मौत के बारे में हदीसे मुबारक और बुजुर्गों के कौल

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मौत : बुजुर्गों के कौल और हदीस शरीफ 

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

 

जिक्रे मर्ग मौत का बयान

फ़रमाने नबी सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम “लज्जतों को मिटाने वाली (या‘नी मौत) को बहुत याद करो” । इस फरमान में यह इशारा है कि इन्सान मौत को याद कर के दुन्यावी लज्जतों से किनारकश हो जाए ताकि उसे बारगाहे रबूबिय्यत में मकबूलिय्यत हासिल हो।

मौत को याद करने वाला शहीदों के साथ उठाया जाएगा

फ़रमाने नबवी है : अगर तुम्हारी तरह जानवर मौत को जान लेते तो इन में कोई मोटा जानवर खाने को न मिलता।

हज़रते आइशा राज़ी अल्लाहो अन्हुमा ने पूछा : या रसूलल्लाह ! किसी का हश्र शहीदों के साथ भी होगा ? आप ने फ़रमाया : हां ! जो शख्स दिन रात में बीस मरतबा मौत को याद करता है वह शहीद के साथ उठाया जाएगा।

इस फजीलत का सबब यह है कि मौत की याद दुनिया से दिल उचाट कर देती है और आख़िरत की तय्यारी पर उक्साती है लेकिन मौत को भूल जाना इन्सान को दुन्यावी ख्वाहिशात में मुन्हमिक कर देता है।

फरमाने नबवी है कि “मौत मोमिन के लिये एक तोहफ़ा है” इस लिये कि मोमिन दुनिया में कैदखाने जैसी ज़िन्दगी बसर करता है, उसे अपनी ख्वाहिशाते नफ्सानी की और शैतान की मुदाफ़अत करना पड़ती है और यह चीज़ किसी मोमिन के लिये अज़ाब से कम नहीं मगर मौत उसे इन मसाइब से नजात दिलाती है लिहाज़ा यह उस के लिये तोहफ़ा है।

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फ़रमाने नबवी है कि “मौत मुसलमान के लिये कफ्फारा है”। मुसलमान से मुराद वह मोमिने कामिल है जिस के हाथ और ज़बान से दूसरे मुसलमान महफूज़ रहें। उस में मोमिनों के अख़्लाक़े हसना पाए जाएं और वह हर कबीरा गुनाह से बचता हो, ऐसे शख्स की मौत उस के सगीरा गुनाहों का कफ्फ़ारा हो जाती है और फ़राइज़ की अदाएगी उसे गुनाहों से मुनज्जा व पाक कर देती है।

हज़रते अता खुरासानी रज़ीअल्लाहो अन्हो  से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम एक ऐसी मजलिस से गुज़रे जिस में लोग ज़ोर ज़ोर से हंस रहे थे। आप ने फ़रमाया : अपनी मजलिस में लज्जतों को फ़ना कर देने वाली चीज़ का ज़िक्र करो ! पूछा गया : हुजूर वह क्या है ? आप ने इरशाद फ़रमाया : “वोह मौत है।”

हज़रते अनस रज़ीअल्लाहो अन्हो  से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : “मौत को कसरत से याद करो, इस से गुनाह ख़त्म हो जाते हैं और दुनिया से बे रगबती बढ़ती है।”

फ़रमाने नबवी है कि मौत जुदाई डालने के लिये काफ़ी है।आप ने मजीद इरशाद फ़रमाया कि मौत सब से बड़ा नासेह है।

एक मरतबा हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम मस्जिद की तरफ़ तशरीफ़ ले जा रहे थे कि आप ने ऐसी जमाअत को देखा जो हंस हंस कर बातें कर रहे थे। आप ने फ़रमाया : मौत को याद करो ! रब्बे जुल जलाल की कसम ! जिस के कब्जए कुदरत में मेरी जान है, जो मैं जानता हूं अगर वोह तुम्हें मालूम हो जाए तो कम हंसो और ज़ियादा रोओ।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की महफ़िल में एक मरतबा एक शख्स की बहुत तारीफ़ की गई। आप ने फ़रमाया : क्या वोह मौत को याद करता है ? अर्ज किया गया कि हम ने कहीं नहीं सुना । तब आप ने फ़रमाया कि फिर वह ऐसा नहीं है जैसा तुम ख़याल करते हो ।

मौत के बारे में बुजुर्गाने दीन के इरशादात ।

हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ीअल्लाहो अन्हो  से मरवी है कि मैं दसवां शख्स था जो (एक दिन) हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम की मजलिस में हाज़िर था, एक अन्सारी जवान ने पूछा : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ! सब से ज़ियादा बा इज्जत और होशयार कौन है ? आप ने फ़रमाया : जो मौत को बहुत याद करता है और इस के लिये ज़बरदस्त तय्यारी करता है वह होशयार है और ऐसे ही लोग दुनिया और आख़िरत में बा इज्जत होते हैं।

हज़रते हसन रहमतुल्लाह अलैह का कौल है कि मौत ने दुनिया को ज़लील कर दिया है इस में किसी अक्लमन्द के लिये मसर्रत ही नहीं है। हज़रते रबीअ बिन खैसम का कौल है कि मोमिन के लिये मौत का इन्तिज़ार सब इन्तिज़ारों से बेहतर है। मजीद फ़रमाया कि एक दाना ने अपने दोस्त को लिखा : “ऐ भाई ! उस जगह जाने से पहले जहां आरजू के बा वुजूद भी मौत नहीं आएगी (उस जगह) मौत से डर और नेक अमल कर।”

इमाम इब्ने सीरीन की महफ़िल में जब मौत का तजकिरा किया जाता तो उन का हर उज्व सुन हो जाता था। हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रज़ीअल्लाहो अन्हो  का दस्तूर था हर रात उलमा को जम्अ करते, मौत, कियामत और आख़िरत का जिक्र करते हुवे इतना रोते कि मा’लूम होता जैसे जनाज़ा सामने रखा है।

हज़रते इब्राहीम अल तैमी रहमतुल्लाह अलैह  का कौल है कि मुझे मौत और अल्लाह के हुजूर हाज़िरी की याद ने दुन्या की लज्ज़तों से ना आशना कर दिया है। हज़रते का’ब रज़ीअल्लाहो अन्हो  का कौल है कि जिस ने मौत को पहचान लिया उस से तमाम दुन्या के दुख-दर्द ख़त्म हो गए।

हज़रते मुर्रिफ़ रहमतुल्लाह अलैह  का कौल है कि मैं ने ख़्वाब में देखा : कोई शख्स बसरा की मस्जिद के बीच में खड़ा कह रहा था कि मौत की याद ने ख़ौफ़ ख़ुदा रखने वालों के जिगर टुकड़े टुकड़े कर दिये, रब की कसम ! तुम इन्हें हर वक्त बे चैन पाओगे।

हज़रते अशअस रज़ीअल्लाहो अन्हो  से मरवी है, हम जब भी हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो  की ख़िदमत में हाज़िर होते, वहां जहन्नम, कियामत और मौत का ज़िक्र सुनते।

हज़रते उम्मुल मोमिनीन सफ़िय्या रज़ीअल्लाहो अन्हुमा से मरवी है कि एक औरत ने हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हुमा  से अपनी संगदिली की शिकायत की तो उन्हों ने कहा : मौत को याद किया करो, तुम्हारा दिल नर्म हो जाएगा, उस ने ऐसा ही किया और उस का दिल नर्म हो गया, वोह हज़रते आइशा रज़ीअल्लाहो अन्हुमा की खिदमत में हाज़िर हुई और आप का शुक्रिया  अदा किया।

मौत के जिक्र पर ईसा अलैहिस्सलाम की हालत

हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम जब मौत का ज़िक्र सुनते तो उन के जिस्म से खून के क़तरे गिरने लगते । हज़रते दावूद अलैहिस्सलाम जब मौत और क़ियामत का ज़िक्र करते तो उन की सांस उखड़ जाती और बदन पर लर्जा तारी हो जाता, जब रहमत का जिक्र करते तो उन की हालत संभल जाती । हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो  का कौल है : मैं ने जिस अक्लमन्द को देखा उस को मौत से लर्जी और गमगीन पाया।

हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रज़ीअल्लाहो अन्हो  ने एक आलिम से कहा : मुझे नसीहत करो, उन्हों ने कहा : “तुम ख़लीफ़ा होने के बा वुजूद मौत से नहीं बच सकते, तुम्हारे आबाओ अजदाद में आदम अलैहिस्सलाम से ले कर आज तक हर किसी ने मौत का जाम पिया है, अब तुम्हारी बारी है। हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रज़ीअल्लाहो अन्हो  ने यह सुना तो बहुत देर तक रोते रहे।

हज़रते रबीअ बिन खैसम रज़ीअल्लाहो अन्हो  ने अपने घर के एक गोशे में कब्र खोद रखी थी और दिन में कई मरतबा इस में जा कर सोते और हमेशा मौत का जिक्र करते हुवे कहते : अगर मैं एक लम्हा भी मौत की याद से गाफ़िल हो जाऊं तो सारा काम बिगड़ जाए।

हज़रते मुतर्रिफ़ बिन अब्दुल्लाह बिन शिख्ख़ीर रहमतुल्लाह अलैह  का कौल है : इस मौत ने दुन्यादारों से उन की दुन्या छीन ली है पस अल्लाह तआला से ऐसी नेमतों का सवाल करो जो दाइमी हैं।

हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रज़ीअल्लाहो अन्हो  ने अम्बसा से कहा : “मौत को अकसर याद किया करो ! अगर तुम फ़राख दस्त हो तो यह तुम को तंगदस्त कर देगी और अगर तुम तंगदस्त हो तो यह तुम को हमेशा की फ़राख दस्ती अता कर देगी।”

हज़रते अबू सुलैमान अद्दारानी रहमतुल्लाह अलैह  का कौल है : मैं ने उम्मे हारून से पूछा कि तुझे मौत से महब्बत है? वह बोली : नहीं ! मैं ने पूछा : क्यूं ? तो उस ने कहा : मैं जिस शख्स की नाफ़रमानी करती हूँ उस से मुलाक़ात की तमन्ना कभी नहीं करती. मौत के लिए मैंने कोई काम नहीं किया लिहाज़ा उसे कैसे महबूब समझूँ.

हज़रते अबू मूसा तमीमी कहते हैं कि मशहूर शाइर फ़रज़-दक की बीवी का इन्तिकाल हो गया तो उस के जनाजे में बसरा की मुक्तदिर हस्तियां शरीक हुई जिन में हज़रते हसन रज़ीअल्लाहो अन्हो  भी मौजूद थे, आप ने फ़रमाया : ऐ अबू फ़रास ! तू ने इस दिन के लिये क्या तय्यारी की है ? उस ने कहा : साठ साल से मुतवातिर अल्लाह तआला की वहदानिय्यत का इक़रार कर रहा हूं, जब उसे दफ्न कर दिया गया तो फ़रज़-दक ने उस की कब्र पर खड़े हो कर कहा :

ऐ अल्लाह ! अगर तू मुझे मुआफ़ कर दे, मैं कब्र के फ़शार और शो’लों से ख़ाइफ़ हूं। ..जब क़ियामत का दिन आएगा तो एक संगदिल हैबतनाक फरिश्ता फ़रज़-दक को हंकाएगा। .बिला शुबा नस्ले आदम का वोही शख्स रुस्वा हुवा जिसे तौक पहना कर जहन्नम में भेजा गया।

कब्रों के हसरत भरे कतबात (कब्र के ऊपर लिखी इबारत)

अहले कुबूर के लिये बा’ज़ शो’रा ने कुछ इब्रत वाले  अश्आर कहे हैं :

कब्रों के सेहनों (कब्रिस्तान) में खड़ा हो कर इन से पूछ तुम में से कौन तारीकी में डूबा हुवा है। और कौन इस की गहराई में बा इज्जत तौर पर अमनो सुकून में है। आंख वालों के लिये एक ही सुकून है और मरातिब का फर्क दिखाई नहीं देता।अगर वो तुझे जवाब दें तो अपनी ज़बाने हाल से हालात की हक़ीक़त यूं बयान करेंगे। ..जो मुतीअ और फ़रमांबरदार था वो जन्नत के बागों में जहां चाहता है सैर करता है। ….और बद बख़्त मुजरिम सांपों के मसकन वाले एक गढ़े में तड़प रहा है। ….उस की तरफ़ बिच्छू दौड़ दौड़ कर बढ़ रहे हैं और उस की रूह इन की वज्ह से सख्त अज़ाब में है।

हज़रते मालिक बिन दीनार रहमतुल्लाह अलैह  फ़रमाते हैं कि मैं कब्रिस्तान से येह शे’र पढ़ता हुवा गुज़रा :

मैं ने कब्रिस्तान में आकर पुकारा कि इज्जतदार और फ़क़ीर कहां है ? अपनी पाक दामनी पर फकर करने वाला और बादशाहे वक्त कहां है ?

हज़रते मालिक बिन दीनार रहमतुल्लाह अलैह  फ़रमाते हैं कि मेरे सुवालात का क़ब्रों से येह जवाब आया :

सब फ़ना हो गए, कोई खबर देने वाला नहीं रहा, सब के सब मर गए इन के निशान भी मिट गए। ….सुब्ह होती है और शाम होती और इन की हसीन सूरतें मिट्टी बिगाड़ती चली जाती है। …ऐ गुज़रे हुवों के मुतअल्लिक़ पूछने वाले ! क्या तू ने इन कब्रों से इब्रत हासिल की है ?

एक और कब्र पर लिखा हुवा था :

वोह कब्रें जिन के रहने वाले मनों मिट्टी के नीचे ख़ामोश पड़े हैं, ज़बाने हाल से तुझे येह कह रहे हैं। ….ऐ लोगों के लिये दुनिया जम्अ करने वाले ! तुझे तो मर जाना है फिर येह दुनिया तू किस के लिये जम्अ करता है?

इब्ने सम्माक रहमतुल्लाह अलैह  कहते हैं कि मैं कब्रिस्तान से गुज़रा, एक कब्र पर लिखा था :

मेरे रिश्तेदार मेरी क़ब्र के पहलू से अन्जान बन कर गुज़र जाते हैं।…उन्हों ने मेरा माल तो तक्सीम कर लिया मगर मेरा कर्ज न उतारा । अपने अपने हिस्से ले कर वह खुश हैं, हाए अफ्सोस ! वोह मुझे कितनी जल्दी भूल गए हैं!

एक और क़ब्र पर यह लिखा था :

मौत ने दोस्त को दोस्तों की महफ़िल से उचक लिया और कोई दरबान, चौकीदार उसे न बचा सका। वह दुन्यावी आसाइशों से कैसे खुश हो सकता है जिस की हर बात और हर सांस को गिना जाए। …ऐ गाफ़िल ! तू नुक्सान में सरगर्म है और तेरी ज़िन्दगी ख्वाहिशात में डूबी हुई है। …दबा के क़ब्र में सब चल दिये दुआ न सलाम ज़रा सी देर में क्या हो गया ज़माने को!

मौत किसी जाहिल पर जहालत के बाइस और किसी आलिम पर इल्म के सबब रहम नहीं करती। मौत ने कितने बोलने वालों को कब्रों में गूंगा बना दिया वह जवाब ही नहीं दे सकते। कल तेरा महल इज्जत से मा’मूर था और आज तेरी कब्र का निशान भी मिट गया है।

एक और क़ब्र पर लिखा था : .जब मेरे दोस्तों की कब्र ऊंट की कोहानों की तरह बुलन्द और बराबर हो गई तो मुझे मालूम हुवा। अगर्चे मैं रोया और मेरे आंसू बहने लगे मगर उन की आंखें इसी तरह ठहरी रहीं (उन्हों ने आंसू नहीं बहाए)।

एक तबीब की कब्र पर लिखा हुवा था :

जब किसी ने मुझ से पूछा तो मैं ने कहा कि लुक्मान जैसा तबीब व दानिशमन्द भी अपनी कब्र में जा सोया। .कहां है वोह जिस की तिब्ब में शख्सिय्यत मुसल्लम थी और उस जैसा कोई माहिर न था। …जो अपने आप से मौत को न टाल सका वह दूसरों से मौत को कैसे टालता।

एक और क़ब्र पर लिखा हुवा था :

ऐ लोगो ! मेरी बहुत सी तमन्नाएं थीं मगर मौत ने उन्हें पूरा करने की मोहलत न दी। अल्लाह से डर और अपनी ज़िन्दगी में नेक अमल कर। मैं अकेला यहां नहीं आया बल्कि हर किसी को यहां आना है।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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