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हसने रोने और ग़मगीन रहने के बारे में हदीस शरीफ – Net In Hindi.com

हसने रोने और ग़मगीन रहने के बारे में हदीस शरीफ

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खन्दा व गिर्या जारी हँसना और रोना

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

बा’ज़ मुफस्सिरीन ने इस फ़रमाने इलाही : “क्या पस इस बात से तअज्जुब करते हो और  हंसते हो और रोते नहीं हो, और तुम गफलत में हो”। की तफ्सीर में फ़रमाया कि  से मुराद कुरआन है या’नी तुम इस कुरआन पर तअज्जुब करते हो और झुटलाते हो और बा वुजूद इस के कि येह अल्लाह की तरफ़ से है फिर भी तुम इस का ठठ्ठा करते हो और इस में जो वईदें हैं इन को पढ़ कर तुम ख़ौफ़ से रोते नहीं और तुम से जो मुतालबा है उस से गाफ़िल हो।

इस आयत के नुजूल के बाद हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम कभी नहीं हंसे, सिर्फ तबस्सुम फ़रमाया करते थे।

एक रिवायत में है कि इस आयत के नुजूल के बाद हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को हंसते और मुस्कुराते हुवे नहीं देखा गया यहां तक कि आप दुनिया से तशरीफ़ ले गए।

हज़रते इब्ने उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : एक दिन हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मस्जिद से बाहर तशरीफ़ लाए तो आप ने लोगों की ऐसी जमाअत देखी जो हंस हंस कर बातें कर रहे थे आप उन के पास ठहर गए, उन्हें सलाम कहा और फ़रमाया : दुन्यावी लज्ज़तों को मुन्कतेअ करने वाली (मौत) को अक्सर याद किया करो।

फिर एक मरतबा आप का गुज़र एक ऐसी जमाअत से हुवा जो हंस रहे थे, आप ने उन्हें देख कर फ़रमाया : ब खुदा अगर तुम वोह जानते जो मैं जानता हूं तो तुम कम हंसते और ज़ियादा रोते ।

जब हज़रते खिज्र अलैहहिस्सलाम  से हज़रते मूसा अलैहहिस्सलाम  ने अलाहिदा होना चाहा तो उन्हों ने कहा : मुझे नसीहत कीजिये ! हज़रते खिज्र ने कहा : ऐ मूसा खुद को झगड़ों से बचाइये ! ज़रूरत के बिगैर क़दम न उठाइये ! तअज्जुब के बिगैर मत हंसिये ! गुनाहगारों को उन की खताओं के सबब शर्मिन्दा न करो और अपनी तरफ़ से रब के हुजूर रोते रहो।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि ज़ियादा हंसना दिल को मौत से हम किनार कर देता है।

मजीद इरशाद फ़रमाया कि जो शख्स जवानी में हंसता है, मौत के वक़्त रोता है ।

इरशादे नबवी है कि कुरआन पढ़ो और रोओ, अगर रोना न आए तो रोने वाले शख्स जैसा चेहरा बनाओ। हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो ने इस फ़रमाने इलाही :

पस चाहिये कि थोड़ा हंसो और जियादा रोओ।

की तफ्सीर में फ़रमाया है कि दुनिया में कम हंसो वरना आख़िरत में बहुत रोना पड़ेगा और येह तुम्हारे आ’माल की जज़ा होगी।

मजीद फ़रमाया कि मुझे उस हंसने वाले पर तअज्जुब होता है जिस के पीछे जहन्नम है और उस मसरूर व शादां पर तअज्जुब होता है जिस के पीछे मौत लगी हुई है।

अल्लाह और दोज़ख के खौफ से ग़मगीन रहना

आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का एक ऐसे जवान के करीब से गुजर हवा जो हंस रहा था। आप ने पूछा : ऐ बेटे ! क्या तू ने पुल सिरात को उबूर कर लिया है ? उस ने कहा : नहीं ! आप ने फ़रमाया : तो क्या तुझे येह मालूम हो गया है कि तू जन्नत में जाएगा? आप ने फिर पूछा : वोह जवान न बोला, आप ने फरमाया : फिर किस लिये हंस रहे हो? इस के बाद उस जवान को कभी भी हंसते हुवे नहीं देखा गया।

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो का फ़रमान है कि जो हंसते हुवे गुनाह करता है वोह रोते हुवे जहन्नम में जाएगा।

अल्लाह तआला ने रोने वालों की तारीफ की है चुनान्चे, इरशादे इलाही है :

और वोह रोते हुवे ठोड़ियों के बल गिर

पडते हैं। हज़रते औज़ाई रज़ीअल्लाहो अन्हो इस आयत : क्या है इस किताब को कि नहीं छोड़ती छोटी बात और न बड़ी बात मगर इस को गिन लिया है। की तशरीह में फ़रमाते हैं कि छोटी बात से मुराद तबस्सुम और बड़ी बात से मुराद कहकहा लगाना है।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं कि क़ियामत के दिन सब आंखें रोने वाली होंगी मगर तीन आंखें नहीं रोएंगी, जो खौफे खुदा से रोई, जो अल्लाह तआला की हराम कर्दा चीज़ों से बन्द हो गई और जो राहे खुदा में बेदार हुई।

कहा गया है कि तीन चीजें दिल को सख्त करती हैं, बिगैर किसी तअज्जुब के हंसना, भूक के बिगैर खाना और बिगैर किसी ज़रूरत के बातें करना।

हुजूर मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का लिबास केसा था ?

लिबास – हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को तहबन्द, चादर, कमीस या जुब्बा वगैरा से जो कपड़ा भी मुयस्सर आ जाता, पहन लेते थे और आप को सब्ज़ लिबास पसन्द था लेकिन अक्सर अवक़ात आप सफ़ेद लिबास जेबे तन फ़रमाया करते थे और फ़रमाते येही लिबास अपने ज़िन्दों को पहनाओ और इसी में अपने मुर्दो को कफ़न दो ।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की रेशमी कबा थी, आप के जिस्मे अतहर पर इस का सब्ज रंग बहुत भला लगता था। आप के तमाम कपड़े टख्नों के ऊपर होते थे और आप का तहबन्द इन से ऊपर निस्फ़ साक़ (पिन्डली) तक होता था। 1)

आप के पास एक सियाह कम्बल था जो आप ने किसी को बख्श दिया, हज़रते उम्मे सलमह रज़ी अल्लाहो अन्हा  ने अर्ज की : या रसूलल्लाह ! मेरे मां-बाप आप पर कुरबान हों, सियाह कम्बल का क्या हुवा ? आप ने फ़रमाया : वो मैं ने पहना दिया, हज़रते उम्मे सलमह रज़ीअल्लाहो अन्हा  बोलीं : या रसूलल्लाह ! मैं ने आप के सफ़ेद जिस्म पर उस काले कम्बल से ज़ियादा हसीन चीज़ नहीं देखी ।हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम लिबास को दाहिनी तरफ़ से पहनना शुरूअ फ़रमाते और पढ़ते : हम्द है उस अल्लाह को जिस ने मुझे लिबास दिया जिस से मैं अपना जिस्म ढांपता हूं और लोगों में जीनत के साथ जाता हूं।

आप अपना लिबास हमेशा बाई तरफ़ से उतारते थे, जब नया कपड़ा ज़ेबे तन फ़रमाते तो पुराना कपड़ा किसी मिस्कीन को दे देते और फ़रमाते : जो किसी मुसलमान को अपना पुराना कपड़ा रजाए इलाही के हुसूल के लिये पहनाता है वोह अपने इस अमल की बदौलत ज़िन्दगी और मौत दोनों में अल्लाह तआला की अमान, पनाह और रहमत में होता है। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का एक जुब्बा मुबारक था, आप जहां आराम फ़रमाते उसे नीचे दो तहों में बिछा देते ।

आप चटाई पर आराम फ़रमाया करते थे, चटाई के बिगैर और कोई चीज़ आप के जिस्मे अतहर व अक्दस के नीचे नहीं होती थी।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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