बे अमल आलिम पर सख्त अज़ाब

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बुरे उलमा का अंजाम – उकूबते उलमा ए सू

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 उलमाए सू से हमारी मुराद वो उलमा हैं जो इल्म के हुसूल से दुन्यावी ने’मतों के कमाने का इरादा रखते हैं, दुन्यावी कद्रो मन्ज़िलत चाहते हैं और दुन्यादारों के हम पल्ला बनना चाहते हैं।

सय्यिदे दो आलम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि क़यामत के दिन सख्त तरीन अज़ाब उस आलिम को होगा जिसे अल्लाह तआला ने उस के इल्म से नफ्अ अन्दोज़ नहीं होने दिया।

फ़रमाने नबवी है कि आदमी उस वक्त तक आलिम नहीं होता जब तक कि अपने इल्म के मुताबिक़ अमल न करे ।

फ़रमाने नबवी है इल्म की दो किस्में हैं : ज़बानी इल्म, जो लोगों पर अल्लाह की हुज्जत है, कल्बी इल्म और येही इल्म लोगों को नफ्अ देने वाला है।

फ़रमाने नबवी है कि आखिर ज़माने में जाहिल इबादत गुज़ार और फ़ासिक आलिम होंगे ।

फ़रमाने नबवी है कि उलमा पर तफ़ाखुर जताने, बे वुकूफ़ों से जंगो जिदाल करने और लोगों को अपनी तरफ़ मुतवज्जेह करने के लिये इल्म हासिल न करो, जो भी ऐसा करेगा जहन्नम में जाएगा।

फ़रमाने नबवी है कि जो अपना इल्म छुपाता है अल्लाह तआला उसे आग की लगाम देगा ।

नीज़ इरशाद फ़रमाया कि मैं दज्जाल से ज़ियादा और लोगों पर तुम्हारे लिये डरता हूं, पूछा गया : वोह कौन हैं ? आप ने फ़रमाया : गुमराह कुन इमाम ।

मजीद फ़रमान होता है कि जो शख्स इल्म को बढ़ाता मगर हिदायत में नहीं बढ़ता, अल्लाह तआला से उस की दूरी बढ़ती रहती है।

हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम  ने फ़रमाया : तुम जो हैरानो परेशान लोगों के साथ बैठने वाले हो, अन्धेरी रात में आने वालों के लिये इल्मो हिक्मत के रास्ते कैसे साफ़ करोगे।

येह और इन जैसी और भी बहुत सी अहादीस हैं जो इल्म के ख़तरात से आगाही बख्शती हैं, क्यूंकि आलिम या तो दाइमी हलाकत पाता है या फिर दाइमी सआदत से सरफ़राज़ होता है और अगर आलिम इल्म की जुस्त्जू में सलामती से महरूम हो जाए तो सआदत को कभी भी नहीं पा सकता।

हज़रते उमर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : मैं इस उम्मत पर सब से ज़ियादा मुनाफ़िक आलिम से खौफ़ज़दा होता हूं, लोगों ने कहा : मुनाफ़िक आलिम कैसा होता है ? आप ने फ़रमाया : उस की ज़बान आलिम होती है मगर उस का दिल और अमल जाहिल होता है।

हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि उन लोगों में से न हो जो उलमा का इल्म और दानिशमन्दों की हकीमाना बातें जम्अ करता है मगर अमल बे वुकूफों जैसे करता है।

किसी शख्स ने हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से कहा : मैं इल्म सीखना चाहता हूं और इस बात से डरता हूं कि कहीं मैं इसे जाएअ न कर दूं, आप ने कहा : इल्म का छोड़ देना ही बहुत बड़ा जिया है।

हज़रते इब्राहीम बिन उयैना रज़ीअल्लाहो अन्हो से कहा गया लोगों में से तवील शर्मिन्दगी पाने वाला शख्स कौन है ? इन्हों ने फ़रमाया : दुन्या में तो ऐसे शख्स से भलाई करने वाला जो कुफ्राने ने’मत का आदी है और मौत के वक्त गुनहगार आलिम।

हज़रते खलील बिन अहमद रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि चार किस्म के आदमी हैं :

एक वोह जो जानता है और यह भी जानता है कि वोह इल्म रखता है वोह आलिम है, उस की इत्तिबाअ करो।

दूसरा वोह जो इल्म रखता है मगर उसे मालूम नहीं कि वोह इल्म रखता है, वोह सोया हुवा है उसे जगाओ।

तीसरा वोह जो नहीं जानता और वोह समझता है कि वोह कुछ नहीं जानता वोह राहनुमाई चाहने वाला है उस की रहनुमाई करो।

चौथा वोह जो नहीं जानता और समझता येह है कि वोह बहुत कुछ जानता है वोह जाहिल है, उस से दूर रहो।

हज़रते सुफ्यान रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि इल्म अमल से बोलता है अगर इन्सान अमल करे तो सहीह वरना इल्म कूच कर जाता है।

हज़रते इब्ने मुबारक रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि आदमी जब तक इल्म की तलाश में रहता है वो आलिम होता है और जूही वो खुद को आलिम समझने लगता है, जहालत की तारीकियों में चला जाता है।

हज़रते फुजैल बिन इयाज़ का कौल है कि मुझे तीन शख्सों पर बहुत रहम आता है, कौम का सरदार जो ज़लील हो जाए, कौम का गनी जो मोहताज हो जाए और वो आलिम जिसे दुन्यादारी से फुरसत नहीं होती।

हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : उलमा का अज़ाब दिल की मौत है और दिल की मौत आखिरत के बदले दुन्या का हुसूल है।

किसी शाइर ने क्या खूब कहा है :

मुझे हिदायत के बदले जलालत खरीदने वाले पर तअज्जुब हुवा और जो दीन के बदले दुनिया ख़रीदता है वोह इस से ज़ियादा तअज्जुब खेज़ बात करता है। और इन से ज़ियादा तअज्जुब खेज़ बात येह है कि इन्सान गलत दीन के बदले में अपना सहीह दीन बेच देता है।

फ़रमाने नबवी है कि आलिम को जहन्नम में ऐसा अज़ाब दिया जाएगा जिस की शिद्दत से वोह जहन्नमियों में घूमता रहेगा, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की मुराद ऐसे आलिम से फ़ाजिरो फ़ासिक आलिम थी।

बेअमल आलिम का अन्जाम

हज़रते उसामा बिन जैद रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि मैं ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से सुना, आप फ़रमा रहे थे : क़ियामत के दिन एक आलिम को लाया जाएगा और उसे जहन्नम में डाला जाएगा, उस की आंतें निकल आएंगी और जहन्नम में आंतों के बल ऐसे घूमेगा जैसे गधा चक्की के गिर्द घूमता है, जहन्नम वाले उसे अपने गिर्द घूमता देख कर उस से उस के अमल पूछेगे : तब वोह आलिम कहेगा कि मैं औरों को तो नेकी का हुक्म देता था मगर खुद इस पर अमल नहीं करता था, लोगों को बुराइयों से रोकता था मगर खुद नहीं रुकता था।

आलिम को गुनाहों के सबब दोहरा अज़ाब इस लिये दिया जाएगा क्यूंकि वोह इल्म के बा वुजूद गुनाह करता रहा, इसी लिये फ़रमाने इलाही है कि

मुनाफ़िक़ीन बेशक जहन्नम के निचले तबके में होंगे

मुनाफ़िक़ीन बेशक जहन्नम के निचले तबके में होंगे। इस लिये कि उन्हों ने इल्म के बा वुजूद हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की नबुव्वत व सदाक़त का इन्कार किया।

अल्लाह तआला ने नसारा को अल्लाह का बेटा और उसे तीन में से तीसरा कहने के बा वुजूद यहूद को उन से बदतर करार दिया क्यूंकि यहूद ने इल्म के बा वुजूद हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की नबुव्वत का इन्कार कर दिया था चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है :

वोह (यहूद) आप को पहचानते हैं जैसे के अपने

बेटों को पहचानते हैं। मजीद इरशाद फ़रमाया :

पस जब उन के पास वोह कुछ आया जिसे वोह पहचानते थे तो उन्हों ने उस से कुफ्र किया पस काफिरों पर अल्लाह की ला’नत है।

अल्लाह तआला ने बलअम बिन बाऊरा के किस्से में इरशाद फ़रमाया : “और इन लोगों पर उस शख्स का किस्सा बयान ” कर जिसे हम ने अपनी निशानियां दी पस वोह उन में से निकल गया और शैतान ने उसे पीछे

लगाया पस वोह गुमराहों में से हो गया”। और येह भी इरशाद फ़रमाया कि “पस उस की मिसाल कुत्ते की मिसाल जैसी है अगर तू उस पर बोझ डाल दे तो वोह ज़बान लटकाता है और अगर उसे छोड़ दे तो भी ज़बान

लटकाता है”।

इसी तरह फ़ासिको फ़ाजिर आलिम का अन्जाम होता है क्यूंकि बलअम को किताबुल्लाह का इल्म दिया गया था मगर उस ने ख्वाहिशाते नफ़्सानी को अपना लिया लिहाज़ा उस के लिये कुत्ते की मिसाल दी गई या’नी उसे चाहे हिक्मत व इल्म दिया गया या नहीं वोह हर हालत में शहवात की तरफ़ ज़बान लटकाता रहता है।

हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम  ने फ़रमाया बुरे उलमा की मिसाल ऐसी चट्टान की सी है जो नहर के मुंह पर गिर गई हो, न वोह खुद सैराब होती है और न ही वोह पानी को रास्ता देती है कि उस से खेतियां सैराब हों।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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