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मुसलमान की ज़रुरत पूरी करने का सवाब – Net In Hindi.com

मुसलमान की ज़रुरत पूरी करने का सवाब

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मुसलमान की मदद करने का फरमान हदीस शरीफ

(हुज्जतुल इस्लाम इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ. की किताब मुकाशफतुल क़ुलूब से हिंदी अनुवाद)

फ़रमाने इलाही है :

नेकी और परहेज़गारी में एक दूसरे की मुआवनत करो। हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि जो शख्स किसी भाई की इमदाद और फ़ाइदे के लिये कदम उठाता है, उसे राहे खुदा में जिहाद करने वालों जैसा सवाब मिलता है ।

फ़रमाने नबवी है कि अल्लाह तआला ने ऐसी मख्लूक को पैदा फ़रमाया है जिन का काम लोगों की ज़रूरतों को पूरा करना है और अल्लाह तआला ने अपनी ज़ात की कसम खाई है कि उन्हें अज़ाब नहीं करेगा, जब कियामत का दिन होगा उन के लिये नूर के मिम्बर रखे जाएंगे वोह अल्लाह तआला से गुप्त्गू कर रहे होंगे हालांकि लोग अभी हिसाब में होंगे।

फ़रमाने नबवी है कि जो किसी मुसलमान भाई की हाजत रवाई के लिये कोशिश करता है चाहे उस की हाजत पूरी हो या न हो, अल्लाह तआला कोशिश करने वाले के अगले पिछले सब गुनाहों को बख्श देता है और उस के लिये दो बराअतें लिख दी जाती हैं जहन्नम से रिहाई और मुनाफ़क़त से बराअत ।

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फ़रमाने नबवी है कि जो शख्स किसी मुसलमान भाई की हाजत रवाई करता है, मैं उस के मीज़ान के करीब खड़ा होऊंगा, अगर उस की नेकियां ज़ियादा हुई तो सहीह वरना मैं उस की शफ़ाअत करूंगा। येह रिवायत हिल्या में अबू नुऐम ने नक्ल की है।

मुसलमान भाई की मदद से हर कदम पर नेकी और गुनाहों से पाकी

हज़रते अनस रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जो शख्स किसी मुसलमान भाई की हाजत रवाई के लिये चलता है अल्लाह तआला हर कदम के बदले उस के नामए आ’माल में सत्तर नेकियां लिख देता है और सत्तर गुनाह मुआफ़ कर दिये जाते हैं, पस अगर वो हाजत उस के हाथों पूरी हो जाए तो वो गुनाहों से ऐसे पाक हो जाता है जैसे मां के पेट से आया था और अगर वो इसी दरमियान मर जाए तो बिला हिसाब जन्नत में जाएगा।

हज़रते इब्ने अब्बास रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जो शख्स अपने मुसलमान भाई की हाजत रवाई के लिये उस के साथ जाता है और उस की हाजत पूरी कर देता है तो अल्लाह तआला उस के और जहन्नम के दरमियान सात खन्दकें बना देता है और दो खन्दकों का दरमियानी फ़ासिला ज़मीनो आस्मान के दरमियानी फ़ासिले के बराबर होता है।

हज़रते इब्ने अम्र रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला के कुछ ऐसे इन्आमात हैं जो उन लोगों के लिये मख्सूस हैं जो लोगों की हाजत रवाई करते रहते हैं और जब वोह यह तरीका छोड़ देते हैं तो अल्लाह तआला वो इन्आमात दूसरों की तरफ़ मुन्तकिल कर देता है।

हज़रते अबू हुरैरा रज़ीअल्लाहो अन्हो से मरवी है : हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया : जानते हो कि शेर अपनी दहाड़ में क्या कहता है ? सहाबा ने अर्ज किया कि अल्लाह और उस के रसूल बेहतर जानते हैं। आप ने फ़रमाया : वो कहता है कि ऐ अल्लाह ! मुझे किसी भलाई करने वाले पर मुसल्लत न करना ।

जुमेरात की फ़ज़ीलत और जुमेरात का बयान

किसी ज़रूरत या काम का इरादा करो तो उसे जुमेरात  के दिन शुरूअ करो

हज़रते अली बिन अबी तालिब रज़ीअल्लाहो अन्हो यह हदीसे मरफूअ बयान करते थे कि जब तुम किसी ज़रूरत या काम का इरादा करो तो उसे जुमेरात के दिन शुरूअ करो और जब अपने घर से निकलो तो ‘सूरए आले इमरान’ का आखिरी हिस्सा, ‘आयतुल कुरसी’, ‘सूरतुल क़द्र’ और ‘सूरए फ़ातिहा’ पढ़ो क्यूंकि इन में दुनिया और आखिरत की बहुत सी हाजतें हैं।

हज़रते अब्दुल्लाह बिन हसन बिन हुसैन रज़ीअल्लाहो अन्हो कहते हैं कि मैं किसी ज़रूरत के लिये हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रज़ीअल्लाहो अन्हो के पास गया, इन्हों ने मुझे कहा : जब भी आप को कोई ज़रूरत पेश आए तो मेरी तरफ कोई कासिद भेज दें या खत लिख दें क्यूंकि मुझे अल्लाह तआला से हया आती है कि आप मेरे दरवाजे पर तशरीफ़ लाएं।

हज़रते अली बिन अबू तालिब रज़ीअल्लाहो अन्हो का कौल है : रब्बे जुल जलाल की कसम ! जो हर आवाज़ को सुनता है, कोई शख्स ऐसा नहीं है जो अपने दिल में मसर्रत को जगह देता है मगर अल्लाह तआला इस सुरूर से लुत्फ़ अता फ़रमाता है, फिर जब कोई मुसीबत नाज़िल होती है तो वो इस सुरूर को इस तरह बहा ले जाती है जैसे पानी निशेब में बहता है यहां तक कि उसे अजनबी ऊंट की तरह हंका दिया जाता है, नीज़ आप ने फ़रमाया कि ना हन्जार लोगों से हाजत तलब करने से हाजत का पूरा न होना बेहतर है, आप ने मजीद फ़रमाया : “अपने भाई के पास बहुत ज़ियादा ज़रूरतें ले कर न जाओ क्यूंकि बछड़ा जब थनों को बहुत ज़ियादा चूसने लगता है तो उस की मां उसे सींग मारती है।

किसी शाइर ने क्या खूब कहा है :

जब तक तेरे मक़दूर में हो किसी एहसान करने में पसो पेश न कर और यह ज़िन्दगी गुज़रने वाली है। और अल्लाह तआला की इस नवाज़िश को याद रख कि उस ने तुझे लोगों का हाजत रवा बना दिया है मगर तू किसी के पास अपनी हाजत ले कर नहीं जाता।

एक और शाइर कहता है:

जहां तक तुझ से मुमकिन हो लोगों की ज़रूरतें पूरी कर और उन का हाजत रवा भाई बन । बेशक किसी जवान का उम्दा दिन वो ही है जिस में वह लोगों की हाजत रवाई करता है।

और हुजूर सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम का फ़रमान है : उस शख्स के लिये खुश खबरी है जिस के हाथों भलाइयों का सुदूर होता है और उस शख्स के लिये हलाकत है जिस के हाथों बुराइयां फ़रोग पाती है।

-इमाम मोहम्मद गज़ाली र.अ., किताब मुकाशफतुल क़ुलूब

 

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