इस्लामी महीने रजब की फ़ज़ीलतें और बरकतें 

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रजब महीने की फ़ज़ीलत और बरकत

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

रजब, तरजीब से मुश्तक है जिस के मा’ना ता’ज़ीम के हैं, इसे असब भी कहा गया है क्यूंकि इस में तौबा करने वालों पर रहमत उंडेली जाती है और नेक अमल करने वालों पर कबूलिय्यत के अन्वार का फैजान होता है। इसे असम्म भी कहा गया है क्यूंकि इस में जंग और किताल वगैरा महसूस नहीं किया जाता । एक कौल येह है कि रजब जन्नत की एक नहर का नाम है जिस का पानी दूध से ज़ियादा सफ़ेद, शहद से ज़ियादा मीठा और बर्फ से ज़ियादा ठन्डा है, इस का पानी वोही पियेगा जो रजब में रोजे रखता है।

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फ़रमाने नबवी है कि रजब अल्लाह का महीना, शा’बान मेरा महीना और रमजान मेरी उम्मत का महीना है ।

रुमुज़ शनास लोगों का कहना है कि रजब के तीन हुरूफ़ हैं : रा, जीम, और बा, रा से रहमते इलाही, जीम से बन्दे के जुर्म और गलतियां और बा से अल्लाह तआला की मेहरबानियां मुराद हैं, गोया अल्लाह फ़रमाता है कि मैं अपने बन्दे के गुनाहों को अपनी रहमत और मेहरबानियों में समो लेता हूं।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्होसे मरवी है : रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि जिस ने रजब की सत्ताईसवीं का रोज़ा रखा उस के लिये साठ माह के रोज़ों का सवाब लिखा जाता है, येह पहला दिन है जिस में हज़रते जिब्रील हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम के लिये पैगामे इलाही ले कर नाज़िल हुवे और इसी माह में हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को मे’राज शरीफ़ का शरफ़ हासिल हुवा।

फ़रमाने नबवी है कि बा खबर हो जाओ, रजब अल्लाह तआला का माहे असम्म है, जिस ने रजब में एक दिन ईमान और तलबे सवाब की निय्यत से रोज़ा रखा उस ने अल्लाह तआला की अज़ीम रज़ामन्दी को अपने लिये वाजिब कर लिया।

कहा गया है कि अल्लाह तआला ने महीनों में से चार महीनों को जीनत बख़्शी है, जी का’दा, ज़िल हिज्जा, मुहर्रम और रजब । इसी लिये फ़रमाने इलाही है कि “इन में से चार महीने हराम हैं।”

इन में से तीन मिले हुवे हैं और एक तन्हा है और वोह है माहे रजबुल मुरज्जब । बैतुल मुक़द्दस में एक औरत रजब के हर दिन में बारह हज़ार मरतबा “कुल हो अल्लाहो अहद” पढ़ा करती थी और माहे रजबुल मुरज्जब में अदना लिबास पहनती थी, एक बार वोह बीमार हो गई

और उस ने अपने बेटे को वसिय्यत की, कि उसे बकरी के पश्मी लिबास समेत दफ़्न किया जाए। जब वोह मर गई तो उस के फ़रज़न्द ने उसे उम्दा कपड़ों का कफ़न पहनाया, रात को उस ने ख्वाब में मां को देखा वोह कह रही थी, मैं तुझ से राजी नहीं हूं क्यूंकि तू ने मेरी वसिय्यत के खिलाफ़ किया है। वोह घबरा कर उठ बैठा, अपनी मां का वोह लिबास उठाया ताकि उसे भी कब्र में दफ्न कर आए, उस ने जा कर मां की कब्र खोदी मगर उसे क़ब्र में कुछ न मिला, वोह बहुत हैरान हुवा तब उस ने येह निदा सुनी कि क्या तुझे मालूम नहीं कि जिस ने रजब में हमारी इताअत की, हम उसे तन्हा और अकेला नहीं छोड़ते।

रिवायत है कि जब रजब के अव्वलीन जुमुआ की एक तिहाई रात गुज़रती है तो कोई फ़रिश्ता बाक़ी नहीं रहता मगर सब रजब के रोज़ादारों के लिये बख्शिश की दुआ करते हैं।

हज़रते अनस रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जिस ने माहे हराम (रजब) में तीन रोजे रखे, उस के लिये नव सो साल की इबादत का सवाब लिखा जाता है। हजरते अनस रज़ीअल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया : मेरे दोनों कान बहरे हों अगर मैं ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से येह बात न सुनी हो ।)

नुक्ता

माहे हराम चार हैं, अफ़्ज़ल तरीन फ़िरिश्ते चार हैं, नाज़िल कर्दा किताबों में अफ़्ज़ल किताबें चार हैं, वुजू के आ’ज़ा चार हैं, अफ्ज़ल तरीन कलिमाते तस्बीह चार हैं (या’नी सुबहान अल्लाह, अलहम्दो लिल्लाह ,ला इलाहा इललललाह,अल्लाहो अकबर )

हिसाब के अहम अरकान चार हैं : इकाइयां, दहाइयां, सेंकड़े और हज़ार, अवक़ात चार हैं : साअत, दिन, महीना और साल, साल के मोसिम चार हैं : सर्मा, गर्मा, बहार और खज़ां, तबाएअ चार हैं : हरारत, बरूदत, यबूसत और रतूबत, बदन के हुक्मरान चार हैं : सफ़रा, सौदा, खून और बलगम और खुलफ़ाए राशिदीन भी चार हैं : हज़रते अबू बक्र, हज़रते उमर, हज़रते उस्मान और हज़रते अली रज़ीअल्लाहो अन्हो

दैलमी ने हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हा  से एक रिवायत नक्ल की है कि नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : अल्लाह तआला चार रातों में खैरो बरकत की बारिश करता है, ईदुल अज़्हा की रात, ईदुल फ़ित्र की रात, पन्दरह शा’बान की रात और रजबुल मुरज्जब की पहली रात

दैलमी ने हज़रते अबू उमामा रज़ीअल्लाहो अन्हो से रिवायत भी नक्ल की है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : पांच रातें ऐसी हैं जिन में कोई दुआ रद्द नहीं की जाती, रजब की पहली रात, पन्दरह शा’ बान की रात, जुमुआ की रात और दो रातें ईदैन की ।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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