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लोगो से अच्छे अखलाक और अच्छे व्यव्हार से पेश आना – Net In Hindi.com

लोगो से अच्छे अखलाक और अच्छे व्यव्हार से पेश आना

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फजीलते हुस्ने खुल्क – अच्छे अखलाक – अच्छा व्यवहार

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

अल्लाह तआला ने अपने नबी और हबीब सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की तारीफ़ फ़रमाते हुवे और अपनी नेमतों का इन के लिये इज़हार करते हुवे इरशाद फ़रमाया :

बेशक आप साहिबे खुल्के अज़ीम हैं। हज़रते आइशा सिद्दीका रज़ीअल्लाहो अन्हा से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का खुल्क कुरआन था।

एक शख्स ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से हुस्ने खुल्क के मुतअल्लिक़ सवाल किया तो आप ने यह आयते मुबारका पढ़ी : “दर गुज़र करना इख़्तियार करो, नेकी का हुक्म करो और जाहिलों से मुंह फेर लो। फिर हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : हुस्ने खुल्क येह है कि तू कत ए तअल्लुक करने वालों से सिलए रहमी करे, जो तुझे महरूम करे तू उसे अता करे और जो तुझ पर जुल्म करे तू उसे मुआफ कर दे। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि मैं इस लिये मबऊस किया गया हूं कि उम्दा अख़्लाक़ को पायए तक्मील तक पहुंचाऊं ।

मजीद इरशाद फ़रमाया कि क़ियामत के दिन मीज़ाने आ’माल में सब से भारी चीज़ खौफे खुदा और हुस्ने खुल्क होगा।

एक शख़्स हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की खिदमत में हाज़िर हुवा और अर्ज की : या रसूलल्लाह ! दीन क्या है ? आप ने फ़रमाया : हुस्ने खुल्क, फिर दाईं तरफ़ से आया और अर्ज़ की : दीन क्या है ? आप ने फ़रमाया : हुस्ने खुल्क, फिर वोह बाई तरफ़ से आया और अर्ज की : या रसूलल्लाह ! दीन क्या है ? आप ने फ़रमाया : हुस्ने खुल्क, फिर वोह शख्स आप के अकब से आया और अर्ज की : या रसूलल्लाह ! दीन क्या है ? आप ने उस की तरफ़ तवज्जोह फ़रमाई और फ़रमाया : क्या तू नहीं समझता ? दीन येह है कि तू गुस्सा न करे।

सरकारे दो आलम सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से पूछा गया कि नुहूसत क्या है ? आप ने फ़रमाया : बद खुल्की ।

एक शख्स ने हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से अर्ज की, कि मुझे वसिय्यत कीजिये ! आप ने फ़रमाया : जहां भी रहो अल्लाह तआला से डरते रहो, उस ने अर्ज की : मजीद इरशाद फ़रमाइये !

आप ने फ़रमाया : हर बुराई के बाद नेकियां करो, वोह इसे मिटा देंगी, उस ने फिर अर्ज की : कुछ और फ़रमाइये !

आप ने फ़रमाया : लोगों से हुस्ने सुलूक करो और हुस्ने खुल्क से पेश आओ।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से पूछा गया कि कौन सा अमल अफ़ज़ल है ? आप ने फ़रमाया : हुस्ने खुल्क।

फ़रमाने नबवी है कि अल्लाह तआला ने जिस बन्दे की पैदाइश और खुल्क को बेहतरीन बनाया है उसे वोह जहन्नम में नहीं डालेगा।

हज़रते फुजेल रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से अर्ज की गई कि फुलां औरत रात को इबादत करती है, दिन को रोजा रखती है मगर वोह बद खुल्क है, अपनी बातों से हमसायों को तक्लीफ़ देती है, आप ने फ़रमाया : उस में भलाई नहीं है वोह जहन्नमियों में से है।

हज़रते अबुद्दरदा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि मैं ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम को येह फ़रमाते सुना कि सब से पहले मीज़ाने अमल में हुस्ने खुल्क और सखावत रखी जाएगी, जब अल्लाह तआला ने ईमान को पैदा फ़रमाया तो उस ने अर्ज की : ऐ अल्लाह ! मुझे कुव्वत अता फ़रमा, तो अल्लाह तआला ने उसे हुस्ने खुल्क और सखावत से तकविय्यत बख़्शी और जब अल्लाह तआला ने कुफ़्र को पैदा फ़रमाया तो उस ने अर्ज की : ऐ अल्लाह ! मुझे कुव्वत बख़्श तो उस ने उसे बुख़्ल और बद खुल्की से तकविय्यत बख़्शी ।।

फ़रमाने नबवी है कि अल्लाह तआला ने इस दीन को अपने लिये पसन्द फ़रमा लिया है, तुम्हारा येह दीन सखावत और हुस्ने खुल्क के बिगैर सहीह नहीं होता, होशयार ! अपने आ’माल को इन दो चीज़ों से जीनत बख्शो ।

फ़रमाने नबवी है कि हुस्ने खुल्क अल्लाह तआला की अज़ीम तरीन मख्लूक है।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से अर्ज की गई कि कौन से मोमिन का ईमान अफ़ज़ल है ? आप ने फ़रमाया : जिस का खुल्क सब से बेहतर होगा।

हुजूरे पुरनूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का इरशाद है कि बिला शुबा तुम लोगों की मालो दौलत के जरीए इमदाद नहीं कर सकते लिहाज़ा उन की खन्दा पेशानी और हुस्ने खुल्क से मदद करो।

फ़रमाने नबवी है कि बद खुल्की आ’माल को इस तरह जाएअ कर देती है जैसे सिर्का शहद को खराब कर देता है।

हज़रते जरीर बिन अब्दुल्लाह रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : बेशक तुम ऐसे जवान हो कि अल्लाह तआला ने तुम्हारी खिल्क़त को बेहतरीन किया है लिहाज़ा तुम अपना खुल्क बेहतरीन करो ।

हज़रते बरा बिन आज़िब रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम लोगों से ज़ियादा खूब सूरत और बेहतरीन खुल्क वाले थे।

हज़रते अबू मसऊद बदरी रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लमअपनी दुआ में यूं अर्ज करते :

ऐ अल्लाह ! जैसे तू ने मेरी तख्लीक को बेहतरीन किया है वैसे ही मेरी खुल्क को बेहतरीन फ़रमा ।

हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम अक्सर येह दुआ फ़रमाया करते :

तर्जमा : ऐ अल्लाह ! मैं तुझ से सेहत  सलामती और हुस्ने खुल्क का सवाल करता हूं।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : इन्सान की शराफ़त उस का दीन है, उस की नेकी हुस्ने खुल्क है और उस की मुरुव्वत उस की अक्ल है।

हज़रते उसामा बिन शरीक रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि मैं आ’राबियों की मजलिस में हाज़िर हुवा, वोह हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से पूछ रहे थे कि इन्सान को अताशुदा भलाइयों में से कौन सी भलाई उम्दा है ? आप ने फ़रमाया : हुस्ने खुल्क।

फ़रमाने नबवी है कि कियामत के दिन मुझे सब से ज़ियादा महबूब और मुझ से करीब तर वोह लोग होंगे जो तुम में से बेहतरीन खुल्क रखते हैं।

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : तीन ख़स्लतें हैं जिस शख्स में वोह तीनों या उन में से कोई एक न पाई जाए, उस के किसी अमल को शुमार में न लाओ !

परहेज़गारी जो उसे अल्लाह तआला की ना फ़रमानी से बाज़ रखती है, हिल्म जिस से वोह बेवुकूफ़ को रोक देता है, हुस्ने खुल्क जिस से मुत्तसिफ़ हो कर वोह ज़िन्दगी बसर करता है।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम नमाज़ की इब्तिदा में येह दुआ फ़रमाया करते थे कि ऐ अल्लाह ! मुझे बेहतरीन खुल्क की हिदायत फ़रमा, तेरे सिवा कौन है जो हुस्ने खुल्क की हिदायत दे, मुझे बद खुल्की से नजात दे, बद खुल्की से बचाने वाला तेरे सिवा कौन है ?सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम

आप से दरयाफ़्त किया गया कि इन्सान की जेबो जीनत किस बात में है ? आप ने फ़रमाया : कलाम में नर्मी, कुशादा रूई और खन्दा पेशानी का इज़हार ।।

जो शख्स लोगों से एहसान करता है और हुस्ने खुल्क से मुआमला रखता है, ऐसा इन्सान लोगों को गवारा होता है और लोग उस की तारीफें करते हैं।

जैसा कि एक शाइर कहता हैं।

जब तू ने भलाई की तमाम आदात को जम्अ कर लिया और सब लोगों से अच्छा बरताव किया,

तो तू साहिबे अर्श से अपनी जम्अ कर्दा नेकी को गुम नहीं पाएगा और न ही अल्लाह तआला की मख्लूक से सामने और पीठ पीछे अपनी तारीफ़ों को गुम पाएगा।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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