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फ़िस्क़, निफ़ाक़ मुनाफ़िक और मोमिन में फर्क जहन्नम के सात दरवाज़े – Net In Hindi.com

फ़िस्क़, निफ़ाक़ मुनाफ़िक और मोमिन में फर्क जहन्नम के सात दरवाज़े

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फ़िस्क़, निफ़ाक़ और खुदा फरामोशी

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

Color Codes –  कुरआन मजीद, हदीसे पाककौल (Quotes). 

एक औरत हज़रत हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह के पास हाज़िर हुई और कहने लगी मेरी जवान बेटी इन्तेकाल कर गई है, मै चाहती हूँ की उसे ख्वाब में देख लूँ, कोई एसी दुआ बताइए जिस से मेरी मुराद पूरी हो जाये. आपने एक दुआ सिखलाई उस औरत ने रात में वह दुआ पढ़ी और अपनी बेटी को ख्वाब में देखा तो उस का हाल यह था की उस ने जहन्नुम के तारकोल का लिबास पहन रखा था, उस के हाथों में जंजीरें और पांव में बेड़ियाँ थी, औरत ने दुसरे दिन यह ख्वाब आपको सुनाया, आप बहुत मगमूम हुए, कुछ दिनों बाद हज़रत ने उस लड़की को जन्नत में देखा. उस के सर पर ताज था, वह आप से कहने लगी आप मुझे पहचानते हैं. मै उसी खातून की बेटी हूँ जो आप के पास आई थी और मेरी तबाह हालत आपको बताई थी. आप ने उस से पुछा तेरी हालत में यह इन्कलाब किस तरह आया? लड़की ने कहा कब्रिस्तान के करीब से एक नेक शख्श गुज़रा और उस ने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम पर दुरुद भेजा, उस के दुरुद पढने की बरकत से अल्लाह ताआला ने हम पांच सौ कब्र वालों से अज़ाब उठा लिया.

नुक्ता : गौर का मकाम है की हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम पर एक शख्श के दुरुद भेजने की बरकत से इतने बहुत से लोग बख्शे गए, क्या वह शख्श जो पचास साल से हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम दुरुद भेज रहा हो, क़यामत में उस की मगफिरत नहीं होगी.

फरमाने इलाही है

“गुनाह करने में तुम मुनाफिकों की तरह ना बन जाओ जिन्हों ने अल्लाह के अहकामात को छोड़ दिया और उस के खिलाफ चलने लगे, शहवाते दुनिया के लुत्फ़ अन्दोज़ होने लगे और फ़रेब कारी की तरफ मुड गए.”

 

मोमिन और मुनाफ़िक का फर्क

रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम से मोमिन और मुनाफ़िक के मुताल्लिक पुछा गया. आपने फ़रमाया की “मोमिन की हिम्मत नमाज़ और रोज़े की तरफ रहती है और मुनाफ़िक की हिम्मत जानवरों की तरह खाने पीने की तरफ रहती है और वह नमाज़, रोज़ा की तरफ मुतवज्जाह ही नहीं होता, मोमिन अल्लाह की राह में खर्च करने और बख्शिश तलब करने में मशगूल रहता है जब की मुनाफ़िक हिर्स व हवास में मसरूफ रहता है, मोमिन अल्लाह ताआला के सिवा किसी से उम्मीद नहीं लगाता और मुनाफ़िक अल्लाह ताआला के सिवा तमाम मखलूक की तरफ रुजू अ होता है, मोमिन दीन को माल से पहले समझता है और मुनाफ़िक माल को दीन पर तरजीह देता है,मोमिन अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरता और मुनाफ़िक अल्लाह के सिवा हर चीज़ से डरता है. मोमिन नेकी करता है और अल्लाह की बारगाह में रोता रहता है, मुनाफ़िक गुनाह करता और खुश होता है. मोमिन खल्वत और तनहाई को पसंद करता है और मुनाफ़िक भीड़ भाड़ और मेल जोल को पसंद करता है. मोमिन बोता है और फसल की बर्बादी से डरता रहता है और मुनाफ़िक फसल उजाड़ देने के बाद काटने की तमन्ना रखता है. मोमिन दीन की, तदबीर के साथ अच्छाइयों का हुक्म देता है,बुराइयों से रोकता और सुधार करता है, मुनाफ़िक़ अपने रोब के लिए फितना व फसाद पैदा करता है और नेकियों से रोकता और बुराइयों का हुक्म देता है.”

 

अल्लाह ताआला का इरशाद है

“मुनाफ़िक़ मर्द और औरतें एक दुसरे में से हैं, नेकी से रोकते और बुराइयों का हुक्म देते हैं और अपने हाथों को बंद करते हैं. उन्होंने अल्लाह को भुला दिया और अल्लाह ने उन्हें भुला दिया. बिला शुबहा मुनाफ़िक़ फ़ासिक हैं

अल्लाह ताआला ने मुनाफ़िक़ मर्द और मुनाफ़िक़ औरतों के लिए और काफिरों के लिए जहन्नम की आग का वादा किया है यह उन्हें काफी है और अल्लाह ने उन पर लानत की है और उन के लिए हमेशा का आजाब है.

एक जगह और उन के बारे में इस तरह इरशाद फ़रमाया है

“बेशक अल्लाह ताआला तमाम मुनाफिकों और काफिरों को जहन्नुम में जमा करने वाला है”

यानि अगर वह अपने कुफ्र और निफ़ाक़ पर मर जाएँ. अल्लाह ताआला ने इस इरशाद में पहले मुनाफिकों का ज़िक्र किया है. इसलिए की काफिरों से भी ज्यादा बदबख्त होते हैं और अल्लाह ने उन सब का ठिकाना जहन्नम करार दिया है. फरमाने इलाही है

“बेशक मुनाफ़िक जहन्नुम के सब से निचले तबके में होंगे और आप किसी को उन का मददगार नहीं पाएंगे.”

कहते हैं की जंगली चूहे के बिल में दो सुराख़ होते हैं एक दाखिल होने के लिए और दूसरा सुराख़ निकलने के लिए होता है एक सुराख़ से दाखिल होता है और दुसरे से भाग निकलता है. मुनाफ़िक को भी इस लिए मुनाफ़िक कहतें हैं की वह ज़ाहिर में तो मुसलमान की शक्ल में होता है मगर कुफ्र की तरफ निकल जाता है.

हदीस शरीफ में है की “मुनाफ़िक की मिसाल एसी नई आने वाली बकरी की तरह है जो दो रेव्डो के दरमियाँ हो, कभी वह उस रेवड़ की तरफ भागती है और कभी इस रेवड़ की तरफ दौड़ती है यानी किसी एक रेवड़ में नहीं ठहरती. उसी तरह मुनाफ़िक भी ना तो पूरे का पूरा मुसलमानों में शामिल होता है और ना ही काफिरों में”.

 

जहन्नम के सात दरवाज़े

अल्लाह ताआला ने जहन्नम को पैदा किया और उस के सात दरवाज़े बनाये जैसा की फरमाने इलाही है.

उस के दरवाज़े लोहे के होंगे जिन पर लानत की तहें जमी हैं, उस का ज़ाहिर ताम्बे का और बातिन सीसे का है, उस की गहराई में अज़ाब और उस की ऊंचाई में अल्लाह की नाराज़गी है, उस की ज़मीन ताम्बे, शीशे, लोहे, और सीसे की है, उस में रहने वालों के लिय ऊपर,निचे,दायें,बाएं, आग ही आग है. उस के तबकात दर्जे ऊपर से नीचे की तरफ हैं और सब से निचला तबका मुनाफिकों के लिए है.”

हदीस शरीफ में वारिद है की हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने जिबरील से जहन्नम के तारीफ (introduction) और गर्मी के बारे में दरियाफ्त फ़रमाया. जिब्रील ने जवाब दिया अल्लाह ताआला ने जहन्नम को पैदा किया और उसे हज़ार साल तक दहकाया तो वह लाल हो गया, फिर हज़ार साल दहकाया तो सफ़ेद हो गया, जब और ज्यादा एक हज़ार साल तक दहकाया तो वह बिलकुल काला और स्याह तारीक हो गया. उस रब की कसम जिसने आप को नबीए बरहक़ बना कर भेजा है अगर जहन्नामियों का एक कपडा भी दुनिया में ज़ाहिर हो जाए तो तमाम लोग फ़ना हो जाएँ. अगर जहन्नम के पानी का एक डोल दुनिया के पानियों में मिला दिया जाये तो जो भी चखे वह मर जाये, और जहन्नम की जंजीरों का एक टुकड़ा जिस का ज़िक्र अल्लाह ताआला ने यूँ फ़रमाया है “हर टुकड़े की लम्बाई पूरब से पश्चिम  की लम्बाई के बराबर है अगर उसे दुनिया के किसी बड़े से बड़े पहाड़ पर रख दिया जाये तो वह पिघल जायेगा और अगर किसी दोज़ख वाले को दोज़ख से निकाल कर दुनिया में लाया जाये तो उस की बदबू से तमाम मखलूक फ़ना हो जाये.

हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने जिब्रील से कहा यह बताओ की जहन्नम के दरवाज़े क्या हमारे दरवाज़ों जैसे हैं? जिब्रील ने अर्ज़ की नहीं हुज़ूर! वह मुख्तलिफ तबकात में बने हुए हैं . कुछ ऊपर और कुछ नीचे हैं और एक दरवाज़े का दरमियानी फासला सत्तर साल का है, हर दरवाज़ा दुसरे दरवाज़े से सत्तर गुना ज्यादा गर्म है. आपने उन दरवाज़ों में रहने वालो के बारे में पुछा तो जिब्रील ने जवाब दिया सब से निचले का नाम “हवीयह” है और उस में मुनाफिकीन हैं, जैसा की फरमाने इलाही है

“इन्नल मुनाफिकी न लाफिद  दर्किल अस्फली” (बेशक मुनाफिकीन सब से निचले दर्जे में हैं)

दुसरे तबक का नाम “ज़हीम” हैं और उस में मुशरिक हैं, तीसरे का नाम “सकर” है और उस में साबी है, चौथे का नाम “लज़ा” है और उस में इब्लीस और उस के पैरोकार मजूसी है. पांचवे का “हुत्मा” है और उस में यहूद हैं. छटे का नाम “सईर” है और उस में इसाई हैं, फिर जिबरील खामोश हो गए. आपने पुछा ए जिब्रील क्या तुम मुझे सातवें तबका में रहने वालों के बारे में नहीं बताओगे? जिब्रील ने अर्ज़ की हुज़ूर मत पूछिए आपने फ़रमाया बताओ तो सही, तब जिब्रील ने कहा उस तबके में आप के वह उम्मती हैं जो गुनाहे कबीर के मुर्तकिब हुए और बगैर तौबा किये मर गए.

रिवायत – जब यह आयत नाज़िल हुई

“व इम मिन्कुम इल्ला वारिदुहा” हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम अपनी उम्मत के बारे में इन्तेहाई खौफज़दा हुए और बहुत ज्यादा रोये लिहाज़ा जो शख्श भी अल्लाह की सख्त पकड़ को और उस के कहर को जानता है उसे चाहिए की बहुत डरता रहे और नफ्स की लगजिशों (खताओं) पर रोता रहे इस से पहले की उन मुसीबतों को झेले, उस दहशत नाक मकाम को देखे, उस की पर्दादारी की जाये, उसे अल्लाह के सामने पेश किया जाये और उसे जहन्नम में जाने का हुक्म हो.

 

मरने के बाद अफ़सोस

कितने ऐसे बूढ़े हैं जो जहन्नम में फरियादें करते हैं, कितने जवान हैं जो जवानी की बर्बादी की याद कर के रोते पीटते हैं, कितनी एसी औरते है जो गुज़री हुई ज़िन्दगी की बद आमालियों को याद कर के चिल्लाती हैं, इस हाल में की उन के बदन और चेहरे काले हो चुके हैं, उन की कमरें टूट चुकी हैं, न उन के बड़ों की इज्ज़त की जाती है और ना छोटों पर रहम किया जाता है और न उन की औरतो की पर्दा पोशी की जाती है.

ए अल्लाह! हमें आग, आग के अज़ाब और हर उस काम से बचा जो हमें आग की तरफ ले जाये और अपनी रहमत की तुफैल हमें नेकों के साथ जन्नत में दाखिल फरमा. हमें गुनाहों / लगजिशों से बचा और अपने सामने शर्मिंदगी से महफूज़ रख. या अर रहमर राहेमीन व सल्लल्लाहो आला सैयदना मोहम्मदिव व अला आलेही व असहाबेही व सल्लम.

*** हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ.-किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

munafik aur momin me fark, munafik ki pahchan, dozakh ke saat darwaze, 

        

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