअल्लुकात हैं (या’नी इस नसीहत से तमाम दुन्यावी तअल्लुकात दिल से मुन्कत हो जाएं।) एक और हकीमाना मकूला है कि दुन्या एक लम्हा है, इसे ताअत व बन्दगी में गुज़ार दे। अबुल वलीद अल बाजी का कौल है :जब तुम खूब अच्छी तरह जानते हो कि तुम्हारी ज़िन्दगी एक साअत से ज़ियादा नहीं। ..तो तुम इसे एहतियात से क्यूं खर्च नहीं करते इसे ताअत व इबादत में क्यूं बसर नहीं करते।

एक शख्स ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लमसे अर्ज की : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ! मैं मौत को ना पसन्द करता हूं। आप ने फ़रमाया : तेरा माल वगैरा है ? अर्ज़ की : जी हां । आप ने फ़रमाया : माल को पहले भेज दो कि आदमी अपने माल के साथ होगा।

हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम का इरशाद है कि तीन चीज़ों में भलाई है : बोलने, देखने और चुप  रहने में। जिस का बोलना ज़िक्रे खुदा नहीं वोह बोलना “लग्व” बेकार  है, जिस का देखना इबरत की निगाह से नहीं वह देखना “सह्वो निस्यान” भूल  है और जिस की ख़ामोशी अपने अन्जाम पर गौर करने के लिये नहीं उस की ख़ामोशी “बेकार” है क्यूंकि “तफ़क्कुर” ही से दुन्यावी झुकाव खत्म होता है, पसन्दीदा चीजों की तमन्ना मुरझा जाती है और इन्सान गौरो फ़िक्र का आदी हो जाता है।

इन्सान को हराम चीज़ों की तरफ़ निगाह नहीं डालनी चाहिये क्यूंकि नज़र एक ऐसा तीर है जो ख़ता नहीं होता और येह एक ज़बरदस्त कुव्वत है।

फ़रमाने नबवी है : “नज़र शैतान के तीरों में से एक तीर है, जिस ने खौफे खुदा की वज्ह से इसे हराम से बचा लिया, अल्लाह तआला उसे ऐसा ईमान अता करेगा जिस की लज्जत वो अपने दिल की गहराइयों में महसूस करेगा”

हुकमा का कौल है : जिस ने अपनी निगाह को आवारा छोड़ दिया उस ने बे इन्तिहा शर्मिन्दगी उठाई, येह आज़ाद निगाही इन्सान को बे नकाब कर देती है, उसे जलीलो ख्वार करती है और जहन्नम में तवील मुद्दत तक रहने को उस पर वाजिब कर देती है, अपनी नज़र की हिफ़ाज़त कर ! अगर तू ने इसे आवारा छोड़ दिया तो बुराइयों में घिर जाएगा और अगर तू ने इस पर काबू पा लिया तो तमाम आ जाए बदन तेरे मुतीअ हो जाएंगे”

अफ्लातून से पूछा गया कि दिल के लिये ज़ियादा नुक्सान पहुंचाने वाली चीज़ कान है या आंख ? उस ने कहा : यह दोनों दिल के लिये परन्दे के दो परों की तरह हैं, वह इन्हीं की कुव्वत से उड़ता है, जब इन में कोई पर टूट जाता है तो वह उड़ने में बहुत दुश्वारी महसूस करता है।

हज़रते मुहम्मद बिन ज़व का कौल है कि अल्लाह तआला ने हर अक्ल वाले के लिये यह सज़ा रख दी है कि वह हर उस चीज़ के देखने पर मजबूर होता है जिस से वह नफ़रत करता है।

एक ज़ाहिद ने किसी शख्स को देखा, वह एक लड़के से हंसी मज़ाक कर रहा था, ज़ाहिद ने उस से कहा : ऐ अक्ल के अन्धे ! तुझे किरामन कातिबीन और मुहाफ़िज़ फ़िरिश्तों से भी शर्म नहीं आती जो तेरे आ’माल लिख कर इन्हें महफूज़ करते जा रहे हैं और तेरी इन बुराइयों के गवाह बन रहे हैं और तेरी ऐसी पोशीदा बुराइयों से वाकिफ़िय्यत हासिल कर रहे हैं जिन को तू लोगों के सामने करने से घबराता है।

काज़ियुल अरजानी कहते हैं : .ऐ मेरी दो आंखो ! तुम ने गलत निगाही से काम ले कर मेरे दिल को बहुत बुरी जगह पर ला खड़ा किया है। .ऐ मेरी आंखो ! मेरे दिल को गुमराह करने से रुक जाओ, तुम दो हो कर एक को क़त्ल करने की कोशिश कर रहे हो।

हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो  का फरमान है कि आंखें शैतान का जाल हैं आंख सरीउल असर उज्व है और बहुत ही जल्द शिकस्त खा जाता है, जिस किसी ने अपने आज़ा ए बदन को अल्लाह तआला की इबादत में इस्ति’माल किया, उस की उम्मीद बर आई, और जिस ने अपने आज़ा ए बदन को ख़्वाहिशात के पीछे लगा दिया, उस के आ’माल बातिल हो गए।

हजरते अब्दुल्लाह बिन मुबारक रज़ीअल्लाहो अन्हो  की नसीहतें

हज़रते अब्दुल्लाह बिन मुबारक रज़ीअल्लाहो अन्हो  ने कहा है : ईमान की हक़ीक़त रसूलों की लाई हुई किताबों की तस्दीक़ को कहा जाता है जो कुरआन की तस्दीक करता है इस के अहकामात पर अमल करता है उसे जहन्नम से नजात मिल गई।

जो हराम कर्दा चीज़ों से किनारा कश हुवा वो तौबा पर माइल हुवा, जिस ने रिज्के हलाल खाया वोह मुत्तकी बन गया, जिस ने फ़राइज़ को अन्जाम दिया उस का इस्लाम मुकम्मल हो गया, जिस ने ज़बान को सच बोलने वाली बनाया वह हलाकत से बच गया, जिस ने जुल्म को ना पसन्द किया वोह किसास से बच गया, जिस ने सुनन को अदा किया, उस के आ’माल पाकीज़ा हो गए और जिस ने खुलूस से अल्लाह की इबादत की उस के आ’माल मक़बूल हो गए।

हज़रते अबुद्दरदा रज़ीअल्लाहो अन्हो  से मरवी है : इन्हों ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से अर्ज किया : मुझे वसियत फ़रमाइये ! आप ने फ़रमाया : “पाकीज़ा हुनर इख़्तियार कर, नेक अमल कर, अल्लाह से हर दिन का रिज्क तलब करता रह और अपने आप को मुर्दो में शुमार कर ।

और हर इन्सान के लिये ज़रूरी है कि वह अपने नेक आ’माल पर न इतराए क्यूंकि यह आ’माल के लिये एक अज़ीम हलाकत है, ऐसा आदमी अमल कर के अल्लाह तआला पर एहसान धरता है हालांकि उसे यह इल्म नहीं होता कि उस का अमल मक़बूल हुवा या नहीं, ऐसे गुनाह जिन के बाद नदामत और पशेमानी हो उस इबादत से अच्छे हैं जिस में तकब्बुर और रिया शामिल हो।

फ़रमाने इलाही है :

बा’ज़ मुफस्सिरीन का कौल है कि इस आयत का मतलब यह है कि वह नेक अमल कर के इतराया करते थे, आख़िरत में उन की वह नेकियां बुराइयों की शक्ल में जाहिर होंगी। एक बुजुर्ग जब यह आयत पढ़ते तो फ़रमाया करते कि दिखावे की इबादत करने वालों के लिये हलाकत है और फ़रमाने इलाही : “अल्लाह की इबादत में किसी को शरीक न कर” से भी बा’ज़ उलमा ने रिया की शिर्कत मुराद ली है।

हज़रते इब्ने मसऊद रज़ीअल्लाहो अन्हो  से मरवी है कि सब से आखिर में कुरआने मजीद की यह आयत नाज़िल हुई :

और डरो उस दिन से जिस में तुम अल्लाह की तरफ़ लौटाए जाओगे फिर हर नफ्स को अपने आ’माल का पूरा बदला दिया जाएगा और किसी पर जुल्म नहीं होगा। मुहम्मद बिन बिशर रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं :

तेरा कसीर वक़्त गुज़र चुका, इस बकिय्या थोड़े को काम में ला इस तरह कि तू आदिल गवाह हो और तेरे येह अफ़्आल तेरी नेक ख़स्लतों की शहादत देंगे। अगर तू ने गुज़श्ता दिनों में बुराइयां इकठ्ठी कर ली हैं तो अब नेकियां कर, तू नेक बख़्त हो जाएगा। अच्छी बात को कल पर न डाल, शायद कल आए और तू न हो।

बुरी ख्वाहिशात को जल्द पूरा करता है और तौबा को कल पर डाल देता है। इसी गफलत में मौत आ जाएगी, यह अक्लमन्दों का काम नहीं है।

हजरते दाउद अलैहिस्सलाम की हजरते सुलैमान अलैहिस्सलाम को नसीहतें

हजरते दाउद अलैहिस्सलाम की हजरते सुलैमान अलैहिस्सलाम से फ़रमाया :

तीन चीजें मोमिन की परहेज़गारी पर दलालत करती हैं  “न पाने की सूरत में बेहतरीन तवक्कुल” “पा लेने की सूरत में बेहतरीन रज़ा” और “ख़त्म हो जाने की सूरत में बेहतरीन सब्र।”

एक हकीम का कौल है कि जिस ने मसाइब पर सब्र किया उस ने मक्सूद को पा लिया। शाइर कहता है:

अगर तुझ पर ज़माना कोई मुसीबत नाज़िल करे तो सब्र कर, आहो फुगां न कर। अगर दुनिया अपने तमाम तर हुस्न के बा वुजूद तुझ से मुंह फेर ले तो सब्र कर क्यूंकि यह तकवा और नेकी की निशानी है। अपने नफ्स को सब्र और तकवा पर मजबूर कर फिर तू हर उस फजीलत को पा लेगा जिस की तू तमन्ना रखता है।

दूसरा शाइर कहता है: .सब्र हुसूले मक्सूद की कुंजी है और एक दाइमी मददगार है। अगर दुख की रात तवील हो जाए तो सब्र कर क्यूंकि अकसर देखा गया है दुख का अन्जाम मसर्रत होता है। और बसा अवकात सब्र करने वाले को सब्र करने के बाद पछताना नहीं पड़ता ?

एक और शाइर कहता है:

सब्र-ईमान की मज़बूत रस्सी शैतानी वसाविस के लिये ढाल है। सब्र का अन्जाम बेहतरीन और गुस्से का अन्जाम बद तरीन होता है। अगर तुझे ज़माना कोई दुख दे तो समझ ले कि शुरूअ ही से ऐसा होता है। इस यक़ीने मुहूकम के साथ सब्र की जिरह पहन ले कि सब्र खुशनूदिये ख़ुदा का बाइस है।

और सब्र की कई किस्मे हैं, पाबन्दी से फ़राइज़े खुदावन्दी का अदा करना और इन के बेहतरीन अवक़ात का खयाल रखना, इबादत पर सब्र, दोस्तों और हमसायों की ज़ियादतियों पर सब्र, मरज़ पर सब्र, फ़क्र  पर सब्र, गुनाहों, नाजाइज़ ख़्वाहिशात, शैतानी वसाविस और आ’जा ए जिस्मानी को गैर ज़रूरी कामों में इस्ति’माल करने से सब्र वगैरा ।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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