Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the ad-inserter domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/u484288794/domains/netinhindi.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the json-content-importer domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/u484288794/domains/netinhindi.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the add-search-to-menu domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/u484288794/domains/netinhindi.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the health-check domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/u484288794/domains/netinhindi.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
अमानत के बारे में इस्लामी जानकारी – Net In Hindi.com

अमानत के बारे में इस्लामी जानकारी

दोस्तों को शेयर कीजिये

अमानत के बारे में बयान 

फरमाने इलाही है “अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन और पहाड़ों पर अमानत पेश की, वह उसे सँभालने के लिए आमादा ना हुए.”

उन्हें खौफ हुआ की वह उस अमानत का हक अदा ना कर सकेंगे और अज़ाब के मुस्ताहिक होंगे, या उन्हें खयानत का खौफ हुआ. इस आयत ए करीमा में अमानत के मानी एसी इबादत और फराइज़ हैं जिन की अदाएगी और अदम ए अदायगी से सवाब व अज़ाब वाबस्ता और मुताल्लिक है.

कुरतबी का कौल है “अमानत दीन की तमाम शराइत व इबादत का नाम है.” यह जम्हूर का कौल है और कौले सही है. इस की तफसील में कुछ इख्तिलाफात है. इब्ने मसूद का कौल है – यह माल की अमानत है जैसे अमानत रखा हुआ माल वगैरह . उन से यह भी मर्वी है की फराइज़ में सब से अहम माल की अमानत है.

अबू दरदा  का कौल है की “जनाबत का ग़ुस्ल अमानत है”. इन्ब्ने उमर रज़िअल्लाहो अन्हो का कौल है की सब से पहले अल्लाह ता आला ने इन्सान की शर्मगाह को पैदा किया और फ़रमाया – “यह अमानत है जो मै तुझे ते रहा हूँ, उसे बे राह रवी से बचाना, अगर तू ने इस की हिफाज़त की तो मै तेरी हिफाज़त करूंगा.” लिहाज़ा शर्मगाह अमानत है, कान अमानत है ज़बान अमानत है, पेट अमानत है हाथ और पैर अमानत है और जिस में अमानत नहीं उस का ईमान नहीं.

हज़रत हसन रहमतुल्लाह अलैह का कौल है “जब अमानत आसमानों, ज़मीन और पहाड़ों पर पेश की गई, जो यह तमाम मज़ा हीरे कायनात और जो कुछ इन में है, सख्त बैचैन हो गए. अल्लाह ता आला ने उन से फ़रमाया अगर तुम अच्छे अमल करोगे, तो तुम को अजर मिलेगा और अगर बुरे काम करोगे तो में अज़ाब दूंगा तो उन्होंने उस के उठाने से इंकार कर दिया.”

मुजाहिद का कौल है की जब अल्लाह ताआला ने आदम को पैदा किया और उन पर अमानत पेश की और यही कहा गया तो उन्होंने कहा मै इस बोझ को उठाता हूँ.

 

यह बात समझ लीजिये की ज़मीन व आसमान और पहाड़ों को अमानत लेने ना लेने का इख़्तियार दिया गया था, उन्हें मजबूर नहीं किया गया था. अगर उन के लिए ज़रूरी करार दिया गया होता तो मजबूरन उन्हें यह अमानत का बोझ उठाना पड़ता.

 

किफाल वगैरह का कौल है की “इस आयत में अर्ज़ से एक मिसाल दी गई है की जमीं व आसमान और पहाड़ों पर उन की बे पनाह जसामत के बावजूद शरियते मुतहहरा  के हुक्मों की ज़िम्मेदारी अगर  उन पर डाली जाती तो यह अज़ाब व सवाब की वजह से उन पर गिरां गुज़रती क्यों की यह तकलीफ ही एसी मोहत्तम बिश्शान है की ज़मीन व आसमान और पहाड़ों का आज़िज़ आ जाना एन मुमकिन है मगर उसे इन्सान ने कुबूल कर लिया.” चुनाचे फरमाने इलाही है आदम अलैहिस्सलाम पर उस वक़्त यह अमानत पेश की गई जब की मिसाक के वक्त उन की औलाद को उन की सुल्ब से निकाला गया तो आदम ने यह अमानत का बोझ कुबूल कर लिया. फरमाने इलाही है “इन्सान ने इस अमानत के बोझ को उठा कर अपने आप पर ज़ुल्म किया और वह इस भारी भोझ का अंदाज़ा ना कर सका.”

 

हज़रत इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहो अन्हो का कौल है. यह अमानत आदम अलैहिसलाम पर पेश की गई और फरमान हुआ इसे मुकम्मल तौर पर ले लो, अगर तुम ने इताअत की तुम्हे बख्स दूंगा, अगर नाफ़रमानी की तो अज़ाब दूंगा. आदम अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया ए तमाम जहाँ के माबूद, मैंने मुकम्मल तौर पर कबूल किया और उसी दिन असर से रात तक का वक़्त ही गुज़रा था की उन्होंने शजरा ए ममनुआ  (मना किये हुए दरख़्त के फल को) को खा लिया. अल्लाह ताआला ने उन्हें अपनी रहमत में ले लिया. आदम अलैहिस्सलाम ने तौबा की और सिराते मुस्तकीम पर चलने लगे.

 

अमानत का मतलब

अमानत ईमान से बना हुआ लफ्ज़ है. जो शख्श खुदा की अमानत की हिफाज़त करता है, अल्लाह ता आला उस के ईमान की हिफाज़त करने वाला हौता है. नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फरमान है

“उस का ईमान नहीं जिस में अमानत नहीं और उस का दीन नहीं जिस में अहद का लिहाज़ नहीं.”

एक शायर कहता है जिसका मफहूम यह है की

“खुदा उस को हलक करे जो खयानत को अपनी पनाहगाह बनाये और अमानत की हिफाज़त से पहलूतही (ढील) करे.

उस ने दयानत व मुरव्वत को छोड़ दिया तो उस पर ज़माने की पै दर पै मुसीबते आने लगी.

दूसरा शायर कहता है जिसका मह्फूम है की

जो खयानत को अपनी आदत बना ले वह इस लाइक है की ज़माने के थपेड़ों का शिकार हो जाये.

जो शख्श बदअहदी या अहद शिकनी करता है, उस पर मुसलसल मुसीबतें नाज़िल होती रहती हैं.

 

अमानत के बारे में हदीसे शरीफ 

रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया

“मेरी उम्मत उस वक़्त तक भलाई पर रहेगी, जब तक वह अमानत को माल ए गनीमत और सदका को तावान न समझे. आप का फरमान है “जिस ने तुझे अमीन बनाया उस को अमानत लौटा दे और जिस ने तेरे  साथ खयानत की उस के साथ खयानत न कर.

बुखारी और मुस्लिम ने इस को रिवायत किया है “मुनाफ़िक की तीन निशानियाँ हैं, जब वह बात करता है झूट बोलता है. वादा करता है तो वादा के खिलाफ करता है. अमीन बनाया जाये तो खयानत करता है”. यानी जब कोई उसे किसी बात का राजदार बनता है तो दुसरे लोंगो को बतला देता है या अमानत लौटाने से इंकार कर देता है. या अमानत की हिफाज़त नहीं कर पाता या उसे अपने इस्तेमाल में लता है वगैरह.

अमानत की हिफाज़त मुकर्रब फरिश्तों, अम्बिया ए किराम और नेक बन्दों की पहचान है फरमाने इलाही है “अल्लाह ता आला तुम्हे हुक्म देता है तुम अमानते उन के मालिकों को लौटाओ.”

मुफ्फस्सिरीने किराम कहते है इस आयत ए करीमा में बहुत से शरई हुक्म मौजूद हैं और उस का ख़िताब आमतौर पर तमाम वालियों हकीमों से है, इसलिए वालियों के लिए ज़रूरी है की मजलूम के साथ इंसाफ करे . इजहारे हक से ना रुके क्यों की यह उन के पास अमानत है. आम तौर पर तमाम मुसलमानों और खास तौर पर यतीमों के माल की हिफाज़त करें.

उलमा के लिए लाजिम है की वह लोगो को दीनी अहकामात की तालीम दें क्यों की उलमा ने इस अमानत के बोझ को उठाने का अहद किया है. बाप के लिए लाजिम है की वह अपनी ओलाद के साथ अच्छा सुलूक करे और उसे अच्छी तालीम दे क्यों की यह उस के पास अमानत है. फरमाने नबवी है – “तुम में से हर एक हाकिम है और हर एक अपनी रिआया के बारे में जवाब देने वाला है.”

अमानत अदा ना करने वाले शख्श पर जहन्नम में अजीब अज़ाब 

ज़हरुर रियाज़ में है की क़यामत के दिन एक इन्सान को अल्लाह ता आला की बारगाह में पेश किया जायेगा. अल्लाह फरमाएगा तूने फलां शख्श की अमानत वापस की थी?बंदा अर्ज़ करेगा नहीं. रब ताआला हुक्म देगा और फ़रिश्ता उसे जहन्नम की तरफ ले जायेगा, वहां वह जहन्नम की गहराई में उस अमानत को रखा हुआ देखेगा, वह उस अमानत की तरफ गिरेगा और सत्तर साल के बाद वहां पहुंचेगा. फिर वह अमानत उठा कर ऊपर आएगा. जब वह जहन्नम के किनारे पर पहुचेगा तो उस का पाँव फिसल जायेगा और वह फिर जहन्नम की गहराई में गिर जायेगा. इसी तरह वह गिरता रहेगा और चढ़ता रहेगा. यहाँ तक की नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की शफाअत से उसे रब्बे जुल जलाल की रहमत हांसिल हो जाएगी और अमानत का मालिक उस से राज़ी हो जायेगा.

 

क़र्ज़ के सिवा शहीद का हर गुनाह माफ़ हो जाता है.

हज़रत सअलमा रज़िअल्लाहो अन्हो रिवायत करते है की हम नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में हाज़िर थे की एक जनाज़ा लाया गया ताकि नमाज़ अदा की जाये हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने पुछा.  इस पर कोई क़र्ज़ है? अर्ज़ किया गया की हाँ या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम. आपने फिर पुछा इसने कुछ छोड़ा है? अर्ज़ की गई हाँ तीन दीनार!, तब आपने नमाज़ पढाई.

एक और ज़नाज़ा लाया गया आपने पुछा इस पर क़र्ज़ है? अर्ज़ किया या रसूलल्लाह नहीं, आपने नमाज़ पढाई. फिर तीसरा जनाज़ा लाया गया,

आपने पुछा क्या इस पर क़र्ज़ है? साहबा ए किराम ने अर्ज़ किया जी हाँ या रसूलल्लाह!  आपने फ़रमाया इस ने जायदाद में से कुछ माल छोड़ा है? लोगो ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह नही. उस वक़्त आपने सहाबा ए किराम से इरशाद फ़रमाया  तुम इस की नमाज़ पढ़ लो लेकिन आपने नहीं पढ़ी.

हज़रत क़तादा रज़ील्लाहो अन्हो कहते हैं एक जवान ने नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से पुछा अगर में राह ए खुदा में शाकिर व साबिर, ईमान और उम्मीद ए सवाब लेकर आगे बढ़ता हुआ शहीद हो जाऊ तो अल्लाह ता आला मेरे गुनाहों को माफ़ कर देगा? आपने फ़रमाया  हाँ. जब वह जवान खिदमत से रुखसत हो गया तो आपने उसे बुला कर फ़रमाया “अल्लाह ता आला क़र्ज़ के सिवा शहीद के हर गुनाह को माफ़ कर देता है.”

           

   

दोस्तों को शेयर कीजिये
Net In Hindi.com