इस्लामी महीने आशुरा के दिन की फ़ज़ीलत और बरकत

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आशूरा के दिन की फज़िलतें और बरकतें 

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लमi मदीनए मुनव्वरा तशरीफ़ लाए तो आप ने यहूद को आशूरा के दिन का रोज़ा रखते देख कर पूछा कि तुम इस दिन रोज़ा क्यूं रखते हो ? उन्हों ने कहा : येह ऐसा दिन है जिस में अल्लाह तआला ने मूसाअलैहहिस्सलाम  और बनी इसराइल को फिरौन और उसकी कौम पर गलबा अता फ़रमाया था लिहाज़ा हम ताज़ीमन इस दिन का रोज़ा रखते हैं, इस पर हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि हम मूसा अलैहहिस्सलाम  से तुम्हारी निस्बत ज़ियादा करीब हैं चुनान्चे, आप ने भी इस दिन का रोज़ा रखने का हुक्म दिया ।

 खुशूशिय्याते यौमे आशूरा – आशुरा की खास बातें

आशूरा के दिन के साथ बहुत सी बातें मख्सूस हैं, इन में से चन्द येह हैं : इस दिन हज़रते आदम अलैहहिस्सलाम  की तौबा क़बूल की गई, इसी दिन इन्हें पैदा किया गया, इसी दिन इन्हें जन्नत में दाखिल किया गया। …..इसी दिन अर्श, कुरसी, आस्मान, जमीन, सूरज, चांद, सितारे और जन्नत पैदा किये गए।

इसी दिन हज़रते मूसा अलैहहिस्सलाम और आप की उम्मत को नजात मिली और फ़िरऔन अपनी कौम समेत गर्क हुवा।

इसी दिन हज़रते ईसा अलैहहिस्सलाम  पैदा किये गए, इसी दिन इन्हें आस्मानों की तरफ़ उठाया गया।

इसी दिन हज़रते इदरीस अलैहहिस्सलाम  को मकामे बुलन्द की तरफ़ उठाया गया।

इसी दिन हज़रते नूह अलैहहिस्सलाम  की किश्ती कोहे जूदी पर ठहरी। इसी दिन हज़रते सुलैमान अलैहहिस्सलाम  को मुल्के अज़ीम अता किया गया।

इसी दिन हज़रते यूनुस अलैहहिस्सलाम  मछली के पेट से निकाले गए। इसी दिन हज़रते याकूब अलैहहिस्सलाम  की बीनाई लौटाई गई। अलैहहिस्सलाम इसी दिन हज़रते यूसुफ़ अलैहहिस्सलाम गहरे कुएं से निकाले गए। इसी दिन हज़रते अय्यूबअलैहहिस्सलाम . की तकलीफ़ रफ्अ की गई। आस्मान से ज़मीन पर सब से पहली बारिश इसी दिन नाज़िल हुई और

इसी दिन का रोज़ा उम्मतों में मशहूर था यहां तक कि येह भी कहा गया है कि इस दिन का रोज़ा माहे रमज़ान से पहले फ़र्ज़ था फिर मन्सूख कर दिया गया और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने हिजरत से पहले इस दिन का रोज़ा रखा।

जब आप सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मदीनए मुनव्वरा तशरीफ़ लाए तो आप ने इस दिन की जुस्तजू की ताकीद की ता आंकि, आप ने आख़िर उम्र शरीफ़ में फ़रमाया कि अगर मैं आयिन्दा साल तक जिन्दा रहा तो आयिन्दा नवीं और दसवीं का रोज़ा रखूगा मगर आप ने उसी साल विसाल फ़रमाया और दसवीं के इलावा रोज़ा न रख सके मगर आप ने इस दिन या’नी नवीं और दसवीं और ग्यारहवीं मुहर्रम के दिनों में रोज़ा रखने को पसन्द फ़रमाया ।

जैसा कि फ़रमाने नबवी है : इस दिन से एक दिन पहले और एक दिन बा’द रोज़ा रखो और यहूद के तरीके की मुखालफ़त करो क्यूंकि वोह एक दिन ही का रोज़ा रखते थे।

बैहक़ी ने शोअबुल ईमान में रिवायत नक्ल की है कि जिस ने आशूरा के दिन अपने घर वालों और अहलो इयाल पर वुस्अत की, अल्लाह तआला उस के सारे साल में वुस्अत और बरकत अता फरमाता है ।

तबरानी की एक मुन्कर रिवायत में है कि इस दिन में एक दिरहम का सदका सात लाख दिरहम के बराबर है

और वोह हदीस जिस में है कि जिस ने इस दिन सुर्मा लगाया वोह उस साल आंखें दुखने से महफूज़ रहेगा और जिस ने इस दिन गुस्ल किया वोह बीमार नहीं होगा, मौजूअ है।

हाकिम ने इस की तसरीह की है कि इस दिन सुर्मा लगाना बिदअत है।

इब्ने कय्यम ने कहा है कि सुर्मा लगाने, दाने भूनने, तेल लगाने और आशूरा के दिन खुश्बू वगैरा लगाने की हदीस झूटों की वज्अ कर्दा है।

वाज़ेह हो कि आशूरा के दिन हज़रते इमाम हुसैन रज़ीअल्लाहो अन्हो के साथ जो कुछ बीती वोह इस दिन की अजमत, रफ्अत, अल्लाह के नज़दीक इस के दरजा और अहले बैते अतहार के मरातिब से इस दिन का तअल्लुक इस दिन की रफ्अत व अज़मत की बय्यन शहादत है लिहाज़ा जो शख्स इस दिन आप के मसाइब का ज़िक्र करे उसे येह मुनासिब नहीं कि सिवाए इन्ना लिल्लाहे इना इलयहे राजेऊँन  के और कुछ कहे क्यूंकि इसी में हुक्मे इलाही की मुताबअत और फ़रमाने इलाही की मुहाफ़ज़त होगी जिस में इरशाद होता है :  येही हैं जिन पर अल्लाह तआला की तरफ़ से दुरूद और रहमत है और येही लोग हिदायत याफ्ता हैं। खास तौर पर ख़याल करो कि कहीं रवाफ़िज़ की बिदअतों में मश्गूल न हो जाओ जैसा कि वोह लोग और उन के हम मिस्ल रोना, पीटना और गम का इज़हार करते हैं क्यूंकि येह काम मोमिनों के अख़्लाक़ से बईद हैं, अगर येह चीजें अच्छी होती तो इन के नाना सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का यौमे विसाल इन उमूर का ब तरीके औला मुस्तहिक़ होता और हमें अल्लाह काफ़ी है और वोही उम्दा मददगार है।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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