गीबत और चुगली के बारे में हदीसे पाक और किस्से 

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गीबत और चुगली बद तरीन गुनाह हैं

गीबत पर वईद

खुदावन्दे कुद्दूस ने कुरआने मजीद में गीबत की मज़म्मत करते हुवे गीबत करने वालों को मुर्दार का गोश्त खाने वाले कहा चुनान्चे, फ़रमाने इलाही है : “एक दूसरे की गीबत न करो क्या तुम में से कोई अपने मुर्दा भाई का गोश्त खाना पसन्द करता है”.

फ़रमाने नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  है कि “हर मुसलमान पर दूसरे मुसलमान का खून, माल और इज्जत हराम है”.

फ़रमाने नबवी है कि “अपने आप को गीबत से बचाओ क्यूंकि गीबत ज़िना से बदतर है, क्यूंकि ज़ानी  गुनाह के बाद तौबा करता है तो अल्लाह तआला क़बूल कर लेता है मगर गीबत का गुनाह उस वक्त तक मुआफ़ नहीं होता जब तक कि जिस की गीबत की जाए वह मुआफ़ न कर दे”।

कहते हैं : गीबत करने वाले की मिसाल उस शख्स जैसी है जिस ने एक मिन्जनीक़ (पुराने ज़माने की जंग में इस्तेमाल की जाने वाली पत्थर फेकने की मशीन) लगाई और वह उस मिन्जनीक़ के जरीए दाएं बाएं नेकियां फेंक रहा है।

रसूलल्लाह सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  का इरशाद है : “जो किसी मुसलमान भाई की बुराई चाहते हुवे गीबत करता है, अल्लाह तआला उसे यौमे कियामत जहन्नम के पुल पर उस वक्त तक खड़ा करेगा कि जो कुछ उस ने कहा था, निगल जाए”

फ़रमाने रसूले करीम सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  है : “गीबत यह है कि तू अपने भाई की उस चीज़ का ज़िक्र करे जिसे वह ना पसन्द करता है” ख्वाह उस के बदन का कोई ऐब हो, नसब का ऐब हो, उस के कौलो-फेल या दीनो-दुनिया का ऐब हो यहां तक कि उस के कपड़ों और सवारी में भी कोई ऐब निकालेगा तो यह गीबत होगी.

बा’ज़ मुतकद्दिमीन का कौल है : “यह कहना भी कि फुलां का कपड़ा लम्बा या छोटा है, गीबत है यहाँ तक की उस की जात के एब गिने जाएं। (तो उस गीबत का क्या ठिकाना)

एक छोटे कद की औरत किसी काम के लिये हुजूर सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  की खिदमत में हाज़िर हुई, जब वह वापस चली गई तो हज़रते आइशा रज़िअल्लाहो अन्हा  ने कहा : उस का क़द कितना छोटा था, आप ने फ़रमाया : आइशा ! तुम ने उस की ग़ीबत की है। हुजूर सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  इरशाद फ़रमाते हैं कि “अपने आप को गीबत से बचाओ क्यूंकि इस में तीन मुसीबतें हैं : गीबत करने वाले की दुआ कबूल नहीं होती, उस की नेकियां ना मक्बूल होती हैं और उस पर गुनाहों की यूरिश (यलगार) होती है।

 

चुगलखोर का अन्जाम

हुजूर सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  इरशाद फ़रमाते हैं कि “क़ियामत के दिन बद तरीन आदमी दो चेहरों वाला चुगुलख़ोर होगा जो आप के पास और चेहरा ले कर आता है, दूसरे के पास और चेहरा ले कर जाता है”, और फ़रमाया “जो दुनिया में चुगुल खोरी करता है क़ियामत के दिन उस के मुंह से आग की दो ज़बानें नज़र आएंगी”

हुज़ूर सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  का इरशाद है : “चुगल खोर जन्नत में नहीं जाएगा”

अल्लाह तआला ने तमाम जानवरों के मुंह में ज़बान पैदा की है मगर मछली को ज़बान नहीं दी गई, इस की वज्ह यह है कि जब हुक्मे खुदावन्दी से फरिश्तों ने आदम को सजदा किया और इब्लीस, रजीम हो कर मस्ख शुदा सूरत में ज़मीन पर फेंक दिया गया तो वह समन्दरों की तरफ़ गया तो उसे सब से पहले मछली नज़र आई जिसे उस ने आदम की तख्लीक का किस्सा सुनाया और यह भी बतलाया कि वह पानी और खुश्की के जानवरों का शिकार करेगा, तो मछली ने तमाम दरयाई जानवरों तक हज़रते आदम की कहानी कह सुनाई इसी वज्ह उसे अल्लाह तआला ने ज़बान के शरफ़ से महरूम कर दिया।

 

चुगलखोर की सजा

हज़रते अम्र बिन दीनार रहमतुल्लाह अलैह  कहते हैं कि मदीना ए तय्यिबा में एक शख्स रहता था जिस की बहन मदीने के नवाह में रहती थी, वह बीमार हो गई तो यह शख्स उस की तीमार दारी में लगा रहा लेकिन वह मर गई तो उस शख्स ने उस की तजहीज़ो तक्फ़ीन का इन्तिज़ाम किया, आख़िर जब उसे दफ्न कर के वापस आया तो उसे याद आया कि वह रकम की एक थैली कब्र में भूल आया है। उस ने अपने एक दोस्त से मदद तलब की। दोनों ने जा कर उस की कब्र खोद कर थैली निकाल ली। तो उस ने दोस्त से कहा : ज़रा हटना ! मैं देखू तो सही मेरी बहन किस हाल में है ? उस ने लहूद में झांक कर देखा तो वह आग से भड़क रही थी, वह वापस चुप चाप चला आया और मां से पूछा : मेरी बहन में क्या कोई ख़राब आदत थी ? मां ने कहा : तेरी बहन की आदत थी वह हमसायों के दरवाज़ों से कान लगा कर उन की बातें सुनती थी और चुगुल खोरी किया करती थी। पस उस शख्स को मालूम हो गया कि अज़ाब का सबब क्या है,

पस जो शख्स अज़ाबे कब्र से बचना चाहता है उसे चाहिये कि वह गीबत और चुगल खोरी से परहेज़ करे।

 

हजरते अबुल्लैस बुखारी का एक वाकिआ

हज़रते अबुल्लैस बुखारी रहमतुल्लाह अलैह  हज के लिये घर से रवाना हुवे और दो दीनार जेब में डाल लिये, रवाना होते वक्त कसम खाई कि अगर मैं ने मक्का ए  मुकर्रमा को जाते या घर वापस आते हुवे किसी की गीबत की तो यह दो दीनार अल्लाह के नाम पर सदक़ा कर दूंगा। आप मक्का शरीफ़ तक गए और घर वापस आए मगर दीनार इसी तरह उन की जेब में महफूज़ रहे, उन से गीबत के मुतअल्लिक पूछा गया तो उन्हों ने जवाब दिया :मैं एक मरतबा की गीबत को सो मरतबा के ज़िना से बद तरीन समझता हूं”

हज़रते अबू हफ्स अल कबीर रहमतुल्लाह अलैह  का कौल है कि मैं किसी इन्सान की गीबत करने को माहे रमज़ान के रोजे न रखने से बदतर समझता हूं, फिर फ़रमाया : जिस ने किसी आलिम की गीबत की तो क़ियामत के दिन उस के चेहरे पर लिखा हुवा होगा, यह अल्लाह की रहमत से ना उम्मीद है।

फ़रमाने नबवी है : “मे‘राज की रात मेरा ऐसी कौम पर गुज़र हुवा जो अपने नाखुनों से अपने चेहरों को छील रहे थे और मुर्दार खा रहे थे, मैं ने जिब्रीले अमीन से पूछा कि : ये कौन लोग हैं ? जिब्रील ने कहा : ये वो लोग हैं जो दुनिया में लोगों का गोश्त खाते रहे हैं ।  (या’नी गीबत करते रहे हैं)

हज़रते हसन रज़िअल्लाहो अन्हो  का क़ौल है : रब्बे जुल जलाल की कसम ! गीबत, लुक्मे के पेट में पहुंचने से भी जल्द तर, मोमिन के दीन में खराबी डाल देती है।

हज़रते सलमान फ़ारिसी रज़िअल्लाहो अन्हो  हज़रते अबूबक्र व उमर रज़िअल्लाहो अन्हो   के हम सफ़र थे और उन के लिये खाना तय्यार करते थे, एक मरतबा ऐसा इत्तिफ़ाक़ हुवा कि हज़रते सलमान रज़िअल्लाहो अन्हो   ने खाने की कोई चीज़ न पाई जिसे तय्यार कर के वह खा सकें, हज़रते अबू बक्र व उमर रज़िअल्लाहो अन्हो  ने इन्हें हुजूर की खिदमत में भेजा कि जा कर देखो वहां कुछ मौजूद है ? उन्हों ने वापस आ कर बतलाया कि वहां कुछ नहीं है, इस पर उन्हों ने कहा : अगर तुम फुलां कूएं की तरफ़ जाते तो उस का पानी भी खुश्क हो जाता, तब यह आयत नाज़िल हुई : या’नी एक दूसरे की ग़ीबत न करो।

हज़रते अबू हुरैरा रज़िअल्लाहो अन्हो  से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  ने फ़रमाया : “जो दुनिया में अपने भाई का गोश्त खाता है कियामत के दिन उस के सामने मुर्दा भाई का गोश्त रखा जायेगा और कहा जायेगा जिसे तु जिंदा खाता था अब इस मुर्दा को भी खा और वह उसे खाएगा, फिर आपने यह आयत पढ़ी “क्या तुम में से कोई यह पसंद करता है की अपने मुर्दा भाई का गोश्त खाए”

गीबत की बदबू अब क्यूं महसूस नहीं होती

हज़रते जाबिर बिन अब्दुल्लाह अन्सारी रज़िअल्लाहो अन्हो  से मरवी है चूंकि हुजूर सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  के अहदे मुबारक में गीबत बहुत कम की जाती थी इस लिये इस की बदबू आती थी मगर अब गीबत इतनी आम हो गई कि मश्शाम इस की बदबू के आदी हो गए हैं कि वह इसे महसूस ही नहीं कर सकते । इस की मिसाल ऐसी है जैसे कोई शख्स चमड़े रंगने वालों के घर में दाखिल हो तो वह उस की बदबू से एक लम्हा भी नहीं ठहर सकेगा मगर वह लोग वहीं खाते पीते हैं और उन्हें बू महसूस ही नहीं होती क्यूंकि उन के मश्शाम (नाक) इस किस्म की बू के आदी हो चुके हैं और यही हाल अब इस गीबत की बदबू का है।

हज़रते का’ब रज़िअल्लाहो अन्हो  का कौल है : “मैं ने किसी किताब में पढ़ा है, जो शख्स गीबत से तौबा कर के मरा वह जन्नत में सब से आखिर में दाखिल होगा और जो गीबत करते करते मर गया वह जहन्नम में सब से पहले जाएगा”, फ़रमाने इलाही है : हर पीठ पीछे बुराइयां करने वाले और तेरी मौजूदगी में बुराइयां करने वाले के लिये जहन्नम का गढ़ा है। यह आयत वलीद बिन मुगीरा के हक़ में नाज़िल हुई जो मुसलमानों के सामने हुजूर सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  और मुसलमानों की बुराइयां किया करता था, इस आयत का शाने नुजूल तो खास है मगर इस की वईद आम है।

 

गीबत जिना से भी बदतर है

रसूले मक़बूल सल्लल्लाहो  अलैह वसल्लम  इरशाद फ़रमाते हैं कि अपने आप को गीबत से बचाओ, यह ज़िना से भी बदतर है, पूछा गया : यह ज़िना से कैसे बदतर है ? तो आप ने फ़रमाया : आदमी ज़िना कर के तौबा कर लेता है, अल्लाह तआला उस की तौबा कबूल फ़रमाता है मगर गीबत करने वाले को जब तक वह शख्स जिस की गीबत की गई हो, मुआफ़ न करे, उस की तौबा कबूल नहीं होती”।

लिहाज़ा हर गीबत करने वाले के लिये ज़रूरी है कि वह अल्लाह तआला के हुजूर शर्मिन्दा हो कर तौबा करे ताकि अल्लाह के करम से फैज़याब हो कर फिर उस शख्स से मा’ज़िरत करे जिस की उस ने गीबत की थी ताकि गीबत के अंधियारों से रिहाई हासिल हो ।

फ़रमाने नबवी है कि “जो अपने मुसलमान भाई की गीबत करता है अल्लाह तआला कियामत के दिन उस का मुंह पीछे की तरफ़ फेर देगा”।

इस लिये हर गीबत करने वाले पर लाज़िम है कि वह उस मजलिस से उठने से पहले अल्लाह तआला से मुआफ़ी मांग ले और जिस शख्स की ग़ीबत की है उस तक बात पहुंचने से कब्ल ही रुजूअ कर ले क्यूंकि गीबत के वहां तक पहुंचने से पहले जिस की ग़ीबत की गई हो, अगर तौबा कर ली जाए तो तौबा क़बूल हो जाती है मगर जब बात उस शख्स तक पहुंच जाए तो जब तक वह खुद मुआफ़ न करे तौबा से गुनाह मुआफ़ नहीं होता और इसी तरह शादीशुदा औरत पर ज़िना का मस्अला है, जब तक उस का शोहर मुआफ़ न करे, तौबा कबूल नहीं होगी, रहा नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात का मुआमला तो क़ज़ा अदा किये बिगैर इन की भी तौबा कबूल नहीं होती।

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