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ईमान वाले और मुनाफ़िक में फर्क – Net In Hindi.com

ईमान वाले और मुनाफ़िक में फर्क

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तारीफे ईमान व ज़म्मे मुनाफ़क़त

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

जान लीजिये कि ईमान अल्लाह तआला की वहदानिय्यत की तस्दीक़ और रसूलों के लाए हुवे अहकामात की ताईद व तस्दीक और आ’माल के मजमूए का नाम है, फ़रमाने इलाही है :

ईमानदार लोग वोही हैं जो अल्लाह और उस के रसूल पर ईमान लाए फिर उन्हों ने शक नहीं किया और राहे खुदा में अपने मालों और जानों के साथ जिहाद किया येही लोग सच्चे हैं। दूसरी आयत में इरशाद है :

लेकिन भलाई उस के लिये है जो अल्लाह और कयामत के दिन और फ़रिश्तों और किताबों और नबियों पर ईमान लाया। इसी तरह अल्लाह तआला ने बीस सिफ़ात मसलन वादा पूरा करना, मसाइब पर सब्र करना वगैरा, ईमाने कामिल की शर्ते रखी हैं,

फिर इरशाद फ़रमाया : “येही लोग हैं जिन्हों ने सच किया।” एक और आयत में फ़रमाने इलाही है :

“अल्लाह तआला उन लोगों को बुलन्द करेगा जो तुम में से ईमान लाए और जिन को इल्म दिया गया है उन्हें दरजात ।”

एक और मकाम पर इरशादे इलाही है:

“नहीं बराबर तुम में से वोह शख्स कि जिस ने फ़तहे मक्का से पहले खर्च किया और लड़ाई की।”

फ़रमाने इलाही है : “येह लोग अल्लाह तआला के नज़दीक मरातिब पर फ़ाइज़ हैं।” फ़रमाने नबवी है कि ईमान बरहना है और इस का लिबास तकवा है।

और इरशाद फ़रमाया कि ईमान के कुछ ऊपर सत्तर दरजे हैं और कम तरीन दरजा रास्ते से तक्लीफ़ देह चीज़ को दूर करना है।

मुनाफ़िक कौन होता है ?

येही हदीस इस अम्र पर दलालत करती है कि कामिल ईमान अमल से मशरूत व मरबूत है और ईमान का निफ़ाक़ से बराअत और शिर्के खफ़ी से अलाहिदगी पर मरबूत होना हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के इस फ़रमान से साबित है, इरशाद होता है चार चीजें जिस में हों वोह नमाज़ी व रोज़ादार होने के बा वुजूद ख़ालिस मुनाफ़िक़ है अगर्चे वोह खुद को मोमिन ही समझता रहे, जब वोह बात करे तो झूट बोले वा’दा कर के वादा ख़िलाफ़ी करे, उस के यहां अमानत रखी जाए तो खियानत करे और जब झगड़ा करे तो बेहूदापन पर उतर आए।

बा’ज़ रिवायतों में है कि जब मुआहदा करे तो उसे तोड़ डाले ।

हज़रते अबू सईद खुदरी रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी हदीस में है : दिल चार हैं : दुन्यावी ख्वाहिशात से मुनज्जा दिल जिस में मा’रिफ़त का चराग रोशन है और येही मोमिन का दिल है। ऐसा दिल जिस में ईमान और निफ़ाक़ दोनों हों ऐसे दिल में ईमान सब्जे की तरह है जो मीठे पानी से नश्वो नुमा पाता है और निफ़ाक़ ऐसे ज़ख्म की तरह है जो पीप और गन्दे खून से फैलता जाता है, इन में से जो चीज़ गालिब आ जाती है दिल पर उसी का हुक्म चलता है।

दूसरी रिवायत के अल्फ़ाज़ हैं कि जो इन में से गालिब हो जाता है वोह दूसरे को ले जाता है । फ़रमाने नबवी है कि मेरी उम्मत के अक्सर मुनाफ़िक कारी हैं।

एक हदीस में है कि मेरी उम्मत में शिर्क, सफा पहाड़ पर चलने वाली च्यूटी से भी ज़ियादा पोशीदा है ।

हज़रते हुजैफ़ा सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाया करते थे कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के अहदे मुबारक में आदमी एक बात ऐसी करता था जिस के सबब मरते वक़्त तक वोह मुनाफ़िक हो जाता था और मैं तुम से वैसी दस बातें रोज़ाना सुनता हूं।

बा’ज़ उलमा का कहना है कि वोह शख्स निफ़ाक़ से बहुत करीब है जो खुद को निफ़ाक़ से बरी समझता है।

हज़रते हुजैफ़ा रज़ीअल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं कि आज हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के अहदे मुबारक से ज़ियादा मुनाफ़िक़ हैं तब मुनाफ़िक़ अपना निफ़ाक़ पोशीदा रखते थे और अब ज़ाहिर करते हैं, येही निफ़ाक़ कमाले ईमानी और सिद्के ईमान की ज़िद है क्यूंकि येह पोशीदा है, जो इस से खौफ़ज़दा होता है वोह इस से दूर होता है और इस से करीब वोही होता है जो खुद को इस से बरी समझता है चुनान्चे, हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो से कहा गया कि लोग कहते हैं : आज निफ़ाक़ बाकी नहीं रहा है, आप ने फ़रमाया : ऐ भाई ! अगर मुनाफ़िक हलाक हो जाएं तो तुम रास्तों पर वहशत ज़दा हो जाओ और आप ने या किसी और ने कहा कि अगर मुनाफ़िकों के खुर पैदा हो जाएं तो हम जमीन पर क़दमों से न चल पाएं (इन की कसरत के बाइस राह चलना दुश्वार हो जाए)।।

दिल में निफ़ाक़ और मुनाफ़िक

हज़रते इब्ने उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो ने एक आदमी को हज्जाज को बुरा भला कहते सुन कर फ़रमाया कि अगर हज्जाज मौजूद होता तो तुम येह बातें करते ? उस ने कहा : नहीं ! आप ने येह सुन कर फ़रमाया कि हम इस चीज़ को हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के ज़माने में निफ़ाक़ में शुमार करते थे।

नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम फ़रमाते हैं कि जो शख्स दुन्या में दो ज़बानों वाला होता है आख़िरत में अल्लाह तआला उसे दो ज़बानों वाला बनाएगा, मजीद फ़रमाया : बदतरीन आदमी दो चेहरों वाला है जो इस के पास एक चेहरे से और दूसरे के पास दूसरे चेहरे से जाता है (या’नी मुनाफ़क़त करता है)।

हज़रते हसन बसरी रज़ीअल्लाहो अन्हो से कहा गया : कुछ लोग कहते हैं कि आप को निफ़ाक़ का ख़ौफ़ नहीं है ? आप ने फ़रमाया : ब खुदा ! मुझे ज़मीन की हर बुलन्दी के बराबर सोने के मालिक होने से येह बात ज़ियादा पसन्द है कि मुझे मालूम हो जाए कि मैं निफ़ाक़ से बरी हूं।

हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : निफ़ाक़ की वज्ह से ज़बान और दिल मुख्तलिफ़ होते हैं, पोशीदा और जाहिर का इख़्तिलाफ़ होता है और आने जाने में फ़र्क होता है, दाखिल होने का रास्ता और, और निकलने का और होता है। किसी ने हज़रते हुजैफ़ा रज़ीअल्लाहो अन्हो से कहा कि मैं निफ़ाक़ से डरता हूं, आप ने फ़रमाया : अगर तुम मुनाफ़िक होते तो तुम्हें निफ़ाक़ का ख़ौफ़ न होता क्यूंकि मुनाफ़िक निफ़ाक़ से बे परवा होता है।

हज़रते इब्ने अबी मुलैका रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि मैं ने एक सो तीस और एक रिवायत में एक सो पचास सहाबए किराम को पाया है जो सब के सब निफ़ाक़ से डरते थे।

मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम सहाबा की एक जमाअत में तशरीफ़ फ़रमा थे, सहाबए किराम ने एक आदमी का तजकिरा किया और उस की बहुत ज़ियादा तारीफ़ की, सब हज़रात इसी तरह तशरीफ़ फ़रमा थे कि वोह शख्स आया उस के चेहरे से वुजू का पानी टपक रहा था, जूता उस के हाथ में था और उस की आंखों के दरमियान सजदों का निशान था, सहाबए किराम ने अर्ज की : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम येह वोही शख्स है जिस की हम ने आप के सामने तारीफ़ की है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : मुझे इस के चेहरे पर शैतान का असर नज़र आता है। वोह आदमी आ कर सहाबा के साथ बैठ गया और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को सलाम किया। आप ने उसे देख कर फ़रमाया : मैं तुझे अल्लाह की कसम देता हूं, बता कि जब तू ने इन लोगों को देखा तो तेरे दिल में येह ख़याल आया था कि तू इन से अच्छा है ? वोह बोला : ऐ अल्लाह के रसूल ! हां, तब आप ने अपनी दुआ में फ़रमाया : ऐ अल्लाह ! मैं तुझ से हर उस बात से जिसे जानता हूं या नहीं जानता, बख्रिशश तलब करता हूं। अर्ज किया गया : या रसूलल्लाह ! आप भी ख़ौफ़ज़दा हैं ? आप ने फ़रमाया : मैं कैसे बे खौफ़ हो जाऊं हालांकि मख्लूक के दिल अल्लाह तआला की दो उंगलियों के दरमियान हैं, वोह जैसे चाहता है उन्हें फेरता रहता है।

फ़रमाने खुदाए बुजुर्ग व बरतर है :

और ज़ाहिर हो जाएगा उन के वासिते अल्लाह

की तरफ़ से जिस को वोह गुमान नहीं करते थे। इस की तफ्सीर में कहा गया है कि उन्हों ने ऐसे आ’माल किये जिन्हें वोह अपने गुमान के ब मूजिब नेकियां समझते थे मगर वोह गुनाहों के पलड़े में जा पड़े।

हज़रते सिरी सकती रहमतुल्लाह अलैह  क़ौल है कि अगर कोई इन्सान ऐसे बाग में जाए जिस में हर किस्म के दरख्त हों और उन दरख्तों पर हर किस्म के परन्दे हों जो उसे देख कर यक ज़बान हो कर कहें : “ऐ अल्लाह के वली ! तुझ पर सलाम हो” और उस का दिल येह बात सुन कर मुतमइन हो जाए तो गोया वोह उन परिन्दों का असीर है।

येह तमाम अक्वाल व अहादीस तुझे उन खतरात से रू शनास कराएंगे जो पोशीदा निफ़ाक़ और शिर्के खफ़ी पर मुन्तहा होते हैं और कोई भी अक्लमन्द इस से गाफ़िल नहीं रहता यहां तक कि हज़रते उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो हज़रते हुजैफ़ा रज़ीअल्लाहो अन्हो से अपने मुतअल्लिक़ पूछा करते । (येह रिवायत पहले भी गुज़र चुकी है)।

हज़रते सुलैमान दारानी रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि मैं ने एक अमीर से ऐसी बात सुनी जो मुझे ना गवार गुज़री और मैं ने उसे टोकने का इरादा किया मगर मुझे अन्देशा हुवा कि कहीं येह मुझे कत्ल करने का हुक्म न दे दे, मैं मौत से नहीं बल्कि इस बात से डरा कि क़त्ल के वक़्त लोगों के सामने मेरे दिल में येह बात न आ जाए कि मैं ने कैसा उम्दा काम किया है लिहाज़ा मैं उसे टोकने से रुक गया।

येह निफ़ाक़ की वोह किस्म है जो ईमान की अस्ल के नहीं बल्कि इस की सफ़ाई, कमाल, हक़ीक़त और सिद्क़ के ख़िलाफ़ है। निफ़ाक़ की दो किस्में हैं : एक किस्म वोह है जो दीन से निकाल कर काफ़िरों में शामिल कर देती है और उन लोगों के साथ मुन्सलिक कर देती है जो हमेशा हमेशा के लिये जहन्नम में रहेंगे, दूसरी किस्म वोह है जो अपने रखने वाले को कुछ मुद्दत जहन्नम में पहुंचाएगी या उस के बुलन्द मरातिब को कम कर देगी और उसे सिद्दीकों के बुलन्द तरीन मक़ाम से नीचे गिरा देगी।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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