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क्या समाअ इस्लाम में जायज़ है  – Net In Hindi.com

क्या समाअ इस्लाम में जायज़ है 

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समाअ का बयान  

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

समाअ के नाजायज़ होने की दलीलें और रिवायतें

क़ाज़ी अबू तय्यिब तबरी रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रते इमाम शाफ़ेई, इमाम अबू हनीफ़ा, इमाम मालिक, हज़रते सुफ्यान रज़ीअल्लाहो अन्हो और उलमाए किराम की एक जमाअत से ऐसे अल्फ़ाज़ नक्ल किये हैं जो इस अम्र पर दलालत करते हैं कि येह हज़रात समाअ के अद्दे जवाज़ के काइल थे।

इमाम शाफेई रज़ीअल्लाहो अन्हो ने अपनी किताब आदाबुल क़ज़ा में कहा है कि गना एक ना मुनासिब और मकरूह चीज़ है जो एक लचर (बेहूदा) चीज़ की तरह है, जो ब कसरत इस में मश्गूल हो वोह बे समझ है और उस की गवाही रोक दी जाएगी।

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काज़ी अबू तय्यिब रहमतुल्लाह अलैह ने कहा है कि शवाफ़ेअ हज़रात ने कहा है कि गैर महरम औरत से कुछ सुनना ख्वाह वोह पर्दे में हो या सामने, वोह आज़ाद हो या बांदी, हर सूरत में नाजाइज़ है।

काजी साहिब ने इमाम शाफ़ेई रज़ीअल्लाहो अन्हो का येह कौल नक्ल किया है कि बांदी का मालिक जब लोगों को उस से कुछ सुनने के लिये जम्अ करे तो वोह बेवुकूफ़ है, उस की गवाही मर्दूद है।

मज़ीद कहा कि इमाम शाफ़ेई रज़ीअल्लाहो अन्हो से नक्ल किया गया है कि आप दो टहनियों को आपस में मार कर भी साज़ की सी आवाज़ निकालने को मकरूह जानते थे और फ़रमाते थे कि इसे बे दीनों ने ईजाद किया है ताकि इस की वज्ह से लोगों की तवज्जोह कुरआने मजीद से हट जाए।

इमाम शाफेई रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि हदीस शरीफ़ में नह्य वारिद होने के सबब में दीगर तमाम साजहाए नगमा व तरब से नर्द को ज़ियादा मकरूह समझता हूं, मैं शतरन्ज खेलने को मकरूह समझता हूं और मैं हर खेल को मकरूह समझता हूं क्यूंकि येह खेल वगैरा दीनदार और साहिबे तक्वा लोगों का शैवा नहीं है। ……

इमाम मालिक रज़ीअल्लाहो अन्हो ने गना से मन्अ फ़रमाया है और इन का कौल है कि जब किसी ने लौंडी खरीदी और उसे पता चला कि वोह मुगन्निया है तो उसे लौंडी वापस करने का हक़ हासिल है और इब्राहीम बिन सा’द रहमतुल्लाह अलैह के इलावा तमाम अहले मदीना का येही मज़हब है।

इमाम अबू हनीफ़ा रज़ीअल्लाहो अन्हो भी गना को मकरूह जानते थे और गना का सुनना गुनाहों में शुमार करते थे और तमाम अहले कूफ़ा हज़रते सुप्यान सौरी, शैख़ हम्माद, इब्राहीम, शा’बी (Kailss) वगैरहुम का येही मस्लक है।

मजकूरए बाला तमाम रिवायात काजी अबू तय्यिब तबरी ने नक्ल की हैं। ।

जवाजे समाअ के दलाइल

समाअ के नजायज़ होने की दलीलें और रिवायतें

हज़रते अबू तालिब मक्की ने एक जमाअत से समाअ का जवाज़ नक्ल किया है और उन का येह कौल भी है कि सहाबा से हज़रते अब्दुल्लाह बिन जा’फ़र, अब्दुल्लाह बिन जुबैर, मुगीरा बिन शो’बा और मुआविय्या रज़ीअल्लाहो अन्हो से समाअ मन्कूल है।

अबू तालिब मक्की रहमतुल्लाह अलैह ने येह भी कहा है कि सलफ़े सालिहीन में से सहाबा और ताबेईन की कसीर जमाअत ने इसे अच्छा समझा है और हमारे यहां अहले हिजाज़ मक्कए मुअज्जमा में साल के बेहतरीन अय्याम में समाअ सुनते थे।

बेहतरीन अय्याम से मुराद वोह अय्याम हैं जिन में अल्लाह तआला ने अपने बन्दों को इबादत और ज़िक्र का हुक्म दिया है जैसे अय्यामे तशरीक वगैरा और हमारे ज़माने तक अहले मदीना भी अहले मक्का की तरह हमेशा पाबन्दी से समाअ सुना करते थे।

हम ने अबू मरवान काज़ी को इस हालत में पाया कि उन के पास चन्द लड़कियां थीं जो लोगों को खुश इल्हानी से गा कर सुनाती थीं, काजी साहिब ने इन्हें सूफ़ियाए किराम के लिये तय्यार किया था।

मजीद फ़रमाया कि हज़रते अता रहमतुल्लाह अलैह के यहां दो लड़कियां थीं और आप के भाई उन से समाअ किया करते थे।

हज़रते अबू तालिब मक्की रहमतुल्लाह अलैह ने येह कौल भी नक्ल किया है कि अबुल हसन बिन सालिम रहमतुल्लाह अलैह से कहा गया कि तुम समाअ का कैसे इन्कार करते हो ? हालांकि हज़रते जुनैद, सरी सकती और जुनून रहमतुल्लाह अलैह इसे सुना करते थे ? उन्हों ने कहा कि मैं समाअ का कैसे इन्कार करूंगा हालांकि मुझ से बेहतर शख्स ने इसे सुना और इस की इजाजत दी है चुनान्चे, हज़रते अब्दुल्लाह बिन जा’फ़र तय्यार रज़ीअल्लाहो अन्हो समाअ सुना करते थे इन्हों ने समाअ में सिर्फ लह्वो लइब को मन्अ फ़रमाया है।

हज़रते यहया बिन मुआज़ रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है : इन्हों ने कहा कि हम ने तीन चीज़ों को गुम किया है, फिर हम ने उन्हें नहीं देखा और जूं जूं दिन गुज़रते जाते हैं, इन का फुक़दान फुजूं होता जाता है, हसीन चेहरा जो पाकबाज़ हो, सच्ची बात जिस में दियानत की झलक नुमायां हो और बेहतरीन भाईचारा जिस में वफ़ा ही वफ़ा हो ।

और मैं ने बा’ज़ किताबों में बि ऐनिही येह कौल हज़रते हारिसे मुहासबी से मन्कूल देखा है और इस में ऐसी बात पाई जाती है जो उन के जोह्द, पाकबाज़ी और दीनी मुआमलात में उन की जिद्दो जहद और एहतिमाम के बा वुजूद इस अम्र पर दलालत करती है कि वोह जवाजे समाअ के काइल थे।

इब्ने मुजाहिद का समाअ पर जोर

हज़रते इब्ने मुजाहिद रज़ीअल्लाहो अन्हो का तरीका येह था कि आप कभी ऐसी दा’वत कबूल नहीं फ़रमाते थे जिस में समाअ न हो और फिर एक से ज़ियादा लोगों ने येह बात बयान की है कि वोह किसी दा’वत में जम्अ हुवे और हमारे साथ अबुल कासिम इब्ने बिन्ते मनीअ, अबू बक्र इब्ने दावूद और इब्ने मुजाहिद रहमतुल्लाह अलैह अपने हम मशरबों के साथ मौजूद थे, तब महफ़िले समाअ मुन्अकिद हुई, इब्ने मुजाहिद, इब्ने बिन्ते मनीअ को इस बात पर बर-अंगेख्ता करने लगे कि वोह इब्ने दावूद को इस के सुनने पर आमादा करें, इब्ने दावूद बोले : मुझे मेरे बाप ने हज़रते अहमद बिन हम्बल रज़ीअल्लाहो अन्हो का येह फ़रमान बतलाया है कि आप समाअ को मकरूह जानते थे, मेरे वालिद भी इसे मकरूह समझते थे और मैं भी अपने बाप के मज़हब पर हूं और अबुल कासिम इब्ने बिन्ते मनी ने कहा : मेरे दादा अहमद बिन बिन्ते मनी ने मुझे हज़रते सालेह बिन अहमद के बारे में बतलाया कि इन के वालिद इब्ने खुब्बाज़ा का कौल सुना करते थे। येह सुन कर इब्ने मुजाहिद ने इब्ने दावूद से कहा : मुझे छोड़ दो, तुम अपने बाप की बातें करते हो और इब्ने बिन्ते मनीअ से कहा : मुझे छोड़ दो, तुम अपने दादा की बातें मान लो ! ऐ अबू बक्र ! तुम मुझे इतनी सी बात बताओ कि अगर किसी ने शे’र पढ़ा या शे’र कहा तो क्या वोह नाजाइज़ है ? इब्ने दावूद बोले : नहीं ! इब्ने मुजाहिद बोले कि अगर शे’र कहने वाला हसीन आवाज़ वाला हो तो उस के लिये शे’र कहना हराम है ? वोह बोले : नहीं ! इब्ने मुजाहिद ने कहा : अच्छा अगर वोह इस तौर पर अश्आर पढ़ता है कि ममदूद हर्फ़ को मक्सूर और मक्सूर को ममदूद कर देता है तो क्या येह हराम है ? इब्ने दावूद ने कहा कि मैं तो एक शैतान पर काबू नहीं पा सकता, दो शैतानों का मुकाबला कैसे करूंगा ?

हज़रते इमाम अस्कलानी को समाअ का शौक

हज़रते अबुल हसन अस्कलानी रहमतुल्लाह अलैह जो औलिया के सरदार थे, समाअ का शौक़ फ़रमाया करते थे और ब वक्ते समाअ जज्ब व शौक से आश्ना होते थे, इन्हों ने इस सिलसिले में एक किताब भी लिखी है जिस में इन्हों ने मुन्किरीने समाअ की तरदीद की है यूंही एक जमाअत ने समाअ के मुन्किरीन के रद्द में कुतुब लिखी हैं।

मशाइख में से किसी शैख़ से मरवी है कि इन्हों ने अबुल अब्बास खिज्र अलैहहिस्सलाम  को देखा और इन से पूछा कि आप का समाअ के मुतअल्लिक़ क्या ख़याल है ? जिस के बारे में हमारे साथियों में इख़्तिलाफ़ पाया जाता है, हज़रते खिज्र अलैहहिस्सलाम  ने फ़रमाया : येह शीरीं और साफ़ खुशगवार है, इस पर उलमा के सिवा किसी के क़दम नहीं जम सकते

हज़रते मुमशाद दीनवरी रज़ीअल्लाहो अन्हो से मन्कूल है कि मैं ने ख्वाब में नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की जियारत की और आप से पूछा : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम क्या आप इस समाअ में से किसी चीज़ को ना पसन्द फ़रमाते हैं ? आप ने फ़रमाया कि मैं इस में से किसी चीज़ को ना पसन्द नहीं करता लेकिन इन्हें कह दो कि समाअ का इफ़्तिताह कुरआने मजीद से करें और इस का इख़्तिताम भी कुरआने मजीद ही पर करें।

हज़रते ताहिर बिन बिलाल सम्दानी वरराक रहमतुल्लाह अलैह, से मन्कूल है जो अकाबिर उलमा में से थे, कि मैं समन्दर के किनारे जद्दा की जामे मस्जिद में मो’तकिफ़ था कि एक दिन मैं ने ऐसी जमाअत को देखा जो मस्जिद में कुछ अश्आर पढ़ रहे थे और दूसरे लोग सुन रहे थे, मुझे येह बात सख्त ना पसन्द हुई और मैं ने अपने दिल में कहा कि येह लोग अल्लाह के घरों में से एक घर में अश्आ र पढ़ रहे हैं।

हज़रते ताहिर फ़रमाते हैं कि मैं ने उसी रात ख़्वाब में हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की ज़ियारत की, आप उसी कोने में तशरीफ़ फ़रमा थे, आप के पहलू में हज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ीअल्लाहो अन्हो थे, दफ्अतन हज़रते अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो कुछ कहने लगे और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम समाअत फ़रमाने लगे और आप ने वज्द करने वाले की तरह अपना दस्ते मुबारक सीनए अन्वर पर रखा हुवा था।

मैं ने अपने दिल में कहा : मेरे लिये येह मुनासिब न था कि मैं उस जमाअत को ना पसन्द करता जो महफ़िले समाअ मुन्अकिद किये हुवे थे हालांकि उसे हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम समाअत फ़रमा रहे हैं और हज़रते अबू बक्र रज़ीअल्लाहो अन्हो पढ़ रहे हैं, हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मेरी तरफ़ मुतवज्जेह हुवे और फ़रमाया : येह हक़ के साथ हक़ है या येह हक़ से हक़ है, मैं येह भूल गया हूं कि आप ने इन दो बातों में से कोन सी बात इरशाद फ़रमाई थी।

हज़रते जुनैद रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है कि इस गुरौह पर तीन मवाकेअ पर रहमते इलाही का नुजूल होता है : .खाने के वक्त क्यूंकि येह बिगैर फ़ाका किये कुछ नहीं खाते। गुफ्तगू के वक्त क्यूंकि वोह सिद्दीकों के मकामात के इलावा और कोई गुफ्तगू नहीं करते। समाअ के वक्त क्यूंकि वोह जज्ब व शौक़ से सुनते हैं और हक़ की गवाही देते हैं।

हज़रते इब्ने जुरैह रज़ीअल्लाहो अन्हो समाअ की इजाजत देते थे, इन से कहा गया कि येह फे’ल क़यामत के दिन नेकियों में शुमार होगा या बुराइयों में ? इन्हों ने कहा : न नेकियों में और न ही गुनाहों में क्यूंकि यह लग्व बात के मुशाबेह है और फ़रमाने इलाही है :  नहीं मुआखज़ा करेगा अल्लाह तआला तुम्हारा फुजूल कसमों पर। ऊपर हम ने जो कुछ नक्ल किया है येह मुख्तलिफ़ अक्वाल का मजमूआ है, जो शख्स तक्लीद में रह कर हक़ को तलाश करेगा तो वोह इन अक्वाल में तआरुज़ पाएगा जिस के सबब वोह मुतहय्यर होगा, या अपनी ख्वाहिशात के जेरे असर किसी कौल को पसन्द कर लेगा हालांकि येह दोनों बातें गलत हैं, बल्कि हक़ को सहीह तरीके से तलाश करे और येह हज्र व इबाहत के अबवाब की तलाश करने से ही मा’लूम हो सकता है।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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